एक नवयुवक के मन में इच्छा होती है कि वह इंजीनियर बने। खूब नाम और दाम कमाए,उसे सफ़ल व्यक्ति के रुप में जाना जाए। लेकिन विपन्नता कहीं न कहीं आड़े आती है। पढाई के रास्ते में रोड़े बन कर बाधाएं सामने आती हैं। बाधाओं को पार भी करना पड़ता है। सोच बुलंद है निशाना सामने। बस आवश्यकता है सामर्थ्य और आत्म बल की। वह आत्मबल जुटाता है। सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला मिल जाता है। उसका चयन मौलाना अब्दुल कलाम इंजीनियरिंग एन्ड टेक्नालाजी कॉलेज भोपाल में हो जाता है, लेकिन धन अभाव में वह कॉलेज में प्रवेश नहीं ले पाया। फ़िर जी ई सी रायपुर में प्रवेश लेता है, आर्किटेक्चर (वास्तु कला) की पढाई करता है। लेकिन यहां भी फ़ीस के लिए धन चाहिए। इस संकट से वह घबराता नहीं, इससे उबरने के लिए के लिए रास्ता ढूंढता है।
वह बैंक से ॠण लेकर एक मालवाहक ऑटो खरीदता है। उसका सोचना था कि ड्रायवर रख कर ऑटो चलाने से कुछ आमदनी हो जाएगी। लेकिन ड्रायवर भी काम के समय नहीं मिलते थे। वह मुंह पर कपड़ा, चश्मा और टोपी लगाकर चेहरा छुपाता है, कहीं लोग यह न बोले कि इंजीनियरिंग कॉलेज का लड़का ऑटो चलाता है। कॉलेज के धनाड्य सहपाठियों के बीच हंसाई न हो। खुद ऑटो चलाने से आमदनी शुरु हो जाती है जिससे वह कॉलेज की फ़ीस पूरी करता है। एक दिन उसका सपना पूरा होता है। वह आर्किटेक्ट बन कर जी ई सी (गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज) से वास्तुकार की डिग्री लेकर बाहर निकलता है। अब खुला आसमान उसके सामने था। वह कहता है कि कोई भी काम छोटा काम नहीं होता। मेहनत और लगन से सब संभव है और उसने कर दिखाया।
राधा विनोद कोइजाम जब मणिपुर के मुख्य मंत्री थे तब वे मुझे जार्ज साहब के यहाँ मिलते रहते थे और भी अन्य कार्यक्रमों में भी मुलाकात होती थी, एक दिन उन्होने मणिपुर आने का निमंत्रण दिया। वहां एम आई सिंग ने मुझे बताया कि मणिपुर की राजधानी इम्फ़ाल में भी ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट लड़के मुंह छुपा कर पढाई जारी रखने के लिए रिक्शा चलाने का काम करते हैं, प्रतियोगी परीक्षाओं की पढाई के लिए रुपए जमा करते हैं, और इन्ही में से कई अधिकारी भी बने हैं। कहीं अधिकारी बनने के बाद पहचाने नहीं जाएं इसलिए मुंह को ढक लेते हैं। इस नवयुवक की कहानी जान कर मुझे मणिपुर के युवाओं की याद आ गयी।जब इसने इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला लिया था तो उसके सामने सपना था, आर्किटेक्ट बनकर बिल्डिंग निर्माण के व्यवसाय में कदम रखने का।
उसने एक लक्ष्य निर्धारित किया और इस दिशा में कदम रखा। यहाँ पर सफ़लता उसका इंतजार कर रही थी और सफ़ल भी हुआ, अपने लक्ष्य को उसने प्राप्त किया। अगर आत्मबल हो और कुछ करने की तमन्ना हो तो सफ़लता भी उसका वरण करती है। आज वह रायपुर शहर के बिल्डरों में अपना नाम दर्ज करा चुका है।समाज सेवा में भी सुमीत दास अग्रणी है, पनिका समाज अन्य समाज के उत्थान के लिए कार्य करते ही रहता है। जिसने विपन्नता देखी है वही किसी गरीब का दर्द समझ सकता है। समाज के सभी तबकों से सीधा सम्बंध स्थापित करना इसकी बड़ी उपलब्धि है। इसी के फ़ल स्वरुप इनके छोटे भाई अमित दास संतोषी नगर से पार्षद एवं एम आई सी मेम्बर भी हैं। सामाजिक कार्यों में भी इनकी सक्रीय हिस्सेदारी है।
यह कोई फ़िल्मी कहानी नहीं है। छोटे से अर्से में सफ़लता के सोपान पर चढने वाले सुमीत दास छत्तीसगढ अंचल के उस समाज से वास्ता रखते हैं जिसे पनिका समाज ( मानिक पुरी समाज) कहते हैं। कबीर दास को मानने वाला यह समाज आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक एवं शैक्षणिक रुप से काफ़ी पिछड़ा हुआ है। इनका पुस्तैनी व्यवसाय कपड़ा बनाने का होता था। ये मोटा कपड़ा बनाते थे। मशीनीकरण होने के बाद अन्य जातियों ने कोसे (सिल्क) का पतला कपड़ा बनाना शुरु कर दिया लेकिन पनिका समाज कबीर दास का अनुयायी था, इसलिए कोसे को बनाने के लिए उसके कीड़े को मारना पड़ता है जिससे हिंसा होती है। इन्होने कपड़ा बनाने का काम ही बंद कर दिया। जीविकोपार्जन के लिए मजदूरी करना प्रारंभ कर दिया।
सांसद चरण दास महंत एवं पीपली लाईव का हीरो नत्था दास मानिकपुरी भी इसी समाज से आते हैं।जब इस समाज का एक लड़का अपने उद्यम से स्वालम्बी बनकर स्वाभिमान कायम रखते हुए सफ़लता के शिखर तक पहुंचने की कोशिश करता है यह काबिल-ए-तारीफ़ है। आज शहर में कृष्णा बिल्डकॉन जाना पहचाना नाम है। सुमीत दास एक सफ़ल बिल्डर और आर्किटेक्ट है। इसमें कोई संदेह नहीं है। मेरा इस पोस्ट लिखने का कारण यह है कि मेरे देश के नव जवान सुमीत दास जैसे उद्यमी नवयुवक से प्रेरणा लें। अगर दृढ इच्छा शक्ति है तो सफ़लता अवश्य कदम चुमती है। आगे ये विधायक बनकर जनता की सेवा करना चाहते हैं।