हमारे शास्त्रों में तो दुर्जनों की भी वंदना करने की आज्ञा दी गई है..और कहा गया है कि.....दुर्जनम प्रथम वन्दे सज्जनम् तदनंतरम् , मुख प्रक्षालनात पुर्वम् गुदा प्रक्षालनात वरम्............अब कहीं कहीं विघ्न ना हो इसलिए इनकी भी वंदना होने लगी........
तुलसी दास जी ने जब रामचरित मानस रचना की थी तो उन्होंने प्रारंभ में ही भूसुर वंदना लिखी थी.........बंदऊ प्रथम महिसुर चरना........के साथ खल वंदना भी की......
जब हम कोई शुभ कार्य करते हैं तो गणपति को मनाऊ कह कर गणपति का ध्यान करते हैं............. यज्ञ के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित सभी जड़ चेतन देवों को मनाया जाता है उनका आह्वान किया जाता है कि यज्ञ संपन्न करने में सहायक बने.......और यज्ञ कार्य सफल हो.......
गाँवो में परंपरा है कि प्रथम मनाऊ गणेश से लेकर वराह देव तक किसी को नहीं छोड़ा जाता. सबको मनाते है,...........सभी की आवभगत की जाती है पत्र पुष्प मिष्ठान इत्यादि से, लेकिन कहीं अज्ञानतावश किसी भी देव को भूल गए तो उस देव क्रोधित हो जाते है........क्योंकि वो देव अपनी उपस्थिती बताना चाह रहे हैं..... और हम भूल चुके हैं..........फिर हमें याद कैसे आयेंगे?...........
जब तक वो क्रोधित हो कर अपनी ओर हमारा ध्यान आकृष्ट ना करा दें... क्रोध की पुनरावृत्ति भी हो सकती है........क्यों ना हो भाई? उन की भी कोई अहमियत है इस संसार में, इस संसार को बसाने में उनका भी कुछ हाथ-पैर लगा है............और आप उनकी उपेक्षा किए जा रहे हैं यह उन्हे कैसे मंजुर होगा?
आखिर देव हैं वो आपको कुछ देना चाहते हैं............देव अर्थात देने वाला......देने वाला तैयार है लेकिन हम अज्ञानतावश भूल बैठे........... इसलिए इन्हें आप कभी ना भूलें.....
पहले कवि जब भी कोई कवित्त रचते थे तो पहले गणेश और सरस्वती जी का स्मरण करते थे......तदुपरांत लेखन कर्म प्रारंभ करते थे............और हम मुरख आज इनको भूल चुके हैं...........इसलिए उत्पात हो जाते हैं... ..... और ये चाहते हुए भी सहायक नहीं हो पाते............
कभी कभी देवों के भेष में भूत पिशाचों के भी उत्पात शुरू हो जाते हैं...........और हम देव मानकर उन्हें पूजते रहते है.......लेकिन पिशाच प्रवृति है ही उत्पाती......... फिर उससे निपटने के महाबली हनुमान का सुमिरन करना पड़ता है................ .महाबली हनुमान को यह नहीं पता कि उनमे अतुलित बल है, एक श्राप के कारण भूल बैठे है...........जब उन्हें स्मरण करके उनके द्वारा किये गये महान कार्यों की याद दिलाई जाती है तब वो जागृत होते हैं......
अतुलितबलधामम् हैमशैलाभदेहं, दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं, रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि॥.....और भूत पिशाच निकट नहीं आवै महावीर जब नाम सुनावे-नासी रोग हरे सब पीर जपत निरंतर हनुमत वीरा.....तथा........को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो.......आदि आदि गुणगान करके उन्हें प्रसन्न करना पड़ता है.........तब हनुमान जी गदा से दुष्टों को सुधारते है .......... अन्यथा इनके मायावी रूप दृष्टिगोचर होते रहते है........... जिन्हें पहचान पाना आम मनुष्य के बस की बात नहीं है..........
राम चरित मानस में वर्णन है कि जब हनुमान जी लंका में लघु रूप धर कर प्रवेश कर रहे थे तब रावण के गढ़ की रक्षा करने वाली लंकिनी ने इन्हें प्रवेश करने से रोका..........तब हनुमान जी ने लंकिनी को एक मुष्टिका प्रहार से चित्त कर दिया----
मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥ तब दुष्ट पिशाच लंकिनी ने इन्हें मार खाते ही पहचान लिया........ इसलिए कभी भी देव-पिशाच-दुर्जन को नहीं भूलना चाहिए.......अन्यथा उत्पातों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए सबकी वंदना करनी चाहिए......अन्यथा मन की शांति भंग हो सकती है.
गुरुवर, पूर्णतया सहमत , मगर दिक्कत यह है कि दुर्जन भी अपने को सज्जन बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे, जब देखो अपने ही गुणगान में व्यस्त रहते है, देश की नहीं सोचते !
जवाब देंहटाएंवाह ललित जी, बहुत सुन्दर लिखा। सज्जनों की वन्दना के साथ साथ दुर्जनों की वन्दना बहुत जरूरी है। इसीलिये गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है
जवाब देंहटाएं"बंदउ संत असज्जन चरना। दुखपरद उभय बीच कछु बरना॥
बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं। मिलत एक दुख दारुन देहीं॥"
आपने बिल्कुल सही लिखा हैः
"महाबली हनुमान को यह नहीं पता कि उनमे अतुलित बल है, एक श्राप के कारण भूल बैठे है...........जब उन्हें स्मरण करके उनके द्वारा किये गये महान कार्यों की याद दिलाई जाती है तब वो जागृत होते हैं......"
हमारी हिन्दी ब्लोगिंग भी तो हनुमान जी जैसी ही है जो अपनी शक्ति को भूली हुई है, हमें स्मरण दिलाकर उसकी शक्ति को जागृत करना होगा।
अरे महाराज ये स्वीकृति का फंडा कब से लगा दिया ....
जवाब देंहटाएंओह तो ये बात है महाराज जी चलिए अब दुर्जनों की स्तुति कर लेते हैं
जवाब देंहटाएंस्वामी जय हो दुर्जन देवा
तुम सुखियो के सुख
क्षण में तुम हर लेवा
स्वामी जय हो दुर्जन देवा
लात जूते से करुँ पूजा तेरी
तबहू तुम भाग लेवा
स्वामी जय हो दुर्जन देवा'
जय हो स्वामी दुर्जन देवा.
पौआ भ्रष्टाचार रिश्वत चडाऊ तुझको
तो तुम खुश होवा
जय हो स्वामी दुर्जन देवा.
ये पंक्तियाँ उन दुर्जन ब्लागरो के लिए है जो खुद न वांचे न दूसरो को सुख के साथ लिखने भी नहीं देते और दूसरो की कलम में खलल डालते हैं .
दुर्जनम प्रथम वन्दे सज्जनम् तदनंतरम् , मुख प्रक्षालनात पुर्वम् गुदा प्रक्षालनात वरम्....ललित भाई, यदि संभव हो तो कृपया बतावें कि यह श्लोक कहां से लिया गया है । पूरा श्लोक भी लिखें ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ।
@विजय प्रकाश सिंग जी,
जवाब देंहटाएंइस श्लोक को मैने बरसों पहले पढा था
अब याद नही हैं कहां पढा था ।
असली काम तो दुर्जन ही करते है सज्जन तो बेचारे सज्जन ही होते है काम के न धाम के ..फिर उनकी वन्दना से क्या लाभ ?
जवाब देंहटाएंतब हनुमान जी ने लंकिनी को एक मुष्टिका प्रहार से चित्त कर दिया----मुठिका एक महा कपि हनी। रुधिर बमत धरनीं ढनमनी॥
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत के लिए बहुत सटीक और सामयिक पोस्ट !
सबकी वंदना करनी चाहिए.-ब्लॉग जगत के लिए बहुत सटीक और सामयिक पोस्ट
जवाब देंहटाएं...जय जय श्रीराम !!!
जवाब देंहटाएंदुर्जनम प्रथम वन्दे सज्जनम् तदनंतरम् , मुख प्रक्षालनात पुर्वम् गुदा प्रक्षालनात वरम्
जवाब देंहटाएंआपने जब फोन पर इसका 'शुद्ध' हिन्दी में अर्थ बताया तो मेरा हँसते-हँसते बुरा हाल था। लेकिन बात बिल्कुल सही है।
बी एस पाबला
इसलिए कभी भी देव-पिशाच-दुर्जन को नहीं भूलना चाहिए.......अन्यथा उत्पातों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए सबकी वंदना करनी चाहिए......अन्यथा मन की शांति भंग हो सकती है.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक लिखा आपने. ामराम.
र
मैं समझ गया कि आपने फ़ोन पर इसका क्या अर्थ बताया होगा ....अब मैं भी हंस रहा हूं ...बहुत घुमा के कान को पकडा है ...मगर यकीन मानिए ..जिसका भी पकडा है ..उसका कान पूरा लाल हो गया होगा ...हा हा हा ..बोलो सिया पति राम चंद्र की जय ...जय बजरंग बली..तोड दुशमन की नली....अरे नली तोडने के लिए आपकी बंदूक की नली भी तो है ...
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
वाह शर्मा जी ,बढ़िया चिंतन -लेखन.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक आलेख !
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक आलेख !
जवाब देंहटाएंखल वंदना ने ही तो सारी गड़बड़ कर रखी है।
जवाब देंहटाएं.जय जय श्रीराम !!!
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