पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मभूमि छत्तीसगढ के रायपुर जिले के अभनपुर ब्लॉक के ग्राम चांपाझर में स्थित है। गाहे-बगाहे वर्ष में दो तीन बार तो यहाँ हो आता हूँ। देश-विदेश से बहुतायत में तीर्थ यात्री दर्शनार्थ आते है पुण्य लाभ प्राप्त करने। कहते हैं कि कभी इस क्षेत्र में चम्पावन होने के कारण इसका नाम चांपाझर पड़ा। कालांतर में इसे चम्पारण के नाम से जाना जाता है। 18 अप्रेल को विश्व हैरिटेज दिवस पर लघु गोष्ठी का आयोजन संस्कृति विभाग के द्वारा किया गया था। वहाँ प्रख्यात पुरातत्वविद एवं इतिहासकार श्री विष्णु सिंह ठाकुर जी से चांपाझर का नाम सुनकर इस स्थल की याद हो आई।
महान दार्शनिक तथा पुष्टि मार्ग के संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्म चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को संवत् 1535 अर्थात सन् 1479 ई. को रायपुर जिले में स्थित महातीर्थ राजिम के पास चम्पारण्य (चम्पारण)में हुआ था। महाभारत में चम्पारण्य का उल्लेख चम्पातीर्थ के नाम से कोसल के अंतर्गत किया गया है। छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम कोसल था। राजिम तथा चम्पारण्य तीर्थ महानदी के तट पर आसपास स्थित है। तपोभूमि छत्तीसगढ में पुराणो में वर्णित चित्रोत्पला गंगा (महानदी) की धारा के समीप स्थित राजिम के कमल क्षेत्र पास स्थित इस इस वन में भारद्वाज गोत्र के तैलंग ब्राह्मण परिवार में इल्लमा गारु की कोख से महाप्रभु वल्लभाचार्य ने जन्म लिया। इनके पिता का नाम लक्ष्मण भट्ट था। इनके पुर्वज गोदावरी के तट पर स्थित ग्राम काकरवाड़ में निवास करते थे। लक्ष्मण भट्ट एक लाख ब्राह्मणों को भोजन कराने का संकल्प लेकर पत्नी सहित काशी की यात्रा पर निकले थे। प्राचीन काल में उत्तर भारत को जाने का मार्ग छत्तीसगढ से ही होकर जाता था। महानदी के किनारे बसे हुए सिरपुर में (श्रीपुर) में 639 ई. में प्रसिद्ध चीनी यात्री व्हेनसांग के कोसल आने का उल्लेख मिलता है। वह भी इसी मार्ग से आंध्रप्रदेश की ओर गया था।
श्री लक्ष्मण भट्ट अपने संगी-साथियों के साथ यात्रा के कष्टों को सहन करते हुए जब वर्तमान मध्य प्रदेश में रायपुर ज़िले के चंपारण्य नामक वन में होकर जा रहे थे, तब उनकी पत्नी को अकस्मात प्रसव-पीड़ा होने लगी। सांयकाल का समय था। सब लोग पास के चौड़ा नगर में रात्रि को विश्राम करना चाहते थे; किन्तु इल्लमा जी वहाँ तक पहुँचने में भी असमर्थ थीं। निदान लक्ष्मण भट्ट अपनी पत्नी सहित उस निर्जंन वन में रह गये और उनके साथी आगे बढ़ कर चौड़ा नगर में पहुँच गये। उसी रात्रि को इल्लम्मागारू ने उस निर्जन वन के एक विशाल शमी वृक्ष के नीचे अठमासे शिशु को जन्म दिया। बालक पैदा होते ही निष्चेष्ट और संज्ञाहीन सा ज्ञात हुआ, इसलिए इल्लम्मागारू ने अपने पति को सूचित किया कि मृत बालक उत्पन्न हुआ है। रात्रि के अंधकार में लक्ष्मण भट्ट भी शिशु की ठीक तरह से परीक्षा नहीं कर सके। उन्होंने दैवेच्छा पर संतोष मानते हुए बालक को वस्त्र में लपेट कर शमी वृक्ष के नीचे एक गड़ढे में रख दिया और उसे सूखे पत्तों से ढक दिया। तदुपरांत उसे वहीं छोड़ कर आप अपनी पत्नी सहित चौड़ा नगर में जाकर रात्रि में विश्राम करने लगे।
दूसरे दिन प्रात:काल आगत यात्रियों ने बतलाया कि काशी पर यवनों की चढ़ाई का संकट दूर हो गया । उस समाचार को सुन कर उनके कुछ साथी काशी वापिस जाने का विचार करने लगे और शेष दक्षिण की ओर जाने लगे। लक्ष्मण भट्ट काशी जाने वाले दल के साथ हो लिये। जब वे गत रात्रि के स्थान पर पहुंचे, तो वहाँ पर उन्होंने अपने पुत्र को जीवित अवस्था में पाया। ऐसा कहा जाता है उस गड़ढे के चहुँ ओर प्रज्जवलित अग्नि का एक मंडल सा बना हुआ था और उसके बीच में वह नवजात बालक खेल रहा था। उस अद्भुत दृश्य को देख कर दम्पति को बड़ा आश्चर्य और हर्ष हुआ। इल्लम्मा जी ने तत्काल शिशु को अपनी गोद में उठा लिया और स्नेह से स्तनपान कराया। उसी निर्जन वन में बालक के जातकर्म और नामकरण के संस्कार किये गये। बालक का नाम 'वल्लभ' रखा गया, जो बड़ा होने पर सुप्रसिद्ध महाप्रभु वल्लभाचार्य हुआ। उन्हें अग्निकुण्ड से उत्पन्न और भगवान की मुखाग्नि स्वरूप 'वैश्वानर का अवतार' माना जाता है।
वल्लभाचार्य जी का आरंभिक जीवन काशी में व्यतीत हुआ था, जहाँ उनकी शिक्षा-दीक्षा तथा उनके अध्ययनादि की समुचित व्यवस्था की गई थी। उनके पिता श्री लक्ष्मण भट्ट ने उन्हें गोपाल मन्त्र की दीक्षा दी थी और श्री माधवेन्द्र पुरी के अतिरिक्त सर्वश्री विष्णुचित तिरूमल और गुरुनारायण दीक्षित के नाम भी मिलते हैं। वे आरंभ से ही अत्यंत कुशाग्र बुद्धि और अद्भुत प्रतिभाशाली थे। उन्होंने छोटी आयु में ही वेद, वेदांग, दर्शन, पुराण, काव्यादि में तथा विविध धार्मिक ग्रंथों में अभूतपूर्व निपुणता प्राप्त की थी। वे वैष्णव धर्म के अतिरिक्त जैन, बौद्ध , शैव, शाक्त, शांकर आदि धर्म-संप्रदायों के अद्वितीय विद्वान थे। उन्होंने अपने ज्ञान और पांडित्य के कारण काशी के विद्वत समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त किया था।
चम्पारण की यात्रा हम लोग बचपन से करते रहे हैं। उस समय सिर्फ़ घने वृक्षों के बीच छोटा सा स्थान बना हुआ जहाँ मुर्तियाँ स्थापित थी। आस-पास में सागौन के वृक्षों का जंगल था। मान्यतानुसार इस स्थान के वृक्षों को सूखने के पश्चात भी कोई काटता नहीं था। इससे अनिष्ट की आशंका थी। अभी भी यहाँ बहुत सारे सूखे पेड़ खड़े हैं जिन्हे कोई काटता नहीं है। धीरे-धीरे इस स्थान का विकास हुआ। तीर्थयात्री आने लगे। दान दाताओं के धन से धर्मशालाओं का निर्माण हुआ। पास में ही चम्पेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है जहाँ लोग पंचकोसी की यात्रा करने आते हैं। एक बार मैने भी इस पंच कोशी की यात्रा वर्तमान कृषिमंत्री छत्तीसगढ शासन चंद्रशेखर साहु जी के साथ की थी। हम पाँच स्थानों पर स्थित शिवमंदिरों के दर्शनार्थ गए थे। यह पाँच शिव मंदिर पटेश्वर, बम्हनेश्वर, फ़िंगेश्वर, कुलेश्वर तथा चम्पेश्वर हैं।
लगभग आज से 20 वर्षों पुर्व मुंबई से एक वल्लभाचार्य जी के अनुयायी कृष्णदास अड़िया जी चम्पारण पहुंचे। यहां उन्होने लगभग डेढ करोड़ रुपए का दान दिया। जिससे इस स्थान पर निर्माण कार्य शुरु हुआ। उसके पश्चात अड़िया जी स्थायी रुप से यहीं रहने लगे। इनके प्रयास से चम्पारण के इस स्थान को भव्यता प्राप्त हुई। वर्तमान में यहाँ पर सुदामापुरी नामक भव्य धर्मशाला का निर्माण हुआ। गौशाला बनी एवं मंदिर में निर्माण कार्य सतत जारी है। दान दाताओं के नाम मंदिर की दीवालों पर लिखे गए हैं। मंदिर स्थान को चटक रंगों के बेल बूटों से सजाया गया है। इस प्रकार चम्पारण के मंदिर ने भव्यता ग्रहण की। हाल में ही मैं मित्र आर एस चौरसिया के साथ एक बार पुन: चम्पारण के दर्शनार्थ गया। इन एक वर्षों में बहुत कुछ बदलाव देखने मिला। काफ़ी संख्या में बाहर से आए हुए तीर्थ यात्रियों से मुलाकात हुई। तीर्थ यात्रियों का आगमन बारहों माह होते रहता है। चम्पारण की नयनाभिराम भव्यता देखते ही बनती है।
अच्छी जानकारी दी इस सुंदर स्थल की .....
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा चम्पारण के विषय में जानकर...
जवाब देंहटाएंइस आलेख ने छत्तीसगढ़ के लिए आकर्षण में वृद्धि कर दी है।
जवाब देंहटाएंबढि़या प्रस्तुति. चंपारण पहुंचने वाले के लिए इस जानकारी का महत्व और अधिक होगा.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी दी
जवाब देंहटाएंचम्पारण के विषय में जानकर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंबढ़िया ज्ञानवर्धक पोस्ट है भईया... सचमुच आज चम्पारण्य सघनारान्य से भव्य नगरी में तब्दील हो गयी है और इसकी छटा देखते ही बनती है...चिकित्साल्यीन कार्य के चलते महीने में एक बार इस पुन्य धरा को प्रणाम करने का अवसर मिलता है... सच में मन तृप्त हो जाता है यहाँ आकर... देवाधिदेव चमेश्वर महादेव और महाप्रभु वल्लभाचार्य को कोटि कोटि नमन
जवाब देंहटाएंबहुत विस्तार से चम्पारण का इतिहास और विकास की गाथा का सुन्दर विवरण दिया है ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा पढ़कर ।
बहुत ही सुन्दर जगह है... छत्तीसगढ़ में तो स्वर्ग खुद उतर आया है..
जवाब देंहटाएंललित जी ,चम्पारण के बारे में इतना विस्तार से जानकार प्रसन्ता हुई --फोटो भी बहुत खूब सुरत है --देखकर जाने की इच्छा हो ने लगी --
जवाब देंहटाएंमेरा ब्लोक आपका इतजार कर रहा है --धन्यवाद !
इसके पूर्व तो मैं एक ही चंपारण को जानता था, जो बिहार में है. छत्तीसगढ़ के इस चंपारण को जानना सुखद लगा. अच्छी सैर कराइ आपने !
जवाब देंहटाएंA long day but a nice day.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आयें और अपनी कीमती राय देकर उत्साह बढ़ाएं
समझो : अल्लाह वालो, राम वालो
जानकारी से भरी पोस्ट के लिए आभार .. चम्पारण के विषय में जानकर बहुत अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंचम्पारण के बारे में जानकार बहुत अच्छा लगा |
जवाब देंहटाएंछत्तीसगढ़ के चंपारण के बारे में पढ़कर अच्छा लगा.. आपके लेखन में अद्वितीय रोचकता है.. बिहार में भी एक चंपारण है.. शायद नाम का श्रोत एक ही रहा होगा... लेकिन बिहार के चंपारण की स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी भूमिका है...
जवाब देंहटाएंस्थल की रोचक जानकारी।
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (23.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
जवाब देंहटाएंचर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
chapeswar mahadev ki jai,,,,,,,,,,,
जवाब देंहटाएं250 के ऊपर माह, 1000 के ऊपर सप्ताह यहां रहते हो गये पर इस पवित्र स्थान के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो पाया है।
जवाब देंहटाएंचम्पारण के विषय में अच्छी जानकारी...
जवाब देंहटाएंghar baithe aapne champaran ke darshan karva diye...jankari bahut hi rochak aur poornata liye hue hai abhar..
जवाब देंहटाएंachhoote teertho ko net jagat me aage laane kaa aapkaa prayas saraahneey laga. badhaaaai
जवाब देंहटाएंहमारे लिए तो आपने नयी जगह दिखा दी ! ...शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअच्छी रही आपकी यात्रा ...... सभी फोटो सुंदर हैं....
जवाब देंहटाएंpriy mitra
जवाब देंहटाएंsader bandan
kuchh chir ho gaye aapko padhe huye , mafi chate hain . vivaran/ varnan sukhad laga ,itihas prachchhadit hai manoram vividh kathaon , dant-kathaon se ,sakhiyon se .sabhar ji .
बहुत अच्छी यात्रा कराई...चित्र बहुत सुंदर हैं...
जवाब देंहटाएंपढ़ा ही था गई कभी नहीं....