शिवनाथ नदी के एनीकट से बहता हुआ पानी |
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गर्मा-गरम चाय के साथ भाटापारा में सुबह हुई। मैने मदकू द्वीप जाने का मन कल से ही बना लिया था। सुबह राहुल भैया से फ़ोन पर मदकू द्वीप के विषय में जानकारी ली। उन्होने वहाँ पर कार्यरत निर्देशक प्रभात सिंह का मोबाईल नम्बर दिया और उन्हे बता भी दिया कि मैं लगभग 10 बजे तक मदकू द्वीप पहुंच जाऊंगा।
मदकू द्वीप मैने मोटर सायकिल से जाना तय किया। भाटापारा से मदकू द्वीप लगभग 15 किलोमीटर पर है। घर से निकलकर होटल से कुछ नास्ता एवं कोल्ड ड्रिंक लिया और चल पड़ा मदकू की तरफ़।
सुरजपुरा होते हुए दतरेंगी पहुंचा। वहाँ चौक पर खड़े कुछ लोगों से मदकू का रास्ता पूछा तो उन्होने मुझे ठेलकी होते हुए मदकू का रास्ता बताया। रास्ते में शिवनाथ नदी पार करनी पड़ती है। उन्होने बताया कि नदी के एनीकेट पर लगभग 6 इंच पानी बह रहा है लेकिन मोटर सायकिल निकल सकती है।
गर्मा-गरम चाय के साथ भाटापारा में सुबह हुई। मैने मदकू द्वीप जाने का मन कल से ही बना लिया था। सुबह राहुल भैया से फ़ोन पर मदकू द्वीप के विषय में जानकारी ली। उन्होने वहाँ पर कार्यरत निर्देशक प्रभात सिंह का मोबाईल नम्बर दिया और उन्हे बता भी दिया कि मैं लगभग 10 बजे तक मदकू द्वीप पहुंच जाऊंगा।
मदकू द्वीप मैने मोटर सायकिल से जाना तय किया। भाटापारा से मदकू द्वीप लगभग 15 किलोमीटर पर है। घर से निकलकर होटल से कुछ नास्ता एवं कोल्ड ड्रिंक लिया और चल पड़ा मदकू की तरफ़।
सुरजपुरा होते हुए दतरेंगी पहुंचा। वहाँ चौक पर खड़े कुछ लोगों से मदकू का रास्ता पूछा तो उन्होने मुझे ठेलकी होते हुए मदकू का रास्ता बताया। रास्ते में शिवनाथ नदी पार करनी पड़ती है। उन्होने बताया कि नदी के एनीकेट पर लगभग 6 इंच पानी बह रहा है लेकिन मोटर सायकिल निकल सकती है।
हमने पार कर ली शिवनाथ नदी-सबूत सहित |
ठेलकी होते हुए नदी के पास पहुंचा तो देखा कि नदी में पानी लबालब भरा हुआ है और एनीकट से पानी छलक कर उपर बह रहा है। कुछ स्थानीय मोटर सायकिल वाले भी थे उन्होने नदी पार करने के लिए एनीकट पर मोटर सायकिल डाल दी।
मैं भी पैंट के पांयचे मोड़ कर उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। आगे मदकू गाँव आ गया। गाँव की सीमा में बड़ा प्रवेश द्वार बना हुआ है।
कुछ लोगों से फ़िर पूछना पड़ा द्वीप का रास्ता। उनके बताए रास्ते पर गया तो एक एनीकट निर्माणाधीन है। यहाँ पहुंच कर लगा कि गलत रास्ते आ गया। अब नदी को फ़िर से पार करना पड़ेगा।
नदी के किनारे पहुंच कर मैने प्रभात सिंह को फ़ोन लगाया। उन्होने भी कहा कि आप गलत रास्ते आ गए हैं। बाईक पर हैं तो एनीकेट पार कर लीजिए। मैने एनीकेट पार किया और द्वीप पर पहुंच गया।द्वीप पर पहुंचकर देखा तो खुदाई के साथ पुनर्निर्माण का कार्य चल रहा है।
मैं भी पैंट के पांयचे मोड़ कर उनके पीछे-पीछे चल पड़ा। आगे मदकू गाँव आ गया। गाँव की सीमा में बड़ा प्रवेश द्वार बना हुआ है।
कुछ लोगों से फ़िर पूछना पड़ा द्वीप का रास्ता। उनके बताए रास्ते पर गया तो एक एनीकट निर्माणाधीन है। यहाँ पहुंच कर लगा कि गलत रास्ते आ गया। अब नदी को फ़िर से पार करना पड़ेगा।
नदी के किनारे पहुंच कर मैने प्रभात सिंह को फ़ोन लगाया। उन्होने भी कहा कि आप गलत रास्ते आ गए हैं। बाईक पर हैं तो एनीकेट पार कर लीजिए। मैने एनीकेट पार किया और द्वीप पर पहुंच गया।द्वीप पर पहुंचकर देखा तो खुदाई के साथ पुनर्निर्माण का कार्य चल रहा है।
पुरातत्वविद् अरुण कुमार शर्मा जी |
ईश कृपा से वहाँ पर अरुण कुमार शर्मा जी भी मिल गए। अरुण कुमार शर्मा जी मानवशास्त्र के प्राग एतिहासिक काल के अध्येता हैं।
यह इनका मूल क्षेत्र है और उन्होने इसी के माध्यम से पुरातत्व में प्रवेश किया। आप भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विगाग के प्रागएतिहासिक शाखा नागपुर के लम्बे समय तक प्रभारी रहे हैं एवं वर्तमान में छत्तीसगढ शासन के पुरातात्विक मानसेवी सलाहकार हैं।
छत्तीसगढ के पुरातत्व के संवर्धन एवं संरक्षण में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। साथ ही अयोध्या राम मंदिर मुकदमे में ऐतिहासिक प्रमाण जुटाने वाले दल में भी थे और इस मुकदमे इनकी गवाही हुई थी।
इनसे मिलने का अर्थ था कि मदकू द्वीप के संबंध में बहुत सारी जानकारियाँ मिल जाएगीं। 75-76 वर्ष की उम्र में भी इन्होने नौजवानों को पीछे छोड़ दिया है।
पूर्णरुप से समर्पित होकर छत्तीसगढ के पुरातत्व के संरक्षण में लगे है। एक ओर जहाँ सरकार ने बजट देने में कोई कमी नहीं की है वहीं दुसरी ओर इन्होने भी अपनी तरफ़ से श्रम करने में कोई कमी नहीं की है।
यह इनका मूल क्षेत्र है और उन्होने इसी के माध्यम से पुरातत्व में प्रवेश किया। आप भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विगाग के प्रागएतिहासिक शाखा नागपुर के लम्बे समय तक प्रभारी रहे हैं एवं वर्तमान में छत्तीसगढ शासन के पुरातात्विक मानसेवी सलाहकार हैं।
छत्तीसगढ के पुरातत्व के संवर्धन एवं संरक्षण में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। साथ ही अयोध्या राम मंदिर मुकदमे में ऐतिहासिक प्रमाण जुटाने वाले दल में भी थे और इस मुकदमे इनकी गवाही हुई थी।
इनसे मिलने का अर्थ था कि मदकू द्वीप के संबंध में बहुत सारी जानकारियाँ मिल जाएगीं। 75-76 वर्ष की उम्र में भी इन्होने नौजवानों को पीछे छोड़ दिया है।
पूर्णरुप से समर्पित होकर छत्तीसगढ के पुरातत्व के संरक्षण में लगे है। एक ओर जहाँ सरकार ने बजट देने में कोई कमी नहीं की है वहीं दुसरी ओर इन्होने भी अपनी तरफ़ से श्रम करने में कोई कमी नहीं की है।
उत्खनन निर्देशक मदकुद्वीप प्रभात सिंह |
प्रभात सिंह मदकू द्वीप में उत्त्खनन निर्देशक के रुप में कार्य कर रहे हैं। ये संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग छत्तीसगढ शासन के पर्यवेक्षक हैं।
मै जब पहुंचा तो अरुण कुमार शर्मा जी भीषण गर्मी में सिरहुट के वृक्ष की छाया में बैठे थे। मदकू द्वीप में सिरहुट एवं अकोल के वृक्षों का जंगल है।
सिरहुट के फ़ल पीले रंग एवं मीठे होते हैं। इसके फ़ल खाने के लिए बंदरों की पूरी फ़ौज ही यहाँ पहुंची रहती है।
राम राम होने के बाद मैने अरुणकुमार जी से मदकू द्वीप के विषय में जानकारी चाही। उन्होने बताया कि मदकू नाम मण्डूक का अपभ्रंश नाम है। यहाँ खुदाई में 11 वीं शताब्दी के कलचुरी कालीन मंदिरों की श्रृंखला मिली है।
अब हमारी मान्यता है कि मण्डूक ॠषि ने यहीं पर आकर अपना आश्रम बनाया था और मांडूकोपनिषद की रचना की थी। यह स्थल इसलिए पवित्र है कि चारों तरफ़ शिवनाथ नदी से घिरा हुआ है और यही पर आकर शिवनाथ नदी दक्षिण से आकर उत्तर-पूर्व की ओर कोण बनाते हुए ईशान कोण में बहने लगती है।
मै जब पहुंचा तो अरुण कुमार शर्मा जी भीषण गर्मी में सिरहुट के वृक्ष की छाया में बैठे थे। मदकू द्वीप में सिरहुट एवं अकोल के वृक्षों का जंगल है।
सिरहुट के फ़ल पीले रंग एवं मीठे होते हैं। इसके फ़ल खाने के लिए बंदरों की पूरी फ़ौज ही यहाँ पहुंची रहती है।
राम राम होने के बाद मैने अरुणकुमार जी से मदकू द्वीप के विषय में जानकारी चाही। उन्होने बताया कि मदकू नाम मण्डूक का अपभ्रंश नाम है। यहाँ खुदाई में 11 वीं शताब्दी के कलचुरी कालीन मंदिरों की श्रृंखला मिली है।
अब हमारी मान्यता है कि मण्डूक ॠषि ने यहीं पर आकर अपना आश्रम बनाया था और मांडूकोपनिषद की रचना की थी। यह स्थल इसलिए पवित्र है कि चारों तरफ़ शिवनाथ नदी से घिरा हुआ है और यही पर आकर शिवनाथ नदी दक्षिण से आकर उत्तर-पूर्व की ओर कोण बनाते हुए ईशान कोण में बहने लगती है।
ईशान कोण की ओर बहती नदी एवं द्वीप |
हिन्दु धर्म में एवं हमारे प्राचीन वास्तु शास्त्र के हिसाब से ईशान कोण में बहने वाली नदी सबसे पवित्र मानी जाती है।
हिन्दु धर्म में ऐसे ही स्थान पर मन्दिरो, बड़े नगरों एवं राजधानियों की स्थापना की जाती है। उदाहरणार्थ जैसे सिरपुर दक्षिण कोसल की राजधानी थी, 2600 वर्ष पूर्व भारत का सबसे बड़ा वाणिज्यिक क्षेत्र था।
यहां पर आकर महानदी साढे 6 किलोमीटर तक ईशान कोण में बहती है। बनारस इसलिए प्रवित्र है कि वहाँ पर आकर गंगा नदी ईशान कोण में बहने लगती है और यहाँ काशी विश्वनाथ जी विराजे हैं।
अयोध्या इसलिए पवित्र है कि वहां पर आकर सरयु नदी ईशान कोण में 21 डिग्री से बहने लगती है। वैसी ही स्थिति मदकूद्वीप की है। यहाँ आकर शिवनाथ नदी भी ईशान कोण में बहती है। इसलिए पुरातन काल से ही धार्मिक स्थल होने के कारण यहां पूजा पाठ एवं विशाल यज्ञ होते थे।
हिन्दु धर्म में ऐसे ही स्थान पर मन्दिरो, बड़े नगरों एवं राजधानियों की स्थापना की जाती है। उदाहरणार्थ जैसे सिरपुर दक्षिण कोसल की राजधानी थी, 2600 वर्ष पूर्व भारत का सबसे बड़ा वाणिज्यिक क्षेत्र था।
यहां पर आकर महानदी साढे 6 किलोमीटर तक ईशान कोण में बहती है। बनारस इसलिए प्रवित्र है कि वहाँ पर आकर गंगा नदी ईशान कोण में बहने लगती है और यहाँ काशी विश्वनाथ जी विराजे हैं।
अयोध्या इसलिए पवित्र है कि वहां पर आकर सरयु नदी ईशान कोण में 21 डिग्री से बहने लगती है। वैसी ही स्थिति मदकूद्वीप की है। यहाँ आकर शिवनाथ नदी भी ईशान कोण में बहती है। इसलिए पुरातन काल से ही धार्मिक स्थल होने के कारण यहां पूजा पाठ एवं विशाल यज्ञ होते थे।
उत्खनन में प्राप्त मंदिरों की श्रृंखला एवं स्मार्त लिंग |
सौभाग्य से हमें सतह के नीचे ही 11 वीं शताब्दी के रतनपुर के कलचुरी राजाओं द्वारा निर्माण किए गए मंदिरों की पूरी श्रृंखला मिल गयी।
भारत में पहली बार 23 मंदिर दक्षिण से उत्तर की तरफ़ एक ही पंक्ति में बने हुए मिले हैं। सबसे बड़ी बात है कि यहां द्वादश ज्योर्तिलिंग की प्रतिकृति भी मिली हैं।
गुप्तकाल में मतलब 3-4 शताब्दी में भारत में हिन्दुओं के 5 सम्प्रदायों मे वैमनस्य हो गया तो उन पांच सम्प्रदायों के झगड़े को शांत करने के लिए आदि शंकराचार्य ने पंचायतन मंदिर की प्रथा प्रारंभ की।
उन्होने पांचो सम्प्रदायों के उपासक देवताओं के पाँच लिंगो को एक ही प्लेट्फ़ार्म पर स्थापित किया। जिसे स्मार्त लिंग कहते हैं। जिससे पांचों सम्प्रदाय के लोग एक ही स्थान पर आकर पूजा कर लें। भारत में मद्कुद्वीप ही एक मात्र ऐसा स्थान है जहाँ 13 स्मार्त लिंग मिले हैं।
भारत में पहली बार 23 मंदिर दक्षिण से उत्तर की तरफ़ एक ही पंक्ति में बने हुए मिले हैं। सबसे बड़ी बात है कि यहां द्वादश ज्योर्तिलिंग की प्रतिकृति भी मिली हैं।
गुप्तकाल में मतलब 3-4 शताब्दी में भारत में हिन्दुओं के 5 सम्प्रदायों मे वैमनस्य हो गया तो उन पांच सम्प्रदायों के झगड़े को शांत करने के लिए आदि शंकराचार्य ने पंचायतन मंदिर की प्रथा प्रारंभ की।
उन्होने पांचो सम्प्रदायों के उपासक देवताओं के पाँच लिंगो को एक ही प्लेट्फ़ार्म पर स्थापित किया। जिसे स्मार्त लिंग कहते हैं। जिससे पांचों सम्प्रदाय के लोग एक ही स्थान पर आकर पूजा कर लें। भारत में मद्कुद्वीप ही एक मात्र ऐसा स्थान है जहाँ 13 स्मार्त लिंग मिले हैं।
युगल मंदिर का योनी पीठ शिवलिंग |
इनके साथ ही यहाँ दो युगल मंदिर भी मिले हैं। पहला मंदिर स्थानीय नागरिकों को मिला था जिसे बना दिया गया और दुसरा मंदिर अभी की खुदाई में मिला है।
एक ही प्लेटफ़ार्म पर जब दो मंदिर होते हैं उन्हे युगल मंदिर कहते हैं। ये दोनो मंदिर शिव जी हैं योनी पीठ वाले। इस स्थान का महत्व इसलिए है कि एक छोटे से द्वीप में एक ही स्थान पर द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं 13 स्मार्त लिंग मिले हैं जो एक ही पंक्ति में स्थापित हैं।
यहाँ गणेश जी, लक्ष्मीनारायण, राजपुरुषों एवं एक उमामहेश्वर की मूर्ति भी मिली हैं। जिन-जिन राजाओं ने यहां मंदिर बनवाए उन्होने अपनी-अपनी मूर्ति भी यहाँ लगा दी है। ये मूर्तियाँ लाल बलुवा पत्थर की बनी हैं जो शिवनाथ नदी में ही मिलते हैं।
इन पत्थरों पर सुन्दर बेल बूटे एवं मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गयी है। यह सम्पुर्ण संरचना जमीन से मात्र डेढ मीटर गहराई पर ही प्राप्त हो गयी। जारी है..............
एक ही प्लेटफ़ार्म पर जब दो मंदिर होते हैं उन्हे युगल मंदिर कहते हैं। ये दोनो मंदिर शिव जी हैं योनी पीठ वाले। इस स्थान का महत्व इसलिए है कि एक छोटे से द्वीप में एक ही स्थान पर द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं 13 स्मार्त लिंग मिले हैं जो एक ही पंक्ति में स्थापित हैं।
यहाँ गणेश जी, लक्ष्मीनारायण, राजपुरुषों एवं एक उमामहेश्वर की मूर्ति भी मिली हैं। जिन-जिन राजाओं ने यहां मंदिर बनवाए उन्होने अपनी-अपनी मूर्ति भी यहाँ लगा दी है। ये मूर्तियाँ लाल बलुवा पत्थर की बनी हैं जो शिवनाथ नदी में ही मिलते हैं।
इन पत्थरों पर सुन्दर बेल बूटे एवं मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गयी है। यह सम्पुर्ण संरचना जमीन से मात्र डेढ मीटर गहराई पर ही प्राप्त हो गयी। जारी है..............
मदकूद्वीप के बार में विस्तार से इतनी बढ़िया जानकारी देने का आभार. आनन्द आ गया. जारी रहें..
जवाब देंहटाएंबढिया जानकारी,विस्तार देने के लिये आभार,
जवाब देंहटाएंआपकी शैली के साथ मदकू पढ़-देख कर आनंद आया. मदकू से (श्री अरुण शर्मा और श्री प्रभात के माध्यम से) हमें गर्व करने का फिर अवसर मिल रहा है.
जवाब देंहटाएंkyaa baat hai lalit bhaai khudaa aapko slaamt rakhe ghaat ghat ka paani pi kar hi pichha sbhi ghaaton ka chhdoge ...akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंकितनी अमूल्य धरोहर मिली है हमें..
जवाब देंहटाएंमदकुद्वीप जैसे एतिहासिक स्थल के विषय में सुंदर जानकारी..... धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंऐतिहासिक स्थल के बारे में जानकारी अच्छी लगी ..आभार
जवाब देंहटाएंहम जैसे दूर दराज रहने वालों के लिए यह जानकारी बहुत ही रोचक व सामयिक है. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंगजब है मदकू द्वीप की महिमा . बेहतर प्रस्तुतीकरण . अपने ससुराल होने का जिक्र आपने नहीं किया .
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह इतना बढ़िया प्रस्तुतीकरण पढ़कर आनन्द आ गया
जवाब देंहटाएंवाह भईया, सुन्दर, ज्ञानवर्धक और रोचक वर्णन किया है आपने.....
जवाब देंहटाएंयह रपटा कभी कभी बहुत खतरनाक हो जाता है।
जवाब देंहटाएंललित भाई,
जवाब देंहटाएंएक दिन सब ब्लॉगरों की मंज़िल भी कोई मैड क्यों द्वीप ही होनी है...आपने दूरदृष्टिता का परिचय देते हुए ब्लॉगर समाज के कल्याण के लिए अभी से ऐसे द्वीप की तलाश शुरू कर दी है, इसलिए आप को साधुवाद...निश्चित रूप से इतिहास में आपका नाम ब्लॉगिंग के कोलम्बस या वास्को-डि-गामा के रूप में दर्ज़ होगा...
जय हिंद...
मदकूद्वीप के बारे में विस्तार से पहली बार जाना ज्ञानवर्धक और रोचक ।
जवाब देंहटाएं//प्रणाम//
इतनी सुन्दर जगह को तो देखने का मन कर आया। बहुत ही अच्छा वर्णन और बहुत ही अच्छी चित्र। आभार।
जवाब देंहटाएंभाई जी आपकी नज़र से ...हमने भी
जवाब देंहटाएंमदकूद्वीप के बार में विस्तार से जान लिया ....शुक्रिया ..
वाह ..
जवाब देंहटाएंचित्रों को देखकर मन खुश हो गया ..
इस पोस्ट से अच्छी जानकारी भी मिली !!
नयी जानकारी मिली ... बहुत बढ़िया रिपोर्ट ... आपकी यायावरी से बहुत लाभ मिल रहा है ..
जवाब देंहटाएंधर्म इतिहास और पुरातात्विक संपदा से परिचित करवाने हेतू धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और ज्ञानवर्धक जानकारी…………साथ मे चित्रमय प्रस्तुति…………लगा साथ मे यात्रा कर ली………आभार्।
जवाब देंहटाएंयहाँ दिल्ली में बैठे बैठे बहुत सुन्दर जानकारी प्राप्त हो गयी आप के इस लेख के माध्यम से...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आप का
इतिहास मेरा पसंदीदा विषय रहा है.अत:आप समझ सकते हैं यह पोस्ट कितनी अच्छी लगी होगी मुझे.
जवाब देंहटाएंआभार.
उत्खनन में निकले श्रृंखलाबद्ध मंदिरों के चित्र मनोरम है ..
जवाब देंहटाएंरोचक ..!
ऐसी नायाब जगहों पर जाना शायद ही हो सके। पर आपकी विस्तृत जानकारियों से बहुत बार ज्ञानार्जन का लाभ मिला है।
जवाब देंहटाएंआभार।
is baar bahut hi acchi jankari mili chitron sahit ...is vishay par kisi se ab tak itni jamkari nahi mili thi................
जवाब देंहटाएंhttp://drsatyajitsahu.blogspot.com/
मदकू द्वीप की अध्ययन यात्रा और उस पर आधारित इस ज्ञानवर्धक आलेख के लिए बधाई . छत्तीसगढ़ के स्वर्णिम इतिहास को ब्लॉग जगत के ज़रिये देश और दुनिया के सामने प्रस्तुत करने की आपकी यह पहल सराहनीय और स्वागत योग्य है.
जवाब देंहटाएंकण्टेण्ट और प्रस्तुतिकरण के हिसाब से अत्यंत उत्कृष्ट पोस्ट ललित शर्मा जी! आपके विषय में पहले नहीं जानता था, अत: यह लगता है कि जितनी उत्कृष्टता की कल्पना मैं हिन्दी ब्लॉगजगत में करता था, उससे कहीं अधिक है।
जवाब देंहटाएंमैं यह सोचता हूं कि काश मेरे पास आप जैसी ऊर्जा और लेखनी होती तो मैं स्थान देख और वर्णन कर पाता!
मदकू द्वीप में इतिहास इतना समृद्ध है पता नहीं था। आपके ब्लाग के बारे में पहले से ही जानता था लेकिन तहलका पढ़कर लगा कि अपने आसपास ही राहुल सांकृत्ययान मौजूद हैं हमें पता ही नहीं था।
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