शनिवार, 26 नवंबर 2011

तेरे बाप का राज है क्या? -- ललित शर्मा

आराम के मोड में
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टो वाले भी मुफ़्त का फ़ायदा उठाना चाहते थे। मेरे साथ हृदयलाल गिलहरे, पंकज नामदेव, चौरसिया जी, बीएस ठाकुर गुरुजी और उनके साथ 3 महिलाएं थी। ॠषिकेश जाने के 1500 रुपए देना मुझे बहुत अखर रहा था। लेकिन साथियों की जिद के आगे झुकना पड़ा। ॠषिकेश पहुंच कर ऑटोवाले ने युनियन में मुझसे 1500 रुपए जमा कराने को कहा और जब पर्ची काटने के 10रुपए और मांगे तो खोपड़ी घुम गयी। मैने जोर से गरिया दिया उसे। तो ड्राईवर ने पर्ची के 10रुपए अपनी जेब से दिए। पर्ची लेकर उसने हमें लक्ष्मण झूला मार्ग पर छोड़ दिया और 6 बजे बस स्टैंड पर मिलने कहा। हरिद्वार और ॠषिकेश में 500 का नोट तुड़वाना भी एक समस्या ही है। कोई भी छुट्टे देने को तैयार नहीं। हम सबके पास बड़े नोट ही थे। एक जगह पानी की दो बोतल लेने के बाद भी छुट्टे नहीं मिले। हम पानी की बोतल ले रहे थे तभी एक गाईड आ गया। बोला की 40 रुपए लूंगा और सारी जगह दिखाऊंगा। हमने उसे साथ रख लिया।

पंकज, चौरसिया जी, गुरुजी, बी एस ठाकुर
।वह सबसे पहले एक मंदिर में ले गया। कोई नया मंदिर ही था, उसके विषय में बताने लगा। फ़िर एक जेम्स की दुकान में ले जाकर घुसा दिया। दुकान का नाम Uttrakhand Handicraft Gems Centre था और साईन बोर्ड से लग रहा था कि उत्तराखंड सरकार के हैंडीक्राफ़्ट विभाग का शो रुम है। लेकिन हकीकत में ऐसा था नहीं। उसने लिख रखा था Directorate fo industries Govt. of Uttrakhanad) मैने उससे कई बार कहा कि - आप तो ऐसा लिख रहे हैं जैसे यह उत्तराखंड सरकार का ही शो रुम हैं। तो उसने अपना नाम आर सी चतुर्वेदी बताया और इस शो रुम को उत्तराखंड सरकार का ही बताया। मैने उसका विजिटिंग कार्ड ले लिया। वह हमें पत्थर दिखाने लगा। स्फ़टिक के कई सैम्पल दिखाए। तब तक मैने उसकी दुकान में मोबाईल चार्ज किया। थोड़ा बहुत चार्ज हो जाए तो बात हो जाए लोगों से। 15मिनट तक हम उसका सामान देखते रहे। फ़िर आगे बढ लिए।

लक्ष्मण झूला
ठाकुर गुरुजी को आगे चलने की आदत है। वे सपाटे से चलते हैं, पीछे मुड़ कर भी नहीं देखते। उनकी बहन पत्नी और सास पीछे छूट गयी। मुझे बार बार कह रही थी कि वे दिख नहीं रहे हैं। मैने उन्हे कहा कि लक्ष्मण झूले के पास मिल जाएगें। आप चिंता न करें। जब हम लक्ष्मण झूले के पास पहुंचे तो वे वहीं खड़े मिले। मेले मे लोग इसी तरह छूटा करते थे। लक्ष्मण झूला पर हमने फ़ोटो खींचे। फ़ोन चालु होते ही सबसे पहले संगीता पुरी जी का फ़ोन आया। उन्होने हाल चाल पता किया, फ़िर संध्या शर्मा जी का मैसेज मिला। अभनपुर एवं रायपुर से मित्रों के फ़ोन आने शुरु हो गए। 10 मिनट तक चलने के बाद फ़ोन फ़िर बंद हो गया। मतलब जै राम जी, अब किसी से समपर्क नहीं हो सकेगा। लक्ष्मण झूले से मछलियों को आटे की गोलियाँ खिलाई। पुल पर दर्शनार्थियों की बहुत भीड़ थी।

सड़कों पर बसंत उतर आया
हमने शाम को डूबते हुए सूरज और उगते हुए चाँद के चित्र लिए। बाजार से चलते हुए चोटी वाले के होटल में पहुंचे। ये चोटीवाले होटल ॠषिकेश की पहचान बन गए हैं। होटल के सामने घंटी लेकर बैठे हुए ये चोटी वाले ग्राहकों को आकर्षित करते हैं। मार्केटिंग का यह फ़ंडा अच्छा है। ऊंची कुर्सी पर बैठे ये चोटी वाले होटल के सामने भीड़ भी नहीं लगने देते। यहाँ से हम दुसरे झूले याने राम झूला पर पहुंचते हैं। पिछली बार जब आया था मैने यहां एक दुकान से एक किलो आटा लेकर गोलियाँ बनाकर मछलियों को खिलाई थी। बड़ी बड़ी मछलियाँ आकर आटे की गोलियाँ खाती हैं। मछलियों को आटे की गोली खिलाने से उग्र ग्रह शांत होते हैं। ऐसा कहा जाता है, कई ज्योतिषि यह टोटका करने कहते हैं। ग्रह शांत हो न हो पर मन की शांति तो हो जाती है। 

राम झूला पर चढने से पहले वहां पर चबुतरे बने हैं। पैदल चल कर थक लिए थे इसलिए वहीं बैठकर विश्राम करने लगे। मै चबुतरे पर बैठा तो पंकज फ़ोटो लेने लगा। मैने बगल में मुड़ कर देखा तो एक जाना पहचाना चेहरा सामने आ गया। ये थे पेंड्रारोड़ के रामनिवास तिवारी जी, अपनी डुकरिया के साथ तीरथ करने आए थे। मैने उन्हे देखा और उन्होने मुझे देखा। बोले शर्मा जी, हमने कहा- हाँ तिवारी जी, कैसे हैं? गजब मुलाकात हुई भाई। फ़िर क्या था तिवारी सुनाने लगे, वे किसान कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। पेंड्रारोड़ का बच्चा बच्चा उन्हे जानता है। पिछले इलेक्शन में हम भी उनके यहाँ के पहुंचे थे। पान चबाते हुए गले में चुंदड़ी स्टाईल का पटका डाले मिले। गजब कहानी है भाई। धन्य हो गए तिवारी जी से मिल कर। जब मै फ़ोटो लेने लगा तो पता चला कि वे पंकज के पापा के भी परिचित निकले।

पंकज सिह 
रामझूला पर चढे तो वह हिल रहा था, गुजरात की कुछ महिलाएं डरते हुए उस पर चल रही हैं। नदी पर केबल के सहारे बना हुआ यह पुल कारीगरी की अद्भुत मिशाल है। मोटर सायकिल और स्कूटर वाले भी इसी पुल से जा रहे थे और पुल लगातार हिल रहा था। डर भी लगता है कि कहीं गिर न जाए। लेकिन जब इतने बरसों से नहीं गिरा तो हमारे चलने से क्या गिरेगा। हमारे आगे गिलहरे गुरुजी और चौरसिया जी थे। हम पीछे पीछे चल रहे थे फ़ोटो लेते हुए। पुल पार करके हम धीरे धीरे बाजार की तरफ़ हो लिए, आगे बस अड्डा था। वहीं पर हमें ऑटो वाला मिल गया। बलदाऊ गुरुजी भी वहीं इंतजार करते मिले परिवार के साथ। लेकिन गिलहरे गुरुजी और चौरसिया जी नहीं आए थे। ऑटो वाला जल्दी चलने के लिए हाय तौबा मचाने लगा। मैं इन्हे ढूंढ रहा था। मोबाईल की बैटरी खत्म थी इसलिए इन्हे ढूंढने में समस्या हो रही थी। पैदल चलने की इच्छा न होने पर भी इन्हे ढूंढा। कहीं नहीं मिले, जमीन खा गयी कि आसमां निगल गया।

प्यास बुझाएं - मेरी फ़ोटोग्राफ़ी
ऑटो वाला कह रहा था कि गुरु जी नहीं मिले तो उन्हे छोड़ कर चले जाएगें। अरे कैसे छोड़ कर चले जाएगें, तेरे बाप का राज है क्या? तुझे अधिक जल्दी है तो जाकर ढूंढ कर ला। अभी 6 नहीं बजे हैं और हमारे पास 6 बजे तक का समय है। हम उन्हे ढूंढते-ढूंढते थक हार कर बैठ गए। जब वे आएगें तभी चलेगें। मैं समझ तो गया था कि वे गलत रास्ते चले गए पुल से। दांए मुड़ने की बजाए बांए चले गए, जैसे नीरज जाट एवं जाट देवता में दांए बांए का लफ़ड़ा हो जाता है वैसा ही इनके बीच भी हुआ होगा। आखिर में हमने तय किया कि 10 मिनट में ये लोग नहीं आते हैं तो इन्हे छोड़कर ही चले जाएगें। ऐसा विचार बनाते ही ये दोनो सामने नजर आए और वही हुआ कि ये पुल से बांए तरफ़ चल गए थे। इसलिए रास्ता भूल गए थे। लेकिन वह जगह भूलने वाली नहीं है। ऑटो वाले ने युनियन में आकर पर्ची देकर 1500 रुपए लिए और अपनी जेब में रख लिए। मैने सोचा कि चलो हरिद्वार जाकर देने हैं उसने पैसे अभी रख लिए तो कोई बात नहीं।

पानी वाले बाबा- आधा सच
अब हरिद्वार हम मेन रोड़ से जा रहे थे। राजाजी पार्क वाला रास्ता रात में बंद कर दिया जाता है। जंगली जानवरों के हमला होने और बियाबान में लूटपाट का खतरा है। रास्ते में श्यामपुर की पुलिस चौकी के पास दो तीन लड़के मिले, उन्होने ऑटो वाले को रोक लिया और उनमें आपस में कुछ बातें होने लगी। मेरा ध्यान उनके तरफ़ ही था पता चला कि ऑटो ड्रायवर का नहीं था और वह किसी से किराए पर चलाने के लिए लाया था। जिसकी मियाद 6 बजे तक थी। अब ऑटो मालिक अपना ऑटो वापस मांग रहा था और कह रहा था कि सवारी जाए भाड़ में, मुझे अभी ऑटो चाहिए। तुम जानो और सवारी जाने। ऑटो ड्रायवर ने हमें पहुंचाने के लिए दुसरे ऑटो वाले से बात की। वह 400 मांग रहा था हमें छोड़ के आने के। यह 400 देने को तैयार नहीं था। इस तरह उसने सड़क पर ही 20 मिनट लगा दिए। मुझसे कहने लगा कि हरिद्वार रोड़ पुलिस ने बंद कर रखा है आपको किसी और साधन से जाना पड़ेगा। मैं आगे नहीं ले सकता। गाड़ी ही नहीं जा रही है।

विचार क्रांति अभियान की मशाल
आधे रास्ते में गाड़ी रोक कर साले तमाशा करने लगे। बस फ़िर अपन ने अपना फ़ार्मुला नम्बर 45 इस्तेमाल किया। उस ऑटो मालिक को कोने में ले जाकर मंत्र दिया। उस पर मंत्र का असर बिच्छु के डंक मारने जैसा हुआ। जो अभी तक ऑटो मांग रहा था वह उस ड्रायवर से बोला- साले सवारी देख कर बैठाए करो, खुद भी मरोगे और हमें भी मरवाओगे। चलो अब जैसे भी होगा इन्हे गौरीशंकर 1 तक पहुंचा कर आना है। अब इन्होने यहीं से हिसाब लगाना शुरु कर दिया कि रास्ता बंद होने पर किधर से गौरीशंकर तक पहुंचा जाएगा। पहले हमें हर की पौड़ी तक छोड़ने की बातें करने लगे। वहां से हरिशंकर लगभग 5 किलो मीटर है। मैने कहा कि - एक बार तो तुम्हे समझा दिया, फ़िर मत कहना कि जादू नहीं दिखाया। जब जादू देख लोगे तो भालू के बालों वाला ताबीज भी लेना पड़ेगा। जब ताबीज ले लिया तो गले में डालना पड़ेगा। बहुत दुखदायी होगा तुम्हारे लिए।

हरिद्वार में गंगा जी का पुल - मुसीबत की जड़
इधर उधर से घुमाते हुए वे हमें पुल के नीचे ले आए जहाँ से हमें बैठाया था। मैने कहा कि पर्ची में गौरीशंकर लिखा है देख ले। हमें वहाँ तक छोड़ना पड़ेगा। वह अड़ गया कि गौरीशंकर तक नहीं जाऊंगा। मैने कहा कि बहुत देर से तुझे बरज रहा था। अब तेरे क्रियाकर्म का समय आ गया है। जब नहीं ही मानेगा तो फ़ार्मुला नम्बर 36 लगाना पड़ेगा और फ़िर तू दो चार दिन किसी काबिल नहीं रहेगा। सोच ले अब, वैसे भी बिना गौरी शंकर जाए हम ऑटो से नहीं उतरने वाले। साले तुझे हराम का माल चाहिए, मुफ़्त में 1500 सौ रुपए नहीं दिए हैं। जात भी देगा और जगात भी देगा। फ़िर वह हमें गौरीशंकर 1 तक छोड़ने के लिए चल पड़ा। ठंड बढ चुकी थी, लाउडस्पीकर पर प्रसारण हो रहा था कि- शांतिकूंज हरिद्वार द्वारा बाकी कार्यक्रम स्थगित कर दिए गए हैं, कल सिर्फ़ पूर्णाहूति होगी, जो परिजन अपने वाहनों से आए हैं वे वापस चले जाएं। ट्रेन आदि से आए हुए परिजन अपने टेंटों में रहे। भोजन की व्यवस्था यथावत चलती रहेगी तथा स्नान करने के लिए गंगा के किनारे न जाएं। जिससे भीड़ बढ जाए, खास कर हर की पौड़ी की तरफ़ जाने की मनाही है। भोजन करने के पश्चात योग निद्रा में पहुंच गए। जारी है --
(फ़ोटो - पंकज सिंह के सौजन्य से)

33 टिप्‍पणियां:

  1. ललित भाई सही कह रहे हो दाएँ बाएँ का चक्कर अन्जानी जगह बहुत समय खराब कर देता है, और जैसी परेशानी से आप लोग भुगते हो इसी वजह से मैं ज्यादातर अपनी बाइक से जाना पसन्द करता हूँ। आगे का इन्तजार .........

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  2. इस लेख के माध्यम से आपने हरिद्वार की भी सैर करा दी |
    आशा

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  3. घर बैठे रहने पर जो संभव नहीं, तीर्थयात्रा में फार्मूलों का रियाज होता रहता है.

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  4. पर्यटन का आनन्द कम करने में इन लुटेरों का महत योगदान है।

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  5. दांए मुड़ने की बजाए बांए चले गए, जैसे नीरज जाट एवं जाट देवता में दांए बांए का लफ़ड़ा हो जाता है वैसा ही इनके बीच भी हुआ होगा।

    मतलब यह जाट याद रहे आपको ....और ऑटो वाले के लिए गुर्राना .....बहुत सी बातें हैं जो ध्यान में आ रही हैं ....जिन्हें यात्रा करते वक़्त ध्यान में रखा जाना चाहिए ......!

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  6. सर! बहुत अच्छा लगा पढ़कर!

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    कल 27/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  7. teerth yatra ke sath nibhayee gayee duniadari adbhut hai...aage ka intajar hai..

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  8. तीर्थ यात्रा हो गयी ....
    आभार आपका !

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  9. जय गंगा मईया की....
    बहुत बढ़िया... चलन दे... चलन दे....
    सादर...

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  10. महाराज वो फ़ार्मुला नम्बर 45 औ फ़ार्मुला नम्बर 36 का ऐ जरा विस्तार से बताव.

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  11. Whoa, thanks for writing about it. The subject seems intriguing. Will make a note of your web-site and pop back again. Seems like an awesome source. Take care.

    From everything is canvas

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  12. भव्य यात्रा प्रसंग चल रहा हैं ....नमन ! तीर्थयात्रा में लूटना एक आम बात हैं ... हम भी जल्दी के चक्कर में लुट जाया करते हैं !

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  13. घूमिये साहेब... दुनिया रंग बिरंगी है.

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  14. बहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।

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  15. aapke sath-sath hamari bhi teerthyatra ho gayi...sare photo bahut hi sundar hain...

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  16. मुझे तो लगता है कि इस 'स्कूटर' नाम के वाहन मे ही कुछ गडबड है। यदि ऐसा नहीं है तो देश भर में इसे चलाने वाले लातों के भूत कैसे बन जाते हैं?

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  17. ललित जी बहुत सुंदर यात्रा व्रतांत खूब मज़ा आया पढ़ कर

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  18. बहुत ही रोचक यात्रा सस्मरण....हरिद्वार , ऋषिकेश , पौड़ी , स्थानों का रोचक वर्णन...साथ ही यात्रियों के साथ आई दिक्कतों से भी रूबरू करा दिया आपने....बहुत खूब...

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  19. अभी ले तीरथ यात्रा करे लगेस भाई , वैसे बने हे इहु हा एक ठन बूता ये , तीरथ यात्रा केर बधाई

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  20. यह फ़ॉर्मूला नंबर ४५ और ३६ हमें भी सिखा दीजिये गुरूजी

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  21. लो जी आपने तो एक बार फिर से हरिद्वार घुमा दिया हमको .....आभार है आपका

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  22. हलचल से आपके ब्लॉग पर आया हूँ.
    बहुत रोचक और सुंदर प्रस्तुति.।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।

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  23. बहुत दिन से गये नहीं हैं हरिद्वार...आपके माध्यम से घूम लिए.

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  24. मंत्र भी तो लिखने थे पोस्ट में ,दूसरों का भी भला हो जाता ...
    रोचक वृतांत!

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  25. रोचक. रौबदार मूंछ का बड़ा फायदा है, सभी फोर्मुले फिट हो जाते हैं.

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  26. शाम मैने आपकी टिकट कन्‍फर्म होने की जानकारी आपको दी..

    दूसरे ही दिन टी वी पर हरिद्वार की खबर पढकर तनाव होना स्‍वाभाविक था ..

    धार्मिक स्‍थलों पर बहुत लूट है .. सरकार को इसपर ध्‍यान देना चाहिए ।।

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  27. हमारे लिए प्रसाद नहीं लाए ललित भाई

    या प्रसाद में है यह पोस्‍ट है जी लगाई

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  28. paay lagi.... 36, 45 ke formula la alag le samjhaabe mahraaj... jayraam ji ki...barnan aise hoye he ke laagthe hamoo oohen ch rehen bane he...lage raho...

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