हम यादव के साथ मड़वारानी पहुंचे, यह रेल्वे का पैसेजंर हाल्ट भी है। यहाँ मड़वारानी माता का मंदिर है। दर्शनार्थियों की कतार लगी रहती है। यहाँ से छ: किलोमीटर पूर्व में पटियापाली गाँव हैं, जहाँ के आदिमजाति कल्याण विभाग के माध्यमिक स्कूल में बाबु साहब मुख्याध्यापक हैं। हम स्कूल पहुंचते है, विद्यार्थियों की वार्षिक परिक्षाएं चल रही हैं। सुबह 8 बजे से पेपर शुरु होने हैं और हम समय पर स्कूल पहुंच जाते है। स्कूल के सामने नल है, जहां कुछ स्त्रियां पानी भर रही हैं। स्कूल का स्टाफ़ चहल कदमी कर रहा है। मुझे अपरिचित निगाहों से देखते हैं कि कौन आ गया निरीक्षण परीक्षण करने। बच्चे भी कौतुक भरी निगाहों से देखते हैं कि ये कौन मुंछ वाला नया गुरुजी आ गया पढाने के लिए। तभी एक टीचर का मोबाईल बजता है और वह हाँ और हाँ के अलावा कुछ नहीं कहता। शायद उनके लिए उपर से कोई निर्देश आया है।
फ़िर वह मेरी ओर मुखातिब होकर कहते है - सर आप आफ़िस में बैठिए यहाँ क्यों खड़े हैं? मुझे एक कुर्सी यहीं मंगवा दीजिए… मैं आम की छाया में बैठना चाहता हूँ। कुर्सी आ जाती है और मैं आम की छाया में अपना डेरा लगा लेता हूँ। स्कूल का स्टाफ़ और विद्यार्थी अपने काम में लग जाते हैं। मै भी बैग से प्यारेलाल गुप्त जी का कविता संग्रह निकाल कर पढने लगता हूँ। आम के पेड़ से लाल मकोड़े मेरे उपर टपकने लगते हैं। लेकिन मेहमान समझ कर काटते नहीं। अगर कोई काट लेता तो ता ता थैइया के अलावा कुछ नहीं था करने को। स्कूल के कैम्पस में कुछ निर्माण हो रहा है। एक खाया-पीया इंजीनियर पहुंचता है निरीक्षण करने के लिए। आते ही बाबू साहब का पता लेता है। उसे कुछ जानकारी चाहिए, स्कूल फ़ंड से संबंधित। तो उसे बाबू साहब का इंतजार करना पड़ता है।
यादव एक कप चाय बनाकर ले आता है कम शक्कर की। मुझे देकर चला जाता है तो इंजीनियर आवाज लगाकर कहता है - क्या मुझे चाय नहीं पिलाओगे? वह सुनता नहीं है। तब तक बाबू साहब पहुंच जाते हैं हीरो होण्डा पर सवार होकर। उनकी इंजीनियर से गुफ़्तगुं होती है और मै कविताओं के साथ चाय का आनंद लेता हूँ। बाबू साहब ऑफ़िस में चलकर बैठने का आग्रह करते हैं। अब जाना ही पड़ेगा उनके साथ, क्योंकि धूप थोड़ी बढने लगी है। पटियापाली आदिवासी बाहुल्य गाँव है। तभी बाबू साहब अपनी शिष्याओं को बुलाकर मेरा परिचय करवाते हैं और मेरा उनसे। विद्यार्थी बाबू साहेब से बहुत स्नेह करते हैं और आदर भी। विद्यार्थी उनसे बहुत हिले-मिले हैं। समय-समय पर बाबू साहब अपनी वेतन से भी इनकी सहायता करते हैं, लेकिन विद्यार्थियों की शिक्षा में कोई बाधा नहीं आने देते। इनके भीतर एक जज्बा है जो इन्हे हमेशा सक्रीय रखता है।
बाबू साहब कहते हैं कि - प्रधानाध्यापक का पद ग्रहण करने के बाद कई समस्याएं थी, लेकिन उन्होने सबको सीधे समझा दिया कि - सब बने-बने रहव, नहीं त बिहिनिया धनिया बोहूँ त संझा तक ले फ़र घलो जाही।:) ( सब ठीक से रहों नहीं तो सुबह धनिया बोऊंगा तो शाम तक फ़ल भी लग जाएगा।) कहने का तात्पर्य है कि किसी भी कार्य का परिणाम तुरंत मिलेगा, देर नहीं होगी। बाबू साहब ने स्कूल में वृक्ष एवं फ़ूलों के पौधे लगाए हैं जिससे स्कूल प्रांगण की सुंदरता बढ गयी है। पढाई अच्छी होने के कारण विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम भी उल्लेखनीय हैं। बाबू साहब बताते हैं कि उन्होने स्कूल में 70 वृक्ष लगाए थे। एक छात्र उनसे बार-बार उत्तीर्ण करने को कहता था। उन्होने उसके कहने पर नहीं किया तो उस छात्र ने गुस्से में आकर कुछ पेड़ काट डाले। इसलिए पेड़ कम हो गए।
स्कूल में नेट कनेक्ट करने की कोशिश करते हैं पर सफ़लता आंशिक ही मिलती है। फ़ोटो अपलोड नहीं होते, थक हार कर उसे छोड़ देता हूँ। तब तक परीक्षा समाप्त हो जाती है और इधर दोपहर का खाना भी बन जाता है। थम्सअप के साथ खाने का आनंद आ जाता है जब यह जंगल में उपलब्ध हो जाए। भोजन करने के बाद स्कूल के स्टाफ़ का एक चित्र लेकर विदा होते हैं और चल पड़ते हैं पुन: अपने रास्ते पर। बाबू साहब को चांपा में आभा सिंह को ट्रेन में बैठाना है। मै उनसे वहीं मिलता हूँ। वे मुझे कहते हैं कि जांजगीर से उनका सीपीयू भी लेकर चलना है। हम जांजगीर की कम्पयूटर दुकान से सीपीयू लेते हैं और दो-दो बर्फ़ की चुस्की लेकर अकलतरा की ओर बढ जाते हैं। धूप बहुत बढ गयी है। बाबू साहब अंगोछा बांध लेते हैं पर मुझे आदत नही है, टोपी या अंगोछा बांध कर चलने की। अपन ऐसे ही ठीक हैं। रास्ते में गर्मी का प्रताप इतना बढता है कि बहुत जोर से प्यास लगती है और एक बार में एक लीटर पानी पीया जाता है। राम राम करते हुए घर पहुंचते हैं।
अकलतरा घर पहुंचते हैं तो उनके बड़े भैया शशांक सिंह जी से मुलाकात होती है। भोजन करने बाद मुझे नींद आ जाती है। कूलर की ठंडी हवा में एक नींद लेता हूँ क्योंकि मेरी रायपुर वापसी के लिए गाड़ी शाम 4 बजे हैं। बाबू साहब का नाती (युवराज सिंह) अच्छे चित्र बनाता है। मुझे रात को उसने अपने बनाए हुए चित्र दिखाए थे। उनकी तश्वीर भी ली थी मैने। गाड़ी के समय पर नींद खुलती है और मैं माता जी, बहनों से विदा लेता हूँ। वे फ़िर आने के लिए कहते हैं स्नेह से। साथ में ठेठरी-खुरमी और बड़ी का छत्तीसगढी व्यंजन बांध देते हैं घर ले जाने के लिए। बाबू साहब और उनका पोता मुझे स्टेशन ट्रेन में बैठाने आते हैं। साउथ विहार एक्सप्रेस आती है और मैं उसमें सवार हो जाता हूँ। बैठे-बैठे सोचता हूँ कि कोई व्यक्ति इतना आत्मीय कैसे हो जाता है? शायद पिछले जन्मों का कोई रिश्ता है जो मुझे इस जन्म में उनके करीब ले जाता है। ट्रेन धड़धड़ाते हुए रायपुर की ओर बढ रही है………
@मुंछ वाला नया गुरुजी
जवाब देंहटाएं:)
वाह यायावरी के अनेक सुख , कुछ मन साधे कुछ नयन बांधे । ललित भाई , बहुत ही रुचिकर लगी यात्रा मानो आंखों के सामने सब कुछ चलचि्त्रमय हुआ घूम रहा हो । हम यूं तो नहीं कायल आपके । मुंछों वाले गुरूजी से मकोडवो डर गए लगता है । जय हो , चित्रों ने खूबसूरती और बढा दी है
जवाब देंहटाएंयायावरी जीवन के अपने आनद है.बडे सौभाग्यशाली लोगो को यायावरी अता होती है.
जवाब देंहटाएंसदा की तरह सदाबहार|
जवाब देंहटाएंबड़े ही रोचक अंदाज़ में अपनी छोटी सी यात्रा तो वर्णित किया है, अच्छी प्रस्तुति के लिए ||
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सूर्या
रोचक अंदाज में छोटी सी यात्रा जीवंत चित्रण,.......
जवाब देंहटाएंहमेशा तरह सुन्दर प्रस्तुति,.......
MY RECENT POST ,...काव्यान्जलि ...: आज मुझे गाने दो,...
मैं उसमें सवार हो जाता हूँ।
जवाब देंहटाएंबैठे-बैठे सोचता हूँ कि कोई व्यक्ति इतना आत्मीय कैसे हो जाता है? शायद पिछले जन्मों का कोई रिश्ता है जो मुझे इस जन्म में उनके करीब ले जाता है। ट्रेन धड़धड़ाते हुए रायपुर की ओर बढ रही है… bahut hi rochak warnan madwarani aur atmiyata ki... badhai..........
ये कुछ ऐसे स्थान हैं, जो ऐतिहासिक और दर्शनीय हैं, शायद हम वहां तक नहीं पहुँच पाते, लेकिन आपकी पोस्ट और चित्रों के माध्यम से हमें बहुत सारी जानकारी मिल जाती है. रोचक और जीवंत विवरण के लिए आभार
जवाब देंहटाएंहर यात्रा में कुछ न कुछ मिल जाता है, आपको भी और हम सबको भी।
जवाब देंहटाएंललित भाई,
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लाल मकोड़ों के साथ आपने ठीक नहीं किया...झूमने के साथ कुछ जोश-ओ-खरोश उनमें भी आ जाता...
जय हिंद...
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंइंडिया दर्पण की ओर से शुभकामनाएँ।
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - सेहत के दुश्मन चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्थ - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंहर बार एक नया स्थान ...रोचक जानकारी !
जवाब देंहटाएंआभार !
ललित भाई साहब किसी सामान्य आदमी को अ च्छा बनाए की कला कोई आपसे सीखे आपने पाठशाला आकर बच्चों और स्टाफ में नई ऊर्जा का संचार किया उसके लिए कोटिश धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंआपने विद्यालय को जो मान दिया मै जीवन भर ऋणी हूँ .आप अपने मित्रो संग आयें .आग्रह के साथ मिडिल स्कुल पठियापाली करतला कोरबा आपकी राह जोहता ...
सादर नमन के साथ पुरे विद्यालय का अभिवादन स्वीकारें .......
बहुत ही सुन्दर लिखा है, बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंमाँ है मंदिर मां तीर्थयात्रा है,
माँ प्रार्थना है, माँ भगवान है,
उसके बिना हम बिना माली के बगीचा हैं!
संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी
→ आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं..
आपका
सवाई सिंह{आगरा }
आह ये यायावरी ...कितना सुकून दे जाती होगी.
जवाब देंहटाएंकितना घूमते हो भाई :) रोचक वर्णन।
जवाब देंहटाएंबाबू साहब के नाती का बनाया चित्र अच्छा है। उसकी तस्वीर के साथ नाम भी होता तो....!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह रोचक वृतांत।
आप दोनों की उदारता है कि आत्मीय बनते देर नहीं लगती. आनंददायक यायावरी.
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंललितजी अच्छा रिपोर्ताज है।
जवाब देंहटाएंआम के नीचे चींटों ने आपको नही काटा यह आपके व्यक्तित्व का प्रभाव है।
आलेख अच्छा है।
कुछ क़यास पेश हैं।
अंग्रेजी में बोर्ड AKALTARA देखा तो मेरी अक्ल ने कुछ यूं काम किया यानी पहल नजर में मैंने इतने हिज्जे, उच्चारण किये....
अ-कल तारा - ऐसा तारा जो कल नहीं देखता या जो कल नहीं था।
अकाल तारा - अकाला का तारा यानी अकाल शक्तिश् अकाल में आत्मबल,
अक्ल तरा - अक्ल के नीचे, अक्ल की छांव में ,
अकलतरा - अक्ल के जूतों के पांव का तला,
rochak prastuti. aap se kaun atmiyata nahin rakhega.shubhakaamanayen
जवाब देंहटाएंLalit ji... Pahle fauji the ya kisi news paper mein reporter??? Achhi prastuti hai...
जवाब देंहटाएंthank you lalit baba ji.
जवाब देंहटाएंPLEASE DO COME AGAIN
YUVRAJ SINGH
रमाकांत सिंह जी से आपकी आत्मीयता हमें भी भली लगी !
जवाब देंहटाएंमेरे भी ब्लॉग को देखो
जवाब देंहटाएंhttp://aikajnabee.blogspot.in
रोचक यात्रा। युवराज सिंह तो सही कलाकार हैं।
जवाब देंहटाएं