बिजली विभाग का चीफ़ इंजीनियर |
अम्बिकापुर से 73 किलोमीटर शंकरगढ से आगे जाने पर डीपाडीह का सामत सरना टीला आता है। हमारी गाड़ी गेट पर रुकती है। राहुल और पंकज मुझसे पहले प्रवेश करते हैं और मै थोड़ी देर पश्चात रास्ते में लगी हुई मूर्तियों को देखते हुए आगे बढता हूँ। यहीं पर मेरी मुलाकात सामत सरना मंदिर समुह के चौकीदार जगदीश से होती है। हँसमुख व्यकित्व का धनी जगदीश मुझे मूर्तियों के विषय में जानकारी देता है। मैं कुछ चित्र लेता हूँ। मुख्य मंदिर के समक्ष राहुल एक पंडित नुमा व्यक्ति को अपनी हस्त रेखाएं दिखा रहा था और उससे सवाल कर रहा था। राहुल की शादी के विषय में उसने बताया कि अब के फ़ागुन में हो जाएगी। राहुल प्रसन्न भए और दस रुपया दक्षिणा किए। इनके संवादों से मेरा ध्यान भी उनकी तरफ़ चला गया।
सामत सरना मे अमित सिंह देव |
खल्वाट खोपड़ी, माथे एवं गले में रोळी चंदन, हाथ में कुछ कागज-कापी, पेन के साथ दो फ़िल्मी नायिकाओं के चित्र के साथ अगरबत्ती रखे हुए था। शर्ट के साथ कटिवस्त्र धारित उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली लगा। मेरे चर्चा होने पर उसने बताया कि वह बिजली विभाग का चीफ़ इंजीनियर था, बिजली के खंभे पर चढने दौरान उसे बिजली का झटका लग गया। तब से नौकरी छोड़ दिया है। हाथ में रखी नायिका की फ़ोटो दिखाकर कहता है कि - यह मेरी पत्नी है और यह बेटी है। दूसरी फ़ोटो को इंदिरा गांधी कह रहा था। इससे जाहिर हो गया कि उसका दिमाग फ़िरा हुआ है। फ़िरे हुए दिमागी से इस सिरफ़िरे को और भी चर्चा करने की इच्छा हो रही थी। लेकिन हमारे पास समय कम था। इसलिए अपने उद्धेश्य की ओर मुड़ गए।
गज लक्ष्मी अंकन |
डीपाडीह का यह सामत सरना मंदिर समूह है। मुख्य मंदिर का द्वार अलंकरण की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सिरदल के ललाट पर पद्मासन में बैठी हुई गजलक्ष्मी के साथ दोनो तरफ़ शिव का अंकन है। द्वार शाखाओं पर नदी देवी गंगा एवं यमुना का अंकन है। बांयी द्वार शाखा पर नदी देवी यमुना के साथ ही चैत्य गवाक्ष के उपर मिथुन अंकन भी दिखाई देता है। दायीं द्वार शाखा में इस स्थान पर वीणावादिका दिखाई देती है। मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग एवं जलहरी खंडित है। इस मंदिर में अन्य मूर्तियां भी स्थापित हैं जिनमें नृवराह, भैरव, गौरी, ब्रह्मा, नृत्य गणेश, कार्तिकेय, महाविष्णु, महिषासुर मर्दनी प्रमुख हैं। भग्नवशेषों से प्रतीत होता है कि इन मंदिरों के अनुपम शिल्प सौंदर्य को देख कर मुसाफ़िर अपनी धड़कन भूल जाया करता होगा।
परशुधारी शिव- सामत राजा |
मुख्य मंदिर के सामने बहुत सारे छोटे-छोटे शिवमंदिर हैं। संख्या में ये लगभग 40 होगें। मंदिर समूह के निकट ही दो नदियों (गलफ़ुल्ला एवं कन्हर) दो नदियों का संगम है। गलफ़ुल्ला नामकरण पर राहुल सिंह का कहना है कि इस नदी के जल के उपयोग से गला फ़ूलने जैसी कोई बीमारी मानव एवं पशुओं में हो जाती होगी। इसलिए गलफ़ुल्ला नाम प्रचलन में आया होगा। सामत सरना समूह परिसर में परशुधर शिव की सबसे ऊंची प्रतिमा रखी हुई है। इसे स्थानीय जन सामत सरना राजा रहते हैं। यह प्रतिमा चतुर्भुजी है। अलंकरणो के साथ बांया पैर घुटने से टूटा हुआ है तथा दायां पैर जंघा से खंडित है। बाएं पैर के नीचे परशु दिखाई देता है। प्रतीत होता है कि यह पैर परशु पर रखा होगा।
मुख्य मंदिर का दृश्य |
किंवदंतियों से ज्ञात होता है कि सामत सरना एवं झारखंड राज्य में स्थित टांगीनाथ के मध्य युद्ध हुआ था। जिसमें सामत सरना राजा वीरगति को प्राप्त हुए थे। इसके बाद सामत सरना की सभी रानियों ने परिसर में स्थित बावड़ी में डूब कर प्राण त्याग दिए। परिसर में स्थित परशुधारी शिव की प्रतिमा को स्थानीय जन सामत सरना मान कर पूजा करते हैं। सरगुजा के आदिवासी अंचल में सामत सरना एवं टांगीनाथ के विषय में जनश्रुतियाँ बिखरी पड़ी हैं। ये दोनो स्थानीय निवासियों की श्रद्धा के केन्द्र बन गए हैं। सामत सरना मंदिर के समक्ष शत लिंग स्थापित है। इसके समीप ही एक आमलक भी पड़ा है। मुख्य मंदिर के सामने विशाल नंदी स्थापित है। शिल्पकार ने नंदी प्रतिमा का बहुत सुंदर निर्माण किया है।
विष्णु सिंह देव, शत लिंग एवं केयर टेकर जगदीश |
जगदीश कहता है कि पहले यहाँ बहुत सारे पोखर-तालाब इत्यादि थे। अब थोड़े ही बचे हैं। ब्रह्मा की प्रतिमा पगड़ीधारी है साथ ही लिंग भी दिखाई देता है। शिल्पकार ने इस प्रतिमा को अंतिम रुप नहीं दिया है। पत्थर पर छेनी की मार के चिन्ह स्पष्ट दिखाई देते हैं। स्तम्भों पर मिथुन अलंकरण भी दिखाई देता है। साथ ही इस स्थान पर शतलिंग भी दिखाई देता है। खंडहरों से अनुमान होता है कि कभी यह मंदिर समूह भव्यता लिए होगा। सामत सरना समूह का अवलोकन कर हम शंकर गढ की ओर लौट चले। हमारा दोपहर का भोजन शंकर गढ के विश्राम गृह में था। शंकर गढ का विश्राम गृह अधिक पुराना नहीं है। लगभग 30 साल हुए होगें इसका निर्माण हुए। इसके केयर टेकर ने बताया कि विश्राम गृह के आरंभ से ही वह यहाँ पर पदस्थ है। भोजन करने के पश्चात हम आगे की यात्रा पूर्ण करने के लिए चल पड़े। ……… आगे पढें … जारी है।
अँधेरे में छिपी संस्कृतियों की रेख..निकालने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं आप..
जवाब देंहटाएंसुंदर वृतांत
जवाब देंहटाएंयायावरी कायम रहे.
जवाब देंहटाएंअदबुद्ध जानकारी प्रवीण जी बात से सहमत हूँ वाकई अंधेरे में छिपी संस्कृतियों की जानकारी घर बैठे ही दे रहे हैं आप आभार ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय राहुल कुमार सिंह जी संग गुजरे दिनों की याद तजा करा दी आपने ललित भाई साहब प्रणाम स्वीकारें आपके लेखन और चित्र अंकन के लिए बधाई ....
जवाब देंहटाएंBahut acha
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