मंगलवार, 19 जनवरी 2010

तुझे जलेबियाँ खानी है?



क फकीर बाजार से गुजर रहा था. रास्ते में एक हलवाई की दुकान थी उसने बड़ी अच्छी जलेबियाँ सजा कर रखी हुई थी. उनके मन में आया कि जलेबियाँ खानी है. पर पास में पैसा नहीं था, करे तो क्या करे. मन को समझाया बुझाया लेकिन माना नहीं. फकीर आखिर वहां से वापस चले आया.


मन  की आदत है कि इसको जिस तरफ से वापस लाओ उसी तरफ जाता है. जब रात को भजन में बैठा तो जलेबियाँ सामने आयें. मन बाहर जाने लगा फकीर उठ गया. जब फिर बैठा तो वही ख्याल फिर सामने आया. जब सुबह हुयी तो वह पैसे कमाने के  लिए काम करने लगा. गर्मी बहुत थी और उसका मालिक कडक स्वभाव का था. जैसे तैसे शाम को थककर चूर होकर लडखडाता हुआ बाजार आया क्योंकि उसका मन तो जलेबियाँ खाना चाहता था.

उस समय जलेबियाँ सस्ती थी. रूपये की तीन सेर होती थी. उसने तीन सेर जलेबियाँ खरीदी और जंगल में ले गया. जलेबियाँ सामने रख कर बैठ गया. और मन से पूछता था कि तुझे जलेबियाँ खानी है? मन कहता था गरम-गरम खानी है. जल्दी खिलाओ फिर ठंडी  हो जाएँगी. लेकिन फकीर जलेबियाँ खाता नहीं था. वह मन से फिर पूछता था. जलेबियाँ खानी है? तो आवाज आती थी देर मत करो जल्दी खिलाओ. मन की व्यग्रता बढ़ती जा रही थी. जब एक मौका ऐसा आया कि अब जलेबियों पर झपट पड़ेगा. तभी सामने से एक राहगीर आ रहा था. फकीर ने सारी जलेबियाँ उसे दे दी. फिर मन ने जलेबियाँ नहीं मांगी

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गहरी सीख है इस कथा मे.

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  2. सच! यदि मनुष्य अपने मन पर नियन्त्रण रखे तो कुछ भी असम्भव नहीं है उसके लिये!

    शिक्षाप्रद कथा!!

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  3. एक शिक्षाप्रद कहानी...बढ़िया प्रस्तुति..आभार ललित जी!!

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  4. बढ़िया सीख ! आभार
    मन पर नियंत्रण है तो सब सुखी

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  5. बात तो बहुत उम्दा कही आपने कहानी के माध्यम से,
    लेकिन एक गुस्ताखी करना चाहता हूँ ! क्या आप और मैं ऐसा कर सकते है ?मान लीजिये कि आज ड्राई डे है और ठण्ड की वजह से आपकी बड़ी इच्छा हो रही है कि..... आपके पास आज शाम को बो... में बस गिलास में डालने के लिए एक ही दफे का मौजूद है ! आप सुरु करना ही चाहते थे कि मैं पहुँच गया! तो क्या आप फोर्मलटी के लिए पूछोगे कि गोदियाल जी , आप लेंगे ? अगर यही सवाल आप मुझसे पूछोगे तो मैं कहूंगा कि बिलकुल नहीं मैं तो लिलास घताक्कर पूछता कि और ललित जी , कैसे आना हुआ ? हा-हा-हा-हा-हा ............कलयुगी साधू :)

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  6. इसीलिये कहा गया है
    मन चंगा तो कठोती में गंगा

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  7. वाह!!! अद्भुत और सुन्दर कहानी ! किसी दुसरे को देकर मन को इतनी तसल्ली होती है ! की मन भर जाता है !!!

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  8. इतना वीतरागी फकीर तो नहीं देखा, लेकिन जलेबियों का मोह उसने त्‍यागा यह बहुत ही शिक्षाप्रद कथानक है।

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  9. हा हा हा ! बचपन में इच्छा शक्ति बढाने के लिए हम भी कुछ ऐसा ही करते थे।
    जेब में दो चार रूपये डाल कर पूरी मार्केट घूम आते थे और सारे पैसे बचा कर ले आते थे।

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  10. मन के हारे हार है मन के जीते जीत
    मन ही तो है कहाँ कहाँ विचरण करते रहता है.
    किस्से से कुछ ग्रहण करें. .....नाइस

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  11. मस्तिष्क की सारी क्रियाओं का योग मन है इसे साधना बहुत कठिन है ।

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