साहित्य एक तपस्या है, साधना है, यह एक निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है. तब कहीं जाकर एक उत्कृष्ट कृति हमारे सामने आती है.
साहित्य को विनोद समझने वालों के विवेक पर तरस आता है. ऐसे लोग देश व समाज और राष्ट्र को कुछ नही दे सकते बल्कि समय भी बर्बाद कर रहे हैं.
साहित्य बहुत अध्ययन, चिंतन, मनन के बाद समाज के हित में व्यक्त किया जाता है. यह पुरे संसार के लिए होता है. मानव मात्र के लिए होता है.
भाषाओँ के बन्धनों से मुक्त होता है. एक साहित्यकार की रचनाओं का कई भाषाओँ में अनुवाद होता है. इस क्षेत्र में लोगों ने अथक परिश्रम किया है. इस क्षेत्र के कुछ लोगों की आज चर्चा करते हैं.
साहित्य को विनोद समझने वालों के विवेक पर तरस आता है. ऐसे लोग देश व समाज और राष्ट्र को कुछ नही दे सकते बल्कि समय भी बर्बाद कर रहे हैं.
साहित्य बहुत अध्ययन, चिंतन, मनन के बाद समाज के हित में व्यक्त किया जाता है. यह पुरे संसार के लिए होता है. मानव मात्र के लिए होता है.
भाषाओँ के बन्धनों से मुक्त होता है. एक साहित्यकार की रचनाओं का कई भाषाओँ में अनुवाद होता है. इस क्षेत्र में लोगों ने अथक परिश्रम किया है. इस क्षेत्र के कुछ लोगों की आज चर्चा करते हैं.
- इंग्लैण्ड के राष्ट्र कवि जोन मेसफिल्ड ने कहा है- मैं १७-१८ वर्ष का था जब मुझे कवि बनने की धुन सवार हुयी, परन्तु मेरी कविताओं की तरफ कोई आँख उठा कर नही देखता था. मैं धीरज छोड़ चूका था. संयोग वश मैंने कहीं एक कविता पढ़ी जिसमे लिखा था-केवल चाहने और हाथ पर हाथ रखकर बैठे रहने से कोई महान नहीं बन सकता. मछली भगवान भेजता है, परन्तु जाल तुम्हे ही फेंकना पड़ता है.
- मेस फिल्ड कहते हैं-ये पंक्तियाँ मेरे मन में पैठ गई. मैंने फिर कठोर परिश्रम करना प्रारंभ किया और कई मास की साधना के बाद एक एईसी कविता लिख पाया जो प्रकाशक ने स्वीकार कर ली. कई वर्षों तक मेरी फुटकर कवितायेँ और छोटी कहानियां ही छपती रही. इसी बीच महाकवि यीट्स ने मुझे सलाह दी कि तुम कोई ग्रन्थ या महाकाव्य लिखो और मैं ग्रन्थ लिखने में लग गया. परन्तु मुझे इसमें सफलता नहीं मिली. मेरी हिम्मत टूट कर बिखर गई. मैंने उपर्युक्त पंक्तियों का फिर स्मरण किया और काम में जुट गया. दस वर्ष के कठोर परिश्रम के बाद मेरा प्रथम उपन्यास प्रकाशित हुआ. जिसकी आलोचकों और यीट्स ने भी सराहना की.
- अमेरिकी साहित्यकार कर्नल वुड को अपनी एक रचना पर लग-भग चार हजार रूपये का पारिश्रमिक मिलता था. जब संपादक पीज ने उन्हें बताया कि उनकी पत्रिका "पैसिफिक मंथली" अर्थाभाव के कारण बंद होने वाली है तो वुड ने वचन दिया कि वे अपनी रचनाएँ कहीं और ना भेज कर केवल इसी पत्रिका को भेजेंगे. चार वर्ष तक वुड इस पत्रिका को बिना कुछ पारिश्रमिक लिए अपनी रचनाएँ भेजते रहे. एक अंक में कभी-कभी तो उनकी दस-दस रचनाएँ रहती थी चूँकि एक ही व्यक्ति के नाम से कई-कई रचनाएँ अच्छी नहीं लगती, अत: वुड ये रचनाएँ छद्म नाम से लिखते थे.
- ज्वायस की रचनाएँ प्रथम बर जब एक पत्रिका ने प्रकाशनार्थ स्वीकृत की तो उनकी आयु चालीस वर्ष हो चुकी थी. "युलिसिस" लिखने में तो उन्हें पुरे बीस साल लगे.
- नोबल पुरस्कारों के संस्थापक अल्फ्रेड नोबेल साहित्यकार भी थे. उनके एक नाटक नेमिसिस की तीन प्रतियों को छोड़ कर बाकी सभी प्रतियाँ उनके उत्तराधिकारियों ने फूंक दी, क्योंकि नाटक का स्तर इतना गिरा हुआ था कि उससे नोबेल जनता की निगाहों से गिर जाते.
इस तरह साहित्य एक साधना का विषय है. मैंने अपनी प्रथम कविता 13 साल की उम्र में लिखी थी और वह अमृत सन्देश अख़बार में छपी भी थी, लेकिन उसके बाद किसी पत्र में छापी गई किसी ने वापस लौटा दिया.
फिर मैंने लगातार 20 साल तक जब भी कविता करने की इच्छा हुयी तब सिर्फ लिखा ही और पत्र पत्रिकाओं में भेजना बंद कर दिया.
अब कुछ दिनों से फिर समय निकाल कर सतत लेखन में ही लगा हूँ जिसे ब्लाग पर लगा देता हूँ और कभी मन हुआ तो किसी को भेज देता हूँ. यह कार्य निरंतर जारी है.
फिर मैंने लगातार 20 साल तक जब भी कविता करने की इच्छा हुयी तब सिर्फ लिखा ही और पत्र पत्रिकाओं में भेजना बंद कर दिया.
अब कुछ दिनों से फिर समय निकाल कर सतत लेखन में ही लगा हूँ जिसे ब्लाग पर लगा देता हूँ और कभी मन हुआ तो किसी को भेज देता हूँ. यह कार्य निरंतर जारी है.
प्रेरणादायक लेख!
जवाब देंहटाएंऐसा भी होता है कि केवल एक रचना ही कालजयी बन जाती है जैसे कि चन्द्रधर शर्मा 'गुलेरी' जी "उसने कहा था"।
sach bat hai.narayan narayan
जवाब देंहटाएं"साहित्य एक तपस्या है, साधना है"
जवाब देंहटाएंएकदम सही बात , और जो इन दोनों को बस में कर ले तो समझिये कि उसके ही वारे-न्यारे है !
सिर्फ साहित्य ही नहीं .. साधना से ही आपकी खुद की पहचान बनती है .. जीवन के हर क्षेत्र में सफलता हासिल की जा सकती है .. प्राचीन काल में भी ऋषि मुनि अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सबकुछ भूलकर साधना ही करते थे .. कालांतर में उसे एक ऐसे तपस्या के सफल होने के रूप में परिभाषित कया गया .. जहां उन्हें ईश्वर का वरदान मिलता था !!
जवाब देंहटाएंआपने बिलकुल सच कहा है , "साहित्य एक तपस्या है , साधना है ". आभार !
जवाब देंहटाएंसुन्दर आलेख. वाकई साहित्य एक साधना है. साहित्य ही नही कला का हर क्षेत्र साधना है.
जवाब देंहटाएं"साहित्य एक तपस्या है, साधना है"
जवाब देंहटाएंसही कहा।
संयम ही सफलता की कुंजी है।
साफ-सुथरा प्रेरणा देने वाला लेख!
जवाब देंहटाएंउत्कर्षों के उच्च शिखर पर चढ़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।
एक जानकारीपूर्ण और प्रेरक आलेख.
जवाब देंहटाएंबहुत आभाएअ आपका.
आभाएअ = आभार.
जवाब देंहटाएंघर गया था ..आज आया ..
जवाब देंहटाएं.. नए साल की शुभकामनाएं ..
बड़ी अच्छी जानकारी मिली ..
अच्छी कविताओं से रू-ब-रू होने
का सौभाग्य मिलता रहेगा , इससे खुश हूँ ..