कई महीनों से रसद एकत्रित की जा रही थी, गोले-बारुद और मन पसंद बंदूक-पिस्टल संभाली जा रही थी। कब युद्ध हो और सारा असला काम आए। वह दिन आ ही गया जिसका इंतजार था। निश्चित समय पर गोली बारी शुरु हो गयी। सहसा धमाकों की बाढ आ जाती है। गोलियों की बौछार लगातार हो रही है। इधर सम्पर्क साधा जा रहा है, हेलो हेलो चार्ली हियर हेलो हेलो कुमुक भेजो। गोलियां रुक रुक कर चलती हैं कुछ देर बाद। शुरुआत में जोश था कि फ़तह कर लेंगे। अब सारी रात रह रह कर धूम धड़ाके हो रहे हैं। तभी सुबह होते ही युद्ध विराम हो जाता है।पौ फ़टते ही यत्र तत्र युद्ध के अवशेष ही दिखाई पड़ते हैं। सारे सैनिक निढाल पड़े हैं। कोई यहां कोई वहां। गोलियों के खोखे और ग्रेनेड के सिक्के कुछ लोग सकेल रहे हैं। कुछ लोग निढाल सैनिकों की मरहम पट्टी कर रहे हैं। यही नजारा दिख रहा है। एक युद्ध आया और गुजर गया। याने विराम हो गया। तुफ़ान गुजर जाने के जैसी स्थिति दिख रही है या बेटी की बारात जाने के बाद के बाद की सुबह जैसी बात है। चहुं ओर सन्नाटा।
यह कोई युद्ध नहीं है लेकिन युद्ध जैसा ही है। दीवाली के त्यौहार की तैयारी और उसके जाने के बाद बस ऐसा ही कुछ लग रहा है। एक महीने पहले से तैयारी चल रही थी सभी व्यस्त थे, घर का हर प्राणी तैयारी में लगा हुआ था। एक-एक दिन गिने जा रहे थे। दीवाली के इंतजार में। माता जी चिंतित दिख रही थी कि कुम्हारी नहीं आई है दीए लेकर, अब बाजार से ही लाने पड़ेंगे जा कर।हमारी खानदानी कुम्हारी ही दीए लेकर आती है, तीन पीढियाँ तो मुझे देखते हो गए। पहले उसकी सास आती है अब बहु दिए लेकर आती है। श्रीमति कहने लगी कि लाई वाली (खील लाने वाली ढिमरी) नही आई है। इसे भी त्यौहार से पहले खील लाते देख रहा हूँ बचपन से। बिना खील के पूजा नहीं होती। इसलिए खील जरुरी है। इनके आते ही कुछ काम कम हो जाता है।


फ़िर पकवान बनाने की जद्दोजहद में लगे। खोवा (मावा) लेकर नहीं आया है, पहले ही बोल दिया था उसे धनतेरस को मावा ले आना। अरे आ जाएगा, जब 30 साल से मावा दे रहा है तो आज ही छुट्टी थोड़ी कर देगा। लो मावा वाला भी आ गया, अब तैयारी शुरु करो। अब आखरी काम बच गया आंगन की गोबर से लिपाई, गोबर से लिपाई जरुरी है, तभी तो लक्ष्मी जी घर आएंगी। ये महरी भी न जाने ऐन वक्त पे कहां मर जाती है।अंतिम क्षणों तक बस तैयारी चलती ही रही।
उदय, आदि, हनी को पिस्टल चाहिए पटाखे वाली, किसी को बड़े वाले अनार, कोई बड़ी फ़ुलझडियों की डिमांड कर रहा है। एक ने फ़रमाईश की, ईको फ़्रेंडली पटाखे चाहिए चाईना वाले। लो कर लो बात, अरे सारी डिमांड एक साथ कर दो फ़िर बाद में कुछ नहीं मिलेगा। एक लिस्ट बना कर दो। जब लिस्ट पटाखे वाले के पास पहुंची तो मत पूछो, जैसे सारे पटाखे वहीं चल गए।3800 का बिल बना दिया। जब घर पहुंचे तो श्रीमति जी ने बोली कि इतने के पटाखे लाने किसने कहा था? लिस्ट तो तुम्ही लोगों ने दी थी। उसी पर अमल किया है। करो तब मरो नही करो तब मरो।

सच में युद्ध-स्तर पर तैयारियाँ होती हैं आपके यहाँ।
जवाब देंहटाएंपरंपरायें जीवित हैं भी तो ऐसे युद्धों के भरोसे ही, तो शर्मा जी हमारी तो यही कामना है ऐसे बहुत से युद्ध-वर्णन आपकी कलम से पढ़ने को मिलते रहें।
शुभकामनायें।
लिखना भी तो एक युध्द में लगे रहना है :)
जवाब देंहटाएंजितनी तैयारी हम दीवाली मनाने के लिए करते हैं समझ लो उतनी तैयारी एक युद्ध के लिए भी होती है। दोनों में कोई खास फ़र्क नहीं है। इधर भी धूम धड़ाका और उधर भी धूम धड़ाका।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सही और अच्छा लिखा है .. एक बार फिर से दीपावली की शुभकामनाएं !!
युद्ध ही तो है महाराज...कैसे कम आंके. :)
जवाब देंहटाएंमजेदार वर्णन किया दीवाली का.
जवाब देंहटाएंये आँखों देखा हाल लगभग सभी घरों का है | कुम्हारी ने आना बंद कर दिया है |आजकल हम जैसे राजपूत भी बनिया बन गये | इस लिये कुम्हारों ने भी अपनी परम्परा को त्यागना शुरू का दिया है |
जवाब देंहटाएंसुन्दर पोस्ट.
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
जवाब देंहटाएंढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
आखिर आपने बता ही दिया की कैसी मनी दिवाली ..:):)
जवाब देंहटाएंबहुत आनंद आया इस दिवाली रिपोर्ट को पढ़ कर ...
जय हो दादा जय हो !!
जवाब देंहटाएंखूब मनवाई दिवाली !
आपने इस पोस्ट के माध्यम से ‘घर घर की कहानी‘ का वर्णन कर दिया ...रोचक आलेख।
जवाब देंहटाएंपर्व की तैयारियाँ और उसके बाद की दशा का जीवंत वर्णन।
जवाब देंहटाएं@ एक युद्ध आया और गुजर गया। याने विराम हो गया। तुफ़ान गुजर जाने के जैसी स्थिति दिख रही है या बेटी की बारात जाने के बाद के बाद की सुबह जैसी बात है। चहुं ओर सन्नाटा।
वाह!
दीवाली सचमुच एक मुहिम भी है. वैसे यह पोस्ट प्रवासी अभिभावकों के लिए बड़े काम की है, जो बच्चे के सवाल 'क्या होता है, दीवाली में' का ठीक जवाब नहीं दे पाते.
जवाब देंहटाएंमजेदार वर्णन
जवाब देंहटाएंकहानी घर घर की!
अच्छा संस्मरण रहा, पढ़ते-पढ़ते जैसे जी लिया है.
जवाब देंहटाएंप्रेमरस.कॉम
मजेदार मनी दिवाली :) अच्छा लगा पढकर.
जवाब देंहटाएंअच्छी मनी दिवाली आपकी . हमारे यहा तो एक भी रुपये के पटाखे नही आये . लेकिन यमाहा R 15 दिलानी पड गई भान्जे को .
जवाब देंहटाएंदिलचस्प आलेख.
जवाब देंहटाएंपुरानी दीवालियां क्रमश: याद आती रहीं खास तौर पर हाफ़ पेंट पहन कर टिकली फ़ोड़ना मगर चिंगारीयों की बदमाशियां देखिये हाफ़ पेंट तक में घुस जातीं थीं. अच्छा हुआ कि उदय पिस्टल का स्तेमाल कर रहे हैं
जवाब देंहटाएंदिवाली की तैयारी सचमुच किसी युद्ध से कम नहीं होती ...
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट !
भाई साहब पोस्ट का इन्तेजार लम्बा हो गया.
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