मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

पांच सौ का नोट, काला कोट और दो छक्के

आरम्भ से पढ़ें 
शाम से ही तैयारी होने लगी, दुल्हा सजने लगा, साथ में बाराती भी, हम भी सज लिए, लेकिन हमारा सजना भी क्या सजना, जब आएगें सजना तो होगा सजना। फ़िर भी सज ही लिए पद्मसिंग के साथ,रात शादी और फ़ेरे थे,

बारात निकली बैंड बजा, मंदिर में धोक दी गयी, तोरण की रस्म और बारात स्वागत, उसके बाद जीमना हुआ। जहां हमारा खाना पीना चल रहा था वहीं पद्मसिंग के साथ एक नौजवान नमुदार हुआ। हमने देखते ही पहचान लिया।

शेखर कुमावत हां जी शेखर कुमावत। बड़ा अच्छा लगा मिलकर, शेखर चित्तौड़ से निम्बाहेड़ा ब्लागर बंधुंओं से मिलने ही आए थे। उन्होने हमारी बात मोटयार जी से कराई और अपने पिताजी कवि अमृत वाणी जी से भी। फ़िर हमने साथ साथ डांस किया फ़ोटुएं खिंचाई। मत पूछिए फ़िर भयानक धमाल हुआ। 

वहीं देवेन्दर सांगा जी से भेंट हुई ये रोहतक से हैं। खाना खाने के बाद इनके रुम में हमने थोड़ी देर नेट का इस्तेमाल किया। इधर घर पहुंचे तो फ़ेरे शुरु हो गए थे।

हमने भी अपने बिस्तरे की शरण ली, क्योंकि रात का जागरण मेरे स्वास्थ्य के बहुत मुसीबतें खड़ी कर देता है। एक रात जागने के बाद हफ़्ते भर दिन रात सोना पड़ता है तब कहीं जाकर नींद पूरी होती है। इसलिए जागरण से बच लिया जाए वही ठीक है।

सबकी अपनी अपनी तासीर होती है। भाई मुझसे तो जगा नहीं जाता, हाँ यदि नेट हो तो भले ही रात के दो बज जाएं, लेकिन ऐसे जागना बहुत मुस्किल है।

सुबह जब आँख खुली तो सब मामला फ़िट था। फ़ेरे हो चुके थे। लड़की वाले वापस जाने की तैयारी में थे। हमारी भी टिकिट आज शाम की ही थी।

हम, पद्मसिंग, इंदुपूरी और उनकी ननद बैठ कर बात कर रहे थे। तभी इंदुपुरी की ननद ने हमारा परिचय जानना चाहा कि उनका हमारा क्या रिश्ता है। तो मैने कहा कि बस प्रेम का रिश्ता है। तो उन्होने कहा कि ये कोई रिश्ता होता है।

तब पद्म सिंग बोले – गर्ल फ़्रेंड का रिश्ता है। हा हा हा सभी लोगों ने खूब ठहाके लगाए। रिश्ते भी ढूंढे जाते हैं रिश्ते बनाए भी जाते हैं और रिश्ते अपने आप बन भी जाते हैं। यही अपने आप बने हुए रिश्ते को हम जी रहे थे उन क्षणों में। शाम को अब जाने की तैयारी थी।

लावणा बांधने की पुरजोर कोशिश की इंदु जी ने, लेकिन मुझे तो अभी और कहीं जाना था लम्बे सफ़र में। बांधा हुआ सामान सही सलामत घर पहुंच जाए ये तो बहुत मुस्किल था। तब उन्होने कहा कि रोहतक में इस्तेमाल हो जाएगा। तो मैने एक डिब्बा रख लिया।

बहु ने रात का खाना बना दिया ट्रेन के लिए। पद्मसिंग मुझे स्टेशन छोड़ने आए। शेखर कुमावत भी पहुंच गए थे। शेखर ने कुछ पुस्तकें दी,

ठंड अपना रंग दिखा रही थी और मैं उस हिसाब से कपड़े लेकर नहीं आया था। ट्रेन आ गयी अपनी सीट संभाल कर। सबसे बिदा ली, अब चित्तौड़ की यादें ही शेष है और इंतजार है उस दिन का, जिस दिन मीरा से मिलने आऊंगा।

आगे पहुंचने का समाचार हमने पंडित जी याने पवन चंदन जी (चौखट वाले) को कर दिया था। सुबह हमारी गाड़ी निजामुद्दीन पहुंचने वाली थी।

रात लगभग 4 बजे बुखार जैसा लगा। मैने बैग में से निकाल कर एक सुमो ली और फ़िर ओढ कर सो गया। ठंड कुछ ज्यादा ही थी। जब ट्रेन फ़रीदाबाद पहुंची तो पवन चंदन जी का फ़ोन आ गया था।

हमने बता दि्या की गाड़ी लेट है। वे स्टेशन पहुंच चुके थे। हमने बताया था उन्हे की पानीपत जाना है, भाई योगेन्द्र मौदगिल जी के पास। वे इंतजार कर रहे हैं।

पवन जी ने पश्चिम एक्सप्रेस की टिकिट मंगवा दी। हम उनके साथ घर आ गए। रास्ते में मूलियाँ खरीदी गयी, क्योंकि मूलीयों के पराठे खाने का विचार बन गया था।

घर पहुंचते ही उन्होने मूलियाँ भाभी जी के हवाले की और हम स्नान ध्यान पर लग गए। मन माफ़िक नाश्ता कर एक गिलास छाछ का लेकर अब हम वापस निजामुद्दीन आ गए। पवन जी ने पश्चिम एक्सप्रेस की स्लीपर बोगी में बैठा दिया और कहा कि कोई टी टी आए तो हमारा नाम बता देना। ट्रेन चल पड़ी।

नई दिल्ली स्टेशन तक तो कोई पूछने नहीं आया। नई दिल्ली में हमने बोगी के टी टी धर्मबीर को बताया तो उसने कहा हेड टी टी से पूछ लो। हेड टी टी ने कहा कि बैठ जाओ।

हमारे सेक्सन में तो कोई ज्यादा समस्या नहीं है। जनरल की टिकिट पर 50 रुपए का लगेज बना देने से स्लीपर में बैठने की पात्रता मिल जाती है। लेकिन भारत आजाद मुल्क है यहाँ सारी रेल्वे एक होते हुए भी अलग -अलग प्रदेशों में अलहदा कानुन बना लिए हैं। पता नहीं कब किस चीज पे जुर्माना लगा दें।

जनरल कोच में पैर रखने की भी जगह नही थी। ट्रेन चलने लगी तो 6-7 टी टी उठा पटक करते हुए बोगी में चढे। चलती ट्रेन में चढने वालों को भी धक्का मार रहे थे। ये क्या बला है भाई? परदेश में जो हो जाए वह कम है।

ये वही टिकिट और पांच सौ का नोट है-हमेशा काम आएगा
टिकिट चेक करने लगे। हमने अपनी टिकिट दिखाई तो उसने कहा कि- ये स्लीपर कोच है। मैने कहा – मालुम है। इसलिए तो बैठे हैं। टी टी को बता कर बैठे हैं।

तो वो बोला – किस टी टी ने आपको यहां बैठने को कहा है? मैं आज उसका भी जुर्माना बनाऊंगा।

मैने कहा कि कोच के टी टी से पूछ लो। तो वह थोड़ा गर्म होने लगा।
मैने कहा कि – तुम्हारा जितना जुर्माना होता है उतना बना लो, और फ़ालतु बात मत करो। मुझे पानीपत तक जाना है। उसने 330 रुपए कहे, मैने एक पाँच सौ का नोट निकाल कर दे दिया और कहा कि मुझे पवन चंदन जी निजामुद्दीन एस एस ने बैठाया है। जरा उनसे भी बात कर लेना। 

वह टिकिट और रुपए लेकर अपने साथ वाले टी टी से बोला कि – जुर्माना तुम बनाओ। उसने मना कर दिया। मैने भी कहा कि – जुर्माना तो जरुर बना देना लेकिन अपने फ़ूफ़ा नै (पवन चंदन जी) मति भूल जाईयो।

मना करने वाले टी टी ने मुझे बैठने का इशारा किया और रुपए टिकिट अपनी जेब में डाल कर आगे की बोगी में चलता बना। बहुत देर हो गयी वह आया ही नहीं।

ट्रेन सोनीपत पहुंचने वाली थी। मैने एक सवारी से पूछा कि ये टी टी असली हैं कि नकली। साले पैसे भी ले गए और टिकिट भी। तभी दो छक्के पहुंचे ताली बजाते हुए।

उनके पीछे पीछे टी टी भी पहुंच गए। उस टी टी ने मुझे पाँच सौ का नोट और टिकिट दोनो वापिस कर दी। तो मैने कहा कि ये जो नर जैसी नारियाँ हैं इनका स्लीपर बनाया कि नही?

उसने कहा कि – इनके मुंह कौन लगे? तो मैने कहा – मर्दों के तो मुंह लग सकते हो और छक्कों के मुंह लगने से तुम्हारे छक्के छुटते हैं। वो वहां से खसकते बने।

तभी योगेन्द्र जी का फ़ोन आ लिया। उन्होने लोकेशन पूछी। हमने सोनीपत बता दिया। तब से हमने वो टिकिट और पाँच सौ का नोट यादगार के तौर पर संभाल रखा है।

अब एक छक्का तो मेरी सामने सीट पर बैठा था। साथ में एक बुढिया माई। माई उससे पूछती थी कि – तुमने शादी कर ली?

छक्का बोला – हां डाल रक्खा है अम्मा एक। अभी लेकर गयी थी उसे अपने साथ। मेरे भतीजा हुआ है न उसका छुछक आया था। गोटे वाला सलवार सूट सींमाया था उसने मेरे लिए। ये जो मुकेश (दुसरा छक्का) है ना, ये मेरा गुरु भाई है। मैने इसके लिए भी एक मुन्नी बदनाम वाली डरेस खरीद कर दी है।

फ़िर उसको बोला – अरे गुरु भाई मोबाईल लम्बर तो तेरो। कदे फ़ोन लगाणे की जरुरत पड़ जाए तो। वैसे भी  मेरी तबियत खराब रहवै सै आज कल। बस मेरी तो इच्छा है कुछ पैसे इकट्ठे करके सांई बाबा के दरशन करने जाऊं। बैस्णो देबी तो मै हो आई थी।

बस इसकी बक बक सुनते सुनते पानीपत आ पहुंचा था। ट्रेन से उतरे तो योगेन्द्र भाई का खिल खिलाता चेहरा दिखाई दे गया। आगे पढ़ें 

21 टिप्‍पणियां:

  1. अब एक छक्का तो मेरी सामने सीट पर बैठा था। साथ में एक बुढिया माई। माई उससे पूछती थी कि – तुमने शादी कर ली? तो छक्का बोला – हां डाल रक्खा है अम्मा एक। अभी लेकर गयी थी उसे अपने साथ। मेरे भतीजा हुआ है न उसका छुछक आया था। गोटे वाला सलवार सूट सींमाया था उसने मेरे लिए। ये जो मुकेश (दुसरा छक्का) है ना, ये मेरा गुरु भाई है।

    हा हा हा ....

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  2. टिकिट तो टिकिट है, लेकिन पांच सौ का नोट तो पास है, 'मल्‍टी पास'

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  3. अब एक छक्का तो मेरी सामने सीट पर बैठा था। साथ में एक बुढिया माई। माई उससे पूछती थी कि – तुमने शादी कर ली? तो छक्का बोला – हां डाल रक्खा है अम्मा एक। अभी लेकर गयी थी उसे अपने साथ। मेरे भतीजा हुआ है न उसका छुछक आया था। गोटे वाला सलवार सूट सींमाया था उसने मेरे लिए। ये जो मुकेश (दुसरा छक्का) है ना, ये मेरा गुरु भाई है। मैने इसके लिए भी एक मुन्नी बदनाम वाली डरेस खरीद कर दी है। फ़िर उसको बोला – अरे गुरु भाई मोबाईल लम्बर तो तेरो। कदे फ़ोन लगाणे की जरुरत पड़ जाए तो। वैसे भी मेरी तबियत खराब रहवै सै आज कल। बस मेरी तो इच्छा है कुछ पैसे इकट्ठे करके सांई बाबा के दरशन करने जाऊं। बैस्णो देबी तो मै हो आई थी। बस इसकी बक बक सुनते सुनते पानीपत आ पहुंचा था। ट्रेन से उतरे तो योगेन्द्र भाई का खिल खिलाता चेहरा दिखाई दे गया।

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  4. यात्रा संस्मरण की दिलचस्प प्रस्तुति.

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  5. भाई ललित जी.. आपका अंदाज़े बयाँ तो ज़बरदस्त होता ही है... अंतिम फोटो तो सीधे करेजे पे तीर सी लग रही है :) अगर मोनालिसा देखले तो मुस्कुराने की बजाय हँस पड़े...हा हा हा ... मै तो इनकी भावभंगिमा बड़ी हसरत से कई बार निहार चुका हूँ... अच्छा हुआ इन्होने पहले ही एक "डाल" रखा है ... हा हा हा ...हे प्रभु ..

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  6. दर असल कई बार जब हम बाहर की दुनिया वाले से ब्लॉग या ब्लॉगर के बारे में बात करते हैं तो शायद उनको हमारी बात बेवकूफाना लगती है और समझ से परे होती है ... कुछ आत्मीय रिश्तों के लिए भी दुनिया में कोई विशेषण नहीं खोजा गया है... ऐसे में उनकी भाषा में ही स्पष्ट करना मजबूरी बन जाती है... :)

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  7. 'ठंड अपना रंग दिखा रही थी और मैं उस हिसाब से कपड़े लेकर नहीं आया था।'हे भगवान! इतनी छोटी सी बात मेरे दिमाग में तो नही आई किन्तु आप तो कह सकते थे.इच्छा तो ऐसी हो रही है कि झगड़ा करूं.अरे भाई !गोस्वामीजी,टीटू,ऋतू के पास गर्म कपड़े हैं.आप कह नही सकते थे....दुष्ट कहीं के!
    वैसे लिखते ऐसा हैं कि एक बार में कोई भी पूरा पढ़ कर ही उठे.रियली ये आपके लेखन का कमाल है.
    पद्म सिंग??? अरे सिंह को सिंग ही बनाया अच्छा हुआ कि उसके 'सींग' नही लगाए.
    हा हा हा

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  8. चलिए आप राजस्‍थान की धरती से हरियाणा की धरती पर आ गए। रोचक जानकारी।

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  9. गतिविधियों से भरी रही यात्रा आपकी।

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  10. बढ़िया लगा जी आपका यात्रा विवरण

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  11. ललित भाई , यह नहीं बताया कि ऐसी बढ़िया कंपनी मिलने पर ठण्ड का क्या हुआ । भाग गई होगी । हा हा हा !
    रोचक संस्मरण ।

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  12. आदरणीय ललित शर्मा जी
    नमस्कार
    मालूम था आपका पांच सौ का नोट , पर अंदाज काबिल- ए- तारीफ है भाई, शीर्षक पढने को मजबूर कर देता है .... ....शुक्रिया

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  13. चित्तौडगढ से पानीपत।
    बहुत खूब।

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  14. बहुत दिनों बाद पहुचे हरियाणा में |मजा आया पढकर|

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  15. बड़ी एक्टिव यात्रा रही आपकी ,रोचक वृतांत.

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  16. बहुत सुंदर जानकारी जी, चलिये अब जल्दी से रोहतक पहुचे, फ़िर हो जाये एक एक गलासी

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  17. खूब रही आपकी यात्रा, चित्तोड़गढ़ ना पहुँच पाने का दुःख रहेगा पर हाँ यह ठीक रहा कि ब्लॉगर भाइयों ने वहाँ ब्लोगरी का माँ बचाए रखा वर्ना इंदु जी शिकायत करती :))

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  18. मैने भी कहा कि – जुर्माना तो जरुर बना देना लेकिन अपने फ़ूफ़ा नै (पवन चंदन जी) मति भूल जाईयो।

    हाहाहा

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