दृश्य-1
कल दशहरा मना लिया गया, रावण अपने धाम को विदा हो गया। मौसम में दीवाली महक आ गई है। सुबह-सुबह ओस के साथ मौसम दीवालियाना लगने लगा है। चाय का कप लिए करंज के पेड़ के नीचे कुर्सी डाले बैठा हूँ। इस एक महीने के त्यौहार में कितने काम रुक जाते हैं और कितने काम हो जाते हैं सोच रहा हूँ। रामगढ़ पर मेरी पुस्तक अधूरी है, उसे पूरा करने के लिए मुझे एक बार 2-4 दिनों के लिए रामगढ़ और जाना होगा। पिछले छ: महीने से योजना बना रहा हूँ। लेकिन कुछ न कुछ अड़ंगा आ जाता है। बरसात के चार महीने तो जंगल में घुसने लायक भी नहीं हैं। अब चुनाव का डंका बज चुका है। घर में रहकर ही राजनैतिक प्रतिस्पर्धा (लड़ाई) का आनंद लिया जाए। उसके बाद देखा जाएगा, कहीं जाना होगा तो। वैसे भी दीवाली का कितना काम पड़ा है।
दृश्य-2
बाईक स्टार्ट कर रहा हूँ, बाजार जाना है। तभी मालकिन पहुंच जाती है - दीवाली सिर पर आ गई है। रंगाई, पोताई, साफ़-सफ़ाई नहीं करवानी क्या? कोई चिंता ही नहीं है आपको। बाजार जा रहे हो तो रंग रोगन ले कर आना। परसों से काम शुरु हो जाना चाहिए।
अरे! हर साल रंग-रोगन तो टाटा-बिड़ला के यहाँ भी नहीं होता। पहले मकानों में चूना करना होता था तो लोग हर साल पुताई कर लेते थे। अब कितना मंहगा हो गया है, रंग-पेंट। दस हजार से कम का नहीं आएगा और पेंटरों का भी भाव बढा हुआ है। कहाँ ढूंढने जाऊंगा।
कहीं से लाईए ढूंढ कर। मुझे घर की रंगाई पुताई करवानी है। एक साल में घर की दीवारें कितनी गंदी हो जाती हैं। आपको नहीं दिखता क्या? मालकिन ने अपना आदेश सुना दिया और चली गई। मजबूरी युक्त हमारी मजदूरी शुरु हो गई।
दृश्य - 3
रंग-रोगन की दुकान में भारी भीड़। लोग सामान धक्का मुक्की कर सामान खरीद रहे हैं। सोच रहा हूँ कि ये भी मेरे जैसे ही होगें। इनकी मालकिनों ने भी इन्हें खदेड़ा होगा। दुकानदार की नजर मुझ पर पड़ती है - नमस्कार भैया! कैसे आना हुआ?
नमस्कार! यार मैं सोच रहा था कि तेरी बारात में जाने के बाद भूल गया ही गया। कम से कम बच्चों के बारे में पूछना चाहिए था कि कितने हुए। आज याद आया तो पता करने चला आया।
हे हे हे हे! आप भी मजाक करते हैं भैया। 10 साल बाद आपको याद आई।
अरे! मुझे रंग रोगन लेना है, इसलिए आया हूँ। इतना भी नहीं समझता। एशियन का इमल्शन पेंट लेना है। कलर कार्ड दिखा मुझे। हॉल के लिए 2 रंग। बैडरुम के लिए 2 रंग, दूसरे बैडरुम में 2 रंग। भगवान के कमरे के लिए अलग लेना है। बाकी जो बच गया किचन में लगा लेगें। छत और बार्डर का रंग मिला कर भीतर के लिए लगभग 15 लीटर लग जाएगा तथा बाहर के लिए स्नोशेम कलर भिजवा दे। साथ में 1 छ: इंची ब्रस, 1 दो इंची, एमरी पेपर 80 नम्बर, व्हाईट सीमेंट 5 किलो भी साथ में देना।
दृश्य -3
भोजन जारी है- बोल आए रंग रोगन के लिए? मालकिन ने प्रश्न दागा। मेरे जवाब देते तक ही डोर बेल बजी। लड़का रंग रोगन का डिब्बा लिए सामने खड़ा था। मालकिन के चेहरे पर विजयी मुस्कान की चमक आ गई थी। रख दो भैया, उधर कोने में। साथ ही मेरी ओर मुखातिब होते बोली- कल सुबह सातपारा जाकर पेंटर का पता करके आओ। अब अधिक समय नहीं रह गया है। घर की साफ़ सफ़ाई भी करनी पड़ती है। रंग रोगन के बाद फ़र्श पर कितना कचरा फ़ैल जाता है। काम वाली बाई भी नौंटकी करने लगती है। आपका क्या है, जब देखो तब कम्पयूटर पर डटे रहते हो। थोड़ा भी ध्यान न दूं तो सारा काम ऐसे ही पड़ा रहे। आखिर सारा काम मुझे ही करना पड़ता है। मैं सिर झुकाए खाने में व्यस्त हूँ। आदेश सुनाई दे गया। अब कल की कल देखी जाएगी।
दृश्य-4
रात के 10 बज रहे हैं और मैं नेपाल यात्रा के पोस्ट लेखन से जूझ रहा हूँ। सब कुछ याद है कि कुछ भूल रहा हूँ। कीबोर्ड की खटर पटर जारी है। इसी बीच मालकिन का आगमन होता है - रविवार को बच्चों के कपड़े लेने जाना है। फ़िर सब छंटे छंटाए मिलेगें।
चले जाना भई, मैने कब रोका है। - मैने कीबोर्ड खटखटाते हुए कहा।
आप सारा दिन इसी में लगे रहते हो। कभी फ़ुरसत है यह सब सोचने की।
अरे! सारे ही सोचने लग जाएगें तो काम बिगड़ जाएगा। परिवार का काम यही है कि सब सोचें और कार्य पर विजय पाएं। अब मैं भी सोचने लग गया तो तुम्हारे लिए सोचने के लिए क्या बचेगा। इसलिए जिसका काम उसी को साजे, नही साजे तो डंडा बाजे।
दृश्य-5
कीबोर्ड विराम मोड में है और माऊस का काम चल रहा है। पोस्ट में फ़ोटो अपलोड हो रही हैं। दिमाग सोचनीय मोड में है। इसी घर में बचपन में देखते थे कि पितृपक्ष समाप्ति और नवरात्रि के पहले दिन से ही दीवाली के काम शुरु हो जाते थे। कामगारों की रेलम पेल। खेत से फ़सल आने की तैयारी। खलिहान की लिपाई शुरु हो जाती थी। उरला गाँव का बुधारु टेलर सिलाई मशीन लेकर बैठक की परछी में डेरा लगा लेता था। पंजाबी की दुकान से थान के थान कपड़े आते थे और सभी बच्चों के नाप के हिसाब से 2-2 जोड़ी कपड़ों की सिलाई शुरु हो जाती थी। स्कूल से आते ही पहला काम होता था कि आज टेलर ने किसके कपड़े सीले हैं और कल किसकी बारी है। कपड़े की दुकान घर पर ही खुल जाती थी। टेलर की भी मौज हो जाती थी, एक ही घर के कपड़े सीने में उसकी दीवाली मन जाती थी।
दृश्य-6
पेंटर काम पे लगे हुए हैं, उनकी सहायता के लिए उदय महाराज तैयार हैं, कभी इस डिब्बे की ब्रश उस डिब्बे में तो कभी इधर का पेंट उधर। हम कम्प्यूटर पर चिपके हुए हैं। कभी झांक कर देख लेते हैं क्या काम हो रहा है। आप यहाँ बैठे है और उदय उन्हें काम नहीं करने दे रहा है - तमतमाते हुए मालकिन का आगमन होता है।
उदयSSSSSSS! क्यों फ़ालतू परेशान कर रहा है। काम करने दे। चल तुझे एक काम देता हूँ, देख कितनी सारी तितलियाँ बाड़े में उड़ रही हैं। दो-चार सुंदर की फ़ोटो ही खींच ले। कम्प्यूटर का वाल पेपर बनाएगें। खुशी खुशी उदय कैमरा लेकर मंदिर की तरफ़ चला जाता है।
ये श्रुति भी न, जब काम होगा तभी स्कूल जाएगी। नहीं तो छुट्टी कर लेती है। काम के बोझ के नीचे कोई नहीं आता। सारा दिन रात खटना पड़ता है। तब कहीं जाकर दीपावली का काम निपटता है। अभी तो बिजली मिस्त्री को बुलाना है। 2 महीने से बाहर की ट्यूब लाईट खराब पड़ी है। उसे ठीक करवाना है। कोई ध्यान ही नहीं देता। - मालकिन बड़बड़ा रही थी।
दृश्य-7
पेंटर आधा अधूरा काम छोड़ कर गायब हो गए हैं ।मालिक साहब स्टूल पर चढे दीवाल पर रोगन चढा रहे हैं। अरे! इतना तो रंग मत टपकाओ। फ़र्श पर गिरने के बाद चिपक जाता है, साफ़ नहीं होता।
अब ब्रश से चूह जाता है तो मैं क्या करुं? कौन सा मैने पेंटिंग का कोर्स किया है। अब काम वाले नहीं आए तो मैं क्या करुं। ब्लेड से खुरच कर साफ़ कर दूंगा। दीवाली का काम है करना ही पड़ेगा। वरना कौन सुबह-शाम सिर पर बेलन बजवाएगा। हाँ नहीं तो। जरा ड्रम इधर खिसकाना तो।
ये छिपकिलियाँ बहुत परेशान करती हैं। जहाँ देखो वहीं घुसे रहती हैं। फ़ोटो के पीछे, कपड़ों के पीछे, आलमारी के पीछे। किताबों के सेल्फ़ में। मरती भी नहीं है। कोई इलाज नहीं है क्या इनका?
इलाज तो मुझे भी नहीं मालूम। फ़ेसबुक पर लिख कर मित्रों की राय ले लेता हूँ। अगर वे कोई समाधान बताएगें तो अमल में लाया जाएगा।
फ़ेसबुक पर लगाया हुआ महत्वपूर्ण स्टेटस, ही-ही बक-बक की बलि चढ जाता है। लेकिन मगरमच्छ की बहनों से पैदा हुई समस्या का हल नहीं मिलता।
दृश्य-8
पटाखे लाने हैं कि नहीं?
क्या करना है पटाखे लाकर। पिछले साल ही 2500 के लाए थे और किसी ने चलाए भी नहीं। अभी तक पड़े हैं घर में। फ़ालतू खर्च करने से क्या हासिल होगा।
दीवाली है, लोग पटाखे चलाते हैं। फ़िर आदि, हनी, श्रुति, श्रेया, उदय को तो पटाखे चलाने हैं। आप चलाओ चाहे न चलाओ।
रोज अखबार वाले और टीवी वाले कह रहे हैं कि पटाखे चलाने से ध्वनि प्रदूषण एवं वायू प्रदूषण होता है। साथ ही आचार संहिता लगने के कारण आज ही चुनाव आयोग का मेल-पत्र आया है कि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक पटाखे चलाने पर प्रतिबंध है। अब पटाखे चलाने वालों को पुलिस पकड़ कर ले गई तो समझो मन गई दीवाली। - मैने टालने की कोशिश करते हुए कहा।
कोई पुलिस वाला पकड़ कर नहीं ले जाएगा। साल भर का त्यौहार है, इस दिन भी क्या पटाखे नहीं चलाने देगें। जाओ लेकर आओ और ज्यादा पटाखे नहीं लाना। सभी एक एक पैकेट ले आना।
बाजार से वापसी लौटते हुए उदय के पास एक बड़ी पालिथिन में भरे हुए पटाखे दिखाई देते हैं। इतने सारे क्यों ले आए? मैने तो थोड़े से लाने कहा था।
मुझसे थोड़ा सामान नहीं खरीदा जाता। साला ईज्जत का कचरा हो जाता है। तुम्हे थोड़ा सामान खरीदना हो तो किसी और से मंगवा लिए करो। मुझे मत कहे करो। हाँ ! साथ में लट्टूओं की झालर भी ला दी हैं 6 नग। मुझे मत कहना फ़िर बाजार जाने के लिए।
दृश्य- 9
आम के पत्तों को तोड़ कर नंगा करने पर तुले हैं नंदलाल और उसके लड़के। अरे! सारे पत्ते तुम ही तोड़ ले जाओगे तो दीवाली में हम कहाँ से लाएगें? मैने उन्हें झिड़कते हुए कहा।
दादी से पूछ कर तोड़ रहे हैं।
ले भई, जब दादी ने कह दिया तो पूरा पेड़ ही उखाड़ कर ले जाओ। कल तो कुछ मरदूद फ़ूल तोड़ने भी आएगें। - मैने कहा
तब तक मालकिन भी मैदान में आ जाती है- सब इन्हीं लोग ले जाते हैं दादी की सिफ़ारिश से, हमारे लिए तो बचते ही नहीं। आंगन लीपने के लिए गोबर भी नहीं आया है। श्रुति रंगोली का सारा सामान लेकर आ गई है। गोबर आएगा तो लीपा जाएगा, तब रंगोली बनेगी। इतवारी के लड़के को कब से खोवा (मावा) लाने कही हूँ, अभी तक लेकर नहीं आया है। कितना काम पड़ा है। कब खोवा लेकर आएगा तो कब गुलाब जामुन बनेगें।
मैने तो मना कर दिया था खोवे के लिए। आजकल खोवा खराब आ रहा है और मंहगा भी कितना है। 10 रुपए किलो में कोई कुत्ता भी नहीं पूछता था। आज 400 रुपए किलो हो गया है। वह भी शुद्ध होने की कोई गारंटी नहीं। नकली खोवा खाओ और अपनी तबियत खराब करो। 400 का खोवा और 1400 की दवाई।
आपकी चले तो कोई त्यौहार भी न मने। मैने कहा है उसे खोवा लाने के लिए। अगर तबियत खराब होगी तो मेरी होगी। देखा जाएगा, कम से कम दीवाली तो जी भर के मनाएं।
दृश्य -10
बरगद के पेड़ के नीचे कैमरा लिए बैठा हूँ, कुछ बगुले गाय की पीठ पर सवार हैं और लछमन झूला झूलने का मजा ले रहे हैं। बाड़े में चारों तरफ़ नजर दौड़ाता हूँ तो सूना सूना लगता है। लगता है जैसे काटने को दौड़ रहा हो। कभी इसी जगह पर त्यौहार पर 40-50 परिजन इकट्ठे होते थे। उस आनंद के कहने ही क्या थे। लक्ष्मी पूजन करने के बाद आशीर्वाद लेने-देने का क्रम चलता था और आतिशबाजी रात भर चलती थी। अब ऐसा कुछ नहीं है। कुछ बाहर चले गए, कुछ धरती में समा गए। कुछ अलग हो गए अपने - अपने कुटूंब कबीले को लेकर।
कैसा मजा रह गया है अब इन त्यौहारों का? सिर्फ़ परम्परा का निर्वहन हो रहा है। कल जब लोग पूछेगें कि दीवाली कैसी मनी? तो उन्हें बताने के लिए भी कुछ होना चाहिए। इन परिवार नियोजन वालों ने दुनिया का सत्यानाश कर दिया। वरना एक परिवार की दीवाली इतनी बड़ी होती थी, जितनी आज सारे मोहल्ले की होती है। 8-10 बच्चे होते तो उनकी उछल कूद और उत्साह से लगता कि आज कोई त्यौहार है। जब वे नए कपड़े पहन कर उत्साह से फ़ूलझड़ियाँ चलाते, आतिशबाजी करते। कोई किसी के पटाखे चुराकर जला देता तो किसी की पतलून के पांयचे में चकरी के पतंगे लग जाते। कितना आनंद होता उस दीवाली का।
क्या सोच रहे हो? चाय पीलो और मैने पानी गर्म कर दिया है, नहा धोकर तैयार हो जाओ। पूजा का मुहूर्त 6 बजे का है। आज तो कम से कम आलस छोड़ दो।
इस तरह संसार के रंगमंच पर न जाने कितने ही दृश्यों में पात्र को अभिनय करना पड़ता है और जीना पड़ता है इस दुनिया की वास्तविकता को। जो सपनों से तथा कल्पनाओं से कहीं अलहदा होती हैं। सभी मित्रों की दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
कल दशहरा मना लिया गया, रावण अपने धाम को विदा हो गया। मौसम में दीवाली महक आ गई है। सुबह-सुबह ओस के साथ मौसम दीवालियाना लगने लगा है। चाय का कप लिए करंज के पेड़ के नीचे कुर्सी डाले बैठा हूँ। इस एक महीने के त्यौहार में कितने काम रुक जाते हैं और कितने काम हो जाते हैं सोच रहा हूँ। रामगढ़ पर मेरी पुस्तक अधूरी है, उसे पूरा करने के लिए मुझे एक बार 2-4 दिनों के लिए रामगढ़ और जाना होगा। पिछले छ: महीने से योजना बना रहा हूँ। लेकिन कुछ न कुछ अड़ंगा आ जाता है। बरसात के चार महीने तो जंगल में घुसने लायक भी नहीं हैं। अब चुनाव का डंका बज चुका है। घर में रहकर ही राजनैतिक प्रतिस्पर्धा (लड़ाई) का आनंद लिया जाए। उसके बाद देखा जाएगा, कहीं जाना होगा तो। वैसे भी दीवाली का कितना काम पड़ा है।
दृश्य-2
बाईक स्टार्ट कर रहा हूँ, बाजार जाना है। तभी मालकिन पहुंच जाती है - दीवाली सिर पर आ गई है। रंगाई, पोताई, साफ़-सफ़ाई नहीं करवानी क्या? कोई चिंता ही नहीं है आपको। बाजार जा रहे हो तो रंग रोगन ले कर आना। परसों से काम शुरु हो जाना चाहिए।
अरे! हर साल रंग-रोगन तो टाटा-बिड़ला के यहाँ भी नहीं होता। पहले मकानों में चूना करना होता था तो लोग हर साल पुताई कर लेते थे। अब कितना मंहगा हो गया है, रंग-पेंट। दस हजार से कम का नहीं आएगा और पेंटरों का भी भाव बढा हुआ है। कहाँ ढूंढने जाऊंगा।
कहीं से लाईए ढूंढ कर। मुझे घर की रंगाई पुताई करवानी है। एक साल में घर की दीवारें कितनी गंदी हो जाती हैं। आपको नहीं दिखता क्या? मालकिन ने अपना आदेश सुना दिया और चली गई। मजबूरी युक्त हमारी मजदूरी शुरु हो गई।
दृश्य - 3
रंग-रोगन की दुकान में भारी भीड़। लोग सामान धक्का मुक्की कर सामान खरीद रहे हैं। सोच रहा हूँ कि ये भी मेरे जैसे ही होगें। इनकी मालकिनों ने भी इन्हें खदेड़ा होगा। दुकानदार की नजर मुझ पर पड़ती है - नमस्कार भैया! कैसे आना हुआ?
नमस्कार! यार मैं सोच रहा था कि तेरी बारात में जाने के बाद भूल गया ही गया। कम से कम बच्चों के बारे में पूछना चाहिए था कि कितने हुए। आज याद आया तो पता करने चला आया।
हे हे हे हे! आप भी मजाक करते हैं भैया। 10 साल बाद आपको याद आई।
अरे! मुझे रंग रोगन लेना है, इसलिए आया हूँ। इतना भी नहीं समझता। एशियन का इमल्शन पेंट लेना है। कलर कार्ड दिखा मुझे। हॉल के लिए 2 रंग। बैडरुम के लिए 2 रंग, दूसरे बैडरुम में 2 रंग। भगवान के कमरे के लिए अलग लेना है। बाकी जो बच गया किचन में लगा लेगें। छत और बार्डर का रंग मिला कर भीतर के लिए लगभग 15 लीटर लग जाएगा तथा बाहर के लिए स्नोशेम कलर भिजवा दे। साथ में 1 छ: इंची ब्रस, 1 दो इंची, एमरी पेपर 80 नम्बर, व्हाईट सीमेंट 5 किलो भी साथ में देना।
दृश्य -3
भोजन जारी है- बोल आए रंग रोगन के लिए? मालकिन ने प्रश्न दागा। मेरे जवाब देते तक ही डोर बेल बजी। लड़का रंग रोगन का डिब्बा लिए सामने खड़ा था। मालकिन के चेहरे पर विजयी मुस्कान की चमक आ गई थी। रख दो भैया, उधर कोने में। साथ ही मेरी ओर मुखातिब होते बोली- कल सुबह सातपारा जाकर पेंटर का पता करके आओ। अब अधिक समय नहीं रह गया है। घर की साफ़ सफ़ाई भी करनी पड़ती है। रंग रोगन के बाद फ़र्श पर कितना कचरा फ़ैल जाता है। काम वाली बाई भी नौंटकी करने लगती है। आपका क्या है, जब देखो तब कम्पयूटर पर डटे रहते हो। थोड़ा भी ध्यान न दूं तो सारा काम ऐसे ही पड़ा रहे। आखिर सारा काम मुझे ही करना पड़ता है। मैं सिर झुकाए खाने में व्यस्त हूँ। आदेश सुनाई दे गया। अब कल की कल देखी जाएगी।
दृश्य-4
रात के 10 बज रहे हैं और मैं नेपाल यात्रा के पोस्ट लेखन से जूझ रहा हूँ। सब कुछ याद है कि कुछ भूल रहा हूँ। कीबोर्ड की खटर पटर जारी है। इसी बीच मालकिन का आगमन होता है - रविवार को बच्चों के कपड़े लेने जाना है। फ़िर सब छंटे छंटाए मिलेगें।
चले जाना भई, मैने कब रोका है। - मैने कीबोर्ड खटखटाते हुए कहा।
आप सारा दिन इसी में लगे रहते हो। कभी फ़ुरसत है यह सब सोचने की।
अरे! सारे ही सोचने लग जाएगें तो काम बिगड़ जाएगा। परिवार का काम यही है कि सब सोचें और कार्य पर विजय पाएं। अब मैं भी सोचने लग गया तो तुम्हारे लिए सोचने के लिए क्या बचेगा। इसलिए जिसका काम उसी को साजे, नही साजे तो डंडा बाजे।
दृश्य-5
कीबोर्ड विराम मोड में है और माऊस का काम चल रहा है। पोस्ट में फ़ोटो अपलोड हो रही हैं। दिमाग सोचनीय मोड में है। इसी घर में बचपन में देखते थे कि पितृपक्ष समाप्ति और नवरात्रि के पहले दिन से ही दीवाली के काम शुरु हो जाते थे। कामगारों की रेलम पेल। खेत से फ़सल आने की तैयारी। खलिहान की लिपाई शुरु हो जाती थी। उरला गाँव का बुधारु टेलर सिलाई मशीन लेकर बैठक की परछी में डेरा लगा लेता था। पंजाबी की दुकान से थान के थान कपड़े आते थे और सभी बच्चों के नाप के हिसाब से 2-2 जोड़ी कपड़ों की सिलाई शुरु हो जाती थी। स्कूल से आते ही पहला काम होता था कि आज टेलर ने किसके कपड़े सीले हैं और कल किसकी बारी है। कपड़े की दुकान घर पर ही खुल जाती थी। टेलर की भी मौज हो जाती थी, एक ही घर के कपड़े सीने में उसकी दीवाली मन जाती थी।
दृश्य-6
पेंटर काम पे लगे हुए हैं, उनकी सहायता के लिए उदय महाराज तैयार हैं, कभी इस डिब्बे की ब्रश उस डिब्बे में तो कभी इधर का पेंट उधर। हम कम्प्यूटर पर चिपके हुए हैं। कभी झांक कर देख लेते हैं क्या काम हो रहा है। आप यहाँ बैठे है और उदय उन्हें काम नहीं करने दे रहा है - तमतमाते हुए मालकिन का आगमन होता है।
उदयSSSSSSS! क्यों फ़ालतू परेशान कर रहा है। काम करने दे। चल तुझे एक काम देता हूँ, देख कितनी सारी तितलियाँ बाड़े में उड़ रही हैं। दो-चार सुंदर की फ़ोटो ही खींच ले। कम्प्यूटर का वाल पेपर बनाएगें। खुशी खुशी उदय कैमरा लेकर मंदिर की तरफ़ चला जाता है।
ये श्रुति भी न, जब काम होगा तभी स्कूल जाएगी। नहीं तो छुट्टी कर लेती है। काम के बोझ के नीचे कोई नहीं आता। सारा दिन रात खटना पड़ता है। तब कहीं जाकर दीपावली का काम निपटता है। अभी तो बिजली मिस्त्री को बुलाना है। 2 महीने से बाहर की ट्यूब लाईट खराब पड़ी है। उसे ठीक करवाना है। कोई ध्यान ही नहीं देता। - मालकिन बड़बड़ा रही थी।
दृश्य-7
पेंटर आधा अधूरा काम छोड़ कर गायब हो गए हैं ।मालिक साहब स्टूल पर चढे दीवाल पर रोगन चढा रहे हैं। अरे! इतना तो रंग मत टपकाओ। फ़र्श पर गिरने के बाद चिपक जाता है, साफ़ नहीं होता।
अब ब्रश से चूह जाता है तो मैं क्या करुं? कौन सा मैने पेंटिंग का कोर्स किया है। अब काम वाले नहीं आए तो मैं क्या करुं। ब्लेड से खुरच कर साफ़ कर दूंगा। दीवाली का काम है करना ही पड़ेगा। वरना कौन सुबह-शाम सिर पर बेलन बजवाएगा। हाँ नहीं तो। जरा ड्रम इधर खिसकाना तो।
ये छिपकिलियाँ बहुत परेशान करती हैं। जहाँ देखो वहीं घुसे रहती हैं। फ़ोटो के पीछे, कपड़ों के पीछे, आलमारी के पीछे। किताबों के सेल्फ़ में। मरती भी नहीं है। कोई इलाज नहीं है क्या इनका?
इलाज तो मुझे भी नहीं मालूम। फ़ेसबुक पर लिख कर मित्रों की राय ले लेता हूँ। अगर वे कोई समाधान बताएगें तो अमल में लाया जाएगा।
फ़ेसबुक पर लगाया हुआ महत्वपूर्ण स्टेटस, ही-ही बक-बक की बलि चढ जाता है। लेकिन मगरमच्छ की बहनों से पैदा हुई समस्या का हल नहीं मिलता।
दृश्य-8
पटाखे लाने हैं कि नहीं?
क्या करना है पटाखे लाकर। पिछले साल ही 2500 के लाए थे और किसी ने चलाए भी नहीं। अभी तक पड़े हैं घर में। फ़ालतू खर्च करने से क्या हासिल होगा।
दीवाली है, लोग पटाखे चलाते हैं। फ़िर आदि, हनी, श्रुति, श्रेया, उदय को तो पटाखे चलाने हैं। आप चलाओ चाहे न चलाओ।
रोज अखबार वाले और टीवी वाले कह रहे हैं कि पटाखे चलाने से ध्वनि प्रदूषण एवं वायू प्रदूषण होता है। साथ ही आचार संहिता लगने के कारण आज ही चुनाव आयोग का मेल-पत्र आया है कि रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक पटाखे चलाने पर प्रतिबंध है। अब पटाखे चलाने वालों को पुलिस पकड़ कर ले गई तो समझो मन गई दीवाली। - मैने टालने की कोशिश करते हुए कहा।
कोई पुलिस वाला पकड़ कर नहीं ले जाएगा। साल भर का त्यौहार है, इस दिन भी क्या पटाखे नहीं चलाने देगें। जाओ लेकर आओ और ज्यादा पटाखे नहीं लाना। सभी एक एक पैकेट ले आना।
बाजार से वापसी लौटते हुए उदय के पास एक बड़ी पालिथिन में भरे हुए पटाखे दिखाई देते हैं। इतने सारे क्यों ले आए? मैने तो थोड़े से लाने कहा था।
मुझसे थोड़ा सामान नहीं खरीदा जाता। साला ईज्जत का कचरा हो जाता है। तुम्हे थोड़ा सामान खरीदना हो तो किसी और से मंगवा लिए करो। मुझे मत कहे करो। हाँ ! साथ में लट्टूओं की झालर भी ला दी हैं 6 नग। मुझे मत कहना फ़िर बाजार जाने के लिए।
दृश्य- 9
आम के पत्तों को तोड़ कर नंगा करने पर तुले हैं नंदलाल और उसके लड़के। अरे! सारे पत्ते तुम ही तोड़ ले जाओगे तो दीवाली में हम कहाँ से लाएगें? मैने उन्हें झिड़कते हुए कहा।
दादी से पूछ कर तोड़ रहे हैं।
ले भई, जब दादी ने कह दिया तो पूरा पेड़ ही उखाड़ कर ले जाओ। कल तो कुछ मरदूद फ़ूल तोड़ने भी आएगें। - मैने कहा
तब तक मालकिन भी मैदान में आ जाती है- सब इन्हीं लोग ले जाते हैं दादी की सिफ़ारिश से, हमारे लिए तो बचते ही नहीं। आंगन लीपने के लिए गोबर भी नहीं आया है। श्रुति रंगोली का सारा सामान लेकर आ गई है। गोबर आएगा तो लीपा जाएगा, तब रंगोली बनेगी। इतवारी के लड़के को कब से खोवा (मावा) लाने कही हूँ, अभी तक लेकर नहीं आया है। कितना काम पड़ा है। कब खोवा लेकर आएगा तो कब गुलाब जामुन बनेगें।
मैने तो मना कर दिया था खोवे के लिए। आजकल खोवा खराब आ रहा है और मंहगा भी कितना है। 10 रुपए किलो में कोई कुत्ता भी नहीं पूछता था। आज 400 रुपए किलो हो गया है। वह भी शुद्ध होने की कोई गारंटी नहीं। नकली खोवा खाओ और अपनी तबियत खराब करो। 400 का खोवा और 1400 की दवाई।
आपकी चले तो कोई त्यौहार भी न मने। मैने कहा है उसे खोवा लाने के लिए। अगर तबियत खराब होगी तो मेरी होगी। देखा जाएगा, कम से कम दीवाली तो जी भर के मनाएं।
दृश्य -10
बरगद के पेड़ के नीचे कैमरा लिए बैठा हूँ, कुछ बगुले गाय की पीठ पर सवार हैं और लछमन झूला झूलने का मजा ले रहे हैं। बाड़े में चारों तरफ़ नजर दौड़ाता हूँ तो सूना सूना लगता है। लगता है जैसे काटने को दौड़ रहा हो। कभी इसी जगह पर त्यौहार पर 40-50 परिजन इकट्ठे होते थे। उस आनंद के कहने ही क्या थे। लक्ष्मी पूजन करने के बाद आशीर्वाद लेने-देने का क्रम चलता था और आतिशबाजी रात भर चलती थी। अब ऐसा कुछ नहीं है। कुछ बाहर चले गए, कुछ धरती में समा गए। कुछ अलग हो गए अपने - अपने कुटूंब कबीले को लेकर।
कैसा मजा रह गया है अब इन त्यौहारों का? सिर्फ़ परम्परा का निर्वहन हो रहा है। कल जब लोग पूछेगें कि दीवाली कैसी मनी? तो उन्हें बताने के लिए भी कुछ होना चाहिए। इन परिवार नियोजन वालों ने दुनिया का सत्यानाश कर दिया। वरना एक परिवार की दीवाली इतनी बड़ी होती थी, जितनी आज सारे मोहल्ले की होती है। 8-10 बच्चे होते तो उनकी उछल कूद और उत्साह से लगता कि आज कोई त्यौहार है। जब वे नए कपड़े पहन कर उत्साह से फ़ूलझड़ियाँ चलाते, आतिशबाजी करते। कोई किसी के पटाखे चुराकर जला देता तो किसी की पतलून के पांयचे में चकरी के पतंगे लग जाते। कितना आनंद होता उस दीवाली का।
क्या सोच रहे हो? चाय पीलो और मैने पानी गर्म कर दिया है, नहा धोकर तैयार हो जाओ। पूजा का मुहूर्त 6 बजे का है। आज तो कम से कम आलस छोड़ दो।
इस तरह संसार के रंगमंच पर न जाने कितने ही दृश्यों में पात्र को अभिनय करना पड़ता है और जीना पड़ता है इस दुनिया की वास्तविकता को। जो सपनों से तथा कल्पनाओं से कहीं अलहदा होती हैं। सभी मित्रों की दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
दीपावली का शानदार कोलाज !
जवाब देंहटाएंदीवाली की मंगलकामनायें।
" दीपावली मुबारक"
जवाब देंहटाएं" दीपावली की हार्दिक बधाईयां "
सुख समृद्धि तथा एश्वर्य का प्रतीक पावन "दीपोत्सव" आपके लिए सपरिवार मंगलमय हो!
सुन्दर शब्द चित्रों से सुसज्जित दिलचस्प आलेख . आभार. दीपावली की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंबहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ-समीर लाल ’समीर’
जवाब देंहटाएं:)इन परिवार नियोजन वालों ने दुनिया का सत्यानाश कर दिया।. सही है , पहले तो घर घर के लोग ही दिवाली माना लेते थे, आजकल तो भीड़ जुटानी पड़ती है :)
जवाब देंहटाएंदिवाली जी हार्दिक शुभकामनाए।
और दृश्य ११ -
जवाब देंहटाएंआपकी इतनी लम्बी ठेली पोस्ट को पढ़कर कमेन्ट करने लगे है जबकि इस वक्त लोग मस्ताते हुए पटाखे छोड़ने में लगे है :)
काश इस ब्लोगरी के चक्कर में ना पड़ते तो हम भी यहाँ टिपयाने की जगह पटाखे फोड़ रहे होते !! :) :)
शानदार दृश्यावली… दीपावली की ढेर सारी शुभकामनायें ...
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव पर हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंऐसे फैलती है इतिहास से सम्बंधित भ्रांतियां
कुछ उनकी कुछ अपनी नहीं ...
जवाब देंहटाएंदीपावलि पर अधिकांश घर में ऐसे ही दृश्य होते हैं ....
पर हमारे जैसे कुछ घरों में अवश्य उल्टा दृश्य चलता रहता होगा ...
जहां गुस्से में मालिक बडबडाते हैं और मालकिन का कीबोर्ड चलता रहता है ...
मालकिन का जबाब होता होगा कि सोंचने के लिए आप हैं ही तो सब लोग माथा क्यू खराब करें ??
ललित भाई. दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ....
जवाब देंहटाएंछिपकली भागने की टिक्की १० रूपये की आती है, अजमाया नुस्खा है.. वैसे कहते हैं की जिस जहां लक्ष्मी होती है वहीँ छिपकली भी होती है... बाकी आपकी मर्जी.
बहुत खूब दीपोत्सव शुभ हो !
जवाब देंहटाएंanokhe dip ki mala BADHAI BHAI JI
जवाब देंहटाएं😂😂😂जय हो
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