नेपाल यात्रा प्रारंभ से पढें
छत्तीसगढ़ की सीमा समीप आ रही थी, घर पहुंचने की व्यग्रता बढते जा रही थी। शहडोल से हम अनूपपुर की ओर बढ रहे थे। तभी पाबला जी को याद आया कि हमारे ब्लॉगर साथी धीरेंद्र भदौरिया जी व्यंकटनगर में निवास करते हैं। तो मैने झट उन्हें फ़ोन लगाया। फ़ोन पर वे मिल गए, मैने बताया कि हम लौट रहे हैं नेपाल से। व्यंकटनगर से पेंड्रा होते हुए जाएगें। तो उन्होनें घर आने का निमंत्रण दिया। मैने हिसाब लगाया कि दोपहर तक हम वहाँ पहुंच जाएगें। उन्हे भोजन व्यवस्था के लिए कह दिया और कहा कि ठाकुर भोजन नहीं करेगें। तो उन्होने हँसते हुए कहा कि हम आपको ब्राह्मण भोजन ही कराएगें।
छत्तीसगढ़ की सीमा समीप आ रही थी, घर पहुंचने की व्यग्रता बढते जा रही थी। शहडोल से हम अनूपपुर की ओर बढ रहे थे। तभी पाबला जी को याद आया कि हमारे ब्लॉगर साथी धीरेंद्र भदौरिया जी व्यंकटनगर में निवास करते हैं। तो मैने झट उन्हें फ़ोन लगाया। फ़ोन पर वे मिल गए, मैने बताया कि हम लौट रहे हैं नेपाल से। व्यंकटनगर से पेंड्रा होते हुए जाएगें। तो उन्होनें घर आने का निमंत्रण दिया। मैने हिसाब लगाया कि दोपहर तक हम वहाँ पहुंच जाएगें। उन्हे भोजन व्यवस्था के लिए कह दिया और कहा कि ठाकुर भोजन नहीं करेगें। तो उन्होने हँसते हुए कहा कि हम आपको ब्राह्मण भोजन ही कराएगें।
शहडोल ( सहस्त्र डोल) |
एक स्थान पर हमने नाला देख कर इसे दिशा मैदान के लिए उपयुक्त स्थान समझा। यहां से निवृत होने पर आगे बढे। इसके बाद धीरेंद्र भदौरिया जी बार बार फ़ोन पर हम लोगों का लोकेशन लेते रहे। उन्होने कहा कि अमलाई चचाई होते हुए आप व्यंकट नगर पहुंचिए। एक बारगी तो मैने व्यंकटनगर जाना त्याग दिया था। हम लोग अमरकंटक की राह पर बढ गए थे। लेकिन धीरेन्द्र जी के पुन: आग्रह को त्याग नहीं सके। अमलाई और चचाई की तरफ़ चल पड़े। यहां से बिलासपुर लगभग 200 किलोमीटर था और बिलासपुर से रायपुर 110 किलोमीटर। आज हमें किसी भी हालत में घर पहुंचना था। मालकिन का फ़ोन आने पर हमने कह दिया था कि रात तक हम घर पहुंच जाएगें। रास्ते में एक तिरपट पंडित दिखाई दिया। बस लग गया था कि आगे का सफ़र अभी भी कठिनाईयों भरा है।
नाले किनारे दो ब्लॉगर |
व्यंकटनगर छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश की सीमा पर स्थित है। व्यंकट नगर से छत्तीसगढ़ की सीमा प्रारंभ हो जाती है। भदौरिया जी ने बताया कि वे व्यंकट नगर में सड़क के दांई तरफ़ की दुकान पर बैठे हैं। व्यंकट नगर में प्रवेश करने पर भदौरिया जी प्रतीक्षा करते दिखाई दिए। यहाँ पहुंच कर पता चला कि उनका गाँव पोंड़ी यहाँ से 6-7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अब एक रेल्वे लाईन पार करके हम इनके गांव पहुचे। भदौरिया जी यहाँ के सरपंच भी रह चुके हैं तथा राजनीति में अच्छा रसूख बना रखा है। गाँव से बाहर आने पर इनका फ़ार्म हाऊस दिखाई दिया। किसी फ़िल्म के बंगले की तरह बाग बगीचा सजा रखा रखा है। पुराने जमाने के ठाकुरों जैसी नई हवेली बनी हुई है।
उच्चासनस्थ धीरेन्द्र सिंह भदौरिया |
भदौरिया जी के घर पहुंचने पर पाबला जी तो सोने चले गए और हमने स्नान करने का कार्यक्रम बना लिया। कैसी भी परिस्थितियाँ हो दैनिक स्नान के बिना रहा नहीं जा सकता। एक बार भोजन न मिले, स्नान होने से फ़ूर्ति आ जाती है। इधर भोजन भी तैयार हो गया था। गिरीश भैया और हमने स्नान किया। भोजन लग गया तो पाबला जी भी उठ गए। भोजनोपरांत भदौरिया जी ने ब्लॉगिंग रुम दिखाया। उनकी कुछ तकनीकि समस्या का हल पाबला जी ने किया। अब हमारा लौटने का समय हो रहा था। आसमान में बारिश के आसार दिखाई दे रहे थे। पाबला जी ने पालिथिन की आवश्यक्ता महसूस की। लेकिन भदौरिया जी के यहाँ इंतजाम नहीं हो सका। उन्होने कहा कि व्यंकट नगर में मिल जाएगी, नहीं तो पेंड्रारोड़ में तो मिलना तय है।
बरसात शुरु |
जैसे ही हम पोंड़ी से बाहर निकले, बूंदा बांदी शुरु हो गई। व्यंकट नगर के बाद पेंड्रा रोड़ तक की सड़क बहुत खराब निकली। इकहरी सड़क पर गड्ढे ही गड्ढे थे। धीरे-धीरे हम आगे सरकते रहे। लगभग 4 बजे हमने गौरेला में प्रवेश किया। अब पेंड्रा में हमने पालिथिन ढूंढनी प्रारंभ की। तब तक बरसात बढ चुकी थी। 10 मिनट की मूसलाधार वर्षा में ही पेंड्रा की सड़कों पर पानी भर चुका था। नाली और सड़क बराबर हो चुकी थी। सुरभि लाज वाले चौराहे पर हमने कई दुकानों पर पालिथिन तलाश की, नहीं मिली। फ़िर एक दुकानदार ने बताया कि चौराहे पर फ़लां दुकान में मिल जाएगी। मैने पाबला जी से गाड़ी में छाता होने के बारे में पूछा तो उन्होने छाता निकाल कर दिया।
गांव की डगर पर मातृशक्ति |
मैं छतरी लेकर बरसते मेह में पालिथिन लेने गया। बरसात बहुत अधिक हो रही थी। दुकानदार से 2 मीटर पालिथिन ली और बांधने के लिए साथ में सुतली भी। गिरीश भैया ने चद्दर पकड़ रखी थी। पानी गाड़ी के भीतर आने लगा था। जिससे बैग भीग रहे थे। हमने बैग बीच वाली सीट पर रख लिए। अब बरसात रुके तो पालिथिन भी लगाई जाए। नगर की गलियों में चक्कर लगाते रहे, न रास्ता मिला, न पालिथिन लगाने के लिए स्थान। पेंड्रा से बिलासपुर जाने के लिए 3 रास्ते हैं। पहला जटका पसान कटघोरा होते हुए बिलासपुर। 2सरा कारीआम, मझगंवा होते हुए रतनपुर से बिलासपुर और 3सरा अचानकमार के जंगलों से कोटा होते हुए बिलासपुर। इसमें पहला मार्ग लम्बा है। दूसरा मार्ग खराब है, एक बार हम पहले भुगत चुके थे। तीसरे मार्ग पर जाना था।
तेरा पीछा न छोड़ूंगा……… |
मुझे याद था कि रेल्वे लाईन पार करने के बाद दो रास्ते निकलते हैं बांई तरफ़ बिलासपुर के लिए तथा दांई तरफ़ अमरकटंक के लिए। जब हम रास्ता ढूंढ रहे थे तब मालकिन का फ़ोन आया - कहां तक पहुचे हैं? अभी पेंड्रा में है, बिलासपुर के लिए निकल रहे हैं। - इतनी देर कैसे हो गई? अभी फ़ोन बंद करो, हम बारिश में फ़ंसे हैं बाद में बात करते हैं। - हमारा दिमाग भन्ना गया। जैसे तैसे करके हमें रास्ता मिल गया। एक जगह गाड़ी खड़ी करके डिक्की पर पालिथिन चढा ली। चलो अब बरसात भी होती है तो अधिक हानि नहीं होगी। जीपीएस वाली बाई ने कई बार धोखे से खराब रास्ते में डाल दिया था इसलिए उस पर सहज विश्वास नहीं हो रहा था। अगर रात को कोटा वाले जंगली रास्ते पर पड़ गए तो फ़िर लक्ष्मण झूला झूलते हुए रात काटनी पड़ती तथा इस मार्ग पर रात में अन्य वाहन भी नहीं चलते।
बढते कदम |
अब हम रास्ते पर बढ चले थे। केंवची पहुंचते तक शाम ढल चुकी थी। केंवची के होटल में हमने चाय पी और अचानकमार के जंगल में प्रवेश कर गए। भारी वाहनों के लिए शाम छ: बजे के बाद प्रवेश वर्जित है। केंवची के प्रवेश करने पर घाटी पर ही गाड़ी चलती है। एक स्थान पर सड़क किनारे महिला दिखाई दी। उसने सलवार सूट पहन रखा था। सुनसान सड़क पर महिला दिखाई देने से सबसे पहले ध्यान आता है चमड़े के जहाज का व्यवसाय तथा दूसरा ध्यान आता है कोई परेतिन हो सकती है। हम परीक्षण करने के लिए रुके तो नहीं, लेकिन गिरीश भैया के साथ चर्चा अवश्य शुरु हो गई। नारी विमर्श पर गहन चर्चा के साथ हास परिहास होते रहा और गाड़ी आगे बढते रही।
चलती है गाड़ी उड़ती है धूल |
पहाड़ी समाप्त होने पर वन विभाग का चेक नाका आता है। वहाँ गाड़ी का नम्बर और आने का समय दर्ज किया जाता है। फ़ारेस्ट वाले ने एक सवारी भी लाद दी हमारे साथ। उसे अचानकमार गाँव जाना था। लाठीधारी अनजान आदमी को हमने गाड़ी में बैठा लिया। उसके बैठते ही दारु का भभका सीधा नाक से टकराया। लगा कि चौकी से ही हैप्पी बर्थ डे मना कर आ रहा है या हो सकता है चौकी तक महुआ पहुंचाने गया होगा। उसे हमने अचानकमार में छोड़ा और आगे बढ़े। रात के 8 बजे होगें। लग रहा था कि 9 बजे तक बिलासपुर पहुंच पाना संभव नहीं है। मौसम बरसाती हो गया था। कोटा होते हुए हम बिलासपुर रिंग रोड़ से निकल लिए। यह रिंग रोड़ लगभग 15 किलोमीटर का है और सीधे हिर्री मांईस के समीप जाकर निकलता है।
नेपाल से लौटते तक लौकी 60 रुपए किलो हो गई |
पिछली गर्मी में आया था तो सड़क की हालत अच्छी थी लेकिन बरसात में ओव्हर लोड गाड़ियों ने इसकी गत मार दी। हमारी गाड़ी की चाल नहीं सुधरी। हम वैसे ही लड़खड़ाते हुए आगे बढते रहे। आधे - पौन घंटे के बाद हम मुख्य मार्ग तक पहुच चुके थे। रायपुर बिलासपुर मार्ग का निर्माण चल रहा है। इसे 4 लाईन बनाया जा रहा है। नींद की झपकी आने लगी थी। हिर्री के आगे चलकर एक स्थान पर ढाबा दिखाई दिया। यहाँ हमने उड़द की काली दाल के साथ तंदूरी रोटियों से पेट भरा। ढाबे वाले सरदार जी पुराने पत्रकार निकले। गिरीश जी ने वर्षों के बाद भी उन्हें पह्चान लिया। सड़क पर ढाबा चलाने के लिए एक - दो अखबारों की एजेंसी लेने से धौंस जम ही जाती है।
गुड़हल का फ़ूल धीरेंद्र भदौरिया जी के बगीचे में |
भोजन के बाद हमें नींद आने लगी। मेरी तो आँखे खुल ही नहीं रही थी। आंखे खोलने का प्रयत्न करता लेकिन आँखों को बंद होने से नहीं रोक पा रहा था। पाबला जी की हालत भी कुछ वैसी ही थी। हमने गाड़ी सड़क के किनारे लगा कर सोने का फ़ैसला किया। जब आँख खुल जाएगी तो आगे चल पड़ेगें। सीट लम्बी करके सो गए। लेकिन नींद आती कहाँ है ऐसी परिस्थितियों में। थोड़ी देर बाद पाबला जी हड़बड़ा कर उठे। मेरी आँख खुल गई, लगा कि जैसे उनकी सांस बंद हो गई है। उन्होने हाथ के इशारे मुझसे पानी मांगा। मैने तुरंत पानी की बोतल उन्हे पकड़ाई। जब उन्होने सांस ली तो मेरी जान में जान आई। वे बोले- रात को सोने भी नहीं देता, रेल पटरियों पर बिखरा नजर आता है। मैं चुप हो गया और उनसे सोने का प्रयत्न करने को कहा।
हिर्री मांइस के पास के ढाबे में |
थोड़ी देर आराम करने के बाद हम फ़िर चल पड़े। रात गहराती जा रही थी। बिलासपुर रायपुर मार्ग पर रात में गाड़ी चलाना भी खतरे से खाली नहीं है। सारी हैवी लोडेड ट्रकें चलती है और रोज कोई न कोई हादसा होते ही रहता है। अगर आप सही चल रहे हैं तो कोई भरोसा नहीं ट्रक वाला ही आपसे भिड़ जाए। धरसींवा चरोदा से आगे बढने पर हम विधानसभा वाले रोड़ पर मुड़ गए। इधर से जल्दी पहुंचने की संभावना थी। सड़क और प्लाई ओव्हर के कारण लाईटों की चकाचौंध में रोड़ ही समझ नहीं आया। थोड़ी देर तक पाबला जी से नोक झोंक होते रही। फ़िर उन्होने चुप करवा दिया और आगे बढे। थोड़ी देर में गिरीश जी के घर पहुंच गए। गिरीश जी को घर छोड़ा। मेरा नेट श्रेया रायपुर ले आई थी। बिना नेट के जग सूना।
ब्लेक बाक्स सफ़र का साथी |
नेट लेने के लिए हमने फ़ैसला किया कि कृषक नगर से नेट लेकर नई राजधानी होते हुए घर पहुंच जाएगें। भाई को फ़ोन करके बता दिया कि हम पहुंच रहे हैं वो नेट लेकर घर के बाहर मिले। वैसा ही हुआ, हम अब नई राजधानी होकर अभनपुर पहुंच गए। लगभग सुबह के 4 बज रहे थे। पाबला जी को यहाँ से 50 किलोमीटर दूर भिलाई जाना था। मैं घर के गेट के सामने उतर गया। पाबला जी सत श्री अकाल कह कर मेरी यात्रा को विराम दिया और आगे बढ गए। सत श्री अकाल के उद्भोष के साथ हमारी यात्रा प्रारंभ हुई थी। करतार ने हमारी साप्ताहिक यात्रा को सफ़ल बनाते हुए सकुशल घर पहुंचा दिया। इस तरह हमारी नेपाल यात्रा सम्पन्न हुई। मारुति इको ने विश्वास के साथ इतना लम्बा सफ़र निभाया। उसके साथ जीपीएस वाली बाई को भी धन्यवाद। आज भी सज्जे-खब्बे की उसकी मधुर आवाज मेरे कानों में गुंजती है।
yaatra vrittaant ka samapan ati sundar ...........badhaai lalit bhaai ....
जवाब देंहटाएंyaatra vrittaant ka samapan ati sundar ...........badhaai lalit bhaai ....
जवाब देंहटाएंसुंदर वर्णन
जवाब देंहटाएंपानी की बोतले और पाब्ला जी गजब ढा रहे हैं बस कुछ अकेल अकेले से नजर आ रहे हैं !
नेपाल यात्रा में लौकी कैसे आ गया ??
जवाब देंहटाएंAAPKE SATH YATRA KHUBSURAT NA HO AISA KABHI HO SAKATA HAI
जवाब देंहटाएंTIS PAR PAABALA BHAI SAHAB AUR GIRISH BHAI JI KI SANGAT WAAH JI
आखिर यात्रा संपन्न हुई !
जवाब देंहटाएंतिरपत पंडित माने ?
ललित भाई ...कहाँ कहाँ की यात्रा करते हो आप
जवाब देंहटाएं:))
यादगार यात्रा रही।आज ही पूरी यात्रा पढ ली।
जवाब देंहटाएंअद्भुत अनूभूत वर्णन।
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