भारतीय गणतंत्र एक विशाल भूभाग का स्वामी है। देश है जहाँ बारहों महीने सभी मौसम दिखाई देते हैं ऐसा विश्व में अन्य किसी देश में नहीं होता। एक तरफ़ सूखा पड़ता है तो दूसरी तरफ़ बाढ का विनाशकारी तांडव रहता है। आज यही तांडव तमिलनाडू के तटीय क्षेत्र में दिखाई दे रहा है, जिससे जनजीवन बूरी तरह प्रभावित हो गया और करोड़ों अरबों के संसाधनों की हानि के साथ जनहानि भी दिखाई दे रही है। इसका मुख्य कारण वर्षा जल के उचित निकासी के साधन न होना है। पहले छोटे नगर ग्राम होते थे इतनी समस्या नहीं होती थी, अब विशाल महानगर बन गए है। जनसंख्या विस्फ़ोट के साथ निवास के लिए कोई कहीं पर भी बस गया है। उस क्षेत्र का भूगोल का अध्ययन किए बिना ही बड़ी-बड़ी कालोनियों का विकास हो गया है जिससे नदियों का मार्ग अवरुद्ध होना त्रासदी कारक हो गया है।
नदियों का अपना एक तंत्र होता है, सहसा ही कहीं अत्यधिक वर्षा होने से नदियों का निर्माण नहीं होता है। उससे पहले वर्षाजल नालों, उपनदियों, सहायक नदियों से होते हुए मुख्य नदी तक पहुंचता है तब कहीं असंख्य धाराएं चलकर एक नदी का निर्माण करती हैं तथा ढलान पर कई धाराओं में बंट कर समुद्र में समाहित होती है। शहरों में लोगों ने इन नालों, उपनदियों के प्रवाह क्षेत्र को बंद कर उस पर निर्माण कार्य कर लिए हैं, जिसके कारण नदियों का मार्ग अवरुद्ध हो गया है और अत्यधिक वर्षा के कारण जल निकासी का मार्ग नहीं मिलने के कारण सारा पानी शहर में घुस जाता है। अगर जल निकासी का उचित साधन हो तो शहर या नगर डूबने जैसी घटना नहीं हो सकती।
प्रकृति ने सुरक्षा व्यवस्था स्वयं की है, परन्तु मानव ने उसके सुरक्षा तंत्र को तहस नहस कर डाला है। नदियों के अपवाह क्षेत्र को अवरुद्ध करने के साथ उनके प्रवाह क्षेत्र में भी कब्जा कर बसेरा कर लिया है। जल, अग्नि एवं वायु की शक्ति का कोई पारावार नहीं है, वह एक झटके में ही बड़े से बड़े निर्माण का सफ़ाया कर देती है, जिससे मानवों के साथ अन्य प्राणी भी प्रभावित होते हैं और जान माल से हाथ धो बैठते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण केदारनाथ की त्रासदी है। लोगो नें नदी के प्रवाह क्षेत्र में कब्जा करके बड़े निर्माण कर लिए थे। काश्मीर में भी इसी कारण बाढ का तांडव जन धन के विनाश का कारण बना।
इस विनाश का एक महत्वपूर्ण कारण जलवायु परिवर्तन भी है। जलवायु परिवर्तन से होने वाली गर्मी के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं और समुद्र जल स्तर बढ़ रहा है। इसके लिए वैज्ञानिक दशको से चेतावनी दे रहे हैं कि अगर ग्लेशियर इसी तरह पिघलते रहे तो कई देशों का नामोनिशान मिट जाएगा। बांग्ला देश के तटीय क्षेत्र में प्रतिवर्ष लगभग 20 से 30 भूमि को समुद्र प्रतिवर्ष निगल रहा है। एक जमाने में राजस्थान में कभी कोई बाढ के विषय में सोच नहीं सकता था। तीन चार वर्षों पूर्व भारी वर्षा ने जयपुर में बाढ के हालात पैदा कर दिए। अचानक बाढ आने पर पता चला कि वर्षा जल निकालने के लिए नदी नालों का साधन ही नहीं है।
तमिलनाडू के मद्रास शहर में भी यही कमियां विनाश का कारण बन रही हैं। अब समय आ गया है कि नगरों की बसाहट को दुरुस्त किया जाए। ट्रिब्यूटरियों की साफ़-सफ़ाई कर उन्हें जल प्रवाह ले जाने लायक बनाया जाए। इसके साथ ही नई बसाहटें इस तरह बने कि ट्रिब्यूटरियों का उल्लंघन न हों। प्रकृति के द्वारा बनाए गए जल प्रवाह मार्गों को बंद न कर उनको सम्मानपूर्वक यथा स्थिति में रखा जाए। नगरों में जलप्रवाह की निकासी हेतू समुचित साधनों का निर्माण एवं विकास होना चाहिए तभी बाढ इत्यादि से होने वाली त्रासदियों से बचा जा सकता है। अन्यथा प्रकृति के साथ खिलवाड़ मानव सभ्यता के विनाश का प्रमुख कारक बनेगा।
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