रंगीन कैलेंडरों में हावड़ा ब्रिज (रविन्द्र सेतू) साठ सत्तर के दशक में खूब छाया रहता था और यह कैलेंडर गांव के हर घर में मिल जाते थे। भले ही तारीख देखने के काम न आते हों, पर नील गगन का पार्श्व लिए हावड़ा ब्रिज चमकता हुआ दिखाई देता था। यह कोलकाता का "लैंड मार्क" बना हुआ है, किसी के चित्र में हावड़ा ब्रिज दिख गया तो समझ लो वह कोलकाता पहुंच गया। इसे प्रसिद्ध बनाने में फ़िल्मवालों का योगदान भी कुछ कम नहीं है। खैर कुछ भी हो, यह अभियांत्रिकी अनुपम रचना है। यह पुल कोलकोता शहर और हावड़ा को जोड़ने का एक मात्र साधन था। अब तो विद्यासागर सेतू भी बन गया है। इससे पहले हुगली नदी पर तैरता हुआ पुल था, नदी में जल स्तर बढ़ने पर पुल पर ट्रैफ़िक जाम हो जाता था।
अंग्रेजो ने तैरते हुए पुल के स्थान पर स्थाई ब्रिज बनाने का निर्णय 1933 में लिया और निर्माण योजना पर कई वर्षों काम करने के बाद 1937 में निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ और इसे 1943 में आम जनता के लिए खोल दिया गया। 14 जून 1965 को इसका नाम हावड़ा ब्रिज से रविन्द्र सेतू कर दिया गया। अनुमानत: इस बड़े पुल के निर्माण की लागत 333 करोड़ रुपए थी। यह दुनिया के 6 ब्रैकट पुल में से एक है। यह इस्पात की 26,500 टन से बनाया गया है। अब यह एक लाख वाहनों और पैदल चलने वालों को रोज़ ढोता है।
कुछ दिनों पूर्व डायचे वेले की एक रिपोर्ट में बताया गया कि यह पुल इंसानी थूक के कारण खतरे में हैं। यह पुल चंद खंभों पर टिका है। इंजीनियरों का कहना है कि इन खंभों को अब जंग लगने लगा है और इस जंग की वजह है पान और गुटखा। इस पुल से रोजाना लाखों लोग पान चबाते हुए गुजरते हैं और थूकते हुए निकल जाते हैं। कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के चीफ इंजीनियर के अनुसार जिन खंभों पर पुल टिका है उनमें से कुछ के आधार की मोटाई तो पिछले तीन साल में आधी रह गई है। यही हाल रहा तो मरम्मत के लिए पुल को बंद किया जा सकता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि पान, गुटखा में ऐसी चीजें होती हैं जो बेहद खतरनाक किस्म के यौगिक बना सकती हैं और स्टील को खत्म कर सकती हैं. कोलकाता की सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैब के डाइरेक्टर चंद्रनाथ भट्टाचार्य बताते हैं कि थूक के साथ मिलकर पान में मौजूद चीजें स्टील पर एसिड सरीखा असर छोड़ती हैं। यह पुल 2,300 फुट लंबा है तथा गर्मी के दिनों में इसकी लंबाई 3 फुट तक बढ़ सकती है। वैसे यह पुल बेहद मजबूत है और बरसों से बंगाल की खाड़ी के तूफानों को सहन कर रहा है।
बचपन में सुनते थे (देखा तो था नहीं) कि बड़े जहाज आने पर हावड़ा ब्रिज एक किनारे की तरफ़ इकट्ठा हो जाता है और जहाज निकलने पर पुन: पहले जैसा हो जाता है। अंग्रेज गए तो इसकी चाबी ले गए और पुल जाम हो गया। बचपन जाने के बाद इस पुल को देखने का अवसर कई बार मिला परन्तु यह कथा कोरी गप्प ही निकली। फ़िर भी अभियांत्रिकी यह अनुपम उदाहरण आज भी मजबूती के साथ खड़ा है, यही नहीं, 2005 में एक हजार टन वजनी कार्गो जहाज इससे टकरा गया था, तब भी पुल का कुछ नहीं बिगड़ा लेकिन इंसान की एक छोटी सी लापरवाही को यह सहन नहीं कर पा रहा है, टैनिन के मिश्रण वाला थूक इसका दुश्मन बन गया है। देखिए हावड़ा ब्रिज के कुछ चित्र मेरे कैमरे की नजर से……
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " एक थी चिरैया " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंअच्छी और नयी जानकारी पान खाना इंसानो के लिए बुरा तो था ,पर अब बेज़ानो के लिए भी बुरा साबित हो रहा है|
जवाब देंहटाएंजय हो
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