भ्रष्टाचार का लगातार विरोध हो रहा है और उसके बावजूद भी हजारों करोड़ के घोटाले सामने आ रहे हैं। कलफ़दार नेता से लेकर बाबा सन्यासी तक ढोल पीट रहे हैं। नेता अधिकारियों एवं व्यापारियों के मिले जुले गिरोहों द्वारा जनता के धन पर डाले गए डाकों की फ़ेरहिस्त लम्बी है।
आजादी बचाओ आन्दोलन चलाने वाले स्व: राजीव दीक्षित 2 दशक तक स्विस बैंक के काले धन की वापसी पर देश भर में प्रवचन करते रहे और भ्रष्टाचार के आंकड़े देश की जनता तक पहुंचाते रहे।
एक समय ऐसा आया कि उनके भी जन जागरण के साधन चूक गए। राजीव दीक्षित के बाबा रामदेव से मिलन के पश्चात स्विस बैंक एवं भ्रष्टाचार के मुद्दे को बाबा जी ने अपने हाथों उठा कर मुद्दा बना लिया। अब ये भी इसी मुद्दे के साथ चुनाव की वैतरणी पार करना चाहते हैं।
आजादी बचाओ आन्दोलन चलाने वाले स्व: राजीव दीक्षित 2 दशक तक स्विस बैंक के काले धन की वापसी पर देश भर में प्रवचन करते रहे और भ्रष्टाचार के आंकड़े देश की जनता तक पहुंचाते रहे।
एक समय ऐसा आया कि उनके भी जन जागरण के साधन चूक गए। राजीव दीक्षित के बाबा रामदेव से मिलन के पश्चात स्विस बैंक एवं भ्रष्टाचार के मुद्दे को बाबा जी ने अपने हाथों उठा कर मुद्दा बना लिया। अब ये भी इसी मुद्दे के साथ चुनाव की वैतरणी पार करना चाहते हैं।
राजतंत्र में राजा मठ और सेठ का गठजोड़ ही प्रजा पर राज करता था। मठ आम जनता को धर्म से बांध कर रखते थे तो सेठ धन से। राजा इन दोनो का पोषण करता था। कुल मिलाकर इनके चंगुल में सारी प्रजा फ़ंसी रहती थी।
राजतंत्र के अवसान के पश्चात भी यह गठजोड़ कायम है। राजा, मठ, सेठ (नेता, बाबा, व्यापारी) ही लोकतंत्र में मजा कर रहे हैं। सत्ता की धुरी बने हुए हैं। प्रजा इनकी प्रदक्षिणा कर रही है। भ्रष्टाचार की विष बेल बढती ही जा रही है।
कम होने का नाम ही नहीं लेती। भ्रष्टाचार एक ऐसा पेड़ है जिसकी जड़ आसमान में है और शाखाएं जमीन पर। हम इसे जमीन पर खड़े होकर काट रहे हैं कि यह समाप्त हो जाए,लेकिन समाप्त होने की बजाए पोषित पल्लवित होकर विकराल रुप धारण कर रहा है। जनता की गाढी कमाई पर खुले आम डाका डाला जा रहा है।
राजनैतिक दल एवं इनके कार्यकर्ता अपने प्रचार-प्रसार के लिए बैनर फ़्लेक्स से लेकर अखबारों में लाखों रुपयों के विज्ञापन देते हैं। कोई भी युवक किसी भी राजनैतिक पार्टी के संगठन का पदाधिकारी बनते ही अखबारों में लाखों के विज्ञापन दे देता है।
शहर को अपने फ़ोटो लगे फ़्लेक्स बैनरों से पाट देता है। जगह-जगह स्वागत द्वार खड़े हो जाते हैं। स्वागत रैली में सैकड़ों गाड़ियाँ लगाई जाती है और हजारों की भीड़ एकत्रित की जाती है। एक दिन में इतना पैसा कहाँ से आ जाता है।
क्या पदाधिकारी बनते के साथ कोई जादू की छड़ी मिल जाती है या कल्पवृक्ष की छत्र छाया मिल जाती है? ये इनसे क्यों नहीं पूछा जाता कि खर्चा करने के लिए रुपया कहाँ से आया?
कॉलेज में दाखिल होने वाले युवा छात्र राजनीति में आ जाते हैं। छात्र संघ के चुनावों में लाखों रुपए फ़ूंक दिए जाते हैं। यह रुपया क्या छात्रों के पालक खर्च करने में सक्षम हैं? अगर नहीं तो इनके पास यह रुपया कहाँ से आता है?
नौकरी करते हुए राजनीति में आना संभव नहीं है। जिस युवा को नौकरी मिल जाती है वह राजनीतिक पार्टियों से दूर हो जाता है लेकिन जिसे नौकरी नहीं मिलती वह युवा राजनीति में आ जाता है। राजनैतिक पार्टियाँ द्वारा अपने संगठन में लेने से वह पूर्णकालिक नेता बन जाता है।
जब 24 घंटे वह पार्टी का काम करता है तो जीविकोपार्जन के लिए धन कहाँ से लाएगा? इसके लिए उसे कहीं दलाली करनी पड़ेगी। नौकरी लगाने, लायसेंस दिलाने, ट्रांसफ़र कराने के लिए रुपए लेने-देने पड़ेगें। क्योंकि कोई भी राजनैतिक पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को वेतन नहीं देती।
इनके पास सीधा फ़ंडा है कि खुद भी खाओ और हमें भी खिलाओ। राजनैतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को वेतन नहीं देकर उन्हे भ्रष्टाचार करने की खुली छूट देते हैं एवं उनके अनैतिक कार्यों को संरक्षण एवं समर्थन।
युवा पीढी राजसत्ता के समीप रहने वाले लोगों को जब चमचमाती हुई, लकदक करती लाखों की गाड़ियों में घुमते एवं एश-ओ-आराम के जुटाए गए सभी सामान देखती है तो इनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहती।
भले ही यह सब भ्रष्ट आचरण करके जुटाया गया हो। वह इनकी दबंगाई को देखकर प्रभावित होती है। जब सत्ता के समीप रहने वालों का कुछ नहीं बिगड़ता और उन्हे गुनाह करने पर नेताओं द्वारा बचाया जाता है तो धनार्जन एवं प्रभाव प्राप्त करने के लिए इनका ही अनुशरण करती है। वही पथ अपनाती है जिस पर भ्रष्ट लोग चल रहे हैं।
जितना काला धन स्विस बैंकों में जमा है उससे कई गुणा अधिक धन देश में कालेबाजारियों, अधिकारियों एवं नेताओं की तिजौरी में कैद है। बेनामी सम्पत्तियों की देश में भरमार है।
विगत दिनों कई समाचार आए हैं कि किस तरह उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों ने भ्रष्टाचार कर अकूत संपत्ति एकत्रित की है। किस तरह धन पापर्टी में लगाया गया है। भ्रष्टाचार में लिप्त लोकतंत्र के पहरुए चौथे खंबे की भी कलई खुली है।
देश के नामी पत्रकारों का भी नाम सामने आया है। बड़े-बड़े कार्पोरेट हाउस अखबार छापने लगे हैं। टीवी चैनल शुरु कर रहे हैं अपने काले धन एवं काले कारनामों के छिपाने लिए। सरकार को ब्लेकमेल कर रहे हैं। इनकी करतूतों से आम आदमी का जीवन दुभर हो रहा है तथा मंहगाई निरंतर बढती जा रही है।
विगत दिनों कई समाचार आए हैं कि किस तरह उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों ने भ्रष्टाचार कर अकूत संपत्ति एकत्रित की है। किस तरह धन पापर्टी में लगाया गया है। भ्रष्टाचार में लिप्त लोकतंत्र के पहरुए चौथे खंबे की भी कलई खुली है।
देश के नामी पत्रकारों का भी नाम सामने आया है। बड़े-बड़े कार्पोरेट हाउस अखबार छापने लगे हैं। टीवी चैनल शुरु कर रहे हैं अपने काले धन एवं काले कारनामों के छिपाने लिए। सरकार को ब्लेकमेल कर रहे हैं। इनकी करतूतों से आम आदमी का जीवन दुभर हो रहा है तथा मंहगाई निरंतर बढती जा रही है।
नैतिकता एवं ईमानदारी किस चिड़िया का नाम है, लोग भूलते जा रहे हैं। आज आम आदमी का जीना दुश्वार हो गया है। किसी तरह परिवार के लिए रोटी और कपड़ा का जुगाड़ कर पाता है,मकान का सपना देखना तो भूल ही गया है।
बाबा रामदेव अलख जगाने के लिए निकल पड़े हैं देश में भ्रष्टाचार के विरुद्ध। जगह-जगह उनके कार्यक्रम हो रहे हैं। लेकिन इनके ईर्द-गिर्द भी वही जाने-पहचाने चेहरे नजर आ रहे हैं। जो अन्य नेताओं के ईर्द-गिर्द देखे जाते थे।
बाबा रामदेव के आन्दोलन की नीयत पर प्रश्न नहीं है लेकिन इनके आस-पास दिखाई देने वाले चेहरों को देखते हुए है आन्दोलन की सफ़लता पर संदेह अवश्य होता है। किसी का एक शेर याद आ रहा है-
गुनाहगारों पे जो देखी रहमत-ए-खुदा ।
बेगुनाहों ने भी कहा हम भी गुनाहगार हैं।।
हालात भीषण है...बाबा रामदेव कितना सफल होते हैं, वक्त ही बतायेगा.
जवाब देंहटाएंराजतंत्र, धर्मतंत्र, अर्थतंत्र - लो्कतंत्र.
जवाब देंहटाएंस्थिति विकट है....
जवाब देंहटाएंसच तो यह है की कोई वहीं तक ईमानदार है जहां तक उसे मौका नहीं मिलता..
भ्रष्टाचार आज बरगद का पेड़ बन चुका है।
जवाब देंहटाएंआज के दौर में लगता है कि भ्रष्टाचार के बिना गाडी आगे नहीं बढ़ेगी ...यह भी कितना हास्यास्पद है कि भ्रष्टाचारी ही उसे मिटाने की बात करते हैं
जवाब देंहटाएंबाबा रामदेव के आन्दोलन की नीयत पर प्रश्न नहीं है लेकिन इनके आस-पास दिखाई देने वाले चेहरों को देखते हुए है आन्दोलन की सफ़लता पर संदेह अवश्य होता है।...हम अक्सर चुनावों के समय यही सुनते है ...आपका आभार
मौखिक विरोध तो कैंसर पर ऑयोडेक्स लगाने जैसा है।
जवाब देंहटाएंगुनाहगारों पे जो देखी रहमत-ए-खुदा ।
जवाब देंहटाएंबेगुनाहों ने भी कहा हम भी गुनाहगार हैं।।
वैसे गुनाहगार तो हम सब भी है ... कोई थोडा कम तो कोई ज्यादा !
भ्रष्ट आचरण दूर हो, कहना सरल है। जरा सी पंक्ति मे खड़े होने की बारी क्या आई, पंक्ति मे खड़े रहकर काम कराने वाला विरल है। डाल देता है चंद रुपये उस शर्ट की जेब मे जिसे पहना होता है ऑफिस का बाबू, करता है उसे काबू औ करवाता है अपना काम। अपनाना रहा है इसे आज देश की जनता आम। बस भैया हम तो कहते हैं अपने आप को भज प्यारे तू राम राम……
जवाब देंहटाएंरामदेव जी की बात से सहमत...
जवाब देंहटाएं@ KEWAL RAM JI SE SEMAT HOON
जवाब देंहटाएंआज के दौर में लगता है कि भ्रष्टाचार के बिना गाडी आगे नहीं बढ़ेगी
भ्रष्टाचार तो कोढ़ बन गया है ..बाबा जी देखें क्या कर पाएंगे.
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार ही आज का शिष्टा चार बन गया हे, जितना बडा भ्रष्टाचारी उतनी ही शान से चलता हे अकड के, ओर ईमान दार बेचारा भुखा मर रहा हे, लेकिन एक दिन इस भ्रष्टाचार का बीज ही इन सब को काटना पडेगा
जवाब देंहटाएंहे यमदेव आप चित्रगुप्त को भेजकर एैसे भ्रष्ट नेताओं को जल्दी उठा लो
जवाब देंहटाएंजो खुद भ्रष्ट हैं वो भ्रष्टाचार को कैसे मिटायेंगे ? विकट स्थिति है ..
जवाब देंहटाएंसच तो यही है कि पूरे कुएं में ही भांग पडी हुई है ।
जवाब देंहटाएंआपके लेख के साथ शेर बेहद उपर्युक्त लगा-
गुनाहगारों पे जो देखी रहमत-ए-खुदा ।
बेगुनाहों ने भी कहा हम भी गुनाहगार हैं।।
प्रणाम,
जवाब देंहटाएंसंदेह स्वाभाविक है पर अभी इंतजार की आवश्यकता है...
एक गंभीर राष्ट्रीय समस्या पर गंभीर चिंतन परक आलेख . आभार.
जवाब देंहटाएंदुखद ये है की भ्रष्टाचार को हमने देश की नियति के रूप में स्वीकार कर लिया है ...इससे बाहर आने की कोई राह नजर नहीं आती ...बाबा रामदेव ने बीड़ा तो उठाया है ...उनके लिए दुआएं ही कर सकते हैं !
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