मुलमुला! हां यही नाम लिया अनुज ने। मुलमुला चलना है भैया 21 दिसम्बर को वहां "अनुज नाईट" का आयोजन है। छत्तीसगढ़ी फ़िल्म स्टार अनुज शर्मा ने फ़ोन पर निमंत्रण दिया। मुलमुला गाँव का नाम मैने पहले भी सुना था। यह गाँव अकलतरा क्षेत्र में है। अनुज शर्मा ने बताया कि हमें जिस मुलमुला जाना है वह कोण्डागाँव (बस्तर अंचल) से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर है। मेरे घर से कोण्डागाँव तक का सफ़र लगभग 4 घंटे का है. कोण्डागाँव निवासी साहित्यकार एवं ब्लॉगर हरिहर वैष्णव जी से मिलने एवं चर्चा करने का लोभ भी मेरे मन में उत्पन्न हो रहा था। उन्हे फ़ोन लगा कर कोण्डागाँव आने की सूचना दी। उन्होने कहा कि वे भी हमारे साथ मुलमुला चलेगें। चलो ये भी सोने में सुहागा हो गया। अब काफ़ी समय मिलेगा चर्चा करने के लिए।
बस के यात्री |
अनुज नाईट - मुलमुला |
बोरियों पर जमे दर्शक |
अनुज शर्मा का गायन |
ज्ञानिता द्विवेदी का प्रस्तुतिकरण |
दर्शकों की भीड़ |
दीवाली त्यौहार बीतने के एक माह के बाद मनाए जाने वाले दियारी तिहार के विषय में मेरी जानने की उत्सुकता थी। हरिहर वैष्णव जी ने बताया कि दियारी तिहार बस्तर अंचल का प्रसिद्ध तिहार है। जिस तरह हम दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा करते हैं उसी तरह बस्तर अंचल में पूष एवं माघ के महीने में कृषि कार्य से निवृत्त होने पर स्थानीय निवासी प्रत्यके ग्राम समूह में दियारी तिहार का उत्सव मनाते हैं। प्रत्येक गाँव में तिहार मनाने का दिन निश्चित होता है और निश्चित दिन ही मनाया जाता है।
अनुज नाईट की टीम |
इस तिहार में ग्राम वासी अपने निकट संबंधियों एवं मित्रों को निमंत्रित करते हैं और सबकी उपस्थिति में उल्लासपूर्ण ढंग से पूजा पाठ कर दियारी उत्सव को मनाया जाता है। जिस दिन तिहार मनाना निश्चित होता है उसकी पूर्व रात्रि को चरवाहा (यहाँ पशु चराने का कार्य (गांदा) गाड़ा जाति करती है) ग्राम के प्रत्येक घर में जाकर पशुओं को "जेठा" (सोहाई) बांधता है। जेठा बांधने आए हुए चरवाहे का सम्मान द्वार पर आरती उतार कर किया जाता है।
जरा नच के दिखा |
दियारी तिहार के गाड़ा गाड़ा बधई |
वाह, आपको भी बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत दिलचस्प रपट।
जवाब देंहटाएंलगा जैसे हम भी फिल्म स्टार नाईट में ही बैठे हैं।
परम्पराएँ विकास के साथ घटती जा रही हैं। जो कुछ सही भी है।
बड़ी रोचक रिपोर्ट..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, अनुज छत्तीसगढ़ के बच्चन हैं। उनका जलवा मुलमुला में दिख रहा है आपके ब्लाग से लाइव प्रसारण
जवाब देंहटाएंअनुज की पैठ कहां-कहां, कोने-कोने में दिलों तक है.
जवाब देंहटाएंअनुज शर्मा की नाईट का आँखों देखा हाल हमने भी जान लिया ......!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्र और यात्रा वृतांत केसाथ मेरे गाँव मुलमुला का नाम धन्य हो आपका ललित भाई साहब उस पर अनुज शर्मा जैसे कलाकार की प्रस्तुति मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही कहा ललित जी। न केवल दियारी अपितु बस्तर अंचल के सारे तीज-त्यौहार कृषि और प्रकृति की पूजा-अर्चना से जुड़े हुए हैं, चाहे वह नवाखानी हो, अमुस तिहार हो, आमा-खापनी या आमा जोगानी हो या फिर माटी तिहार, बीज पंडुम, गोबर बोहरानी, लछमी जगार, तीजा जगार, बाली जगार आदि..आदि..। बस्तर का गिरिजन/वनवासी सदैव से ही प्रकृति का पूजक रहा है। इसमें गिरि-कन्दराएँ, जल और जमीन, कृषि और पशु सभी सम्मिलित हैं। इसीलिये तो बस्तर अनूठा है। किन्तु अधिसंख्य लोगों को ये सारी अद्भुत और प्रेरक प्रथाएँ-परम्पराएँ दिखती ही नहीं हैं। उन्हें लगता है कि बस्तर में केवल "घोटुल" ही होता है (जो अब नहीं रह गया है)। बस्तर का अर्थ देशी-विदेशी सभी के लिये केवल और केवल "घोटुल" रहा है। इस पवित्र सामाजिक संस्था को लोगों ने बुरी दृष्टि से देख और प्रचारित कर इसका सत्यानाश कर दिया। ऐसे में आपने दियारी तिहार की चर्चा कर हम बस्तरवासियों पर कृपा की है। इसके लिये मैं बस्तरवासियों की ओर से आपका आभार प्रदर्शित करता हूँ।
जवाब देंहटाएंललित भैया शुक्रिया....
जवाब देंहटाएंआपने मुझे भी अनुज नाईट दिखा दिया ।