ये मेले तो वर्ष में एक बार नियत तिथि, स्थान एवं समय पर भरते हैं। एक ऐसा आभासी मेला है जिसमें सतत् रेले चलते हैं। जहाँ मेले के सारे रंग दिख जाएगें। जहाँ इंटरनेट कनेक्ट हो जाए, इसे वहीं लगा हुआ पाएगें। इस मेले का नहीं कोई ठौर ठिकाना, कोई अपना है पराया है और बेगाना। यह मेला सोशल मीडिया मेला या आभासी मेला कहलाता है। 24X7 कल्लाक चलता है रुकता नहीं कभी, सबका मन बहलाता है।। कब दिन होता और कब रात होती, पता ही नहीं चलता। इसे मैं फ़ेसबुकवा मेला कहता हूँ, जो रात 2 बजे भी जमता। यहाँ मेलार्थी खा पीकर विचरण करते मिल जाएगें। कुछ तो ऐसे फ़ेसबुकिए हैं कि जिनकी बत्ती सदा हरी रहती है। बासंती सम्मिलन मुद्रा में सदा हरियाए रहते हैं। जहाँ देखी कबूतरी लाईन लगाए रहते हैं। चल छैंया छैंया छैया ये हिन्दी फ़ेसबुक है भगिनी-भैया…
मेले का प्रारंभ सुप्रभात से होता है, एक सज्जन 6 बजे फ़ोटो चेपता है। फ़िर दो लाईनों की कविता पर इठलाता है। तब तक 8 बज जाता है, उनका बेटा आता है। बाप की लगाई फ़ोटुओं पर लाईक चटकाता है, अपना पुत्र धर्म निभाता है। बाप-बेटे बारी-बारी मौज लेते हैं। बहती गंगा में स्नान के साथ कच्छे भी धोते हैं। इसके बाद शुरु होता है अखबारी कतरनों का दौर, काट-काट फ़ैलाते हैं चहूँ ओर। उनको लगता है महत्वपूर्ण खबर गर नहीं फ़ैलाई, फ़ेसबुकिए खबरों से वंचित रह जाएगें, जो अखबार नहीं खरीदते वे खबरें कहां से पाएगें। इन खबरों के बीच एक सज्जन संघियों का आव्हान कर हुए लट्ठम लट्ठा, खफ़ा इस तरह हैं कि लाठी टूटे या लट्ठा-पट्टा। फ़टफ़टिया महाराज झोले से मुंदरी-माला बेचने निकाल रहे हैं। तब तक भविष्य वक्ता भी पूजा पाठ करके अपनी चौकी संभाल रहे हैं। परबतिया भौजी का जागरण पर प्रसिद्ध डिरामा शुरु हो जाता है। बंदर डमरु बजा बजा कर मदारी को नचाता है। बिना टिकिट झांकी में लोटावन साव लोटा धरे नदिया तीर में बैठे हैं, कहते हैं मोह माया संसार त्यागो, ब्रम्ह सत्य बाकी झूठे हैं।
वाल पर कवियत्रियों द्वारा काव्य पाठ हो, मेला धर्मी टूट के पड़ते है ऐसे, सरकार की किसी योजना के अंतर्गत मुफ़्त शक्कर तेल बंट रहा हो जैसे। दो लाईनों की कविता पर हजारों लाईक और सैकड़ों कमेंट आ जाते हैं। कहीं लाईक के चक्कर में यज्ञोपवीत संस्कार के लिए तैयार बटूक दंड कमंडल धरे रह जाते हैं। कहीं पर मुल्ला मौलवियों के फ़तवे से हलकान परेशान चचा रमजानी दिखाई दे जाते हैं, डबल बेड बेचकर, सिंगल बेड खरीद कर अपनी खाल बचाते हैं। चाट का ठेला तो फ़ुलकी का रेला, तिरछी नजरों से होता बवेला, जूतों की सेल, छुकछुक रेल, बच्चों की धमाचौकड़ी, बूढों के सहारे की लकड़ी, इलाज के लिए सहायता मांगते लोग, मंदिर के चंदा की रसीद और खाटू वाले का बाबा का छप्पन भोग। कहीं अंखियों से गोली मारे और चैटियाते महिला वेष धारी पुरुष तो कहीं वेब कैम की मौज लेते बहन जैसे भाई ( दोनो लिंगों में फ़िट) कहीं होती सगाई तो कहीं होता क्रंदन, दुहाई है दुहाई।
महा साहित्यकारों के दल-दल तो कहीं दबंग नेता जोर सबल, कहीं बवाल, कहीं ख्याल, कहीं ठप्पा, कहीं ठुमरी, कहीं कुरता, कहीं कमरी। कहीं किकणी (लघु घंटिका) की रुनझुन तो कोई कोने से ताक रहा गुमसुम। कोई आत्ममुग्ध, कोई गंगा स्नानी शुद्ध, कोई बुद्ध, जेल से कमेंट करता निरुद्ध। गोंसईया को गरियाती गोंसाईन तो कहीं बनी-ठनी पतुरिया, हवा में उड़ता लहरिया। जीव जुड़ावन गोठ तो कहीं मुंग के संग मोठ। विमोचित होते कविता संग्रह, तो कहीं बिकते विग्रह, कहीं रुठे हुए ग्रह तो कहीं साठी सुंदरियों का सुमधुर नयनाग्रह। कहीं जवानी के चित्र लगाए आत्ममुग्ध बूढे-बूढिया कहीं डायमंड फ़ेसियल कराए कौंवे तो कहीं उड़ती चिड़िया। सरकार को गरियाती नौजवानी तो कहीं टपकता आँखों से पानी। कोई चढा टंकी पर तो कोई फ़िदा है मंकनी पर। कोने में खड़ी डंकनी की ढेंचू-ढेंचू तो किसी वाल पोस्ट हो जाती टिप्पणी खेंचू-खेंचू।
रामखिलावन के बाबू जहाँ कहीं भी चले आओ, हम बड़का पुल पर तोहार इंतजार करित हैं, अरे नुनवा हम कितना देर से खोज रहे हैं, जल्दी पुलिस चौकी के पास चले आओ, तोहार माई बहुत रो रही हैं …… पल पल में खोया-पाया उद्घोषणा होती है जारी, भैया की खोज में व्याकूल है नारी। कहीं दादी की खोज में पतोहू तो कहीं नाती खोजता बिसाहू। पुलिस भी मौके पर बनती है सहाय। जिसका खो गया अपना, होता वो असहाय। बेटे-बेटी की होती है खोया पाया में एन्ट्री, एक ही जगह सिमट जाता है सारा कंट्री। आँखों ही आँखों होते हैं इशारे, चल भाग चले पूरब की ओर कहते लिव इन रिलेशन को तैयार बेचारे। लंठ पति की होती बेलनटाईन पिटाई, कहीं उघड़ते अंतर संबंधों पर होती क्राई। कहीं उबला चना तो कहीं भेजा फ़्राई। यही फ़ेसबुकिया मेला है भाई। बहनापा ओढे दिखाई देते हैं कुछ नर, ये नारी सानिध्य में सुकून पाते हैं, पत्नी संग लायसेंसी फ़ोटो लगाते हैं, विवाहित होने का चर्चा फ़ैलाते हैं फ़िर मजे से मौज लेते हैं ये नर, घोड़े के भेष में फ़िरते हैं खर। ये फ़ेसबुकिया मेला है बस तू निरंतर चर निरंतर चर।
संझा को खुल गई फ़ेसबुकिया क्लास, विज्ञान पढाते मास्टर जी बच्चों को, कोई ज्ञानी समझाता गूढ़ ज्ञान अकल के कच्चों को। कोई ले घिस कर चंदन माथे पर सांट रहा कोई समाजवाद और साम्यवाद पर लेक्क्चर छांट रहा। कोई धर्म के नाम पर ज्ञान बांट रहा कोई लिए लकुटिया डांट रहा। किसी का हुआ है नवा-नवा बियाह, आ भैया तू भी फ़ोटो लगा। फ़ेसबुक पर हो रही है मुंह दिखाई। दुल्हनिया सकुची शरमाई। संग है भतार, चच्चा बब्बा, साथ दिख रहा सिंगार का डब्बा। कोई गुल बिजली पर निरंतर मामा की जय बुलाता है, कोई लिंक चेप-चेप जबरिया पढ़वाता है। कोई मचाए हुए टैगा टैगी, कोई टैग हटा रहा खा के मैगी। भैंगे-भैंगी की जो आँख घूमती रहती है। वह फ़ेसबुकिया मेले में ही आकर ठहरती है। शेर और बकरी दोनों एक ही घाट पर पानी पीते हैं, समाजवादी, गांधीवादी, साम्यवादी, पूंजीवादी मंसूबे यहाँ जीते हैं। जासूसी एजेन्सियाँ भी यहाँ ऐंठी हैं, भगोड़ों को ढूंढने दूरबीन लगाकर बैठी हैं। बहुत हो गया मेले का ठाठ, चलते-चलते घुटने दर्द से भर आए। ये फ़ेसबुक है भाए ये फ़ेसबुक है भाए………
bahut sahi likha hai aapne face book ne blaagaro ko bhi apane jaal me samet liya hai kyoki yaha padhane vaale kam va like kar bhagane vaale jyada hai aur fesbooki use facewash samajh kar mudit ho raha hai saadho karman ki gati nyaari....... kuch din baad fir log gambhir hoge va rachanadharmita va copy paste me antar avashya samjhege aisa mera manana hai
जवाब देंहटाएंललित जी . सुबह सुबह खुश कर दिया आपने... वाह कितनी रोचक शैली में आपने फेस्बुकिया मेले का वर्णन कर दिया ...मज़ा आ गया सरकार. अब तो शरबत का वादा आपको भी करना पड़ेंगा इतनी अची पोस्ट के लिए ... बधाई स्वीकार करे गुरुवर....
जवाब देंहटाएंइस मेले में भगदड़ मची रहती है, हम तो बच के दूर से ही देखते हैं।
जवाब देंहटाएंफेसबुकिया मेला किसी सांस्कृतिक मेले से कम नहीं ...मिनी इंडिया बसता है यहाँ कमोबेश ब्लॉग की स्थिति भी यही है !
जवाब देंहटाएंरोचक आँखों देखा /भोगा वर्णन !.
विवाह , तलाक की झांकी भी मौजूद है यहाँ !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
जवाब देंहटाएंhttp://yuvaam.blogspot.com/2013_01_01_archive.html?m=0
ऐसे फेसबुकियों मेलों में हम भी कभी-कभार ही जाते हैं। शानदार लेखन। :)
जवाब देंहटाएंअंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर विशेष लेख : भारत की प्रमुख भाषाएँ।
थोड़े दिन बाद ये हालत भी होगी...
जवाब देंहटाएंकोई फेसबुकिया लिखेगा...सुहागरात है घूंघट उठा रहा हूं मैं...
आगे से कमेंट आएंगे...अपडेट देते रहिए, हम जाग रहे हैं...
जय हिंद...
मुंडे मुंडे मतिभिन्न:
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर वर्णन ..
जवाब देंहटाएंसचमुच स्पेशल टाइप मेला है ..
घर बैठे सारा संसार देखों !!
हमरे ललित भईया भी न, एकदम गज्जबे हैं, जोन चीज़ को देख लेते हैं एकदमे ब्रेकिन नूज बन जाता है, एतना लोगन का भीड़-भाड़ है फेस्बुकुवा में लेकिन ऐसन चस्मा लगा के कोईयो नहीं देखा,
जवाब देंहटाएंगए रहे हमहूँ ई मेला, देख के ठेलम-ठेला, समेट के अपना झोला, दंद्नईले भाग आये घर :)
फेसबुक पर देखा-ताकी ही काफी हमारे लिए.
जवाब देंहटाएं"ये जिन्दगी के मेले ...ये जिन्दगी के मेले दुनिया में कम न होगे अफ़सोस हम न होगे .."
जवाब देंहटाएंइसको इस तरह गाये " ..ये फेस बुक के मेले नेट पे कम न होगे आज हम है कल कई और होगे ..."
पर फेसबकिया मेले की बात ही कुछ और है ..यहाँ हरी लाइट का मतलब जिन्दगी होता है ...खुशियाँ ! अपनों से बाते करने का जरिया !हा, कुछ नामुराद होते है ..जिन्हें मैं गड्डे में फेंक देती हूँ हा हा हा हा
सारा आँखों देखा हाल है ..वह भी मजेदार है ....
इस मेले में सब कुछ मिलेगा :).
जवाब देंहटाएंसचमुच यहाँ मिली है सबको एन्ट्री, एक ही जगह सिमट गया है सारा कंट्री...
जवाब देंहटाएंहे भगवान कितना बड़ा मेला है... बेहतरीन, शानदार-जानदार लेखन... गृहलक्ष्मी का उल्लू...... के बाद एक और जबरदस्त पोस्ट... बधाई
बेहतरीन ललित भाई एक अरसे बाद कुछ अलग नहीं तो आप यात्रा वृतांत लिखने में ही खोये रहते हैं
जवाब देंहटाएंललित भाई साहब आपकी इस यायावरी का कोई जवाब नहीं
जवाब देंहटाएंwaah lalit ji bahut khoob ...facebook ke mele me ghumne ka mza aa gya ...
जवाब देंहटाएंई जबरदस्त पोस्ट लाय के खुद को काहे फ़ेस बुक द्रोही बनावत हौ....
जवाब देंहटाएंमज़ेदार शानदार झन्नाटेदार
इ लाइक दिस दादा
कमाल का लेखन ! पढ़कर मजा आ गया !!
जवाब देंहटाएंवाह जी सुबह सुबह ही फेसबुकिये मेले की सैर करा दी। अभी हम भी ब्लागिए मेले से निपट ले, जरा नाश्ता पानी कर लें फिर चटाई लेकर पहुंचते हैं मेले में। बहुत ही अच्छा शब्द चित्र खेंचा है आपने। बधाई।
जवाब देंहटाएंभई वाह...फेससबुक पर एक अलग नजरिया...इस नई टेक्नॉलॉजी की एकदम सही झांकी...
जवाब देंहटाएंहम हैं गवाह आपकी फ़ेसबुकिया दिखाई के ...
जवाब देंहटाएंदिलचस्प आलेख .
जवाब देंहटाएंरोचक और एकदम सटीक ....हमने तो इस मेले से निश्चित दूरी बना रखी है .....
जवाब देंहटाएंफेसबुक पुराण जानदार रहा. वैसे हमें तो फेसबुक कभी नहीं भाई.
जवाब देंहटाएंसभी इसी के रंग में रंगे हैं :)))))))))))
जवाब देंहटाएंफेसबकिया की बहुत बढ़िया झांकी ...
जवाब देंहटाएंएक शब्द बस वाह !!
जवाब देंहटाएंलेकिन एक बात
वैसे बहुत ही काव्यत्मक गद्य लग रहा है जैसेकि
महा साहित्यकारों के दल-दल
तो कहीं दबंग नेता जोर सबल,
कहीं बवाल, कहीं ख्याल,
कहीं ठप्पा, कहीं ठुमरी,
कहीं कुरता, कहीं कमरी।
कहीं किकणी (लघु घंटिका) की रुनझुन
तो कोई कोने से ताक रहा गुमसुम।
कोई आत्ममुग्ध, कोई गंगा स्नानी शुद्ध,
कोई बुद्ध, जेल से कमेंट करता निरुद्ध।
गोंसईया को गरियाती गोंसाईन
तो कहीं बनी-ठनी पतुरिया, हवा में उड़ता लहरिया।
जीव जुड़ावन गोठ तो कहीं मुंग के संग मोठ।
विमोचित होते कविता संग्रह, तो कहीं बिकते विग्रह,
कहीं रुठे हुए ग्रह तो कहीं साठी सुंदरियों का सुमधुर नयनाग्रह।
कहीं जवानी के चित्र लगाए आत्ममुग्ध बूढे-बूढिया
कहीं डायमंड फ़ेसियल कराए कौंवे तो कहीं उड़ती चिड़िया।
सरकार को गरियाती नौजवानी तो कहीं टपकता आँखों से पानी।
कोई चढा टंकी पर तो कोई फ़िदा है मंकनी ।
कोने में खड़ी डंकनी की ढेंचू-ढेंचू
तो किसी वाल पोस्ट हो जाती टिप्पणी खेंचू-खेंचू।
भाई वाह
ये मेला यूं ही आबाद रहना चाहिए
जवाब देंहटाएंहोली मुबारक