अवधिया जी के साथ एक दर्शक |
हरिया और उसका बेटा कल्लु दोनो ताड़ी बाज हैं। हमेशा ताड़ी के नशे में रहने वाले। इनके यार दोस्त भी नसेड़ी है। एक दिन साथ बैठकर पी रहे हैं। ताड़ी खत्म हो जाती है तो हरिया कहता है कि” कल्लु जा और ताड़ी लेकर आ। मुझे नशा कम हुआ है। कहीं से भी लेकर आ,नहीं तो तू मेरा बेटा नहीं है।“
कल्लु ताड़ी के लिए पैसे लेने अपने घर जाता है तथा माँ से पैसे मांगता है। वह पैसे नहीं देती तो कल्लु उसके साथ गाली-गलौच करता है। तब उसकी माँ चैती उसकी पिटाई झाड़ू से कर देती है। दोनो में बहुत विवाद होता है। अचानक कल्लु चैती पर डंडे से प्रहार करता है और उससे पैसे छीन कर ताड़ी लेने चला जाता है।
कल्लु ताड़ी के लिए पैसे लेने अपने घर जाता है तथा माँ से पैसे मांगता है। वह पैसे नहीं देती तो कल्लु उसके साथ गाली-गलौच करता है। तब उसकी माँ चैती उसकी पिटाई झाड़ू से कर देती है। दोनो में बहुत विवाद होता है। अचानक कल्लु चैती पर डंडे से प्रहार करता है और उससे पैसे छीन कर ताड़ी लेने चला जाता है।
हरिया और कल्ल |
नशे बाज होने के कारण इनके घर की माली हालत ठीक नहीं है। कल्लु ताड़ी लेकर अपने बाप हरिया के पास पहुंचता है। दोनो खूब ताड़ी पीते हैं।
इधर गाँव का सरपंच श्रीधर कुछ रुपए और चावल देकर चैती पर डोरे डालता है, चैती उसे धमका देती है तो वह दूसरे हथकंडो पर आ जाता है। कल्लु को चोरी करता है, उसे पंचायत में बुला कर दंडित करना पड़ेगा। तभी चैती उसके द्वारा दिए गए रुपये और चावल को उसके मुंह पर मार देती है। तो वह गुस्से में सबको देख लुंगा कहकर वह चला जाता है।
इधर गाँव का सरपंच श्रीधर कुछ रुपए और चावल देकर चैती पर डोरे डालता है, चैती उसे धमका देती है तो वह दूसरे हथकंडो पर आ जाता है। कल्लु को चोरी करता है, उसे पंचायत में बुला कर दंडित करना पड़ेगा। तभी चैती उसके द्वारा दिए गए रुपये और चावल को उसके मुंह पर मार देती है। तो वह गुस्से में सबको देख लुंगा कहकर वह चला जाता है।
अपनी माँ चैती को पीटता हुआ कल्ल |
तभी चैती के घर में एक आगंतुक आता है वह उसे मां कह कर पुकारता है। कुछ खाने को मांगता है तथा रात रुकने के लिए बसेरा चाहता है। चैती उसे घर में रुकने को कहती है। इधर हरिया और कल्लु ताड़ी के नशे में मद मस्त होकर आते हैं।
घर में आगंतुक को देख कर पूछते हैं कि यह कौन है? आगंतुक कहता है कि वह एक सरकारी काम करने वाला आदमी है तथा इस तरफ़ वसूली में आया था। उसके पास बहुत सारे पैसे हैं, वह उन्हे पैसे दिखा देता है। इतने पैसे देखकर उनकी आँखे फ़टी की फ़टी रह जाती है और मन में लोभ जाग जाता है। कल्लु उसे चोर कहता है, और पूछता है कि इतने रुपए कहां से चुराकर लाया है। नही बताएगा तो मार डालूंगा कहकर उसका गला पकड़ लेता है।
सरपंच श्रीधर और चैती |
चैती उसे छोड़ाती है और कल्लु पर बरस पड़ती है। आगंतुक कौन है यह किसी को पता नहीं रहता। उसे चैती खाना खिलाकर सुला देती है।
इधर हरिया और कल्लु दोनो उसकी हत्या करके पैसे छीनने के योजना बनाते हैं। चैती उनको इस दुष्कृत्य के मना करती है। लेकिन दोनो नहीं मानते। हरिया सबसे पहले दाव लेकर उसकी हत्या करने जाता है लेकिन उसकी मासुमियत देख कर हत्या नहीं कर पाता, और ताड़ी पीने चला जाता है।
तब कल्लु उसकी हत्या कर देता है। हत्या के बाद पता चलता है कि आगन्तुक हरिया और चैती का खोया हुआ बेटा था। जो नदी में बह गया था।
इधर हरिया और कल्लु दोनो उसकी हत्या करके पैसे छीनने के योजना बनाते हैं। चैती उनको इस दुष्कृत्य के मना करती है। लेकिन दोनो नहीं मानते। हरिया सबसे पहले दाव लेकर उसकी हत्या करने जाता है लेकिन उसकी मासुमियत देख कर हत्या नहीं कर पाता, और ताड़ी पीने चला जाता है।
तब कल्लु उसकी हत्या कर देता है। हत्या के बाद पता चलता है कि आगन्तुक हरिया और चैती का खोया हुआ बेटा था। जो नदी में बह गया था।
आगंतुक-हरिया-चैती |
आगन्तुक ने अपने बारे में गांव के लोगों को बता दिया था कि वह कौन है लेकिन हरिया और चैती के सामने भेद सुबह खोलना चाहता था।इस नाटक में यह बताने की कोशिश की गयी है कि नशे में आदमी संवेदनाएं खो देता है, लोभ और लालच में फ़ंस कर जंघन्य अपराध कर डालता है।
हिंसक हो जाता है जिससे उसका और समाज का अपूर्णिय नुकसान हो जाता है। समाज के लिए नशा खराब है। यह नाटक फ़्रांस के लेखक रुपर्ट ब्रुक के” लिथुआनिया” नामक नाटक से प्रेरित हो कर मंचित किया गया। सीधे-साधे ग्रामीण परिवेश की कहानी कहता नाटक हमीरपुर की सुबह हमारे सामने कई सवाल छोड़ जाता है।
हिंसक हो जाता है जिससे उसका और समाज का अपूर्णिय नुकसान हो जाता है। समाज के लिए नशा खराब है। यह नाटक फ़्रांस के लेखक रुपर्ट ब्रुक के” लिथुआनिया” नामक नाटक से प्रेरित हो कर मंचित किया गया। सीधे-साधे ग्रामीण परिवेश की कहानी कहता नाटक हमीरपुर की सुबह हमारे सामने कई सवाल छोड़ जाता है।
अंतिम दृश्य-पछताते कल्लु-हरिया |
बालकृष्ण अय्यर के कुशल निर्देशन में हरिया – शकील खान, कल्लु-योगेश पान्डे, चैती-सुशीला देवांगन, आगन्तुक-कविश गोखले, श्रीधर सरपंच-हेमलाल कौशल, रमुआ-सुरेश शर्मा ने प्रभावशाली अभिनय कर पात्रों को जीवंत कर दिया। मंच के पीछे के कलाकार मंच सज्जा-दीपिका नंदी, सामग्री संकलन-प्रकाश ताम्रकार, संगीत-वरुण चक्रवर्ती एव आमोस, प्रकाश-बालकृष्ण अय्यर थे। इनका कार्य भी सराहनीय रहा।
रंगमंदिर रायपुर में संस्कृति विभाग के सौजन्य से मंचित नाटक हमीर पुर की सुबह प्रभावशाली रहा। नशा हे खराब-झन पीहू शराब-अशोक भाई का नारा है।
हमीरपुर की सुबह को पढकर अच्छा लगा . देखकर तो और अच्छा लगता .. लेकिन अगर शराब खराब है तो ...........
जवाब देंहटाएंआप और बालकृष्ण जी, दोनों बधाई के पात्र हैं.
जवाब देंहटाएंसभी मित्रों को हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंमेरा तो एक पन्त दो काज हुआ
जवाब देंहटाएंनाटक देखने के साथ आपसे पहली मुलाकात हुआ
नाटक के निर्देशक, मंच पर/मंच परे सभी के साथ आपको भी बधाई
कहानी तो बहुत अच्छी लगी, लेकिन शराबी तो शराबी ही होता है, पता नही क्यो यह लोग सिर्फ़ अपने बारे मै सोचते है, कहानी पढ कर रोंगटे खडे हो गये. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंहमीरपुर की सुबह बड़ा असरदार रहा. आपका आभार.
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी हमीरपुर की सुबह ..
जवाब देंहटाएंबालकृष्ण अय्यर कुशल नाट्य निर्देशक हैं, हमीरपुर की सुबह की सफल प्रस्तुति के लिये उन्हें एवं रपट यहां प्रकाशित करने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंहमीरपुर की सुबह भड़िया लगी ..हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंkahani bahut acchhi lagi.हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं... behatreen !!!
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जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
नाटक की रिपोर्टिंग बहुत बढ़िया लगी |
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