पहले जब हम कभी सफ़र में जाते थे तो हमेशा याद रखते थे कि पानी की सुराही ली है कि नहीं। बाकी सामान बाद में देखा जाता था। क्योंकि पानी सफ़र के लिए अत्यावश्यक था।
1989 की बात है मैं भोपाल जा रहा था। घर से गाड़ी स्टेशन छोड़ गयी। जब प्लेट फ़ार्म पर पहुंचा तो पानी की याद आई। पानी की सुराही तो गाड़ी में वापस चली गयी थी। अब सोचने लगा क्या किया जाए? कोई पानी रखने का साधन मिले तो रख लिया जाए, लेकिन ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर आ चुकी थी।
तभी मेरी निगाह एक ठेले पर पड़ी, उसमें अन्य सामानों के साथ पानी की भरी बोतलें भी रखी थी। मैने पानी की बोतल के दाम पूछे तो उसने 18 रुपए बताए। भोपाल की टिकिट कुल 70 रुपए थी। मैने मजबुरन बोतल खरीद ली और उसका पानी चख कर देखा तो कसैला लगा। मैने बोतल का पानी खाली करके उसमें स्टेशन का प्याऊ का पानी भरा और गाड़ी में बैठ लिया। कहने का मतलब मैने बोतल के लिए 18 रुपए दिए और पानी मुफ़्त का भरा।
1989 की बात है मैं भोपाल जा रहा था। घर से गाड़ी स्टेशन छोड़ गयी। जब प्लेट फ़ार्म पर पहुंचा तो पानी की याद आई। पानी की सुराही तो गाड़ी में वापस चली गयी थी। अब सोचने लगा क्या किया जाए? कोई पानी रखने का साधन मिले तो रख लिया जाए, लेकिन ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर आ चुकी थी।
तभी मेरी निगाह एक ठेले पर पड़ी, उसमें अन्य सामानों के साथ पानी की भरी बोतलें भी रखी थी। मैने पानी की बोतल के दाम पूछे तो उसने 18 रुपए बताए। भोपाल की टिकिट कुल 70 रुपए थी। मैने मजबुरन बोतल खरीद ली और उसका पानी चख कर देखा तो कसैला लगा। मैने बोतल का पानी खाली करके उसमें स्टेशन का प्याऊ का पानी भरा और गाड़ी में बैठ लिया। कहने का मतलब मैने बोतल के लिए 18 रुपए दिए और पानी मुफ़्त का भरा।
ये पहली शुरुवात थी भारत में पाप कमाने के धंधे की। हमारे पूर्वज कहते थे कि प्यासे को पानी और भूखे को भोजन कराना बड़े पुण्य का काम है। जो पानी का पैसा लेता है वो भिष्ठा खाता है। धनी-मानी लोग कुंए-बावड़ी खुदवाते थे।
गर्मी के दिनों में प्याऊ खोलते थे ताकि प्यासे को पानी मिले। प्यास से तड़फ़ कर किसी जान न निकले,साथ ही हमें पुण्य मिले जिससे हमारा अगला जनम सुधरे। आज भी हमें कुछ जगह प्याऊ मिल जाती है धार्मिक स्थलों पर। लेकिन स्टेशन और बस अड्डों पर प्याऊ का नामो निशान मिट हो गया है।
यात्रियों के रैन बसेरे के साथ प्याऊ भी गायब हो गयी हैं। क्योंकि पानी अब पैसे में मिलने लगा है। यदि कोई प्याऊ खोल देता है तो पानी का धंधा करने वाले पापी वहां की मटकियाँ फ़ोड़ आते हैं जिससे उनका धंधा चलता रहे।
गर्मी के दिनों में प्याऊ खोलते थे ताकि प्यासे को पानी मिले। प्यास से तड़फ़ कर किसी जान न निकले,साथ ही हमें पुण्य मिले जिससे हमारा अगला जनम सुधरे। आज भी हमें कुछ जगह प्याऊ मिल जाती है धार्मिक स्थलों पर। लेकिन स्टेशन और बस अड्डों पर प्याऊ का नामो निशान मिट हो गया है।
यात्रियों के रैन बसेरे के साथ प्याऊ भी गायब हो गयी हैं। क्योंकि पानी अब पैसे में मिलने लगा है। यदि कोई प्याऊ खोल देता है तो पानी का धंधा करने वाले पापी वहां की मटकियाँ फ़ोड़ आते हैं जिससे उनका धंधा चलता रहे।
बाजारवादियों ने पानी का भी बाजारीकरण कर दिया। 14 रुपया लीटर पानी बेच रहे हैं, 20 वर्षों पहले हमने सोचा भी नहीं था कि हमारे देश में पानी भी बिकने लगेगा। लेकिन देखिए अब बिक रहा है।
गरीब से गरीब मजदूर को भी मैने पानी खरीद कर पीते देखा है। मिनरल वाटर के नाम खुले आम लूट चल रही है। जिस पानी को प्रकृति ने हमें मुफ़्त में दिया है उसे हम आज खरीद रहे हैं,ये कैसा दुर्भाग्य है और शान से मिनरल वाटर कहकर पी रहे हैं। जबकि बोतल पर कहीं पर भी मिनरल वाटर नहीं लिखा रहता।
बोतल पर लिखा रहता है पैकेज्ड ड्रिंकिग वाटर। यह है आंख के अंधों का काम। नल के पानी को बोतल और पाऊच में भर कर बेचा जा रहा है। घर-घर 20-20 लीटर की बोतलें पहुंचाई जा रही है। पानी के धंधे ने एक बड़ा बाजार खड़ा कर दिया है। आज अरबों रुपए का खेल पानी के नाम पर हो रहा है।
गरीब से गरीब मजदूर को भी मैने पानी खरीद कर पीते देखा है। मिनरल वाटर के नाम खुले आम लूट चल रही है। जिस पानी को प्रकृति ने हमें मुफ़्त में दिया है उसे हम आज खरीद रहे हैं,ये कैसा दुर्भाग्य है और शान से मिनरल वाटर कहकर पी रहे हैं। जबकि बोतल पर कहीं पर भी मिनरल वाटर नहीं लिखा रहता।
बोतल पर लिखा रहता है पैकेज्ड ड्रिंकिग वाटर। यह है आंख के अंधों का काम। नल के पानी को बोतल और पाऊच में भर कर बेचा जा रहा है। घर-घर 20-20 लीटर की बोतलें पहुंचाई जा रही है। पानी के धंधे ने एक बड़ा बाजार खड़ा कर दिया है। आज अरबों रुपए का खेल पानी के नाम पर हो रहा है।
हम आज भी घरों में दूसरे दिन बासी पानी का इस्तेमाल नहीं करते। 24 घंटे होते ही पीने का पानी बदल दिया जाता है क्योंकि बासी पानी से स्वास्थ्य को हानि होती है। व्यक्ति कब्जियत जैसी महाबीमारी का शिकार हो जाता है। वायु विकार बढ जाता है।
एक कम्पनी की पानी की बोतल पर कहीं नहीं लिखा है कि इस पानी का इस्तेमाल कितने दिनों तक करना है, कोई एक्सपायरी डेट इस पर नहीं लिखी है। कुछ कम्पनियाँ तो लोगों की धार्मिक भावनाओं का दोहन कर रही हैं, गंगाजल के नाम से नल का पानी भर कर बोतल में बेच रही हैं।
बोतल पर लिखा है-- न्युट्रिशियन फ़ैक्टस--कैलोरी -0, टोटल फ़ैट-0% , टोटल कर्ब-0%, प्रोटीन-0%। जिस पानी को मिनरल वाटर कह कर बेचा जाता है इसमें कहीं नही लिखा है कि कौन सा मिनरल कितने प्रतिशत है ।
इससे पता चलता है कि जिस पानी का इस्तेमाल हम अमृत समझकर कर रहे हैं वह मरा हुआ है। उसमें जीवन नाम की चीज कहीं नहीं है। बस बासी पानी पिए जा रहे हैं और अपनी सेहत खराब कर रहे हैं।
एक कम्पनी की पानी की बोतल पर कहीं नहीं लिखा है कि इस पानी का इस्तेमाल कितने दिनों तक करना है, कोई एक्सपायरी डेट इस पर नहीं लिखी है। कुछ कम्पनियाँ तो लोगों की धार्मिक भावनाओं का दोहन कर रही हैं, गंगाजल के नाम से नल का पानी भर कर बोतल में बेच रही हैं।
बोतल पर लिखा है-- न्युट्रिशियन फ़ैक्टस--कैलोरी -0, टोटल फ़ैट-0% , टोटल कर्ब-0%, प्रोटीन-0%। जिस पानी को मिनरल वाटर कह कर बेचा जाता है इसमें कहीं नही लिखा है कि कौन सा मिनरल कितने प्रतिशत है ।
इससे पता चलता है कि जिस पानी का इस्तेमाल हम अमृत समझकर कर रहे हैं वह मरा हुआ है। उसमें जीवन नाम की चीज कहीं नहीं है। बस बासी पानी पिए जा रहे हैं और अपनी सेहत खराब कर रहे हैं।
कम्पनियों ने अपना मार्केटिंग नेटवर्क इतना तगड़ा बना लिया है कि अब गाँव-गाँव तक इन्होने अपनी पहुंच बना ली है। गाँव-गाँव में अब पानी बेचा जा रहा है।
व्यक्ति की कमाई का एक बड़ा हिस्सा पानी खरीदने पर खर्च हो रहा है। अभी तो यह बीमारी प्रारंभिक अवस्था में है लेकिन कुछ दिनों के बाद महामारी का रुप धारण कर लेगी। इसलिए जहां तक हो सके बोतल बंद पानी का बहिष्कार करें। अपने प्राकृतिक स्रोतों के पानी का उपयोग करें।
पानी के प्राकृतिक स्रोतों को दुषित होने से बचाएं। वाटर हार्वेस्टिंग के द्वारा बरसात के पानी को जमा कर जल स्तर को बढाएं। पानी का धंधा करने वाले पापियों को प्रोत्साहन न दें। अपनी आने वाली पीढी को विरासत में जल खरीद कर न पीना पड़े ऐसा कुछ काम करें।
अपना पानी का धंधा चलाने के लिए पानी के प्रदुषित होने का प्रचार कर अपना उल्लु सीधा कर रहे हैं, आम आदमी की जेब पर डाका डाल कर अपनी तिजोरी भर रहे हैं। पानी बेचने वाले पापियों को करारा जवाब दें।
व्यक्ति की कमाई का एक बड़ा हिस्सा पानी खरीदने पर खर्च हो रहा है। अभी तो यह बीमारी प्रारंभिक अवस्था में है लेकिन कुछ दिनों के बाद महामारी का रुप धारण कर लेगी। इसलिए जहां तक हो सके बोतल बंद पानी का बहिष्कार करें। अपने प्राकृतिक स्रोतों के पानी का उपयोग करें।
पानी के प्राकृतिक स्रोतों को दुषित होने से बचाएं। वाटर हार्वेस्टिंग के द्वारा बरसात के पानी को जमा कर जल स्तर को बढाएं। पानी का धंधा करने वाले पापियों को प्रोत्साहन न दें। अपनी आने वाली पीढी को विरासत में जल खरीद कर न पीना पड़े ऐसा कुछ काम करें।
अपना पानी का धंधा चलाने के लिए पानी के प्रदुषित होने का प्रचार कर अपना उल्लु सीधा कर रहे हैं, आम आदमी की जेब पर डाका डाल कर अपनी तिजोरी भर रहे हैं। पानी बेचने वाले पापियों को करारा जवाब दें।
भाई जान आपने सही लिखा हे पानी बेचने वाला धर्म का गुनाहगार हे लेकिन दूसरी बात और हे पुरे रूपये लेकर भी यह व्यापारी शुद्ध पानी जनता को नहीं बेचते हें और कई लोग इसी पानी के केमिकल कम ज्यादा होने से बीमार हो जाते हें क्योंकि यह पानी वाले या तो खुद नेता हें या फिर नेता के कार्यक्रमों में मुफ्त पानी भेजकर उन्हें पता लेते हें इसीलियें तो इनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती आपने ठीक मुद्दा उठाया बधाई हो. अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात ! बहुत ही अच्छा विषय और बडी ही सादगी-संजीदगी के साथ उठाया है भाई जी । एक वो भी जमाना था जब बडे कहे जाने वाले लोग धर्मार्थ जगह-जगह पीने के पानी का इंतजाम किया करते थे ,अब वे ही बडे कहे जाने वाले लोग जगह-जगह पीने के पानी का इंतजाम कर रहे हैं लेकिन अब धर्मार्थ नहीं अब धनार्थ कर रहे हैं , पाप का घड़ा जल्दी भरे और फ़ूटे भी , इन्हीं कामनाओं के साथ - आशुतोष
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक मुद्दा उठाया आपने .. ये दुर्भाग्य ही है हमारा कि हमें पानी खरीद कर पीना पड़ रहा है ... यहाँ दिल्ली और एन सी आर में जमीन का पानी मिलने के बावजूद पीने लायक नहीं होता ... मजबूरन लोग पीने का पानी खरीद कर पीते हैं ... ज़मीन का पानी भी दूषित हो गया है ... इसके दोषी भी तो हम ही हैं ... तो खामियाजा कौन भुगतेगा.
जवाब देंहटाएंहापुड स्टेशन पर मैंने स्वयंसेवकों और स्काउट बच्चों द्वारा ट्रेन यात्रियों को मुफ्त में पानी पिलाते और बोतल आदि भर कर देते देखा है ... मन सुखद अनुभूति से भर जाता है देख कर ..
इस मामले में राजस्थान में स्थिति फिर भी ठीक है ,एक तो राजस्थान में प्याऊ हर जगह उपलब्ध होती है और राजस्थान के बस अड्डों पर आरओ मशीने लगी है जिन पर ७ रु. में एक लीटर की पानी की बोतल मिल जाती है और यदि आपके पास बोतल है तो चार रु. में एक लीटर प्यूरीफायड पानी मिल जाता है |
जवाब देंहटाएंबाकि जगह तो भगवान ही मालिक है हर जगह व्यवसायिकता ही नजर आती है |
पहेली से परेशान राजा और बुद्धिमान ताऊ | ज्ञान दर्पण
पानी रे पानी ....
जवाब देंहटाएंभईया, 14 रूपये के एक बोतल पानी को छत्तीसगढ़ के मंझोले/बड़े होटलों में 40 से 100 रूपया तक में बेंचा जाता है, और नियम ऐसा कि आपको मिनरल वाटर लेना ही होगा, वेटर बिना कुछ बोले आपके ग्लास में मिनरल वाटर का बोतल खोलकर पानी डालेगा. यानी बैठने का भी चार्ज. ऐसी व्यावसायिकता तो आपने महानगरों में देखी ही होगी अब यहां भी देख ही रहे हैं मजदूरों को भी पानी खरीद कर पीना पड़ रहा है। हमारे जैसे बड़े मजदूरों की तो हालत ही पतली है। :):)
मैं आपको अमेरिका की बात बताती हूँ वहाँ 500 एमएल की बोतल मिलती है 3 डॉलर की और यदि आप थोक में खरीदें तो पूरी एक दर्जन बोतल 6 डॉलर में मिल जाती हैं। वहाँ अक्सर लोग नल का पानी ही पीते हैं लेकिन वहाँ भी इन बोतलों का चलन तेजी से चल रहा है। हम जितने भी पानी की शुद्धि के लिए जागरूक हो रहे हैं उतनी तेजी से ही बीमारियां बढ़ रही हैं। आदमी व्यापार के लिए क्या नहीं करता? आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी, बधाई।
जवाब देंहटाएंक्या आप अपना गुर्दा बेचना चाहते हैं? क्या आप वित्तीय विराम के कारण पैसे के लिए अपने गुर्दे को बेचने का अवसर तलाश रहे हैं और आपको नहीं पता कि क्या करना है, तो आज हमें आफ़चर अस्पताल में संपर्क करें और ($ 3000000USD) हम गुर्दा के लिए प्रदान करेंगे।
हटाएंहमारे अस्पताल में गुर्दे की सर्जरी होती है और हम खरीद और बिक्री के साथ भी सौदा करते हैं। दाता गुर्दा प्रत्यारोपण एक इसी के साथ रहते हैं हम भारत में स्थित हैं.युसा और नाइजीरिया यदि आप गुर्दे खरीदने या बेचने में रुचि रखते हैं, तो कृपया हमसे संपर्क करने में संकोच न करें
ईमेल: uffurehospital33@gmail.com
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जैसे ही आपको यह मेल प्राप्त होता है, हम आपकी ओर से सुनने की आशा करते हैं
सुन्दर प्रस्तुति. बाजारवाद में जनता जकड़ती जा रही है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा मुद्दा उठाया है ...पानी बेचने वालों की आँख का पानी मर गया है ...सुराही घडों की याद दिला दी ..
जवाब देंहटाएंसही लिखा आपने !
जवाब देंहटाएंरतन जी ने सही कहा है ...मरुप्रदेश में प्याऊ की कमी नहीं ...
जवाब देंहटाएंपानी के व्यापार पर अच्छा जागरूक करता लेख ...!
देखा जाए तो उपरवाले ने सारी चीज़ें मुफ्त में ही दी है, आदमी ने ही उनका बाज़ार बना दिया है, तो इस नज़रिए से तो पानी की भी कीमत होनी चाहिए. हाँ, पर कीमत है तो चीज़ भी उम्दा मिले, मिलावट वाली नहीं. वैसे तो पानी आज भी सुलभता से उपलप्ध है, मैंने तो जहाँ कहीं से पानी माँगा है, अपरिचित होते हुए भी कोई मना नहीं करता.. तो स्थिति तो ठीक ही है, अब आदमी को पैसे खर्च करने की तबीयत हो ओ उसकी मर्ज़ी, पर जैसे मैंने कहा, चीज़ तो उम्दा की होनी चाहिए. वैसे तो मैं घर का पानी ही साथ लेकर चलने का मुरीद हूँ ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही गंभीर मुद्दा उठाया है मगर जायें तो जायें कहाँ, सुनता है कौन यहाँ……………।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंललित भाई,
जवाब देंहटाएंआपने अच्छा मुद्दा उठाया है. पानी का भी कोई मोल हो सकता है भला? लेकिन आजके दौर में सबसे अधिक बीमारियाँ पानी के ही कारण होती है. और यह भी बात सत्य है की एक अदद अच्छा पानी बनाने में काफी अधिक खर्च आता है. ऐसा नहीं है कि हर कंपनी ग्राहकों को लूटती है. मैं एक बहुराष्ट्रीय शीतल पेय कंपनी में कार्यरत हूँ, इसलिए कुछ जानकारी है.
इसे ही कहते हैं घोर कलयुग ...मिनरल कि जगह यमुना का पानी भर कर धडाधड बेचा जा रहा है और लोग आँख बंद करके खरीद रहे हैं ..क्या कहें ..
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा मुद्दा उठाया है आपने और बहुत ही प्रभावशाली तरीके से बात रखी है.
आपकी यह पोस्ट जागरूकता की निशानी है | मै रतन सिंह जी की बात से सहमत हूँ जहा पानी कम है , वंहा पानी बेचा नहीं जाता है (जैसे कि राजस्थान में)लेकिन जहा पानी बहुत है पूरा समुद्र है वंहा पानी बेचा जता है जैसे कि गुजरात में
जवाब देंहटाएंपानी को कैसे साफ़ करे
बाज़ारवाद और भेड़चाल
जवाब देंहटाएंबस यही है समाज का हाल
लालित भाई हमारे यहां पानी की बोतल ००,१९, ००,२९ पेसो के बीच मिलती है, जब कि बोतल की किमत ००,२५ पेसे है जो वापिस हो जाती है, ओर पानी की कबालटी पर कोई शक नही, इतना सस्ता पानी होने के वावजुद हम नल का पानी ही पीते है, ओर जब भी भारत मै आते है तो खुब उबला हुआ पानी ही पीते है,इन भारतियओ बोतलो का पानी वेसा ही है जेसा आप ने बताया, लेकिन मैने महसुस किया कि हमारा मध्यवर्गी समाज इन बोतलो का पानी पी कर अपने आप को शायद अमीर दिखाना चाहता है, मैने कई लोगो से कहा कि आप पानी उबाल कर क्यो नही पीते, तो मुझे उन का जबाब सुन कर हेरानगी हुयी, कि यार अब पीने के पानी पर भी क्या कंजुसी, जब कि उन की आमदनी बहुत कम थी, तो यह भी एक स्टाईल बन गया है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
ललित जी.. बाज़ार से लड़ने की जरुरत है.. अनुशाशन की जरुरत है... उदहारण के तौर पर मैं तो १००० की मी की यात्रा पर भी जाता हू तो १० लीटर पानी लेकर चलता हू.. जहाँ मौका मिलता है सार्वजनिक नलके से पानी लेता हू... आपनी आँखों से हमने साधारण नलके से पानी को पैक करते देखा है... यदि हम व्यकितगत स्तर भी बहिस्कार करें तो देखिये फर्क आएगा... सुंदर पोस्ट
जवाब देंहटाएं@भाई पद्म सिंह
जवाब देंहटाएंआपने हापुड़ स्टेशन पर स्वयं सेवकों से पानी पी लिया तो अच्छा किया। लेकिन भूल कर भी कभी खरीदकर या किसी से चाय मत पीना, नहीं तो किडनी फ़ेल मानों क्योंकि इस स्टेशन पर दूध की जगह पोस्टर कलर की चाय मिलती है इलायची वाली। सनद रहे।
@arun c roy
जवाब देंहटाएंभाई साहब एक बार मैने ग्वालियर में बोतल का पानी लिया बेचने वाले से। पैसे देकर बोतल का ढक्कन खोलने लगा तो उसकी सील टूटी हुई थी। मतलब बोतल रिफ़िल थी। जैसे उसे पकड़ने बोगी से उतरा,तब तक वह लापता हो चुका था।
दिन दहाड़े धोखा धड़ी हो गयी। रेल्वे स्टेशनों का बुरा हाल है। पैसेन्जरों को तो मौत का सामान बेचा जा रहा है और पैसेन्जर पैसा देकर खरीद रहे हैं।
आभार
मुफ्त में अच्छा पानी नहीं मिले तो पैसे देने ही पड़ते है.. पर समस्या ये है की यहाँ पैसे देकर भी शुद्ध पानी नहीं मिलता...
जवाब देंहटाएंएक दम सही कहा, आज देश समाज को आप जैसे जाग्रत इन्सान की जरूरत है। पानी पिलाना पहले पुण्यकर्म था, आज प्यासे की जेब निचोडी जाती है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट लिखी है आपने ऐसे ही पोस्ट लिखकर ब्लोगिंग के सहारे जागरूकता फ़ैलाने तथा व्यवस्था को सुधारने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है ...सार्थक और सराहनीय ब्लोगिंग के साथ-साथ ब्लोगिंग का बेहतर उपयोग करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही आपने, इसीलिये कहा जाता है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिये ही लडा जायेगा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
विड़ंबना है कि बोतल का पानी "स्टेटस सिंबल" बन गया है। इस जहरीले पेय को मां-बाप अपने बच्चों को पिलवा कर बड़ी शान से कहते हैं, हमारा टिल्लू तो इस पानी या "कोल्ड़ ड्रिंक" के सिवा दूसरा पानी पीता ही नहीं।
जवाब देंहटाएंआजकल पानी के धंधे में सबसे ज्यादा कमाई है भाई । और लोग कर भी रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंसार्थक पोस्ट...अच्छा मुद्दा लिया.
जवाब देंहटाएंभईया बड़ा हे गंभीर मुद्दा उठाने के लिए बधाई आभार.
जवाब देंहटाएंललित जी ! आपने बहुत ज्वलंत समस्या पर
जवाब देंहटाएंआवाज़ उठायी है. आपका अनुभव पढ़ कर मुझे
कई साल पहले लिखी अपनी एक कविता की इन पंक्तियों
की याद हो आयी -
' देखो इन मूर्खों को ,जो बेच रहे हैं पानी को ,
कहो तो बादल ने क्या इसका मोल लगाया !
मेहनत करने वालों ने जो फसल उगायी,
बाजारों में शोषक ने उसका बोल लगाया !'
पानी तो हम इंसानों के लिए कुदरत का अनमोल तोहफा है .
इसे बेचकर इंसान अपनी इंसानियत को बेच रहा है,कुदरत को बेच रहा है .
आपके आलेख में यह सन्देश भी छुपा है कि
अगर इंसान कर रहा है पानी बेचने का पाप ,
तो उसे ज़रूर लगेगा कुदरत का अभिशाप .
इस गंभीर समस्या पर सबका ध्यान दिलाने के लिए
बहुत-बहुत आभार .
Rahiman paani rakhiye bin pani sab sun....bahut hi bhadiya aur sarthak aalekh hai bhaisaab.
जवाब देंहटाएंअनुष्का
बस ऐसे ही मन में आया कि जब मनुष्य स्वयं बिकाऊ है तो पानी किस खेत की मूली है? मुहावरे का प्रयोग ठीक नहीं किया शायद, फिर भी रहने देते हैं।
जवाब देंहटाएंमुद्दा सही उठाया है आपने, लेकिन समय के साथ सब बदल रहा है। पानी की ही बात क्यों करते हैं, कुछ साल पहले तक दू़ध बेचना और पूत बेचना भी एक माना जाता था। लुधियाना स्टेशन के बारे में अखबार में ही खबर छपी थी कि गर्मियों में गाड़ी जब स्टेशन पर पहुंचती थी तो रेलवे के नल से सप्लाई बंद कर दी जाती थी, मजबूरी में लोग पानी खरीदते थे। और दिल्ली\नई दिल्ली स्टेशनों पर डिब्बों के अंदर पांच पांच रुपये में ठंडे पानी की बोतलें बिकती बहुत देखी हैं, वही फ़ेंकी हुई बोतलों को नल से भर कर बेचने का किस्सा।
जवाब देंहटाएंहम तो इंतजार कर रहे हैं उस समय का जब धूप, हवा भी मोल बिकेंगी।
जागरूक करने वाली पोस्ट..और पोस्टर कलर वाली चाय ...उफ़...सुन कर ही रूह सिहर गई|
जवाब देंहटाएंब्रह्माण्ड
कमाल की सजीव अभिव्यक्ति है और मुद्दा बहुत ही सही उठाया है आपने!
जवाब देंहटाएं--
दो दिनों तक नेट खराब रहा! आज कुछ ठीक है।
शाम तक सबके यहाँ हाजिरी लगाने का
@शर्मा जी... चाय पिए हुए इस दिसंबर में पूरे बीस वर्ष बीत जाने वाले हैं ... तब चाय अठन्नी की थी शायद ... आज पांच रुपये की ... अब तो स्वाद भी याद नहीं रहा चाय का ... रही बात ट्रेनों और स्टेशनों पर मिलने वाली चाय की .. तो शायद ही कहीं शुद्ध दूध की चाय मिले... लेकिन हम पीते हैं ... सब चलता है की भावना से
जवाब देंहटाएंWonderful Article..It has very rich content. Thanks for sharing..
जवाब देंहटाएंयह मेरे बारे में एक सच्ची जिंदगी कहानी है और नारायण अस्पताल में डॉ .राज, जिसने मुझे अपने गुर्दे में से एक पैसे के लिए दिया और उसने मुझे प्रत्यारोपण से कुछ दिन पहले कुछ 190,000,00usd राशि का भुगतान किया, मैं बहुत होता था गरीब और मुझे खाने के लिए मुझे मुश्किल लगती है, मैं इस बात के बारे में बात करता हूं कि कैसे डॉक्टर राज ने अपने गुर्दे को एक केन शॉन द्वारा भारी मुआवजा दिया, जिन्होंने रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति से कहा
जवाब देंहटाएंइसे एक परीक्षण देना चाहिए और साक्ष्य के लिए वापस आना चाहिए, मैंने ईमेल को (narayanahealthcare.in@gmail.com) के रूप में कॉपी किया और उसे तीन घंटे से भी कम समय में ईमेल किया, मुझे डॉक्टर से जवाब मिला और हमने सौदा किया और मैंने एक बोल्ड कदम उठाया सभी आवश्यक समझौते, कुछ और दिनों में मुझे दोनों के द्वारा सहमति के रूप में भुगतान किया गया और एक तारीख को ऑपरेशन के लिए लिया गया और बिना किसी मुद्दे के रोगी को बचाने के लिए मुझ पर संचालित किया गया और मुझे अपना शेष राशि मिल गया, अब मैं वित्तीय रूप से व्यवस्थित हूं और फर्म, कृपया अस्पताल से संपर्क करने में संकोच न करें (narayanahealthcare.in@gmail.com)
मेरी वित्तीय समस्या जीवन में खत्म हो गई है और अब मैं खुश रहूंगा। धन्यवाद मालिक