विश्व सर्व क्रियामाणस्य यस्य स: विश्वकर्मा, ॠग्वेद कहता है कि विश्व में जो कुछ भी दृष्टिगोचर हो रहा है। उसके निर्माता विश्वकर्मा हैं। महर्षि दयानंद कहते हैं, ईश्वर एक है जब वह निर्माण के कार्य को करता है तो विश्वकर्मा कहलाता है। यजुर्वेद कहता है,शिल्पौ वै श्रेष्ठम कर्म:।
आज 17 सितम्बर है भगवान विश्वकर्मा की पूजा के लिए नियत दिन है। इस दिन संसार के सभी निर्माण के कर्मी भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना करके अपने निर्माण कार्य में कुशलता की कामना करते हैं। यह पर्व धूम धाम से मनाया जाता है।
किसी चित्रकार ने भगवान विश्वकर्मा का चित्र बनाया है जब मैं उसे देखता हूं तो उनके सिंहासन के पीछे समस्त 16 कलाओं के औजारों को दर्शाया गया। जिसमें एक चित्रकार की तुलिका से लेकर अभियन्ता तक का पैमाना है।
औजारों के बिना निर्माण का कार्य सम्पन्न नहीं होता। व्यक्ति के मस्तिष्क कौशल से औजार काम करते हैं तथा धरा की सुंदरतम रचना को जन्म दे देते हैं। आदि काल से निरंतर शिल्पी इस कार्य को अंजाम देते आए हैं। आज तक उनकी साधना अहर्निश जारी है।
पता नहीं क्यों ललित कलाएं मुझे सदा से आकर्षित करती रही हैं। जहां भी मैने प्राचीन एवं नवीन निर्माण कार्य देखे, उनका निरीक्षण जी भर के किया। उसके तकनीकि पक्ष पर विशेष ध्यान दिया। हजारों वर्ष पुराने निर्माण आज भी दर्शक के मन में कौतुक जगाते हैं कि इसे किस तरह निर्मित किया गया होगा जब निर्माण के संसाधन इतने सीमित थे। अजंता-एलोरा की गुफ़ाओं से लेकर दक्षिण के विशाल मंदिरों तक शिल्पियों द्वारा किए गए अद्भुत निर्माण कार्य आश्चर्य चकित कर देते हैं।
महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि राजा भोज के काल में शिल्पियों ने एक काठ के घोड़े का निर्माण किया था। यह घोड़ा एक घटी में साढे 27 कोष चलता था। इसकी यह विशेषता थी कि यह जल थल आकाश में एक जैसा ही चलता था। वर्तमान में वैज्ञानिकों ने इसकी नकल करने की कोशिश की है “हावर क्राफ़्ट” बनाकर। लेकिन “हावर क्राफ़्ट” सिर्फ़ जल और थल में चलता है, आकाश में उड़ नहीं सकता। लेकिन आधुनिक मानव का प्रयास जारी है। प्राचीन निर्माणों की तकनीक समय चक्र में खो गई, अब उसे पुन: प्राप्त करना होगा।
भारतीय शिल्प विज्ञान
मानव सृष्टि जब से उत्पन्न हुई तब से भारतीय शिल्प ज्ञान प्रकाशित होने लगा। इसकी जानकारी तिब्बत में मिलती है, जिसे त्रिविष्टप प्रदेश कहा जाता था। ल्हासा के पुस्तकालय में अनेक प्राचीन ग्रंथ और पुस्तके हैं जिनसे भारतीय शिल्प विज्ञान का पता चलता है। इन ग्रंथो में चित्र भी बनाए गए हैं जिससे तकनीक को समझने में आसानी हो।
स्वामी सत्यदेव एलोरा पर लिखते हैं कि” ऐसा मंदिर मैने पृथ्वी पर कहीं नहीं देखा जिस शिल्पी ने इसे बनाया होगा,उसके हृदय में इसकी रचना अवश्य रही होगी। यह कैलाश मंदिर सचमुच ईश्वरीय विभूति है।
डॉक्टर फ़र्गुशन लिखते है कि हिन्दू लोग प्राचीन काल में लोहे के इतने बड़े-बड़े खम्बे बनाते थे, जो यूरोप में अब तक बहुत कम देखने में आते हैं.कनिष्क के मंदिर और दिल्ली के यमुना स्तंभ के विषय में लिखते हैं कि1400 वर्षों तक हवा पानी और मौसम की मार झेलते हुए भी अभी तक जंग नहीं लगा है। यह बड़े आश्चर्य की बात है।
सर जॉन मार्शल लिखते हैं अजन्ता की चित्रकारी आँखों को चकाचौंध करती है। इससे मालूम होता है कि भारतीय शिल्पकारी में दैवी शक्ति थी।
ई पी हैवेल कृत “द इंडियन आर्ट” में वर्णन है कि मथुरा के अजायब घर में बुद्ध की मूर्ति में जो सौंदर्य है उससे बौद्ध कालीन शिल्प कला कौशल का ज्ञान होता है। मूर्ति का सौंदर्य बताता है कि भारतीय शिल्प कला के कितने उच्च कोटि के विद्वान थे।
रींवा स्टेट विन्ध्य प्रदेश के घोघर में अजायब घर के सामने शिव पार्वती की मूर्ति स्थापित है, यह रींवा के जंगल से लाई गई है, कुछ मूर्तियां आद्य शंकराचार्य के समय की जमीन से खोद कर निकाली गयी हैं, इनमें महावीर और महात्मा गौतम बुद्ध की मूर्तियाँ शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। शिव पार्वती की 12 फ़ुट ऊंची मूर्ति बड़ी ही सुंदर है।
आज विश्वकर्मा पूजा दिवस होने के कारण हम शिल्पकारों को याद कर रहे हैं जिन्होने हमारे विश्व को सुंदर बनाने के लिए अपना खून पसीना एक किया और विश्व को अपने जमाने की श्रेष्ठतम कला कृतियाँ दी। शिल्प के देवता भगवान विश्वकर्मा को हमारा शत शत नमन।
सहस्त्रशीर्षा पुरुष: सहस्त्राक्ष: सहस्त्र पात्।
सभूमि विश्वतो स्पृत्वात्यतिष्टद्दशांङूलम्॥
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से,आप इसी तरह, ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
ललित कलाओं की शौकिन रही हूं मैं भी.रचनाकार ने जब भी कोई खूब सूरत रचना रच,मुग्ध हो गई. प्राचीन काल की ललित कलाओं मे मूर्ति कला और स्थापत्य कला के दर्शन ही होते है,चित्र कला के नमूनों को समय और इंसान ने क्षति पहुंचाई,वे कहीं रही भी है तो नाम मात्र की.चित्तौड दुर्ग पर चित्र कला के नाम पर कहीं कहीं खंडहरों मे बने चित्रों के चटख रंग देखने को मिल जाते है.समय की मार ने चित्रों के रूप बिगाड़ दिए किन्तु बचे अंश उस काल के तकनीक ज्ञान को बतलाते है.बिना करें की सहायता से विशाल भू-खंडों का दुर्ग की प्राचीरों मे इस्तमाल देख कर आश्चर्यचकित रह जाती हूं.भारत ललित कलाओं के क्षेत्र मे जितना उन्नत रहा है शायद ऐसे उदाहरण दुनिया के किसी अन्य भाग मे देखने को नही मिलते.
जवाब देंहटाएंलाली कलाओं पर बात करने के लिए बहुत कुछ है.
अमृता शेरगिल,राजा रवि वर्मा से लेके तानसेन,बैजू तक.ताज,क़ुतुब मीनार से ले के ढाई दिन के झोंपड़े तक.
विशालकाय कलाकृतियों से ले के मिनिएचर पेंटिंग्स तक.संगीत,निर्त्य,मूर्ती-कला,स्थापत्य,शिल्पकला तक.विश्व को छोड़ दे तो भी भारत की इन् कलाओं के विषय मे पढ़ने,लिखने और बात करने के लिए भी जीवन छोटा लगता है.
मुझे तो 'उसकी' बने एक पट्टी,एक पंखुड़ी,एक कीट तक मुग्ध कर देता है.मानव निर्मित कलाकृतियों ईश्वर तक को मुग्ध कर दे ऐसी ख़ूबसूरती मानव हाथों से पाई है.इन् रचनाओ को रचने वाले कई नाम इतिहास और समय के पन्नों मे विलुप्त हो गए किन्तु उनको उनके सब के कार्यों को मेरा शत शत प्रणाम.
आप और भी जानकारियां देते रहेंगे इसी आशा के साथ आप का लेख.....लोगों को इन पर पुनह विचार करने के लिए बाध्य करेगा.
आप वेब विधा के आधुनिक शिल्पी हैं, इसलिए आज की तिथि का चयन हर तरह से उपयुक्त है. व्यापक विषय को समेटने का बीड़ा आपने उठा लिया है, बहुत-बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंदेव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा को शत शत नमन| रोचक एवं महत्वपूर्ण जानकारी के लिए शुक्रिया|
जवाब देंहटाएंब्रह्माण्ड
बढ़िया जानकारियों के साथ-साथ एक बहुत ही बेहतरीन प्रयास! बहुत-बहुत शुभकामनाएँ! छोटा मुंह और बड़ी बात है, फिर भी कहने के लिए दिल ने कहा इसलिए कह रहा हूँ, कि आपको अपने इस प्रयास में कभी भी किसी भी तरह की सहायता की आवश्यकता हो तो मुझे नि:संकोच बताइयेगा, मुझे ख़ुशी होगी!
जवाब देंहटाएं@Shah Nawaz
जवाब देंहटाएंभाई,सहयोग की आवश्यकता तो महती योजना में हमेशा बनी रहती है।
आपको अवश्य ही याद किया जाएगा।
आभार
ललित कला के विषय में अति सुन्दर पोस्ट!
जवाब देंहटाएंईश्वर आपको अपने उद्देश्य में सफलता प्रदान करे!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन प्रयास! बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंसुंदर और ज्ञानवर्धक आलेख. बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंके लिए बधाई. श्रम और शिल्प के देवता भगवान्
विश्वकर्मा की जयन्ती के शुभ अवसर पर आपको और
ब्लॉग जगत के सभी दोस्तों को हार्दिक शुभकामनाएं .
ललित कला ही जीवन है। आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी ....बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंअरे मामासाब, आपने तो बहुत अच्छी अच्छी बाते बताई .....आपके इतने श्रेष्ठ प्रयासों के लिए मेरी और मम्मा की ढ़ेर साडी शुभकामनाए आपको
जवाब देंहटाएंनन्ही ब्लॉगर
अनुष्का
इस बेहतरीन पोस्ट और बढिया जानकारी को हम तक पहुंचाने के लिये आभार
जवाब देंहटाएंप्रणाम स्वीकार करें
देव शिल्पी पर बेहतरीन पोस्ट आपका नाम ही ऐसा है तभी तो ललित कलाओं आपको आकर्षित करती हैं :)
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा जानकारी मिली आभार.
भारत की शिल्प कला का डंका सारे विश्व में बजता है और बजता रहे. आपको भगवान् विश्वकर्मा जयंती और वेब पोर्टल लोकार्पण की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंबहुत सराहनीय कार्य है, भगवान् आपकी मदद करे.
जवाब देंहटाएंहमारीवाणी को और भी अधिक सुविधाजनक और सुचारू बनाने के लिए प्रोग्रामिंग कार्य चल रहा है, जिस कारण आपको कुछ असुविधा हो सकती है। जैसे ही प्रोग्रामिंग कार्य पूरा होगा आपको हमारीवाणी की और से हिंदी और हिंदी ब्लॉगर के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओँ और भारतीय ब्लागर के लिए ढेरों रोचक सुविधाएँ और ब्लॉग्गिंग को प्रोत्साहन के लिए प्रोग्राम नज़र आएँगे। अगर आपको हमारीवाणी.कॉम को प्रयोग करने में असुविधा हो रही हो अथवा आपका कोई सुझाव हो तो आप "हमसे संपर्क करें" पर चटका (click) लगा कर हमसे संपर्क कर सकते हैं।
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एतदेदेशे प्रसूतस्य सकासादग्रजन्मनः।
जवाब देंहटाएंस्वं स्वं चरित्रम् शिक्षेरन् पृथिव्याम् सर्वमानवा:!
बहुत ही सुंदर, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
विश्वकर्मा जयंति पर आपका ये लेख बहुत ही सुंदर बन पडा है । ललित कलाओं में आपकी रुचि तो होगी ही आपका नाम तो यही बताता है । भारत की विभिन्न शिल्प कलाओं की चर्चा आपकी बहुत अच्छी रही ।
जवाब देंहटाएंआप यूं ही तरक्की करते रहे
जवाब देंहटाएंवेबसाइट के खुलने पर बधाई
बधाई उन सबको जो आपके साथ वेबसाइट के शुभारंभ अवसर पर मौजूद थे.
आप निरन्तर सफलता प्राप्त करें यही कामना है
आशा है आप स्वस्थ व सानंद होंगे
ज्ञानवर्धक जानकारी के साथ ही आपने बेहतरीन पोस्ट प्रस्तुत किया है ...........सादर बधाई प्रेषित कर रहा हूँ कृपया स्वीकार करें !!
जवाब देंहटाएंप्राचीन युग की गरिमा, संस्कृति, शिल्प, कला, कौशल, संस्कारों किसी भी चीज को हम लोग सहेज कर नहीं रख सके... आपकी पिछली बीस पोस्ट अभी पढ़ीं. आनन्द आया...
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की शुभकामनायें हम तक प्रेम, स्नेह में लिपट पर पहुँचीं.
मित्रों की शुभकामनायें हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देतीं हैं.
आभार
आपने इस लेख में बहुत अच्छी और ज्ञानवर्धक जानकारी दी है। धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकी बोर्ड - माउस रूपी अत्याधुनिक कलम के शिल्पी को शुभ कामनाएं।
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने।
जवाब देंहटाएं................
खूबसरत वादियों का जीव है ये....?
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