बिस्तर पर करवटें बदलते लोग सोने के लिए स्लीपिंग पिल्स का सहारा लेते हैं। थककर चूर हुआ आदमी बस लेटने की जगह ढूंढता है। नींद का संबंध मनुष्य के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है। बस वह आनी चाहिए, फ़िर कुछ नहीं नजर आता। सिर्फ़ सोना और सोना।
एक बार 20 साल पहले मैं भी अकेला चित्तौड़ के प्लेट फ़ार्म पर सो गया, भीलवाड़ा जाने के लिए ट्रेन आने में चार घंटों का विलंब था। नींद आ रही थी, प्लेटफ़ार्म के बाहर ठंडी हवा चल रही थी और नींद आ रही थी। फ़िर क्या?
वहीं सड़क पर पेपर बिछाया और बैग सिरहाने लगा कर सो गया। बड़ी गहरी नींद आई। खुले आसमान में फ़ुटपाथ की वह नींद याद आने पर आज तक तरोताजा करती है। कहते हैं न " भूख न देखे सूखी रोटी, भूख न देखे सूखी खाट"
बुलढाणा का घाट |
वहीं सड़क पर पेपर बिछाया और बैग सिरहाने लगा कर सो गया। बड़ी गहरी नींद आई। खुले आसमान में फ़ुटपाथ की वह नींद याद आने पर आज तक तरोताजा करती है। कहते हैं न " भूख न देखे सूखी रोटी, भूख न देखे सूखी खाट"
ढाबे में नींद-खाट की वाट |
कार में सोना ही सोना |
नागपुर से प्लान करके निकले थे कि मुंबई जाना है धुलिया रोड़ पर मलकापुर के पास साले साहेब का फ़ोन आ गया कि वे चिखली(बुलढाणा) मे अपनी ससुराल में हैं। आपको यहां आना ही पड़ेगा। लेकिन हमने बताया कि बहुत दूर निकल चुके हैं वापस आने के लिए 125 किलो मीटर आना पड़ेगा। हम नहीं आ सकते।
कुछ देर बाद घर से सुप्रीम अथारिटी का फ़ोन आ गया कि हमें वहां जाना ही पड़ेगा। मरते क्या न करते, गाड़ी वापस घुमाई और नांदुरा से मोपाळा-बुलढाणा होते हुए 11 बजे चिखली पहुंचे।
यहां स्नान भोजन आदि से निवृत होकर अब दुसरा प्लान बना की शनि सिंघणापुर देखते हुए चलते हैं। यह स्थान औरंगाबाद पूना हाईवे पर 76 किलोमीटर पर है। गाड़ी की टंकी फ़ुल करके सिंघणापुर चल पड़े। मुंबई जाना स्थगित हो गया।
सही कहा जी, नीरज जी तो चलती गाड़ी में भी मजे से सो रहें हैं.
जवाब देंहटाएंगाड़ी की टंकी फुल है और यात्रा बिना लक्ष्य की है ???
ए खुदा ऐसी किस्मत हर प्रायवेट की नौकरी वालों को भी दे. :) :)
नींद से बढ़कर भला और क्या चीज हो सकती है? इसीलिये तो 'गोपालप्रसाद व्यास' अपनी रचना "आराम करो" में फरमाते हैं
जवाब देंहटाएंमेरी गीता में लिखा हुआ-
जो सच्चे योगी होते हैं ,
वे कम-से-कम बारह घंटे
तो बेफिक्री से सोते हैं।
बस नींद ही इतनी प्यारी चीज़ है जब उसे आना होता है फिर नखरे नही करती।। बहुत अच्छी लगी पोस्ट धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंरोचक....
जवाब देंहटाएंभूख न देखे सूखी रोटी-नींद न देखे टूटी खाट
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है भाई ।
लेकिन गलत समय पर न आ जाये , इसका ध्यान रखिये । ड्राइवर के साथ बैठकर सोना ठीक नहीं ।
वैसे इस यात्रा को देखकर लगता है कि हम भी कितने बंधनों में बंधे रहते हैं । वर्ना दुनिया बहुत बड़ी है देखने के लिए और समय कितना कम । जारी रखिये , हमें भी आनंद आ रहा है ।
शुभकामनायें ।
महराज पाय लागी। सोने के मामले मे अपुन भी एकदम बिन्दास! भिलाई से राजनान्दगांव बीस मिनट का रास्ता, पर एक झपकी ले लेते हैं टरेनवा मे। नाइस पोस्ट।
जवाब देंहटाएंकहीं पर धूप की चादर बिछा कर सो गये
जवाब देंहटाएंकहीं पर शाम सिरहाने लगा कर सो गये...
भूख न देखे सूखी रोटी-नींद न देखे टूटी खाट आप की इस बात से सहमत है , बिलकुल सही कहा. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयार सच कहूं भाई तो जीवन तो तुम्हारा ही है।
जवाब देंहटाएंशानदार... मजेदार और धारधार
कभी मैं भी ऐसे ही जीवन का मालिक हुआ करता था।
अब नहीं हूं।
फिर भी कभी-कभी बन जाता हूं। जब सनक चढ़ जाती है तो..
... जय जोहार!!!
जवाब देंहटाएं... रिमझिम मौसम है दो-दो चार-चार फ़ोटो का ही पोस्ट लगाते रहो... आपके साथ साथ हम भी फ़ोटो देख देख के यात्रा का आनंद लेते रहेंगे !!!!
जवाब देंहटाएंपोस्ट गज़ब है
जवाब देंहटाएंशानदार है
घुमक्कडी जिन्दाबाद :)
जवाब देंहटाएंवाह बढिया घुमक्कडी हो रही है और नींद का तो ऐसा है कि आनी चाहिये बस फिर न बिस्तर चाहिये न खाट ।
जवाब देंहटाएंअच्छा है ... अभी घूम लीजिए ... बड़े हो कर बहुत जिम्मेदारियां आ जाती हैं ...
जवाब देंहटाएंइसीलिये मज़दूर नीन्द के गोली नही खाते
जवाब देंहटाएंउम्दा पोस्ट, आपके लेखन को हम नमन करते हैं,
जवाब देंहटाएंसभी विषयों पर अपना कीबोर्ड खटखटा देते हैं.