आरम्भ से पढ़ें
एयरपोर्ट से बाहर निकलने पर सबसे पहले इडली पर हाथ साफ़ किया और फ़ास्ट ट्रेक टैक्सी का रेट पूछा पान्डीचेरी जाने के लिए।
उसने 3600 रुपए और टोल अलग से लगेगा बताया। जबकि बस से जाने पर 55 रुपए से लेकर अधिकतम 170 रुपए ही लगते। लेकिन उसके लिए बस स्टैंड तक के लिए 800 रुपए टैक्सी के देन पड़ते।
तभी एक एम्बेसेडर टैक्सी वाला आ गया। उसने 2200 रुपए किराया कहा तो हमने मोल भाव करके 1800 रुपए में उसे तय किया और चल पड़े पान्डीचेरी की ओर।
यह टैक्सी एयरपोर्ट स्टैंड के बाहर की थी इसलिए आधी कीमत में मिल गयी अगर बुथ से लेते तो 3600 ही लगते।
एयरपोर्ट से बाहर निकलने पर सबसे पहले इडली पर हाथ साफ़ किया और फ़ास्ट ट्रेक टैक्सी का रेट पूछा पान्डीचेरी जाने के लिए।
उसने 3600 रुपए और टोल अलग से लगेगा बताया। जबकि बस से जाने पर 55 रुपए से लेकर अधिकतम 170 रुपए ही लगते। लेकिन उसके लिए बस स्टैंड तक के लिए 800 रुपए टैक्सी के देन पड़ते।
तभी एक एम्बेसेडर टैक्सी वाला आ गया। उसने 2200 रुपए किराया कहा तो हमने मोल भाव करके 1800 रुपए में उसे तय किया और चल पड़े पान्डीचेरी की ओर।
यह टैक्सी एयरपोर्ट स्टैंड के बाहर की थी इसलिए आधी कीमत में मिल गयी अगर बुथ से लेते तो 3600 ही लगते।
टैक्सी चालक का नाम कृष्णन था। पुरानी टैक्सी को बड़ी कुशलता से हांक रहा था। रास्ते में एक जगह हमने बोंडा का नाश्ता किया। बहुत ही स्वादिष्ट था। बड़े जैसा ही।
गरमा गरम सांभर और चटनी के साथ मजा आ गया। पान्डीचेरी जाने के लिए दो रास्ते हैं एक गोल्डन बीच होकर जाता है उसे ईसीआर (ईस्ट कोस्ट रोड़) कहते हैं।
दूसरा रोड़ डॉक्टर रामदास के संसदीय क्षेत्र से होकर गुजरता है। रास्ते में बरसात होने लगी थी। लग रहा था कि पान्डीचेरी में बारिश जम कर हमारा स्वागत करेगी। मैने तंगम को फ़ोन लगा कर आने की सूचना दी।
अरविन्दो आश्रम के पास निर्मल गेस्ट हाऊस में हमारा रुम श्रीनिवास ने बुक करवा रखा था।
गरमा गरम सांभर और चटनी के साथ मजा आ गया। पान्डीचेरी जाने के लिए दो रास्ते हैं एक गोल्डन बीच होकर जाता है उसे ईसीआर (ईस्ट कोस्ट रोड़) कहते हैं।
दूसरा रोड़ डॉक्टर रामदास के संसदीय क्षेत्र से होकर गुजरता है। रास्ते में बरसात होने लगी थी। लग रहा था कि पान्डीचेरी में बारिश जम कर हमारा स्वागत करेगी। मैने तंगम को फ़ोन लगा कर आने की सूचना दी।
अरविन्दो आश्रम के पास निर्मल गेस्ट हाऊस में हमारा रुम श्रीनिवास ने बुक करवा रखा था।
रास्ते में टोल पर एक जड़ जैसी चीज बेचने वाला मिला। मुझे तो पता नहीं था ये क्या है लेकिन कृष्णन ने 20 रुपए देकर दो गुच्छियाँ खरीद ली।
उसने बताया कि इसे पणंग कलंगा कहते हैं। फ़िर उसने छील कर बताया कि इसे कैसे खाया जाता है। इसका स्वाद कुछ शकरकंद जैसा ही था। उसे उबाल रखा था। पणंग कलंगा कंद मूल ही है।
ताड़ी के पेड़ में जो फ़ल लगते हैं उसे तोड़ा नहीं जाता। तोड़ने के बाद पेड़ ताड़ी कम मात्रा में देने लगता है। इसलिए ये फ़ल पेड़ पर ही सूख जाते हैं और इसके बीज पत्थर जैसे हो जाते हैं।
इस फ़ल को जमीन में गाड़ने से इसमें से जड़ जैसा कंद निकलता है उसे उबाल कर खाया जाता है। धूसर रंग का यह कंद खाकर हमने भी नए फ़ल पणंग कलंगा का मजा लिया।
उसने बताया कि इसे पणंग कलंगा कहते हैं। फ़िर उसने छील कर बताया कि इसे कैसे खाया जाता है। इसका स्वाद कुछ शकरकंद जैसा ही था। उसे उबाल रखा था। पणंग कलंगा कंद मूल ही है।
ताड़ी के पेड़ में जो फ़ल लगते हैं उसे तोड़ा नहीं जाता। तोड़ने के बाद पेड़ ताड़ी कम मात्रा में देने लगता है। इसलिए ये फ़ल पेड़ पर ही सूख जाते हैं और इसके बीज पत्थर जैसे हो जाते हैं।
इस फ़ल को जमीन में गाड़ने से इसमें से जड़ जैसा कंद निकलता है उसे उबाल कर खाया जाता है। धूसर रंग का यह कंद खाकर हमने भी नए फ़ल पणंग कलंगा का मजा लिया।
हम सीधे गेस्ट हाऊस ही पहुंचे। इस गेस्ट हाऊस में तीसरी बार पहुंच रहे थे। समुद्र और आश्रम यहां से पैदल जाया जा सकता है।
सामान रख कर हम समुद्र के किनारे पहुंच गए।रात के अंधेरे में समुद्र की जलराशि दिखाई नहीं दे रही थी पर उसकी उपस्थिति का अहसास उसकी गर्जना से होने लगा था। शेर जैसी दहाड़ थी समुद्र की।
मैं आँखे बंद करके उसकी उपस्थिति का अहसास करने लगा। रात के अंधेरे में कुछ चित्र लेने की कोशिश की लेकिन चित्र सही नहीं आए। सैलानी समुद्र के किनारे घुम रहे थे।
मैं उस आर्ट गैलरी को ढूंढ रहा था जहां पिछली बार एक चित्र प्रदर्शनी देखी थी। विदेशी चित्रकार ने वाटर कलर का उपयोग करके काफ़ी उम्दा चित्र बनाए थे। हमने टाईम पास भुट्टे लिए।
यहां कलमी आम भी बिक रहे थे। पान्डीचेरी में बरसात का मौसम नवम्बर से लेकर मार्च तक होता है। बारिश कब हो जाए इसका पता ही नहीं चलता। सब समुद्र के मौसम पर आधारित है। अब हमें बाजार की तरफ़ भी जाना था।
सामान रख कर हम समुद्र के किनारे पहुंच गए।रात के अंधेरे में समुद्र की जलराशि दिखाई नहीं दे रही थी पर उसकी उपस्थिति का अहसास उसकी गर्जना से होने लगा था। शेर जैसी दहाड़ थी समुद्र की।
मैं आँखे बंद करके उसकी उपस्थिति का अहसास करने लगा। रात के अंधेरे में कुछ चित्र लेने की कोशिश की लेकिन चित्र सही नहीं आए। सैलानी समुद्र के किनारे घुम रहे थे।
मैं उस आर्ट गैलरी को ढूंढ रहा था जहां पिछली बार एक चित्र प्रदर्शनी देखी थी। विदेशी चित्रकार ने वाटर कलर का उपयोग करके काफ़ी उम्दा चित्र बनाए थे। हमने टाईम पास भुट्टे लिए।
यहां कलमी आम भी बिक रहे थे। पान्डीचेरी में बरसात का मौसम नवम्बर से लेकर मार्च तक होता है। बारिश कब हो जाए इसका पता ही नहीं चलता। सब समुद्र के मौसम पर आधारित है। अब हमें बाजार की तरफ़ भी जाना था।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEivRu-2ocaIhppxE-wf5_Jd9YsgRZKPDhru_x6J2irje3wMYpI8yaqFGzxZrNCVvnoC6zKi0FUm6svUWKZLCiQGxbj91F8HcJNHU0BP06q2jIRHOmzA3SaxVrQnsnM26gSi6VhczvDfE61p/s320/Image2569.jpg)
पाम्पेट फ़िश दिखाई नहीं दी। यह केरल में मिलती है और इसका स्वाद तो मत पूछिए। शंकरा छोटी मछली होती और साबुत फ़्राई की जाती है।
एक सरकारी दुकान में शैम्पेन से लेकर स्कॉच तक की सभी विदेशी ब्रांडेड वाईन मिलती है, एक पैग से लेकर एक लीटर तक की पैकिंग में। आप यहां से वाईन खरीद कर अपने साथ नहीं ले जा सकते।
एकाध बोतल सील तोड़कर ले जाई जा सकती है। गेस्ट हाऊस में ही खाना मंगा लिया। यहां के खाने में नमक और लाल मिर्च का उपयोग बहुत कम किया जाता है। हां गेंहू की रोटियाँ प्राय: होटलों में नहीं मिलती। अब आयोजक गण भी पहुंच चुके थे।
पान्डीचेरी सरकार ने आर्टिसन कॉपरेटिव सोसायटी का निर्माण किया था। जिसका लाभ पान्डीचेरी के परम्परागत शिल्पकारों को मिलना है। उनकी यह मांग काफ़ी पुरानी थी।
हमने भी इसका समर्थन किया था और पिछले दौरे में मुख्यमंत्री और गर्वनर से भी चर्चा की थी। कॉपरेटिव सोसायटी के उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री के साथ मुझे भी विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था।
समारोह 28 नवम्बर को 11 बजे होना था। केरल,कर्नाटक और तमिलनाडु से भी कुछ नए पुराने मित्र पहुंच चुके थे। उसकी सूचना हमें रात को ही मिल गयी थी। आगे पढ़ें
हमने भी इसका समर्थन किया था और पिछले दौरे में मुख्यमंत्री और गर्वनर से भी चर्चा की थी। कॉपरेटिव सोसायटी के उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री के साथ मुझे भी विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था।
समारोह 28 नवम्बर को 11 बजे होना था। केरल,कर्नाटक और तमिलनाडु से भी कुछ नए पुराने मित्र पहुंच चुके थे। उसकी सूचना हमें रात को ही मिल गयी थी। आगे पढ़ें
ललित जी, आपकी यात्राओं का वर्णन मजेदार होता है... अभी इसमें काफी मात्रा बची है..
जवाब देंहटाएंसजीव वर्णन, रास्ते के छोटे छोटे प्रकरण यात्रा को और आकर्षक बना देते हैं।
जवाब देंहटाएंआदरणीय ललित जी
जवाब देंहटाएंआपके यात्रा विवरण रोचक तथा जानकारी पूर्ण होते हैं ...प्रस्तुतीकरण ऐसा होता है की खुद भी यात्रा में शामिल हो जाते हैं ऐसा लगता है ..........आपका सफ़र सुखद रहे ...हार्दिक शुभकामनाएं
आप के यात्रा अनुभवों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
जवाब देंहटाएंस्थानीय संदर्भों के साथ रोचक यात्रा विवरण
जवाब देंहटाएंलगता है टैक्स बचाने के लिए पांडिचेरी का एक चक्कर लगाना ही पड़ेगा :-)
नये स्वाद का बढि़या सफर.
जवाब देंहटाएंसैलानी के संस्मरण बहुत दिलचस्प लग रहे हैं .
जवाब देंहटाएंमियां हम तो यहाँ ठण्ड में सिकुड़े पड़े हैं और आप जाने कहाँ कहाँ सैर कर रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंसोचता हूँ , प्री मेचुर रिटायर्मेंट ले ही लूँ ।
खैर इटली पर हाथ कैसे साफ़ किया , पहले तो यह बताएं ।
पणंग कलंगा--जानकारी दिलचस्प रही ।
पान्डीचेरी में वाईन टैक्स फ़्री है। यार टेक्स हटा दिया होता तो वाइन फ्री ही न हो जाती ।
भाई , उड़ीसा के चिल्का लेक जाते तो यही मछलियाँ और केकड़े , जिन्दा पकड़कर वहीँ पका कर खाते ।
खैर हम तो देखकर ही काम चला लेते हैं ।
@डॉ टी एस दराल
जवाब देंहटाएंभाई साहब जल्दी ही चिल्का लेक भी चलते हैं। इडली का इटली हो गया है जी अब सुधार दिया गया। लेकिन मैं इटली ही कहता हूँ इसलिए वही लिखा गया।
गुरु
जवाब देंहटाएंजै हो आप आप न हुए बास्कोडिगामा हो गये दादा
फ़ाह्यान भी कह सकता हूं
जय हो
पान्डीचेरी सरकार ने आर्टिसन कॉपरेटिव सोसायटी का निर्माण किया
जवाब देंहटाएंvishvanaathan, lalit,tangam,parmanand sabhi mahoday ko badhai. par mai nahi jaa saka iska afsos hai mujhe. aap logo ne bahut parisharm kiya hai
पाण्डिचेरी के बारे में अच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक वर्णन यात्रा का .... पणंग कलंगा कंद मूल के बारे में नयी जान करी मिली ...
जवाब देंहटाएंअजी क्यो हमे ललचा रहे हे, अगली बार परिवार के संग आना होगा तो १०, १२ दिन ऎसे ही कही घुमने जायेगे, कहां अभी पता नही गोवा, या इस पांडे चेरी या केरल के किसी अन्य स्थान पर, आप के इस लेख से मन मे लालच बढ गया हे यहां घुमने का, बहुत सुंदर ओर मन से चर्चा कर रहे हे आप बहुत लुभावना लगा, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयात्रा विवरण रोचक तथा जानकारी पूर्ण हैं
जवाब देंहटाएंभाईजी, थारी यात्रा को विवरण को जवाब
जवाब देंहटाएंकोणी..भोत लाजवाब लिखो हो ..बधाई !
मजेदार वृतांत .
जवाब देंहटाएंरोचक विवरण
जवाब देंहटाएंआपसे ईर्ष्या का ग्राफ बढता जा रहा है जी
जवाब देंहटाएंप्रणाम