सोमवार, 3 जनवरी 2011

नव वर्ष का धमाल--देवी आम्रपाली के सप्तप्रासाद में

किवाड़ों पर दस्तक हुई, मैने उठकर कुंडी खोली, समक्ष प्रतिहार था, करबद्ध स्वर्णखचित संदेश पेटिका लिए।

“भन्ते! आपके लिए आम्रपाली का विशेष संदेश है।“ उसने  रेशम के कोमल सुगंधित मलमल में लिपटा हुआ पत्र मुझे दिया और मुड़ गया। आम्रपाली का पत्र पाकर मेरी भी उत्सुकता बढ गयी कि जनपद कल्याणी क्या आयोजन कर रही है? जिसमें मुझे भी आमंत्रित किया गया है।

मैने पत्र खोला, उसमें लिखा था –“ आर्य! नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं, धिक्कृत गणराज्य के सप्तप्रासाद में  विशेष आयोजन है। बीत रहे वर्ष की ढलती सांझ से लेकर नव वर्ष की पहली किरण तक। इस रंगारंग कार्यक्रम में आप सादर आमंत्रित हैं।“

विशेष:- पूर्ण मनोरंजन की व्यवस्था है। नृत्य  मंच को नई रंगत दे दी गयी है। ब्लॉगर्स के लिए चायनिज, कांटिनेंटल के संग उम्दा कॉकटेल की व्यवस्था है। मुन्नी बदनाम एवं शीला की जवानी नृत्य का विशेष प्रयोग किया जाएगा।

अहो भाग्य! देवी कल्याणीSSS  नव वर्ष का स्वागत वैशाली की नगर वधू आम्रपाली के संग, सोच कर ही आनंद की लहरियाँ उठ रही थी। दीदे रौशन हो चुके थे। हमारा पीलवान पूर्व से ही तैयार था मुन्नी बदनाम के नृत्य  दर्शनार्थ।

दीप जल उठे थे, सप्त भूमि प्रासाद एवं हमारा हृदय द्वार उन्मुक्त था। सर्वत्र  दीप मालिकाएं झिल- मिला रही थी। बांदी, चेटी, और दण्डधर प्रबंध व्यवस्था में व्यस्त हो आ-जा रहे थे।

तभी मदलेखा ने तीव्रता से उपस्थित होकर पूछा-“देवी! सिंह द्वार पर मंत्री, संत्री, चेयरमेन, मेयर, पार्षद, बाहू बली, पत्रकार इत्यादि प्रासाद में प्रवेश की अनुमति चाहते हैं।“

“मदलेखा! दण्डधर से कह दो कि जनपद कल्याणी के विशेष अतिथि मित्र ब्लॉगर्स आमंत्रित हैं। आज उनके लिए ही दरवाजे खुलेगें। वे चले जाएं”।

हम संध्या वेला में ऊँट गाड़ी पर सवार होकर सपत्निक पहुंच गए आम्रपाली के सप्तप्रासाद सिंह द्वार पर। हमारी अधीरता से प्रतीक्षा हो रही थी। सिंह द्वार पर व्योमबालाएं पुष्प वल्लरियों एवं चार्ली की सुगंधित फ़ूहारों से अतिथियों का स्वागत कर रही थी।


मदलेखा ने नामारुप घायल करने वाली बंकिम दृष्टि डाली –“देवी आम्रपाली आपकी पतीक्षा कर रही हैं आर्य। आपका स्वागत है”। श्रीमती मुस्काई और बोली-" वाह! क्या झकास आयोजन है।

हमने अंतपुर की ओर प्रस्थान किया। सुंदर सजे हुए प्रसाद के सभी अलिंदों पर फ़्लेक्स बेनर लगे हुए थे जिनमें अशोक भाई का नारा लिखा हुआ था-“नशा है खराब-झन पीहू शराब”।

छठवें अलिंद में पहुंचे तो प्रतिहारों और बांदियों ने स्वागत किया, उन्मुक्त द्वार से ही छटे हुए ब्लॉगर देवी आम्रपाली के सानिध्य में दृष्टिगोचर हुए।

प्रथमत: हमारी दृष्टि आसंदी पर गाव तकिया लगाए मद्य पात्र करधारित जी.के.अवधिया पर पड़ी, मुन्नी बदनाम पास हिंडोले में बैठ कर पात्र में मद्य ढाल रही थी। जी.के.अवधिया उसकी हिन्दी ब्लॉगिग की सार्थकता पर क्लास ले रहे हैं।

धीमें स्वर में मधुशाला की स्वर लहरियाँ वातारवरण को मादक बना रही थी। अलबेला खत्री अपनी आने वाली फ़िल्म का सीन देवी लतिका को समझा रहे है, हीरोईन जो कास्ट करना है।

बी.एस.पाबला चौकी पर बैठ कर लैपटॉप से किलोल कर रहे हैं। गिरीश बिल्लौरे बुमबजर पर लाईव टेलीकास्ट की तैयारी में लगे। राज भाटिया बीयर का गिलास भर रहे थे काष्ठ गोलक से। फ़ेनिल बीयर उनके पात्र में शोभायमान हो रही है। नीरज जाट हैंडी कैम लेकर आयोजन का चित्रण कर रहे हैं।

चिर युवा ब्लॉगर राजीव-संजु तनेजा, पद्म सिंग, इंदुपुरी, खुशदीप सहगल, संजय भास्कर, केवल राम डांस फ़्लोर पर थिरक रहे हैं। नरेश सिंह राठौड़ और रतन सिंह शेखावत परम्परागत राजस्थानी वेशभूषा में हुक्का गुड़-गुड़ाते ताऊ की बाट जोह रहे हैं, अविनाश वाचस्पति का लिखित स्वागत भाषण कहीं खो गया, उसकी तलाश में हैं। सतीश सक्सेना नए कैमरे से खटा-खटा चित्र खींच लगे। अजय झा, शाहनवाज लैपटॉप पर पोस्ट लगाने की तैयारी में हैं। शिवम मिश्रा वार्ता के लिए चिंतित दिखाई दे रहे हैं, आज की वार्ता कौन लगाएगा?

सुंदरी कुमारियाँ रत्नावलियाँ कंठ में धारित कर, लोघ्ररेणु से कपोल-संस्कार कर,कमर में स्वर्ण-करधनी और पैरों में जड़ाऊ पैजनी पहन, आलक्तक पैरों को कुसुम स्तवकवाले उपानहों से सज्जित करके कोमल तंतुवाद्य और गम्भीर घोष मृदंग की धमक शुद्ध-स्वर-ताल पर उठाने-गिराने और भू पर आघात करने लगी। उनकी नवीन केले के पत्ते के समान कोमल और सुंदर देहयष्टि पद-पद पर बल खाने लगी।

उनके नूपुरों की क्वणक ध्वनि ने प्रकोष्ठ के वातावरण को तरंगित कर दिया। वे थिरक-थिरक कर सावधानी से और व्यवस्था के साथ स्वर-ताल पर पदाघात कर मद्य की लाली में मद विस्तार कर रही थी। उनके गण्डस्थल की रक्तावदान कांति देखकर महुआ रस से पूर्ण मदणिक्य-शुक्ति के सम्पुट की याद आने लगी।

हम मंत्रमुग्ध से ताक रहे थे, श्रीमती जी बोली-“ यहीं खड़े रहेगें क्या? सहसा तंद्रा टूटी, देवी आम्रपाली ने कहा- “चित्रक पर स्थान ग्रहण करें आर्य।“

जर्मनी से आए ब्लॉगर राज भाटिया की आवाज माईक पर गुंजी-“ आर्यवीरों! जनपद कल्याणी देवी आम्रपाली ने आज सिर्फ़ ब्लॉगर्स के लिए आनंद के दीप प्रज्ज्वलित  किए है। सप्तभूमि प्रासाद में सभी का हार्दिक अभिनंदन करता हूँ। यह कोई ब्लॉगर मीट नहीं है जहाँ गंभीर चर्चा होगी।देवी आम्रपाली का नि्जी ब्लॉगर परिवार सम्मिलन है, इसलिए खाएं-पीएं परिचय बढाएं, नृत्य एवं उम्दा भोजन का आनंद लें। आज की वेला को यादगार बनाएं और नव वर्ष की पहली किरण का आनंद पूर्वक स्वागत करें। उषा की पहली किरण आपके जीवन में सकारात्मक उजास भरे और नयी उर्जा विश्वास एवं आशा के साथ नव वर्ष में पदार्पण करें“ फ़िर उन्होने एक गीत गाया-“ आज गा लो मुस्कुरा लो महफ़िलें सजा लो।

सहसा अंतर सोहिल का आगमन हुआ बोले-“धुंध के कारण सांपला से आने में विलंब हो गया और तनिक विलंब श्रीमती जी के तैयारी से हो गया नहीं तो टैम पे पहुंच ही जाते।“आर्य आपका स्वागत है,कह कर मदलेखा ने बंकिम कटाक्ष के साथ एक पात्र उनके हाथों में थमा दिया।

हम भी कौन सा पीछे रहने वाले थे दो मदरस पात्र एक साथ कंठ में उड़ेल कर अनिंद्य सुंदरियों का नृत्य देखने लगे। प्रमोद कानन में हंसी के ठहाके और मुस्कान बिखर रही थी। आम्रपाली की मंद मंद मुस्कान सबको उन्मादित कर रही थी।

महाकवि योगेन्द्र मौदगिल एवं बवाल उपधानों के सहारे अधलेटे मदरस का आनंद ले रहे हैं। षोडशी कामिनी उन्हे स्वयं मदरस ढाल-ढाल कर पिला रही थी। वे कामिनी से कहने लगे-“तुम्हारे हाथों के मदरस की बात ही कुछ और है। जीईइस्सा आ ग्या, दिल से काव्य निर्झर फ़ूट पड़ा।“

डी जे पे नया गाना लग चुका है " मैडम बैठ बोलेरो में, तेरी खातर स्पेशल लाया"। अब मेरे से रुका नहीं गया, जब बात स्पेशल की हो तो जाना ही पड़ेगा। महाकवि योगेन्द्र मौदगिल ने डी जे पे मचा दिया धमाल, दे धमा धम धम, हम जम के नाचे।

तभी आवाज आई –“ मेरे से पंगा नहीं लेना। नहीं तो माँ बहन एक कर दूंगी। मेरा भी नाम इंदूपुरी है। हां एसीच्च हूँ मैं।“

“दीदी आपसे पंगा ले किसकी हिम्मत है? देखो आपका सारा परिवार यहीं है, बुलाऊं क्या चंदु के पापा को।“ -श्रीमती जी ने कहा।

“माँ ! मेरे रहते आपसे कोई पंगा ले, उसकी तो सुसरे/सुसरी की मैं……….।“पद्म सिंह ने सिंहनाद किया

हल्ला-गुल्ला सुनकर सतीश सक्सेना आ गए –“इंदु माँ, डोन्ट वरी, अपुन है ना। आप डी जे का मजा लो। पार्श्व में राजीव तनेजा मंद मंद मुस्कुरा रहे थे आम्रपाली की तरह, एक कहानी का मसाला जो मिल गया।

आधुनिक और प्राचीन दोनो मंच सजे हुए थे। पसंदानुसार आनंद लिया जा रहा था। जी के अवधिया शीला से एक पुराने गाने की फ़रमाईश को लेकर उलझे हुए थे। कह रहे थे –“ देवियों सुधा वर्षण बहुत हुआ, अब मुझे आवारा फ़िल्म का गीत “जब से बलम घर आए।“ बस यही सुनने की इच्छा है भले जी इसके पश्चात प्राण निकल जाएं। "आज फ़िर जीने की तमन्ना है आज फ़िर मरने का इरादा है।“

पाबला जी ओर दृष्टिपात किया तो कुछ सतर्क दिखाए दिए। पता चला कि कोई नए वायरस का आगमन होने वाला है। उनके सैनिकों ने सतर्क रहने के लिए कहा।

“ कोई गल नइ प्राव्हां मेरे, वायरस नुं तो साड्डे फ़ौजी ठिकाणे ला देगें। आओ लस्सी पीओ और डी जे दी मौज लो"- हमने कहा।“मितरां दी छतरी ते उड़ गयी”- अब भांगड़ा पाया जाणे लगा।

आम्रपाली को भी जोश आ गया। उसने भी सब पर लीला कटाक्ष करते हुए ठुमका लगाया। ओए होए, क्या कहने? अलबेला खत्री कूद पड़े, “काळ्यो कूद पड़यो मेळा में, सायकिल पंचर कर ल्यायोSSSSS। फ़िर तो जम कर धमाल होने लगा।

योगेन्द्र मौदगिल ने इशारे से मुझे और सतीश सक्सेना को बुलाया, बताया कि साकी व्यग्रता से प्रतीक्षा कर रही है। विशेष कक्ष में पहुचे। पीछे-पीछे आम्रपाली भी चली आई। उसने तीन मदरस पात्र भरकर अपने हाथ से तीनो मित्रों को अर्पित किए और कहा-“ मेरे सर्व श्रेष्ठ तीनों मित्रों की स्वास्थ्य-मंगलकामना से ये तीनों पात्र परिपूर्ण हैं।“ हमने पात्र थाम लिए। पुन: बोली-“कहें आर्य! मैं आपका और क्या प्रिय कर सकती हूँ। व्यवस्था में तो कोई न्युनता नहीं है?”

समवेत स्वर निकला-“ आपकी उत्तम व्यवस्था से हम मुदित हैं। मुफ़्त का खाना, मुफ़्त का पीना और मुफ़्त में आनंद, फ़िर क्या चाहिए हमें। इससे प्रिय क्या हो सकता है? हम अनुग्रहित हैं देवी जनपद कल्याणी आम्रपाली, कहीं जले-भूने आर्य बलाधिकृत से पंगा न हो जाए :)

वह उठ कर खड़ी हुई और तीनों का हाथ पकड़ कर बोली –“निश्चिंत होकर प्रस्थान करो आर्य, उससे मुझे निपटना आता है। रात गहरा गयी  है, आपकी रात्रि सुख-निद्रा सुखस्वप्नों की हो, प्रात:वेला का सूरज आपके जीवन में आनंदमयी प्रकाश भर दे।

“अभी प्रस्थान की वेला नहीं आई। ठहरो देवी आम्रपाली ठहरोSSSSSS।“ मैने जोर से हांक लगाई।

तन-मन भीगा-भीगा लगा, आँख खुली तो देखा सारा बदन भीगा, श्रीमती जी हाथ में पानी की बाल्टी लिए सर पर खड़ी थी। -“कब से जगा रही हूँ उठते नहीं हो? और ये मुई आम्रपाली कौन है? जिसका नाम लेकर चिल्लाए जा रहे हो?

(निर्मल – हास्य)  नूतन वर्ष की मंगल कामना

31 टिप्‍पणियां:

  1. नव प्रात बेला में किस युग में पहुंचा दिए देव -देखिये यह दर्शक भी पंडाल में आ पंहुचा खोजते खाजते ......

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  2. अरे वाह ललित जी खूब मजे किये आपने

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  3. तन मन भीगा भीगा सा लगा भन्ते!
    किन्तु यह निर्मल और हास्य कौन हैं? जिनके लिए आप नूतन वर्ष की मंगल कामना कर रहे!!

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  4. जय हो, एक बाल्टी हमारी ओर से, भाभी जी से कह दीजिये।

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  5. इतिहासकारों से अपेक्षा है इस पोस्‍ट पर विचार करें कि क्‍या इस पूरे प्रसंग को काल पात्र में सुरक्षित कर दिया जाए ताकि जब भविष्‍य में खुदाई से यह प्राप्‍त तो विमर्श हो कि आंखों की देखी है, इतिहास की लेखी और क्‍या आम्रपाली फाइव स्‍टार इंटरनेट पार्लर संचालिका जैसी कुछ थी, जिसने नये साल पर बिजनेस प्रमोशन के लिए यह आयोजन किया था.

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  6. कहीं आचार्य चतुरसेन जी का उपन्यास "वैशाली की नगरवधू" पढ़ते-पढ़ते तो नींद नहीं पड़ गई थी?

    प्राचीनता और नवीनता के मेल का अच्छा प्रयोग किया है।

    छत्तीसगढ़ी में कहावत है "ररुहा सपनाय दार-भात" याने कि "दरिद्र को सपने भी देखता है तो खाने का"; वैसे ही "ब्लोग सपना देखता है तो ब्लोगर मीट का"।

    पर ललित, मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो इस बुढ़ौती में मेरे इज्जत का कबाड़ा किए जा रहे हो :)

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  7. @जी.के. अवधिया

    31 दिसम्बर को तो आप गा रहे थे,"अभी तो मैं जवान हूँ।
    3 जनवरी को अचानक बूढे हो जाएगें,ये तो मैने सोचा भी न था।:)

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  8. वसंत आगमन की मनोहारी बेला में जनपद कल्याणी के प्रासाद में मधुसिक्त प्रेमानुरक्त ब्लागानुरागियों का मदाधिक्य के परिणामतः अवलुंठित होने की सूचना राज प्रासादों की प्राचीरों से बहिर्गमन कर चुकी है भंते...

    सावधान...सुपथ से विचलन अनुचित है आर्य

    संघं शरणम गच्छामि ... बुद्धं शरणम गच्छामि

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  9. दादा आज वार्ता कौन लगा रहा है ????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????????

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  10. जी अवधिया जी का नारा बुलन्द हो सल्लू मियां ने इस टिप्पणी देखा और शर्मा गये.... लेकिन अब मुन्नी को बदनाम कित्ता करोगे भाई

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  11. वैशाली की नगर बधू बहुत पहले पढ़ी थी |आपने उसमे आज के लोगून को दाल कर नया रूप दे दिया |अच्छी रचना बधाई
    आशा

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  12. हा हा हा ……………और देखिये स्वप्न हर बार बाल्टी तैयार मिलेगी पानी की…………हा हा हा।

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  13. कल्पना की उड़ान तो बहुत ऊँची है..और मनोरंजक भी :)
    नव-वर्ष की शुभकामनाएं

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  14. वाह गज़ब सपना.गज़ब मौजां .
    रोचक पोस्ट.

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  15. वाह जी वाह चलिये हमारा वादा रहा ऎसी( मुन्नी बदनाम या शीला बदनाम तो नही, लेकिन बाकी ऎसा ही ब्लाग मिलन मेरी तरफ़ से इस साल के अंत तक रिजर्व रहा, जहां सिर्फ़ सब मिलेगे प्यार से कोई चिंतन नही, कोई फ़िक्र नही बस प्यार ही प्यार, ओर सब (मेरा भी नाम इंदूपुरी है। हां एसीच्च हूँ मैं।“) जी को समझायेगे जी आप से कोन पंगा ले रहा हे, जरा बताईये तो सही, हम उस का बाप भाई एक कर देगे.... बहुत सुंदर जी, मजेदार

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  16. he bhgwan! sbse pahle ape vyuz diye the jaane kahan gye.jroor bhabhi ne balti bhr paani daal hoga warna jaate kahan? muaa hindi ka poshn bhi bheeg gya bechara! chlo koi baat nhi .lalit bhaiya aapne to aachrya chatursen,bhagwaticharan verma ki yaad dila di kya khaalis hindi likhi hai.aapki aamrpali janti thi main aaoongi isliye daansing flour with dj kii vyavstha kr rkhi thi.
    ha ha ha
    @raj bhatiya sir! aap logo ke hote koi mujhse panga lene ki soch bhi skta hai? main to wo bchcha hun jo apne parents kii upasthiti me sher bn jata hai kyonki janta hai wo surkshit hai.
    ha ha ha mja aa gaya bhai.jiyo.

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  17. सपना भी टाप क्लास... वाह काश मुझे भी आ जाये एक बार

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  18. कौन कहता है कि हमारी प्यारी हिन्दी में क्लिष्टता ही क्लिष्टता है, कोई आनंद नहीं ? ग़लत।
    यदि हिन्दी के रस-माधुर्य और शब्द चातुर्य में स्वार्गिकता के महामिश्रण का स्वादन करना है तो हमारे प्रिय ललित जी के ब्रह्म-मण्डल में भ्रमण कर डालिए। सर्व-पण प्राप्ति होकर ही रहेगी।
    हा हा। बहुत शानदार ललितजी, क्या कहना ! वाह वाह नए साल में नव-आलंबन के साथ नव-आनंद। अहा!
    आप और आपके सभी अज़ीज़ों को यह नव-वर्ष शुभ हो।

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  19. वैशाली की नगरवधू का आधुनिक सपना ...
    बहुत दिनों बाद ऐसी शुद्ध हिंदी पढने को मिली ...मन प्रसन्न हो गया ...

    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

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  20. अपने सत्कर्मों के सर्वविदित फलस्वरूप आपने अपनी चिर परिचित.. अपेक्षित तथा प्रतीक्षित मधुर मुस्कान के साथ(नितांत ही मौलिक शैली में) कल्पनाओं के सुन्दर एवं विशालकाय वटवृक्ष की झूलती आख़िरी टहनी के फिसलन भरे सोलहवें पत्ते के आख़िरी तंतु पर चढ़कर..बहुत ही कल्पनीय एवं कमनीय ढंग से(सुन्दर...आकर्षक एवं मनोहारी वातावरण में)हम हिन्दी के नामचीन(?..?..?)ब्लोगरों को अपनी इस(हिन्दी प्लस संस्कृत भाषा के शुद्ध एवं कलिष्ट शब्दों से सुसज्जित)विशिष्ट…अद्वितीय तथा मर्यादित पोस्ट में शामिल कर…हमें..हमारा यथोचित स्थान प्रदान करते हुए...खुद..भीषण एवं कष्टकारी सर्दी को ठेंगा दिखा कर तमाम वर्जनाओं से मुक्त होकर अमावस्या के दिन शुद्ध गंगा के बाटल भर पानी से खुल कर ..खुले में बिना किसी हीनभावना के स्नान किया है ...

    इसके लिए बहुत-बहुत आभार...
    मजेदार रहा यह अनूठा एवं नूतन प्रयोग :-)

    बहुत-बहुत बधाई

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  21. हाथी घोडा पालकी
    जै कन्हैयालाल की

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  22. ऐसा सुंदर सपना टू $$$ ट गया
    वह भी ऐसे। काश पानी गुनगुना तो होता :-)

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  23. वाह ! आज तो आपने खूब सारे लिंक्स का जुगाड़ कर लिया ,बधाई !

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  24. bhai lalit ji.............thand ke mousam me garmee ka ehsaaaaaaaas kara diya ..waah waah

    aanand aa gaya

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  25. नव वर्ष पर आपकी यह पोस्ट बहुत बढ़िया रही ....विलम्ब से ही आ पायी ...पर आनन्द पूरा आया ..

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  26. वाह....वाह......वाह......

    शायद इतने वाह से काम चल जाए..!!!

    सपने सुहाने जल्दी ही बीत जाते हैं...

    लेकिन आपने काफी लम्बा सपना देखा..

    बधाई हो....!!!!!!!!!!!!!

    काश !! कि मैं भी कहीं कोने मैं छुप कर वो सारा नज़ारा देखती जो

    आपने सामने से देखा.....!!!!!!!!!

    कोई बात नहीं.. अगली बार...............

    "आम्रपाली" की फिर से याद दिला दी...

    शुक्रिया !!

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