बुधवार, 28 मार्च 2012

नगरी सिहावा और कर्णेश्वर महादेव -- ललित शर्मा


महानदी उद्गम 
पुरातात्विक खजाने से छत्तीसगढ समृद्ध है। हम छत्तीसगढ में जिस स्थान पर जाते हैं वहां कुछ न कुछ प्राप्त होता है और हमारी विरासत को देख कर गर्व से भाल उन्नत हो जाता है। चित्रोत्पला गंगा (महानदी) भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। महाभारत के भीष्म पर्व में चित्रोत्पला नदी को पुण्यदायिनी और पाप विनाशिनी कहकर स्तुति की गयी है - उत्पलेशं सभासाद्या यीवच्चित्रा महेश्वरी। चित्रोत्पलेति कथिता सर्वपाप प्रणाशिनी॥ चित्रोत्पला गंगा के तट पर सभ्यता का विकास हुआ, शासकों ने राजधानी बनाई और समृद्धि पाई। रायपुर से धमतरी होते हुए 140 किलो मीटर पर नगरी-सिहावा है, यहां रामायण कालीन सप्त ॠषियों के प्रसिद्ध आश्रम हैं। नगरी से आगे चल कर लगभग 10 किलोमीटर पर भीतररास नामक ग्राम है। वहीं पर श्रृंगि पर्वत से महानदी  निकली है। यही स्थान महानदी का उद्गम माना गया है। यहीं महेन्द्र गिरि पर्वत है, जहाँ महर्षि परशुराम का आश्रम है। नगरी और सिहावा के मध्य में देऊरपारा कर्णेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर राज्य पुरातत्व के संरक्षण में दर्शनीय स्थल है। यहां छत्तीसगढ पर्यटन विभाग का नव निर्मित रेस्ट हाऊस भी है।

कर्णेश्वर महादेव मंदिर में शिलालेख
नगरी से 6 किलोमीटर पर स्थित है देऊरपारा, इसे छिपली पारा भी कहते हैं। यह गाँव महानदी और बालुका नदी के संगम पर पहाड़ी की तलहटी में  बसा है। नदी के एक फ़र्लांग की दूरी पर कर्णेश्वर महादेव का मंदिर है। राम मंदिर में प्रवेश करता हूं तो मुझे यहां स्थित मूर्तियां काफ़ी पुरानी दिखती हैं और मेरी जिज्ञासा बढती है कि इस स्थान के विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करुं। राम मंदिर से लगा हुआ कर्णेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर के गर्भ गृह का द्वार अलंकृत है। दाहिने हाथ की तरफ़ एक शिलालेख लगा हुआ है। शिलालेख देखकर इस मंदिर के एतिहासिक महत्व का दृष्टिगोचर होता है। देऊर पारा के इन मंदिरों का निर्माण कांकेर के सोमवंशी राजाओं ने 12 वीं सदी में कराया था। सपाट बलुआ पत्थर पर अभिलेख अंकित है। इसकी लिखावट राजिम लोचन मंदिर में लगे शिलालेख से मिलती हुई लगी। कर्णेश्वर महादेव के सम्मुख नंदी भी विराजमान हैं तथा नंदी के मंडप के पीछे गणेश जी का विग्रह स्थापित है। इस स्थान पर गांव के यादव समाज, पटेल समाज, विश्वकर्मा समाज, केंवट समाज, आदि ने भी मंदिर बना रखे हैं। मंदिर प्रांगण में कबीर चौरा भी दिखाई दिया। इससे लगा हुआ सतनामी समाज का जैतखांभ भी है। मंदिर की उत्तर दिशा में एक कुंड बना हुआ है। इसे किसने और कब बनाया, इसकी जानकारी तो नहीं मिली। अनुमान है कि मंदिर बनाने के लिए किए गए पत्थरों के उत्खनन से कुंड का निर्माण हुआ होगा।

राम मंदिर का दृश्य
मंदिर परिसर में मेरी मुलाकात पुजारी राजेन्द्र पुरी गोस्वामी से होती है। मैं उनसे चर्चा करता हूँ एवं इस स्थान के विषय में जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करता हूँ। वे बताते है कि जिसे राम मंदिर कहते हैं उसमें विष्णु भगवान की दो मूर्तियाँ एवं एक मूर्ति सूर्य की है। पहले मंदिर नदी के किनारे हुआ करता था। लेकिन कालांतर में समय की मार से वह ध्वस्त हो गया और उसके भग्नावशेष अभी तक नदी में पड़े हैं। वहाँ से इन  मूर्तियों  को कर्णेश्वर महादेव मंदिर के समीप स्थापित किया गया। गणेश जी की मुर्ति को सिहावा के तत्कालीन थानेदार गुप्ता जी ने मंदिर के भग्नावशेष का जीर्णोद्धार करके स्थापित कराया था। गाँव की आबादी अधिक नहीं है लगभग 70 घर हैं। जिनमें 7 घर ब्राह्मण, 15 साहू, 10 गोस्वामी, 7  केंवट, 10 गोंड , 4 राऊत , 1 लोहार, 3 सारथी एवं अन्य निवासी हैं।  गाँव में नाई का एक भी घर नहीं है। वे बताते हैं कि गांव में नाई नदी पार के गांव सिरसिदा से आता है। वही गांव का काम करता है। ग्रामीणों के जीवन यापन का मुख्य साधन खेती है। कुछ लोग नौकरी में भी लगे हैं। रामेश्वरी साहू भूतपूर्व जनपद सदस्य कहती हैं, नदी के किनारे बसे होने पर भी गांव में पीने के पानी की समस्या है। इस सड़क को मैने अपने कार्यक्राल में बनवाया था।हम राजेन्द्र पुरी गोस्वामी के साथ महानदी और बालुका के संगम की ओर चल पड़ते हैं।

राजेन्द्र पुरी गोस्वामी एवं ब्लॉगर
महानदी के तट पर मोती तालाब है, इस तालाब में भी एक कुंड बना हुआ है, इसे अमृत कुंड या औषधि कुंड कहते हैं, राजेन्द्र पुरी बताते हैं कि इस कुंड में नहाने से बड़े से बड़े रोग का शमन हो जाता है, ऐसी मान्यता है। कुंड सूखा पड़ा है, नहाने की बात तो दूर अभी इसमें उतर भी नहीं सकते। कहते हैं कि एक राजा को कोढ हो गया था। वह इस स्थान पर शिकार करने आए थे, एक दिन उसके कुत्ते इस कुंड में नहाकर उसके पास पहुंचे, कुत्तों ने थरथरी लेकर पानी को झाड़ा, वह पानी राजा के शरीर में गिरा। जिससे कुछ दिनों बाद उसका कोढ ठीक गया। तब से मान्यता है कि इस औषधि कुंड में जो भी नहाएगा उसके समस्त रोग ठीक हो जाएगें। कुंड से लगा हुआ नदी किनारे एक आम का वृक्ष है, इसके नीचे की भूमि को लीप बहार कर बैठने लायक बना दिया है। इस वृक्ष के नीचे लोग अपने मृतकों का संस्कार करते हैं, मुंडन एवं पिंड दान इत्यादि यहीं होता है। डोमार प्रसाद मिश्रा कहते हैं कि यहां पर अस्थि विसर्जन करने के ढाई दिनों के पश्चात अस्थियों के अवशेष नहीं मिलते, यह प्रमाणित है। उड़ीसा, बस्तर कांकेर आदि से लोग अस्थि विर्सजन के लिए आते हैं।

रुपई
डोमार प्रसाद मिश्रा मुझे मोती तालाब के उस स्थान पर ले जाते हैं जहां सोनई और रुपई नामक स्थान है। आम के पेड के एक तरफ़ रुपई एवं दुसरी तरफ़ सोनई है। मोती तालाब के गहरीकरण के समय इस स्थान को नहीं खोदा गया। कहते हैं यहां खजाना गड़ा हुआ है और दैवीय स्थान है। कई बरस पहले कुछ तांत्रिको ने यहां से खजाना (हंडा) निकालने का प्रयास किया था परन्तु वे सफ़ल नहीं हुए। उसके बाद किसी ने इस स्थान पर उत्खनन करने का प्रयास नहीं किया। विशेष पर्व पर इन स्थानों ही होम धूप देकर पूजा की जाती है। (छत्तीसगढ में हंडा (गड़े धन) के विषय में गाँव-गाँव में चर्चाएं चलते रहती हैं, बैगा और तांत्रिक हंडे का लालच दिखा कर लोगों की जेब खाली करवाते रहते हैं, मुझे तो आज तक कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला, जिसने कहा हो कि उसे हंडा मिला है। हाँ, हंडे के पीछे धन सम्पत्ति गंवाकर कंगाल बने लोग यदा-कदा मिल जाते हैं।

समाधियाँ
मोती तालाब से मुझे पहाड़ी की तलहटी में कुछ समाधियां बनी दिखाई देती हैं। हम सड़क के उस पार चल कर समाधियों पास पहुंचे। राजेन्द्र पुरी बताते हैं कि उनके पूर्वज 200 साल पहले इस गाँव में उत्तर प्रदेश से आए थे। उत्तर प्रदेश के किस गाँव से आए थे इसका उन्हे पता नहीं। यहाँ आकर उन्होने मंदिर के भग्नावशेष में शरण ली। उन्हे यहाँ शिव जी मिल गए और उन्होने पूजा शुरु कर दी। उसके पश्चात उनका परिवार यहीं का हो कर रह गया। अब मंदिर में राजेन्द्र पुरी पूजा करते हैं। ये समाधियाँ उनके पूर्वजों की हैं। एक समाधि मौनी महाराज की है, मौनी महाराज लगभग डेढ सौ वर्ष पूर्व हुए हैं, इन्होने 16 साल मौन रह कर तपस्या की। मंदिर के सर्वराकार गणेश महाराज हुए, उन्हे गांव के मालगुजार गोपाल सिंह ने पाँच एकड़ जमीन 1927 मे दी। यह जमीन अब भी मंदिर के नाम से ही है। इस पर गाँव वाले रेग (किराए पर) खेती करते हैं। मंदिर इस जमीन पर ही माघ के महीने में पुन्नी मेला भरता है।

महानदी एवं बालूका नदी का संगम
हम चल कर नदी के संगम पर पहुंचते हैं। यहां पर रेत की बोरियों से पानी रोक कर निस्तारी के लिए उपयोग किया जा रहा है। नदी पर सकरिया गांव दिखाई दे रहा है। उसके दायीं तरफ़ से बालूका नदी आकर महानदी में मिल रही है। राजेन्द्र पुरी कहते हैं, उनके दादा बताते थे कि नदी के तट से एक सुरंग उनके घर तक जाती है। एक दिन कोई मंछन्दर नदी में मछली मारते हुए सुरंग में प्रवेश कर गया और उनके घर के पास जाकर निकला। उन्हे सुरंग दिखाने कहता हूँ तो वे कहते हैं कि उन्होने सुरंग में जाने का कभी प्रयास नहीं किया और न ही किसी गाँव वाले ने डरकर उसमें जाने का प्रयास किया। हम तो बाबू आपको पूर्वजों से सुनी सुनाई बता रहे हैं। ग्रामीण अंचल में पीढी दर पीढी किंवदंत्तियाँ चलते रहती हैं, इनके मूल में कहीं न कहीं सत्य छिपा होता है। जो कालांतर मे प्रकट होता है। हम वापस मंदिर की ओर चल पड़ते हैं।

प्राप्त मूर्तियाँ
डोमार मिश्रा कहते हैं कि पहले हमारा एक ही घर था। परिवार बढने के साथ बंटवारा होता गया, घर भी बढ गए। गाँव की गलियों में चलते हुए मंदिर पहुंचते हैं। वहां राजेन्द्र पुरी नारियल फ़ोड़ कर उसकी गिरी खिलाते हैं। समीप ही बने हुए एक कमरे में इस स्थान से प्राप्त 15 मुर्तियाँ रखी हैं। यहां मुझे संग्रहालय जैसा ही दृश्य दिखाई दिया। वहाँ पर बैठे कुछ ग्रामीणों से चर्चा होती है, मंदिर के संचालन के लिए संचालन समिति बनी हुई है। समिति ही मंदिर की देखरेख करती है। मंदिर के प्रांगण में चंपा (सप्त पर्णी) का पेड़ है, उसके सुंदर सफ़ेद फ़ूल प्रांगण में झर रहे हैं। दर्शनार्थी उन फ़ूलों पर पैर नहीं रखते, उन्हे बचा कर चलते हैं। धूप बढती जा रही है और भूख भी। भोजन का समय होता है। हमारे भोजन का इंतजाम रामेश्वरी साहू के घर पर है। घर पहुंचने पर वे स्नेह से हमें भोजन कराती हैं।

महानदी  का उद्गम
भोजनोपरांत हम सिहावा की ओर चल पड़ते हैं, यहां रामायण कालीन सप्त ॠषियों के नाम से पर्वत हैं। सामने श्रृंगि ॠषि पर्वत सड़क के उस पार है और महानदी का उद्गम सड़क के इस पार। इस पर्वत को श्रृंगि नामक होने की जनश्रुति मिलती हैं। श्रृंगि ऋषि का विवाह रामचन्द्र की बहन शांता से हुआ था। अतः समीप में इसी श्रृंगि पर्वत में शांता गुफा भी हैं। रामायण कालीन प्रसिद्ध सप्त ऋषि-मुनियों ने श्रृंगि ऋषि प्रमुख माने जाते हैं।  कन्क ऋषि के नाम पर कन्क ऋषि पर्वत,  शरभंग ऋषि के नाम से शरभंग पर्वत,  अगस्त्य ऋषि के  नाम पर अगस्त्य पर्वत, मुचकुन्द ऋषि एक प्रमुख ऋषि थे। सप्त ऋषियों में इनका भी नाम है। इन्हीं के नाम पर सिहावा क्षेत्र में मेचका पर्वत अर्थात् मुचकुन्द पहाड़ी, गौतम ऋषि के नाम पर गौतम पर्वत, सप्त ऋषियों में से अंगिरा ऋषि का भी महत्वपूर्ण स्थान हैं। इनके नाम पर सिहावा में पर्वत है, जिसे अंगिरा पर्वत कहा जाता हैं। रामायण काल में भगवान श्रीराम अंगिरा ऋषि से भी भेंट कर उनसे परामर्श लिये थे। यहाँ इन सप्त ॠषियों के आश्रम प्रसिद्ध हैं।

राम मंदिर में नदी तट के मंदिर की स्थापित मूर्तियाँ 
श्रृंगि ॠषि पर्वत से महानदी का उद्गम हुआ हैं। पर्वत से सड़क के नीचे से नदी बहती है। उद्गम स्थल पर दो चट्टानों के बीच सफ़ेद झंडिया लगा रखी हैं। एक बाबाजी नदी के बीच बड़ी सी चट्टान पर बैठे हैं। मैं नदी मे उतरता हूं तो चिकने पत्थरों पर पैर फ़िसल जाता और धड़ाम से नदी में ……… कैमरा संभालने की कोशिश करता हूँ और पानी से कैमरे को बचाने में कामयाब हो जाता हूँ। कुछ चित्र उद्गम के लेता हूँ। मेरी यात्रा का यह महत्वपूर्ण पड़ाव है। उद्गम के चित्र लेने के लिए ही मुझे जंगल में आना पड़ा। यहाँ अपने उद्गम से महानदी विपरीत दिशा में बहती दिखाई देती है। जो वहां से चलकर देऊर पारा होते हुए सिरसिदा ग्राम तक जाती है। सिरसिदा एवं देऊर पारा को नदी विभाजित करती है और यहीं पर बालुका और महानदी का संगम है। नदी के किनारे वन में स्थित होने के कारण स्थान सुरम्य एवं रमणीय है। पर्यटन के लिए उत्तम स्थान है, इस रामायण कालीन प्रसिद्ध स्थान पर समय हो तो एक बार अवश्य आएं।

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

मंजिल की ओर एक कदम --- ललित शर्मा


जन्मदिन की पूर्व संध्या पर सैर के लिए निकला। अंधेरा हो चुका था। सैर के रास्ते में श्मशान पड़ता है। शाम को कभी वहीं एक पुलिया पर बैठ जाता हूँ। अंधेरे मे कुछ काली आकृतियों की हलचल दिखाई देने लगी। 15-20 लोगों का झुंड था। मैने सोचा कि शराबी या जुआड़ी होगें। क्योंकि सबसे मुफ़ीद जगह इन सब कार्यों के लिए श्मशान ही रहती है। नजदीक जाकर देखा तो एक शव किनारे रखा था और चिता सजाई जा रही थी। हिन्दु धर्म में दोनो वक्त मिलने के बाद अन्त्येष्टि क्रिया नहीं करते और मैने आज तक देखी भी नहीं थी।  श्मशान घर के समीप होने के कारण रात को गाहे-बगाहे वहीं शरण लेता हुँ। मरघट की शांति अच्छी लगती है, लेकिन लोग उसे भी अशांत किए देते हैं। फ़िर भी मैं कोई एक कोना ढूंढ ही लेता हूँ। लगता है कि अभी कोई चिता के उठकर आएगा और मुझसे बतियाएगा। बरसों बीत गए लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ। अंधेरे में चिता सज गयी और मुखाग्नि दे दी गयी। जो लाए थे उसे वे अंधेरें आग लगा कर जलता छोड़ गए।

कल तक जो घर का मालिक था, जिसके इशारे पर घर चलता था, उसके निष्प्राण होते ही किसी भी परिजन को इतना सब्र नहीं था कि उसे रात भर घर में पनाह दे देते। जिससे उसका अंतिम संस्कार सुबह हो जाता। कल तक जिसे जिगर का टुकड़ा समझते थे, प्यार की कसमें खाई जाती थी। एक झटके में ही वह बेगाना हो जाता है। अपने सभी पराए हो जाते हैं। यही दुनिया है। यही संसार है, लोग जीवन भर साथ निभाने की कसमें खाते हैं, लेकिन जीवन के बाद की कोई कसम नहीं खाता। यही द्वैत जन्म लेता है, दुनिया मिथ्या लगने लगती है। होने के बाद भी नहीं होती। ब्रह्म सत्य हो जाता है और जगत मिथ्या हो जाता है। जो हमारे सामने घट रहा है वह दृष्टिगोचर नहीं होता। क्योंकि मुर्दे कभी बोलते नहीं है, इसलिए उसके साथ जो चाहे वह कर लो। श्मशान में बैठ कर यही देखते आया हूँ। जीवन से विरक्ति नहीं होती पर सच से सामना हो जाता है, जिससे जीवन में कठोर से कठोर निर्णय लेने की क्षमता बढती है। भावुकता तिरोहित हो जाती है।

श्मशान से घर चला आया। सामने हाईवे पर तारकोल चढाया जा रहा था। पुरानी सड़क कुछ उखड़ गयी थी, उसे नया बनाया जा रहा था। यह लोकनिर्माण विभाग का वार्षिक कार्यक्रम है। थोड़ी देर खड़ा होकर काम करते मजदूरों को देखता रहा। गर्म तारकोल में वे खड़े होकर उससे जमा रहे थे। मशीने लगी हुई थी, एक इंजीनियर गेज लेकर तारकोल की गिट्टियों की मोटाई नाप रहा था और जहां गिट्टियाँ कम थी वहाँ और डलवा रहा था। रोलर उसे समतल करता जा रहा था। घर पहुंचा तो बच्चे मेरे जन्मदिन मनाने की तैयारी की चर्चा कर रहे थे। मै सोच रहा था कि प्रतिवर्ष जन्मदिन मनाने की प्रक्रिया सड़क पर तारकोल चढाने जैसी ही है। प्रतिवर्ष एक परत चढ जाती है समय की। जन्मदिन उसी का उत्सव मनाने की प्रक्रिया मात्र है। ताकि यह ज्ञात रखा जा सके कि कितना समय बाकी है, जिसमे सफ़र तय करना है। सोचते सोचते मुझे नींद आने लगती है अंग-प्रत्यंग शिथिल होने लगते हैं। जन्मदिन की पूर्व रात्रि में एक भरपूर नींद लेना चाहता हूँ जैसी शमशान मे ले रहा था चिता में लेटा हुआ मुर्दा। क्योंकि सुबह फ़िर जन्म लेना है और तबियत तरोताजा रहनी चाहिए। जिससे तारकोल की एक परत चढाने में आसानी हो।

आप सोच रहे होगें कि जन्मदिन जैसे शुभ अवसर पर मैं मुर्दो और श्मशान की बातें क्यों कर रहा हूँ? यह इसलिए की जन्म होने के बाद रास्ता वहीं जाकर खत्म होता है, चाहे पगडंडी से चल कर जाओ या राजमार्ग से होकर जाओ। पहुंचना वहीं है। कितने दिनों तक तुम शतुरमुर्ग की तरह रेत में गरदन धंसा कर धोखा दे पाओगे। जो अपने पैरों से चल कर वहां पहुंचता है वह सौभाग्यशाली ही होगा। लेकिन यह शायद किसी नसीब वाले के ही खाते में जाता होगा। वरना दुनिया इतने अनचाहे और अनजाने पाप कराती है कि अपने पैरों पर श्मशान चलकर जान संभव नहीं है। एक कदम उस मार्ग की ओर बढाने की तैयारी करनी है। इस तैयारी में सभी शामिल हैं। चिंतन करते हुए नींद आ जाती है। सहसा मुझे कोई झिंझोड़ कर गहरी नींद से जगाता है। नींद में दीदे फ़ाड़ कर देखता हूं तो 4-5 चेहरे दिखाई देते हैं और पापा हैप्पी बर्थ डे सुनाई देता है। रात के 12 बज चुके हैं और मुझे नींद से जगाकर पत्नी और बेटे-बेटियाँ जन्मदिन का उपहार देते हैं। कितना प्रेम करते है वे मेरे से। उनका यह अंदाज अभिभूत कर जाता है। यहाँ पर आने पर जगत मिथ्या नहीं लगता। सब सच हो जाता है। वास्तविक हो जाता है। मैं उपहार सिरहाने रख कर फ़िर सो जाता हूँ।

सुबह उठकर सैर के लिए जाता हूँ रास्ते में वही श्मशान आता है, रात को जलाई गयी चिता की राख पड़ी है। माटी का चोला माटी में समा गया। जहां से आया था वहीं चला गया। इसने भी न जाने कितने जन्मदिन मनाए होगें? न जाने इसकी माँ ने कितनी बलैयां ली होगीं? न जाने पत्नी बच्चों, भाईयों बहनों ने कितना चाहा होगा? जीवन रहते तक का ही साथ रहा था, सबने जीवन तक का वादा निभाया, अब रक्षाबंधन पर बहन राखी लिए फ़िरती रहेगी, भैया की कलाई होती तो बांधती। पत्नी भी तड़पती होगी, बिना किसी सहारे के बच्चों के पालन के लिए जीजिविषा से लड़ती होगी। यही दुनियादारी है, जो दुनिया में रहने तक ही जारी है। यही जीवन है जिसकी आखरी मंजिल श्मशान ही है। यहाँ की भरपुर चिरनिद्रा के पश्चात व्यक्ति को किसी न किसी रुप में पृथ्वी पर पुन: आना है तरोताजा होकर। जन्म लेना है, शतायु होने का आशीर्वाद पाकर शतायु होने की कामना करनी है। बस सफ़र यहीं तक का है, हमसफ़र भी यहीं लाकर छोड़ जाते हैं। जन्मदिन मनता रहता है जयंती के रुप में और अंतिम सफ़र मनता है पुण्यतिथि के रुप में। हम भी बढ चले हैं मंजिल की ओर एक कदम और्…………।

गुरुवार, 22 मार्च 2012

जन्मदिन: दुनिया जादू का खेल ---------- ललित शर्मा


भासी दुनिया में एक जन्मदिन और मना लिया। पहले के जन्मदिन पाबला जी के ब्लॉग पर मनाए। पाबला जी के ब्लॉग ने साथ नहीं दिया। अब वह वेबसाईट बन गया है। पदोन्नोति तो होनी ही चाहिए। पहले जन्मदिन वाला ब्लॉग ही बताता था कि आज फ़लां-फ़लां का जन्मदिन है और सालगिरह है। जब ब्लॉग जगत में आया था तब मुझे प्रथम कुछ चिट्ठों में जन्मदिन वाला चिट्ठा देखने मिला था और सोचा था कि कभी मेरा जन्मदिन भी यहाँ मनाया जाएगा। इसके लिए मैने पाबला जी को मेल भेज कर अपनी जन्मदिन की तारीख जोड़ने कहा था। उसके बाद पाबला जी ने मुझे फ़ोन कर करके हाल चाल पुछा था। फ़िर अगला जन्मदिन पाबला जी के ब्लॉग पर ही मना। इस वर्ष पाबला जी ने दो दिन पहले फ़ोन करके जन्मदिन की बधाईयाँ दे दी और मैने कबूल भी कर ली। पिछली साल राजभाटिया जी ने एक महीने पहले ही मेरा जन्म दिन मना लिया था। मुझे फ़ोन करके शुभकामनाएं दी, तो मैने कहा कि मेरा जन्मदिन तो एक महीने बाद है तो उन्होने कहा कि आज तो बधाईयां रख लें अब एक महीने बाद और दे दुंगा।

मुझे नहीं मालुम था कि पाबला जी जन्मदिन वाले ब्लॉग पर वर्षगांठ की जानकारी देते हैं। एक दिन ब्लॉगवाणी पर शाम को उनकी पोस्ट देखकर वहां जन्मदिन की बधाईए दे आया। पाबला जी ने फ़ोन पर बताया कि मैं सालगिरह की जगह जन्मदिन की बधाई दे आया। मैने तुरंत जाकर अपनी गलती सुधारी। कहने का तात्पर्य है कि आभासी दुनिया के लोग एक दुसरे के सुख दु:ख में दिल से शरीक होते हैं। इस वर्ष जन्मदिन नए प्लेट्फ़ार्म फ़ेसबुक पर मनाया गया। मित्रों को भी सब्र नहीं था। दो दिन पहले ली शुभकामनाएं लिख गए। क्या भरोसा दोनो में कोई खिसक जाए और शुभकामनाएं देने लेने से वंचित रह जाए। इसलिए लगे हाथ पहले ही दरवाजे पर टांग दिया जाए शुभकामना संदेश। फ़ेसबुक में जन्मदिन मनाने का अंदाज ही अलग रहा। लगा कि हम आम आदमी नहीं रहे। किसी खास आदमी का जन्मदिन मनाया जा रहा है। इंटरनेट की सभी विधाओं में शुभकामनाएं आई। चाहे वे दृश्य श्रव्य हो या चित्र हो या सिर्फ़ कोरी शाब्दिक शुभकामना हो।

चलो भाई जन्मदिन भी आ गया। एक बरस से इंतजार कर रहे थे। उदय को बेकरारी से इंतजार था मेरे जन्मदिन का। क्योंकि मेरे बाद ही उसका जन्मदिन आता है। रात जल्दी सो गया था। किसी ने झिंझोड़ कर उठाया, आँख खुली तो देखा कि श्रीमति जी और बच्चे कह रहे हैं जन्मदिन मुबारक हो। हैप्पी बर्थ डे पापा। सबने मुझे गिफ़्ट दिया। मैने गिफ़्ट सिरहाने रखा और फ़िर सो गया। ये सभी तारीख बदलने का इंतजार कर रहे थे कि तारीख बदले और पापा को हैप्पी बर्थ डे कहें। सुबह उठकर अपनी नित्य की सैर को चले गए। आज उदय भी साथ था, माय फ़्रेंड गणेशा। सैर से आने के बाद पीसी चालु किया तो सबसे पहले फ़ेसबुक पर संजय महापात्र की पोस्ट देखने मिली। बहुत सुंदर चित्रात्मक शुभकामनाएं दी उसने। उसके बाद जन्मदिन की शुभकामनाएं आने का दौर शुरु हो गया। जो करीबी थे वे दूर हो गए, जो दूर थे वे बाजी मार ले गए।

संध्या शर्मा जी ने वार्ता लगाई थी। उसके बाद फ़ेसबुक पर उनकी कविता देखने मिली। उन्होने कविता के माध्यम से शुभकामनाएं दी। आशा पाण्डे ओझा जी ने संस्कृत के श्लोक से शुभकामनाएं प्रेषित की। स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ आप सदैव आनंद से, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें | विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें | ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे| आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे। संगीता जी ने जन्मदिन पर सुंदर गीत मेल किया। ऐसा गीत मैने आज तक नहीं सुना था। सुबह सुबह यह गीत कई बार बजा। सुदीप श्रीवास्तव बाजी मार ले गए और उन्होने आभासी केक दो दिन पहले ही भेज दिया। तपेश जैन वहीं पर अपनी शुभकामनाएं चेप गए। इन दोनो ने पाबला जी के बाद बोहनी की। फ़ेसबुक पर अपनी जन्मदिन की दुकान धडल्ले से चल रही थी।

दर्शनकौर धनोए जी ने एक विशेष पोस्ट लिख कर मुझे शुभकामनाएं दी। सभी लोगों के नामो का उल्लेख करना कठिन है।अशोक बजाज, पूनम चंद्राकर, विजय भास्कर, डॉ राजीव श्रीवास्तव, अशोक सिंघई, जयप्रकाश मानस, समीर लाल, राजभाटिया जी, डॉ के. जनस्वामी, डॉ गोपाल जनस्वामी,समृद्धि नाहर, कोमल सोनी, रजनीश जैन, कमल शुक्ला, केवल राम, दर्शनकौर धनोए, सुनीता शर्मा जी ने एक गीत पोस्ट किया। गार्गी पाठक, इंदू पुरी, नामदेव एवं ज्योत्सना पाण्डे, महफ़ूज अली, संचित तिवारी, डॉ रंजु भाटिया, कमल शर्मा, शरद कोकास, राजकुमार साहू, अनिरुद्ध दुबे,केवल कृष्ण शर्मा, डॉ प्रवीण कुमार मिश्रा,कमल शर्मा, अमितेश जैन, अनिलपुसदकर, संजीत त्रिपाठी, संजीव तिवारी, सुनीता शर्मा "शानु", विश्वजीत शर्मा, दयुति जे याजनिक, बिकास शर्मा, हरि शर्मा, यशवंत मेहता, दीपक शुक्ला, सौरभ तिवारी,गौरव शर्मा, नीरज पाण्डे, गिरीश पंकज, डॉ मीनाक्षी स्वामी, छत्तीसगढिया विकास समिती, मारुफ़ अली, अमित पाण्डे,अवधेश श्रीवास्तव, आशीष त्रिपाठी, सतनाम सिंह पनाग, अन्नु तिवारी, हंसराज सुज्ञ, संजय सिंगला,हबीब साहब, सोमेश पटेल, रंजीत भोसले, डॉ तारीफ़ दराल, अश्विनी शर्मा, राम रुप पाण्डे, आशीष शर्मा, विनय कुल्ल, विजय प्रजापति, सच्चिदानंद उपासने, गिरीश मुकुल, शशि पुरवार, अंजु शर्मा, विधु लता, समीर लाल,वाणी गीत, कैलाश चंद्र शर्मा, नीलकमल वैष्णव, लक्ष्मी नारायण लहरे, प्रमोद कुमार, रत्नेश त्रिपाठी, अरुनेश दवे, जी के अवधिया, अर्चना चावजी, परमजीत बाली  शिखा वार्ष्नेय, दीपक शर्मा, पंकज मिश्रा, हरीश शर्मा, गिरधर महाराज, अख्तर खान अकेला, तुलसी भाई पटेल, सुरेखा गुप्ता आदि की शुभकामनाएं मध्यांतर तक प्राप्त हो चुकी थी।

अंजु चौधरी, पवन चंदन जी, अनिल शर्मा, बसंत साहू, मनोज जांगिड़, अनिता कपुर, आकाश बजाज, अनुप बजाज, शिवम मिश्रा, सत्यम शिवम, डॉ अरविंद मिश्र, डॉ मनोज मिश्र, राजेश अवस्थी, लायन अशोक गुप्ता, स्वराज्य करुण, पदम सिंह, राजीव तनेजा, अल्पना देशपाण्डे, मुकेश सिन्हा, विशाल तिवारी, आलोक त्रिपाठी, शम्भुनाथ यादव, जोबनजीत सिंह, राज कुमारेन्द्र,नवीन कुमार साहू, मीनाक्षी पंत, कवि दिनेश जांगड़ा,सीमा गुप्ता, प्रदीप जैन, शिवनारायण मंडल, दीपक शुक्ला, मनोज तिवारी, ब्रह्मचारी अनंत बोध चैतन्य, शीला शर्मा, रतनसिंह शेखावत, रंजु गुप्ता, राजीव रंजन प्रसाद, विमल कुमार मिश्रा, अमरेन्द्र त्रिपाठी, नवीन प्रकाश, नवीन कुमार साहू, रामचंद्र भुराडिया, राकेश तिवारी, हेमंत कुमार, हेमंत वैष्णव, ॠतु वैष्णव, बाबुलाल शर्मा, आशुतोष वर्मा आशु, आदि लगभग 500 मित्रों की कमेंट माध्यम से शुभकामानाएं प्राप्त हुई, टाईम लाईन वाले को 3 पेज और जोड़ने पड़े। कुछ मित्रों की याद आई इस वक्त पर लेकिन वे अपनी व्यस्तताओं के कारण आ नहीं सके। मोबाईल पर एस एम एस के माध्यम से बहुत से मित्रों की शुभकामनाएं प्राप्त हुई, लेकिन मोबाईल गुमने के कारण उनका नम्बर नहीं पहचान सका, किसी ने भी अपना नाम संदेश के साथ नहीं लिखा और उन्हे फ़ोन करके नाम पुछना भी अच्छा नहीं लगेगा। यह सोचकर उन्हे कॉल बैक नहीं किया।

चलिए मुंह मीठा हो जाए, सभी मित्रों का धन्यवाद ज्ञापन किया। शुभकामनाएं देने वाले अनेक थे और धन्यवाद देने वाला मैं अकेला। सोचता था कि व्यक्तिगत रुप से धन्यवाद प्रेषित करुं। कीबोर्ड पर लिखते-लिखते उंगलियों के पोर दुखने लगे और उन्होने जवाब दे दिया। शाम को बच्चों ने केक काटने का इंतजाम कर रखा था। केक काटकर बच्चों की खुशियों में शामिल हुआ तो अच्छा। माँ ने ढेर सारा आशीर्वाद दिया। केक काटने के बाद पता चला कि गेट में कोई आया है। श्रेया गेट पर गयी तो कोई उसे एक केक का बड़ा डिब्बा थमाकर वापस जा रहा था। मैने उदय को उन्हे बुलाने भेजा। तो पता चला कि वे सुनीता शर्मा जी थी। मित्र धर्म निभाने आई थी और केक देकर गेट से ही वापस जा रही थी। उनके साथ विभागीय अधिकारी और भी थे इसलिए जल्दी जाना चाहती थी। हमने उन्हे केक खिलाया और शुभकामनाएं ग्रहण की। बड़ा अच्छा लगा कि एक ब्लॉगर मित्र मुझ तक चल कर भी आए।

फ़िर सुबह होगी और सब लग जाएगें अपने-अपने कार्यो में। दुनिया की उसी भाग दौड़ में जहाँ रोज जीवन बचाने के लिए जद्दोजहद होती है। रोटी कपड़ा और मकान की दौड़ में लग जाना है। वही दिन और वही रात जो सदियों से चले आ रही है। उसमें कोई बदलाव नहीं होना है। नित्य की तरह चलना है, दुनिया के साथ कदम ताल बैठाना है। विशेष कुछ न होगा, विशेष होगा प्रभात… जो सूरज की किरणों के साथ आएगा रथ पर सवार हो कर। आभासी दुनिया के मित्रों ने मेरे जन्मदिन को विशेष बना दिया। जन्मदिन पहले भी मनाया जाता था। लेकिन आभासी दुनिया में आने के बाद जन्मदिन मनाने का आनंद सहस्त्र गुणा बढ गया। ऐसा लगता है कि भौतिक दुनिया से अलग कोई आपका इंतजार कर रहा है। शुभकामनाएं देने वाले मित्रों की संख्या इतनी अधिक थी कि बहुतों के नाम स्मरण नहीं है। किसी का नाम छूट गया हो क्षमा चाहुंगा। मित्रों का आभार प्रगट करने के लिए शब्द भी कम पड़ रहे हैं। सभी मित्रों का आभार…… 

संगीता पुरी जी की सुरीली भेंट ……… आप भी सुनिए

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

चैट की बत्ती बनी जीवन दीप --- ललित शर्मा

राहुल शर्मा की आत्महत्या समाचार मुझे फ़ेसबुक पर किसी की वाल पोस्ट पर देखने मिला। एक बारगी तो मेरे दिमाग में सन्नाटा छा गया। इस खबर ने हिला कर रख दिया मन मस्तिष्क को, मुझे विश्वास नहीं हुआ कि इतने बड़े पद पर बैठा प्रशासनिक सेवा का अधिकारी आत्महत्या कर सकता है। बिलासपुर में पत्रकार मित्र को फ़ोन लगाकर समाचार की सत्यता जाँची तो आत्महत्या का समाचार सत्य निकला। तब से सोच में पड़ा हूँ कि लोग आत्महत्या कैसे कर लेते हैं? आत्महत्याओं के समाचार सुनना तो दिनचर्या में शामिल हो चुका है। पहले प्रेमी-प्रेमिकाओं का मिलन न होने पर आत्मौत्सर्ग के समाचार सुनने में आते थे। लेकिन अब मानसिक दबाव में, अधिकारी, कर्मचारी, विद्यार्थी, व्यवसायी द्वारा आत्महत्या करना आम हो गया है।

विद्यार्थियों के उपर अच्छे नम्बर लाने एवं प्रतियोगी परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने का दवाब होता है तो अधिकारी, कर्मचारियों पर नेताओं एवं उच्चाधिकारियों का दबाव, व्यवसायी अपने धंधे में घाटा होने पर या असफ़ल होने पर निराश होकर आत्महत्या करने का कठोर फ़ैसला लेता है। किसी के सामने नौकरी छूट जाने पर जीवन यापन की समस्या खड़ी हो जाती है और वह उहापोह की स्थिति में निर्णय नहीं ले पाता, दिशाहीन होकर आत्महत्या जैसा कृत्य कर डालता है। बदनामी होने एवं प्रतिष्ठा पर आंच आने पर भी कुछ भीरु किस्म के संवेदनशील लोग आत्महत्या कर लेते हैं। भौतिक युग में जीना बहुत कठिन हो गया है, पहले व्यक्ति दो वक्त की रोटियों के लिए जद्दोजहद करता था, अब भौतिक विलासिता की वस्तुएं प्राप्त करने में नैतिक अनैतिक सभी कार्य करता है। जिसके परिणाम स्वरुप मानसिक शांति खो बैठा है।

कुछ वर्षों पूर्व एक घटी एक घटना का जिक्र करना आवश्यक समझता हूँ। हमारे पास के एक गाँव में एक शिक्षक ने अपनी पत्नी, तीन पुत्रियों समेत आत्महत्या कर ली। कारण था सामाजिक प्रतिष्ठा का। उसकी बड़ी लड़की ने एक हरिजन से भाग कर शादी कर ली, यह समाचार सुनकर उसने सामाजिक प्रतिष्ठा जाने एवं कुल खानदान कलंकित होने के कारण सामुहिक आत्महत्या को अंजाम दिया। बड़ी लोमहर्षक घटना थी, जिसने आमजन के मनोमस्तिष्क को हिला कर रख दिया। इस सामुहिक आत्महत्या कांड के दो साल बाद उस लड़की ने भी आत्महत्या करली, जिसके कृत्य के कारण उसके सारे परिवार को जान देनी पड़ी। सामाजिक प्रतिष्ठा व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण होती है।कहते हैं "रांड तो रंडापा काट ले, पर रंडूए काटने दें तब ना"

कठिन समय में मनुष्य प्राणोत्सर्ग जैसा कार्य हार कर करने पर मजबूर हो जाता है, वह सोचता है समस्त समस्याओं का समाधान अब मृत्यु ही है। उसके मन में अनायास ही आत्महत्या के विचार नहीं उठते होगें। विचार आने पर वह विचार भी करता होगा क्योंकि जान देना इतना आसान नहीं है। आत्महत्या के विचार आने पर अगर वह किसी से अपने मन की बात कहता है तो उसके मन में उमड़ घुमड़ रहे आत्महत्या के विचारों के टलने की संभावना बन जाती है, अगर वह घड़ी टल जाए तो शायद सकारात्मक विचार मन आएं और वह आत्महत्या करने जैसा इरादा टाल दे। समय बड़ा बलवान है, बड़े-बड़े घाव भर देता है, समय के दिए नासूर भर जाते हैं। सकारात्मक विचारों से जीवन की गाड़ी पटरी पर आ जाती है। फ़िर वह अपने लिए निर्णय को गलत ठहरा देता है।

एक सत्य घटना का उल्लेख करना चाहुंगा…एक दिन मेरे चैट पर एक दो साल पुराने युवा मित्र (जिसे मैने आज तक देखा नहीं और मिला भी नहीं हूं) ने लिखा… i want  suicide now मेरी नौकरी आज चली गयी। यह संदेश देखते ही मेरी हवा निकल गयी। क्योंकि अगर वह मेरे पास होता तो उसे समझाता, दिलासा देता, नहीं मानता तो दो चार थप्पड़ भी मारता। पर अंतरजाल की आभासी दुनिया है, चैट या फ़ोन पर ही कुछ किया जा सकता है क्योंकि वह हजारों किलोमीटर दूर बैठा है और हम कुछ नहीं कर सकते। हड़बड़ाकर मैने उसके मोबाईल पर कॉल किया तो बंद मिला। मुझे निराशा हाथ लगी और लगा कि आज एक दोस्त चला जाएगा। वह निराशा के गहरे गर्त में डूबा हुआ है और मैं उसे बचाने का प्रयास भी नहीं कर सकता। वह कहाँ रहता है, उसके अड़ोसी-पड़ोसी कौन हैं? इसका भी पता नहीं। पता होता तो किसी को उसके पास भेजा जा सकता था।

उस वक्त वह चैट पर ही था, मेरे समझाने पर मानने को तैयार नहीं। मेरे साथ उस वक्त ऑन लाईन प्रसिद्ध ज्योतिषी संगीता पुरी एवं ब्लॉगर कवियत्री संध्या शर्मा थी। वह बात मैने इन्हे बताई तो ये भी चिंतित हुई। वह मित्र संगीता पुरी का भी चैट फ़्रेंड था। उन्हे वह ऑनलाईन दिख रहा था। एक ज्योतिषी अच्छा मनोवैज्ञानिक भी होता है और उसकी बातों का लोगों के मनोमस्तिष्क पर प्रभाव भी पड़ता है। मैने संगीता जी से उस मित्र की कौंसलिग करने कहा और संध्या शर्मा को फ़ोन नम्बर देकर उस पर लगातार कॉल करने कहा। अब मैं और संगीता पुरी उससे चर्चा करने लगे। वह जवाब देता गया…… संगीता जी ने उसे बताया कि आत्महत्या जैसा गलत इरादा छोड़ दे क्योंकि अगले माह उसे इससे भी अच्छी नौकरी मिलने वाली है। हम चारों चैट पर जुड़े हुए उससे बात करते रहे। एक घंटे बाद वह ऑफ़ लाईन हो गया और हम चिंतित आपस में चर्चा करते रहे कि वह अब क्या करेगा?

हार कर मैने मन ही मन एक गाली दी और नेट बंद करके सोने चला गया… सोचा कि हमारी बात अगर उस समझ आई होगी तो वह आत्महत्या नहीं करेगा और सुबह उठने पर उसके चैत की बत्ती जलती दिखाई देगी। जब सुबह उठा तो चैट पर उसकी हरी बत्ती जल रही थी। संतोष हुआ कि हमारी सबकी रात की मेहनत बेकार नहीं गयी। उसने मुझे अपनी इच्छा जाहिर कर दी तो जान भी बच गयी और हमें भी संतोष मिला के नकारात्मकता से भरे एक व्यक्ति के विचारों को हम सकारात्मकता की ओर मोड़ने में सफ़ल हुए। मैने सुबह संगीता पुरी एवं संध्या शर्मा को शुभकामनाएं दी। क्योंकि हम सब डरे हुए थे कि वह रात को आत्महत्या न कर ले। बैठे बिठाए मुसीबत गले पड़ गयी थी और उसे बचाने में मातृ शक्ति का बड़ा हाथ था।

20 दिनों बाद वह फ़िर चैट पर आया और बोला कि "भैया संगीता जी की भविष्यवाणी सच हुई, मुझे उससे भी अच्छी नौकरी मिल गयी। मैं अब खुश हूं और आज ही ज्वाईन करने दूसरे शहर जा रहा हूँ।" सुन कर बहुत खुशी हुई, और इस बात की भी खुशी हुई कि ज्योतिष ने एक की जान बचाई। मैने संगीता पुरी तुरंत यह खबर बताई। संध्या शर्मा को बधाई दी। हमारी समवेत मेहनत रंग लाई और एक जान बच गयी, एक परिवार बिखरने बरबाद होने से बच गया, वरना आज उसके परिवार और बाल बच्चों पर क्या गुजर रही होती? आज अवश्य ही वह व्यक्ति अपने आत्महत्या के फ़ैसले पर शर्मिन्दा हो रहा होगा। लेकिन उसने एक अच्छा काम किया जो हमें बता दिया हमारी बात चीत से उसका मन हल्का हो गया और जीवन के प्रति मोह बढा।

मनुष्य के जीवन में आध्यात्म बहुत काम आता है। जो व्यक्ति पुस्तके पढता है और अच्छे लोगों की सम्पर्क में रहता है उसके भीतर नकारात्मक उर्जा प्रवेश कर ही नहीं सकती क्योंकि पुस्तकों एवं मित्रों से सम्पर्क में पाया हुआ सद्ज्ञान उसे गलत कार्य करने से रोकता है। व्यक्ति को अपने भीतर बैठे देव से पहले सम्पर्क करना चाहिए वह कभी भी गलत कार्य नहीं करने देता। हमेशा गलत कार्यों से रोकता है। आत्मा की आवाज सुनना चाहिए और ऐसे वक्त में मन को धकिया देना चाहिए क्योंकि मन लिप्सा में लिप्त है माया के, उड़ा ले जाता है व्यक्ति को। आत्मा पवित्र है वह हमेशा गलत कार्यों से व्यक्ति को रोकती है। राहुल अगर एक बार भी किसी मित्र से सम्पर्क कर लेते तो शायद मौत की घड़ी टल जाती……… पर अफ़सोस और अफ़सोस के अलावा कुछ नही…………    

बुधवार, 14 मार्च 2012

और मिसाईलें धरी रह गयी ------------ ललित शर्मा

भोर में ही घोड़े की टापों जैसे फ़ोन घनघनाने लगा, आँखे मलकर कोसते हुए फ़ोन उठाया तो परम फ़ेसबुक सखा की आवाज आई, "भैया फ़ेसबुक बंद है क्या? रात को तो बंद किया था तब तो चालु था…अब पता नहीं क्या हुआ, देखता हूँ -  मैने कहा। नेट चालु करके फ़ेसबुक खोला तो बंद मिला। बंद है यार यहाँ भी नहीं खुल रहा…। अब क्या किया जाए वह बोला…। आराम करो और क्या है……इतना कहकर मैने फ़ोन काट दिया। इधर नेट शुरु होते ही दनादन चैट पर लोग आने लगे, फ़ेसबुक बंद होने का समाचार अभनपुर से अमेरिका तक, मोकामा से मास्को तक……जरवाय से जर्मनी तक…… बिलासपुर से बुर्किनाफ़ासो तक आग की तरह फ़ैल चुका था। फ़ोन पर फ़ोन बजने लगे……। सारे फ़ेसबुकियों को लग रहा था कि फ़ेसबुक बंद हो जाएगा तो क्या करेंगे? चचा भी खांसते-खंखारते अपने कमरे से मेरे पास चले आए……और सवाल दागा… फ़ेसबुक नहीं खुल रहा है भतीजे, जरा देख लो मेरे कम्पयुटर में तो कोई खराबी नहीं है? कम्पयुटर में कोई खराबी नहीं है चचा……फ़ेसबुक ने ही अपनी दुकान बढा ली……। चचा माथे पर हाथ रख कर चिंतामग्न हो गए……

फ़ोन फ़िर बजने लगा……वही सवाल……अरे मैने क्या ठेका ले रखा है फ़ेसबुक का, या कोई मेरी हिस्सेदारी है उसमें……पूछो जकर बकर बर्ग से……फ़ेसबुक बंद किया उसने और आफ़त मेरे गले पड़ रही है……एक तो सुबह ही नींद से उठा दिया। चचा कहने लगे कि बहुत बुरा हुआ, तुम्हे क्या पता है कितने करोड़ लोग बेरोजगार हो जाएगें? कितने लोग आत्महत्या कर लेगें। कितनों की गर्लफ़्रेंड उड़नतश्तरी पर बैठ कर निकल लेगीं। कितनों की खड़ी फ़सल खराब हो जाएगी……मैने भी खेत में मक्का और सुरजमुखी बो रखे है। सब बरबाद हो जाएगें, पानी नहीं मिलने से……ह्म्म……चचा फ़ेसबुकिया खेती की बात कर रहे थे। जैसे देश की खाद्यान्न समस्या के समाधान में फ़ेसबुक का ही बड़ा हाथ है। धरती पर बोए अन्न से तो इनका पेट नहीं भरता… चले अब फ़ेसबुकिया खेती से पेट भरने…। इधर फ़ेसबुक बंद होने के समाचार गुगल वाले नाच रहे थे…… फ़ेसबुकिया ग्राहक अब गुगल प्लस की ओर दिखाई देने शुरु हो गए। वहाँ किसी ने लिखा कि - फ़ेसबुक का बंद होना घोर अन्याय है। सरकार को संज्ञान लेकर कार्यवाही करनी चाहिए……। सरकार की कार्यवाही का तो पता नहीं, पर हमने एक मेल जरुर कर दी जकर बकर बर्ग को………

घंटे भर में तो ऐसा लगा कि जैसे आपातकाल लग गया हो………नेट पर आन्दोलन की खबरें आने लगी, बच्चे, युवा, बुजुर्ग, नर,नारी, किन्नर सभी आन्दोलन में शरीक होते दिखाई दिए, विपक्ष चिल्लाने लगा कि - सरकार अकर्मण्यता से फ़ेसबुक बंद हुआ है। करोड़ों बेरोजगार हो गए……इससे देश में अराजकता फ़ैल जाएगी। करोड़ों फ़ेसबुकिए कम से कम अपने लाईक और कमेंट के चक्कर में पड़े थे…। इन्हे फ़ेसबुकिया बेरोजगारी भत्ता दिया जाना चाहिए……बड़े से लेकर छुटभैइए नेता सभी अपनी रोटी सेंकने लग गए…… फ़ेसबुकियों के समर्थन में विपक्ष खड़ा होकर बयान बाजी कर रहा था……तो मोमबत्ती ब्रिग्रेड को भी काम मिल गया। सारे एक जुट होकर चौक चौराहों पर बिहाने बिहाने मोमबत्तियाँ जलाने लगे……कुछ यूवा लाल गुलाब बांट कर गेट वेल सून करने लगे…… अन्ना के आन्दोलन से बड़ा आन्दोलन देश में दिखाई देने लगा। इतना बड़ा आन्दोलन तो भ्रष्टाचार और सुशासन में मुद्दे पर कभी नही हुआ। कुछ नेता इस स्वस्फ़ूर्त आन्दोलन बता कर जेपी आन्दोलन से तुलना कर रहे थे……।

भैंस की सानी और दूध से समय मिलते ही ताई ने फ़ेसबुक खोला तो बंद मिला………प्लस पर जाने पर समाचार मिला कि फ़ेसबुक बंद हो गया है, ड्योढी पर आकर चिल्लाने लगी… किस मुए का काम है जो इसे बंद कर दिया…… अरे काम के बाद थोड़ी फ़ुरसत मिलती थी तो यार दोस्तों से मन-तन की बतिया लेते थे……अब इनसे यह भी सहन नहीं होता… सिर पर घास का भरोटा (गट्ठर) लिए चुन्नू की माँ ने सुन लिया…… उसने वहीं पर घास का गट्ठर फ़ेंक कर दहाड़ मारी………अरे किसको आग लग गयी जिसने फ़ेसबुक बंद कर दिया…… नासपीटों से आधी आबादी की खुशी नहीं देखी जाती…… एक महिला बिल तो पास नहीं कर सके, उपर से फ़ेसबुक भी बंद कर दिया। बस फ़िर क्या था आधी आबादी उखड़ गयी और आन्दोलन की राह पर चल पड़ी। सड़क पर उतरे फ़ेसबुकियों को देख कर सरकार हिल गयी, प्रधानमंत्री की कुर्सी डांवाडोल होने लगी, सरकार की सहयोगी पार्टियों ने अल्टीमेटम दे दिया कि इस समस्या का समाधान तुरंत निकाला जाए अन्यथा हम अपना समर्थन वापस ले लेगें। प्रधानमंत्री ने सुरक्षा परिषद एवं केबिनेट की आपात बैठक बुलाई और विचार विमर्श होने लगा।

थोड़ी देर बाद सरकार के प्रवक्ता ने प्रेस कांफ़्रेस बुलाकर पत्रकारों को बताया कि - सरकार फ़ेसबुक को वापस लाने का पुरजोर प्रयास कर रही है, जकर बकर बर्ग बाथरुम में है, उसके बाहर आते ही कुछ समाधान निकल आएगा………तभी प्रवक्ता के ने फ़ोन पर कुछ बात की और बोला - फ़ेसबुक बंद होने में विदेशी शक्तियों का हाथ है…… अभी फ़ोन से जानकारी मिली है कि अफ़रा तफ़री की स्थिति को देखते हुए मौके का फ़ायदा उठाने के लिए पाकिस्तान ने काश्मीर की तरफ़ कुछ मिसाईलें तैनात कर दी है। देश के सामने भयंकर समस्या खड़ी हो गयी है… संकट की इस घड़ी में समस्त देशवासियों से अपील की जाती है कि धैर्य बनाएं और हमारी सेनाएं दुश्मन को मुंह तोड़ जवाब देगीं, काश्मीर को अपने हाथ से नहीं जाने देगें। एक प्रेस कांफ़्रेस में ही मुद्दा बदल गया, सारे देश में देश भक्त्ति के गाने बजने लगे…… लोग सड़कों पर नारे लगाने लगे…… जो हमसे टकराएगा…… मिट्टी में मिल जाएगा, दूध मांगोगे तो खीर देगें, काश्मीर मांगोगे तो चीर देगें। हमारी सेनाओं ने भी अग्नि और पृथ्वी मिसाईलें इस्लामाबाद और करांची को निशाने पर लेकर तैनात कर दी…… मॉक ड्रिल करके देख ली गयी……।

दो परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र आमने सामने थे, अमेरिका की इन घटनाओं पर खास नजर थी…… क्योंकि दुनिया का नम्बरदार तो वही है, कहीं भी टाँग फ़ंसाने का विशेषाधिकार उसी के पास है। उसने कहा कि हम फ़ेसबुक चालु कराने का प्रयत्न करते हैं, तब तक युद्ध स्थगित रखा जाए और पाकिस्तान धैर्य रखे तो उसे विशेष इमदाद दी जाएगी। इधर सेनाएं आमने-सामने थी। लोग फ़ेसबुक को भूल कर दो देशों के बीच बढ रहे तनाव पर नजर रख रहे थे। लाला जी दुकान बंद करके गोदाम में ताला लगा कर बैठ गए। युद्ध के समय डबल कमाई के मंसुबे बांधने लगे। लोग अपने घरों में महीने भर का राशन जमा करने के जुगाड़ में थे। अमेरिका को पाकिस्तान ने धमकी दी कि इमदाद फ़ौरी तौर पर जारी नहीं की तो वह गौरी को छोड़ देगा। अमेरिका में सीनेट की बैठक के बाद निर्णय लिया गया कि दोनो देशों के प्रधानमंत्रियों की व्हाईट हाऊस में शिखर वार्ता करवाई जाए… शायद समस्या का  कुछ हल निकले…… शिखर वार्ता प्रारंभ हुई…… पाकिस्तान अड़ा रहा इमदाद पर और हमारे प्रधानमंत्री अड़े रहे पाक अधिकृत काश्मीर पर………वार्ता जो्र शोर से शुरु थी…… तभी अमेरिकी राष्ट्रपति के पीए ने आकर उसके कान में चुपके से बताया कि "सर फ़ेसबुक शुरु हो गया है"…………   खबर लगते ही फ़ेसबुकिए अपने काम में लग चुके थे…… और मिसाईलें धरी की धरी रह गयी…  

सोमवार, 12 मार्च 2012

नि:शब्द मौन के बोल -- ललित शर्मा



नि:शब्द
मौन के बोल
अबोल से झरते
शब्द
ज्यूँ झरता
अनहद से रसानंद
बजता अनहद नाद
अंतर में
यूँ लगा
कबीर हो गया
बजा जब
अनहद मृदंग
शुन्य में
पुलकित रोम रोम
एकाकार होते
उष्मा भरे वलय
ब्रह्माण्ड समाया हो
अंतर में
उष्मा से भरा अंतरिक्ष
फ़िर भीषण प्रकाश
और प्रकाश ही प्रकाश
हुआ अंतर आलोकित
तिमिर कलुष भागे
अबोल से झरे शब्द
यूँ लगा कि
तुमसे मिलकर
परमहंस हो गया
रोम रोम काव्य मय हुआ
स्वरलहरियां चल पड़ी
शब्दों से मिलने
बनकर गीत गुंजेगी
मेरे अंतस  में नित
अनहद नाद की तरह
जो बजता है अनवरत

बुधवार, 7 मार्च 2012

वारेन हेस्टिंग का सांड़ और चाँद पर होली ---- ललित शर्मा

सुबह की फ़ेसबुकिया सैर पर मित्रों ने कहा कि - होली कैसे मनाएगें? मैने कहा - क्या हुआ? बोले - यार जब से चमन काका ने होटलों ढाबों में पीने पर प्रतिबंध लगाया है तब से होली का मजा ही किरकिरा हो गया । और तो कोई जगह नहीं दिख रही होली मनाने की। अब क्या किया जाए? मैने कहा कि - कोई गल्ल नी जी, चाँद पर होली मनाएगें, वही कैम्पफ़ायर करके धूम मचाएगें। सब राजी हो गए, चाँद धरती के कानूनी क्षेत्र से बाहर है  होली वहीं मनाई जाएगी। चाँद पर होली मनाने की बात सुनकर महफ़ुजानंद जिम जाने की बजाए सायकिल धो मांजने लग गए। खुशदीप भाई से रहा नहीं गया महफ़ूज की हरकतें देख कर पूछ ही लिया - मियां बिहाने-बिहाने सायकिल धो मांज रहे हो, माजरा समझ नहीं आया। तो महफ़ूजानंद का कहना था कि सायकिल से चाँद पर जाकर होली मनाने की तैयारी है। अरे सायकिल में कौन सा सुपर सोनिक जेट का इंजन लगा लिया। जो चाँद पर पहुंच जाएगी। महफ़ूजानंद बोले कि - आपके प्रदेश की तो नहीं कह सकता पर युपी में तो सायकिल से चाँद पर भी जाया जा सकता है। यहां तो सायकिल में जेट का इंजन लग गया है।

महफ़ूज ने सुबह फ़ोन किया था कि पाबला जी का फ़ोन नहीं लग रहा है, मैने भी ट्राई किया, नहीं लगा। सायकिल का चक्कर देख कर समझ आया कि चांद पर पाबला जी के पुत्तर ने एक प्लाट ले रखा है, जिस पर शायद रेस्ट हाउस बन गया होगा। इसलिए महफ़ूजानंद फ़ोन लगा रहे हैं। हमने भी तैयारी कर ली, जब चाँद पर सायकिल जा सकती है तो बैल गाड़ी क्यों नहीं। बैलगाड़ी पायलेट गोबरधन को तैयार किया, चाँद पर चलने के लिए और हम नहाने चले गए। स्नानोपरांत जब दरवाजे से देखा तो ब्लॉगर साथियों का जमावड़ा नजर आया। ये क्या हो रहा है भाई? हबीब साहब बोले कि - हम भी चलेगें चाँद पर। चाँद पर बैठ कर पीने का कान्सेप्ट हमारा था आपने उसे हाई जैक कर लिया। मुझे भी ले जाना पड़ेगा। गौरव भी दिखाई दिया, येल्लो भैया  हो गया कल्याण। मुझे बैलों की चिंता सताने लगी। इतना वजन कैसे खींच पाएगें? समस्या का हल यूँ हुआ कि हबीब साहब ने गाँव से और भी बैलगाड़ी किराए पर तैयार कर ली और बोले - अब समस्या का समाधान हो गया। जितने भी ब्लॉगर साथी है सभी जा सकते हैं। ये हुई न बात………… फ़ेसबुक पर निमंत्रण जारी कर दिया गया।

संजीव तिवारी, राहुल सिंह, शरद कोकास, सूर्यकांत गुप्ता, अनिल पुसदकर, गिरीश बुलेरो, राजीव तनेजा+संजु तनेजा, जी के अवधिया, श्यामकोरी"उदय" रमाकांत सिंह, अविनाश वाचस्पति, गिरीश पंकज, स्वराज करुण, दीपक "मशाल" अहफ़ाज, केवल राम पी के शर्मा, योगेन्द्र मुदगिल, अलबेला खत्री, प्रवीण पांडे, सतीश सक्सेना, संजीत त्रिपाठी, अजय झा, पदम सिंह, शिवम मिश्रा, इरफ़ान भाई, डॉ दराल, दसहजारी संजय भास्कर सहित महिला ब्लॉगरों में संगीता पुरी, इंदू पुरी, सुनीता "शानु", संध्या शर्मा, अंजु चौधरी, वंदना गुप्ता, दर्शनकौर धनोए, डॉ मोनिका शर्मा, डॉ मीनाक्षी स्वामी, डॉ अल्पना देशपांडे, अर्चना चावजी, कविता वर्मा की चाँद पर जाने की तैयारी शुरु हो गयी। पद्म सिंह ने पूछा कि बाकी ब्लॉगर कैसे पहुंचेगे?  अरे भाई हमारे पास एक अदद उड़न तश्तरी भी है, उसमें राजभाटिया, शिखा वार्ष्नेय, अदा जी, सीधे हीथ्रो से टेकऑफ़ करेगें। मामला जम गया चाँद पर होली मनाने का उत्साह सभी ब्लॉगरों से चेहरे टपक रहा था। तभी अविनाश जी ने पूछा कि कितना टैम और लगेगा जाने में? कोई घंटा भर तो लग जाएगा। तो मै इंजेक्शन लगवा कर आता हूँ। मुझे न छोड़ जाना, अभी शुन्यकाल में फ़ंसा हूँ। आईए आपका इंतजार रहेगा। जब तुम्हारे लिए 10 मिनट शताब्दी लेट करवा सकते हैं तो यह तो बैलगाड़ी है, इंजेक्शन लगवा आओ जल्दी से- पी के शर्मा जी ने कहा।

अशोक भाई जा ही के नहीं? संजीव तिवारी ने सवाल दागा। इस सवाल ने तो समस्या खड़ी कर दी। लाल बत्ती वाले वीआईपी ब्लॉगर को कैसे ले जाएं, बिना लाल बत्ती के? एक काम करो यार उनके वाहन की लालबत्ती उतार कर बैला गाड़ी के जुवे में लगा दो। अब हो गया समाधान। संगीता पुरी जी ने बताया कि धरती के निकट मंगल आ गया है इसलिए चाँद पर मंगल रहेगा। अमंगलकारी शक्तियाँ निष्प्रभावी रहेगीं, इसलिए यात्रा के लिए उत्तम समय है। सभी ब्लॉगर गाड़ियों में सवार हो गए, पदम सिंह अड़ गए, काहे अड़ गए भई, बोले कि बैल गाड़ी हमही ड्राईव करेगें। सतीश सक्सेना बोले कि यह दिल्ली नहीं है, दिल्ली में गाड़ी चलाना आसान है, यह बैलगाड़ी है कोई सरकार नहीं, जिसे कोई भी चला लेगा। नहीं मानने पर वीआईपी बैलगाड़ी की ड्राईविंग हमने थाम ली, बैलगाड़ी का स्टेयरिंग थाम कर चल पड़े। तभी दर्शन कौर ने कहा कि - सवारियों की टिकिट कौन काटेगा? अरे यह तो भूल ही गए थे। बुलाओ भाई टी टी साहेब, फ़ालतु घर में बैठकर टाईम खोटी कर रहे हैं। उनका अनुभव तो काम आएगा। लो जी टी टी साहब भी आ गए। अविनाश जी भी इंजेक्शन ठुकवा आए। चल पड़े ब्लॉगर चाँद की ओर। महफ़ूज सायकिल के कैरियर पर खुशदीप भाई को बिठाकर पीछे पीछे चल पड़े, दोनो गुरु चेला साथ। जनम जनम का साथ है………

थोड़ी दूर चलने पर मुख्य पायलेट ने पूछा कि चाँद के लिए रास्ता किधर से जाता है? अगले चौराहे पर टिरैफ़िक सिपाही से पूछ लेगें, शिवम ब्लॉग बुलेटिन लगा रहे थे, बोले अभी गुगल में सर्च करते हैं। राहुल भैया ने गुगल मैप चालु कर लिया। डिग्री सेट करते ही बताने लगा रास्ता। मुख्य पायलेट और नेवीगेटर राहुल सिंह, दोनो  के जिम्मे था चाँद तक पहुंचाना। अशोक भाई ने रेड़ियो चला रखा था, अचानक गाना बजते बजते उत्तराखंड के चुनाव परिणाम आने लगे। उधर टी टी साहब टिकिट पूछने लगे, इंदू पुरी के साथ कुछ बहस होने लगी। इंदुपुरी ने दो टिकिट ले रखे थे और बंदे तीन गिना रही थी। बोली - एक टिकिट मेरा और दूसरी की आधी आधी कर ले। एक पदम सिंह और एक केवल राम की। आप जिनको बच्चे कह रही है ये तो जवान हैं, इनकी तो पुरी टिकिट लगेगी। मैने कहा न बच्चे हैं, ये दोनो ब्याह जोगे दिख रहे हैं और इनको आप बच्चे कह रही हैं। मैने कहा - ब्याह जोगे दिख रहे हैं तो फ़ेर कर दे टीका। टीटी साहब ने 500 की दो पर्चियां तुरंफ़ फ़ाड़ के पकड़ा दी। रेल्वे में 30 साल नौकरी ऐसे ही नहीं की।

सामने से वारेन हेस्टिंग का सांड आ रहा था, उसे देख कर बैल बिदकने लगे।हमारे से ड्रायविंग पदम सिंह ने ले ली उनके हाथ में स्टेयरिंग तो था लेकिन पता नहीं कि बैलगाड़ी मोड़ते कैसे हैं? यह तो राहुल भाई का पुराज्ञान काम आ गया वरना टक्कर हुई हुवाई थी। जनता हवलदार चालान अलग से काटता, उसकी होली मन जाती और अपना मोहर्रम। लो जी पहुंच गए चांद पर राहुल भाई के जीपीएस ने बताया। सबकी हालत वही थी, जो कभी नील आर्मस्ट्रांग की हुई होगी। सबने डरते-डरते चांद की धरती पर कदम रखे। जैसे ही कदम रखे, वैसे ही आवाज आई - " ओएएएए महफ़ूजिया, ओएएए दीपिया, मैने सर ऊंचा करके देखा तो एक बहुत बड़ा साईन बोर्ड दिखाई दिया, लिखा था "ढाबा शेर-ए-पंजाब" यहां शुद्ध शाकाहारी और मांसाहारी खाना मिलता है। साईड में छोटे से बोर्ड पर लिखा था "इत्थे डोडे मिलदे ने"। सामने बीसेक मंजिया पाई थी और साथ में कुछ भैंसे भी बंधी थी। एक खाट पर पाबला जी, राजभाटिया, समीर लाल महफ़िल जमाए बैठे थे। हमे देखते ही राज भाटिया बोले - आओ जी, अस्सी और तुस्सी पीवांगे लस्सी। इतनी दुर हम लस्सी ही पीने आए क्या और कुछ है तो बताओ? मिलुगी जी मिलुगी, पहली धार की………त्वानु ऐत्थेई जन्नत दे नजारे वखावांगे। इधर खबर मिली कि संगीता जी चाँद पर पहुंचते-पहुंचते दादी बन चुकी थी। तय यह हुआ कि इनसे पार्टी बाद में  ली जाएगी। :)

अपना-अपना ठीहा लगाने के बाद, अजय झा के नेतृत्व में भांग घोटाई होने लगी। राज भाटिया जी ने दूध का इंतजाम कर रखा था। अब बनने लगी केसरी ठंडाई, पहली धार वाले किनारे हो गए एक तरफ़। राहुल भाई चाँद पर पुरावस्तुओं की खोज में निकल गए। लगे हाथ कोई काम भी हो जाए। अशोक भाई उत्तराखंड के चुनाव परिणाम के रुझान जानने में लगे हुए हैं, दर्शन कौर झगड़ रही है टी टी साहब से, कह रही हैं इतनी ईमानदारी दिखाने की क्या जरुरत थी। दो टिकिट में तीन सवारी चला लेना था। लोग फ़्री में भी चले जाते हैं। राहुल भाई के लौटने तक कुछ खाटों को जोड़ कर मंच बना लिया गया था। मंच से कविताई के साथ कुछ पुस्तकों के विमोचन की घोषणा हो रही थी। आम के आम गुठली के दाम, होली मनाने के साथ पुस्तक विमोचन भी। अखिल ब्रह्मांड ब्लॉगर्स संगठन की अध्यक्षा मंच पर विराजमान हो चुकी हैं, अशोक भाई रेड़ियो समेत मंच पर पहुंच गए। अन्जु चौधरी, स्वराज करुण, अनिल पुसदकर, अविनाश वाचस्पति, डॉ मीनाक्षी स्वामी की पुस्तके मंच पर पहुच चुकी हैं, फ़्लेप खोलने पर नई नवेली पुस्तकें सकुचाते शरमाते दुल्हन की तरह बाहर आई, सभी ने तालियां बजा कर स्वागत किया। केवल राम फ़ोटो खींचने में लगे थे।

भंग ठंडाई तैयार थी, पकोड़ों के साथ ठंडाई का दौर शुरु हो गया। अशोक भाई उत्तराचंल के चुनाव परिणाम में उलझे थे, राजनीति भी बडी बैरन है, न सोने देती न खोने देती। जब चांद पर पहुंच गए तो होली तो ढंग से मनाओ। गजल शुरु हो चुकी थी, आज दावत है यारों, चाँद पर बैठकर्……। महफ़ूजानंद सायकिल टायर चेक कर रहे हैं, कहीं पंचर हो गई तो वापसी कैसे होगी? होली खेले रघुवीरा अवध में…… बजते ही धमाल शुरु हो गया, जम कर डांस होने लगा। पाबला जी, पदम सिंह, अलबेला खत्री, इंदू पुरी, संध्या शर्मा, राज भाटिया, महफ़ूजानंद, शिखा, यौगेन्द्र मौदगिल, केवल राम, और हम  खूब नाचे। तभी नजर पड़ी कि दर्शन कोर कोने में खड़ी हैं कुछ नाराज सी दिखाई दे रही हैं। पूछने पर पता चला कि रेन डॉंस करना चाहती हैं। अब इनके लिए कहाँ से रेन डॉस का जुगाड़ किया जाए, चाँद पर तो बरसात भी नहीं होती। राज भाटिया जी ने जर्मनी का दिमाग लगा कर समाधान कर दिया। मिनरल वाटर की बोतलों में जाली लगा के फ़व्वारा बनाया और रेन डॉस के लायक बरसात करवा दी। झमाझम रेन डॉस हुआ। शरद कोकास विमोचन में मिली पुस्तकों को लेकर एक कोने में बैठकर पेन से कुछ मार्क कर रहे। लगता है कि पुस्तक समीक्षा की तैयारी हो रही है।

शेर-ए-पंजाब ढाबे में भोजन का दौर शुरु हो गया। एक से एक लजीज व्यंजन बनवा रखे थे राज भाटिया जी ने। हमारी तिकड़ी योगेन्द्र मौद्गिल, सतीश सक्सेना संग हम पहुंच गए जाने पहचाने ठिकाने पर, चीयर्स के साथ होली का आगाज हुआ। समीर दादा तो उड़न तश्तरी में ही चालु थे। अर्चना चावजी ने विशेष आग्रह पर एक भजन सुनाया और योगेन्द्र जी ने मल्लिका को याद किया। अलबेला खत्री की सुई पुराने रिकार्ड पर ही फ़ंसी रही। संजय भास्कर पुराने कमेंट कट पेस्ट कर रहे थे। राहुल भाई ने पूछा कि - बबा कहां गए गा।" हम भी चक्कर में पड़ गए, अवधिया जी किधर गए, बहुत ढूंढने पर वे बैलागाड़ी के नीचे पैरा बिछाकर बैठे दिखे। नजदीक पहुंचने पर दिखा कि खंबा लिए बैठे हैं, आराम से चुस्की मारते हुए टंगड़ी चुहक रहे हैं। मतलब जन्नत के नजारे ले रहे हैं।

अविनाश जी पानी की बोतलों में उलझे हुए थे। तभी सामने से वारेन हेस्टिंग्स का सांड नथुने फ़ुलाए आते हुए दिखाई दिया। सोचा कि निकल जाएगा बगल। लेकिन वह तो उपर ही चढा आ रहा था। अजीब मुसीबत है, जागता हूँ तो सामने दिखाई देता हैं, सोता हूं तो सपने में दौड़ाता है। बड़ी मुसीबत है, सांड ने दौड़ लगाई और मै उसके आगे-आगे वह मेरे पीछे पीछे, अजीब मुसीबत है, मैने इसका क्या बिगाड़ दिया। अरे दौड़ाना है तो उदय प्रकाश जी को दौड़ाओ, जिसके सांड हो तुम……मै दौड़ने लगा चिल्लाते हुए, बचाओSSSS बचाओSSSSS बचाओ SSSSS अरे SSSS कोई तो बचाओ SSSSS, साला मार डालेगा। तभी मुंह पर पानी की बौछार हुई, आँख खुलने पर दे्खा तो कुछ लोग मुंह पर पानी के छींटे मार रहे थे और कह रहे थे………काहे के लिए इतना ठंडाई पी लिए महाराज्…… कब से चिल्ला रहे हो…… बचाओSSSS बचाओSSSSS येल्लो गयी भैंस पानी में…………।
   

शनिवार, 3 मार्च 2012

महुआ संग महका मधुमास -- ललित शर्मा

वैदिक काल में चैत मास को मधुमास कहा जाता है, वैदिक वांग्मय में मधुमास की चर्चा है। ऋग्वेद के ऋषि मधुरस से सराबोर हैं, ‘हवाएं मधुमती हैं, जलों में मधु है, धरती-आकाश मधु से भरे हुए हैं, सब तरफ मधुरस है, मधुप्रीति है।’ मधुमास में पूरी प्रकृति मधु छंदस् है। भारतीय इतिहास के महानायक श्रीराम के जन्म की मंगल मुहुर्त भी यही मधुमास है। तुलसीदास ने लिखा, ‘नवमी तिथि मधुमास पुनीता/शुकुल पक्ष अभिजित हर प्रीता।’ चैत्र का आगमन मंगल भवन है। राम जन्म की बेला, नवरात्र की शक्ति उपासना। लहलहाती फसल, महकते वन उपवन। चैत्र माह ही राम के राज्याभिषेक के लिए भी चुना गया था। राजा दशरथ ने वशिष्ठ और वामदेव से कहा था, ‘चैत्रं श्रीमानयं मासः पुण्यः पुष्पित काननः/यौवराज्याय रामस्य सर्वमेवोप कल्पयताम्।चैत्र का मास श्रीमान है, वन उपवन पुष्पित हैं, राम के राज्याभिषेक की तैयारी हो’
यही अवसर महुआ के फ़ूलने और फ़लने का होता है, महुआ फ़ूलने पर ॠतुराज बसंत के स्वागत में प्रकृति सज-संवर जाती है, वातावरण में फूलों की गमक छा जाती है, संध्या वेला में फूलों की सुगंध से  वातावरण  सुवासित हो उठता है, प्रकृति अपने अनुपम उपहारों के साथ ॠतुराज का स्वागत करती है।आम्र वृक्षों पर बौर आने लगते हैं, तथा महुआ के वृक्षों से फूल झरने लगते हैं। ग्रामीण अंचल में यह समय महुआ बीनने का होता है। महुआ के रसीले फूल सुबह होते ही वृक्ष की नीचे बिछ जाते हैं। पीले-पीले सुनहरे फूल भारत के आदिवासी अंचल की जीवन रेखा हैं। आदिवासियों का मुख्य पेय एवं खाद्य माना जाता है। महुआ के फूलों की खुशबू मतवाली होती है। सोंधी-सोंधी खुशबू मदमस्त कर जाती है।
यह उष्णकटिबंधीय वृक्ष है जो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों और जंगलों में बड़े पैमाने में होता है। इसका वैज्ञानिक नाम मधुका लोंगफोलिआ है। हिन्दी में महुआ, संस्कृत में मधूक, मराठी में माहोचा, गुजराती में महुंडो, बंगाली में मोल, अंग्रेजी में इलुपा ट्री, तमिल में मधुर्क, कन्नड़ में इप्पेमारा नाम से जाना जाता है। यह तेजी से बढ़ने वाला वृक्ष है जो लगभग 20 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ सकता है। इसके पत्ते आमतौर पर वर्ष भर हरे रहते हैं। इसे औषधीय प्रयोग में लाया जाता है। प्राचीन काल में शल्य क्रिया के वक्त रोगी को महुआ रस का पान कराया जाता था। टूटी-फूटी हड्डियाँ जोड़ने के वक्त दर्द कम करने के काम भी आता था। आज भी ग्रामीण अंचल में इसका उपयोग होता है। जचकी में जच्चा को प्रजनन के वक्त दर्द कम करने के लिए महुआ का अर्क पिलाया जाता है।
एक तरह से हम कहें तो महुआ आदिवासी जनजातियों का कल्प वृक्ष है। मार्च-अप्रेल के माह में महुआ के फूल झरते हैं। ग्रामीण महिलाएं टोकनी लेकर भोर में ही महुआ बीनने चली जाती हैं। दोपहर होते तक 5 से 10 किलो महुआ बीन लिया जाता है। महुआ से बनाया हुआ सर्वकालिक, सर्वप्रिय पेय मदिरा ही है, हर आदिवासी गाँव में महुआ की मदिरा मिल जाती है। इसका स्वाद थोड़ा कसैला होता है पर खुशबू सोंधी होती है। चुआई हुई पहली धार की एक कप दारू पसीना लाने के लिए काफ़ी होती है। इसकी डिग्री पानी से नापी जाती है मसलन एक पानी, दो पानी कहकर। महुआ की रोटी भी बनाई जाती है, रोटी स्वादिष्‍ट बनती है पर रोज नहीं खाई जा सकती। एक जगह मैंने महुआ के लड्डू भी खाए थे, बड़े स्वादिष्ट थे।
कालिदास ने कुमारसंभव के विवाह प्रकरण में पार्वती का श्रृंगार महुआ फूल से करने का उल्लेख है। 18 वीं शताब्दी में टीकमगढ के राजा ने एक रुक्का जारी करवाया था, जिसमें किसी भी व्यक्ति द्वारा महुआ वृक्ष काटने को घोर अपराध की श्रेणी में रखा गया तथा प्राण दंड तक की सजा तय की थी। छत्तीसगढ़ में पाए जाने वाले शिलालेखों में भी मधुपदर, मधुक वृक्ष का जिक्र आया है (बकौल श्री जी एल रायकवार)। महुआ के वृक्ष को सम्मानीय माना गया है लेकिन इसमें देवताओं का वास नहीं माना जाता इसलिए इसे वन वृक्ष मानकर शास्त्रों में पूजा पाठ से पृथक कर दिया गया है। पूजा, ग्राम्य वृक्षों की होती है जैसे पीपल, बरगद, नीम इत्यादि। आंवला भी वन वृक्ष है लेकिन अब इसे ग्राम वृक्ष का दर्जा मिल गया और इसकी भी पूजा होने लगी। महुए की ताजी कटी लकड़ी भी जलाई जा सकती है।
महुए की मादक गंध से भालू को नशा हो जाता है, वह इसके फूल खाकर झूमने लगता है। जंगली जानवर भी गर्मी के दिनों में महुआ के फूल खा कर क्षुधा शांत करते हैं। कई बार महुआ बीनने वालों की भिडंत भालू से हो जाती है। महुआ संग्रहण से ग्रामीणों को नगद राशि मिलती है, यह आदिवासी अंचल के निवासियों की अर्थव्यवस्था का मुख्य घटक है। मधूक वन का जिक्र बंगाल के पाल वंश एवं सेन वंश के अभिलेखों में आता है, अर्थात मधूक व्रृक्ष की महिमा प्राचीन काल में भी रही है। वर्तमान में महुआ से सरकार को अरबों रुपए का राजस्व प्राप्त होता है। अदिवासी परम्परा में जन्म से लेकर मरण तक महुआ का उपयोग किया जाता है। जन्मोत्सव से मृत्योत्सव तक अतिथियों को महुआ रस पान कराया जाता है। अतिथि सत्कार में महुआ की प्रधानता रहती है।  महुआ कि मदिरा पितरों एवं आदिवासी देवताओं को भी अर्पित करने की परम्परा है, इसके लिए महुआ पान से पूर्व धरती पर छींटे मार कर पितरों को अर्पित किया जाता है। यह परम्परा कब से आ रही है मेरे लिए अज्ञात है।
महुआ के फूलों का स्वाद मीठा होता है, फल कड़ुए होते हैं पर पकने पर मीठे हो जाते हैं, इसके फूल में शहद के समान गंध आती है, रसगुल्ले की तरह रस भरा होता है। अधिक मात्रा में महुआ के फूलों का सेवन स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता, इससे सरदर्द भी हो सकता है, महुआ की तासीर ठंडी समझी जाती है पर यूनानी लोग इसकी तासीर को गर्म समझते हैं। कहते हैं कि महुआ जनित दोष धनिया के सेवन से दूर होते हैं। औषधीय गुणों से भरपूर है। महुआ, वात, पित्त और कफ़ को शांत करता है, वीर्य धातु को बढ़ाता है और पुष्ट करता है।पेट के वायु जनित विकारों को दूर कर फोड़ों, घावों एवं थकावट को दूर करता है। खून की खराबी, प्यास, स्वांस के रोग, टीबी, कमजोरी, नामर्दी (नपुंसकता) खांसी, बवासीर, अनियमित मासिक धर्म, अपच एवं उदर शूल, गैस के विकार, स्तनों में दुग्ध स्राव एवं निम्न रक्तचाप की बीमारियों को दूर करता है।
वैज्ञानिक मतानुसार इसके फूलों में आवर्त शर्करा 52.6%, इक्षुशर्करा 2.2%, सेल्युलोज 2.4%, अल्व्युमिनाईड 2.2%, शेष पानी एवं राख होती है। इसमें अल्प मात्रा में कैल्शियम, लौह, पोटास, एन्जाईम्स, अम्ल भी पाए जाते हैं। इसकी गिरियों से में तेल का प्रतिशत 50-55 तक होता है। इसके तेल का उपयोग साबुन बनाने में किया जाता है। घी की तरह जम जाने वाला महुआ (या डोरी का कहलाने वाला) तेल दर्द निवारक होता है और खाद्य तेल की तरह भी इस्‍तेमाल होता है। मुझे महुआ के फूलों की गमकती सुगंध बहुत भाती है। मदमस्त करने वाली सुगंध महुआ की मदिरा सेवन करने के बजाए अधिक भाती है। मौसम आने पर महुआ के फूलों की माला बनाकर उसकी सुगंध का दिन भर आनंद लिया जा सकता है, फ़िर अगले दिन प्रात:काल नए फूल प्राप्त हो जाते हैं। 
ग्रामीण अंचलों में संग्रहित महुआ वर्ष भर प्राप्त होता है, जिस तरह लोग अनाज का संग्रहण करके रखते हैं, उसी तरह महुए को भी संग्रहित करके रखा जाता है तथा वर्ष भर उपयोग एवं उपभोग में लाया जाता है। महुआ की मदिरा रेड वाईन जैसे ही होती है। रेड वाईन में पानी सोडा नहीं मिलाया जाता उसी तरह महुआ में भी पानी सोडा नहीं मिलाया जाता। बसंत के मौसम में महुआ का मद और भी बढ़ जाता है। ऐसे ही महुआ को भारत के आदिवसियों का कल्प वृक्ष नहीं कहा जाता । यह  आदिवासी  संस्कृति का मुख्य अंग भी है। इसके बिना आदिवासी संस्कृति की कल्पना ही नहीं की जा सकती। आइए इस मधुर मधुमास के अवसर पर मधूकरस का आनंद मधुक पुष्पों के संग लिया जाए।

गुरुवार, 1 मार्च 2012

अथ श्री कर्ण पुराण कथा --- ललित शर्मा

कान शरीर का महत्वपूर्ण अंग है इसके बगैर जीवन बहुत कठिन है। जो बहरा होता है वह गूंगा भी होता है। मतलब श्रवण शक्ति अकेले नहीं जाती, संग वाक शक्ति को भी ले जाती है। कान की महिमा निराली है। एक बार की बात है, मैं  जैसे ही रेल्वे स्टेशन पहुंचा, गाड़ी पार्किंग में लगाने लगा तो जोर से आवाज आई “बजाऊं क्या तेरे कान के नीचे?” पलट के देखा तो दो बंदे जूझ रहे थे…एक-दूसरे का कालर पकड़ कर गरियाते हुए……. मैं आगे बढ़ लिया, ट्रेन का समय होने वाला था, मेहमान आने वाले थे. फालतू में इनके पंगे में कौन पड़े? चलते-चलते कह ही दिया. अरे कान का क्या दोष है? बजाना है तो एक दूसरे को बजाओ.” 

दो बंदे लड़ रहे हैं, खिंचाई कान की हो रही है। कान का क्या दोष है? गलती कोई करता है और कान पकड़ा जाता है. माल खाए गंगा राम और मार खाए मनबोध…….. कान पकड़ना बड़ा काम आता था …….. हम जब कोई गलती करते, बदमाशी करते या स्कुल में किसी को पीट देते, जब उलाहना घर पर आता तो दादी के सामने पहले ही कान पकड कर खड़े हो जाते कि अब से कोई गलती नहीं करेंगे………. अब कोई उलाहना लेकर घर  नहीं आएगा………  मार से बचने के लिए कान पकड़ना एक हथियार का काम आता और हम बच जाते.

कभी हमारा छोटा भाई दादी के कान भर देता तो फिर मुसीबत ही खड़ी हो जाती थी. बस फिर कोई सुनवाई नहीं होती ….. दादी की छड़ी चल ही जाती……….. लेकिन वो मुझे बहुत ही प्यार करती थी……… सहज ही मेरी खिलाफ किसी की बात पर विश्वास नहीं करती ……. पहले उसकी सत्यता जांचती …….. कान की कच्ची नहीं थी. क्योंकि कान का कच्चा आदमी किसी की भी बात पर विश्वास कर लेता है…….. भले ही वो गलत हो………. और बाद में भले ही उसका गलत परिणाम आये और पछताना पड़े…………. लेकिन एक बार तो मन की कर ही लेता है………. इसलिए कान के कच्चे आदमी विश्वसनीय नहीं होते और इनसे बचना चाहिए…….

कुछ लोग कान फूंकने में माहिर होते हैं……… धीरे से कान में फूंक मार कर चल देते हैं फिर तमाशा देखते है…….. मौज लेते है…….. अब तक की सबसे बड़ी मौज कान फूंक कर मंथरा ने ली थी………. धीरे से माता कैकई का कान फूंक दिया, राम का बनवास हो गया। देखिये कान फूंकने तक मंथरा का उल्लेख है उसके बाद रामायण में सभी दृश्यों से वह गायब हो गई है, कहीं कोने छिपकर मौज ले  रही है…………. ऐसे कान फूंका जाता है…… 

यह एक परंपरा ही बन गई है……. किसी को गिरना हो या चढ़ाना हो………… दो मित्रों या परिवारों के बीच लड़ाई झगड़ा करवाना हो ……… बस कान फूंको और दूर खड़े होकर तमाशा देखो. कान भरने और फूंकने में वही अंतर है जिंतना पकवान और फास्ट फ़ूड में है………. कान भरने के लिए भरपूर सामग्री चाहिए……….. क्योंकि कान इतना गहरा है कि इसे जीवन भर भी भरें, पूरा भर ही नहीं पाता है…. कान भरने का असर देर से होता है तथा देर तक रहता है……… लेकिन कान फूंकने के लिए ज्यादा समय और मगज खपाना नहीं पड़ता चलते-चलते फूंक मारा और अगले की वाट लग गयी…… फ़िर वह इस तरह चक्कर लगाते फ़िरेगा जैसे कान में कीड़े पड़ गए और उसे चैन नहीं दे रहे हों………।

एक कन्फुकिया गुरूजी हैं…………… जो कान में ऐसे फूंक मारते है कि जीवन भर पूरे परिवार को कई पीढ़ी का गुलाम बना लेते हैं ………….. कुल मिला कर कुलगुरु हो गये…….. चेले का कान गुरु की एक ही फूंक से भर से भर जाता है……… बस उसके बाद चेले को किसी दुसरे की बात नहीं सुनाई देती क्योंकि कान में जगह ही नहीं है. अब वह कान उसका नहीं रहा गुरूजी का हो गया……. कान में सिर्फ गुरूजी का ही आदेश सुनाई देगा…………. गुरूजी अगर कुंए में कूदने कहेंगे तो कूद जायेगा…….. इसे कहते हैं कान फूंकी गुलामी………. चेला गुरूजी की सभी बातें कान देकर सुनता है………

कान फूंकाया चेला कुछ दिनों में पदोन्नत होकर कनवा बन जाता है…….. कनवा बनकर योगी भाव को प्राप्त का कर लेता फिर सारे संसार को एक ही आँख से देखता है………….. बस यहीं से उसे समदृष्टि प्राप्त हो जाती है…….. गीता में भी भगवान कृष्ण ने कहा है स्मुत्वं योग उच्चते…… इस तरह चेला समदृष्टि प्राप्त कर परमगति की ओर बढ़ता है …….. कान लगाने से यह लाभ होता है कि  एक दिन गुरु के भी कान काटने लग जाता है…… उसके चेलों की संख्या बढ़ जाती है………. गुरु बैंगन और चेला पनीर हो गया ……. गुरु छाछ और चेला खीर हो गया.

कान शरीर का महत्त्व पूर्ण अंग है बड़े-बड़े योगी और महापुरुष इससे जूझते रहे हैं…… आप शरीर की सभी इन्द्रियों पर काबू पा सकते हैं उन्हें साध सकते हैं लेकिन कान को साधना मुस्किल ही नहीं असम्भव है……….कहीं पर भी कानाफूसी होती है, बस आपके कान वही पर लग जाते हैं…….क्योकि कानाफूसी सुनने के लिए दीवारों के भी कान होते हैं……. अब भले ही आपके कान में कोई बात ना पड़े लेकिन आप शक करने लग जाते हैं कि मेरे बारे में ही कुछ कह रहा था…….. क्योंकि ये कान स्वयम की बुराई सुनना पसंद नहीं करते……….. अच्छाई सुनना ही पसंद करते है……… भले ही कोई सामने झूठी प्रशंसा कर रहा हो…. और पीठ पीछे कान के नीचे बजाता हो……. इसलिए श्रवण इन्द्री को साधना बड़ा ही कठिन है……….

आज कल कान के रास्ते एक भयंकर बीमारी शरीर में प्रवेश कर रही है………जिससे लाखों लोग असमय ही मारे जा रहे हैं… किसी ने कुछ कह दिया तथा कान में सुनाई दिया तो रक्त चाप बढ़ जाता है दिल का रोग हो जाता है और हृदयघात से राम नाम सत्य हो जाता है…. हमारे पूर्वज इस बीमारी से ग्रसित नहीं होते थे क्योंकि वे बात एक कान से सुनकर दुसरे कान से निकलने की कला जानते थे. उसे अपने दिमाग में जमा नहीं करते थे……… कचरा जमा नहीं होता था और सुखी रहते थे……. वर्तमान युग में लोग दोनो कानो में हेड फोन लगा लेते हैं और बस जो कुछ अन्दर आता है और वह जमा होते रहता है…… स्वस्थ  रहने के लिए एक कान से प्रवेश और दुसरे कान से निकास की व्यवस्था जरुरी है………… 

कान महत्व भी समझना जरुरी है….  क्योकि अगर आप कहीं पर गलत हो गये तो कान पर जूता रखने के लिए लोग तैयार बैठे हैं………… ऐसा ना हो आपको खड़े खड़े कान खुजाना पड़ जाये……… इसलिए कान के महत्त्व को समझे और बिना मतलब किसी के कान मरोड़ना छोड़ दें तो आपके स्वास्थ्य के लिए लाभ दायक ही होगा…………  महत्वपूर्ण बातों को कान देकर सुनना चाहिए याने एकाग्र चित्त होकर……..अगर कान में तेल डाल के बैठे रहे तो ज्ञान से वंचित होने की आशंका है……इसलिए कान खुले रखने में ही भलाई है………।
॥ इति श्री कर्ण पुराण कथा ॥