बुधवार, 30 सितंबर 2009

शरद कोकास को जन्मदिन की हार्दिक बधाई

जन्म दिवस की मधुर वेला है
आया  ये  ही क्षण  अलबेला है
दुनिया चार  दिनों का खेला है
मिल जुल के  मनाओ मेला है

शरद  भाई  आज जन्मदिवस है तुम्हारा
बधाई   सन्देश   स्वीकार   करो   हमारा
कविता-गीत-गजल स्वागत में है तैयार
आज  मनायेगे   फिर  होली  सा त्यौहार

आपको  जन्मदिवस  की  ढेर  सी  शुभकामनाये
सफलता  आपके  ब्लॉग पर नित चटका लगाये
ईश्वर आपके जीवन में नित खुशहाली बरसाए
१००साल तक दोस्तों के साथ जी भर  ठहाके लगायें

सदा रहे  हरियाली, अलख  निरंजन  काया  हो
सर पर चढ़ कर नाचे इस दुनिया की माया  हो
मजा लो जग के मेले दा,यूँ ही सदा ठाठ बने रहे
महफिलें  सजती  रहे, यारों के भी ठाठ बने रहे

शरद भाई आपको जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाये 
अऊ हमर पटवारी भईया कोती ले घलो गाडा - गाडा बधाई 
शरद भाई जनम दिन की बधाई फौजी ताऊ मनफूल सिंग की तरफ से 







मंगलवार, 29 सितंबर 2009

आखिर दशहरा में विजय हुई

कल सुबह से सैकडों पोस्ट लिखी गई होगी ब्लागवाणी के सम्बन्ध में मैंने भी अपील की थी के भाई चालू करो,अपणे फौजी ताऊ ने भी कहा था के जो बटन ख़राब हो गया है उसे डायरेक्ट कर दो,

मैं भी सूबे नेट चालू किया तो देखा नही के ब्लागवाणी चालू है के नहीं मै तो ये सोच रहा था के जैसे सांडों के झगडे में खेत का ही नाश होता है ये हाल हमारा हो गया,

अविनाश जी ने कल एक पोस्ट में कहा था की ब्लोगवाणी फिर चालू होगी, उनकी इस बात में एक आत्मविश्वास की झलक थी, जिसने हमें संबल दिया,आखिर में दशहरा में एक विजय हुई, ब्लाग वाणी के चाहने वाले जीते,

साथियों हमारे गावं में तो इंटर नेट का कनेक्शन भी बड़ी मुश्किल से चलता है, सुदूर ग्रामीण अंचल में बैठे लोगो को अपनी बात प्रकाशित करने की सुविधा मिल रही है तथा वो पाठकों तक पहुच रही है,

हमारे लिए ये ही बड़ी बात है, आप अब ब्लोगवाणी के चाहे कैसे भी नियम कायदे बनाये हमें सिर्फ इतना ही है की हमारी पोस्ट ब्लोगवाणी पर प्रकाशित कर दे,

ब्लोगवाणी चालू होने की सूचना मुझे फोन पर राजतन्त्र वाले राजकुमार ग्वालानी जी ने दी, नहीं तो मुझे पता ही नहीं चलता,

झंझावातों का मुकाबला करके ही कोई भी मजबूत बनता है, ब्लॉग वाणी भी अब मजबूत होकर अपना  काम से लगेगी,

आप लोगो को फिर से मेरी बधाई  जो आपने एक महत्वपूर्ण काम किया,आपके साथ जुड़े सभी लोगो को मेरी शुभकामनायें,

भाई हम तो वो है, जो कबीर दास जी ने कहा था, "कबीरा खडा बाजार में सबकी मांगे खैर-ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर" हमारी तरफ से सबकी जय है, लेख 

सोमवार, 28 सितंबर 2009

बस्तर के प्रसिद्द दशहरे की कुछ चित्रावलियां

मित्रों कल से आपको बस्तर के प्रसिद्द दशहरे की कुछ चित्रावलियां दिखाना चाहता था लेंकिन कुछ तकनिकी समस्या आने के कारण विलंब हो गया,अब सब ठीक हो गया है,इसलिए विलंब से ही सही लेकिन आपके साथ आज ही इसे बांटना चाहता था,तो आप इस दशहरा यात्रा का आनंद लीजिये,इस यात्रा प्राम्भ हम बस्तरराज की कुलदेवी माँ दन्तेश्वरी के दर्शन से कर रहे हैं,इसके साथ ही इस दशहरे के विषय में नीचे कुछ संक्षिप्तजानकारियां भी दी जा रही हैं,आप उसका भी आनंद ले तथा अपनी प्रतिक्रियाओं से टिप्पणी द्वारा मुझे अवगत करावे,


बस्तर दशहरा
की जानकारी चित्रों के साथ थोड़े विस्तार से आप तक पहुचाने की कोशिश है,
१.पाटा जात्रा 
बस्तर के आदिवासी अंचल में लकडियों को पवित्र माना जाता  है, आदिवासी संस्कृति में लकडी का एक विशिष्ट स्थान है,दशहरा के रथ के निर्माण के लिए गोल लकडी (पेड़ के तने) का उपयोग किया जाता है,७५ दिनों तक  मनाये जाने वाले दशहरा त्यौहार का प्रारम्भ "पाटा जात्रा" का अर्थात लकडी पूजा से होता है,इसका लकडी के एक बड़े तने को महल के मंदिर के सिंह द्वार पर लाकर हरेली अमावश्या(जुलाई के मध्य में) पूजा जाता है,जिसे पता यात्रा कहते है,
डेरी गढ़ई


भादो माह के शुक्ल पक्ष के १२ दिन एक लकडी के स्तम्भ को "सीरसार" अर्थात जगदलपुर के टाऊन हाल जो कि दशहरा मनाये जाने के केंद्र स्थल है वहां स्थापित किया जाता है,
कंचन गादी
दशहरा उत्सव की वास्तविक शुरुआत में एक मिरगन कुल की एक कन्या पर देवी के रूप में पूजा की जाती है तथा उसे देवी के सिंघासन पर बैठाकर कर झुलाया जाता है,

कलश  स्थापना 
नवरात्रि के प्रथम दिवस में पवित्र कलश की स्थापना की जाती है
जोगी  बिठाई
इस परमपरा के अंतरगत सिरासर चौक में एक व्यक्ति के बैठने लायक एक गड्ढा खोद कर एक युवा जोगी (पुरोहित) को बैठाया जाता है जो नौ दिन नौ रात तक वहां पर बैठ कर इस समारोह की सफलता के लिए प्रार्थना करता है, उपरोक्त पूजा कार्य क्रम का प्राम्भ मांगुर प्रजाति की मछली की बलि से किया जाता है,
रथ परिक्रमा 
जोगी बिठाई के दुसरे दिन ही रथ परिक्रमा प्रारंभ होती है,पूर्व में १२ चक्के का एक रथ बनाया जाता था, लेकिन वर्त्तमान में दो रथ क्रमश: ४-एवं ८ चक्के के बनाये जाते है, पूलों से सजे ४ चक्के के रथ को "फूल रथ" कहा जाता है, जिसे दुसरे दिन से लेकर सातवें दिन तक हाथों से खिंच कर चलाया जाता है,पूर्व में राजा फूलों की पगड़ी पहन कर इस रथ पर विराजमान होते थे ,वर्तमान में कुलदेवी दन्तेश्वरी का छत्र रथ पर विराजित होता है,  
निशा  जात्रा- 
इसमें रात्रि कालीन उत्सव में प्रकाश युक्त जुलुस इतवारी बाजार से पूजा मंडप तक निकला जाता है,

जोगी  उठाई 
नव रात्रि के नवमे दिन शाम को गड्ढे में बैठाये गए जोगी को परम्परागत पूजन विधि के साथ भेंट देकर धार्मिक उत्साह के साथ उठाया जाता है,
मोली  परघाव- 
महाष्टमी की रात्रि में मौली माता का दन्तेवाडा के दन्तेश्वरी मंदिर से दशहरा उत्सव हेतु विशिष्ट रूप से  आगमन होता है, चन्दन लेपित एवं पुष्प से सज्जित नविन वस्त्र के रूप में आकर जगदलपुर के महल द्वार में स्थित दन्तेश्वरी मंदिर में विराजित होती है, 
भीतर  रैनी-
विजयादशमी वाले दिन से ८ चक्के का रथ चलने को तैयार होता है, इस रथ पर पहले राजा विराजते थे अब माँ दन्तेश्वरी का छत्र विराजता है,तथा ये रथ पूर्व में चले हुए फूल रथ के मार्ग पर ही चलता है,जब यह रथ सीरासार चौक पर पहुचता है तो इसे मुरिया जनजाति के व्यक्ति द्वारा चुरा कर २ किलोमीटर दूर कुम्भदकोट नामक स्थान पर ले जाया जाता है,

बाहर  रैनी  
११ वें दिन कुम्भ्दकोट का राजा नयी फसल के चावल का भोग देवी को चढाकर सबको प्रसाद वितरित करते हैं, और रथ को समारोह पूर्वक मुख्य मार्ग से खींच कर महल के सिंह द्वार तक पुन: लाया जाता है,
कचन  जात्रा- 
समारोह के १२ दिन देवी कंचन को समारोह के सफलता पूर्वक सम्पन्न होने के उपलक्ष्य में कृतज्ञता ज्ञापित की जाती है,
मुरिया  दरबार  
उसी दिन सीरासार चौक पर मुरिया समुदाय के मुखिया, जनप्रतिनिधि एवं प्रशासक एकत्रित होकर जन कल्याण के विषयों पर चर्चा करते है,
देवी माँ की बिदाई - 
समारोह के १३ दिन मौली माता को शहर के पश्चिमी छोर पर स्थित मौली शिविर में समारोह पूर्वक विदाई दी जाती है, इस अवसर पर अन्य ग्राम एवं स्थान देवताओं को भी परम्परगत रूप से बिदाई दी जाती है, इस प्रकार यह संपूर्ण समारोह सम्पन्न होता है,


(फोटो -डी.डी.सोनी से साभार)

ब्लॉगवाणी चालू होने का इंतज़ार

जब अभी मैंने विजयादशमी की पोस्ट लगायी तो फिर ब्लॉगवाणी  का बटन ढूंढा वो नज़र नहीं आया, उसकी जगह www.blogvani.com लिखा हुआ था उसपर क्लिक किया तो वहां पर अलविदा कहा जा रहा था,ये बिदाई क्यों और अचानक कैसे मेरी तो समझ में नही आया,मैंने सोचा की मेल चेक करूँ के किसी की मेल आई हुयी होगी,देखा तो अविनाश जी की मेल थी नुक्कड़ दुखी हुआ,नुक्कड़ के दुखी होणे का कारण नुक्कड़ पे ही पता चला के ब्लॉगवाणी बंद हो गया,मैंने तो अविनाश जी ही बिनती की के आप ही चालू करवाओ, कह के सुन के,लेकिन ये ब्लॉगवाणी वालों ने गलत ही किया, कल शाम को चिटठा जगत में मेरी एक लोहार की पोस्ट ही नहीं छपी,"ताऊ मनफूल सिंग की"फिर मेने ब्लॉगवाणी पे डाला ओर छप गई ऐसा मेरे साथ कई बार हो चूका है,के चिटठा जगत पे नहीं छपती ओर ब्लॉगवाणी पे छप जाती है,तो मै तो यु संतुष्ट था चलो छपी तो है कैसे भी पोस्ट पाठकों तक पहुच तो गई, 
तो भाई ब्लॉगवाणी वालो इसे चालू करने का विचार करो और इसे फिर से चालू करो आपका इंतजार हो रहा है,

विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं



विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं 
बुराई  पर  अच्छाई   की जीत हो 
सभी प्राणियों में परस्पर प्रीत हो
सभी को सम्मान देने की रीत हो 
सरगम  में   एक  सुहाना गीत हो

पुन:विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं

शनिवार, 26 सितंबर 2009

प्रभु जी मन में अमन कर दो, इस जीवन में लगन भर दो

प्रभु जी मन में अमन कर दो 
इस जीवन  में  लगन  भर  दो

राह   ऐसी   दिखाओ  प्रभु,  दुखियों  की  सेवा  हो
निर्बल को बल मिल जाये तेरे  प्रेम  की  मेवा  हो 
हम रहें समीप तुम्हारे,तुम  पास  गगन  कर  दो 


प्रभु जी मन में अमन कर दो 
इस जीवन  में  लगन  भर  दो

निर्धन  को  धन मिल जाये, योगी को बन मिल जाये
इस धरती का कर्ज उतारें,हमें ऐसा जनम मिल जाये
जल   जाएँ   सभी   दुर्गुण,  सांसों  में  अगन  भर  दो 


प्रभु जी मन में अमन कर दो 
इस जीवन  में  लगन  भर  दो

प्रेम हिरदय में भर जाये,तुम सबका जीवन हरसाओ
बाधाएं दूर हो  सबकी, तुम  अपनी  करुणा   बरसाओ
जीवन  हो  सरल  सबका, काँटों   को  सुमन   कर  दो

प्रभु जी मन में अमन कर दो 
इस जीवन  में  लगन  भर  दो

आपका 
शिल्पकार
(फोटो गूगल से साभार)



शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

भजन



फूलों  से  हो लो  तुम,जीवन   में  सुंगध   भर  लो
महकाओ तन-मन सारा भावों को विमल कर लो
फूलों से हो लो तुम ........................................

वो मालिक सबका हैं ,जिस माली का है ये चमन
वो  रहता  सबमे  है  तुम ,कर लो उसी का मनन
हो जाये सुवासित जीवन ऐसा तो जतन कर लो
फूलों से हो लो तुम.......................................

शुभ कर्मों की पौध लगाओ जीवन के उपवन में
देखो प्रभु को सबमे वो रहता हैं कण-कण में
बन जाओ प्रभु के प्यारे ऐसा तो करम कर लो
फूलों से हो लो तुम......................................

मै कौन? कहाँ से आया ? कर लो इसका चिंतन
जग में रह कर के, उस दाता से लगा लो लगन
रह  कर के  कीचड़  में  खुद को कमल कर लो
फूलों से हो लो तुम.......................................

वो   दाता   सबका  है,  दुरजन   हो   या   सूजन
वो  पिता   सबका  है,  धनवान   हो  या निरधन
ललित उसमे लगा करके जीवन को सफल कर लो
फूलों से हो लो तुम ........................................


आपका 
ललित शर्मा 


(फोटो गूगल से साभार)

बालको प्लांट दुर्घटना के दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए,

दैनिक नवभारत रायपुर के अनुसार बालको सयंत्र दुर्घटना मेंअभी भी १०० लोगों के मलबे में दबे होने की आशंका बताई गई हैं,जबकि मृतकों की संख्या ४५ तक पहुच गयी हैं.  

३६ मजदूर शिविर से लापता भी भी बताये जा रहे हैं,बालको प्लांट विस्तार परियोजना में इन्हें अधिकांशत: झारखंड एवं बिहार से लाकर रखा गया था.

इस चिमनी का निर्माण में एक मजदूर की मौत पहले ही हो चुकी हैं,

जब चिमनी ५० मीटर थी उसी समय एक मजदूर का बलिदान हो गया था,जब यह २२५ मीटर पहुची तो अनेक मजदूरों की मौत हो गयी, 

चिमनी ढह जाने के बाद गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाये जा रहे हैं,जब कोई बड़ा निर्माण होता हैं वहां पर क्वालिटी कंट्रोल विभाग का रहना भी  जरुरी बताया जाता हैं,लेकिन अब इसकी भूमिका भी संग्दिग्ध हो गयी हैं,

अब इतने बड़े हादसे का जिम्मेदार कौन हैं, किसकी लापरवाही थी? किसने अपने कर्त्तव्य के निर्वहन में लापरवाही बरती ये तो जाँच के बाद ही पता चलेगा, 

बालको पावर प्लांट में निर्माण का कार्य चीनी कम्पनी सेपको कर रही हैं. मुख्य मंत्री ने ४८ घंटों के अन्दर मलबा हटाने का आदेश दिया हैं,

दोषियों को नहीं बख्सा जायेगा.मलबा उठाने में देर होने से जिनके बचने की आस थी वो भी ख़तम हो रही हैं,लेकिन दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी ही चाहिए.

गुरुवार, 24 सितंबर 2009

भारी भरकम चिमनी ढह गई

बहुचर्चित बालको सयंत्र में निर्माणाधीन चिमनी के ढह जाने की खबर सुनकर आज सुबह सुबह ही कलेजा हिल गया। 
इस दुर्घटना में १५० लोगों के मलबे में दबे होने की खबर हैं तथा २४ मजदूरों के शव निकाले जाने की खबर हैं,

जिसमे से ९ मजदूरों के मारे जाने की पुष्टि कोरबा कलेक्टर अशोक अग्रवाल ने की है। यह हादसा घोर लापरवाही का नतीजा है। 

लोगों का कहना है कि निर्माण कम्पनी द्वारा घटिया स्तर की निर्माण सामग्री से निर्माण कराया जा रहा था। क्योंकि निर्माण में जिन लोहे की छडों एवं सामग्री का उपयोंग किया गया हैं वो मलबे में स्पस्ट दिख रहा है।

 चिमनी निर्माण में वहां के मजदूरों ने गुणवत्ता की भी शिकायत की ,३२ एम्.एम्.की जगह १६ एम् एम् की छडों का उपयोंग किया गया जिससे भारी भरकम चिमनी ढह गई, 

२७० मीटर ऊँची चिमनी केंटिन और आफिस के ऊपर गिरी हैं जहाँ और लोगों के दबे होने की आशंका है। 

आगे नवभारत कहता हैं की "घटना में जो चिमनी जमींदोज हुई उसका निर्माण बिना प्रशासनिक स्वीकृति के कराया जा रहा था। 

बताया जाता है कि इस चिमनी के निर्माण के लिए नगरीय प्रशासन विभाग से अनुमति लेनी होती है। किन्तु कम्पनी ने बिना अनुमति के निर्माण कार्य शुरू करा दिया,

प्रश्न यहाँ पर उठता हैं की इसकी जिम्मेदारी किसकी हैं,ये छत्तीसगढ़ के उद्योग इतिहास का सबसे बड़ा हादसा हैं, प्रशासन के अधिकारीयों ने निर्माण के दौरान निर्माण सामग्री की जाँच क्यों नही की? 

जब बिना अनुमति निर्माण कार्य हो रहा था तो उसे रुकवाया क्यों नही, 

क्या वे स्वयं किसी गंभीर हादसे का इंतजार कर रहे थे? जिन मजदूरों को इस प्रशासनिक लापरवाही के कारण प्राण गवाने पड़े हैं, उनके बच्चो के पालन पोषण की जिम्मेदारी कौन लेगा? 

यहाँ बहुत सारे प्रश्न अनुतरित हैं,जिनका जवाब प्रशासन को देना हैं.
 

बुधवार, 23 सितंबर 2009

काव्य मुक्तक

देख  कुछ गुलाब लाया हूँ  तेरे लिए 
तोहफे  बेहिसाब लाया  हूँ  तेरे लिए
चश्मेबद्दूर नज़र ना लगे  तुझे कभी
इसलिए नकाब भी लाया हूँ तेरे लिए

अभी तो आई अभी ही चली गई 
जिन्दगी कैसे  छलती  चली गई
घूँघट उठाया जैसे ही दुल्हन  का
बड़ी बेवफा थी बिजली चली  गई



मेरे शहर में कई इज्ज़त वाले  रहते हैं
लेकिन वो  इज्ज़त  देते  नहीं हैं ,लेते हैं
दो रोटियों का खुशनुमा अहसास देकर 
गरीब  तन  के  कपडे  भी  उतार लेते हैं   

शाम  से  सोचता   रहा  माज़रा  क्या है
चाँद है अगर तो  निकलता क्यूँ नहीं  है 
कब तक रहेगा यूँ ही इंतजार का आलम 
क्या नया चाँद कारखाने में ढलता नहीं है

तपती धूप में छाँव को तरसती है जिंदगी
भागते शहर में गांव को तरसती है जिन्दगी 
शहर जला था जब से दंगे की आग में लोगों 
बूढे बरगद की छावं को तरसती है जिंदगी

मंगलवार, 22 सितंबर 2009

सुहाग की रक्षा के लिए भालू के ऊपर कूद गई।

रायगढ़ के पास पुछिया पाली के निवासी श्यामलाल केंवट एवं उसकी पत्नी सावित्री बाई कल अपने खेत में निंदाई करने के लिए गये थे,

खेत के अन्दर मादा भालू  और उसके बच्चे बिचर रहे थे, धान कि फसल बड़ी होने  के कारण इस दम्पत्ति को ये भालू और उसके बच्चे दिखे नहीं।

खेत में हलचल होने पर मादा भालू ने शावक पर खतरे की आशंका से बाहर निकल कर धान नींद रहे श्यामलाल पर हमला कर दिया और उसे दबोच लिया, उसकी छाती पर चढ़ गया।

जब श्यामलाल कि पत्नी सावित्री ने देखा कि भालू उसके पति कि जान लेने पर उतारू है तो वह भी अपने सुहाग की रक्षा के लिए भालू के ऊपर कूद गई।

इस तरह दोनों पति पत्नी और भालू के बीच घमासान हुआ। परन्तु ताकतवर भालू ने दोनों को पछाड़ दिया। दोनों के चेहरों और हाथों को अपने नाखूनों से नोच खाया। इस बीच दोनों पति पत्नी बेहोश हो गए।

भालू उन्हें मरा समझ कर छोड़कर चला गया। जब किसी गांव वाले ने उन्हें देखा तो उनको अस्पताल पहुँचाया।

यह एक स्त्री के अदम्य साहस की मिशाल है, जो अपने पति कि जान बचाने के लए अपने प्राणों कि परवाह किए बिना निहत्थे ही मौत से लड़ गई, इनके साहस को सलाम है।

मेंहदी लगाने से पहले सौ बार सोचना पडेगा

आज सुबह दैनिक नवभारत के प्रथम पेज पर हेडिंग है "मेहंदी से बेहोश हुई १६ महिलाएं" नकली मेंहदी से दहशत, 

यह समाचार अम्बिकापुर से है। नकली और विषाक्त रसायन युक्त मेंहदी लगाने से रामानुजगंज  के मितगाई ग्राम में एक पुरुष सहित १६ महिलाएं बेहोश हो गई।

इस घटना से समूचे सरगुजा में हड़कंप का माहौल बना हुआ है। प्रभावित सभी लोगों को को रामानुजगंज के अस्पताल में भरती कराया गया है। 

जहाँ उनकी स्थिति खतरे से बाहर बताई जा रही है। पुलिस ने दुकानों से मेंहदी के पैकेट जप्त कर लिए है। 

हुआ यूँ की रामानुजगंज के मितगई ग्राम में ईद की खुशियाँ मनाने के लिए मुस्लिम समाज की महिलाओं एवं युवतियों ने हाथ में मेहँदी रचाई, जिसके कुछ ही देर बाद हाथ सुन्न हो गए और बर्फ जैसे ठंडे होकर सूजने लग गए, फिर अचानक बेहोशी छाने लगी, कुछ तो मेहँदी रचाने के एक घंटे बाद ही अचेत होने लगी। 

स्थानीय चिकित्सा अधिकारी डॉ. अजय तिर्की ने मेंहदी के प्रयोग से अचेत होने की पुष्टि करते हुए बताया कि मेंहदी से ही रिएक्शन हुआ है। 

महिलाओं को मेहंदी लगाने से पहले अब सौ बार सोचना पड़ेगा। मंहदी हमारे त्योहारों का मुख्य आकर्षण है, जब भी कोई त्यौहार हो विशेषकर महिलाएं मेहदी अवश्य लगाती है।

खाने -पीने एवं दैनिक उपयोंग में आने वाली वस्तुओं में इस कदर मिलावट होने लगी है कि आदमी क्या खाए क्या लगाए ये भी सोंचना पड़ेगा। इनकी जाँच करने वाला अमला कहाँ सोया हैं, पता नहीं?

रविवार, 20 सितंबर 2009

पेंट्रीकार: चलता फिरता बीमारी का घर


पैसेंजर्स सर्विसेस कमेटी के अध्यक्ष डेरेक ओब्रायन ने आज कहा कि रेलवे स्टेशन का खाना थर्ड क्लास है। ये भारत के स्टेशनों का दौरा कर रहे हैं तथा इसकी रिपोर्ट रेल मंत्री को की जायेगी।  

ये बात इन्होंने बिलासपुर में एक पत्रकार वार्ता में कही। रेल की पेंट्रीकार एक चलता फिरता बीमारी का घर हैं, जो पुरे भारत में बीमारी बाँटते फिर रही है। 

कुछ अन्य बीमारी नहीं तो पीलिया और टी.बी. जरुर बाँट जायेगी। स्टेशनों पर भी जो खाना मिलता हैं वो खाने के लायक हैं ही नही। 

ट्रेन में पेंट्री वाले तय कीमत से ज्यादा में खाना और अन्य सामान यात्रियों को बेच रहे हैं, जो कि सीधी-सीधी लुट है। शिकायत करो तो कहते हैं कि रेल मंत्री को भी बोल दो कुछ नही होने वाला। 

पेंट्रीकार के किचन में कितनी गंदगी होती हैं?अगर कोई जा कर देखेगा तो उसका खाना खाने की हिम्मत ही नही करेगा। 

अभी कुछ दिन पहले एक न्यूज चेनल दिखा रहा था कि हापुड स्टेशन में पोस्टर कलर का दूध बना कर चाय बेची जा रही है। 
८ रूपये में २० लीटर दूध बनता है। जो पीने पर एक बार में ही किडनी फेल कर देगा, पर रेलवे के अधिकारियों को अपनी ऊपर की कमाई से मतलब है, यात्रियों की सेहत से कोई लेना देना नहीं, 

यात्री को मजबूरी में यहाँ का खाना लेना ही पड़ता है। मरता क्या न करता, रेल सुविधाओं कि तरफ रेलमंत्री को विशेष ध्यान देना चाहिए और जवाबदेही तय करनी चाहिए। 

पैसेंजर्स सर्विसेस कमेटी के अध्यक्ष डेरेक ओब्रायन घटिया खाने कि बात स्वयं स्वीकार कर रहे हैं। रेल के खान-पान विभाग में भी माफिया का बोल बाला है, कई तो ऐसे-ऐसे वेंडर हैं जो बरसों से जमे है। 

किसी नए आदमी को इस सिस्टम में घुसने ही नही देते। इनकी रेल अधिकारियों से इतनी सेटिंग हैं कि चाहे सरकार बदल जाए, रेल मंत्री बदल जाए, मगर इनकी ठेकेदारी नहीं बदलती। 

जो अधिकारी इन पर सिकंजा कसता है वह अधिकारी जरुर बदल जाता है। पता नही रेल के खान-पान व्यवस्था के दिन कब बहुरेंगे।

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

चौरसिया की कविता


जिसने आंतरिक सौन्दर्य निखारा
उसको नमन किया जग सारा

अपने भीतर का खजाना जो खोज पाया हैं
जगत में वही असली धनवान कहलाया हैं,

परम सौभाग्यशालियों में अपना नाम लिखायें
मानवता के रास्ते पर चल कर तो दिखलायें
अच्छाई कहीं से भी मिले उसका लाभ उठाना चाहिए
प्रियजनों की भी बुराई कदापि नहीं अपनाना चाहिए

अपने लोगों को सही बात समझाना हैं बड़ा कठिन काम
इतिहास पढ़ कर देख लो अच्छे अच्छे हुए इसमें नाकाम

रचनाकार
रामसजीवन चौरसिया

शशि थरूर के घटिया राजनीतिक बोल

परसों से शशि थरूर की शान में कसीदे पढ़े जा रहे हैं,मेरे नजर में लगातार पोस्ट आ रही हैं, कल से अख़बारों की सूर्खियों में बड़ा हंगामा बरपा हुआ हैं। 

कल शाम की बात हैं, हमारे दूध वाले ने पान ठेले पर किन्ही सज्जनों की इस विषय पर गरमा-गर्म बहस सुनी होगी अभी अलसुबह जब दूध लेकर आया तो उसने पूछा "क्या हो गया भइया कल पान ठेले पर जोर दार चर्चा चल रही थी कि गरीब आदमी लोग भेड़ बकरी हैं और ये बताओ इकोनामी क्लास क्या होता है? 

अरे भाई ये इकोनोमी क्लास हवाई जहाज में होता हैं, जैसे अपने यहाँ ट्रेन में लोकल और एक्सप्रेस, समझे, इतना सुन कर वो चला गया।

नेताओं में भी एक प्रजाति पाई जाती हैं जो हमेशा लाइम लाइट में रहना पसंद करती है। कुछ भी अनाप-सनाप बोलो और सूर्खियों में बने रहो। जिसके पास ५ हजार होगा वो ही इकोनोमी क्लास में यात्रा कर सकता है।

भारत, गांव का देश है, यहाँ सिर्फ उद्योग पति, सरकारी अधिकारी, जीवन में एक बार प्लेन में बैठने की इच्छा रखने वाले, नेता या उनके चमचे ही यात्रा करते हैं, क्योंकि इतना ही पैसा उनके पास होता है। 

लेकिन एक गरीब- मजदूर जो अपनी रोजी- की चिंता में लगा रहता है, उसे  सोचने का समय ही नहीं मिलता है कि इकोनोमी क्लास क्या होता है। 

शशि थरूर शायद हेनरी फोर्ड के पोते-पड़पोते जैसी हैसियत रखते होने के कारण इकोनोमी क्लास उनको भेड़-बकरियों की क्लास लगी।  

शशि थरूर जैसे आसमानी लोगों के लिए आसमानी विचार हैं जो सड़क पर चलने से वास्ता नही रखते, जिस दिन जमीन पर आयेंगे तो इन्ही भेड़ बकरियों को अपना रिश्तेदार बना लेंगे, क्योंकि फिर वोट चाहिए, बिना रिश्तेदारी, सम्बन्ध के तो वोट मिलना मुस्किल हैं, हाँ इतना अवश्य हैं ये अपनी दल के लिए मुसीबत जरुर खड़ी करते रहेंगे। 

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

विश्वकर्मा पूजा विशेष

विश्वकर्मा
निर्माण के देवता शिल्पचार्य विश्वकर्मा भगवान की पूजा का दिन है, आज का दिन समस्त सृजनशील हाथों को समर्पित हैं। 

अर्थपरक संस्कृति के जनक, अर्थवेद के मंत्र दृष्टा भगवान विश्वकर्मा की पूजा सभी निर्माण से संबधित व्यवसायों में की जाती है तथा उनके प्रति कृतज्ञता प्रगट की जाती है कि उन्होंने हमारे हाथ में जो हुनर दिया है उससे हम निरंतर जीविकोपार्जन कर सकें।

प्राचीन काल ज्ञान-विज्ञान की दृष्टि से कितना समृध्द था इसका अनुमान तब के सुविकसित यन्त्र उपकरणों एवं वास्तु शास्त्र से सम्बंधित निर्माणों से लगाया जा सकता हैं, जिनकी आज हम सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं। 

यथार्थ रचना तथा विज्ञान को समझने में शायद सदियाँ लग जाएँ। वैदिक काल में उच्च कोटि के यंत्रों का निर्माण हुआ था,जिसकी तकनीक को लेकर आज भी विश्व अचम्भित हैं। 

ग्रहों की चाल जानने के लिए वेधचक्र और तुरीय यन्त्र (दूरबीन) था, इसी तरह उनके पास कम्पास भी था, कणाद मुनि लिखते हैं"मणिगमनं सूच्यभिसर्पनमदृष्टकरणम्" चुम्बक की सूई की ओर लोहे का दौड़ने का कारण अदृष्ट हैं। 

शिल्प संहिता में थर्मामीटर ओर बैरोमीटर बनाने की विधि लिखी हैं। वहां लिखा है कि पारा, सूत, तेल और जल के योग से यह यन्त्र बनता था, इस यन्त्र से ग्रीष्म आदि ऋतुओं का निर्णय होता था। इसी तरह वैदिक काल में बालुका घडी, धुप घडी का भी निर्माण कर लिया गया था।

आज कल जिसको इंडस्ट्रीज कहते हैं, वैदिक काल में उसी को शिल्पशास्त्र अथवा कलाज्ञान कहते थे। इसी को 
जानने वाले विश्वकर्मा या शिल्पी उपाधि से अलंकृत किये जाते थे।

इन्होंने विविध यंत्रों का निर्माण किया, हम उन यंत्रों का वर्णन करते हैं जो सवारी, मनोरंजन, तथा युद्ध के काम आते थे। 

भोज प्रबंध में लिखा है कि राजा भोज के पास एक ऐसा काठ का घोड़ा था जो एक घडी में ११ कोस जाता था और एक पंखा था जो बिना किसी मनुष्य की सहायता से अपने आप चलता था और खूब हवा देता था।  

इसी तरह धम्मपाद के विशाखावत्थु में पृष्ठ १९५ में लिखा है कि विशाखा के लिए "महालता" नाम का एक आभूषण बनवाया गया, ये सर से पैर तक था, चार महीनो में ५०० सुतारों ने इसे बनाया, इसकी कीमत उस समय के सिक्कों के हिस्साब से ९ करोड़ थी। 

इस आभूषण में एक मोर लगा था जो विशाखा के मस्तक पर नाचा करता था। 

इसी तरह महाभारत के आदिपर्व में उतूंग घोडे का वर्णन है वह भी यन्त्र के सहारे चलता था। शाहबाजगढ़ी (पेशावर) में एक पत्थर पे रेल का भी इशारा है।

विमान नामक यन्त्र तो इस देश में वैदिक काल से ही प्रचलित रहा है। वेद में विमान बनाने की विधि बताते हुए लिखा है कि "जो आकाश में पक्षियों के उड़ने कि स्थिति को जानता है, वह समुद्र, आकाश की नाव विमान को जानता है। इसीलिए विमान का अर्थ "पक्षी के सदृश्य होता है।

इन विमानों से सम्बन्ध रखने वाली एक पुस्तक है "अंशुबोधिनी" यह भारद्वाज ऋषि की बनाई हुई है। इस पुस्तक में अनेक विधाओं का वर्णन है। 

प्रत्येक विधा के लिए एक अधिकरण रखा गया है। इस अधिकरण में एक विमान अधिकरण भी है इस अधिकरण में आए हुए भारद्वाज ऋषि के "शक्त्युद्ग्मोद्यष्टो" सूत्र पर बोधयान ऋषि कि वृत्ति इस प्रकार है-

इन विमानों की आठ प्रकार की आकाश संचारी गति के विभाग इस प्रकार है,

१.शक्त्युदगम - बिजली से चलने वाला

२.भूत्वाह - अग्नि,जल व वायु से चलने वाला

३.धूमयान - वाष्प से चलने वाला

४.शिखोद्ग्म - पंचशिखी के तेल से चलने वाला

५.अन्शुवाह - सूर्य कि किरणों से चलने वाला

६.तारामुख - उल्कारस(चुम्बक) से चलने वाला

७.मणिवाह - सूर्यकांत,चन्द्रकान्ता आदि मणियों से चलने वाला

८.मरुत्सखा - केवल वायु से चलने वाला

इस प्रकार से विमान बनाने के और भी अन्य प्रमाण मिलते हैं, इसमें पुष्पक विमान का भी वर्णन मिलता है।

विश्वकर्मा के वंशजों ने नित नए आविष्कार किए तथा आज के मानव को सभ्य बनाने में एवं सभ्यता को विकसित करने में इनकामहत्वपूर्ण योगदान है।

मैं कर्मशील भाइयों को विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर प्रणाम करता हूँ।


उद्धरण=वैदिक संपत्ति (पं.रघुनन्दन शर्मा) से साभार

बुधवार, 16 सितंबर 2009

खेल-खेल में खेल


खेल-खेल में खेल संघ में एक नेता फ़िर अध्यक्ष चुने गए, मैं गंवईहा कई वर्षों से सोचता रहा हूँ कि इन खेल सघों में नेता ही क्यों काबिज होते?

जिस भी खेल संघ की बात करें उस पर किसी ना किसी राजनैतिक दल का व्यक्ति प्रमुख पद पर बैठा है। चाहे रास्ट्रीय स्तर से लेकर हम गांव के स्तर तक हो, सभी खेल संघों का यही हाल है। भाई- भतीजावाद हर जगह कायम है।

२५ साल पहले की बात बताता हूँ, मैं व्हालीबाल का खिलाड़ी रहा हूँ, राज्य स्तर तक मैंने बहुत खेला है। जिला स्तर पर जब टीम का चुनाव हो रहा था तो हम गांव से अपनी प्रतिभा दिखा कर टीम में शामिल होने गए थे। हमारा चुनाव कर लिया गया.

जब हम खेलने गए तो पता चला एक प्रभावशाली व्यक्ति के लड़के को भी टीम में शामिल कर लिया, जिसे खेलना ही नही आता। मैंने टीम मनेजर से इसके बारे में पूछा तो उसने कहा कि यार कौन सा इसको खेलना है, आया है तो एक सम्मिलित होने का प्रमाण पत्र मिल जायगा और क्या है। ये बातें आपको २५ बरस पुरानी बता रहा हूँ, आज भी यही हो रहा है।

हम जानते हैं कि तीरंदाजी आदिवासियों का एक महत्वपूर्ण एवं परम्परागत कला-कौशल है, वे इसमें माहिर हैं क्योंकि इससे उनका जीविको पार्जन एवं भरण-पोषण जुड़ा हुआ है।

एक सज्जन मुझे मिले बड़ी जल्दी में थे, मैंने उनको कहा बड़ी जल्दी में हो यार क्या बात है, वो बोले यार कल तीरंदाजी का राज्य स्तरीय आयोजन है, मैं उसका अध्यक्ष हूँ कार्यक्रम की तैयारी करवानी है, बड़ी जिम्मेदारी है।

मैंने वहां सोचा जिसके बाप दादे ने कभी तीर का मुँह नही देखा वो आज तीरंदाजी संघ का मुख्य पदाधिकारी है।

जब इस तरह से लोग खेलों में अपनी दखलंदाजी करते रहेंगे खेल और खिलाड़ियों का शोषण होते रहेगा। ऐसी स्थिति में पदक की आस लगना बेमानी है।

ग्रामस्तर के खिलाड़ी बड़ी कठिनाई से जिला स्तर पर खेल लिए, ये बहुत बड़ी बात है, कई प्रतिभाऐं तो गांव की अँधेरी गलियों से बाहर आ ही नहीं पाती। उनका कौशल वहीँ दफ़न हो जाता हैं। मेरे मायने में खेल संघों पर खिलाडियों को ही महत्वपूर्ण पदों पर बैठना चाहिए तभी वो किसी भी खेल के विकास में अपना योगदान दे सकते हैं।

छत्तीसगढ़ी में एक कहावत है ……
जेखर काम उही ला साजे
नई साजे तो ठेंगा बाजे

तात्पर्य यह है किसी भी काम में जो सिद्धहस्त है, वही उसे करना चाहिए अन्यथा काम बिगड़ जाता है।

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

हिन्दी भाषा हमारा गौरव

हम सब ने हिन्दी दिवस मनाया, बड़ी गरमा-गरम बहस हिन्दी के प्रसार प्रसार के लिए चली. कल हिन्दी ब्लॉगों में लगभग सभी ने हिन्दी राग अलापा, एक दिन हिन्दी के पक्ष में नारा लगा के कर्तव्य की इति श्री कर ली. बहती गंगा में हाथ धो लिए

हिन्दी के लिए शहीद होने वालो की सूची में अपना नाम लिखा लिया. कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने सबको चर्चा करते देख "लोग क्या कहेंगे मेरे बारे में" सोचकर चार लाइन लिख दी. उनमे मैं भी शामिल हूँ. 

मै नया-नया इस ब्लॉगरी मायावी जाल से जुड़ा हूँ. यहाँ के क्या रस्मो रिवाज हैं. कौन वरिष्ठ है, कौन गरिष्ठ है, कौन उत्तिष्ठ है, कौन वशिष्ठ है, मुझे नही मालूम, लेकिन अपनी बात कहने का अधिकार सबको है. क्या एक दिन हिन्दी-हिन्दी कह कर चिल्लाने से हिन्दी का प्रचार हो जाएगा? 

भाई हम तो सुबह से हिन्दी में चालू होते हैं, तो सोने के बाभी हिन्दी ही चलती रहती है.सपने में भी वार्तालाप हिन्दी में ही होता है. किसी को गालियाँ देनी होती है तभी अंग्रेजी बोलते है। :)

मैं विगत कई वर्षों से दक्षिण भारत की यात्रा कर रहा हूँ, लेकिन मुझे सबसे ज्यादा परेशानी पुद्दुचेरी और तमिलनाडू में होती है.  

लगता है मै किसी ऐसे टापू पर गया हूँ जहाँ कोई मेरी भाषा भी समझने वाला नही है ,कोई मुझे सुनने को तैयार नही, मैं जरुर उनके मुंह की तरफ़ देखता था कि ये क्या बोल रहे हैं? समझने की कोशिश करता था. 

आज़ादी के ६३ बरसों के बाद भी जो हिन्दी सुनने समझने को तैयार नहीं है. उनको हिन्दी के लिए कैसे मनाया जाएगा? 

ये चिंतन विषय है. हम उनसे अपनी भाषा छोड़ने नही कहते हैं पर सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी अनिवार्य होनी चाहिए

पुद्दुचेरी में एक बार मुझे शिल्पकारों के कार्यक्रम की अध्यक्षता करने जाना थाअपने एक मित्र जो तीन पीढियों से हिन्दी भाषी क्षेत्र में रह रहे हैं उनको अपने खर्चे पर साथ लेकर गया कि मुझे अनुवाद करके वहां के लोगों की बात समझायेंगे, लेकिन वहां की तमिल से उनकी भी हवा निकल गई, मेरा प्रयास निरर्थक रहा. 

उनको साथ ले जाने का भी मुझे लाभ नही मिल पाया, केरल, कर्नाटक में अधिक परेशानी नही है. वहां पर लोग हिन्दी समझते हैं और बोलते भी हैं

हिन्दी एक अविरल प्रवाहित महानदी मन्दाकिनी है जो सदियों से जनमानस को सिंचित करती आई है, प्राणवायु के रूप में हमारे शरीरों में साक्षात् समाहित है


इसलिए हमें प्रत्येक साँस को ही हिन्दी दिवस समझना चाहिए