सोमवार, 29 अगस्त 2011

अभी तो यह अंगडाई है, आगे और लडाई है............. ललित शर्मा

किसी को ना हो सका इसके कद का अंदाजा
आसमान है यह सर झुकाए बैठा है.........

रात को बादल गरज रहे थे, बिजलियाँ चमक रही थी. बादलों की गड़गड़ाहट कुछ अधिक शोर कर रही थी, जैसे बादलों में युद्ध हो रहा हो अपनी-अपनी सत्ता स्थापित करने के लिए. बादलों के बीच नहीं, लेकिन संसद में अवश्य जन विश्वास कायम रखने की लडाई चल रही थी. भारत का नया इतिहास लिखा जा रहा था. एक फक्कड़ फकीर के ललकार से कानून बनाने पर सहमति हो रही थी. मुसलाधार बरसात होने लगी. तभी समाचार मिला कि फकीर की बात मान ली गई. सत्य कभी पराजित नहीं होता यह एक बार फिर सिद्ध हो गया. सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, का उपदेश भारतीय दर्शन ने दिया है और यह प्रत्येक काल में कसौटी पर खरा उतरा है. अगर इतिहास के पन्ने पलटे जाएँ तो दृष्टिगोचर होता है कि किसी भी क्रांति का नेतृत्व जमीन से जुड़े आदमी ने ही किया है और उसे सफल बनाया है. सत्य हलाकान परेशान होता है पर पराजित नहीं होता. असत्य कभी विजयी नहीं होता. दमन की उमर कम होती है. एक दिन उसे आत्म समर्पण करना ही पड़ता है. अन्ना के नेतृत्व में देश का आत्मबल परीक्षा में खरा उतरा. दूसरी आजादी की लडाई में एक कदम आगे बढे हैं. 16 अगस्त से प्रारंभ हुयी लडाई अभी ख़त्म नहीं हुयी है. अभी इसे आगे भी चलना है. जब तक देश का प्रत्येक नागरिक अपने अधिकारों के प्रति सजग ना हो जाये, तब तक आजादी की दूसरी लडाई जारी रहेगी.

आजादी के बाद से लेकर आज तक हम अपने वोट से सरकार चुनते आये हैं. अपनी बात कहने के लिए प्रतिनिधि विधानसभा एवं लोकसभा में भेजते हैं. प्रतिनिधि चयनित होते ही ये व्यवहार बदलकर जनता के सेवक से जनता के मालिक बन जाते हैं. आम आदमी इसे ही अपनी नियति समझ कर  अपने भाग्य को कोसता रहता है. राजनैतिक पार्टियाँ चुनाव के समय ऐसे उम्मीदवारों की तलाश करती हैं जो धन से मजबूत हो. चुनाव में अधिक से अधिक धन खर्च कर सके. वोट खरीदने के बाद जन-धन को लूटना इनका अधिकार बन जाता है. साम-दाम-दंड-भेद सब लगा दिए जाते हैं चुनाव जीतने के लिए. व्यवस्था भी इन्होने अपने हिसाब से बदल ली, अगर किसी मतदाता के पास 10,000 रूपये नहीं है तो वह प्रत्याशी नहीं बन सकता. कुल मिलाकर धनवानों का ही पक्ष मजबूत है. भ्रष्ट्राचार इतना अधिक बढ़ गया कि आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है. आम जन अगले ५ बरस का चुनाव का इंतजार करता है, जिससे वह प्रतिनिधि एवं सरकार बदल सके. अब देश में बदलाव की बयार आ गई, जनता अपने अधिकारों के प्रति अन्ना के सार्थक प्रयास से जागरूक हो रही है.

सेवक जब मालिक का व्यवहार करने लगे, आम मुख्तियार ही मालिक बन जाये तब असली मालिक को जागना ही पड़ता है. बाड़ ही खेत खाने लगी. ऊँचे स्तर पर हो रहे भ्रष्ट्राचार की खबर आम आदमी तक नहीं पहुचती. पर निचले स्तर पर छोटे-छोटे कार्यों के लिए पैसे देना उसे नागवार गुजरता है. आज जनता के दबाव ने दिल्ली को भ्रष्ट्राचार के खिलाफ कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया. सभी जानते हैं कि एक बिल पास कर संस्था के गठन से भ्रष्ट्राचार समाप्त नहीं हो जायेगा. इसके लिए नागरिकों को भी अपने कर्तव्यों ध्यान रखना पड़ेगा. संकल्प लेना पड़ेगा कि स्वयं भ्रष्ट्राचार को बढ़ावा नहीं देंगे, न किसी से रिश्वत लेंगे न किसी को रिश्वत देंगे.भ्रष्ट्राचरण के विरुद्ध सतत आन्दोलन जारी रखना पड़ेगा. तभी भ्रष्ट्राचार रूपी दानव से पार पाया जा सकता है. भ्रष्ट्राचार से अमीरी और गरीबी के बीच गहरी खाई का निर्माण हो चूका है. अमीर और अमीर होता जा रहा है और गरीब और भी गरीब.  एक तरफ अन्न गोदामों में सड़ रहा है, दूसरी तरफ गरीब दाने - दाने को मोहताज है. उड़ीसा के कोरापुट में गरीबी से त्रस्त होकर एक आदमी ने २० हजार में अपने बच्चे को बेच दिया. इस युग में भी ऐसे समाचार सामने आते हैं तो पीड़ा होती है.

अन्ना के आन्दोलन में सरकार ने रोड़े तो खूब अटकाए पर जन समर्थन साथ होने के कारण मुंह की खानी पड़ी. आन्दोलन के दौरान अन्ना को भगोड़ा तथा भ्रष्ट्राचारी तक कहा गया. लेकिन कहने वालों ने अपने गिरेबान में झांक कर नहीं देखा, जब देखा तो उसे अपने पर शर्म आई और माफ़ी मांगने लगा. हमने भी देखा बुद्ध के समक्ष अन्गुलिकमाल का ह्रदय परिवर्तन कैसे होता है. अन्ना को धराशायी करने के लिए उसके फ़ौज तक के रिकार्ड निकाल लिए. कहीं कोई कमजोरी तो मिले, जिसकी ढाल बना कर अन्ना का अनशन तुडवाया जा सके. इनका बस चलता तो चलता तो चित्रगुप्त से अन्ना के पूर्व जन्म के भी रिकार्ड मंगवा लेते. वाह अन्ना! आपने इनके लिए कुछ भी नहीं छोड़ा. जीवन की पवित्रता, सुचिता और पारदर्शिता काम आ गई. संसार में चरित्रवान ही सबसे उंचा स्थान ग्रहण करता है. कहा गया है कि निर्धन, धनवान से डरता है, मुरख, विद्वान से डरता है, निर्बल बलवान से डरता है, लेकिन धनवान, विद्वान्, बलवान ये तीनो चरित्रवान से डरते हैं. अन्ना ने इसे सिद्ध करके दिखा दिया. निष्कलंक जीवन जी कर विश्व के समक्ष एक आदर्श कायम कर दिया.

मंहगाई की चक्की में पिसता आम भारतीय कभी सोच भी नहीं सकता था कि कोई ऐसा नेतृत्त्व भी उसके लिए आएगा जो गरीबी-गरीबों एवं मंध्यम वर्ग के लिए सर्वाधिकार प्राप्त सत्ता से टकरा जायेगा. सत्ता भी सोच बैठी थी कि बाबा का हश्र देख कर तो कोई दूसरा दिल्ली को आँख दिखाने की हिम्मत कर बैठेगा. दिल्ली ने भी अन्ना के साथ बाबा जैसा ही व्यवहार किया. यहीं गलती हो गई. कहते हैं ना..... जात भी दी और जगात भी दी. जन आक्रोश के सामने कुछ नहीं टिकता. जेल से भी सादर छोड़ना पड़ा और रामलीला मैदान भी देना पड़ा. सत्ता पोषित कुछ लोग आग उगलते रहे. कुछ जयचंदों ने भी आन्दोलन में सेंध लगाने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. देश के कोने-कोने से भ्रष्ट्राचार और मंहगाई के विरोध में उठे जनज्वार ने अपनी उपस्थिती मजबूती से दर्ज कर दी. इन्हें औकात दिखा दी. संसद में बिल पर बहस करनी पड़ी, अन्ना की तीन मांगों पर सहमती जतानी पड़ी. यह भारत के गणतंत्र के स्वर्णिम दिन था.


नक्कार खाने में तूती की आवाज कौन सुनता है? यह कहावत सदियों से कही जाती है, लेकिन अब वक्त आ गया, तूती की आवाज भी बुलंद हो चुकी है और उसे सुनना ही पड़ेगा. ये वही सांसद और विधायक हैं जो अपने वेतन बढ़ाने के प्रस्ताव पर बहस नहीं करते और उसे सर्व सहमती पारित कर दिया जाता है. लेकिन जब आम आदमी के अधिकारों के से जुड़े प्रस्ताव आते हैं तो उन्हें या तो पेश नहीं किया जाता या उसके मुद्दे पर संसद में कई फाड़ दिखाई देने लगते हैं. आम जन से जुड़े हुए कई प्रस्ताव संसद में धूल खा रहे हैं. जिसमे महिला आरक्षण जैसा महत्वपूर्ण प्रस्ताव भी है. जन लोकपाल पास करने पर दबाव बनते ही संसद में बैठे कई नेताओं को अभी से अपने जेल जाने डर सताने लगा है.  देश की जनता जाग चुकी है, वह दिन भी शीघ्र आएगा जब भ्रष्ट्राचारियों को जेल में बाकी जीवन बिताना पड़ेगा. जनता अपने खून-पसीने की कमाई की पाई-पाई का हिसाब लेगी. अपने चुने हुए जन प्रतिनिधि को वापस बुलाने का अधिकार जिस दिन जनता को प्राप्त हो जायेगा उस दिन आम आदमी को इनके दरबार में हाजिरी नहीं लगानी पड़ेगी, ये स्वयं चलकर उसके पास आयेंगे. 

अन्ना के आन्दोलन का सकारात्मक पक्ष यह रहा कि इस आन्दोलन ने समस्त भारत को पुन: एक सूत्र में बाँध दिया. जे.पी. आन्दोलन के पश्चात् जन लोकपाल बिल के समर्थन में एक ऐसा आन्दोलन हुआ कि देश की जनता सड़कों पर आ गई. जिसमे बच्चे-बूढे-जवान, सभी धर्म, पंथों, एवं आधी आबादी महिलाon  ने भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाई. एक दो छोटी-मोटी घटनाओं को छोड़ कर कहीं से भी हिंसा का समाचार नहीं मिला. जबकि कुछ लोगों ने उत्पात करने की भरपूर कोशिश की. यह हमारी सामाजिक समरसता और लोकतंत्र की जीत है, आम आदमी की जीत है. विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की जीत है. बाहर खड़े किसी आदमी ने आवाज लगायी और उसकी आवाज संसद के भीतर सुनी गयी. ये जनता की जीत है. इस आन्दोलन पर समूचे विश्व की निगाहें लगी हुयी थी. उन्हें भी इस सफल अहिंसात्मक आन्दोलन से सीख मिली कि भूखा रह कर बिना हथियार उठाये अपनी मांगे मनवाई जा सकती है. अब देश के नागरिकों को अपने अधिकारों के लिए सतत जागना पड़ेगा. तभी हमारे कामयाब लोकतंत्र का लोहा समूचा विश्व मानेगा. अभी तो यह अंगडाई है, आगे और लडाई है.   


शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

अन्ना तुम संघर्ष करो...हम तुम्हारे साथ हैं.----------- ललित शर्मा


रात को लिखने की तैयारी कर रहा था, तभी कम्प्यूटर अनशन पर चला गया. सोचा कि सुबह उठ कर मनाया जायेगा. सरकार तो अन्ना को नहीं मना सकी. हो सके तो मै कम्प्यूटर को मना लूँ. सुबह कम्प्यूटर को मनाने के लिए धुप दीप की तैयारी कर रहा था तभी बाल सखा रामजी  आ गए. "कहीं जाये के तैयारी हे का महाराज?"....."हा हो रे भाई....  कम्प्यूटर नई मानत हे गा, शहर के हवा खवाए ला परही". - मैंने जवाब दिया. उसने बताया कि आज नगर में अन्ना के समर्थन में रैली निकाली जा रही है. मुझे भी उसमे अपनी उपस्थिती दिखानी है. मैंने शहर जाने का कार्यक्रम स्थगित कर दिया. कंप्यूटर तो अपना साथी है. एक दिन बाद मना लेंगे. अगर नगर के ईमानदार लोग रूठ गए तो भ्रष्ट लोगों में ही ताजिंदगी बैठना पड़ेगा. उसने बताया कि स्कुल के बच्चे भी रैली में शामिल होंगे. 

भीड़ बढ़ाने के लिए स्कुल के बच्चों  से अच्छा उपाय कुछ नहीं है.अगर कोई नेता आता है तो स्कुल के बच्चों के हाथों में झंडियाँ देकर खड़े कर दो. भीड़ दिख जाएगी और नेता जी भी खुश हो जायेंगे. कोई रैली निकाले तो स्कुल के बच्चों को ले आओ. अपने गाँव-नगर के बच्चे हैं उन्हें इतना तो बलिदान करना ही पड़ेगा गाँव-नगर की इज्जत बचाने के लिए. अन्यथा कहा जाता है.-" देश धर्म के काम ना आये, वह बेकार जवानी है". रैली निकल पड़ी, गाँव के कुछ बुद्धिजीवी किस्म के ईमानदार माने जाने वाले लोगों के साथ कुछ युवा भी थे. जोश से नारा लगा रहे थे -" देश की जनता त्रस्त है, जो अन्ना का साथ न दे वह भ्रष्ट है."  अब कौन भ्रष्ट कहलाना चाहेगा. लोग रैली में साथ-साथ हो लिए. स्वस्फूर्त रैली निकली, कुछ लोग कह रहे थे. इस बार बिना बुलाये काफी लोग रैली में आ गए.हमने भी साथ-साथ नगर भ्रमण कर लोगों को जगाया और बहती गंगा में हाथ धो लिया. अगर कम्प्यूटर को मनाने चला जाता तो अन्ना समर्थन गंगा यूँ ही बह जाती और मैं ठगा सा रहा जाता. 

रामजी ने बहुत बड़ा अहसान मेरे पर किया. इस अहसान को मेरी कई पुश्ते नहीं भूलेंगी. क्योंकि आज़ादी की दूसरी लडाई चल रही है, काले अंग्रेजों को देश से बाहर भगाना है. मेहतरू जी का कहना था कि इन्हें देश से बाहर भगाने में  प्रत्येक नागरिक का योगदान होना चाहिए. वह भी अपनी पान की दुकान में बेटे को बैठा कर आया था. देश से भ्रष्ट्राचार मिटाना है तो यह त्याग जरुरी हो जाता है. रैली में चलते हुए सोच रहा था कि जब अंग्रेजों को भगाया होगा तो ऐसे  ही रैली निकाली जाती होगी. लोगों के नाम दर्ज किये जाते होंगे. कौन-कौन और कितने लोग रैली एवं प्रदर्शन में थे? तभी तो आज़ादी के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की पहचान हुयी होगी और पेंशन बनी होगी. मेरे दादा-परदादा रैली प्रदर्शन में जरुर रहे होंगे, लेकिन नाम दर्ज कराने की जहमत नहीं उठाई होगी. अन्यथा वे भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होते. हां पिताजी ने फ़ौज की सेवा में रहते हुए कई मेडल प्राप्त किये. अगर वे भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होते तो दो-तीन पेंशन अम्मा को जरुर मिलती. इसलिए मैंने आज रैली में हाजिरी दर्ज कराने की ठान ली. अगर कहीं नाम नहीं लिखाया तो द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पेंशन से वंचित रह जाऊंगा.

कई आन्दोलनकारियों ने अन्ना टोपी लगा रखी थी. मेरे जैसे कई लोगों के पास टोपी नहीं थी. कहने लगे बिना टोपी के समर्थन नहीं माना जायेगा. अब टोपी कहाँ से लायी जाये? पता चला कि टोपी गाँव में ही मिल रही है. एक दुकान में दुप्प्ली टोपी २० रुपये की मिल रही थी, दूसरी दुकान में १५ रूपये की. रामजी दुकानदार पर भड़क गए, कहने लगे तुम दिन दहाड़े ५ रूपये का भ्रष्ट्राचार कर रहे हो. मैंने उन्हें समझाया कि - यही तो व्यापार है, व्यापारी अगर मौके का फायदा उठा कर अधिक मुनाफा नहीं कमाएगा तो चंदा कहाँ से देगा? किसी भी आन्दोलन को चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है और धन सिर्फ व्यापारी ही दे सकता है. रामजी ने टोपी खरीद ली और शान से धारण कर ली. टोपी ने रैली में रौनक बढा दी. एक बात तो माननी पड़ेगी, अन्ना ने गाँधी टोपी का खोया हुआ सम्मान वापस दिला दिया. गाँव में भी टोपियाँ बिकने लगी. नौजवानों को नया फैशन मिल गया. "सर पर टोपी हाथ में मोबाईल ओ तेरे क्या कहने". रैली पुरे शबाब पर थी. नारों से आसमान गूंज रहा था. नगर भ्रमण कर रैली बस स्टैंड पहुच गई.

बस स्टैंड में माइक लाउड स्पीकर की देश भक्ति के गीत बज  रहे थे. होश सँभालने के बाद मैंने पहली बार १५ अगस्त और २६ जनवरी को छोड़ कर किसी और दिन देश भक्ति के गाने बजते देखे. वातावरण देश भक्तिमय हो गया. कुछ नेता कुर्सियों पर विराजमान थे. भाषण बाजी का दौर शुरू हुआ. नगर पंचायत अध्यक्ष के भाषण से सभा की शुरुवात हुयी. उन्होंने अपना समर्थन अन्ना को दिया और कहा कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह आजादी की दूसरी लडाई में सम्मिलित हो. व्यापारी अपनी दुकानों में धंधा करते हुए भाषण सुन रहे थे. गुरूजी बोले-"हमारे गाँव में तो परसों सारे लोग कार्यक्रम में शामिल हुए थे. आपके गाँव में ऐसा नहीं दिख रहा है". मैंने कहा कि - "इनका अन्ना को नैतिक समर्थन है. दुकान से उनका समर्थन अन्ना को मिल रहा है. वे धंधा करते हुए गायत्री मन्त्र का जाप कर रहे हैं, जिससे दिल्ली में अनशन पर बैठे अन्ना को मन्त्र की शक्तियों से बल मिल रहा है. मंत्र शक्ति के प्रताप से ही अन्ना १० दिनों से बिना आहार ग्रहण किये अनशन पर हैं". तभी माइक से पीत वस्त्रधारी सज्जन ने एलान किया - "जो धरना स्थल पर नहीं पहुच पाए है, उन भाइयों एवं बहनों से निवेदन है कि अपने स्थान से ही गायत्री मन्त्र का जाप करें. मंत्र शक्ति से आपका समर्थन अन्ना तक पहुँच जायेगा."

तभी दो देश भक्त नागरिकों का धरना स्थल पर आगमन हुआ. उन्होंने हिलते-डुलते अपने चप्पल निकाले और दरी पर स्थान ग्रहण किया. भाषण के बीचे में हाथ इस तरह हिलाते थे जैसे मुजरा सुन रहे हों. एक ने भाषण देने वाले की तरफ इशारा करके कहा-" जोर से बोलो, कम सुनाई दे रहा है. वन्दे मातरम्, जय भारत". दुसरा दांत निपोर रहा था. तभी उसके तहमद से दारू की बोतल निकल कर गिर गई. उसने हाथ जोड़ कर बोतल उठाई और फिर तहमद में खोंस ली. "जय भारत माता की. अन्ना तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं". दोनों अनशन की पूरी तैयारी से आये थे. पहले वाला उठा और उसने तिरंगे झंडे को नमन कर चल पड़ा भट्ठी की ओर, दूसरा भी उसके पीछे पीछे निकल लिया. इसके बाद हमारा भी भाषण हुआ, कुछ पत्रकार भी धरना स्थल की नाप-जोख कर रहे थे. अब हमारा नाम भी पक्के में दर्ज हो जायेगा, सुबह के अख़बारों में नाम छपने से. हाजरी रजिस्टर भी आ चूका था. दुसरे नंबर पर हमने अपना नाम लिख कर हस्ताक्षर किया इस ताकीद के साथ कि इसकी एक प्रति हमें भी उपलब्ध करायी जाये, पेंशन के लिए राजनीति हुयी तो प्रमाण पेश कर सकेंगे. अन्ना को समर्थन देकर चल पड़े घर की ओर.........  अन्ना तुम संघर्ष करो...हम तुम्हारे साथ हैं.
    

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

बेटी की किलकारी -- श्रुति का जन्म दिन-----ललित शर्मा


कल मेरी पुत्री श्रुतिप्रिया का जन्म दिन था. तीन साल पहले मैं बचपन के मित्र कंवर लाल के गाँव गया. जोधपुर से डेचू और डेचू से चलकर बाप तहसील में कुशलावा उसका गाँव है. मेरे अचानक पहुचने पर वह बहुत खुश हुआ. उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि मैं उसके गाँव तक पहुच सकता हूँ. बस उसे तो यही लगी रही कि कहाँ बैठों और क्या खिलाऊं. मैं उसे मना करता रहा और वह मनुहार करता रहा. बरसों के बाद दोनों मिले थे.खूब बातें हुयी,  थोड़ी देर बाद वह उठा और एक अख़बार का फटा हुआ पन्ना लेकर आया, जिसे उसने जतन से संभाल रखा था. उसमे एक कविता थी. जिसे मुझे पढ़ कर सुनाया. मैंने उसे वह कविता लिख कर देने को कहा. उसने मुझे कविता लिख दी. 


कल पुराने पैड के भीतर से वह पन्ना गिरा. कंवरिया की यादों ने मुझे घेर लिया. तुरंत उसे फोन लगाया और बात की. उसने पूछा कि आज कैसे याद आई? मैंने नहीं बताया. हाल-चाल और खैरियत लेकर फोन काट दिया. श्रुति के जन्मदिन पर वह कविता प्रस्तुत है. इसके रचयिता का नाम मुझे पता नहीं. किसी को पता हो तो  अवश्य बताएं. उनका नाम एवं लिंक दिया जायेगा..... 

कन्या भ्रूण अगर मारोगे, माँ दुर्गा का श्राप लगेगा.

बेटी की किलकारी के बिन, आँगन-आँगन नहीं रहेगा 

जिस घर बेटी जन्म न लेती, वह घर सभ्य नहीं होता 
बेटी के आरतिए के बिन, पावन यज्ञ नहीं होता है.
यज्ञ   बिना बादल रुठेंगे, सूखेगी वर्षा की रिमझिम
बेटी की पायल के स्वर बिन, सावन-सावन नहीं रहेगा 
आँगन-आँगन नहीं रहेगा, आँगन-आँगन नहीं रहेगा 

जिस घर बेटी जन्म न लेती, उस घर कलियाँ झर जाती हैं.
खुशबु निर्वासित हो जाती ,गोपी गीत नहीं गाती हैं.
गीत बिना बंशी चुप होगी, कान्हा नाच नहीं पायेगा.
बिन राधा के रस न होगा, मधुबन मधुबन नहीं रहेगा
आँगन आँगन नहीं रहेगा, आँगन आँगन  नहीं रहेगा 

जिस घर बेटी जन्म न लेती, उस घर घड़े रीत जाते हैं
अन्नपूर्ण अन्न न देती, दुरभिक्षों के दिन आते हैं
बिन बेटी के भोर अलूणी,थका थका दिन साँझ बिहूणी
बेटी बिना न रोटी होगी, प्राशन प्राशन नहीं रहेगा    
आँगन आँगन नहीं रहेगा, आँगन आँगन  नहीं रहेगा 

जिस घर बेटी जन्म न लेती, उसको लक्ष्मी कभी न वरती
भव सागर के भंवर जाल में, उसकी नौका कभी न  तरती
बेटी के आशीषों में ही, बैकुंठों का बासा होता
बेटी के बिन किसी भाल का, चन्दन चन्दन नही रहेगा
आँगन आँगन नहीं रहेगा, आँगन आँगन  नहीं रहेगा 

जिस घर बेटी जन्म न लेती, राखी का त्यौहार न होगा
बिना रक्षा बंधन भैया का, ममतामय संसार न होगा
भाषा का पहला सवार बेटी, शब्द शब्द में आखर बेटी 
बिन बेटी के जगत न होगा, सर्जन सर्जन नहीं रहेगा 
आँगन आँगन नहीं रहेगा, आँगन आँगन  नहीं रहेगा 

जिस घर बेटी जन्म न लेती, उसका निष्फल हर आयोजन
सब रिश्ते नीरस हो जाते, अर्थहीन सारे संबोधन 
मिलना-जुलना आना-जाना, यह समाज का ताना बाना
बिन बेटी कैसे अभिवादन, वंदन वंदन नहीं रहेगा
आँगन आँगन नहीं रहेगा, आँगन आँगन  नहीं रहेगा 

NH-30 सड़क गंगा की सैर

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

लोक देवता गुगापीर ---- ललित शर्मा

गुगादेव, गोगापीर, जहरपीर
बात 1987 के अगस्त माह की है, उन दिनों रायपुर से दिल्ली के बीच सीधी ट्रेन 36गढ एक्सप्रेस ही चलती थी। दिल्ली से इसका रायपुर वापसी का समय भोर में ही था। इसलिए देर रात तक प्लेटफ़ार्म में पहुंच कर ट्रेन का इंतजार करना ही पड़ता था। सो मैं भी ट्रेन का इंतजार कर रहा था। उस दिन स्टेशन में बहुत भीड़ थी। पीत वस्त्रधारियों का रेलम-पेल था। स्टेशन में तिल धरने की भी जगह नहीं। जो भी ट्रेन आती थी ये उसमें बाल-बच्चों समेत घुस जाते थे। पटरियों पर शौचादि से भी भीड़ को परहेज नहीं था। कुल मिलाकर भीड़ की अराजकता वैसे ही चारों ओर दिखाई दे रही थी,  जैसे किसी मेले-ठेले के समय होती है। मुझे भी जिज्ञासा हुई कि ये सब एक ही गणवेश में कहाँ जा रहे हैं? पुछने पर पता चला कि भीड़ गुगा के मेले में गुगामैड़ी जा रही है। अब गुगामैड़ी भूगोल में कहाँ पर है और ऐसा क्या विशेष है वहाँ जो लोग ट्रेन की छतों पर भी सवार हो कर जा रहे हैं। कई सवाल दिमाग में चल रहे थे। तब मैने राजस्थान का अधिक सफ़र नहीं किया था, नही अधिक जानकारी रखता था। लेकिन गुगापीर के विषय में सुना था।

आज गुगानवमी है, आज के ही दिन गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक था। लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को साँपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहिर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। इन्हे हिन्दु गुगादेव, गुगापीर के नाम से मानते हैं और उत्तर प्रदेश में जाहर पीर और मुसलमान गोगापीर कहते हैं। दोनो धर्मों के लोग इनको समान रुप से मानते हैं।

गोगादेव के जन्मस्थान ददरेवा, जो राजस्थान के चुरू जिले की राजगढ़ तहसील में स्थित है। यहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। नाथ परम्परा के साधुओं के ‍लिए यह स्थान बहुत महत्व रखता है। दूसरी ओर कायमखानी मुस्लिम समाज के लोग उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्‍था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है।मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए। लोक देवता जाहर पीर गोगाजी की जन्मस्थली ददरेवा में भादवा मास के दौरान लगने वाले मेले के दृष्टिगत पंचमी (सोमवार) को श्रद्धालुओं की संख्या में प्रतिवर्ष वृद्धि होती है। मेले में राजस्थान के अलावा पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, हिमाचाल व गुजरात सहित विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु पहुंचते हैं एवं अपनी मन्नत मानते हैं।

कहते हैं कि गोगाजी की माँ बाछल देवी निःसंतान थी। संतान प्राप्ति के सभी यत्न करने के बाद भी संतान सुख नहीं मिला। गुरू गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या कर रहे थे। बाछल देवी उनकी शरण मे गईं तथा गुरू गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया और एक गुगल नामक फल प्रसाद के रूप में दिया। प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई और तदुपरांत गोगाजी का जन्म हुआ। गुगल फल के नाम से इनका नाम गोगाजी पड़ा। गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा बने। गोगामेडी में गोगाजी का मंदिर एक ऊंचे टीले पर मस्जिदनुमा बना हुआ है, इसकी मीनारें मुस्लिम स्थापत्य कला का बोध कराती हैं। कहा जाता है कि फिरोजशाह तुगलक सिंध प्रदेश को विजयी करने जाते समय गोगामेडी में ठहरे थे। रात के समय बादशाह तुगलक व उसकी सेना ने एक चमत्कारी दृश्य देखा कि मशालें लिए घोड़ों पर सेना आ रही है। तुगलक की सेना में हाहाकार मच गया। तुगलक की सेना के साथ आए धार्मिक विद्वानों ने बताया कि यहां कोई महान सिद्ध है जो प्रकट होना चाहता है। फिरोज तुगलक ने लड़ाई के बाद आते समय गोगामेडी में मस्जिदनुमा मंदिर का निर्माण करवाया।

गोगादेव का विवाह कोलुमण्ड की राजकुमारी केलमदे के साथ होना तय हुआ था किन्तु विवाह होने से पहले ही केलमदे को एक सांप ने डस लिया. इससे गोगाजी कुपित हो गए और मन्त्र पढ़ने लगे. मन्त्र की शक्ति से नाग तेल की कढाई में आकर मरने लगे. तब नागों के राजा ने आकर गोगाजी से माफ़ी मांगी तथा केलमदे का जहर चूस लिया. इस पर गोगाजी शांत हो गए। जब गजनी ने सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था तब पश्चिमी राजस्थान में गोगा ने ही गजनी का रास्ता रोका था. घमासान युद्ध हुआ. गोगा ने अपने सभी पुत्रों, भतीजों, भांजों व अनेक रिश्तेदारों सहित जन्म भूमि और धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया। 

गोगापीर की समाधि पर हिन्दु एवं मुस्लिम पुजारी
जिस स्थान पर उनका शरीर गिरा था उसे गोगामेडी कहते हैं. हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगामेड़ी स्थित गोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है, जो साम्प्रदायिक सद्भाव का अनूठा प्रतीक है, जहाँ एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी खड़े रहते हैं। श्रावण शुक्ल पूर्णिमा से लेकर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तक गोगा मेड़ी के मेले में वीर गोगाजी की समाधि तथा गोरखटीला स्थित गुरु गोरक्षनाथ के धूने पर शीश भक्तजन शीश नवाते हैं।कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन नवमी को गुगापीर का जन्मदिन मनाया जाता है। लोक देवता के रुप में स्थापित गुगापीर की पुजा की जाती है। पूजा स्थान की दीवार पर मांडना बनाया जाता है फ़िर उसी को धूप दीप दिखाकर खीर-लापसी का भोग लगाया जाता है। वैसे इस पर्व की हरिजनों (चूहड़ा समाज) में अधिक मान्यता है, पर सभी जातियाँ गुगापीर को मानती है और इनके जन्मदिवस को लोकपर्व के रुप में मनाती हैं। 

NH-30 सड़क गंगा की सैर -- जाटलैंड से साभार

सोमवार, 22 अगस्त 2011

पनघट मैं जाऊं कैसे? -- जन्माष्टमी विशेष -- ललित शर्मा

सभी मित्रों को जन्माष्टमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।


पनघट मैं जाऊं कैसे, छेड़े मोहे कान्हा।
पानी      नहीं    है,    जरुरी   है   लाना।।

बहुत   हुआ  मुश्किल, घरों  से  निकलना।
पानी  भरी  गगरी को,सर पे रख के चलना।
फोडे  ना   गगरी,   बचाना    ओ    बचाना॥

पनघट मैं जाऊं कैसे,छेड़े मोहे कान्हा ।
पानी      नहीं    है,    जरुरी    है   लाना॥

गगरी    तो   फोडी   कलाई   भी  ना  छोड़ी।
खूब   जोर  से  खींची  और  कसके  मरोड़ी।
छोडो  जी  कलाई,  यूँ सताना  ना   सताना॥

पनघट मैं जाऊं कैसे,छेड़े मोहे कान्हा ।
पानी      नहीं     है,   जरुरी   है   लाना॥

मुंह    नहीं    खोले,  बोले    उसके    नयना।
ऐसी   मधुर   छवि  है, खोये  मन का चयना।
कान्हा   तू   मुरली    बजाना   ओ   बजाना॥

पनघट मैं जाऊं कैसे,छेड़े मोहे कान्हा ।
पानी      नहीं    है,   जरुरी   है   लाना॥


NH-30 सड़क गंगा की सैर

शनिवार, 20 अगस्त 2011

मै भी अन्ना, तू भी अन्ना, सारा देश है अन्ना --- ललित शर्मा

राजीव तनेजा से साभार
बाबा पिट गए, अन्ना लिपट गए, भीड़ पीछे चल पड़ी, साथ-साथ हम भी चल पड़े हैं टोपी लगाकर। नहीं जाएगें तो लोग समझेगें कि हम भ्रष्ट्राचार का समर्थन कर रहे हैं, इसलिए "जैसी बहे बयार,पुनि पीठ तैसी कीजै"। राम लीला मैदान में ऐतिहासिक लीला जारी है। लोग अपनी उपस्थिति देने पहुच रहे हैं..गाँव-गाँव तक मीडिया ने अन्ना की आवाज पहुंचा दी और भ्रष्ट्राचार से त्रस्त आम जनता सड़कों पर आ गयी। मीडिया ने मुद्दा लपक लिया, अन्ना के बहाने टी आर पी लेने के लिए। भ्रष्ट्राचार से त्रस्त लोगों का एक जन सैलाब उमड़ा, बरसाती नदी की तरह, जनता की भावनाएं उठान पर हैं,सरकार ने अनशन की अनुमति दे दी। हम भी घर बैठे समर्थन दे रहे हैं एक दिनी उपवास रख कर। वैसे भी हमारे समर्थन की कोई कीमत नहीं. कीमत उनके समर्थन की है जो नामी गिरामी हैं, जो हमेशा लाईम लाईट में रहना जानते हैं। मीडिया, ब्लॉग, फेसबुक पर बस यही मुद्दा छा रहा है. भ्रष्ट्राचार का खत्म करने के आन्दोलन का आगाज हो चुका है। अब जनमानस में सिर्फ एक यही बात है कि क्या लोकपाल बिल के पास होने से भ्रष्ट्राचार ख़त्म हो जायेगा?

आज अन्ना के इर्द-गिर्द एनजीओ के लोग दिखाई दे रहे हैं। एनजीओ के काम को देश की जनता जानती है। विदेशों से प्राप्त सहायता से लेकर सरकार के विभिन्न मंत्रालयों की योजनाओं से धन प्राप्त कर अपना एनजीओ चला रहे हैं। फ़टा पुराना कुरता पहने अंग्रजी बोल कर गरीबों को बड़े-बड़े सपने दिखाने वाले ये लोग गरीबी मिटाने की बात कर अपनी अमीरी बढाते हैं और हवाई जहाज से कम यात्रा नहीं करते। क्या इन्होने कभी भ्रष्ट्राचार नहीं किया? सभी जानते हैं कि एक प्रोजेक्ट पास कराने के लिए कितनी राशि की बंदरबांट करनी पड़ती है तब कहीं जाकर कोई काम मिलता है। जब कोई भ्रष्ट्राचार में लिप्त व्यक्ति ईमानदारी का परचम उठाए तो उसे जानने वाले प्रत्येक व्यक्ति को नीयत पर संदेह होता जाता है। अनजाने में ही अन्ना इनकी ढाल बने हुए हैं।

इस आन्दोलन से एक बात तो साफ़ हो जाती है कि देश की जनता भ्रष्ट्राचार से आजिज आ चुकी है। भ्रष्ट्राचार सभी हदें पार कर चुका है। ऐसा नहीं है कि सभी लोग भ्रष्ट हैं, कुछ अपना कार्य ईमानदारी से करना चाहते हैं पर वर्तमान हालात यह हैं कि यदि कोई ईमानदारी से काम करना चाहता है तो उसे प्रताड़ित कर किनारे लगा दिया जाता है। उसकी हत्या कर दी जाती है। भ्रष्ट्राचार कैंसर की भांति देश की रग रग में समा गया है। यही प्रमुख कारण है कि अन्ना के भ्रष्ट्राचार विरोधी आन्दोलन को जनता का व्यापक समर्थन मिल रहा है और लोग सड़कों पर उतर कर समर्थन दे रहे हैं। अन्ना ही खुद कह रहे हैं कि भ्रष्ट्राचार का 100% निवारण नही तो 65% ही सही, कुछ तो कम होगा। नहीं मामा से काना मामा ठीक है। आज जरुरत है व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन की।

इस समय मुझे श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास रागदरबारी के एक पात्र लंगड़दीन की याद आती  है. जो तहसील के बाबु को २ रुपये नहीं देता है और उसकी अर्जी हर बार ख़ारिज हो जाती है. उपन्यास के अंत तक लंगड़दीन के जमीन के सीमांकन की अर्जी स्वीकृत नहीं हो पाती। सवाल सिर्फ दो रुपये का है. पता नहीं इस व्यवस्था ने कितने ही लोगों को लंगड़दीन बना रखा है. इस तरह के लंगड़दीन तहसील, थाना, कोर्ट कचहरी, में मिलते ही रहते हैं. ये सच है कि बिना सेवा शुल्क दिए कोई भी काम किसी भी दफ्तर में संभव नहीं है. अब तो लोगों की मानसिकता यह बन गयी है कि बिना कहे ही नजराना पेश कर देते हैं. डर है कि अगर नहीं दिए-लिए तो काम नहीं होगा.

घर के मुखिया की फौत के बाद उत्तराधिकारी को नामांतरण करना पड़ता है. जमीन जायदाद उनकी है लेकिन नामातरण के लिए के भेंट पटवारी, बाबु तहसीलदार तक पहचानी ही पड़ेगी. एक मित्र ने मुझे मजाक में ही कहा था " फाइल एक टेबल से दूसरी टेबल तक २० बरस घुमती हैं, उसके साथ अर्जी दाता भी घूमता है फिर फाइल गायब हो जाती  है" यही सच है. अगर फाइल पर वजन न हो तो एक जीवन पूरा लग जाता है दीवानगी में. देर-सबेर नित्य ही लोगों को इससे सामना करना ही पड़ता है. ट्रेन में बर्थ के लिए टी.टी. खुले आम घुस लेता है. शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति बचा हो जिसने इनको बिना कुछ दिए सीट या बर्थ पाई हो. बड़े बड़े तुर्रम खां को भी इनके आगे गिडगिडाना पड़ता है. सारी भ्रष्ट्राचार विरोधी भावना एवं नैतिकता धरी की धरी रह जाती है.

भ्रष्ट्राचार वह उल्टा वृक्ष है, जिसकी जड़ें आसमान में है, और हम जमीन खड़े होकर उसकी डालियों एवं शाखाओं को ही काटने की कोशिश करते है. जिसका परिणाम यह होता है कि वह और भी तेजी से बढती है. इसे ख़त्म करना है तो जड़ में ही मठा डालना पड़ेगा। वक्त आ गया है देश के मतदाता को जागना होगा। अपने मतदान से बिना किसी प्रलोभन के ईमानदार सद्चरित्र व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि चुनें। अगर हम रिश्वत नहीं देगें तो लेना वाला कहाँ से लेगा, काम तो देर सबेर होगा ही। हमें भी प्रण करना चाहिए कि भ्रष्ट्राचरण को बढावा नहीं देगें। किसी पर दोष मढने की बजाए स्वयं को सुधारना आवश्यक है। कहते हैं कि भूत प्राण नहीं लेता पर हलाकान करता है और जब हम भूत के पीछे लठ लेकर पड़ जाते हैं तो वह भाग खड़ा होता है।

पता नहीं कितने लोगों ने आज तक भ्रष्ट्राचार पर लिख कर कलम घिसी होगी. कितने ही लोगों ने भ्रष्ट्राचारियों की शिकायत की होगी. आकंठ तक भ्रष्ट्राचार में डूबे हुए लोगों के कानो पर जूं नहीं रेंगती.नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है? व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, एवं लोकतंत्र का चौथा खम्भा कहा जाने वाला मिडिया भी इससे अछूता नहीं है, नीरा राडिया और बरखा दत्त प्रकरण जग जाहिर है। भ्रष्ट्राचार का बोलबाला और सच्चे का मुंह काला. 

देश के युवाओं के उठ खड़े होने से कु्छ हालात बदलने की आहट सुनाई देती है, किसी ने कहा है कि एक व्यक्ति को कुछ दिनों तक बेवकूफ़ बना सकते हैं, कुछ सौ लोगों को कु्छ हफ़्ते महीनों तक, लेकिन सभी लोगों को हमेशा बेवकूफ़ नहीं बनाया जा सकता। आजादी से लेकर आज तक बेवकूफ़ बनने वाले लोग उठ खड़े हुए हैं इसी आशा में कि कुशासन, सुशासन में बदलेगा। देश को लूटने वाले भ्रष्ट्राचारियों का मुंह काला होगा, उनको सजा मिलेगी। कभी तो नया सबेरा आएगा। मै भी अन्ना, तू भी अन्ना, सारा देश है अन्ना।

गुरुवार, 18 अगस्त 2011

ब्लॉग बाबा जमावड़ा और शास्त्रार्थ ---------- ललित शर्मा

आज हम टहलते हुए गुगल के बिग मॉल पर पहुंचे तो एक पुरानी भूली बिसरी दुकान पर हमारा एक प्रोडक्ट दिखाई दे गया। उन दिनों की याद आ गयी, जब दो बाबाओं में शास्त्रार्थ हुआ था। हम पूरा का पूरा शास्त्रार्थ पुरानी दुकान से उठाकर नयी दुकान पर ट्रांसफ़र कर दिए। नवीन शास्त्रार्थ का पठन लाभ लेकर ज्ञान रंजन कीजिए।
आज पान की दुकान पर  अनिल भाई का ड्यूटी था लेकिन वो नागपुर में चक्का जाम में  फँस गए ,तो क्या  करें? हम पान की दुकान पर बैठ के चुना लगा रहे थे. तभी महेंद्र मिश्रा जी आ गए!
हमने कहा......."पाय लगी मिसिर जी, आज कैसे विलम्ब हो गया? हम तो आपका पान लगा के रख दिये थे"
मिसिर जी बोले.....का बताएं शर्मा जी.......आज हमारे बुलाग मोहल्ले में नए साल पे एक बाबा पधारे हैं.........लंगोटा नन्द महाराज... तो हम उनके आश्रम पे चले गए थे... उन्हां जाके देखे तो .... हमने बाबा जी नया साल का शुभ कामना दिया.... तभी देखा और बुलागर भी आ रहे हैं बाबा जी के पास तब हम तो खिसक लिए............... तभी बिलम्ब हो गया.
हमने कहा......ई तो बढ़िया समाचार बताये मिसिर जी......... जरा हम भी दुकान बढा के ........बाबा लोगन के दरशन-परसन करके आते हैं....! 
तो भैया हम भी दुकान बढ़ाये और पहुँच गये लंगोटा नन्द महा मठ वाणी आश्रम में......... वहां बाबा लंगोटा नन्द महाराज कह रहे थे...................... इसके बाद हम आश्रम से डिरेक्ट सवांद आपको सुना रहे हैं.... आप भी मौज लीजिए......
राज भाटिय़ा .........बाबा जी प्रणाम !! भर पेट खाने के बाद भुख नही लगती ?? कोई जडी बुटी बताये महा राज आप को ओर आप के परिवार को नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ! 
लंगोटा नंदजी महाराज ....बच्चा राज भाटिया, कल्याण हो,चिंता न करो,उपाय बता रहे हैं- काली बिल्ली की पूंछ में लाल कपड़ा बाँध कर हमारी भभूत का लेप उसपर चढ़ा दो, हम भभूत जल्द भेजेंगे, तुम्हारा कल्याण होगा,खाना खाने के बाद जबरदस्त भूख लगेगी!
लंगोटा नंदजी महाराज ......सभी ब्लोगर बच्चा, कोई भी समस्या हो, तुरंत निसंकोच संपर्क करो,हमारी भभूत द्वारा हर समस्या का निदान संभव है, हमारे मठ में हिमालय की जड़ी-बूटी द्वारा मंत्रित भभूत चमत्कारी असर करेगी !नक्कालों से सावधान ! नव वर्ष में सभी ब्लागरों का कल्याण हो !
ताऊ रामपुरिया .....बाबाश्री लंगोटानंद जी नववर्ष की शुभकामनाएं. नववर्ष मे आपके चेलों की संख्या मे असीमित वृद्धि हो. यही कामना है
लंगोटा नंदजी महाराज ........बच्चा, रामपुरिया, कल्याण हो! अंग्रेगी नव वर्ष की बधाई हो !बच्चा, हमको पता है तुम्हे टीआरपी की जरूरत नहीं है,तुम्हारा ब्लॉग जगत में बड़ा नाम है, खूब तरक्की करो, हमारे मठ में भी भभूत ग्रहण करने आ जाना, और ऊँचा नाम होगा ! बच्चा हमारे फोलोवर बनकर हमारी शिष्यता स्वीकारो !
अब बाबा लंगोटा नन्द और ताऊ जी का संवाद चल ही रहा था तो हम भी उठा के अपना जुमला ठोक दिये. बाबा जी भी मुंह फार के देखने लगे
ललित शर्मा ......बाबा जी तीन काल का दरस है,सन् 2010 का नया बरस है,नये साल की आपको बधाई,कांबल ओढ के खाओ मलाई,
लंगोटा नंदजी महाराज ......बच्चा रामपुरिया, हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हुए, मांग लो वरदान !ताऊ रामपुरिया ...बाबाजी वरदान ई देणो चाहो हो तो कोई दूध आली पहलूण झौठडी दिलवाण की किरपा करो.:)
लंगोटा नंदजी महाराज ......बच्चा रामपुरिया, कल्याण हो! तुम हमारे प्रिय शिष्यों में से हो, हम तुम्हे चमत्कारी भभूत भिजवाने की व्यवस्था कर रहे हैं तुम हमारी भभूत की ३० पुड़िया बना लेना और स्नान के बाद प्रतिदिन ब्रेकफास्ट के साथ फांक लेना, एक मंत्र भी दे रहे हैं- ॐ लंगोटा नन्द फट स्वाहा ! इस मंत्र का जाप रात को खुली छत पर उलटे लेटकर १० बार करना ! जल्द ही अरब पति हो जाओगे ! खुश रहो !
ताऊ रामपुरिया ....जय हो बाबा श्री लंगोटा नंद महाराज की जय हो.बाबाजी एक बात पूछनी थी कि अगर ॐ लंगोटा नन्द फट स्वाहा ! का जाप रात के साथ साथ दिन मे सीधे लेटकर भी कर लिया जाये तो असर कुछ जल्दी होगा क्या? जय हो सच्चे गुरु लंगोटा नंद महाराज की जय हो।
लंगोटा नंदजी महाराज ...बच्चा ललित शर्मा, कहाँ हो? जल्दी आओ.. बच्चा रामपुरिया को समझाओ कहीं उल्टा आसन न कर बैठे, हमें बड़ी चिंता हो रही है.
ताऊ रामपुरिया .....जय हो बाबा लंगोटानंद जी की, अब समझ गये अब नही करेंगे. और बाबाजी ललित जी तो ढोसी के पहाड पर तपस्या करने चले गये हैं. खुद बाबा ललितानंद बन कर. 
तभी अचानक बाबा शठाधीश जी महाराज का आगमन होता है वो आते ही एक सवाल दागते हैं. सुनिए.
श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज .....अलख निरंजन, ये किसका धुणा है, कौन बाबाजी बिराजते हैं?हमारा एक चेला बहुत दिन से हमारी लंगोटी लेकर फ़रार हो गया है, तब से हम उसको ढुंढ रहे है। कहीं मिले तो बताना। बिना गुरु के ज्ञान नही। ज्ञान बिना स्थान नही॥ अलख निरंजन
इसके बाद इस कहानी में एक नए पात्र का प्रवेश होता है वो हैं पी.सी.गोदियाल जी,अब आगे देखिये
पी.सी.गोदियाल ........."हम हिमालय से तुम्हारी पीड़ा दूर करने के लिए ही उतरे हैं,...."बाबा जी एकदम झूठ बोल रहे है आप ! हिमालय से इसलिए उतर भागे क्योंकि वहाँ पर ठण्ड से कुल्फी जम रही है !:) मैं भी हाल ही में होकर आया हूँ !
लंगोटा नंदजी महाराज ......बच्चा गोदियाल, कल्याण हो ! हम तो लंगोटधारी हैं,ठण्ड हो या बरसात-गर्मी हम नहीं डरते, क्या मार सकेगी ठण्ड उसे ब्लागरों के लिए जो जीता हो,
पी.सी.गोदियाल ...........बाबा धीरे बोलो, वो शठाधीश बाबा आप ही को ढूंढ रहे है ! पता है आपको जब दो बाबा लड़ते है तो चिमटे से बजाते है एक दुसरे को :)
लंगोटा नंदजी महाराज ......श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज!आप हम पर शक न करें, हम तो एक मात्र लंगोट सहित पैदा हुए हैं , ब्लॉग जगत में बहुत से चालू बाबा घूम रहे हैं , उनकी लंगोट चेक करें! कल्याण हो ! 
लंगोटा नंदजी महाराज .....बच्चा गोदियाल, हम न तो किसी प्रकार का नशा करते हैं और न ही किसी नशेडी चिलम खोर बाबा से डरते हैं, नशे का जो हुआ शिकार,उतर जायेगा पाखण्ड का बुखार ! कल्याण हो !
राज भाटिय़ा .......लंगोटा नंदजी महाराज जी आप की शकल ओर बाते तो हमारे ताऊ राम पुरिया से मिलती है, ताऊ भी बहुत पहुचा हुं गुरु बाबा है बडो बडो को टोपी पहन देता है,अब कोई उपाय बताओ वो मेरे सारे पैसे वापिस कर दे, जब भी मांगो तभी नयी टोपी पहना कर फ़िर से पैसे ऎंठ लेता है गवाह सारा ब्लांग जगत है बाबा आप का टिकाना कही इंदोर मै तो नही है, जय हो बाबा लंगोटा नंदजी महाराज जी की जय हो.
लंगोटा नंदजी महाराज ......बच्चा राज भाटिया, कल्याण हो! पहले हमारे फोलोवर बनकर हमारी शिष्यता ग्रहण करो,तब भभूत पार्सल करेंगे, रामपुरिया पहले से हमारा परम शिष्य है !
पी.सी.गोदियाल ......श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज आप सुन रहे है न ? आपके इन लगोट चोर बाबा ने आप पर कितना गंभीर आरोप मडा है , जल्दी जबाब दीजिये वरना मैं भी बाबा लंगोट के खेमे में चला जाउंगा , वैसे भी आजकल दल्बद्लुओ की ही ज्यादा चलती है !
लंगोटा नंदजी महाराज ......बच्चा गोदियाल, क्यों दो बाबाओं की कुश्ती करने पर तुले हो ? कल्याण हो!
श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज .......अलख निरंजन! बाबा लंगोटानंद जी, आपको क्या पता लंगोटी चोरी होने का दर्द, हम तो ऐसे ही घुम रहे हैं। ठंड इतनी ज्यादा है कि चिलम पीना ही पड़ता है। नही तो ईंजन ठंडा हो जायेगा।अगर कोई भक्त पैग की भी बेवस्था करवा दे तो रात कट जाती है। ध्यान रहे हम बाबा वामपंथी(अघोरी)है और पंच मकारों को धारण करते हैं, वही मुक्ति का मारग है।
पी.सी.गोदियाल .......मैंने आज से दल बदल लिया, मैं बामपंथियों (सबसे निठल्ले ) के दल में कदापि नहीं रह सकता, इसलिए आज से मैं लंगोतानंद बाबाजी के खेमे में हूँ 
लंगोटा नंदजी महाराज .........बाबा शठाधीश जी, कल्याण हो ! अगर इतनी ही ठण्ड लगती है तो शादी कर लें , साल के ३६५ दिन इंजन गर्म रहेगा !
श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज .......लंगोटानंद महाराज,आप भी संतों को गलत सलाह दे रहे हैं,गाछी, बाछी और दासी। तीनो संतो की फ़ांसी ॥ ये संतो का काम नही है।
ताऊ रामपुरिया ......बाबाजी आपको मालूम है कि नही बाबा शठाधीश महाराज का लंगोट भी डेढ महिने पहले चोरी हुआ था...जरा आपके प्रज्ञा चक्षुओं का इस्तेमाल करें और बताये...शठाधीश महाराज डेढ महिने से बिना लंगोट घूम रहे हैं.
लंगोटा नंदजी महाराज .......बच्चा रामपुरिया, हमारे पास एक मात्र लंगोट है .. दो होती तो एक श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज को दे देता, उन्हें इस तरह नागा न घूमने देता ! कल्याण हो
श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज ........अलख निरंजन, मद्यं,मासं,मीनं,मुद्रं, मैथुनं एव च। ऐते पंच मकार: श्योर्मोक्षदे युगे युगे। यह पंच मकार ही मोक्ष का मार्ग है। इन्हे धारण करने से ही मोक्ष मिलेगा॥ तभी कल्याण होगा
लंगोटा नंदजी महाराज .......श्री बाबा शठाधीश जी महाराज दूसरों को मोक्ष का मार्ग दिखाने से पहले खुद मदिरा-पान से मोक्ष पा लें ! कल्याण हो 
लंगोटा नंदजी महाराज .......श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज! संत तो श्री तुलसी दास, कबीर दास को कहते हैं, ये मदिरा-पान नहीं करते थे,आप तो इन सबसे हटकर हैं, इसलिए आपको सही सलाह दी है, बूरा लगा हो तो खेद है ! कल्याण हो !
श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज .......मोक्ष का सरल रास्ता और बताते है। पहले तो हमने पंच मकार बताए थे अब सुनो, पीत्वा-पीत्वा पुनर्पित्वा, यावत्पतति भुतले। पुन: उत्त्थाय पुनर्पित्वा, पुनर्जन्म ना विद्यते॥ किसने कहा मदिरा पान बुराई है, जिन्होने छिप के पी,उन्होने ही बात उड़ाई है। अलख निरंजन
सिद्ध बाबा बालकनाथ त्रिकालज्ञ ......ये क्या होरहा है बच्चा लोग? हर हर महादेव...
यहाँ पर लंगोटा नन्द जी महाराज हैरत में पड़ जाते हैं की अभी तक तो हम एक ही बाबा थे अब ये सब नए-नए बाबा कहाँ से निकल-निकल कर आ रहे है. बड़ी सोचनीय स्थिति में फँस जाते हैं और कहते हैं. 
लंगोटा नंदजी महाराज .........सिद्ध बाबा बालकनाथ त्रिकालज्ञ कल्याण हो!आप आये मठ में हमारे, हमें भी हैरत है, कभी हम अपनी लंगोट देखते हैं , कभी आपको ......?
श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज .......मृत्यु लोक पे मना है धर सोम रस की आस । जब लेकर आयेगी उर्वशी,दौड़ेंगे सब उसके पास॥
लंगोटा नंदजी महाराज ......श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज, कल्याण हो, शायाद आप कहना चाहते हो खुलकर पीने में क्या बुराई है, तो खूब पियो, कलेजा आपका जलेगा,परेशान आपके चेले होंगे.. वैसे आपका नाम तो ढीठा धीश महाराज होना चाहिए था, ये नाम आप पर फिट बैठता है !
श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज .........लंगोटा नंद जी महाराज, हमने पहले ही बताया, हम वाम पंथी हैं। दुनिया के जितने भंगेड़ी, गंजड़ी, शराबी, कबाबी, शठ, मुरख, बेवकुफ़, अज्ञानी, बेध्यानी, लु्च्चे, लफ़ंगे, सब हमारे पट्ट शिष्य हैं।तभी तो हम शठाधीश कहलाते हैं। इस ब्रह्माण्ड मे हम अकेले शठ संत है। इसीलिए जगत शठों की वंदना करता है। हमारे आशीर्वाद और श्राप का तुरंत फ़ल मिलता है।इसलिए कहा गया है,
शठ की संगत कीजिए तज काम और धाम। 
शठ से ही संसार चले शठ को कोटि प्रणाम्!


लंगोटा नंदजी महाराज ........श्री श्री बाबा शठाधीश जी महाराज, कल्याण हो! सत्य वचन है !
इतना कह कर दुनो बाबा लोग अपने-अपने मार्ग पर चल दिये. हम खड़े होकर सोच रहे थे!
दुनो बाबा जी के बीच जो ज्ञान रंजन हुआ  उसको सुनकर हम आनंदित हो उठे, चलो भाई हमारे बुलाग मोहल्ले के बाबा लोग भी ज्ञानी ध्यानी हैं. दू पक्ष हर जगह दिखता है, यहाँ पर भी दू पक्ष दिखाई दे रहा हैं, लेकिन दुनो बाबा कितने संयमी हैं. हमारे को ये देखने मिला और दुनो ने एक उदहारण पेश किया बुलाग जगत के सामने. हमने ये कहानी यूँ ही नहीं लिखी है,आप एक -एक संवाद देखिये. आपको लगेगा यही संसार है.
चलिए एक बार जय बोलिए बाबा शठाधीश जी महाराज की जय . लंगोटा नन्द जी महराज की जय