बुधवार, 15 जून 2011

"उसने कहा था" में दही का योगदान--राम पटवा

राम पटवा साहित्य जगत का जाना माना नाम है, उनकी कृति "विष्णु की पाती राम के नाम" चर्चित रही है। विष्णु प्रभाकर जी के सानिध्य में रहे और विष्णु प्रभाकर जी जगह-जगह, राम पटवा जी की लघु कथा 'अतिथि कबूतर' सुनाते हुए कहते कि 'शब्द मेरे हैं पर कथा श्री राम पटवा की है और वह किसी टिप्पणी की मोहताज नहीं है।'इसका जिक्र राहुल सिंह जी ने अपनी एक पोस्ट "राम के नाम पर" में किया है। पढते हैं चंद्रधर शर्मा "गुलेरी" जी की कालजयी कहानी "उसने कहा था" के दही लाने वाली लड़की पर राम पटवा जी का चिंतन, राम झरना
राम पटवा जी एवं अनुप रंजन पांडे
मुझे एक कविता की कुछ पंक्तियां याद आती हैं - कि "गर्मियों में अपने मामा के घर छुट्टियाँ बिताने आई किसी मनचली लड़की की तरह लगती है यह नदी।" कितनी अच्छी बात है, किसी नदी की तरह, किसी लड़की का मनचली हो जाना, और एक मनचली लड़की का बाजार में दही खरीदने जाना और दही खरीदते-खरीदते प्रेम प्रसंग में दही की तरह जम जाना। जीवन की हर सांस प्रेम गंध से भरकर प्रेममय हो जाना, कितनी सुखद घटना है यह।

दही का इजाद जबसे हुआ, उसका उपयोग खाने,पीने और बाल धोने के लिए ही नहीं हुआ, बल्कि दही का योगदान जमने के साथ-साथ जमाने में भी हुआ। एक दिन अमृतसर के भीड़ भरे बाजार में, वह लड़की मामा के सर धोने के लिए दही लेने क्या जाती है, वहां एक अपरिचित लड़का मस्ती से सराबोर होकर पूछ बैठता है कि -"तेरी कुड़माई हो गयी? धत्.....। इस धत् शब्द माधुर्य और सौंदर्य बोध, दोनों के जाल में वह लड़का गिरफ़्त हो जाता है। एक दिन दोनो की फ़िर मुलाकात हो जाती है, फ़िर उस लड़के का उसी तरह प्रश्न, लेकिन उत्तर - "हां हो गयी, देखते नहीं रेशम से कढा हुआ सालू।"

इस बीच वह लड़की क्या बोलती है, वह लड़का क्या सुनता है, क्या समझता है, लगता है, गुलेरी जी उन दिनों अमृतसर के भीड़ भरे बाजार में, इस वाकये को देख रहे हों और सुन भी रहे हों- "एक प्रेम कहानी का जन्म हो जाता है,उसने कहा था।" उसने क्या-क्या कहा था, और जो कहा गया था उसे किसने कब निभाया, गुलेरी जी इस कहानी के सम्पूर्ण हद के साक्षी हो जाते हैं, फ़लस्वरुप हिन्दी कहानी के संसार में एक प्रेम कहानी का जन्म हो जाता है।

दही न होता, न वह लड़की दही खरीदने जाती, न उस लड़के से मुलाकात होती, न गुलेरी जी की कालजयी प्रेम कहानी का जन्म होता। इस तरह एक चिरस्मर्णीय प्रेम कहानी के प्रसंग में दही का जो योगदान रहा, उसे प्रेम कहानियों के पाठकगण कभी भूल नहीं सकते। बाल धोने के लिए एक मामा अपनी एक भांजी को दही लेने बाजार भेजते हैं, और भांजी बाजार में दही खरीदते-खरीदते प्रेम के महासागर में गोता लगा लेती है। दही उन दोनो के जीवन को प्रेममय बना देता है। जिसकी खुश्बु दिक् दिगन्तर तक चली जाती है।

चंद्रधर शर्मा "गुलेरी"
दही के जरिए एक छोटी सी मुलाकात, प्यार में तब्दील होकर दोनों के गले का हार बन जाती है। आज भी कई लड़कियां रोज दही खरीदने बाजार जाती होगीं, लेकिन सिर्फ़ दही खरीद कर ही वे वापस आ जाती होगीं। इस प्रेम कहानी के निर्माण में दही के इस महत्वपूर्ण योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। जब भी मैं दही देखता हूँ मुझे, अमृतसर के भीड़ भरे बाजार की याद आती है, और उस भीड़ भरे वातावरण में नदी की तरह उस मनचली लड़की की भी याद आती है। जिसने बाजार में उस लड़के से कुछ कहा था, उसने कुछ भी कहा था, सच कहा था, सच के अलावा कुछ नहीं कहा था। " वास्तव में दही स्वयं जमने के साथ दूसरों को भी जमाने का काम करता है।"

15 टिप्‍पणियां:

  1. "गर्मियों में अपने मामा के घर छुट्टियाँ बिताने आई किसी मनचली लड़की की तरह लगती है यह नदी।"
    वाह वाह क्या पंक्ति है कुछ याद दिलाती ??

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  2. archana chaoji बज्ज पे

    - shukriya ..is bahane baki bhi padhne ko mila.

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  3. एक अमर कहानी को फिर से याद दिला दिया और हां पटवा जी की पंक्तियां तो बहुत अच्छी लगीं.

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  4. पुरानी यादो मे नया तड़का दही खरीदने तो मै भी अकसर जाता हूं अब अवसर भी तलाशूंगा ईंटरनेट चैट के मैरीड बट लुकिंग की तर्ज पर

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  5. आलेख अच्छा है,लेकिन किसी कविता में लड़की को 'मनचली'
    कहना अच्छा नहीं लगा . बेटियों के लिए खटकती है ऐसी तुलना .वहाँ 'चंचल' शब्द ज्यादा अच्छा रहता . नदी मनचली नहीं ,चंचल होती है. उसी तरह बच्चे-बच्चियां भी स्वाभाविक रूप से चंचल स्वभाव के होते हैं.

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  6. " वास्तव में दही स्वयं जमने के साथ दूसरों को भी जमाने का काम करता है।"

    एक अमर कहानी फिर से याद आ गई ... इस प्रस्‍तुति के लिये आपका आभार ...

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  7. " वास्तव में दही स्वयं जमने के साथ दूसरों को भी जमाने का काम करता है।"
    दू अंतस म मया पिघला के खुद जमना भला समझिस दही । हिन्दी प्रेम गीत म दही के सन्दर्भ त एको पईत नई सुन पाए हवं छत्तीसगढी प्रेमगीत में दही बेचत बेचागे दही वाली..... लोकगायक नरेश निर्मलकर, दही के भोरहा कपसा ल लिलेंव.....लोकगायक राकेश तिवारी जी ले सुने रहेंव फेर "उसने कहा था" दही के आड़ म प्रेममिलन राम पटवा जी के चिंतन पढ़ के बने लगिस, मन ल भागे । बहाना कबूतर के होय या दही के गियानी अनुभवी के चिन्तन के मथे ले लेवना के ही महक आही .....

    आदरणीय पटवा जी को पायलागी । सुघ्घर जानकारी जमाय बर गंज बधई.......

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  8. पटवा जी विलक्षण दृष्टि का नमूना- मिष्‍टी दोर्इ, चखकर आनंद आ गया.

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  9. अच्छे खासे दूध को जमा देता है दही ..
    कहानी की अच्छी याद दिलाई!

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  10. किस्मत में अगर दही लिखा है तो दही के जरिए ही मिलन होगा...

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