सोमवार, 12 सितंबर 2011

रेडियो का जादू --- ललित शर्मा

रेडियो ही रेडियो - खरीद लो जितने चाहो 
रेडियो नाम सुनते ही कानों में सुरीली मधुर आवाज गूंज जाती है, यह तन्हाई का वह साथी है जो उदास नहीं होने देता. मैं इसे स्वस्थ मनोरंजन का सर्वोत्तम साधन मानता हूँ. रेडियो एक ऐसा यंत्र है जिसका इस्तेमाल करते हुए हम अपना काम भी कर सकते हैं. यह आदमी को बुद्धू बक्से जैसे निठल्ला दर्शक नहीं बनाता, बल्कि  काम करने की भी पूरी स्वतंत्रता देता है. इसकी पहुँच धरती से लेकर अन्तरिक्ष तक है. चाहे सीमाओं की रक्षा  करता सिपाही हो या खेत में हल चलाता किसान हो सभी के मनोरंजन का एक मात्र सर्वसुलभ साधन है. रेडियो के इन दीवानों मैं भी शामिल हूँ. देर रात घर कार से लौटते समय मुझे मनपसन्द गीत सुनाते हुए यह किसी और ही दुनिया में ले जाता है. एक-दो बार तो हादसा होते-होते रह गया. ह्रदय स्पर्शी गीत और नगमे अंतर्मन की गहराइयों में उतर जाते हैं. मुझे यह पता नहीं रहता कि गीतकार, संगीतकार, गायक कौन है? इतना जानता हूँ रेडियो सुन रहा है.

छत्तीसगढ़ के परमपरागत वाद्य 
जब बचपन में रेडियो सुनते थे तो लगता था कि इसके भीतर लोग घुस कर बैठे हैं. वही आपस में बात कर रहे हैं, गीत गा रहे हैं, समाचार सुना रहे हैं. फिर सोचता था कि आदमी तो बड़ा होता है और रेडियो छोटा, तो फिर इसके भीतर वे समाते कैसे होंगे? जब इस सवाल का जवाब मुझे नहीं मिला. तब एक दिन मैंने पेचकस से रेडियो खोल दिया, उसके भीतर से कुछ बल्ब और तार निकले. लेकिन बोलने वाला आदमी नहीं मिला. रेडियो का सत्यानाश करने के कारण डांट भी खानी पड़ी. इसके रहस्य से तब वाकिफ हुआ जब हमारे घर में टेपरिकार्डर आया. बड़ी चकरी पर रील लगी होती थी और जो माइक से बोलते थे वह हु-ब-हु सुनाई देता था. यह एक बड़ा चमत्कार था. स्वयं की आवाज सुनना अद्भुत  था. तब अंदाजा लगा कि टेप रिकार्डर से रिकार्ड करके कोई रेडियो में बोलता है.तब रेडियो का आकर्षण सर चढ़ कर बोल रहा था.

मरफ़ी रेडियो का विज्ञापन 1966
हमारे यहाँ एक चौकीदार था. उसे ५ रूपये रोज का मेहनताना मिलता था. उसके मन में बरसों से तमन्ना थी कि उसके पास भी एक ट्रांजिस्टर होता. उसने रूपये बचाकर पुराना मरफ़ी ट्रांजिस्टर १७५ रूपये में ख़रीदा. उस समय रेडियो खरीदना सम्पत्ति खरीदने जैसा ही समझा जाता था. चौकीदार के ट्रांजिस्टर खरीदने की बाकायदा रसीद लिखी गई " अमुक व्यक्ति ने अमुक व्यक्ति से एक अदद मरफ़ी कम्पनी निर्मित दो बैंड, तीन बड़े सेल का ट्रांजिस्टर ख़रीदा है, जिसकी लायसेंस फीस ७ रुपये सालाना है. दो गवाहों की मौजूदगी में १७५ रूपये नगद प्राप्त किए ......... रसीद, सनद रहे वक्त जरुरत पर काम आवे........ सही ...  क्रेता - विक्रेता दो गवाह....... और १० पैसे की रसीदी टिकिट....... उसके बाद ट्रांजिस्टर चौकीदार के शरीर का एक अंग बन गया. कंधे पर लटका ही रहता. २४ घंटे का साथी. स्थानीय रिले केंद्र से ३६ गढ़ी गीत बजते  " काबर रिसा गे दामाद बाबु दुलरू, भांटा के भरता पाताल के चटनी." और इसका आन्नद हम सब लेते. खेत जोतते समय भी किसान हल के जुड़े में रेडियो लटका कर सुनते रहते थे. भले ही कार्यक्रम कुछ भी आ रहा हो. आवाज आनी चाहिए जिससे उसका ध्यान काम में लगे रहे.

बचका मल का सम्मान करते  हुए अशोक बजाज 
बोवाई का समय होता तो मै भी जेटकिंग कम्पनी का छोटा दो बैंड का ट्रांजिस्टर लेकर खेत की मेड पर बैठता और बनिहारों के काम को देखता रहता. कहते हैं......खेती अपन सेती. अगर खेती की तरफ मालिक ध्यान नहीं देगा तो बनिहार- नौकर कमा के नहीं देने वाले. बुद्धू बक्से ने रेडियो का चलन कम कर दिया, लेकिन पूरी तरह चलन से बाहर नहीं कर पाया. रेडियो को हम जेब में डाल कर कहीं भी ले जा सकते थे, लेकिन टी.वी को नहीं. इसीलिए ग्रामीण अंचल में रेडियो लोकप्रिय हुआ और कालांतर में समाज सुधार एवं सूचनाओं के प्रचार -प्रसार का एक सशक्त माध्यम भी बना. चाहे किसान भाइयों कार्यक्रम हो, बच्चों, युवाओं, महिलाओं, एवं फौजी भाइयों का कार्यक्रम हो, सभी में लोकप्रियता हासिल की. चिट्ठी-पत्री के माध्यम से लोग जुड़ने लगे. पत्र भेजने वाले श्रोताओं के कारण भाटापारा को झुमरी तलैया भी कहा जाने लगा. श्रोताओं के पत्र फरमाईशी कार्यक्रमों में पढ़े जाने लगे. सभी वर्ग के श्रोता रेडियो के साथ जुड़ गए. चाहे स्थानीय कार्यक्रम हो या विविध भारती के कार्य्रक्रम. सभी ने श्रोताओं का सम्मान एवं प्यार पाया.

श्रोताओं की मांग पर शेख हुसैन गीत गाते हुए 
२० अगस्त को रेडियो श्रोता दिवस मनाया जाता है. गत वर्ष एवं वर्तमान में मुझे इस कार्यक्रम में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. यह एक ऐसा दिन है, जब आकाशवाणी के उद्घोषक एवं श्रोता एक दुसरे से मिलते हैं. उद्घोषक भी चाहते हैं कि वे उनसे मिले जिनके पत्र वे अपने कार्यक्रमों में पढ़ते हैं और श्रोता भी चाहते हैं कि उस उद्घोषक से रु-ब-रु हों जिसकी आवाज वे रेडियो के माध्यम से सुनते हैं. श्रोता दिवस पर दोनों का भाव पूर्ण मिलन देखने मिलता है. इस वर्ष रेडियो श्रोता दिवस का कार्यक्रम रेडियो के प्रसिद्द श्रोता "बचकामल" की नगरी भाठापारा में आयोजित हुआ. जनकपुरी होने के कारण अशोक भाई के साथ मै भी इस कार्यक्रम का साक्षी बना. जिसमे रेडियो श्रोताओं के साथ-साथ उद्घोषको का भी सम्मान किया गया. ३६ गढ़ी गीतों के गायक एवं गीतकार शेख हुसैन जी को सुना. उम्र के ढलान पर भी उनकी आवाज में वही जुम्बिस एवं दम है जो आज से ३० बरस पूर्व हुआ करता था. उन्होंने "गुल गुल भजिया खा ले, बटकी मा बासी अऊ चुटकी मा नून, चल जाबो खल्लारी मेला वो" आदि गीत गाकर मन मोह लिया.

कविता और कांति लाल बरलोटा  गपियाते हुए 
दो विशेष श्रोताओं से मेरी मुलाकात हुयी, जिनका उल्लेख किये बिना मेरी लेख अधुरा ही मानुगा. इनसे मिलकर मुझे प्रसन्नता हुयी. मन की आँखों से देखने वाले लोग निर्मल होते हैं. कांतिलाल बरलोटा प्रज्ञा चक्षु हैं साथ ही विकलांगता देकर नियति ने साथ क्रूर व्यवहार किया है. कांति लाल जी हमारे साथ रायपुर से ही भाठापारा गए थे. इन्होने शारीरिक अक्षमताओं के बावजूद दुर्गा कालेज रायपुर से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की, कमलादेवी संगीत महाविद्यालय से गायन में एम. ए. किया एवं खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से गीतांजली का कोर्स किया. रास्ते मैंने इनसे कुछ बंदिशें भी सुनी. तबियत ख़राब होने के पश्चात भी इनका श्रोता सम्मेलन में उपस्थित होना रेडियो के प्रति अनुराग प्रदर्शित करता है. १९९४ से कांतिलाल विद्यार्थियों को संगीत की शिक्षा दे कर ऋषि परम्परा को आगे बढा रहे हैं.

प्रज्ञा चक्षु कविता देशमुख से कार्यक्रम स्थल पर मेरी मुलाकात कांति लाल ने करायी. कविता खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से गायन में स्नातकोत्तर उपाधि ले रही हैं. किसी की भी आवाज एक बार सुनकर उसकी हु-ब-हु नक़ल करके उसे चौंका देती है. कार्यक्रम के दौरान दोनों मेरे समीप ही बैठे थे. मेरा ध्यान इनकी बातों की ओर था. दोनों आपस में तय कर रहे थे कि ललित अंकल को फोन करके कब और कैसे चौंकाना है और मौज लेनी है. मुझे चौंकाने के मनसूबे बांधे जा रहे थे और मैं इनकी निश्छल बातें सुनकर मन ही मन मुदित हो रहा था. ईश्वर ने कुछ कमी की तो उसकी भरपाई कही और से कर दी. इन्हें जीवन जीने का मार्ग दे दिया. मुझे इनसे मिलकर अच्छा लगा ऐसे ही व्यक्तित्व किसी और की भी प्रेरणा बनते हैं. कार्यक्रम के कुछ दिनों के बाद कविता ने मुझे फोन करके चौंका ही दिया. बोली - "मै आकाशवाणी रायपुर से बोल रही हूँ, आपका कार्यक्रम आकाशवाणी में तय हो गया है, जल्दी ही रिकार्डिंग की तारीख बता दी जाएगी". काफी देर बाद मुझे इसकी आवाज समझ में आई और खूब ठहाके लगाये.

उद्घोषकगण आकाशवाणी रायपुर -बिलासपुर - चित्र-साभार संज्ञा जी 
ऍफ़.एम के आने से आज रेडियों ने पुन: टेप रिकार्डर, केसेट , सी.डी. प्लेयर सभी को पीछे छोड़ दिया. रेडियो सुनने वाले श्रोताओं की संख्या फिर बढ़ रहती है. इसी की परिणिति रेडियो श्रोता संघ के कार्यक्रम रूप में देखने मिली. कार्यक्रम के माध्यम से सभी श्रोताओं और उद्घोषकों का वार्षिक मिलन एक स्थान पर होना रेडियो के प्रचार-प्रसार लिए नव जीवन है.  वैसे रेडियो अभी भी सरकार के नियंत्रण में है, जो सरकार चाहती है वही बोलता है, अगर आकाशवाणी को स्वायतता दे दी जाये तो लोग खबरों के लिए बी.बी.सी. की ओर नहीं जायेंगे. फिर भी हमें गर्व है कि रेडियो के कार्यक्रम को हम सपरिवार सुनकर सकते हैं, यह अभी सांस्कृतिक प्रदुषण फ़ैलाने के सामाजिक अपराध  से कोसों दूर है. श्रोता सम्मलेन में आकाशवाणी रायपुर के अधिकारी यादराम पटेल, समीर शुक्ल, उद्घोषक  दीपक हटवार, श्याम वर्मा, के.परेश, बिलासपुर से हरीशचन्द्र वाद्यकार, राजू भैया,उमेश  तिवारी, एवं शोभनाथ साहू  अंबिकापुर का स्मृति चिन्ह देकर अशोक बजाज एवं शिवरतन शर्मा के हाथों  सम्मान किया गया. कार्यक्रम में ब्लॉगर संज्ञा टंडन नहीं पहुच पाई.  कमल लखानी रायपुर , डॉ. प्रदीप जैन सिमगा. रतन जैन रायपुर, सहित लगभग २०० श्रोता कार्यक्रम में उपथित थे.   

NH-30 सड़क गंगा की सैर

35 टिप्‍पणियां:

  1. रेडियो का भी अपना ही मजा है. अब इन्टरनेट और टीवी ने रेडियो का दायरा थोड़ा सीमित कर दिया है.

    जवाब देंहटाएं
  2. हमारे गांव का पहला रेडियो कैसे टुटा - जिस व्यक्ति का रेडियो था उसके पिताजी दारु पीकर आये और रेडियो से बोले कि "कुरजां"सुना| अब बेचारा रेडियो कुरजां कैसे सुना सकता था सो उन्होंने एक लट्ठ मारा और यह कहते हुए रेडियों तोड़ दिया कि -खुड गढ़ में ३०० आदमी मेरा हुक्म मानते है और ये डिब्बा मेरा कहना नहीं मान रहा|

    जवाब देंहटाएं
  3. रेडियो की बात ही और होती है , कुछ भी काम करते हुए इसे सुना जा सकता है . गृहिणियों के लिए बहुत उपयोगी है ,हम तो अपनी रसोई में भी इसको साथ रखते हैं!

    जवाब देंहटाएं
  4. पढ़ते हुए बारी-बारी से कई स्‍टेशन ट्यून हो गए.

    जवाब देंहटाएं
  5. सचमुच रेडि‍यो का जादू है ही ऐसा कि‍ जो इसके साथ जुड़ गया..इसका साथ नहीं छोड़ सकता....कि‍तने ही आधुनि‍क साधन आने के बावजूद इसको चाहने और सुनने वाले आज भी अनि‍गनत की संख्‍या में हैं...हर वर्ग, हर उम्र और हर तरह के गीतों को सुनने के शौकीन हर दि‍न हमसे फोन, पत्रों या रूबरू मि‍लते ही रहते हैं...जो हम जैसे प्रस्‍तोताओं के लि‍ये उर्जा बनते हैं.. ललि‍त जी धन्‍यवाद इतने अच्‍छे आलेख के लि‍ये...

    जवाब देंहटाएं
  6. वाह! एक समय विवाह में घड़ी, जंजीर,साइकिल- और बाजा(रेडियो)यही सबसे प्रचलित दहेज होता था

    जवाब देंहटाएं
  7. रेडियो ,रेडिओ है ...जो नहीं जानते ...वो नही जान सकते उसका जादू........और उसका प्रभाव ....

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुतिकरण .आभार .

    जवाब देंहटाएं
  9. बचपन मे फ़रमाईशी गाने भेजना और फ़िर रेडियो मे अपने नाम के एनाउंसमेंट का गजब जोश रहता था हम दो भाईयों को। आपने पुरानी यादें ताजा कर दी

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत अच्छा और रोचक लगा पढ़कर।

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  11. अनूठा अनुभव देता है रेडियो का साथ

    जवाब देंहटाएं
  12. रेडियो से मेरा भी खास लगाव रहा है...बचपन में मेरे बाल लंबे होने की वजह से मुझे यही मरफ़ी वाला बच्चा (जिसका एड आपने लगाया है) कह कर बुलाया जाता था...रेडियो का महानगरों में मतलब तो सिर्फ एफएम ही रह गया है...न अब यहां विविध भारती प्रचलित रहा है और न ही आकाशवाणी के कार्यक्रम...इन्हें दोबारा सशक्त करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  13. रेडियो की यादे ताज़ा करके ...पुराने दिनों की याद दिला दी आपने .....आज वाले एफ एम..(.fm)...में वो बात नहीं है ....फिर भी उस पर गाने सुनना अच्छा लगता है

    जवाब देंहटाएं
  14. बैठे बैठे ठहरे हुए पानी मे कंकड मारने की आदत है आपकी. हा हा हा रेडियो सुनने के शौक़ीन लोगो मे अपुन का नाम भी जोड़ लीजिए.अपनी पसंद का कोई गाना दूर से सुनाई देता था तो मैं दौड कर घर के अंदर आती और खोजती .....तब तक आधा गाना निकल चुका होता था.फौजी भाइयों की फरमाइश जरूर सुनती थी अपने पापा,चाचा या बड़े पापा के नाम सुनती तो बहुत खुश होती.बड़े पापा अक्सर एक गाने की फरमाइश ही भेजते थे 'लुटी जहाँ पे बेवजह पालकी बहार की....'
    झुमरीतलैया और एक नाम याद नही आ रहा.उसके बिना रेडियों का हर प्रोग्राम जैसे अधूरा था.वहाँ के श्रोताओं ने इस नाम को हर व्यक्ति की जुबान पर चढ़ा दिया था.
    अरे बहुत कुछ है कहने को .फिर कहोगे इसके कमेंट्स भी इतने बड़े बड़े होते हैं कि पूछो मत ऐसीच है यह तो.
    कविता देशमुख के बारे मे पढते ही याद आया मेरी रज्जू भाभी (बड़ी भाभी) और मिका (दोनों से आप शादी मे मिल चुके हैं ) नकल उतारने मे माहिर है.
    बहुत अच्छा लगा पढकर धाराप्रवाहिता आपके आर्टिकल्स की विशेषता है ललित भैया ! जियो.

    जवाब देंहटाएं
  15. रेडियो की यादे ताज़ा करके ...पुराने दिनों की याद दिला दी आपने

    एक बात और उस समय ससुराल में जब जवांई रेडियों लेकर जाता था (विशेष कर शादी विवाह के मौके पर) तो उस उसय उसकी मान मनुआर बहुत ज्यादा होती थी

    जवाब देंहटाएं
  16. रेडियो से मुझे भी बहुत लगाव है, खासकर विविधभारती तो मेरा सबसे पसंदीदा स्टेशन है...आपके लेख से रेडियो के बारे में बहुत जानकारी मिली... बहुत अच्छा लगा

    जवाब देंहटाएं
  17. रेडिओ की कहानी आपकी जुबानी मन प्रसन्न कर गया. हमारे परिवार की सबसे पुरानी रेडिओ का नाम "चिकागो" उसके बाद जी ई सी का तत्कालीन (१९४७) सबसे बड़ा सेट लिया गया. ९ वाल्व थे और कीमत... मात्र १००० रुपये.

    जवाब देंहटाएं
  18. बढ़िया रहा रेडियो व्याख्यान.वैसे सच में रेडियो का तो जबाब नहीं.
    @उस समय रेडियो खरीदना सम्पत्ति खरीदने जैसा ही समझा जाता था
    हाँ सुना था कि तब शादी में दहेज में रेडियो जरुर माँगा जाता थाऔर फक्र से बताया जाता था कि फलाने की शादी में ट्रांजिस्टर आया.:)

    जवाब देंहटाएं
  19. आपकी यह पोस्ट पढ़कर बहुत अच्छा लगा मेरे पापा को भी रेडियो का बहुत शौक है और उन्होने कई रेडियो खुद भी बनाये है... :)
    समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है।
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  20. वाह वाह ! रेडियो का भी क्या ज़माना था । जब तक ओन करते तब तक एक गाना तो निकल ही जाता था । फिर ट्रांजिस्टर आए । दो बैटरी डालकर कान से लगा लो । कान में अब भी लगते हैं लेकिन बस तार । ज़माना कितना बदल गया है ।

    जवाब देंहटाएं
  21. दिलाया है मुझे फिर याद वो जालिम, गुजरा जमाना रेडिओ का।
    वह फौजी भाईयों की पसंद, वह हवा महल, वह जबरदस्त आवाज के मालिक देवकी नंदनजी, वह खुद का दो बार दिल्ली विविध-भारती से गानों का प्रसारण, जिसमें घर-बाहर, मित्र-दोस्तों के नाम की लड़ी थी।
    आज भी मरफी का रेडिओ पड़ा है अपने दिल के खराब वाल्वों के साथ।
    आभार अतीत के गह्वर में गोता लगवाने के लिए।

    जवाब देंहटाएं
  22. बहुत दिन हुए रेडियो सुने।
    कभी कभी एफएम सुन लेता हूं।
    पर आपके इस पोस्‍ट ने रेडियो को फिर से सुनने की इच्‍छा जगा दी।

    जवाब देंहटाएं
  23. रेडियो सच में बहुत अच्छा माध्यम है, साथी है । रेडियो की लोकप्रियता आज भी है। भूली बिसरी बातें आलेख ने याद दिला दी।

    जवाब देंहटाएं
  24. रेडियो पर आपका आलेख अच्छा तो है ही , इस पोस्ट पर भेजी गई टिप्पणियां तो और जानदार है . ख़ुशी हुई यह जानकर कि अधिकांश ब्लागर रेडियो के दीवाने है , जो नहीं है वे पोस्ट पढ़ कर रेडियो के दीवाने हो गए . बधाई !
    2 अक्तूबर को रायपुर में पुनः आयोजित है रेडियो श्रोता सम्मलेन . इसमें अन्य प्रान्तों के श्रोता भी भाग लेंगें . उपरोक्त सभी ब्लागर इस श्रेणी के है . उन्हें भी सूचित करें .

    जवाब देंहटाएं
  25. वाह ! क्या सुनहरे दिन थे वो रेडियो के ..जब हमारी पुलिस- कालोनी में (इंदौर ) हमारे घर पर ही रेडियो हुआ करता था --और हर बुधवार को रात ८ बजे जब बिनाका गीतमाला आती थी तो सारा आँगन लोगो से भर जाता था ..! और अमिन साहनी की वो जादू भरी आवाज वाह ! क्या माहोल हुआ करता था ...
    उन दिनों मेरी बड़ी बहन इंदौर रेडियो स्टेशन में एंकर हुआ करती थी ---और मुझे हमेशा गोद में उठा वहाँ ले जाती थी .. जहां मैं विशमय से उन्हें श्रोताओ को रिकार्ड बजाकर सुनाते हुए देखा करती थी ....

    जवाब देंहटाएं
  26. आपको अग्रिम हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं. हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज से हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
    आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए...
    BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये
    MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये
    MITRA-MADHUR कृपया यहाँ चटका लगाये

    जवाब देंहटाएं
  27. रेडियो पर गाना सुनते हुये कार्य करने का अपना ही आनन्द है।

    जवाब देंहटाएं
  28. beshak... vo radio cylone, ameen sayani...urdu service....

    gazab tha lalit bhai vo zamana....
    or radio par bajta ek ek gana.....

    जवाब देंहटाएं
  29. आज भी 70 प्रतिशत से अधिक लोग रेडियो ही सुनते हैं। मनोरंजन का भरपूर उम्‍दा साधन।

    जवाब देंहटाएं
  30. रेडियो पर बहुत बढिया आलेख ..हमलोगों को अभी भी इसके कार्यक्रम अच्‍छे लगते हैं..
    रेडियो एक ऐसा यंत्र है जिसका इस्तेमाल करते हुए हम अपना काम भी कर सकते हैं.
    यह इसकी सबसे बडी विशेषता है .. टीवी और कंप्‍यूटर का उपयोग करते वक्‍त दूसरा काम नहीं किया जा सकता !!

    जवाब देंहटाएं
  31. redio ....hmare colony ke kai bchcho ne kaha'haan aunty ! naam bhi suna hai aur chitr bhi dekha hai' ha ha ha ikko baar gramophonwa pr bhi likkhe dalo na lalit bhaiya.yun bhi thahre hue paani me kankad marne ki aadt to hai hi aapki...beete kl ke galiyaron me ghoomane,ghoomaane ki aadt....bni rhe ha ha ha

    जवाब देंहटाएं