गुरुवार, 12 जुलाई 2012

पी.एच.डी की दुकान

कोयम्बटूर से ट्रेन में सवार हुआ, अपनी सीट संभाली। सामने की बर्थ पर सम्भ्रांत किस्म का एक जोड़ा बैठा था, जिसकी उमर 45 के आस पास होगी। 
उन्होने मुझसे पूछा कहां तक जा रहे हो? 
मैने कहा- विजयवाड़ा, तीन दिनों की तफ़री करने के लिए।
उनसे चर्चा में पता चला कि वे भी अपने पीएचडी के शोध कार्य से दिल्ली जा रहे हैं। 
पीएचडी का नाम सुनकर ही मेरे कान खड़े हो गए। शोध कर लेना और उसके बाद पीएचडी अवार्ड हो जाना बहुत टेढी खीर है। 
मुझे भी अपनी यादों मे झांकने का मौका मिल गया। मेरी पीएचडी की कहानी प्रारंभ हो गयी। एक चलचित्र सा घूम गया मेरी आँखो के सामने.................।
ऑफ़िस में घुसते ही देखा कि सामने एक चिकनी-चुपड़ी सी महिला आँखों पर चश्मा चढाए कुछ कागजों पर नजर डाल कर व्यस्त होने का ढोंग कर रही थी। उसने नजर उठाने की कोशिश भी नही की। दो व्यक्ति और उसके पास बैठे थे। वे भी उसकी ओर ताक रहे थे कि कुछ तो बोले?
मैने कहा-“नमस्ते मैम।“ उसने सिर उठाकर देखा जैसे कोई मरखण्डी भैंस अपने शिकार को देखती है और सोचती है कि अब इसे दूध नहीं निकालने दूंगी और दुलत्ती जरुर मारुंगी।
फ़िर उसने कहा-“बैठो, कुछ देर हो गयी तुम्हें, कहो कैसे आए हो?”
“मैम, मुझे शोध कार्य के लिए स्वीकृति मिल गयी है, चाहता हूं कि आप गाइड बनकर मुझे पीएचडी करा दें तो आपकी बड़ी मेहरबानी होगी।“
“अभी मेरे पास समय नही है, और भी दो लोगों की पीएचडी करा रही हूँ। बहुत ही सरदर्द का काम है किसी को पीएचडी कराना। कोई दूसरा गाइड देख लो।“
“मैम पीएचडी तो मुझे आपसे ही करनी है और कोई दूसरा गाइड कहां ढुंढते फ़िरुंगा। आप ही करा दें तो मेरे लिए सुविधाजनक होगा।“
“तुम्हारे लिए तो सुविधाजनक हो जाएगा, मै तो अपने लिए भी समय नहीं निकाल पाऊंगी। देखो ना! इसके अलावा मुझे कितना काम है? कभी सौंदर्य प्रतियोगिता में जाना पड़ता है तो कभी किसी विश्व स्तरीय सेमीनार में शिरकत करनी पड़ती है। कभी मेरे कार्यों को लेकर कोई सम्मान समारोह आयोजित होता है वहां जाना पड़ता है,अवकाश ही नहीं मिलता।“
“जब भी आपको अवकाश मिले, लेकिन मेरी पीएचडी आप ही कराएं, वैसे भी आप मेरे मित्र की रिश्तेदार हैं और उसी ने मुझे आपके पास भेजा है। अब जान पहचान वाले सहायता नहीं करेंगे तो कौन करेगा?”
“अरे किसने! बल्लु ने भेजा है तुम्हें। तब तो कराना ही पड़ेगा पीएचडी। उसने सब जानकारी तो दे दी होगी?”
“हां मैम! मै कुछ लाया हूँ आपके लिए।“
“क्या?”
मैने एक बैग से एक पैकेट निकाल उनकी ओर बढाया, उसने दांत निपोरते हुए उसे लपक लिया और अपनी ड्राअर के हवाले किया।
“ओके, फ़िर कल मिलते हैं सुबह आ जाना 8 बजे घर पे, मैं तुम्हे काम समझा दूंगी। विषय से संबंधित जानकारी भी दे दूंगी। क्युश्चनरी तैयार करनी पड़ेगी। तुम्हे सर्वे पर मेहनत तो करनी पड़ेगी।“
“मै सब तरह से तैयार हूँ मैम।“
दुसरे दिन मैं सुबह नहा धोकर भगवान के सामने दीया जला, पीएचडी की सफ़लता की कामना के लिए विनती करते हुए मैडम के समक्ष 8 बजे प्रस्तुत हो गया।
उन्होने देखते ही कहा-“ अच्छा आ गए तुम, चले आओ, तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी।“
मैडम ने मुझे टॉपिक समझाया, उस पर शोध कार्य कैसे करना है उसकी रुपरेखा बताई। मैं उनसे समझता रहा और सोचता रहा कि कितनी अच्छी गाइड मिली है, खूब कोआपरेट कर रही हैं। सुबह-सुबह सारे काम छोड़ कर मेरे लिए। ईश्वर ने मेरी सुन ली शायद मेरी पीएचडी जल्दी ही कम्पलीट हो जाएगी। पता नहीं कितने सद्विचार श्रद्धा के साथ मेरे मन में मैम के लिए उठ रहे थे। मैं उनसे शोध कार्य पर दिशा निर्देश लेकर घर पहुंचा और गणेश जी का नाम लेकर कार्य प्रारंभ कर दिया। विषय से संबंधित सामग्री जुटाने के अभियान पर निकल पड़ा।
एक दिन फ़ोन की घंटी बजी-“ ट्रीन-ट्रीन……. मैने फ़ोन उठाया तो उस तरफ़ मैम की आवाज आई-..हलोSSS , ललित…….,
“जी मैम नमस्ते, कैसी हैं?
……"मैं तो ठीक हूँ तुम्हे नहीं मालूम, आज को-गाइड डॉ.पी.के. मरे जी का जन्म दिन है"।
….."मुझे तो पता नही था मैम।"
………"अरे जब तुम्हे पीएचडी करना है तो सब् पता रखना चाहिए, कब मैम का जन्म दिन है? कब उनके बच्चों का,पति का, डोगी का, महरी का और कब उनकी वर्षगांठ है। आगे कौन सा त्यौहार आने वाला है?".........
-“जी मैम।“
…….अरे क्या जी मैम…..जी मैम लगा रखी है। अगर याद नहीं रखे तो हो गयी तुम्हारी पीएचडी।……..
“मैम क्या यह सब भी शोध पत्र में लिखना पड़ेगा,मेरे शोध से इनका क्या संबंध है?"
"..फ़िर तो हो गया तुम्हारा शोध कार्य! कैसे मूर्ख से पाला पड़ा है?. बल्लु ने कुछ नहीं बताया क्या तुम्हें? अरे भले ही तुम अपने शोध पर कार्य न करो लेकिन यह समझ लो, कुछ विशेष अवसरों पर गाईड को भेंट देनी पड़ती है समझे।“
“……….मैम मुझे तो यह पता ही नहीं था।“
--“अब से ध्यान रखो और जल्दी से डॉ.पी.के.मरे जी के यहां दो बढिया सी ब्रांडेड शर्ट और पैंट पहुंचा कर उन्हे विश करो।“ जोर से गुर्राकर मैम ने फ़ोन काट दिया।
मैंने 6 माह से कच्छे बनियान नहीं खरीदे थे और छेद वाले ही पहन कर काम चला रहा हूँ, किसी तरह पीएचडी हो जाए। दो साल से पेंट शर्ट नहीं खरीदी है, और ब्रांडेड का तो नाम ही नहीं मालूम। अब डॉ.पी.के. मरे के लिए ब्रांडेड पैंट शर्ट। जैसे ये अभी तक जन्म से नंगे ही घूम रहे है? हद हो गयी, मरता क्या न करता, ब्रांडेड पैंट शर्ट लेकर को-गाइड के यहां पहुंचा।
“प्रणाम सर, हैप्पी बर्थ डे सर,” कहते हुए मैने पैकेट सामने टेबल पर रख दिया।
इतनी देर में उनकी पत्नी आ गयी। उन्होने बैग को खोलकर देखा,फ़िर बोली-“इसमें तो साड़ी नहीं है। मैं अब कैसे मंदिर जाउंगी इनके साथ। आज की पूजा हम लोग जोड़े से करते हैं।“
“मुझे तो मैम ने इतना ही कहा था फ़ोन पर”-मैने गुद्दी खुजाते हुए कहा।
तभी डॉ.पी.के. मरे सर बोल पड़े-“कोई बात नहीं ललित, अभी इनका भी जन्मदिन आने वाला है 14 अगस्त को तब ले आना। अच्छा किया तुम आ गए, कुछ चाय-वाय, मिठाई आदि।“
“नहीं सर नहीं, घर से नास्ता करके आया था।“
“यह तो अच्छा काम है,घर से खाकर ही चलना चाहिए,खाली पेट नहीं निकलना चाहिए।“
“थैंक्यु सर, अब मैं चलता हूँ”-ये कह कर मैने उनसे विदा ली।
एक शाम को मैं घर में बैठा कुछ लिख रहा था अपने शोध प्रबंध पर, तभी कॉल बेल बजी। मैने दरवाजा खोला, सामने एक मरियला घेंट में कंठ लंगोट कसे वृध्द सा नवजवान खड़ा था।
"गुड़ इवनिंग सर, आपने मुझे पहचाना?"-उसने आते ही प्रश्न दागा
"नहीं, पहले तो कभी नहीं देखा आपको, आप कौन हैं?"
"अरे! आपने नहीं पहचाना, मुझे जीजाजी ने भेजा है आपके पास।"
"कौन जीजाजी? कहां के और किसके जीजाजी?"
"सर आप भी अच्छा मजाक कर लेते हैं, डॉ.पी.के. मरे जी मेरे जीजाजी हैं। उन्होने भेजा है आपके पास।"
"ऐसा कहों न, क्यों पहेलियां बुझाते हो? अंदर आओ, कैसे आना हुआ?"
"सर मैं जीवन बीमा करता हूँ, एक अच्छा मनी बैक पॉलिसी प्लान आया है, तो जीजाजी ने कहा कि एक पॉलिसी आपकी भी कर दूँ।"
"जब सर ने कह ही दिया है तो कर दो, अभी तो प्रिमियम भरने के लिए पैसे नहीं है"।
"कोई बात नहीं सर, आप पोस्ट डेटेड चेक दे दिजिए।बाकी काम मैं कर दूंगा। आप बस, यहाँ, यहाँ और यहाँ अपने दस्तखत कर दिजिए।"
दो लाख की जीवन बीमा पॉलिसी लेने के बाद मुर्दे ने पीछा छोड़ा। अब सर का साला है, इस लिए भुगतना पड़ गया, नहीं तो एकाध चमाट जड़ ही देता।
पीएचडी के पीछे और भी धंधे चलते हैं इसका मुझे पता आज ही चला। पूरा खानदान ही पीएचडी कराने में लगा है। जो भी मुर्गा मिले, झटके में ही निपटा डालो। 
गाँव में खेती किसानी करने वाले परिवार में जन्म लेने के बाद मेरे पिता ने सोचा कि मुझे पढा लिखाकर बड़ा आदमी बनाएंगे। इसके लिए उन्होने जी तोड़ मेहनत की। एक बेटा पढ लिख कर बड़ी नौकरी लग जाएगा तो घर का खर्च ढंग से चल जाएगा। यही सोच कर पिताजी परिवार का पेट काट कर मुझे पढाते रहे। हमारी पहुंच उपर तक नहीं है, बस अपना काम हाथ-पैर जोड़ कर निकाल लेते हैं। लेकिन इस पीएचडी के पचड़े ने तो पिताजी की माथे के पर बल ला दिए। रोज कुछ न कुछ फ़रमाईश पहुंच ही जाती है। फ़ोन पर गाइड यह नहीं पूछते कि शोध का कार्य कहां तक पहुंच गया है, उसमें कोई समस्या तो नहीं आ रही है। बाकी सारी फ़रमाइशें पहुंच जाती है।
एक दिन को-गाईड सर का फ़ोन आया—“क्या चल रहा है ललित?”
“प्रणाम सर सब कृपा है आपकी, ठीक चल रहा है।“
“तुम्हे मालूम है,मैम को एक सेमिनार में दिल्ली जाना है।“
“नहीं मालूम सर, मैम से भेंट हुए ही महीना हो गया।
“तो चलो हम बताए देते हैं उनके लिए तीन टिकिट करानी है दिल्ली की।
“कौन सी गाड़ी की सर?
“अरे गाड़ी नही, फ़्लाईट की।
"जी सर,लेकिन इतने पैसे मै कहां से लाउगां?"
“कहीं से भी लाओ अगर पीएचडी करनी है तो, टिकिट रिफ़ंडेबल होनी चाहिए, नान रिफ़ंडेबल नहीं। जी सर।
अब घर पहुच कर पिताजी से 36 हजार रुपए की मांग की तो उनका पारा चढ गया। लेकिन मेरा भला चाहते हुए, कहीं से 36 हजार की व्यवस्था करके दी। मैने दिल्ली की तीन टिकिट उनके हाथ में सौंप दी। कुछ दिनों बाद पता चला कि मैम तो दिल्ली गयी ही नहीं, हां! उनके हाथ में सोने के दो कंगन जरुर चमक रहे थे।
मैं दिन-रात पीएचडी खत्म होने की धुन में लगा रहता। मैम बड़े नखरे से सलाह देती। कभी पेपर पर आड़ी तिरछी लकीरें खींच देती और उसे डस्टबिन के हवाले कर देती। “इसको ऐसे नहीं ऐसे करके लाओ, तब सही रहेगा।“
एक दिन मुझे कहने लगी—“ तुम्हे मालुम है, जब रमेश ने पीएचडी कम्पलीट की तो उसने मुझे गिफ़्ट में क्या दिया?
“नहीं मैम।“
“उसने मुझे डायमंड की रिंग दी। जिसे देखकर मेरे पति भी बहुत खुश हुए। उनकी तमन्ना पूरी हो गयी, वे बरसों से मेरी अंगुली में डायमंड रिंग देखना चाहते थे। अब कह रहे थे कि इसके सैट के कानों के बुंदे हो जाते तो बहुत अच्छा रहता।“
“सो तो है मैम”-मैने कहा।
“अब यह तुम्हारी जिम्मेदारी है”- मैम ने एक कातिल मुस्कान डालते हुए कहा।
सुबह-सुबह दैनिक कार्यों में लगा हुआ था, सिगड़ी पर चावल चढा रखे थे, सब्जी सुधार रहा था। अकेले आदमी के लिए खाना बनाना भी खिट-खिट का काम है। जब भूख लगती है तब खाना बनाना शुरु करते हैं, खाना बनते ही भूख खत्म हो जाती है। बड़ी समस्याओं से सामना करना पड़ता है। तभी कॉल बेल बजती है, मैं दरवाजा खोलता हूँ, सामने एक गोरी चिट्टी नवयुवती खड़ी थी, कंधे पर बैग लटकाए एक बंकिम मुस्कान होठों पर लाते हुए बोली-
"ललित सर यहीं रहते हैं क्या? मुझे उनसे मिलना है।
"हां! कहिए मैं हूँ"
"डॉ.एस.लूटमारे मैम ने भेजा है आपके पास। वे मेरी बुआ जी हैं"।
"अच्छा, अच्छा वेरी नाईस, अंदर आओ बाहर क्यों खड़ी हो।" वह अंदर आ गयी और मुढे पर बैठ गयी।
"कहो, क्या संदेश भेजा है मैम ने?"
"संदेश कुछ ज्यादा बड़ा नहीं है,मैने अपने जेब खर्चे के लिए एक नेटवर्किंग कम्पनी ज्वाईन की है।"
"अच्छा, ठीक है।"
"हमारी कम्पनी का पैकेज 11300 रुपए का है, जिसमें दो लाख रुपए का मेडीक्लेम, देश विदेश के रिसोर्ट की मेम्बर शीप और अन्य सुविधाए हैं। अगर आप भी कुछ कमाना चाहते हैं तो दो मेम्बर और बनाईए, आपको प्रति मेम्बर 500 रुपए मिलेंगे। आपके पैसे भी निकल जाएंगे और कमाई भी हो जाएगी। कहिए कैसा रहेगा ये पैकेज आपके लिए?"
"सोचना पड़ेगा इसके लिए मुझे।"
"मैम ने आपका फ़ार्म भरकर दे दिया है मुझे और कहा है कि आपसे साईन करवा कर चेक ले आऊं।"
मरता क्या न करता पीएचडी जो करनी थी। 11300 का चेक भेंट चढाना पड़ा। को-गाइड के साले ने चंदन लगाया इधर गाइड की भतीजी ने गुलाल लगा दिया। पीएचडी जो कराए वो कम ही है।
सोच-सोच कर मेरे पैरों के नीचे की जमीन खिसकती जा रही थी। मुझे चक्कर आने लगा। धरती घूमती नजर आ रही थी। कहां पीएचडी के चक्कर में फ़ंस गया? कितने निष्ठुर हैं ये लोग जिन्हे लोग शिक्षा-विद मानकर सम्मान देते हैं उनका सुरसा मुख भी देख लो, सौ योजन से भी बड़ा हो चुका है। धीरे-धीरे इनकी मांग बढते जा रही है। मैं मझधार से वापस भी नहीं जा सकता और ये माफ़िया की तरह भयादोहन कर मुझे लूटे जा रहे हैं। इतने खतरनाक तो आतंकवादी भी नहीं है, वे तो एक बार लूट लेते हैं या प्राण हरण कर लेते हैं, परन्तु ये तो प्रतिदिन लूटते हैं और प्राण हरण करते हैं, बकरा किश्तों में।
घर की माली दशा की तरफ़ देखता हूँ तो पीएचडी की भेंट चढी पिताजी की दो एकड़ जमीन नीलाम होते हुए दिखती है। एक आशंका हमेशा खाए जाती है कि कहीं ऐसा न हो किसी अखबार में फ़िर किसान एक बार शीर्षक बन सुर्खियों मे आ जाए......... 
खटर खट खट खटर खट खट खट खट  ट्रेन के पहियों की आवाज कानों में फ़िर सुनाई देने लगती है। मुंह कड़ूवा हो रहा है। पुरानी यादों ने कसैला कर दिया……… एक फ़ैंटा देना भैया……… गाड़ी चल रही थी, मेरे जीवन की तरह……खटर खट खट खटर खट खट खट खट खटर

(डिस्कलैमर- इस व्यंग्य  का किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर कोई साम्यता पाई जाती है तो वह संयोग ही होगा)

63 टिप्‍पणियां:

  1. वो सहयात्री चेन पुलिंग कर उतर तो नहीं गया ?
    आगे से कभी पी एच डी कोई करे न बबुआ तो उसे किसी पुरुष गाईड के पास भेजना
    बिचारे की कुछ तो चमड़ी दमड़ी बचेगी ..
    एक मेरी शोध छात्रा है जमाना हो गया हाल चाल तक न पूछा :-(

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  2. हर जगह लूट-मार मची है .वि.वि में नियुक्तियाँ भी इसी व्यापार का हिस्सा हैं .दुखी काहे को हैं - पी एच डी पूरी हुई कि नहीं ?

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  3. पी एच डी के पीछे इतना कडवा अनुभव ?
    सच है तो यह पोस्‍ट कुछ सोंचने को बाध्‍य करती है ..

    आज पैसों के मोह से किसी क्षेत्र के लोग नहीं बच सके हैं !!

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  4. कितने निष्ठुर हैं ये लोग जिन्हे लोग शिक्षा-विद मानकर सम्मान देते हैं उनका सुरसा मुख भी देख लो, सौ योजन से भी बड़ा हो चुका है। - सहमत हूँ ललित भाई - ये दुकानदारी डरानेवाली है - याद आती है बहुत पहले की ये पंक्तियाँ -

    शिक्षक, वैद्य, वकील व नेता, प्रायः पत्थर से दिखते
    पत्थर-सा व्यवहार है उनका, वे किस्मत भी हैं लिखते
    सुमन भी पत्थर बन सकता, जब जग ये रीत निभाता है
    पत्थर बनता तब जवाब जब, प्रश्न ईंट-सा आता है

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    http://meraayeena.blogspot.com/
    http://maithilbhooshan.blogspot.com/

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  5. शिक्षाविद और डाक्टर!
    ये तो नेताओं से भी बड़े लुटरे खतरनाक लुटेरे है जो प्रत्यक्ष जनता की चमड़ी उधेड़ते है|

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  6. माटी के भगवान बने माटी के बनगे मनखे ,
    धरम, पीरा, मानवता भैया छन भर म भुलागे ...

    aaj din khushnuma hai bhai ji
    ADBHUT JIWAN SE JUDI SAHI KAHANI.

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  7. http://swapnamanjusha.blogspot.in/2012/06/blog-post_20.html

    पाकिस्तानी गाईड सस्ते पड़ते हैं

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  8. काफी हद तक वास्तविकताएं सामने आयीं हैं ....हाँ पीएच. डी. आज के दौर में एक मजाक बन चुकी है यह सत्य है ..चाहे वह गाइड हों या शोधार्थी सबके लिए पैसे ऐंठने का धंधा और कुछ नहीं ... लेकिन सभी लोग ऐसे नहीं होते.. इस मामले में बहुत खुशकिस्मत रहा हूं ......!

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  9. इतनी मशक्कत ...
    अच्छा हुआ पी एच डी का सिर्फ ख्वाब ही देखा हमने !

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  10. तस्‍वीर देख कर ही तसल्‍ली...

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  11. ईमेल से प्राप्त टिप्पणी

    जी.के. अवधिया
    8:52 am (7 मिनट पहले)

    मोर कम्प्यूटर में ब्लोगर के ब्लोग मन नइ खुलय, प्रॉक्सी में खोलके पढ़थँव। प्रॉक्सी से टिप्पणी नइ, तेखर सेती टिप्पणी ला मेल से भेजत हँव।

    "तो डॉ. ललित शर्मा, पी.एचडी. कबसे कहना शुरू करें आपको?" :)

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  12. वाह ! क्या जलवे तेरे पारो .... (डॉ.एस.लूटमारे ) काश, हमें भी कोई ऐसी डॉ मिली होती ..?

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  13. दुर महाराज ..नमवे लूटमारे था त फ़िर त इहे सब होना ही था

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  14. अरे हम तो पी.एच.डी. ले भी चुके..$५२०. २८ में...इसका पूरा लेखा जोखा हम छाप भी चुके थे..शायद हफ्ता भर पहिले...
    संजय जी ने लिंक भी दे दिया है...मेरी पी.एच.डी. विमोचन का..:)
    हम भी दे ही देते हैं...
    http://swapnamanjusha.blogspot.in/2012/06/blog-post_20.html
    कमेन्ट बोक्स उसपर भी खोल ही देते हैं शायद कोई पी.एच.डी. का मारा हो..:)
    डॉ. 'अदा'

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  15. पीएडी जो न कराये :)

    इस तरह की खोखली डिग्री लेकर जमीर कम्बख्त टैं बोल जाता होगा।

    वैसे वो जसपाल भट्टी का एक सीरियल था न फ्लॉप शो....उस में भी एक बंदा ऐसे ही पीएचडी के चक्कर में पिसा था...वो कड़ी आज फिर से याद हो आई, गाइड के घर का गैस सिलेंडर तक रिफिल करवाता था वह बंदा :)

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  16. VAH KYA BAT HAI ..//

    AAP JAISA VYAKTI BHI LUT GAYA TO HAM KAHAN JAYENGE SIR JI..

    TAKE CARE FOR NEXT TIME..

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  17. मेडम के लिए कुछ ग्राहक पटा लाते तो शायद रिबेट मिल जाता.

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  18. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  19. शिक्षा सिर्फ व्यापार बनकर रह गई है, ख़त्म हो चुकी है अब गुरु शिष्य की परंपरा, आजकल तो डिग्री भी खरीदने से मिलने लगी है, बस पैसे दे दो डिग्री ले लो. सहमत हूँ आपकी बात से...

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  20. आपकी बातों का हजारवॉं हिस्‍सा भी सच है तो भी गाइडों के प्रति जुगुप्‍सा भाव ही उपजता है।

    इतने 'समृध्‍द' अनुभवों के बाद तो आप भी एक 'परामर्श सेवा' शुरु कर सकते हैं - पी.एचडी. करने के इच्‍छुकों को गाइड करने की सेवा। :) :) :)

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  21. शीर्षक देख सोंचा था कि मैं भी आपके साथ पीएचडी करूँगा ...
    और अब ..
    हमें नहीं करनी पीएचडी !!

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  22. आपकी पोस्ट से विपरीत एक बात:- एक शोध छात्रा विवाह हो जाने की वजह से अपनी PhD पूरी नहीं कर पा रही थी उसने चाहा कि गाइड पैसे ले कर पूरा कर दे. गाइड के मना करने पर सब जगह बदनामी करी कि गाइड पैसे मांग रहे है.

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  23. शिक्षा के सरकारी दफ्तरीकरण और शिक्षकों के साहबीकरण पर ज़बरदस्त और गंभीर पोस्ट!

    सादर

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  24. कल 13/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  25. अच्छा हुआ , पी एच डी के चक्कर में नहीं पड़े |

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  26. बहुत बढियां व्यंग था...पर लूटो-खाओ शिक्षा पद्धति पर मार्मिक प्रहार भी है...वाकई शिक्षा को व्यापार ज्यादा और विद्या कम समझा जाने लगा है.. उत्तम लेखन हेतु बधाई

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  27. वाह ललित जी . आप तो कथा लिखने में भी माहिर हो गए हैं . काल्पनिक लेकिन यथार्थ के बहुत करीब .

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  28. अच्छा हुआ जो हमने पी एच डी के लिए सोचा भी नहीं .... बढ़िया व्यंग्य

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  29. ललित जी,,,,अब क्या सोचा है phd करने का है की नही,,,,,

    लाजबाब व्यंग ,,,,

    RECENT POST...: राजनीति,तेरे रूप अनेक,...

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  30. ट्रेन सफर के साथ बीना पीएचडी किये किये पीएचडी की उपाधी धारण करने के लिऐ बधाईया

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  31. चंदन गुलाल यूँ ही लग जाता है? :-)

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  32. Lo Sir Ji apne kaha or maine apna blog update kar diya hai...

    http://yayavar420.blogspot.in/

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  33. baap rey itne jhamaile hain phd ke ye to aaj hi pata chala.

    waise naam madam aur unke guide mr. ke bahut acchhe lage.

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  34. शिक्षा कारोबार से ज्यादा क्या है इस देश में..... यही हाल है स्कूल से लेकर शोध तक

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  35. जसपाल भट्टी के सीरियल की बात ही कुछ और थी !

    मुझे लगा कि केवल राम जी की टिप्पणी पढ़कर आप त्रुटि सुधार कर लेंगे और किसी ने आपसे कहा भी नहीं ! कृपया पीएच.डी. कर लें :)

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  36. हंसी हंसी में कड़वा सच बयाँ कर डाला....

    सादर
    अनु

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  37. @ali ji

    अब तो टोपी वाली फ़ोटो भी लग गयी। समझो हो गयी पीएचडी :))

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  38. बहुत ही दयनीय दशा है ...अगर यह केवल व्यंग है ...तब तो बहुत बढ़िया था ...लेकिन अगर वास्तविकता है ......तो बहुत शर्म की बात है ...क्या वाकई इंसान इतना गिर सकता है ...वितृष्णा हो रही है ...ऐसे लोगों से ...ऐसे समाज से जिसमें 'ऐसे' लोग भी बसते हैं ...मेरा भी मूंह कड़वा हो गया ...यहाँ तो फैंटा भी नहीं है ...पानी से ही काम चलाना पड़ेगा

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  39. यंग तो बड़ी ही रोचक है और सच भी लेकिन मेरा अनुभव पी एच दी का अच्छा रहा है और इस तरह के चुगल में नहीं फँसी

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  40. अच्छा हुआ जो हम अनपढ़ ही रह गए ...नहीं तो ये बेकार कि खटपट यूँ ही चलती रहती :)

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  41. साम्यता तो होनी ही है प्रभु...
    भीषण बमबारी.... पूरा खोल दिया आपने पापड़ वाले को.... :))
    सादर

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  42. यदि पीएचडी करने में इतनी कठिनाईयाँ हैं तो हम बिन पीएचडी भले।

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  43. बेहद चुटीले अंदाज में सत्य का अनावरण करता आलेख
    वास्तव में पीएच डी की दूकान भी अन्य दुकानों की तरह पोषित हो रही हैं.....ब्यंगात्मक भाषा शैली और दैनिक जीवन के बिम्बों के अत्यंत प्रभावी प्रयोग से अत्यंत आकर्षक और उत्सुकता से परिपूर्ण आलेख का संयोजन हुआ है.....
    शुभ कामनाएं !!!

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  44. रे जब तुम्हे पीएचडी करना है तो सब् पता रखना चाहिए, कब मैम का जन्म दिन है? कब उनके बच्चों का,पति का, डोगी का, महरी का और कब उनकी वर्षगांठ है। आगे कौन सा त्यौहार आने वाला है?".........

    HA HA HA HA HA ...ACHCHHA HUA JO P.hD. KARNE KI NAHIN SOCHI :)
    GHAZAB KA LEKH...

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  45. पी एच डी के पीछे इतना कडवा अनुभव ? अच्छा था कि चाहे जिस कारण से मैं ज्यादा नहीं पढ़ा

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  46. डाँ. पीके मरे और डाँ एस लूटमारे..


    हस हस कर पेट दुखने लगा..

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  47. भगवान बचाये ऐसी पी एच डी से ।

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  48. ओह... "डॉक्टर साहब" कहलवाने की फीस तो आज ही मालूम पड़ी प्रभु.....

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  49. I am searching on internet for best article and now i am find your article thank for sharing your experience
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