मंगलवार, 3 जून 2014

अचानकमार: बायसन ( गौर) से साक्षात्कार


बिलासपुर वन प्रभाग का उत्तर पश्चिमी वन विकास खण्‍ड, अचानकमार वन्‍य जीवन अभयारण्‍य भारत का एक समृद्ध अभयारण्‍य है। अचानकमार नाम कुछ अजीब सा लगता है, मैने इसके नामकरण के विषय में जानना चाहा तो प्राण चडडा  कहते हैं - "इस नाम के पीछे कई किंवदंतियाँ हैं। जैसे किसी ने शेर को अचानक मार दिया इसलिए लिए अचानकमार नाम पड़ा। इससे संबंध एक किंवदन्ति है कि वनवासियों ने आवास के लिए अचानक जंगल काट डाला इसलिए अचानकमार कहा जाने लगा।" वैसे नाम के साथ पुर जुड़ने पर यह नाम अधिक पुराना नहीं लगता है। फ़िर भी नाम के प्रति जिज्ञासा बनी रहती है। 
 अभ्यारण्य का छपरवा गाँव
"राहुल सिंह कहते हैं कि अचानकमार शब्‍द स्‍पष्‍टतः ‘अचानक’ और ‘मार’, इन दो शब्‍दों से मिल कर बना है। अचानक के साथ पुर जुड़कर छत्‍तीसगढ़ में जंगली इलाकों में ग्राम नाम बनते हैं- अचानकपुर। ध्‍यान देने योग्‍य है कि पुर शब्‍द भी यहां पुराने प्रचलन का नहीं है। अब दूसरे शब्‍द ‘मार’ के बारे में सोचें। मार या इससे जुड़े एकदम करीब के शब्‍द हैं- सुअरमार या सुअरमाल, बाघमड़ा, भालूमाड़ा, अबुझमाड़ (अबुझ भी अचानक की तरह ही अजनबी सा शब्‍द लगता है), जोगीमारा (सरगुजा), प्राचीन स्‍थल माड़ा (सीधी-सिंगरौली में कोरिया जिले की सीमा के पास)। इन पर विचार करने से स्‍पष्‍ट होता है कि ‘मार’ या इसके करीब के शब्‍द पहाड़, पहाड़ी गुफा, स्‍थान (जिसे ठांव, ठांह या ठिहां भी कहा जाता है) जैसा कुछ अर्थ होगा, मरने-मारने से खास कुछ लेना-देना नहीं है इस शब्‍द का।"
"दियाबार" जंगल को जाता हुआ वन मार्ग
अचानकमार का वन क्षेत्र तो सहस्त्राब्दियों पुराना है पर इसे अभ्यारण्य के तौर पर 1975 में तैयार किया गया था। फ़िर इसे टायगर रिजर्व क्षेत्र घोषित किया गया और यह संरक्षित क्षेत्र हो गया।  वन विभाग के अनुसार 557.55 वर्ग किलो मीटर के क्षेत्रफल में फ़ैले इस अभ्यारण्य में अनेक प्रकार के वन प्राणी पाए जाते हैं जिनमें चीतल, जंगली भालू, तेंदुआ, बाघ, पट्टीदार हाईना (लकड़ बग्घा) भेड़िया, जंगली कुत्ते, चार सिंग वाले एंटीलॉप, चिंकारा, ब्लैक बग, जंगली सुअर के साथ अनेक प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं। यहाँ बाघों की संख्या सर्वाधिक मानी जाती है। फ़रवरी 2011 में यहाँ दुर्लभ काला तेंदुआ मिला। जिसकी जानकारी वाईल्ड लाईफ़ ऑफ़ इंडिया की टीम के कैमरों से हुई। जहाँ आमतौर पर रोशनी नहीं पहुंच पाती वहीं काले तेंदुए पाए जाते हैं। अचानकमार जंगल के एक भाग को "दियाबार" जंगल कहा जाता है। इससे साबित होता है कि यह जंगल इतना घना है कि दिन के समय भी देखने के लिए दीए का सहारा लेना पड़ता है।
मैकूमठ - स्मृति
रास्ते में एक स्मारक दिखाई देता है जिस पर "मैकू मठ" लिखा हुआ है। हम गाड़ी रोकते हैं और मैकू मठ की फ़ोटो लेते हैं। अचानकमार वन के लिए मैकू का मठ महत्वपूर्ण है क्योंकि मैकू ने वन संरक्षण कर्तव्य का निर्वहन करते हुए प्राण गंवाए थे। मठ पर लिखा है कि "यहाँ मैकू गोंड़ फ़ायर वाचर को आदमखोर शेरनी ने ता 10/4/1949 को मारा था, जिसे ता 13/4/1949 को श्री एम डब्लू के खोखर रेंज ऑफ़िसर कोटा ने मरी पर बैठकर गोली से मारा।" यह स्थान अभी भी शेरों का ही है। शेर पीढी दर पीढी अपना इलाका नहीं छोड़ते। प्राण चड्डा जी कहते है कि अभी अचानकमार में लगभग 13 शेरों की उपस्थिति दर्ज की गई है। कुछ शेरों की फ़ोटो वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इण्डिया (डब्ल्यू डब्ल्यू आई) की टीम ने बाघों की गणना के लिए लगाए गए कैमरों से ली हैं। कुछ की गणना पदचिन्हों के आधार पर की गई है। 
ऐसा ही होता है टाईगर ;)
अचानकमार अभ्यारण्य में अधिकतर बैगा आदिवासी निवास करते हैं। जिनका जीवन वनोपज पर ही आधारित है। इस वन को टायगर रिजर्व घोषित करने के बाद इनके जीवन पर संकट मंडरा रहा है। क्योंकि सरकार इनका विस्थापन वन क्षेत्र के बाहर करना चाहती है। अचानकमार वन्य प्राणी अभ्यारण्य के कोर एरिया में बैगाओं के 25 गांव प्रभावित हुए हैं। पहले चरण के विस्थापन का प्रारंभ वन विभाग ने छह गांव जल्दा, कूबा, सांभरधसान, बोकराकछार, बांकल, बहाउड़ से किया। परन्तु विस्थापन के नियमों के पालन नहीं करने का आरोप इन पर लगते रहा। विस्थापित किए गए बैगाओं को वे सुविधाएं नहीं मिली जिनका दावा किया जाता रहा है। दूसरे चरण में अन्य गाँवों को विस्थापित किया जाना है परन्तु विस्थापन के लिए सरकार के पास न जमीन है न पैसा। कुल मिलाकर विस्थापन अधर में लटका हुआ है और इसके साथ विस्थापित होने वालों की जान भी सांसत में है।
बैगा परिवार 
आगे चलकर छपरवा गाँव आता है, जहाँ वन विभाग का विश्राम गृह होता था। अब इसे बंद कर दिया गया है तथा रात रुकना प्रतिबंधित कर दिया गया है। यहाँ से अमरकंटक 55 किलोमीटर की दूरी पर है। छपरवा से आगे बढने के बाद घाट की चढाई पड़ती है, मैं तो अपनी बातों में मशगूल था, अचानक तिलाई डबरा के पास प्राण चड्डा की निगाह सड़क के किनारे पड़ती है और वे गाड़ी रोकने का इशारा करते हैं। सड़क के किनारे खाई में एक बायसन (गौर) पत्ते चरता हुआ दिखाई देता है। हम बिना आवाज किए उसके कुछ चित्र लेते हैं। घनी झाड़ियों के बीच मेहनत करने के बाद कुछ चित्र ही अच्छे लेने में सफ़ल होते हैं। प्राण चड्डा कहते हैं - इसे देखने के लिए लोग आते हैं और 4-5 दिन घूमने के बाद भी दिखाई नहीं देता, हम लोगों को सहज ही सड़क के किनारे चलता हुआ मिल गया, यात्रा सफ़ल हो गई। 
अचानकमार का बायसन (गौर)
बायसन (गौर) संरक्षित प्रजाति का पशु है, यह उष्णकटिबंधिय क्षेत्र में पाया जाता है। आकार में बड़ा होने के साथ संवेदनशील होता है। इसका वजन 700 से 1500 किलोग्राम तक हो सकता है। इसकी मुख्य पहचान घुटने तक सफ़ेद मोजे, बड़े सींग, काल रंग अंतर जोड़ों पर गहरा भूरा रंग लिए, मुंह और माथा सफ़ेद होना है। यह घास, पत्तियां, टहनियाँ खाकर अपना पेट भरता है। इसे जान का खतरा लगने पर हमला कर देता है, शेर भी इसे देखकर पीछे हट जाते हैं। 25 वर्षों पूर्व एक वनविभाग के अधिकारी ने समीप से फ़ोटो खींचनी चाही तो उसे हमला कर के जान से मार डाला। इसे दूर से ही देखने में भलाई है। मुफ़्त में खतरा मोल नहीं लेना चाहिए। बस्तर के माड़िया आदिवासी गौर सींग से बने मुकुट को पहन कर परम्परागत गौर नृत्य करते हैं। कारवां आगे बढ रहा है, सफ़र जारी है……… आगे पढें

9 टिप्‍पणियां:

  1. दियाबार के बुद्धू बइगा की कहानी भी मजेदार है, चड्ढा जी के सहकर्मी श्री राजू तिवारी सुनाया करते हैं यह कहानी.

    जवाब देंहटाएं
  2. गौर भैंसे सा दिख रहा है !
    रोचक जानकारी !

    जवाब देंहटाएं
  3. मैंने सोचा था कि अचानक आकर किसी बाघ ने किसी आदमी को मार डाला होगा

    जवाब देंहटाएं
  4. हमारे लिए एक नई जगह की जानकारी..... पहले कभी नहीं सुना था इस जगह के बारे....

    गौर के बारे में पहले डिस्कवरी चैनल पर देखा था , आज आपके ब्लॉग पर जानकारी हुई...

    जवाब देंहटाएं
  5. हाँ एक बात और ! यह टाइगर का फोटो जो आपने इस ब्लॉग पर लगाया है वो आपने इसी जंगल में से लिया था या फिर और कही से.... ??

    जवाब देंहटाएं
  6. सचमुच अचानकमार नाम बहुत अजीब सा लगा .... ये जंगली भैंसा तो बहुत खतरनाक होता है शेर तक इससे डरता है। बढ़िया जानकारी और सुन्दर चित्र

    जवाब देंहटाएं
  7. सही है, बायसन की भयंकरता कई बार पढी सुनी भी है :)

    जवाब देंहटाएं
  8. ये जंगली भैंसा तो बहुत खतरनाक होता है ललित शर्मा शेर तक इससे डरता है।

    जवाब देंहटाएं