मंगलवार, 8 जुलाई 2014

टप्पा रामपुर महरी जमीदारी में एक दिन

पृथ्वी पर सुरम्य सरगुजा अंचल निर्मित कर प्रकृति ने मानव को अनुपम उपहार दिया है यहाँ कोयल की कूक से लेकर इन्द्र के एरावत की चिंघाड़ आज भी सुनाई देती है। अपने मनभावन आवास सरगुजा के सघन वनों में हाथी आज भी स्वच्छंद विचरण करते हैं। मेहनतकश सरल एवं सहज निवासियों की धरती सरगुजा रियासत के अंतर्गत टप्पा रामपुर महरी जमीदारी थी, जिसका मुख्यालय गढ़ लखनपुर नामक स्थान था। रियासतें खत्म हो गई पर उनके अवशेष और रियासतकालीन परम्पराएं आज भी कायम हैं। गढ़ लखनपुर राष्ट्रीय राजमार्ग 111 पर 23अंश 00’46.93” उत्तरी अक्षांश एवं 83अंश03’94.32” पूर्वी देशांश पर स्थित है। 
लखनपुर पैलेस
रामपुर के 170 एवं महरी 80 गाँव मिलाकर कुल 250 गाँव लखनपुर जमींदारी द्वारा शासित होते थे। संयोग से इस जमीदारी में जयपुर, जोधपुर, उदयपुर नामक गाँव भी हैं जो राजस्थान की रियासतों की याद दिलाते हैं। रामगढ़ की शोध यात्रा के दौरान मेरा गढ़ लखनपुर जाना हुआ। कभी रामगढ़ भी लखनपुर जमीदारी का एक हिस्सा था। हम राष्ट्रीय राजमार्ग से बांए तरफ़ पैलेस मार्ग पर चलकर गढ़ लखनपुर पहुंचते हैं। सुबह की गुनगुनी धूप में वर्तमान अर्कसेल राजवंश के जमींदार लाल बहादुर अजीत सिंह बगीचे में कुर्सी डाले बैठे थे ( इन्हे स्थानीय लोग लाल जी बाबा के नाम से संबोधित करते हैं) । आस-पास के गांवों से 8-10 ग्रामीण उनके समक्ष अपनी समस्या लेकर आए हुए थे। वे उनकी समस्या सुनकर समाधान के लिए अपने ज्येष्ठ पुत्र कुमार अमित सिंह देव को आवश्यक निर्देश दे रहे थे। इससे जाहिर है कि आज भी वे अपनी रियाया के दु:ख दर्द को बांटते हैं और हर संभव सहायता करते हैं।
पुराने कारागार के खंडहर - स्टेट लखनपुर
उनसे अभिवादन के बाद मैं समीप में रखी हुई कुर्सी पर बैठ जाता हूँ और उनसे चर्चा प्रारंभ होती है। उन्होने कहा - "मैं आपके लेख पढता रहता हूँ, अच्छा लिखते हैं आप।" तभी मुझे याद आता है कि " सिरपुर एक सैलानी की नजर से" मेरी नई पुस्तक मेरे बैग मे हैं, वह पुस्तक उन्हें भेंट करता हूँ। उनका पुस्तकीय प्रेम मुझे बहुत भाता है। वे लगभग सभी साहित्यकारों की पुस्तकें पढते हैं, पुस्तकों से उन्हें बहुत लगाव है। कुछ देर बाद इसका मूल कारण भी समझ आ गया, उन्होने कहा - "मेरी उच्चशिक्षा सन् 1965 से 70 तक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में हुई।" सहस्त्राब्दियों से बनारस साहित्य और संस्कृति की राजधानी रहा है, ऐसे महत्वपूर्ण शिक्षा के केन्द्र में शिक्षा ग्रहण करने से अवश्य ही साहित्य के प्रति रुझान हो जाता है।
वर्तमान राजा लाल बहादुर अजीत सिंह देव- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के स्नात्कोत्तर उपाधि प्राप्त
चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा चलते रहती है। लखनपुर के विषय में एक कहावत है कि "लखनपुर के लाख तरिया"। इस कहावत में लखनपुर में लाख तालाब होने की बात कही जाती है। लाल जी बाबा कहते हैं - लाख तालाब तो नहीं है परन्तु हमारे पूर्वजों ने अकाल के समय जनता को काम देने और जल संसाधन विकसित करने की दृष्टि से यहां कई तालाब खुदवाए थे। जिससे उन्हें अकाल से राहत मिले।" तालाब के विषय में एक जनश्रुति भी सुनाई देती है कि बनारस के राजा लाखन सिंह के कोई पुत्र नहीं था। उन्होने पुत्र प्राप्ति हेतु संकल्प किया कि प्रतिदिन एक तालाब खुदवा कर जल ग्रहण करेगें। इस तरह उन्होने लखनपुर क्षेत्र में 360 तालाब खुदवाए थे।
लाल बहादुर अमरेश प्रताप सिंह देव
टप्पा रामपुर महरी जमींदारी गढ़ लखनपुर के विषय में स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार त्रिपुरारी पाण्डे कहते है - "टप्पा रामपुर महरी जमींदारी का 600 वर्षों का इतिहास मिलता है। सरगुजा महाराजा अमर सिंह देव ने अपने अनुज विशेश्वर बखश सिंह देव को यह जमींदारी दी, ये सरगुजा राज के खरपोशदार थे। उन्होने यहां पैलेस एवं कुलदेवी कात्यायनी के मंदिर का निर्माण कराया था। परम्परा अनुसार ज्येष्ठ पुत्र को ही गद्दी दी जाती है। इसी परम्परा में क्रमश महेश्वरी प्रसाद, रामप्रताप सिंह, हरप्रसाद सिंह अवधेन्द्र प्रसाद सिंह ने गद्दी संभाली। इसके पश्चात अमरेश प्रसाद सिंह देव ने कुछ दिनों तक गद्दी संभाली फ़िर स्टेट का विलय भारत संघ में हो गया। अमरेश प्रसाद सिंह देव के पश्चात लाल बहादुर अजीत सिंह देव वर्तमान में राजपरिवार के मुखिया का दायित्व निर्वहन कर रहे हैं।"
लाल बहादुर अवधेन्द्र प्रताप सिंह देव
पूर्ववर्ती राजाओं ने यहां शासन करते हुए अपने पूर्वजों की आज्ञानुसार महामाया मंदिर का जीर्णोद्धार, ठाकुर बाड़ी, शिवालय के निर्माण के साथ ही महेशपुर, देवगढ़ के मंदिरों की देख-रेख एवं पूजा अर्चना इनके सहयोग से अनवरत जारी है। लाल जी बाबा के ज्येष्ठ पुत्र तथा गढ़ लखनपुर के आठवीं पीढी के कुमार अमित सिंह देव मिलनसार व्यक्तित्व के धनी एवं स्थानीय राजनीति में सक्रीय है। वे पूर्व में नगरपंचायत के निर्दलीय पार्षद एवं वर्तमान में जनपद सदस्य हैं। ग्रामीण क्षेत्र में इनके सदव्यवहार की चर्चा होती है। 
स्टेट लखनपुर की आठवीं पीढी कुमार अमित सिंह देव
टप्पा रामपुर महरी के जमींदार को द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट के रुप में प्रजा को न्याय देने एवं अपराधियों को दंड देने का अधिकार था। इन्हें 4-5 माह की सजा देने का अधिकार सरगुजा रियासत के महाराजा की ओर से प्रदत्त था। और कैदी यहां पैलेस के बगल में बनी जेल में रखे जाते थे। बड़े संगीन अपराधी सरगुजा के बड़े जज की अदालत में भेजे जाते थे। पूरे क्षेत्र में कोरवा-पंडो आदिवासी राजा द्वारा प्रदत्त सुरक्षा कर्मियों की वर्दी पहनकर पहरेदारी करते थे। राजा न्यायप्रिय थे और चोर-बदमाशों की कोड़ों से पिटाई की जाती थी, जिससे डरकर यहां अपराध नहीं होते थे।

चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा सम्पन्न होती है, लाल जी बाबा मुझे पुन: पधारने के लिए कहते हैं। मैं उनसे आगे की यात्रा के लिए आज्ञा लेता हूँ और चल पड़ता हूँ रामगढ़ की ओर……। 

6 टिप्‍पणियां:

  1. अनन्य प्रेम और आपके संकलन को प्रणाम

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  2. सरगुजा के लखनपुर से अवगत हुए. आभार.

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  3. लखनपुर स्टेट की बहुत बढ़िया ज्ञानवर्धक जानकारी सुन्दर दुर्लभ चित्रों के साथ देखना सुखद लगा ..
    आभार

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  4. बहुत ही शानदार प्रस्तुतिकरण , धन्यवाद .

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