रविवार, 19 अप्रैल 2015

कोणार्क का अठपहरिया : कलिंग यात्रा


हमारे समक्ष दो-दो सूर्य रथ थे। एक धरा पर समक्ष और दूसरा आकाश से सिर पर तप रहा था। जहाँ पाषाण होते हैं, वहां सर्दी-गर्मी में सहज ही वृद्धि हो जाती है। सूर्य की दो पत्नियाँ हैं, पहली प्रभा और दूसरी छाया। प्रभा तो सूर्य के साथ रथ पर सवार थी और छाया जो शीतलता देती है, वह कहीं निद्रालीन हो गई, क्योंकि सूर्य मंदिर मंदिर में छाया दिखाई नहीं दे रही थी। छाया देवी ही मातृरुप वत्सल हैं, जो सूर्य के कोप से जन की रक्षा करती हैं। सूर्य का हृदय पिता के समान कठोर है तो छाया का हृदय माता भगवती के जैसा स्नेहील और ममत्व भरा। हम चूक गए उनका स्नेह पाने से। खैर दिन ढलने लगेगा तो छाया देवी पुन: सक्रीय हो जाएगी अपना आंचल फ़ैला कर और सूर्य के कोप से कुछ राहत मिलेगी।
नाट मंडप एवं जगमोहन (भोग मंडप)
हमारे द्वारा नाट मंडप की पैड़ियाँ उतरने के बाद समक्ष विशाल जगमोहन दिखाई देता है। कलिंग निर्माण शैली में मंदिरों में मंडप के स्थान पर जगमोहन निर्मित करने की परम्परा है। नाट मंडप एवं जगमोहन के मध्य प्रांगन में अरुण स्तंभ लगा हुआ था। इस स्तंभ पर गरुड़ विराजमान हैं। विक्रम कहता है कि इस अरुण स्तंभ को मराठा शासन के समय एक मराठा साधू उखाड़ कर ले गया और उसे 21 मील दूर पुरी के जगन्नाथ मंदिर के समक्ष स्थापित कर दिया। दरअसल यह मंदिर भग्न हो चुका था और इस स्थान पर घनघोर प्राकृतिक जंगल बन गया तथा यह स्थान चोर डकैतों की शरण भी हो गया। इसलिए इस मंदिर की सामग्री का उपयोग पुरी के जगन्नाथ मंदिर में किया गया।
अरुण स्तंभ पुरी : कहते हैं इसे कोणार्क से लाया गया
हमारे सामने सूर्य विशाल रथ खड़ा है, जिसमें एक तरफ़ तीन एवं दूसरी तरफ़ चार अश्व जुते हैं। अश्वों के अगले पैर हवा में है अर्थात अर्करथ वायू की गति से उड़ता जा रहा है। यह समय चक्र का प्रतीक है, समय भी तीव्र गति से उड़ रहा है। सप्ताश्व सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं। समय चक्र और सूर्य रथ की गति, दोनो समान है। मैं सूर्य मंदिर निर्माता शिल्पकारों की कुशलता पर मुग्ध था। इस विशाल संरचना के निर्माण के लिए उन्होने सटीक योजना बनाई थी। निर्माण कार्य में प्राचीन काल से गोली, गुनिया, लेबल, सूत नामक चार उपकरणों का प्रयोग किया जाता है, जो दिखने में तो साधारण है, पर इनके बिना किसी भी निर्माण की कल्पना नहीं की जा सकती है। भले ही वर्तमान में इंजीनियरिंग कीर्तिमान गढ़ रही हो पर इन साधारण से उपकरणों का प्रयोग आज भी छोटे से लेकर बड़े निर्माण में होता है।
अर्क रथ एवं उसमें जुते अश्व
खड़ी भींत की सीधाई नापने के लिए धागे में धातू की गोली लटका कर भींत की सिधाई नापी जाती है। गुनिया कोण नापने के काम आता है। वास्तु शास्त्र में इस उपकरण का अत्यधिक महत्व है। मयमत्तम कहता है कि किसी भी भवन के कोण 90 अंश के ही होने चाहिए, न्यून या अधिक होने पर वास्तु दोष उत्पन्न हो जाता है। लेबल नामक उपकरण तल को सम (बराबर) करता है तथा सूत या धागा अन्य भिन्न कार्यों में प्रयोग होता है। इससे गुनिए से लेकर गोलाई बनाने के लिए प्रकार का कार्य भी लिया जाता है। खैर इन उपकरणों से आगे बढ़ें तो देखते हैं कि निर्माण छोटी से लेकर बड़े प्रस्तर खंडो का प्रयोग हुआ है। जो लेट्राईट, खंडोलाईट एवं क्लोराईट के हैं। समय की मार से लेट्राईट खंड जल्दी ही तबाह हो जाते हैं। वैसे भी इस इलाके में भवन निर्माण में वर्तमान में भी लेट्राईट के खंडो का प्रयोग होता दिखाई देता है।
समय चक्र (अठप्रहरी)
भोग मंडप (जगमोहन) एवं देऊल (गर्भ गृह) एक ही जगती (अधिष्ठान) पर निर्मित हैं। भूतल से अधिष्ठान तक पहुंचने के लिए 14 पैड़ियों का निर्माण किया गया है, ये जीर्णोद्धार होने के कारण कम ज्यादा भी हो सकती हैं और भोग मंडप के मुख्य द्वार तक पहुंचने के लिए जगती पर 7 पैड़ियों का निर्माण हुआ है। जगती में दोनो ओर बारह-बारह, कुल 24 चक्रों का निर्माण किया गया है। इन चक्रों को हम आभुषण मान सकते हैं। प्रत्येक चक्र स्वयं में बहुत ही मनमोहक अलंकरण है। हम दर्शन कार्य जगती के बाईं तरफ़ से प्रारंभ करते हैं। जगती के नीचे गजथर निर्मित है, जिसमें विभिन्न मुद्राओं में हाथियों का सजीव चित्रण किया गया है। इन हाथियों की संख्या लगभग दो हजार होगी। 
बहुत कुछ खास है कोणार्क में
गजथर के उपर की पंक्ति में प्रतिमाएं निर्मित की गई है, जिनमें देवी-देवता, नर, किन्नर, गंधर्व, अप्सराएं, भिन्न भिन्न भाव भंगिमा युक्त नारी चित्रण मनमोहक है। हम देखें तो सारा संसार ही सूर्य रथ पर विद्यमान है। तत्कालीन समाज की एक झांकी यहाँ उत्कीर्ण है, ऐसा लगता है कि समय का रथ यहीं आकर ठहर गया और लोगों को कहता है कि आओ देखो, जानो हमारे सामाजिक क्रिया कलापों को,  हमारे रहन सहन को और हमारी निर्माण क्षमता के समक्ष नतमस्तक हो जाओ। सूर्यरथ के सप्ताश्व सप्ताह के सातों दिनों का प्रतिनिधित्व करते हैं और 24 चक्र वर्ष के 24 पक्षों का। सूर्य रथ का कैलेंडर प्राचीन भारतीय पंचाग की गणना के हिसाब से चल रहा है। न यहाँ आगस्टस है और न जुलियस सीजर, है तो सिर्फ़ राजा विक्रम और काल चक्र………। जारी है, आगे पढ़ें……

2 टिप्‍पणियां:

  1. एक बार फिर से आपने कोणार्क मंदिर घुमा दिया...हम तो नक्काशी देखकर वापस आ गए...आपने शिल्प की बारीकी बता कर इसे रोचक और ज्ञानवर्धक बना दिया. बधाई.

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