बुधवार, 25 नवंबर 2015

महोदधि स्नान से उपजा ज्ञान - कलिंग यात्रा

हम धूप होने से पहले पुरी पहुंचना चाहते थे, इसलिए सुबह जल्दी उठकर पुरी जाने के लिए तैयार हो गई। पुरी जाने वाली बस सांतरापुर से ही जाती हैं, हमने सड़क पर पहुंचकर आठ बजे पुरी की बस में चढ गए। बस ने हमें लगभग डेढ घंटे में पुरी पहुंचा दिया। बस स्टैंण्ड पहुंच कर हमें पहले होटल पकड़ना था। एक ऑटो वाला तैयार हो गया पचास रुपए में समुद्र तट तक होटल पहुंचाने के लिए। पहले उसने अपनी पहचान के होटल लॉज दिखाए, पर हमें पसंद नहीं आए। बिकास बाबू वहीं पास के एक होटल का पता रखे हुए थे शायद अजंता होटल जैसा नाम था। वह पाँच सौ रुपए में रुम देने के लिए तैयार हुआ। हमने एक रुम लिया और समुद्र तट पर पहुंच गए जलक्रीड़ा करने के लिए। 
महोदधि: विहंगम दृष्टि
मौसम अच्छा था और हवा भी मंद चल रही थी जिससे समुद्र में लहरें छोटी ही थी। मेरे मन में समुद्र में तैरने की इच्छा थी, पर विकाश बाबू उसके खिलाफ़ थे, वे छेना गाजा, छेना पोड़ा तलाश रहे थे। समुद्र के किनारे छतरियों के साथ कुर्सियां भी लगी हुई थी। यहाँ बैठकर समुद्र के नजारे लिए जा सकते थे। पूछने पर पता चला कि एक घंटे का किराया बीस रुपए है। हमने एक जगह कुर्सियां खाली देख कर कब्जा जमाया और सामान रख दिया। बिकास बाबू कैमरा संभाल स्थान ग्रहण कर लिए और हम समुद्र में उतर गए। किनारे पर काफ़ी संख्या में पर्यटक जलक्रीड़ा कर रहे थे। 
ऊंट खरीदने के लिए मोलभाव करते बिकाश शर्मा
तालाब, पोखर, नदी के तैरने वालों का घुटने भर पानी से मन नहीं भरता। इसलिए हम और आगे चले गए। बिकाश बाबू कैमरे से फ़ोटो खींच रहे थे। आगे चलकर जब कंधे भर पानी आ गया तब लहरों पर खेलने लगे, बड़ा ही आनंद आ रहा था। महोदधि की महाजलराशि मन को तरंगित कर रही थी और लहरों के साथ लयबद्ध खेल जारी था। तभी अचानक एक बड़ी लहर आई और उसने हमें दबोच लिया। हम पानी के भीतर पैर मार रहे थे पर थाह नहीं मिल रही थी। सांस भर गया, बड़ी मुस्किल से पानी से बाहर आए और जल्दी जल्दी हाथ पैर मार कर किनारे आ गए। एक झटके में ही ज्ञान की प्राप्ति हो गई। समुद्र में तीन लहरें दिखाई देती है, किनारे की पहली लहर बुलाती है, दूसरी मध्य की लहर खिलाती है और तीसरी लहर डुबाती है, अब सबक सीख लिए कि कभी तीसरी लहर से खेला नहीं करना है।
महोदधि स्नान एवं क्रीड़ा
किनारे पर पहुंचने के बाद छतरी तले कुर्सी पर दम साधने बैठ गए। हमारी कुर्सियों के मालिक का नाम एम दिलीप था। समुद्र का आनंद लेते हुए उनसे बातचीत प्रारंभ हुई। दिलीप लाईफ़ गार्ड है, छत्रछाया देने के साथ समंदर में डूबने वालों की जान बचाने का काम भी करते हैं। कुछ लोग लहरों से खेलते हुए गहराई में चले जाते हैं इन पर दिलीप की निगाहें लगी रहती है और डूबने का संकेत मिलते ही यह समंदर में छलांग लगा देते है और उन्हें बचा कर ले आते हैं। इसकी एवज में बख्शीश के  सौ पचास रुपए मिल जाते हैं साथ ही छतरी से भी दोपहर तक 100-200 कमा लेते हैं। दोपहर के बाद समंदर में मछली मारने चला जाते हैं। 
ऊंट खरीदते ही बिजनेश शुरु
मच्छंदर कुल के इसके पूर्वज आन्ध्र प्रदेश से आए थे, तेलगु भाषी है। दोपहर को कुछ पैसे मिलने के बाद 30 रुपए गिलास  के हिसाब से बिक रही गुड़ की देशी दारु का मजा लेते हैं। कहते है कि- अंग्रेजी दारु महंगी मिलती है और उसमें मजा नहीं आता तथा ताड़ी जल्दी उतर जाती है। इनने सिर पर टोपी लगा रखी है, उस पर लाईफ़ गार्ड लिख रखा है। लाईफ़ गार्ड का लायसेंस सरकार देती है पर इसके एवज में कुछ भी मानदेय नहीं मिलता। लाईफ़ गार्ड का कार्य इन्हें वालेन्टरी करना पड़ता है। जो कुछ कमाई होती है वह छत्रछाया से होती है। 
लाईफ़ गार्ड दिलीप एवं लेखक
दिलीप कहते है कि समंदर का खारा पानी मनुष्य की चमड़ी को नुकसान पहुंचाता है। आप एक घंटा समुद्र में रहेगें तो यह रंग को काला कर देता है। इसका प्रमाण भी मुझे मिला, समुद्र का पानी आंखो में जलन पैदा करता है और दो घंटे नहाने पर चमड़ी का रंग भी बदल जाता है। अगर एक हफ़्ते समंदर में स्नान किया जाए तो रंग काला हो जाएगा। जाहिर है समंदर भी प्रदूषण का शिकार हो रहा है। अधिक खारापन एसिड का काम कर रहा है। दोपहर हो गई थी, समुद्र तट भी धीरे धीरे पर्यटकों से रिक्त हो रहा था। दिलीप अपनी छतरी उखाड़ कर मछली मारने चला गया और हम नहाने के लिए होटल चले आए। जारी है… आगे पढें।

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