बुधवार, 13 जुलाई 2016

हम्पी की यादें लिए तेनाली राम के साथ लेपाक्षी ओर: दक्षिण यात्रा 18

प्राचीन हम्पी नगर पचीस किमी के दायरे में फ़ैला हुआ है, इसके सभी स्मारक देखने के लिए कई दिनों का समय चाहिए। हमारे पास गाड़ी थी, ठहरने खाने की व्यवस्था थी, पर समय नहीं था। इसलिए इस यात्रा को अधूरी छोड़कर ही जाना था। यहां कृष्ण मंदिर, अच्यूतानारायण मंदिर, माता मंदिर, जैन मंदिर, यल्लमा मंदिर आदि कई स्मारक हैं, जिन्हें हम नहीं देख सके। चलते चलते हमने यहाँ का पुरातत्विक संग्रहालय अवश्य देखा। यहां हम्पी से प्राप्त प्रतिमाएं रखी हुई हैं। गंगाधर को नगर के चौराहे पर छोड़ते हुए हम 11 मार्च को सुबह साढे दस बजे बेल्लारी की ओर चल दिए। फ़िर इतनी कम अवधि में हमने गुनने लायक तो हम्पी देख लिया था। 
राज कृष्ण देव राय अपनी दोनो पत्नियों चिन्ना देवी एवं तिरुमल देवी संग
विजयनगर साम्राज्य की बात हो और तेनाली राम का जिक्र न आए तो यह बहुत ना इंसाफ़ी होगी। तेनाली राम के किस्से बचपन  में पढकर बड़े हुए। वह एक चतुर व्यक्ति था, जो समस्याओं का समाधान चुटकियों में निकाल लेता था। जिस तरह अकबर ने अपने दरबार में नव रत्न नियुक्त किए थे, उसी तरफ़ राजा कृष्णदेव राय ने अपने अपने दरबार में अष्टदिग्गज नियुक्त कर रखे थे। इन्ही में से एक दिग्गज तेनाली राम था। तेनाली राम का कार्यकाल 1509 से 1529 ईस्वीं तक बताया जाता है। वह अपने बीस वर्ष के कार्यकाल में  ही इतना प्रसिद्ध हो गया कि उसे पाँच सौ वर्षों के बाद आज भी याद किया जा रहा है। 

तेनाली राम जन्म से शैव था, लेकिन बाद में उसने वैष्णव धर्म अपना लिया और अपना नाम  रामकृष्ण कर दिया।  शैव और वैष्णव उस समय में हिन्दू धर्म के दो विपरीत विपरीत संप्रदाय थे। इसका जन्म 16 वी सदी के आरम्भ में तेलगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था।  ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के एक तेनाली नामक एक नगर में हुआ था।  तेनाली के पिताजी गरलाप्रति रमय्या तेनाली नगर के रामालिंगेश्वर स्वामी मन्दिर में पुजारी थे।  उसके पिता की मौत के बाद तेनाली राम को उसके चाचा ने पाला था | उसके जाति के धार्मिक रीती रिवाजो के कारण उन्हें शिक्षा नही दी गई।

तेनाली राम “भगवत मेला” नाम के एक प्रसिद्ध मंडली के साथ विजयनगर पहुचे।  उसके प्रदर्शन से प्रसन्न होकर कृष्णदेवराय ने उसे अपने दरबार में हास्य कवि के रूप में रख लिया और बाद में वो अष्टदिग्गज में शामिल हो गये। ऐसा माना जाता है कि तेनाली राम ने अपनी बुद्धि और रणनीति से समय समय पर विजयनगर साम्राज्य को दिल्ली सल्तनत से बचाया था। बुद्धिमता के मामले में तेनाली राम की बीरबल से तुलना कर सकते है परन्तु बीरबल की तरह तेनाली राम धनवान नही था। 

तेनालीराम के चरित्र की यह खासियत थी कि वो कभी भी बड़े से बड़े शत्रु के आगे हारा या झुका नही। हमेशा उसके पास एक ऐसा छिपा हुआ दांव रहता था, जिससे विरोधियो के छक्के छुट जाते थे। इसके अलावा तेनालीराम के पास जनता के विश्वास का सबसे बड़ा बल था। वो हर बार राजा कृष्णदेव राय को हवाई बातो से बचाकर अपनी जमीन और जनता के दुःख दर्द से जुड़े रहने को प्रेरित करता था।  इसके लिए वो हास्य का भरपूर इस्तेमाल करता था। 

तेनालीरामा अपने समय का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति था, जिसका हमेशा अपने समय , समाज और प्रजा के हालात की नब्ज पर हाथ रहता था। तेनाली राम के काव्य पांडूरंगा महात्यम को तेलुगु साहित्य के पांच महान काव्यो में एक गिना जाता है। तेनाली राम के जीवन पर तेलगु और तमिल भाषा में नाटक भी रचे गये। तेनाली राम के किस्से भारत के सभी भाषा भाषियों की जुबान पर है। उसके किस्सों का भारत की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ और बच्चों को उसके चतुराई भरे किस्से बड़े रोचक लगते हैं। 
बेल्लारी जिले का ग्रामीण इलाका
तेनाली राम की याद चल रही थी, हमको आज किसी भी हालत में लेपाक्षी मंदिर देखते हुए रात तक बैंगलोर पहुंचना था। गाड़ी सपाटे से चल रही थी। हमारे राड़ार पर लेपाक्षी मंदिर पहले थे उसके बाद बैंगलोर। हम्पी से बेल्लारी लगभग 60 किमी, बेल्लारी से लेपाक्षी 220 किमी तथा लेपाक्षी से बैंगलोर 125 किमी था। इस तरह हमें कुल चार सौ किमी से अधिक चलना था। बेल्लारी पहुंचने से पहले जी पी एस ने शहर से बाईपास कर दिया। हम सिंगल रोड़ पर आ गए। ग्रामीण इलाका था। सड़क किनारे गाँव और खेत। ग्रामीण इलाके में यही दिखाई देता है। इस सड़क पर हमारे साथ ऐसी दुर्घटना घट गई कि जो जिन्दगी भर के लिए सबक दे गई और कभी भूली नहीं जाएगी। जारी है आगे पढे…

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