स्टीमर में सवार होकर सुंदरबन के डेल्टा की अथाह जलराशि के बीच हम आगे बढ रहे थे, कैमरे अभी भी सजग ही थे, न जाने कब कहाँ और क्या मिल जाए, इसलिए फ़ोटोग्राफ़र को हमेशा सजग मोड में रहना पड़ता है सफ़ारी के दौरान। कभी तो ऐसा होता है कि जैसे ही पैकअप किया और वह जानवर सामने आ जाता है जिसके लिए हमने सफ़ारी की थी और कैमरा चालु करते तक वह आँखों से ओझल हो जाता है।
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हमारे सुपर फोटोग्राफर प्राण चड्डा जी |
हम सुंदरबन बाघ देखने आए थे, परन्तु बाघ दिख नहीं था तो प्राकृतिक दृश्यों, चिड़ियों की फ़ोटोग्राफ़ी हो रही थी। संजेखाली वाच टावर से हम सुधन्याखाली वाच टावर पहुंचे। जैसे ही हम पहुँचे तो लगभग 200 फुट की दूरी पर काली चट्टान के जैसे कुछ दिख रहा था। मैंने तीन चित्र लिए। तीसरा चित्र लेने के बाद जब यह काली चट्टान उड़कर वृक्ष पर बैठ गयी तब समझ आया कि यह पक्षी है।
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Changeable hawk Eagle |
यह काफ़ी
Changeable hawk Eagle बड़ा पक्षी था, इसकी ऊंचाई लगभग ढाई फुट होगी और सामान्य ईगल से काफी बड़ा था। यह मान सकते हैं कि ईमू से थोड़ा छोटा होगा। फोटो लेते वक्त यह तालाब में स्नान कर रहा था। यह सद्यस्नात का चित्र है। खुशी कि बात यह है कि मेरे कैमरे में दुर्लभ पक्षी पकड़ में आया।
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वन देवी |
इस द्वीप के निवासी बाघ एवं जंगली जानवरों से बचने के लिए वन देवी की पूजा करते हैं और फ़िर समुद्र में उतरते हैं। जिससे मन में कोई दुर्घटना घटने की आशंका नहीं रहती। इस वाच टावर में सुंदरबन में होने वाले कई तरह के पेड़ पौधों की प्रजातियों को प्रदर्शित किया गया है।
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स्टीमर टाइगर |
यहाँ लोहे का बना टायगर नामक ब्रिटिशकालीन छोटा जहाज भी ग्राऊंड किया हुआ है। जो अपनी सेवा से निवृत्त होकर जंग खाते पड़ा है। एक अरसे के बाद जंग एवं खारा पानी इसे खत्म कर देगा। यहाँ कोई जानवर देखने नहीं मिला।
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जंगली सूअर |
यहाँ से अगले टावर की ओर हम बढ़ गए, रास्ते में खाना खाया, जिसमें दाल भात, चोखा, चिंगरी माछ इत्यादि का सम्मिलित था। आगे बढते हुए एक स्थान पर जंगली सुअर दिखाई दिए, थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर चीतल भी। फ़िर आगे चलकर एक स्थान पर दलदल में बाघ के पद चिन्ह दिखे। जिससे लग रहा था कि बाघ जलराशि को लांघकर दूसरे जंगल की ओर गया है। चलो हम इतने से ही संतुष्ट हो गए कि बाघ नहीं तो बाघ के पद चिन्ह तो दिखे।
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वाच टावर |
आगे चलकर हमारा स्टीमर अंतिम पड़ाव दोबांकी कैम्प वाच टावर पहुंचा। यहाँ वाच टावर पर पहुंचने पर एक बड़ी गोह वृक्ष के नीचे धूप सेकते हुए दिखाई दी। सुंदरबन में गोह बड़ी संख्या हैं, हमें यह कई स्थानों पर दिखाई दी। ये गोह काफ़ी बड़ी थी। पूंछ से सिर तक की लम्बाई सात फ़ुट से अधिक रही होगी। इनका शरीर छिपकली के जैसा होता है, परन्तु उससे काफ़ी बड़ा होता है।
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गोह |
गोह छिपकिलियों की निकट संबंधी हैं, जो अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, अरब और एशिया आदि देशों में फैले हुए हैं। ये छोटे बड़े सभी तरह के होेती है, जिनमें से कुछ की लंबाई तो 10 फुट तक पहुँच जाती है। रंग प्राय: भूरा रहता है, शरीर छोटे छोटे शल्कों से भरा रहता है। जबान साँप की तरह दुफंकी, पंजे मजबूत, दुम चपटी और शरीर गोल रहता है। इनमें कुछ अपना अधिक समय पानी में बिताते हैं और कुछ खुश्की पर, लेकिन वैसे सभी गोह खुश्की, पानी और पेड़ों पर रह लेते हैं। ये सब मांसाहारी जीव हैं, जो मांस मछलियों के अलावा कीड़े मकोड़े और अंडे खाते है।
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गोह |
गोह पानी में रहती है। तराकी में दक्ष है यह, साथ में तेज धावक व वृक्ष पर चढने में माहिर होती है। पुराने समय में जो काम हाथी-घोडे नहीं कर पाते थे, उसे गोह आसानी से कर देती थी। इनकी कमर में रसा बाँधकर दीवार पर फेंक दिया जाता था और जब ये अपने पंजों से जमकर दीवार पकड लेती थी, तब सैनिक रस्सी के सहारे ऊपर चढ जाते थे। हमने गोह की फ़ोटो ली। तब तक सांझ ढलने लगी थी एवं जानवरों के जलस्रोतों की ओर लौटने का समय हो गया था।
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चीतल हिरण |
वाच टावर से दिखने वाले टैंक पर एक नर चीतल का आगमन हुआ, सभी अपने कैमरे से फ़ोटो लेने लगे। मुझे पता था कि नर चीतल हालात का जायजा लेने आया है, सब कुछ सही मिलने पर दल के बाकी सदस्य भी पहुंचने वाले हैं। थोड़ी देर बाद मादा चीतल एवं उसके शावक भी पानी पीने के लिए पहुंचे, हमने जी भर के फ़ोटो खींचे। इसके बाद वापस स्टीमर में आ गए। सांझ हो रही थी सूरज ढल रहा था। हमारा स्टीमर वापसी की राह पर था।
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लौटते हुए राजू दास मानिकपुरी |
एक स्थान पर खारे पानी का मगरमच्छ विश्राम करते दिखाई दिया। स्टीमर उसकी तरफ़ मोड़ कर ले जाया गया जिससे हम उसकी फ़ोटो ले सकें। कुछ जंगली सुअर भी दलदल में विचरण करते दिखाई दिए। परपल हेरोन, ग्रेट इगरेट इत्यादि पक्षियों के साथ तोते भी उड़ान भर रहे थे। मछली मारने वाली, शहद बटोरने वाली नौकाएं भी लौट रही थी।
सुंदरबन के जंगलों से स्थानीय निवासी प्रतिवर्ष लगभग 10 हजार टन शहद निकालते हैं। जब सूरज अस्ताचल की ओर जाता है, सारा जगत अपना काम खत्म करके विश्राम के मुड में होता है और हम भी अपनी जेट्टी की तरफ़ जा रहे थे। जारी है ..... आगे पढ़ें
आपके अगुआई में जीवन का शानदार सफर रहा सुंदरवन का।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन विवरण
जवाब देंहटाएंसुंदरवन पर सुन्दर लेखन।।
जवाब देंहटाएं"अस्ताचल में विश्राम का मूड"...
जवाब देंहटाएंशब्दों का नवीन सामयिक प्रतिमान.... सुन्दर
"अस्ताचल में विश्राम का मूड"...
जवाब देंहटाएंशब्दों का नवीन सामयिक प्रतिमान.... सुन्दर
जय हो प्रभु
जवाब देंहटाएंगोह के बारे में पता था पर इतनी बड़ी होती है ये नहीं पता था।
जवाब देंहटाएंआनन्दम..... हम भी घूम लिये सुन्दरवन :) आपकी नज़र से.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर,मजा आ गया
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया सर जी।
जवाब देंहटाएंसुंदरबन को करीब से देखने और समझने का मौका मिला आपके माध्यम से ! बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर,मजा आ गया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर,मजा आ गया
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