“साहब सिर्फ़ एक बर्थ दे दीजिए,छोटे बच्चे साथ में हैं,मुंबई तक जाना है, प्लीज”- एक यात्री काले कोट वाले साहब के सामने गिड़ गिड़ा रहा था। उसके पीछे 15 लोगों की लाईन और लगी हुई थी। टी टी साहेब गर्दन ऊंची किए पेट में हवा भर कर जवाब दे रहे थे-
“कोई सीट खाली नहीं है, आप लोग पीछा छोड़िए, जाईए जनरल बोगी में बैठिए।”
“चार्ट देखिए न सर, एक सीट तो मिल जाएगी। आप जो कहेंगे वो दे दुंगा।“- एक ने कहा।
“जाईए आप अपनी सीट पर बैठिए, मैं आपसे वहीं सम्पर्क कर लुंगा।“-काले कोट वाले ने कहा।
“सर मेरा आर ए सी है”,
“अरे मेरे को पहले चार्ट तो देखने दीजिए, अभी नहीं बता सकता मैं कु्छ। दो स्टेशन बाद सम्पर्क कीजिए।“ काले कोट वाले ने जवाब दिया।
ट्रेन चल पड़ी, सवारी जहां तहां एडजेस्ट होने की कोशिश करती रही। टीटी महोदय ट्रेन मेन टिकिट चेक करते रहे। फ़िर उस सवारी से बोले-“एसी वन में आ जाना वहीं बना दुंगा।“-इतना कह कर टी टी चल पड़ा। मतलब इशारा हो चुका था कि उसके पास सीट है और एसी तक आने का मतलब कुछ ज्यादा जेब ढीली करने वाले ही सम्पर्क करें।
थोड़ी देर बाद वह व्यक्ति जल्दी-जल्दी आया और बीबी से बोला-“सामान उठाओ और चलो एस-6 में दी है सीट, साले ने 600 ले लिए।“
थोड़ी देर बाद वह डिब्बे में फ़िर आता है तो वह आर ए सी वाला कहता है-“ सर मेरा आर ए सी है, क्लीयर हो गया क्या?”
“शांति रखिए रात 8 बजे तक क्लीयर हो जाएगा। अभी तो बैठिए आप सीट पर”
हम जब भी सफ़र में जाते हैं तो यह नजारे आम ही दिख जाते हैं। जब काले कोट वाले रेल के मालिक सवारियों को खुले आम लुटते हैं और रिजर्वेशन ना हो तो अफ़सर हो या नेता या फ़िर आम आदमी सब इस काले कोट वाले रेल भगवान के सामने जोजियाते रहते हैं, पुष्प पत्र लेकर मनुहार करते है,फ़िर इनका भाव देखिए,ये सलाम सिर्फ़ रेल मंत्रालय वालों को ही करते हैं। बस उसके बाद भगवान को भी नहीं।
रेल मंत्रालय ने सारा जोर लगा लिया लेकिन काले कोट वालों की काट नहीं निकाल सका। ये ट्रेन में बिना नेम प्लेट के ही वसूली करते हैं। बैज भी नहीं रखते कि कोई पढ कर शिकायत न कर दे। जब ट्रेन स्टेशन से छूट गयी और कम्प्युटर से चार्ट निकल गया तो आखरी स्टेशन तक ट्रेन के मालिक यही हैं।
एक बार मैने इनकी शिकायत सीनियर डीसीएम से की। ये सीधे उनके ही विभाग का मामला है। तो उन्होने कहा कि “महाराज, इनसे भिड़ना बहुत मुस्किल है, आप कहते हैं तो उसे मैं सस्पेंड कर देता हूँ लेकिन ये सुधरने वाले नहीं है और जबरिया मेरी भी शिकायत किसी सांसद से करवा देगें। सभी इनको ट्रेन में मिलते हैं बस थोड़ी सी सेवा चाकरी की और वहीं लेटर पेड पर लिखवा लेगें।“ इनका क्या किया जाए?
अब रेल्वे के एक उच्चाधिकारी का यह कहना है तो क्या किया जा सकता है? एक बार तो मैने देखा कि एक टी टी रायपुर से बिना रिजर्वशन कई सवारियों को दिल्ली तक ले गया, रास्ते में किसी ने चेकिंग नहीं की, सवारी जनरल टिकिट पर रिजर्वेशन बोगी में चढ के आराम से निजामुद्दीन पहुंच गयी।
ये काले कोट वाले रेल के असली मालिक हैं, मंत्रालय और प्रशासनिक तंत्र ट्रेन के चलने के बाद काम करना बंद कर देते हैं। रेल इनके हवाले हो जाती है, कितनी ही कम्पयुटर की व्यवस्था कर ली जाए, ट्रेन चलते ही सारे सिस्टम फ़ेल हो जाते हैं। इनकी जो मर्जी है वही करते हैं। आर ए सी वाले को भी सीट नहीं मिल पाती और जनरल की टिकिट वाले आराम से 1500 किलोमीटर का सफ़र सोते हुए तय कर लेते हैं। रेल्वे की काले कोट वाली व्यवस्था को नमन है, इसके अलावा कर ही क्या सकते हैं?
“कोई सीट खाली नहीं है, आप लोग पीछा छोड़िए, जाईए जनरल बोगी में बैठिए।”
“चार्ट देखिए न सर, एक सीट तो मिल जाएगी। आप जो कहेंगे वो दे दुंगा।“- एक ने कहा।
“जाईए आप अपनी सीट पर बैठिए, मैं आपसे वहीं सम्पर्क कर लुंगा।“-काले कोट वाले ने कहा।
“सर मेरा आर ए सी है”,
“अरे मेरे को पहले चार्ट तो देखने दीजिए, अभी नहीं बता सकता मैं कु्छ। दो स्टेशन बाद सम्पर्क कीजिए।“ काले कोट वाले ने जवाब दिया।
ट्रेन चल पड़ी, सवारी जहां तहां एडजेस्ट होने की कोशिश करती रही। टीटी महोदय ट्रेन मेन टिकिट चेक करते रहे। फ़िर उस सवारी से बोले-“एसी वन में आ जाना वहीं बना दुंगा।“-इतना कह कर टी टी चल पड़ा। मतलब इशारा हो चुका था कि उसके पास सीट है और एसी तक आने का मतलब कुछ ज्यादा जेब ढीली करने वाले ही सम्पर्क करें।
थोड़ी देर बाद वह व्यक्ति जल्दी-जल्दी आया और बीबी से बोला-“सामान उठाओ और चलो एस-6 में दी है सीट, साले ने 600 ले लिए।“
थोड़ी देर बाद वह डिब्बे में फ़िर आता है तो वह आर ए सी वाला कहता है-“ सर मेरा आर ए सी है, क्लीयर हो गया क्या?”
“शांति रखिए रात 8 बजे तक क्लीयर हो जाएगा। अभी तो बैठिए आप सीट पर”
हम जब भी सफ़र में जाते हैं तो यह नजारे आम ही दिख जाते हैं। जब काले कोट वाले रेल के मालिक सवारियों को खुले आम लुटते हैं और रिजर्वेशन ना हो तो अफ़सर हो या नेता या फ़िर आम आदमी सब इस काले कोट वाले रेल भगवान के सामने जोजियाते रहते हैं, पुष्प पत्र लेकर मनुहार करते है,फ़िर इनका भाव देखिए,ये सलाम सिर्फ़ रेल मंत्रालय वालों को ही करते हैं। बस उसके बाद भगवान को भी नहीं।
रेल मंत्रालय ने सारा जोर लगा लिया लेकिन काले कोट वालों की काट नहीं निकाल सका। ये ट्रेन में बिना नेम प्लेट के ही वसूली करते हैं। बैज भी नहीं रखते कि कोई पढ कर शिकायत न कर दे। जब ट्रेन स्टेशन से छूट गयी और कम्प्युटर से चार्ट निकल गया तो आखरी स्टेशन तक ट्रेन के मालिक यही हैं।
एक बार मैने इनकी शिकायत सीनियर डीसीएम से की। ये सीधे उनके ही विभाग का मामला है। तो उन्होने कहा कि “महाराज, इनसे भिड़ना बहुत मुस्किल है, आप कहते हैं तो उसे मैं सस्पेंड कर देता हूँ लेकिन ये सुधरने वाले नहीं है और जबरिया मेरी भी शिकायत किसी सांसद से करवा देगें। सभी इनको ट्रेन में मिलते हैं बस थोड़ी सी सेवा चाकरी की और वहीं लेटर पेड पर लिखवा लेगें।“ इनका क्या किया जाए?
अब रेल्वे के एक उच्चाधिकारी का यह कहना है तो क्या किया जा सकता है? एक बार तो मैने देखा कि एक टी टी रायपुर से बिना रिजर्वशन कई सवारियों को दिल्ली तक ले गया, रास्ते में किसी ने चेकिंग नहीं की, सवारी जनरल टिकिट पर रिजर्वेशन बोगी में चढ के आराम से निजामुद्दीन पहुंच गयी।
ये काले कोट वाले रेल के असली मालिक हैं, मंत्रालय और प्रशासनिक तंत्र ट्रेन के चलने के बाद काम करना बंद कर देते हैं। रेल इनके हवाले हो जाती है, कितनी ही कम्पयुटर की व्यवस्था कर ली जाए, ट्रेन चलते ही सारे सिस्टम फ़ेल हो जाते हैं। इनकी जो मर्जी है वही करते हैं। आर ए सी वाले को भी सीट नहीं मिल पाती और जनरल की टिकिट वाले आराम से 1500 किलोमीटर का सफ़र सोते हुए तय कर लेते हैं। रेल्वे की काले कोट वाली व्यवस्था को नमन है, इसके अलावा कर ही क्या सकते हैं?
सही दृश्य दिखाया है .. इनकी मनमानी तो चलती ही रहती है.
जवाब देंहटाएं“सर मेरा आर ए सी है”,
जवाब देंहटाएं“अरे मेरे को पहले चार्ट तो देखने दीजिए, अभी नहीं बता सकता मैं कु्छ। दो स्टेशन बाद सम्पर्क कीजिए।“ काले कोट वाले ने जवाब दिया।
.........सही दृश्य दिखाया है
पिछले दिनों में राजस्थान संपर्क क्रांति से जोधपुर से दिल्ली आ रहा था ट्रेन में इन काले कोट वाले भगवान् ने एक यात्री को पैसे लेकर एक ऐसी सीट अलोट कर दी जिस पर पहले से रिजर्वेशन कराया यात्री बैठा था , बाद में जब वे टिकट चेक करते आये तो उस यात्री कही और एडजेस्ट किया |
जवाब देंहटाएंसच है । इस एक मामले में राष्ट्रीय एकता है-अखण्ड्ता है ,मानो राष्ट्रीय मान्यता भी है -भ्रष्टाचार को ।
जवाब देंहटाएंपचमढ़ी घूमने जाना था, दिल्ली से ईटारसी तक का हम दो परिवारों की एसी टू टायर में अलग अलग कोच में चार चार सीट थीं। काले कोट से रिक्वेस्ट की, हमें एक साथ एडजस्ट कर दें।
जवाब देंहटाएं"नहीं सर, नहीं हो पायेगा।"
मैंने कहा, हमारे साथ बच्चे हैं, आप हमें छह सीट दे दीजिये, दो सीट हम छोड़ देते हैं।
"आप बैठिये सर, सिर्फ़ दस मिनट में मिलता हूँ आपसे।"
हो गया काम, लेकिन उसके बाद भी बंदा कुछ चाह रहा था कि हमारे कहने से एडजस्ट किया है।
सही में रेल के मालिक हैं ये लोग।
बज्ज पे---indu puri goswami - बस नमन ही कीजिये इन काले कोट वालों को..पूरे कूएँ में भांग घुली है भाया .
जवाब देंहटाएंहा हा हा
लो मैंने तो पूरा आर्टिकल ही पढ़ लिया.किस किस से पंगा लोगे भई? पर...जहाँ गलत हो रहा है वहाँ उसका विरोध तो करना ही चाहिए बुद्धिजीवी वर्ग को. अनदेखा नही करना चाहिए.मैं तो करती हूँ...
क्योंकि....ऐसिच हूँ मैं भी
बज्ज पे---पद्म सिंह Padm Singh - .
जवाब देंहटाएंइसी तरह से व्यवस्था पे कहर टूट रहा है
जिसे जहाँ मिले मौका वहीँ पर लूट रहा है
ऐसे दृश्य आम है ...कही न कही हम भी इसके लिए जिम्मेदार हैं ...क्योंकि हम जरा सी भी असुविधा बर्दाश्त नहीं कर पाते और चाहते हैं कि ले दे कर काम हो जाए ...!
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही महिमा बखानी है, व्यवस्था काले कोट वालों ने अस्वस्थ कर रखी है।
जवाब देंहटाएंअफ़सोस इस बात का है कि लुटने वाले भी थोक के भाव मिल जाते हैं ।
जवाब देंहटाएंअब इनका तो काम ही एडजस्ट करने का है ।
यह सब इसी लिए पनप रहा है क्यों कि हम देते हैं ...अपने स्वार्थ के लिए भ्रष्टाचार बढ़ाते हैं ....असली दृश्य दिखा दिया है
जवाब देंहटाएंलाखों रेल-यात्रियों की एक ज्वलंत समस्या पर आपने कलम चलायी है. वास्तव में ये काले कोट वाले अपने इस तरह के काले कारनामों से देश के दामन पर भी काला धब्बा लगा रहे है. इनका कुछ इलाज सोचा जाना चाहिए .
जवाब देंहटाएंइस भ्रष्टाचार से लबालब मुद्दे को उठाने के लिए साधू वाद! बात केवल इतनी सी है कि यह लोग भ्रष्ट है, क्योंकि हम भ्रष्ट है. अगर हम किसी को रिश्वत देंगे नहीं कोई रिश्वत लेगा किस से? लेकिन अपनी सहूलत के लिए अक्सर लोग रिश्वत देने से गुरेज़ नहीं करते.
जवाब देंहटाएंइस देश को तो काले कोट वालों से बचकर ही चलना पड़ता है, चाहे वे वकील हों या फिर ये टीसी। फिर भी अब पहले वाली स्थिति नहीं रही है। काफी बदलाव आया है।
जवाब देंहटाएंखुल्लमखुल्ला रिश्वतखोरी की सही तस्वीर दिखाई है आपने। जब उनके अधिकारी ही विवश हैं तो कोई दूसरा क्या कर सकता है?
जवाब देंहटाएंबढिया पोस्ट
जवाब देंहटाएंहम खुद इस जुर्म में भागीदार बने हैं जी
कई बार बिना टिकट खरीदे ही दिल्ली से हरिद्वार गये हैं जी और स्लीपर का किराया 250 के आसपास है और हम 150-200 रुपये में ही और बिना पर्ची कटवाये स्लीपर में यात्रा करके गये हैं।
प्रणाम
ट्रेन के मालिक .. सही उपाधि दी है ललित जी आपने ....
जवाब देंहटाएंभगवान् ही मालिक है.
जवाब देंहटाएंलेकिन दोषी कोन है, यह लोग या हम?, अगर हम पहले ही सीट रिजर्व करवा ले तो इन के आगे गिडगिडाने की नोबत ना आये, ओर हम भी इस भ्रष्टाचार को बढावा ना दे, वेसे इलाज तो हर बिमारी का है, लेकिन जब दवा ही नकली हो तो डा० क्या करेगा??
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने। पता नही ये कब सुधरेंगे?
जवाब देंहटाएंआभार।
एकदम सही खाका खींचा है ...बस यही तो कुछ कमियां है जो भारत को आगे नहीं बढ़ने देतीं .
जवाब देंहटाएंइनकी बीबी (यों ) ने भी कार की डिमांड रखी होगी क्योंकि इनका पड़ोसी जो सेल्स टैक्स में है , दो बड़ी-बड़ी गाडिया (कारें ) खरीद लाया है, इसलिए इनके ऊपर भी प्रेशर आ गया सो वसूली कर रहे है !
जवाब देंहटाएंभाई जान तभी तो रोना है। इस देश में सिर्फ रेलव ही क्यों अगर किसी भी डिपार्टमेंन्ट को देखा जाये तो ऐसी ही कहानीयां मिलती हे।
जवाब देंहटाएंये खेल सिर्फ काले कोट वाले भगवानों का नहीं ये खेल खादी वाले भगवानों का है। और उन्हे पुजवाते भी हम जनता ही है।
sahi tasveer dikhai aapne ,aur sab ke vicharon se bhi sahmat hu,vo karte hai kyon ki ham sath dete hai ya mook darshak bane rahte hai......
जवाब देंहटाएंरेलगाड़ी का एक अलग नजारा आपको मेल कर रहा हूं, इस उम्मीद से कि उसे ठिकाने लगाएंगे.
जवाब देंहटाएं...behatreen !!!
जवाब देंहटाएंहर व्यवस्था में यही आलम है
जवाब देंहटाएंबिलकुल ठीक ...हम सब भुगत चुके हैं इनसे कभी न कभी ! शुभकामनायें ललित भाई !
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक खाका खींचा है आपने....
जवाब देंहटाएंकोई उपाय नहीं इनका..
Great Information.
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