बुधवार, 7 नवंबर 2012

पंचकोसी यात्रा राजिम

राजिम का त्रिवेणी संगम 
त्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर नगर से प्राचीन नगर एवं जमीदारी फिंगेश्वर 61 किलोमीटर पर 20058' 7.50"N 82002'48.56" E पर स्थित है। इस नगर से होकर महासमुंद की ओर जाना कई बार हुआ पर फणीकेश्वर महादेव के दर्शन करने अवसर प्राप्त नहीं हुआ। 1992 में वर्तमान कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू के साथ पंचकोसी यात्रा करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। जिसे अब भूल चुका था। पुन: इस मार्ग पर जाने का अवसर तब आया जब कोलकाता से सुष्मिता बसु मजुमदार अपने दो शिष्यों ऋतुपर्ण चट्टोपाध्याय एवं स्मिता हालदार के साथ पंचकोसी की अध्ययन यात्रा पर आई। सुष्मिता  University of  Calcutta में Assoicate Professor के पद पर कार्यरत हैं। हम प्रात: 9.30 पर पंच कोसी यात्रा के अभनपुर से चल पड़े।
सुष्मिता-ऋतुपर्ण-स्मिता नदी पार करते हुए 
पंचकोसी यात्रा का प्रारम्भ भगवान श्री राजीव लोचन की नगरी राजिम युगो-युगो से ॠषि मुनियों, महात्माओं द्वारा सृजित आध्यात्मिक उर्जा से सम्पन्न पतित पावन नगरी से होता है। कहते हैं कि भगवान विष्णु ने गोलोक से सूर्य के समान प्रकाशित पांच पंखुडियों से युक्त कमल पृथ्वी पर गिराया था । पांच कोस के विस्तार से युक्त उक्त कमल के परिधि क्षेत्र के अन्तर्गत भगवान शिव के पांच अधिवास है जो पंचकोसी के नाम से विख्यात है । राजिम क्षेत्र को पद्म क्षेत्र भी कहा जाता है। कमल क्षेत्र राजिम स्थित पंचकोसी क्षेत्र की परिक्रमा पवित्र अगहन एवं माघ माह में प्रारंभ होती है । यात्रा का प्रारंभ ब्रम्हचर्य आश्रम के समीप स्वर्ण तीर्थ घाट के समीप चित्रोत्पला में स्नान करने के पश्चात कमल क्षेत्र के स्वामी राजीव लोचन भगवान के मंदिर जाकर पूजन से करते हैं । वहां से संगम पर स्थित उत्पलेश्वर शिव (कुलेश्वर नाथ) दर्शन पूजन करके पटेश्वर महादेव के दर्शन करने पटेवा ग्राम की ओर प्रस्थान करते हैं यह यात्रा का प्रथम पड़ाव है ।
पंचकोसी 
द्वितीय पड़ाव के रूप में चम्पेश्वर महादेव चंपारण (चंपाझर) ब्रह्मिकेश्वर (बम्हेश्वर) महादेव फणीकेश्वर महादेव, फिंगेश्वर तथा यात्रा के अंतिम पड़ाव के रूप में कर्पूरेश्वर महादेव कोपरा के दर्शन पूजन करके राजिम में आकर सोमेश्वर महादेव का दर्शन पूजन करके यात्रा का समापन कुलेश्वर महादेव की पूजा अर्चना से होता है । ये पांचो शिव मंदिर कुलेश्वर से 5 कोस की दूरी पर स्थित है । इसीलिए ये पंचकोसी परिक्रमा के नाम से जाने जाते हैं । हमने अपनी पंचकोसी यात्रा का प्रारंभ कुलेश्वर महादेव (उत्पलेश्वर शिव) के दर्शन से किया। महानदी में पानी चल रहा था। कुलेश्वर मंदिर तक जाने के लिए हमें राजिम पुल पार करके नयापारा नगर होते हुए बेलाही घाट पार करके लोमस ऋषि आश्रम तक जाना होता उसके बाद हम कुलेश्वर महादेव पहुँचते। इससे समय कुछ अधिक लगता। इसलिए हमने राजीवलोचन मंदिर से नदी पार करके ही कुलेश्वर महादेव जाना ठीक समझा।
कुलेश्वर महादेव 
संगम पर घुटनों तक पानी चल रहा था। हमने संभल कर नदी पार की एवं कुलेश्वर महादेव के दर्शन किए। मान्यता है कि दंडकारण्य प्रवास के दौरान माता सीता ने स्वयं अपने हाथों से इस शिवलिंग का निर्माण कर भगवान शिव की पूजा की थी। कुलेश्वर महादेव सोंढूर, पैरी एवं महानदी के त्रिवेणी संगम पर स्थित हैं। इस मंदिर का अधिष्ठान अष्टकोणीय है। मंदिर निर्माण करने वाले वास्तुकार ने नदी के प्रवाह को देखते हुए इसे अष्ट कोण का निर्मित किया। जिससे नदी के प्रवाह से मंदिर को कोई हानि न पहुचे। मंदिर की जगती तल से 17 ऊँची है तथा इसके निर्माण में छोटे आकार के प्रस्तर खण्डों का प्रयोग हुआ है। जगती पर पूर्व दिशा में सती स्मारक है जिसका वर्तमान में साक्षी गोपाल के नाम से पूजन हो रहा है। नदी के तल से मंदिर में पहुचने के लिए 22 पैड़ियाँ थी, कुछ वर्ष पूर्व नीचे दबी 9 पैड़ियाँ और प्रकाश में आने पर अब कुल 31 पैड़ियाँ हो गयी है। यहाँ एक शिलालेख भी लगा है। कुलेश्वर मंदिर से हम सिरकट्टी की और चल पड़े।
पैरी नदी के किनारे पर प्राचीन बंदरगाह 
सिरकट्टी में शीशविहीन प्रतिमाएं होने के कारण इस स्थान का नाम सिरकट्टी पड़ गया। राजिम से पांडुका होते हुए ग्राम कुटेना से पैरीनदी के मेघा जाने वाले पुल के समीप संत भुनेश्वरीशरण का आश्रम स्थित है। यहीं पर सिरकटी प्रतिमाएं पीपल के वृक्ष के नीचे विद्यमान हैं। सिरकट्टी हमारी पंचकोसी यात्रा में शामिल नहीं था, पर यहाँ पर  पैरी नदी के किनारे पर प्राचीन बंदरगाह के अवशेष मिलते हैं। इसका अवलोकन करना महत्वपूर्ण था। लेट्राइट को काट कर बनाया गया यह बंदरगाह किसी ज़माने में व्यापार के लिए नौकाओं से आने वाले व्यापरियों के लिए महत्व रखता होगा। बड़ी नौकाओं से माल उतार कर छोटी नौकाओं से गोदी में रखा जाता होगा। इस नदी के दक्षिण पूर्व की तरफ आगे बढ़ने पर गरियाबंद जिले का प्रवेशद्वार मालगांव पड़ता है। इस गांव का इस्तेमाल कभी माल रखने के लिए होता होगा। इसलिए पैरी किनारे के इस गाँव का नाम माल गाँव पड़ा।
फणीकेश्वर महादेव मंदिर 
सिरकट्टी से कोपरा जाने पर दाहिने तरफ फिंगेश्वर से लिए बोरसी होते हुए मार्ग जाता है। हम फिंगेश्वर फणीकेश्वर महादेव के दर्शन करने पहुचे। श्रीमद राजीवलोचन महात्म्य में लिखा है - महानदी देवधुनी पवित्रप्राची तटे विश्रुतनामधेया। फिनगेश्वरारव्या नगरी विभाति फणीश्वरो यत्र गणैर्विभाति ।।२।। यह मंदिर 10 वीं शताब्दी का है। शिल्प की दृष्टि से भी उत्तम है। मंदिर के गर्भ गृह में महादेव विराजमान हैं। बाँई तरफ गणेश जी एवं चामुंडा की प्रस्तर प्रतिमाएं विराजमान हैं। दाईं तरफ  प्रस्तर का निर्मित एक कलश रखा हुआ है। यहाँ एक पुजारी ने बताया कि छैमासी रात में इस मंदिर का निर्माण हुआ था। जब कलश चढ़ने का समय हुआ तो दिन निकल आया और कलश नहीं चढ़ सका। तब से इसका कलश भूमि पर ही रखा हुआ है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर प्रस्तर मूर्तियाँ लगी हैं, जिनमे रामायण, महाभारत के दृश्यों के साथ विष्णु अवतार प्रदर्शित है।  राम द्वारा शिला बनी अहिल्या उद्धार का भी सुन्दर चित्रण किया गया है।
फणीकेश्वर महादेव मंदिर की मिथुन मूर्तियाँ 
मिथुन मूर्तियों की प्रधानता दिखाई दी मुझे। अभी तक देखे हुए छत्तीसगढ़ के मंदिरों में से सबसे अधिक मिथुन मूर्तियाँ इसी मंदिर में दिखाई देती हैं। यहाँ की मूर्तियों के समक्ष खजुराहो का मिथुन मूर्ति शिल्प भी फीका दिखाई देता है। मैथुनरत युगल कामसूत्र के विभिन्न आसनों को प्रगट करते हैं। मंदिर की भित्तियों पर लालित्यपूर्ण मिथुन मूर्तियों का प्रदर्शन दर्शनीय है। ये मूर्तियाँ मंदिर की तीन दीवारों पर लगायी गयी हैं। मंदिर के पुजारी से कर्पुरेश्वर के विषय में पूछने पर पता चला की कोपरा में ही स्थित मंदिर को कर्पुरेश्वर कहा जाता है। राजिम महात्म्य में इसे बाणेश्वर से कर्पुरेश्वर नाम से जाना जाता है। अब हमें पुन: कोपरा जाना पड़ा।
कर्पुरेश्वर महादेव (कोपेश्वर)
कोपरा पहुचते तक शाम होने लगी थी। मौसम ख़राब था। दोपहर तक वर्षा हो रही थी। अपरान्ह मौसम थोडा खुलने के कारण वर्षा से राहत मिल गयी। कोपरा आना मेरा कई बार हो चुका है, गत वर्ष भी कोपरा आया था। गाँव के अंतिम छोर पर श्मशान के किनारे पर तालाब के बीच में कर्पुरेश्वर महादेव का मंदिर बना है। यह मंदिर पंचकोसी यात्रा में शामिल है। मंदिर में शिवजी विराजमान हैं। गणेश की भी प्राचीन मूर्ति रखी हुयी है। कर्पुरेश्वर के दर्शन करने के पश्चात् अब हम पुन: राजिम की ओर चल पड़े। हमने तय किया कि सबसे पहले पाटेश्वर महादेव के दर्शन करेगे इसेक पश्चात् चंपारण पहुच कर चम्पेश्वर महादेव के दर्शन करते हुए अभनपुर पहुचेंगे। पाटेश्वर महादेव राजिम से लगभग 5 किलोमीटर अभनपुर मार्ग पर ग्राम कुर्रा से चिपरीडीह जाने वाले मार्ग पर 1 किलोमीटर पर पटेवा  ग्राम में स्थित है।
चम्पेश्वर महादेव (चंपारण )
पटेवा पहुचते तक अँधेरा हो गया था, गाँव में बिजली जल चुकी थी। पटेवा के अंतिम छोर पर एक बड़ा तालाब है, इसके पार पर पाटेश्वर महादेव विराजे हैं। हम पहुचे तो मंदिर बंद था। बाहर से ही हम दर्शन करके अपने अगले पड़ाव की ओर चल पड़े। अनुमान है कि पटेवा का तालाब प्राचीन है, इसका निर्माण भी 10 वीं शताब्दी के आस-पास ही हुआ होगा। कुर्रा-पटेवा से चम्पेश्वर (चम्पारण) 17 किलोमीटर है। चम्पेश्वर पहुचने पर रात हो चुकी थी। सर्दियों में दिन छोटा होने पर सूर्यास्त जल्दी ही हो जाता है।  जब हम मंदिर में पहुंचे तो संध्या आरती के लिए भगवान का श्रृंगार हो रहा था। तब तक हम बल्लभाचार्य की बैठक के दर्शन कर आए। तब तक चम्पेश्वर महादेव की आरती प्रारंभ हो चुकी थी। आरती प्रसाद लेकर हमारे अभनपुर पहुँचते तक 8 बज चुके थे। इस तरह हमारी पंचकोसी अध्ययन यात्रा संपन्न हुई।

7 टिप्‍पणियां:

  1. पंचकोशी यात्रा का अद्भुत वर्णन साथ ही यात्रा की बारीकी ने यात्रा को अभिभूत कर दिया

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  2. Ashok Tripathi @ face book -ललित सर इतने उत्कृष्ट, सूचनाप्रद और सार्थक लेख के लिए आपको बधाई. आलेख के साथ चित्रों का संयोजन, सरल और सुबोध भाषा तथा आकर्षक शैली आलेख की गुणवत्ता में दोगुनी वृद्धि कर देते हैं. पुन: साधुवाद

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  3. पंचकोसी का प्रसाद हमें भी प्राप्त हो गया।

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  4. अद्भुत यात्रा, विस्तृत वर्णन.

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  5. कितना कुछ है देखने ,पढ़ने और समझने के लिए ....

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  6. पंचकोशी यात्रा का अच्छा वर्णन है।
    सर पंचकोशी यात्रा में आने वाले पाँचों मंदिरों की स्थापना कब हुई थी इसकी जानकारी भी यदि देंगे तो बड़ी कृपा होगी।
    धन्यवाद

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