धरती का निर्माण कैसे हुआ? धरती पर जीव कैसे आए? यह जिज्ञासा साधारण मनुष्य के मन में उत्पन्न होती है। इस विषय पर विभिन्न धर्मों के निजी दर्शन है तो वैज्ञानिकों ने शोध द्वारा अपने विभिन्न मत प्रगट किए। परन्तु सभी विज्ञानिक यह मानते हैं कि पृथ्वी पर प्रथम जीवोत्पत्ति एक कोशिय थी। अरबों वर्ष पूर्व वातावरण जटिल रासायनिक प्रक्रियाओं से कोएसरवेट्स नामक संरचना बनी और धीरे-धीरे इसमें जीवन के लक्षण आ गए। इन्ही से प्राथमिक जीवन की उत्पत्ति हुई जिनमें जीवन के सारे लक्षण थे।
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राम मंदिर राजिम का स्तम्भ |
इन पदार्थों से प्रोटोवायरस,, वायरस, प्रोकैरियाटिक कोशिकाएं रसायन संश्लेषी कोशिकाएं प्रकाश संश्लेषी कोशिकाएं, युकैरियाटिक कोशिकाएं क्रमश: बनी होगीं। प्राणिजगत् में दो प्रकार के जीव, एककोशिक और बहुकोशिक, होते हें। एककोशिक जीव प्रोटोज़ोआ (Protozoa) हैं, जो एक कोशिका में ही सभी प्रकार के जीवनव्यापार संपन्न कर लेते हैं। बहुकोशिक जीव मेटाज़ोआ (Metazoa) हैं, जिनमें प्रत्येक कार्य के लिये अलग अलग कोशिकासमूह होता है।वैज्ञानिकों ने चट्टानों का रेडियोमएट्रिक डेटिंग कर अध्ययन किया।
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राजीव लोचन मंदिर का स्तम्भ |
जिससे जीवश्मों द्वारा पृथ्वी के निर्माण का काल निर्धारण हुआ। एक अरब वर्ष से पूर्व एक कोशिय जीवों का धरातल पर जन्म हो चुका था। धरती पर जीवन के प्रथम चिन्ह छत्तीसगढ में एककोशिय जीवाणुओं के जीवाश्मों के रुप में प्राप्त होते हैं। सिरपुर में शिल्पकारों द्वारा निर्माण में प्रयुक्त किए गए पाषाणों में कुछ का क्षरण विशेष तरह से हो रहा है। आनंद प्रभ कुटी की मूर्तियाँ और प्रस्तर स्तम्भों में चकते दिखाई दे रहे थे तथा चकतों के आस पास के पत्थर का क्षरण हो रहा है और चकते इतने कठोर हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ा है। अगर हम ध्यान से देखेगें तो यह दिखाई देता है। लगता है कि ये पत्थर कमजोर हैं।
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सिरपुर से उत्खनन में प्राप्त प्रतिमा |
भूविज्ञानी ग़्यानी बादाम से चर्चा के दौरान ज्ञात हुआ कि इन पत्थरों का निर्माण एककोशिय जीवों के जीवाश्म से हुआ है। जीव निर्माण के समय अरबों वर्ष पूर्व छत्तीसगढ यह भूमि कटोरे जैसी थी। इसमें अमीबा जैसे एककोशिय जीव उतपन्न हुए। जीवों के मल एवं पेड़ पौंधों के पत्ते करोड़ों वर्षों तक एक ही स्थिति में रहे जिससे दलदल धीरे-धीरे चट्टान में परिवर्तित हो गया। इन पत्थरों जो चकते दिखाई देते हैं वे अमीबा जैसे एक कोशिय जीवों का मल है। मल के जीवाश्म कठोर है जिससे वे स्पष्ट दिखाई देती हैं। उनका क्षरण नहीं हुआ है। इस तरह इन चट्टानों के रुप में पृथ्वी पर प्रथम जन्म लेने वाले जीवाणुओं के चिन्ह जीवाश्म के रुप में मिलते हैं।
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सुरंग टीला का स्तम्भ |
सिरपुर के लगभग सभी स्मारकों में इस जीवाश्म युक्त पाषाण पर निर्माण दिखाई देता है। जबकि चूना पत्थर एवं बलुई पत्थर एवं अन्य पत्थरों पर भी निर्माण मिलता है। आनंद प्रभ कुटी, सुरंग टीला, तीवरदेव विहार, गंधेश्वर मंदिर के स्तंभ, नदी तट पर स्थित युगल शिवमंदिरों के स्तम्भों एवं मूर्तियों में तथा अन्य संरचनाओं में इसी जीवाश्म युक्त पत्थर का प्रयोग हुआ है। सिरपुर के अलावा राजीव लोचन मंदिर, कुलेश्वर महादेव मंदिर, राम मंदिर राजिम इत्यादि में निर्माण में इसी पत्थर का प्रयोग हुआ है। रतनपुर की बीस दुवरिया के द्वारों की चौखट में इस पत्थर के टुकड़ों का प्रयोग हुआ है। सिंघा धुरवा में भी मुझे इसी पत्थर से निर्मित एक प्रतिमा देखने मिली। इससे सत्यापित होता है कि छत्तीसगढ में पृथ्वी पर जीवों की उत्पत्ति के प्रथम चिन्ह जीवाश्म के रुप में हमें प्राप्त होते हैं।
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आनंद प्रभ कुटी सिरपुर का जीवाश्म स्तम्भ |
महानदी के त्रिवेणी संगम स्थित कुलेश्वर महादेव मंदिर की प्रतिमाओं एवं स्तम्भों में भी इसी पत्थर का उपयोग हुआ है। अवश्य ही जीवाश्म युक्त पत्थरों का उत्खनन स्थल (खदान) इन इलाकों के आस पास ही होगी।
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श्री ज्ञानी बादाम एवं ब्लॉगर सेमीनार स्थल रायपुर में |
छतीसगढ़ का कण-कण ऐतिहासिक धरोहरों से भरा पड़ा है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया जानकारी .....धरती माँ जीव आगमन के
जवाब देंहटाएं..........कंग्रेचुलेशन ....अउ सेमी के नार कहाँ रिहिस जी
मतलब सेमीनार का विषय के अउ कहाँ रिहिस?
बादाम साहब के माध्यम से आपने सिरपुर के एकदम अनूठे पक्ष पर प्रकाश डाला है.
जवाब देंहटाएंबड़ा ही रोचक पक्ष, स्थापत्य का..
जवाब देंहटाएंतभी हड़ड़्पा कालीन कह रहे थे
जवाब देंहटाएंवाह....
जवाब देंहटाएंबहुत गूढ़ और जटिल कार्य है जीवन के रहस्यों को समझना.
जवाब देंहटाएंसचमुच यह पुरातन धरती अपने-आप में बहुत पुरानी धरोहरें समेटे है.उत्तर के हिमालय पर्वत आदि इसके बहुत बाद अस्तित्व में आये.
जवाब देंहटाएंएक और बहुत बढिया जानकारी
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा , रौचक व ऐतिहासिक चित्रण
जवाब देंहटाएंक्या बात है! आपके ब्लॉग पर एक से एक उम्दा जानकारी मिलती हैं
अनूठी जानकारी से परिपूर्ण बढ़िया आलेख....
जवाब देंहटाएंसार्थक ! सर जी
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