चूहा नामक प्राणी सभी उष्णकटिबंधीय देशों में पाया जाता है, मेरे घर के पिछवाड़ा भी उष्णकटिबंधीय क्षेत्र है, चूहा वहाँ भी पाया जाता है। बड़े-बड़े बिल खोद कर इन्होने सांपों के लिए घर बना दिए हैं, जब सांप घुसता है तो खुद भागे फ़िरते हैं। कुछ दिनों से इनकी सेना ने मेरे घर में धावा बोल दिया। इनकी नजर मेरे पुस्तक धन पर लगी हुई है। सारी रात कुतरने की डरावनी आवाजें आती हैं और मैं बिस्तर पर पड़ा हुआ, सोचता रहता हूँ कि आज ये कौन सी किताब से ज्ञानार्जन करने में लगे हुए हैं, उसका पता तो सुबह ही चलेगा। जब इनके द्वारा कुतरे हुए पन्ने खाद बनकर इधर उधर उड़ते फ़िरेगें। दुख: की बात यह हैं कि कुछ नव साहित्यकारों ने अपनी पुस्तकें मुझे टिप्पणी लेखन के लिए भेज रखी हैं, मेरे टिप्पणी लिखने से पहले ही कहीं ये अपनी टिपणी न कर दें। रात भर उंघते हुए गुजर जाती है।
एक लेखक के घर पर पुस्तकों का ही ढेर मिलेगा, कौन सा खलमाड़ी का घर है, जहाँ नोटों का अम्बार मिलेगा और ये कुतर-कुतर उसका स्वाद देखेगें, लेकिन मेरी किताबों को काट कर इन्होने मुझे निर्धन करने की जरुर ठान ली है। पता नहीं गणपति महाराज क्यों नाराज हो गए जो अपनी सेना को पुस्तकें कुतरने के लिए भेज दिया।
हम तो जैसे तैसे नुकसान सह कर इन्हे कोस रहे थे कि अचानक मालकिन फ़ुंफ़कारते हुए आई - "दिन भर कम्प्यूटर बैठे उंघते रहते हो, पता भी है इधर चूहों ने गदर मचा रखा है। दीवान में घुस कर गद्दे रजाईयों को काट रहे हैं, मेरी नई साड़ी और ब्लॉउज को भी काट डाला, जबकि मैने सिर्फ़ 2 बार ही उसे पहना था। इन चूहों को ठिकाने लगाओ। नहीं तो समझ लेना फ़िर…।"
मैं निरीह प्राणी की तरह मालकिन के मुंह को देखे जा रहा है, एक बेबस आदमी कर भी क्या सकता है। एक अंग्रेजी फ़िल्म देखी बरसों पहले, जिसमें एक छोटी सी चूहिया को पकड़ने के चक्कर में मकान मालिक सारी विद्याएं अपनाता है आखिर में अपने मकान से भी हाथ धो बैठता है। तब भी चूहिया पकड़ में नहीं आती और अंत में उसके सिर पर नाचते रहती है। सबसे बड़ी बात यह है कि कितने चूहे हैं इसका पता नहीं चलता। सबकी शक्ल एक जैसी ही है। तीन चूहों को जैसे-तैसे पकड़ कर घर के बाहर छोड़ कर आया। जैसे ही कमरे में घुसा, वैसा ही एक चूहा और घूमते हुए दिखाई दिया। शक होने लगा कि बाहर फ़ेंका हुआ चूहा मुझसे पहले ही घर में प्रवेश कर गया।
इस महा विपदा से बचने के लिए सभी परिजनों की आवश्यक बैठक आहूत की गई, जिसमें सभी के सलाह मशविरे से चूहा निदान की परियोजना पर विचार विमर्श शुरु हुआ। मैने कहा कि -" बाजार से चूहे मारने वाली दवाई मंगवा ली जाए। जिसे खाने के बाद ये मर जाएगें और मुक्ति मिल जाएगी।"
मालकिन ने कहा कि -"कहीं भीतर घुस कर मर गए तो बदबू आते रहेगी और पता भी नहीं चलेगा, किस जगह मरे हैं, एक काम करो, चूहे मारने वाला केक ले आओ।"
"तुम मंगवा क्यों नहीं लेती, बच्चे तो दुकान जाते ही हैं"
"मैने भेजा था इन्हें, लेकिन दुकानदार बच्चों को चूहा मार दवाई नहीं देते और न ही चूहामार केक देते हैं।"
"यह भी बड़ी समस्या है, लगता है अब मुझे ही जाना पड़ेगा"
तभी बालक ने सलाह दी - "पापा! एक चूहेदानी ही ले आईए, चिंटु के घर में भी बहुत चूहे थे, उसके पापा चूहेदानी लेकर आए और उसमें टमाटर रखते ही दो चूहे पकड़ में आए।"
बालक की सलाह सभी जम गई, तय हुआ कि चूहेदानी खरीद कर लाई जाए। हमारा मार्केट जाना भी बड़े राजशाही ठाठ-बाट से होता है, कोई ऐरे गैरे थोड़ी हैं जो ऐसे ही उठ कर चले जाएगें। कपड़े अस्तरी किए गए, जूते पालिश होकर आए, काली घोड़ी (हीरो होंडा) को धोया और पोंछा गया। इतनी तैयारी होते देख कर काम वाली महरी से रहा नहीं गया उसने पूछ ही लिया - "कथा पूजा की तैयारी हो रही है क्या मालकिन, जो इतना जोर शोर से तैयारी चल रही है?"
"अरे नहीं! महाराज बाजार जा रहे हैं, चूहेदानी खरीदने के लिए। इसलिए सब तैयारी करनी पड़ रही है।" मालकिन ने शर्ट पर अस्तरी फ़िराते हुए जवाब दिया।
हम तैयार होकर मार्केट पहुंचे, अब ऐसे ही किसी की दुकान में चले जाएं तो हमारी शान के खिलाफ़ हैं। एक बड़ी दुकान में जाकर बैठ गए, दुकानदार ने पान की गिलौरी मंगवाई और हमसे दर्शन शास्त्र के कई सवाल धड़ाधड़ पूछ डाले। हम भी उसके मनमाफ़िक जवाब देते रहे। दो घंटे क्लास चली। आखिर हमने उसके नौकर को रुपए देकर चूहेदानी खरीदने भेजा। उसका नौकर चूहेदानी लेकर आया, एक दो बार हमने उसके द्वार को बंद करने के लिए स्प्रिंग से खिलवाड़ किया तो उसकी अटकनी का टांका निकल गया। अब उसे बदलने के लिए भेजा। हमारा नाम लेने पर दुकानदार ने बदल कर दे दिया।
अब चूहेदानी घर लेकर पहुंचे तो बालक देखते ही खुश हो गया। तुरत-फ़ुरत टमाटर काटकर चूहेदानी में लटकाया गया और उसे चूहामार्ग पर लगाया गया। आधी रात हो गई देखते हुए, लेकिन चूहा एक भी न फ़ंसा। उसके आस-पास घूम कर चला जाता था। थक हार कर सभी अपने बिस्तर के हवाले हो गए, लेकिन चूहा पकड़ने का रोमांच इन्हे सोने नहीं दे रहा था। रोमांच इतना अधिक था कि जैसे जंगल में शेर पकड़ने के लिए पिंजरा लगाया हो।
जैसे तैसे सुबह हुई, बालक ने सबसे पहले चूहेदानी को देखा, टमाटर ज्यों का त्यों लटका हुआ था। चूहेदानी का दरवाजा खुला हुआ था। मालकिन कहने लगी कि "अभी तक एक भी चूहा पकड़ में नहीं आया है, चिंटु के यहाँ तो लगाते ही, दो चूहे पकड़ाए थे। यह चूहेदानी ठीक नहीं है। चूहों को पता चल गया है कि यह उन्हे पकड़ने का फ़ंदा है।"
बेटी ने सलाह दी कि " चूहे टमाटर नहीं खाते, देखते नहीं क्या किचन में रोटियों का टुकड़ा उठा कर ले जाते हैं। इनके लिए आलू के भजिए बनाए जाएं और उसे पिंजरे में लगाया जाए, भजिए के लालच में आएगें तो जरुर फ़ँस जाएगें।"
सलाह मालकिन को जम गई, उसने आलू के पकोड़े बनाए और एक पकोड़ा चूहेदानी में लगा दिया। दिन भर व्यतीत होने पर भी एक चूहा नहीं फ़ँसा। रात्रिकालीन सेवा के लिए चूहेदानी का स्थान बदला गया। सुबह होने पर दिखा कि चूहेदानी का दरवाजा खुला हुआ है और पकोड़ा लटके-लटके सूख गया है।
हम चाय पीते हुए कम्प्यूटर में अखबार पढ रहे थे, आते ही मालकिन फ़ट पड़ी, फ़ट पड़ी इसलिए कि एक सुनामी सी आ गई थी, अगर बरसती तो दो-चार फ़ुहारें ही गिरती - "ये कैसी चूहेदानी लेकर आए हो, दो दिन हो गए एक भी चूहा नहीं फ़ँसा। जाओ इसे वापस करके आओ।"
"बिका हुआ माल वापस नहीं होता, दुकानदार ने कह कर दिया है, चूहा पकड़ाने की कोई गारंटी नहीं । अगर कोई धोखे से फ़ंस जाए तो वह आपके लिए बोनस है।"
"मुझे नहीं मालूम कुछ, आप इसे लौटाकर चूहे मारने का केक लेकर आईए।" मालकिन ने फ़रमान सुना दिया।
"देखो भई, थोड़ा सब्र से काम लो, सब्र का फ़ल मीठा होता है। मानो कि यह चूहेदानी कांग्रेस है और चूहा "आम आदमी पार्टी"। देखा कि नहीं तुमने आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कितने आन्दोलन किए और कांग्रेस की सरकार के नाक में दम कर दिया। आखिर कांग्रेस ने सब्र से काम लिया, अब देखो चूहा उसकी चूहेदानी में फ़ँसा कैसे फ़ड़फ़ड़ाकर उछलकूद कर रहा है। न सत्ता का भजिया निगलते बन रहा है, न उगलते है। बस इंतजार करते जाओं एक दिन इन चूहों को इसी चूहेदानी में फ़ँसना है। चूहों की अम्मा कब तक खैर मनाएगी… सियासत को समझे करो……
बहुत खूब .. जय हो प्रसंसनीय ..हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंरोटी का टुकड़ा लटकाना था न घर के चूहों के लिए लिए !
जवाब देंहटाएंबाकी सत्ता के चूहों/बिल्लियों पर लाजवाब लिखा है !
प्याज लटका के देखना चाहिये था :)
जवाब देंहटाएंहा हा, जब चूहे हड़कंप मचाते हैं तो रात में बड़ा मानसिक कष्ट हो जाता है। ईश्वर करें आपको कोई सफलता मिल जाये।
जवाब देंहटाएंchuhaa fase kaise ab jab chhed aise ho ki raat bhar usme chuhe khelte rahen.....
जवाब देंहटाएंaam adami roopi choohe ko pakdane ke liye to paneer ka lalch dena hoga tamatar pakode dekh kar bechara dar jata hai ..
जवाब देंहटाएंबढिया है जी, सियासत समझने की ही कोशिश कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंयही हाल अपने घर का भी है ..बग़ीचे में बहुत उपाय करते हैं लेकिन सब फेल .....मैं तो सोचती हूँ इन्हें इंतनी ऊर्जा कहाँ से मिलती हैं जो इनके आगे सारे उपाय बेअसर साबित हो जाते हैं .....
जवाब देंहटाएं...शायद इन्हें देख ही आजकल राजनेता राजनीति के चाले सीख गए हैं ..
हमारे घर के चूहे तो केक खाते हैं वो वाला (खाये घर में, मरे बाहर जाकर) और बिलकुल इसका पालन भी करते हैं, हाँ लेकिन अभी सियासत नहीं सीख पाये हैं ये, न जाने शायद सीखने के बाद वो भी ऐसा ही करें :)…
जवाब देंहटाएंशानदार लेखन के लिए बधाई स्वीकारें...
कुछ और उपाय भी हो तो देख लिजिए
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