शुक्रवार, 9 मई 2014

कौड़ी, तू कितने कौड़ी की?

प्राचीन स्थलों पर उत्खनन के दौरान अन्य वस्तुओं के साथ कौड़ियाँ, शंख, सीप भी पाई जाती हैं। इससे जाहिर होता है कि ये मानव जीवन का अहम हिस्सा थी। शंखों से चूड़ियाँ बनाई जाती थी तो सीप और छोटी शंखियाँ आभुषण के रुप में प्रयुक्त होती थी। इनमें कौड़ियों का अहम भूमिका थी। मानव ने जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समाज का निर्माण किया और समूहों में रहने लगा। जीवनोपयोगी आवश्यकताओं की वस्तु के लिए चोरी डकैती करने की बजाए उसने  विनिमय के तौर पर वस्तुओं का आदान-प्रदान किया। स्वयं के पास आवश्यकता से अधिक कोई वस्तु उपलब्ध होने पर अन्य आवश्यक वस्तु से बदला किया। वस्तु विनिमय में बहुत जटिलताएं थी, वस्तु के योग्य मूल्य नहीं मिल पाता था तथा संचयन आदि की आवश्यकता को देखते हुए विनिमय के लिए मुद्रा की आवश्यकता हुई, तब उसने कौड़ियों का इस्तेमाल विनिमय के लिए प्रारंभ किया होगा।

ऐसा नहीं है कि कौड़ियाँ उन्हे सहज ही उपलब्ध हो जाती थी। प्राप्त करने के लिए श्रम करना पड़ता था। कौड़ी जल में पाए जाने वाले जीव (घोंघा) की एक प्रकार की जाति गैस्ट्रोपोडा की उपजाति प्रोसेब्रैकिया है। कौड़ी इस जीव का अस्थिकोश है। यह कुबड़ा खोल रंगीन एवं चमकीला होता है तथा विभिन्न आकृतियों में पाया जाता है। कौड़ियाँ प्राय: हिन्द एवं प्रशांत महासागर के तटीय जल में पाई जाती हैं। रंगीन कौड़ी को प्रशांत महासागर क्षेत्रीय राजा आभुषण के तौर धारण करते थे तथा अफ़्रीका एवं भारत में मुद्रा के तौर पर प्रचलित थी। कौड़ियों की खास पहचान होती है, कौड़ियों के 165 प्रकारों में कुछ प्रयोग ही मुद्रा के तौर होता था। सिर्फ़ "मनी कौड़ी" एवं "रिंग कौड़ी" मे से मनी कौड़ी पीली या हल्के पीले रंग की होती है। भारत एवं एशिया में इसका ही मुद्रा के तौर पर चलन था।

कौड़ियों के विनिमय का मापदंड तय करके लागु किया गया। जिसे विभिन्न कालों में पृथक-पृथक नामों से जाना जाता था। लगभग 3000 से 4500 वर्ष पहले, मध्य चीन में कौड़ी को मुद्रा का प्रारंभिक रूप माना जाता है, मार्कोपोलो ने अपनी चीन यात्रा के दौरान कौड़ियों का प्रयोग मुद्रा के तौर पर होते देखा। अफ़्रीका तथा युरोप के देशों में मुद्रा के तौर पर कौड़ियों का चलन रहा है। मालद्वीप को "कौड़ियों का देश" कहा जाता था इस स्थान से जहाजों भर कर कौड़ियाँ युरोप के देशों में ले जाई जाती थी। यदि मालदीव कौड़ियों को इकठ्ठा करने का केंद्र था तो भारत उनके वितरण का केंद्र था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के ज़माने में भारत में हर वर्ष चालीस हजार पौंड के मूल्य की कौड़ियों का आयात किया जाता था। मुद्रा के तौर पर इसका चलन भारत में 20 वीं शताब्दी में सन् 1939 ईस्वीं तक था। 

प्रारंभिक मुद्रा के रुप में कौड़ियों का प्रचलन था। धातू के सिक्के आने के बाद इसके मानक तय किए गए। भविष्य पुराण में मजदूरों को पारिश्रमिक देने का उल्लेख मिलता है। उस काल में मजदूरी "पण" मुद्रा के रुप में दी जाती थी। बीस कौड़ी की एक कांकिणी और चार कांकिणी का एक "पण" माना गया। मेवाड़ राज्य में  २० भाग = १ कौड़ी, २० कौड़ी = आधा दाम, २ आधा दाम = १ रुपया माना जाता था। सर जॉन माल्कन के अनुसार  ४ कौड़ी = १ गण्डा, ३ गण्डा = १ दमड़ी, २ दमड़ी = १ छदाम,  २ छदाम = १ रुपया (अधेला), ४ छदाम = १ रुपया = ९६ कौड़ी मुद्रा मान था। छत्तीसगढ़ में सदियों से कोरी का मान चलता है, जिससे कौड़ी का भ्रम होता है। पर एक कोरी का मान 20 है और सारी गणना इसके आगे पीछे ही चलती है, जैसे दू आगर 10 कोरी = 202 या फ़िर पाँच कम 10 कोरी = 95 की संख्या होती है।

कौड़ियों ने मानव की सभ्यता के साथ एक लम्बा सफ़र तय किया है। इसके प्रचलन के बाद ही धातुओं के सिक्के विनिमय के लिए प्रयोग में आए। तांबे, चाँदी एवं सोने ने सिक्के का रुप लेकर मुद्रा का स्थान प्राप्त कर लिया और कौड़ी चलन से बाहर हो गई। परन्तु इसका प्रयोग वर्तमान में भी मांगलिक कार्यों एवं श्रृंगार के तौर पर हो रहा है। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचल में आज भी कौड़ियों का उपयोग होता है। अहिर जाति इसे अपने अंग वस्त्रों में लगाकर सौंदर्य वृद्दि करती है वहीं आदिवासी अंचल में नृत्य के समय कलाकार कौड़ियों के आभुषण धारण कर सौंदर्य वृद्धि करते हैं। भारत के अन्य प्रदेशों में भी कौड़ियों का प्रयोग होता है। किसी न किसी तरह से कौड़ी मानव की जीवन यात्रा में भौतिकता के इस दौर में भी सम्मिलित है।

कहावतों में कौड़ियाँ भी ढल गई, दो कौड़ी का आदमी, इससे तात्पर्य है वह आदमी किसी काम का नहीं है। दौ कौड़ी में भी मंहगा है, अर्थात अनुपयुक्त है, कोई काम का नहीं है। फ़ूटी कौड़ी  एवं कानी कौड़ी आदि कहावतों से जाहिर होता है विनिमय के लिए फ़ूटी कौड़ी एवं कानी (छिद्र युक्त) कौड़ी को दोषपूर्ण माना जाता था। जिस तरह वर्तमान में खोटा सिक्का या कटा फ़टा नोट समझा जाता है। दूर की कौड़ी लाना अर्थात कोई महत्वपूर्ण वस्तु, सुझाव या जानकारी लाना। इससे जाहिर होता क्षेत्र के अलावा अन्य कहीं दूरस्थ स्थान से बेहतरीन स्तर की कौड़ी भी लाई जाती थी। इस तरह कई तरह की कहावतों में कौड़ियों का इस्तेमाल हुआ है। 

कौड़ी से पासे का खेल खेला जाता था और खेला भी जाता है। अभी भी गावों में समय व्यतीत करने एवं मनोरंजन के लिए कौड़ियों से तीरी-पासा खेला जाता है। कौड़ी एवं सीपों अब घर सजाने के लिए विभिन्न तरह के सजावटी बंदनवार, तोरण, हैंगर इत्यादि बनाए जाने लगे हैं। कौड़ी को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। त्यौहारों में विवाहादि मांगलिक अवसरों पर कौड़ी का चलन अब भी कायम है। भले ही कौड़ी मुद्रा के रुप में चलन से बाहर हो गई हो पर कहावतों एवं लोकसंस्कृति में लोक के जनमानस में अभी भी श्रद्धा की पात्र बनी हुई है।चाहे कितना भी सांस्कृतिक बदलाव आ जाए पर कौड़ी प्राचीन काल से लेकर अब तक मानव के साथ जुड़ी हुई है। कौड़ी से बिछुड़ने की सोचना भी दूर की कौड़ी है।

13 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी जानकारी.... अब भी कई शुभ कार्यों में कौड़ी काम आती है ....

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  2. सुबह सुबह शानदार जानकारी पढने को मिली :)
    आभार !!

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  3. Kuch dinon pahle FB par Koudinyon ka ullekh dekh kar ek post daalne ki sochi thi. Aaaj apke post ko dekh man prasann hua,
    16 Pan = 1 Karshapan

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  4. P.N. Subramanian ji - पोस्ट कौड़ियों पर ही केन्द्रित रखनी थी इसलिए अधिक विस्तार नहीं दिया, वरना पोस्ट का मुख्य विषय मुद्राएँ हो जाती। :)

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  5. मांगलिक कार्यों मे मोली के रुप में बाँधी जाने वाली डोरी मे कौडी आवशयक रुप से होती है , जल से भरे लोटे मे रखी जाती है , इसका कारण पता नहीं !
    कौड़ी मुद्रा के रुप मे प्रयोग की जाती थी , रोचक जानकारी प्राप्त हुई !!

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  6. कौड़ी कितने कौड़ी की है यह तो पता नहीं पर एक कौड़ी की औकात 1 रुपए से ज्यादा की ही है। यह मैं दावे से कह सकता हूँ।
    आज के दौर में 1 कौड़ी =5 रूपये , का मान लागू होता दिख रहा है :) :)

    सादर

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  7. बचपन में मुद्रा के लिए कौड़ी, दमड़ी, छदाम जैसे शब्द सुने थे. आज वे ताजा हो गए. :)

    कौड़ी तो चलो ठीक, गमड़ी वगेरे कैसे थे पता नहीं.

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  8. दो कौड़ी की औकात नहीं, और... यह कहावत भी सुनी हुई है
    सुनी क्या है, पूरी ठसक से उपयोग में लेते रहे हैं ;)

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  9. आज तक इस कहावत को सुनते तो आ रहे थे पर इसके मायने अब समझ में आये।।।

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  10. सचमुच कौड़ी हमारे जीवन से किसी न किसी रूप में आज भी जुड़ी हुई है। बहुत बढ़िया जानकारी...

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