गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

प्राचीन शिल्प में वाद्ययंत्र एवं नृत्य : खजुराहो

बरसन लागे सावन, बूंदिया आवन लागे… गायन-वादन हमारी प्राचीन विद्या है। पता नहीं कितने हजारों वर्षों से बांसुरी की मधूर तान मनुष्य हृदय के तारों को तरंगित कर रही है। वैसे माना जाता है कि सभी वाद्य यंत्रों में बांसुरी एवं मृदंग का प्रयोग मानव ने पहले प्रारंभ किया। भारत से लेकर युरोप जर्मनी तक प्राचीन काल में बांसुरी की उपस्थिति मिलती है। लगभग 40,000 से 35,000 साल पहले की कई बांसुरियां जर्मनी के स्वाबियन अल्ब क्षेत्र में पाई गई, जो हड्डी की बनी हुई हैं।

मुरली वादन… लक्ष्मण मंदिर खजुराहो
भारत के मुरलीधर, वेणुगोपाल, कृष्ण जग प्रसिद्ध हैं, जिनकी बांसुरी की मधुर तान पर चराचर जगत मोहित है। गायन एवं वादन का संबंध देह एवं देही की तरह हैं, एक के बिना दूसरा अधूरा हो जाता है। सुर ताल का संगम मनुष्य को किसी और ही दुनिया में ले जाकर स्वर्गिक आनंद दिलाता है। देवताओं से लेकर आम नागरिक तक को संगीत ने प्रभावित किया। गायन-वादन के साथ नृत्य भी जुड़ा हुआ है। बिना वाद्य के नृत्य की ताल नहीं बैठती। यह प्राचीन काल से वर्तमान तक मनोरंजन का साधन बने हुए हैं। 
आलाप… लक्ष्मण मंदिर खजुराहो
उपरोक्त चित्र खजुराहो के मंदिरों से लिए गए हैं। खजुराहो के मंदिरों का मूर्ति शिल्प इतना जीवंत एवं विविध विषयक है कि लगता है गागर में सागर समा गया है। जितना ढूंढो, उससे अधिक पाओ जैसे हालत हैं। प्राचीन शिल्प में तत्कालीन वाद्य यंत्रों एवं नृत्य का ज्ञान होता है। शिल्पकारों ने नृत्य की भाव भंगिमा को अपने शिल्प में बखुबी उतारा है। 
नृत्य गणपति लक्ष्मण मंदिर खजुराहो
भारतीय संगीत की अपनी समृद्ध परम्परा है, जो गुरु से शिष्य को मिलती है। चित्र में दिखाई गई स्थानक प्रतिमा में देवांगना मुरली वादन कर रही है तथा एक अन्य स्त्री बैठे हुए, कान पर हाथ लगाकर आलाप ले रही है। आलाप एवं मुरली की तान का मधुर कर्णप्रिय संगम प्रात: कालीन राग भैरव वातावरण में रस घोल रहा है। सोचिए वह सुबह कैसी होगी, जब आपकी आँखें खुले और कानों में मधुर संगीत की स्वर लहरियाँ सुनाई दे। 
मृदंग वादन लक्ष्मण मंदिर खजुराहो
दूसरा प्रतिमा शिल्प इससे भी अधिक महत्वपूर्ण है, इसमें नृत्य गणपति दिखाई दे रहे हैं। नटराज शिव के अलावा गणपति ही ऐसे देव हैं जिनकी नृत्य करते हुए प्रतिमाएँ शिल्प में दिखाई देती हैं। मंगलमुर्ति गणेश की नृत्य प्रतिमा शुभ एवं मांगलिक मानी जाती है। जब हृदय प्रसन्न हो एवं आल्हाद के भाव उठ रहे हो तभी नृत्य के लिए पैर थिरकते हैं तथा प्रसन्न हृदय देवता से जो भी वरदान मांगा जाए वह मिलना निश्चित है। 
ड्रम वादन लक्ष्मण मंदिर खजुराहो
गणपति की प्रतिमा में बांए तरफ़ एक व्यक्ति नृत्य के साथ ताल मिलाने के लिए ड्रम बजाता दिखाई दे रहा है। जबकि ड्रम तो प्राश्चात्य वाद्य माना जाता है। इसका चलन भारत में लगभग अट्ठारवीं सदी में प्रारंभ हुआ, परन्तु यहाँ ड्रम का वादन हमें नवमीं शताब्दी में दिखाई दे रहा है। है न दिमाग पर जोर डालने की बात। गणपति के दूसरी तरफ़ एक वाद्यक मृदंग बजा रहा है। देखने से ऐसा लगता है कि गणपति भारतीय एवं पाश्चात्य वाद्य के फ़्यूजन पर नृत्य कर रहे हैं। कुल मिलाकर रस संगीत में ही है, बाकी जो है सो तो हैइए है

2 टिप्‍पणियां:

  1. ये ड्रम तबला तो नहीं गुरूजी ? तबला तो भारतीय ही है ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’चापलूसी की जबरदस्त प्रतिभा : ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

    जवाब देंहटाएं