रविवार, 3 दिसंबर 2017

कलजुग केवल नाम आधारा, टमर टमर नर उतरहिं पारा।

हजार बार टटोलता हूँ घर से निकलने पहले आधारकार्ड को, भूल तो नहीं गया। अगर किसी ने आधार पूछ लिया और न मिला तो कहीं परग्रही करार न दे दिया जाऊं, अच्छा भला आदमी पी के हो जाएगा। भले ही और भी कुछ जरुरी सामान छूट जाए, पर आधार नहीं छूटना चाहिए वरना निराधार चपेट में आने का खतरा बना रहता है। 
सफ़र के दौरान हवाई अड्डे के प्रवेश द्वार पर ही टिकिट के साथ पहचान पत्र दिखाना पड़ता है, अब आदमी कितने पहचान पत्र रखे, आधार दिखाने से काम चल जाता है, भले ही फ़ोटो किसी और की सी लगे, पर सुरक्षा अधिकारी आधार देखते ही भीतर जाने दे देता है, समझता है कि देश का जिम्मेदार एवं ईमानदार नागरिक है, जो निराधार नहीं है। 
पूरे सफ़र में घर लौटते तक दिमाग पर आधार ही छाया रहता है, बैठे-बैठे चौंक कर अनायास ही आधारकार्ड पर हाथ चला जाता है, जरा टटोल लूँ कहीं भूल तो नहीं आया। बैग में भी कई जेबें होती है, इधर वाली में रखकर उधर वाली में टटोलने पर अगर आधारकार्ड नहीं मिलता तो माथे से पसीने की बूंदे चूह जाती हैं। फ़िर सारा सामान उलटकर आधार मिलने पर जो संतुष्टि होती है, उसका बयान नहीं कर सकता।
एक बरस पहले ही बैंक मैनेजर ने आधारकार्ड मांग लिया था, कहा कि खाते से आधारकार्ड लिंक करना पड़ेगा, उसके बाद रसोई गैस भी आधारकार्ड से लिंक हो गई, अब तो हालात ये हो गए हैं कि सांसे भी आधारकार्ड से स्वत: लिंक हो गई हैं। चौबीस घंटे में जितनी सांसे लेता हूँ पूरी गिनती आधारकार्ड बता देता है। राशन से लेकर प्राशन तक सब आधार हो गया है। 
कुछ दिन पहले नगर पंचायत से कूड़े के दो डिब्बे (नीले-हरे) वितरण करने के लिए कर्मचारी आए। डिब्बे रखने के बाद उन्होंने पहले आधारकार्ड मांगा। पंजी में आधारकार्ड नम्बर दर्ज करने के बाद उन्होंने दोनो डिब्बे मेरे सुपूर्द किए और कहा कि आजकल तो हर चीज में आधारकार्ड अनिवार्य हो गया है। बिना आधार कोई भी शासकीय सुविधा नहीं मिल सकती। शासकीय अस्पताल में आधारकार्ड अनिवार्य हो गया है, जिसके पास आधारकार्ड नहीं, उसको ईलाज कराने की पात्रता नहीं।
कुछ दिनों पहले एक समाचार सोशल मीडिया में वायरल हो रहा था कि फ़रीदाबाद के श्मशान से। जहाँ बड़ा सारा सूचना पट लगा है, जिसमें लिखा है कि मृतक का आधार कार्ड लाना जरुरी है, नहीं तो संस्कार नहीं होगा। लो जी! आधार ने अब तक तो जीना मुहाल कर रखा था अब मरना भी दुष्कर हो गया। 
लगता है कि अगर बिना आधार कार्ड मर गए और जबरिया अंतिम संस्कार कर भी दिया तो ऊपर बिना आधार कार्ड के यमराज जी स्वीकार नहीं करेंगे। दुआरे से लात मार दिए जाओगे, न नीचे के रहोगे न ऊपर के। मैं तो यह सोचकर हलकान हूँ कि अब न जाने कितने त्रिशंकू ब्रह्माण्ड में चक्कर लगाएंगे निराधार होकर। राम जाने कितनी कर्मनाशाएँ धराएँ पर अवतरित होंगी।
इन सब हालात को देखकर भगवान से एक ही विनती है कि अब किसी को धरती पर भेजे तो बिना आधारकार्ड के न भेजे। ऊपर से सीधे आधार नम्बर प्रिंटेट बॉडी भेजे। माथे पर लिखा हुआ आधार नम्बर दूर से ही दिख जाए। न खो ने झंझट, न ढूंढने का लफ़ड़ा। न दिल दिमाग आधार के पीछे लगा रहे। यहाँ तो जिन्दगी आधारकार्ड संभालने और नम्बर दर्ज कराने में बीत रही है। भाई इतना तो रहम करो, आधार के बिना जीने नहीं दे रहे, कम से कम मरने तो दो। कलजुग केवल नाम आधारा, टमर टमर नर उतरहिं पारा।

4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ललित भाजी, बहुत खूब लिखा आपने।
    परन्तु जल्द ही हम सब को आधार कार्ड से ऊपर कर अँगूठा छाप बना दिया जाएगा जी। बस एक अँगूठा ही काफी है पहचान के लिए।

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    1. समाचार आया था कि अंगूठे भी नकली बन रहे हैं। जेब में रखकर घूमिए, जहाँ चाहे चिपकाईए।

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  2. सुंदर, व्यंगात्मक वर्णन सरजी

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