चतुर शिल्पकार वही होता है जो निर्माण सामग्री व्यर्थ न होने दे। ऐसी ही कुछ शिल्पकार की चतुराई हमें हम्पी के विट्ठल मंदिर स्थित विष्णु रथ में दिखाई देती है। विष्णु रथ का निर्माण एकाश्म शिला की बजाय पृथक पृथक खंड में हुआ है। जैसे #काष्ठ रथ का निर्माण होता है उसी तरह प्रस्तर से इसका निर्माण प्रस्तर से किया गया है। यह रथ हम्पी का प्रतीक चिन्ह है। इसे देखकर ही समझ आ जाता है कि यह हम्पी है।
राजा कृष्णदेव राय के काल में हम्पी के विजय नगर साम्राज्य ने चतुर्दिक उन्नति की, हम कह सकते है कि यह विजय नगर के लिए स्वर्णकाल था। विशाल एवं भव्य निर्माण हुए जो हमें आज भी उस काल की याद दिलाते हैं। अगर दो दिन ठहर जाएं तो लगता है कि किसी नई दुनिया में आ गए। यहाँ के भव्य स्मारक व्यक्ति को टाईम मशीन में डाल कर उस काल तक पहुंचाने में सक्षम हैं।
हाँ तो मैं बात कर रहा था विष्णु रथ की। शिल्पकार की चतुराई हमें इसमे जुते हुए गजों के निर्माण में दिखाई देती है। हमको दिखाई दे रहा है कि विष्णु रथ को दो गज खींच रहे हैं। परन्तु रथ को गजों के द्वारा खींचते हुए निर्मित करना मुझे अन्य किसी स्थल के शिल्प में दिखाई नहीं दिया। गजों पर हौदा रखकर माननीयों की उसमें सवारी अवश्य दिखाई देती है।
अगर हम गज के पार्श्व भाग को ध्यान से देखें तो उसमें अश्व की पिछली टांगे दिखाई देती है। शिल्पकार अश्वों द्वारा खींचा जाने वाला रथ बना रहा था परन्तु किसी तकनीकि कारण या शिला शिल्प में दोष होने के कारण उसने आगे अश्वों की जगह गजों का निर्माण कर दिया।
लक्ष्मी पति होने के कारण विष्णु की लक्ष्मी सह गजारुढ़ प्रतिमाएँ या चित्र तो मिलते हैं पर गज रथ नहीं मिलता। शिल्पकार की इस चतुराई के कारण एक शिला व्यर्थ होने से बच गई और रथ को नवीन रुप मिलने के साथ उसके निर्माण का अर्थ ही बदल गया है। धन्य हैं ऐसे शिल्पकार, मैं उन्हें सादर नमन करता हूँ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें