पंख झाड़ चुका मोर, यह चित्र मध्य नवम्बर माह में पुष्कर राजस्थान के पास अजयपाल के मंदिर के समीप का है। इस समय मोर अपने सारे पंख झाड़ चुका था और नए पंख निकल रहे थे।
वैसे वर्ष में एक बार अगस्त माह के आस पास मोर अपने सारे पंख झाड़ देता है और ग्रीष्म काल आते तक उसके सारे पंख पुन: आ जाते हैं। मोरनियों को रिझाते समय नृत्य के दौरान भी इसके पंख टूट जाते हैं।
प्राचीन काल से ही लोक के लिए मोर महत्वपूर्ण पक्षी है, चंद्रगुप्त का साम्राज्य का चिन्ह ही मोर था और इसलिए वे मौर्य कहलाए। चंद्रगुप्त के सिक्कों पर मोर चिन्ह का अंकन होता था। वैसे मोर को तंत्र से अधिक जोड़ा गया है। धन समृद्धि के लिए मोर पंख को घर में रखना बताया गया। पौराणिक ग्रंथों में देवताओं ने मोर को विशेष स्थान दिया।
इन्द्र देव का मोरपंख के सिंहासन पर बैठना, कृष्ण का अपने मुकुट पर मोरपंख को स्थान देना, यहां तक पौराणिक काल में महर्षियों द्वारा इसी मोरपंख की कलम बनाकर बड़े-बड़े ग्रंथ लिखना आदि कुछ ऐसे मुख्य उदाहरण हैं, जो #मोरपंख की उपयोगिता का स्वत: बखान करते हैं।
बौद्धधर्म के अनुसार मोर अपनी पूंछ फैलाकर अपने सारे पंखों को खोल देता है, इसलिए उसके पंख खुलेपन अर्थात जहां विचारों की कमी ना हो, व्यक्तियों के दिल में हर किसी के लिए प्रेम और सानिध्य हो, जैसे हालातों को दर्शाते हैं।
ईसाई धर्म में मोर के पंख, अमरता, पुनर्जीवन और अध्यात्मिक शिक्षा से संबंध रखते हैं। इस्लाम धर्म में मोर के खूबसूरत पंख जन्नत के दरवाजे के बाहर अद्भुत शाही बगीचे का प्रतीक माने जाते हैं।
तांत्रिक क्रियाओं में भी मोर पंख का उपयोग होता है, मोरपंखी से झाड़ा देकर नकारात्मक शक्तियों को दूर किया जाता है, सुख समृद्दि एवं #वशीकरण में मोर पंख को उपयोगी माना गया है।
दिगम्बर जैन साधु मोर पंख का चंवर अपने साथ रखते हैं। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मोर के माध्यम से देवताओं ने संध्या नाम के असुर का वध किया था।
पक्षी शास्त्र में मोर और गरुड़ के पंखों का विशेष महत्व बताया गया है। कहते हैं कि सही विधि से मोर पंख को घर में स्थापित किया जाए तो वास्तु दोष दूर होते हैं और कुंडली के सभी नौ ग्रहों के दोष भी शांत होते हैं। अपने गुण एवं विशेषताओं के कारण मोर हमारा राष्ट्रीय पक्षी भी है।
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