देख कुछ गुलाब लाया हूँ तेरे लिए
तोहफे बेहिसाब लाया हूँ तेरे लिए
चश्मेबद्दूर नज़र ना लगे तुझे कभी
इसलिए नकाब भी लाया हूँ तेरे लिए
अभी तो आई अभी ही चली गई
जिन्दगी कैसे छलती चली गई
घूँघट उठाया जैसे ही दुल्हन का
बड़ी बेवफा थी बिजली चली गई
मेरे शहर में कई इज्ज़त वाले रहते हैं
लेकिन वो इज्ज़त देते नहीं हैं ,लेते हैं
दो रोटियों का खुशनुमा अहसास देकर
गरीब तन के कपडे भी उतार लेते हैं
शाम से सोचता रहा माज़रा क्या है
चाँद है अगर तो निकलता क्यूँ नहीं है
कब तक रहेगा यूँ ही इंतजार का आलम
क्या नया चाँद कारखाने में ढलता नहीं है
तपती धूप में छाँव को तरसती है जिंदगी
भागते शहर में गांव को तरसती है जिन्दगी
शहर जला था जब से दंगे की आग में लोगों
बूढे बरगद की छावं को तरसती है जिंदगी
तपती धुप में छाँव को तरसती हैं जिंदगी
जवाब देंहटाएंभागते शहर में गांव को तरसती हैं जिन्दगी
शहर जला था जब से दंगे की आग में लोगो
उस बूढे बरगद की छावं को तरसती हैं जिंदगी
यह जिंदगी भी कितनी अजीब है न
मुक्तक बड़े जोरदार है उम्दा प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया मुक्तक सुनायेव ललित भाई. मोर गांव ला सुघ्घर सुरता करेव बने लागिस.
जवाब देंहटाएंशहर जला था जबसे दंगे की आग में लोगों ..निश्चित ही इस रचना के सामाजिक सरोकार तो हैं ।
जवाब देंहटाएंdhanyavad shard bhai,aapka aagmam hi hamara zambal hai,
जवाब देंहटाएंDhanyawad shardji. choti si kavita mein aapne kai baato ko badhi khubsurati se kah dala.
जवाब देंहटाएंLalit ji ek galti ho gayi mujhse. kshma chahti hun.
जवाब देंहटाएंmuktak aache hain lalitji. 'Tapti dhoop mein chaanw' to haasil-e-post hai. Shubhkamnayein.
जवाब देंहटाएंAnkur (http://gubaar-e-dil.blogspot.com)
bahut hi accha wah wah kya baat hau , lalit G me bhi ek kalmkar banna chhta hu aapki kya ray hai mere bare me, me aage kalpnik kavitay likhna chtha hu plz aapki ray de tnx.
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 16-- 11 - 2011 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं...नयी पुरानी हलचल में आज ...संभावनाओं के बीज
क्या ने चाँद कारखाने मैं ढलता नहीं ..क्या बात है
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rachana hai...
जवाब देंहटाएंकब तक रहेगा यूँ ही इंतजार का आलम
जवाब देंहटाएंक्या नया चाँद कारखाने में ढलता नहीं हैं
तपती धुप..... छावं को तरसती हैं जिंदगी
वाह जवाब नहीं है इनका, लाजवाब मुक्तक...
अंतिम मुक्तक ने कुछ बीता हुआ फिर से आखों के आगे जीवंत कर दिया... ये मुक्तक जिंदगी की सच्चाई है... आभार
सुग्घर मुक्तक कहे हस ललित भईया....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई
bahut jabardast lay me sateek baate kah dali.
जवाब देंहटाएंतपती धुप में छाँव को तरसती हैं जिंदगी
जवाब देंहटाएंभागते शहर में गांव को तरसती हैं जिन्दगी
शहर जला था जब से दंगे की आग में लोगो
उस बूढे बरगद की छावं को तरसती हैं जिंदगी
ज़िंदगी की स्वाभाविक तस्वीर!