हम सब ने हिन्दी दिवस मनाया, बड़ी गरमा-गरम बहस हिन्दी के प्रसार प्रसार के लिए चली. कल हिन्दी ब्लॉगों में लगभग सभी ने हिन्दी राग अलापा, एक दिन हिन्दी के पक्ष में नारा लगा के कर्तव्य की इति श्री कर ली. बहती गंगा में हाथ धो लिए।
हिन्दी के लिए शहीद होने वालो की सूची में अपना नाम लिखा लिया. कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने सबको चर्चा करते देख "लोग क्या कहेंगे मेरे बारे में" सोचकर चार लाइन लिख दी. उनमे मैं भी शामिल हूँ.
मै नया-नया इस ब्लॉगरी मायावी जाल से जुड़ा हूँ. यहाँ के क्या रस्मो रिवाज हैं. कौन वरिष्ठ है, कौन गरिष्ठ है, कौन उत्तिष्ठ है, कौन वशिष्ठ है, मुझे नही मालूम, लेकिन अपनी बात कहने का अधिकार सबको है. क्या एक दिन हिन्दी-हिन्दी कह कर चिल्लाने से हिन्दी का प्रचार हो जाएगा?
भाई हम तो सुबह से हिन्दी में चालू होते हैं, तो सोने के बाद भी हिन्दी ही चलती रहती है.सपने में भी वार्तालाप हिन्दी में ही होता है. किसी को गालियाँ देनी होती है तभी अंग्रेजी बोलते है। :)
हिन्दी के लिए शहीद होने वालो की सूची में अपना नाम लिखा लिया. कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने सबको चर्चा करते देख "लोग क्या कहेंगे मेरे बारे में" सोचकर चार लाइन लिख दी. उनमे मैं भी शामिल हूँ.
मै नया-नया इस ब्लॉगरी मायावी जाल से जुड़ा हूँ. यहाँ के क्या रस्मो रिवाज हैं. कौन वरिष्ठ है, कौन गरिष्ठ है, कौन उत्तिष्ठ है, कौन वशिष्ठ है, मुझे नही मालूम, लेकिन अपनी बात कहने का अधिकार सबको है. क्या एक दिन हिन्दी-हिन्दी कह कर चिल्लाने से हिन्दी का प्रचार हो जाएगा?
भाई हम तो सुबह से हिन्दी में चालू होते हैं, तो सोने के बाद भी हिन्दी ही चलती रहती है.सपने में भी वार्तालाप हिन्दी में ही होता है. किसी को गालियाँ देनी होती है तभी अंग्रेजी बोलते है। :)
मैं विगत कई वर्षों से दक्षिण भारत की यात्रा कर रहा हूँ, लेकिन मुझे सबसे ज्यादा परेशानी पुद्दुचेरी और तमिलनाडू में होती है.
लगता है मै किसी ऐसे टापू पर आ गया हूँ जहाँ कोई मेरी भाषा भी समझने वाला नही है ,कोई मुझे सुनने को तैयार नही, मैं जरुर उनके मुंह की तरफ़ देखता था कि ये क्या बोल रहे हैं? समझने की कोशिश करता था.
आज़ादी के ६३ बरसों के बाद भी जो हिन्दी सुनने समझने को तैयार नहीं है. उनको हिन्दी के लिए कैसे मनाया जाएगा?
ये चिंतन विषय है. हम उनसे अपनी भाषा छोड़ने नही कहते हैं पर सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी अनिवार्य होनी चाहिए,
पुद्दुचेरी में एक बार मुझे शिल्पकारों के कार्यक्रम की अध्यक्षता करने जाना था। अपने एक मित्र जो तीन पीढियों से हिन्दी भाषी क्षेत्र में रह रहे हैं उनको अपने खर्चे पर साथ लेकर गया कि मुझे अनुवाद करके वहां के लोगों की बात समझायेंगे, लेकिन वहां की तमिल से उनकी भी हवा निकल गई, मेरा प्रयास निरर्थक रहा.
उनको साथ ले जाने का भी मुझे लाभ नही मिल पाया, केरल, कर्नाटक में अधिक परेशानी नही है. वहां पर लोग हिन्दी समझते हैं और बोलते भी हैं।
लगता है मै किसी ऐसे टापू पर आ गया हूँ जहाँ कोई मेरी भाषा भी समझने वाला नही है ,कोई मुझे सुनने को तैयार नही, मैं जरुर उनके मुंह की तरफ़ देखता था कि ये क्या बोल रहे हैं? समझने की कोशिश करता था.
आज़ादी के ६३ बरसों के बाद भी जो हिन्दी सुनने समझने को तैयार नहीं है. उनको हिन्दी के लिए कैसे मनाया जाएगा?
ये चिंतन विषय है. हम उनसे अपनी भाषा छोड़ने नही कहते हैं पर सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी अनिवार्य होनी चाहिए,
पुद्दुचेरी में एक बार मुझे शिल्पकारों के कार्यक्रम की अध्यक्षता करने जाना था। अपने एक मित्र जो तीन पीढियों से हिन्दी भाषी क्षेत्र में रह रहे हैं उनको अपने खर्चे पर साथ लेकर गया कि मुझे अनुवाद करके वहां के लोगों की बात समझायेंगे, लेकिन वहां की तमिल से उनकी भी हवा निकल गई, मेरा प्रयास निरर्थक रहा.
उनको साथ ले जाने का भी मुझे लाभ नही मिल पाया, केरल, कर्नाटक में अधिक परेशानी नही है. वहां पर लोग हिन्दी समझते हैं और बोलते भी हैं।
हिन्दी एक अविरल प्रवाहित महानदी मन्दाकिनी है जो सदियों से जनमानस को सिंचित करती आई है, प्राणवायु के रूप में हमारे शरीरों में साक्षात् समाहित है।
इसलिए हमें प्रत्येक साँस को ही हिन्दी दिवस समझना चाहिए।
िबिल्कुल सही कहना है आपका .. हिन्दी के प्रति आपकी भावना बहुत अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंसही कहा..सहमत!!
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