शुक्रवार, 23 मार्च 2012

मंजिल की ओर एक कदम --- ललित शर्मा


जन्मदिन की पूर्व संध्या पर सैर के लिए निकला। अंधेरा हो चुका था। सैर के रास्ते में श्मशान पड़ता है। शाम को कभी वहीं एक पुलिया पर बैठ जाता हूँ। अंधेरे मे कुछ काली आकृतियों की हलचल दिखाई देने लगी। 15-20 लोगों का झुंड था। मैने सोचा कि शराबी या जुआड़ी होगें। क्योंकि सबसे मुफ़ीद जगह इन सब कार्यों के लिए श्मशान ही रहती है। नजदीक जाकर देखा तो एक शव किनारे रखा था और चिता सजाई जा रही थी। हिन्दु धर्म में दोनो वक्त मिलने के बाद अन्त्येष्टि क्रिया नहीं करते और मैने आज तक देखी भी नहीं थी।  श्मशान घर के समीप होने के कारण रात को गाहे-बगाहे वहीं शरण लेता हुँ। मरघट की शांति अच्छी लगती है, लेकिन लोग उसे भी अशांत किए देते हैं। फ़िर भी मैं कोई एक कोना ढूंढ ही लेता हूँ। लगता है कि अभी कोई चिता के उठकर आएगा और मुझसे बतियाएगा। बरसों बीत गए लेकिन कभी ऐसा नहीं हुआ। अंधेरे में चिता सज गयी और मुखाग्नि दे दी गयी। जो लाए थे उसे वे अंधेरें आग लगा कर जलता छोड़ गए।

कल तक जो घर का मालिक था, जिसके इशारे पर घर चलता था, उसके निष्प्राण होते ही किसी भी परिजन को इतना सब्र नहीं था कि उसे रात भर घर में पनाह दे देते। जिससे उसका अंतिम संस्कार सुबह हो जाता। कल तक जिसे जिगर का टुकड़ा समझते थे, प्यार की कसमें खाई जाती थी। एक झटके में ही वह बेगाना हो जाता है। अपने सभी पराए हो जाते हैं। यही दुनिया है। यही संसार है, लोग जीवन भर साथ निभाने की कसमें खाते हैं, लेकिन जीवन के बाद की कोई कसम नहीं खाता। यही द्वैत जन्म लेता है, दुनिया मिथ्या लगने लगती है। होने के बाद भी नहीं होती। ब्रह्म सत्य हो जाता है और जगत मिथ्या हो जाता है। जो हमारे सामने घट रहा है वह दृष्टिगोचर नहीं होता। क्योंकि मुर्दे कभी बोलते नहीं है, इसलिए उसके साथ जो चाहे वह कर लो। श्मशान में बैठ कर यही देखते आया हूँ। जीवन से विरक्ति नहीं होती पर सच से सामना हो जाता है, जिससे जीवन में कठोर से कठोर निर्णय लेने की क्षमता बढती है। भावुकता तिरोहित हो जाती है।

श्मशान से घर चला आया। सामने हाईवे पर तारकोल चढाया जा रहा था। पुरानी सड़क कुछ उखड़ गयी थी, उसे नया बनाया जा रहा था। यह लोकनिर्माण विभाग का वार्षिक कार्यक्रम है। थोड़ी देर खड़ा होकर काम करते मजदूरों को देखता रहा। गर्म तारकोल में वे खड़े होकर उससे जमा रहे थे। मशीने लगी हुई थी, एक इंजीनियर गेज लेकर तारकोल की गिट्टियों की मोटाई नाप रहा था और जहां गिट्टियाँ कम थी वहाँ और डलवा रहा था। रोलर उसे समतल करता जा रहा था। घर पहुंचा तो बच्चे मेरे जन्मदिन मनाने की तैयारी की चर्चा कर रहे थे। मै सोच रहा था कि प्रतिवर्ष जन्मदिन मनाने की प्रक्रिया सड़क पर तारकोल चढाने जैसी ही है। प्रतिवर्ष एक परत चढ जाती है समय की। जन्मदिन उसी का उत्सव मनाने की प्रक्रिया मात्र है। ताकि यह ज्ञात रखा जा सके कि कितना समय बाकी है, जिसमे सफ़र तय करना है। सोचते सोचते मुझे नींद आने लगती है अंग-प्रत्यंग शिथिल होने लगते हैं। जन्मदिन की पूर्व रात्रि में एक भरपूर नींद लेना चाहता हूँ जैसी शमशान मे ले रहा था चिता में लेटा हुआ मुर्दा। क्योंकि सुबह फ़िर जन्म लेना है और तबियत तरोताजा रहनी चाहिए। जिससे तारकोल की एक परत चढाने में आसानी हो।

आप सोच रहे होगें कि जन्मदिन जैसे शुभ अवसर पर मैं मुर्दो और श्मशान की बातें क्यों कर रहा हूँ? यह इसलिए की जन्म होने के बाद रास्ता वहीं जाकर खत्म होता है, चाहे पगडंडी से चल कर जाओ या राजमार्ग से होकर जाओ। पहुंचना वहीं है। कितने दिनों तक तुम शतुरमुर्ग की तरह रेत में गरदन धंसा कर धोखा दे पाओगे। जो अपने पैरों से चल कर वहां पहुंचता है वह सौभाग्यशाली ही होगा। लेकिन यह शायद किसी नसीब वाले के ही खाते में जाता होगा। वरना दुनिया इतने अनचाहे और अनजाने पाप कराती है कि अपने पैरों पर श्मशान चलकर जान संभव नहीं है। एक कदम उस मार्ग की ओर बढाने की तैयारी करनी है। इस तैयारी में सभी शामिल हैं। चिंतन करते हुए नींद आ जाती है। सहसा मुझे कोई झिंझोड़ कर गहरी नींद से जगाता है। नींद में दीदे फ़ाड़ कर देखता हूं तो 4-5 चेहरे दिखाई देते हैं और पापा हैप्पी बर्थ डे सुनाई देता है। रात के 12 बज चुके हैं और मुझे नींद से जगाकर पत्नी और बेटे-बेटियाँ जन्मदिन का उपहार देते हैं। कितना प्रेम करते है वे मेरे से। उनका यह अंदाज अभिभूत कर जाता है। यहाँ पर आने पर जगत मिथ्या नहीं लगता। सब सच हो जाता है। वास्तविक हो जाता है। मैं उपहार सिरहाने रख कर फ़िर सो जाता हूँ।

सुबह उठकर सैर के लिए जाता हूँ रास्ते में वही श्मशान आता है, रात को जलाई गयी चिता की राख पड़ी है। माटी का चोला माटी में समा गया। जहां से आया था वहीं चला गया। इसने भी न जाने कितने जन्मदिन मनाए होगें? न जाने इसकी माँ ने कितनी बलैयां ली होगीं? न जाने पत्नी बच्चों, भाईयों बहनों ने कितना चाहा होगा? जीवन रहते तक का ही साथ रहा था, सबने जीवन तक का वादा निभाया, अब रक्षाबंधन पर बहन राखी लिए फ़िरती रहेगी, भैया की कलाई होती तो बांधती। पत्नी भी तड़पती होगी, बिना किसी सहारे के बच्चों के पालन के लिए जीजिविषा से लड़ती होगी। यही दुनियादारी है, जो दुनिया में रहने तक ही जारी है। यही जीवन है जिसकी आखरी मंजिल श्मशान ही है। यहाँ की भरपुर चिरनिद्रा के पश्चात व्यक्ति को किसी न किसी रुप में पृथ्वी पर पुन: आना है तरोताजा होकर। जन्म लेना है, शतायु होने का आशीर्वाद पाकर शतायु होने की कामना करनी है। बस सफ़र यहीं तक का है, हमसफ़र भी यहीं लाकर छोड़ जाते हैं। जन्मदिन मनता रहता है जयंती के रुप में और अंतिम सफ़र मनता है पुण्यतिथि के रुप में। हम भी बढ चले हैं मंजिल की ओर एक कदम और्…………।

19 टिप्‍पणियां:

  1. विपर्यास में प्रकट सत्‍य.

    जवाब देंहटाएं
  2. jiwan darshan ko aapne kafi karib se dekha, jana aur likha hai.........ek katu sachhai...jis pr kuchh kah pane ka samarthya hm me nahi hai...... jiwan maran ke ek khel me kaun , kab sath chhod de, so jiwan ke jitne bhi pal mile , khushi se ji lo..warna rah jata hai sirf ek hi shabd.... 'kash'...

    जवाब देंहटाएं
  3. अपनों के प्रति मोह और ममता के कारण .. सांसारिक जीवन जीने वालों के मध्‍य इस विषय पर चिंतन कम है .. पर असली सत्‍य तो यही है !!

    जवाब देंहटाएं
  4. "मृत्यू..." जीवन का अंतिम और अटल सत्य... फिर भी जीवन चलने का नाम है...और एक दिन पहुँच ही जाते हैं मंजिल तक कदम छोड़कर इस मोह-माया के बंधन को... क्रम चलता रहता है अनवरत...

    जवाब देंहटाएं
  5. जनम - दिन और मरण -दिन ईश्वरीय देंन हैं ....यह हमारे हाथ में नहीं होता पर जनम दिन मानना हमारे हाथ में होता हैं .....और उसे बहुत इंजाय करना चाहिए ऐसा मैं मानती हूँ ...
    जनम का काम ईश्वर ने कर दिया अब जब मरण दिन आएगा तब की तब सोचेगे ..आज तो उमंग से मनाए ....Happy -Happy ...

    जवाब देंहटाएं
  6. ऐसे विचार अक्सर शमशान भूमि में जाकर आते हैं .लेकिन बाहर निकलते ही सब भूल जाते हैं .
    यहाँ तो कई बार देखा है , रात को ही क्रियाक्रम करते हुए .
    वैसे दिन ढलने के बाद हुई मृत्यु में क्रियाक्रम अगले दिन ही किया जाता है .

    जवाब देंहटाएं
  7. जन्म और मृत्यु ..दो शास्वत सत्य जिनपर अपना वश नहीं.

    जवाब देंहटाएं
  8. जन्म और मृत्यु के दर्शन को शब्दों में व्यक्त करना असंभव है फिर भी बहुत अच्छा लगा पढ़ कर. इसके लिए आभार !

    जवाब देंहटाएं
  9. इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल

    जग मे रह जायेंगे ब्लागिंग के बोल

    जवाब देंहटाएं
  10. "माटी का चोला माटी में समा गया। जहां से आया था वहीं चला गया।"

    यही शाश्वत सत्य है!

    किन्तु डॉ. दराल जी ने भी अपनी टिप्पणी में सत्य ही लिखा है कि श्मशान में वैराग्य उपजता तो है किन्तु वह क्षणिक ही होता है।

    जवाब देंहटाएं
  11. मैंने पहली बार किसी लेख को तीन बार पढ़ा है. आपका ये लेख पता नही मन में कैसे कैसे भाव ला रहा है . ये आपके भीतर में छुए हुए मानव की सच्ची बात है . जो आपने यहाँ अपने शब्दों में दर्शाया है और यही एकमात्र अनंत सत्य है .

    जवाब देंहटाएं
  12. जीवन के सच की लालित्यपूर्ण व्याख्या पढ़कर मन को आत्मिक संतुष्टि मिली।
    सही अर्थों में आपने ललित निबंध लिखा है।

    मृत्यु नए जन्म की शुरुआत है, और जन्म पुनर्जन्म के लिए बढ़या गया पहला कदम। इन सब में वास्तविक मृत्यु तो कहीं है ही नहीं। सब जन्म ही जन्म है।

    आपको जन्म दिन की अशेष शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  13. कितने दिनों तक तुम शतुरमुर्ग की तरह रेत में गरदन धंसा कर धोखा दे पाओगे।

    जी हाँ जाना तो सबको वहीं है ...फिर भी सब खुद को धोखे में रखते हैं ... यथार्थ के धरातल पर लिखा लेख

    जवाब देंहटाएं
  14. मृत्यू ही अंतिम सत्य है।सांसारिक मोह माया मे बंधा रहने दो प्रभु ऐसी पोस्ट पढ कर वैराग्य उत्पन्न हो जाता है पल भर के लिए ही सही।बाकी तो जो है वो......

    जवाब देंहटाएं