सोमवार, 31 मई 2010

दिल्ली यात्रा -3 : मैट्रो की सैर एवं एक सुहानी शाम ब्लागर्स के साथ

यात्रा वृतान्त आरम्भ से पढ़ें 

खुशदीप भाई के यहां से विदा लेते समय अविनाश जी ने फ़ोन पर बताया कि आज वे दांतों की दुकान में जाएंगे इसलिए विलंब हो जाएगा। अगर दिल्ली में कहीं घूमना हो तो बताएं। मैने कहा कि आप दांतों की दुकान से हो आएं फ़िर आपसे सम्पर्क करता हूँ।

अविनाश वाचस्पति
अविनाश जी ने दांत में नैनो तकनीकि से युक्त एक मोबाईल फ़ोन आज से लगभग सात वर्ष पूर्व लगवाया था, अब उसकी बैटरी खत्म हो गई, इसलिए लगातार वह चेतावनी दे रहा था कि बैटरी बदलिए। इससे उनके दांत में दर्द हो जाता था।

दर्द की टेबलेट तो वे साथ रख रहे थे। जब भी दर्द होता तभी एक टेबलेट उदरस्थ कर लेते। मोबाईल के नैनो जरासिम शांत हो जाते कि बैटरी बदलने वाली है, आश्वासन मिल गया है।
ललित शर्मा मेट्रो दिल्ली में

लेकिन जब बैटरी नहीं बदली तो उनका उत्पात बढ गया इसलिए तत्काल प्रभाव से बैटरी बदलवाने जाना पड़ा। डॉक्टर ने भी बता दिया कि दो-तीन बैठक में ही बैटरी बदलने का काम होगा।

इधर हम मैट्रो की सवारी करके आजादपुर मंडी की ओर चल पड़े। राजीव जी का आदेश था कि आजादपुर मंडी तक आना है, फ़िर मै आपको लेने आ जाउंगा।

ललित शर्मा
भाई मैट्रो की सवारी का तो आनंद ही आनंद है, अगर हमारे यहां होती तो घर से एक चारपाई लेकर आते और 100 रुपये की टिकिट कटाकर आराम से सुबह से शाम तक सोते, गर्मी में सर्दी का अहसास होता और बात बन जाती। लेकिन यहां कौन चारपाई डालने दे?

बस एक सीट मिल गई तो वहीं चिपक लिए राजीव चौक से आजादपुर तक मैट्रो के 11 विश्राम स्थल हैं और इधर रात के जागरण एवं डट कर नास्ता करने के कारण नींद की खुमारी भी चढी हुई थी। बस चारपाई ही याद आ रही थी।

जैसे तैसे करके आजादपुर पहुंचे वहां राजीव जी हमारे स्वागत में एक होर्डिंग लगा रखा है ताजा ताजा। हम तो देखते रह गए। जब होर्डिंग देख रहे थे तभी राजीव जी आ गए, बस फ़िर क्या था हम तो गदगद हो गए जी। धूप चढ चुकी थी दिल्ली की गर्मी रंग दिखाने लगी थी।
ब्लॉगर द्वय ललित शर्मा एवं राजीव तनेजा

राजीव जी के घर शालीमार बाग पहुंचे, जाते ही भाभी जी ठंडा शरबत पि्लाया जिससे आत्मा तृप्त हो गयी और खाना भी बन चुका था। बस राजीव जी के बैडरुम में डेरा लगाया वहीं पर बैठ कर खाना खाया क्योंकि ब्लागर के बैडरुम में सारी सुविधाएं होती है, कम्प्युटर से लेकर एसी कूलर तक, खाना भी वहीं खाया जाता है,

रुम से अगर एक महीना बाहर ना निकलो तो भी कोई बात नहीं। सब कुछ वहीं हाजिर। ऐसी व्यवस्था हमने भी कर रखी है, हमने ही क्यों लगभग सभी ब्लागरों की यही स्थिति है। खाना खाकर कुछ आराम करने का मन बनाया लेकिन कहां आराम?

बात करते हुए समय बीता जा रहा था। यशवंत मेहता जी से फ़ोन पर बात हुयी तो राजीव जी ने उन्हे नांगलोई बुला लिया दुकान पर। उनसे मुलाकात राजीव जी की दुकान पर हो्नी थी।

डॉ टी एस दराल
राजीव जी के घर पर आदरणीय डॉक्टर दराल जी का फ़ोन आया। उन्होने पार्टी का निमंत्रण दिया तथा कहा कि वे अपने साथ 4 मित्रों को भी ले जा सकते है क्लब में। मैने हिसाब लगाया कि चार तो हो गए हैं। मै, राजीव जी, भाभी जी और यशवंत जी।

डॉक्टर साहब ने समय पूछा तो हमने कहा कि 8 बजे तक पहुंच जाएंगे। मिसेस तनेजा के आने की सूचना पर उन्होने कहा कि हम भी श्रीमती जी को ले आते हैं। बहुत ही अच्छा निर्णय था।

इधर शाम का कार्यक्रम निश्चित होने के बाद राजीव जी ने भाभी जी को कार में सीएनजी डलवाने का कार्य भार सौंपा और हम बाईक से नांगलोई चल पड़े। नांगलोई पहुंच कर यशवंत जी को फ़ोन लगाया कि वे कहां तक पहुंचे हैं?

उन्होने बताया कि वे इंद्रप्रस्थ हो कर आ रहे हैं सागरपुर से। इधर राजीव जी के घर से फ़ोन आया कि कार की चाबी तो राजीव जी कि जेब में ही रह गई। बस यहीं मारे गए गुलफ़ाम। इधर यशवंत जी पहुंचे, बस कुछ देर इनसे चर्चा हुई, लेकिन अब बाईक पर तीन सवारी जाना मुश्किल था।

हमारे यहां होता तो हम जीप की सवारी बाईक पर ही जाते, क्योंकि बस की सवारी जीप में आ जाती है। लेकिन ये तो दिल्ली है, यहां करते तो सुबह चालान घर पर पहुंच जाता और मौके पर पकड़े गए तो हरियाणा की दिल्ली पुलिस बंदर जैसी अलग बना देती। तो हमने बाईक वहीं पर छोड़कर फ़िर से मैट्रो पकड़ने का फ़ैसला किया।

यशवंत मेहता
मैट्रो में सवार होकर आजादपुर पहुंचे। वहां से रिक्शा करके राजीव जी के घर। तैयार होते-होते 8 बज चुके थे। डॉक्टर दराल साहब का फ़ोन आ गया कि वे क्लब में पहुंच चुके हैं। हमने भी कहा कि तुरंत आ रहे हैं। सब तैयार होकर सिविल सर्विसेस आफ़िसर्स क्लब की ओर चल पड़े।

शाम को वैसे भी दिल्ली में ट्रैफ़िक बढ जाता है। पायलट राजीव जी के साथ कोपायलट एवं नेविगेटर संजू भाभी थी, वे रास्ता बता रही थी और राजीव जी कार चला रहे थे। हम इनकी ड्रायविंग का मजा ले रहे थे।

इधर मैं सोच रहा था कि डॉक्टर साहब और भाभी जी इंतजार करते हुए थक चु्के होंगे, धीरे-धीरे हमारी लापरवाही पर उनका पारा बढ रहा होगा। लेकिन दिल्ली के ट्रैफ़िक से तो वे भी वाकिफ़ हैं सोच कर मन को तसल्ली दे रहा था।

हम 9 बजे कनाट प्लेस से कस्तुरबा गांधी मार्ग की ओर बढे, तथा 9:10 को क्लब में प्रवेश कर चुके थे। जारी है आगे पढें.

रविवार, 30 मई 2010

दिल्ली यात्रा 2, ब्लागर मिलन, संगठन एवं एक स्टिंग आपरेशन.

यात्रा वृतान्त आरम्भ से पढ़ें 

अविनाश जी ने पवन चंदन जी और त्रिपाठी जी को साथ लिया और ब्लागर मिलन स्थल की ओर चल पड़े। नांगलोई रेल्वे स्टेशन के पास राजीव जी पहुंच चुके थे हमें रास्ता बताने के लिए, जाट धर्मशाला पहुंचे तो वहां जय कुमार झा जी, संजु भाभी जी, माणिक (राजीव जी के चिरंजीव), रतन सिंग शेखावत जी मिले।

रतन सिंग जी को पहचान नहीं पाया क्योंकि मैने उनकी पगड़ी वाली फोटो ही देखी थी। जब पता चला कि रतन सिंग जी हैं तो बड़ा अच्छा लगा क्योंकि उनसे दो दिन पहले ही मेरी फ़ोन पर बात-चीत हुई थी। जाट धर्मशाला हो और वहां देशी हरियाणी ठाठ हुक्के और खाट के साथ न हो, ये तो हो ही नहीं सकता था।

अंतर सोहिल उर्फ़ अमित गुप्ता, रतन सिंह शेखावात एवं ललित शर्मा
हुक्का देख कर एक दो सुट्टे मारने का मारने का मन तो हुआ था लेकिन धुम्रपान नहीं करने के कारण हिम्मत नहीं पड़ी, पहले एक बार आजमाईश की थी तो कळी का पानी ही खींच लिया था। इसलिए हुक्के से दूरी बनाए रखी। हां महफ़ूज मियां ने हमेशा की तरह ना पहुंचने पर बहाना बना दिया :)

थोड़ी ही देर में सभी ब्लागर पहुंच चु्के थे, संगीता जी के साथ उनके भाई साब भी थे, उनके दोनो भाईयों से भी मुलाकात हुई, अवि्नाश जी के घर से निकलते वक्त संगीता जी से फ़ोन पर बात हुई थी तो मैने उनसे ऐसे ही पूछ लिया था कि आज की भविष्यवाणी क्या है? संगीता जी ने कहा कि सब ठीक रहेगा और उनकी भविष्यवाणी सही रही, सब कु्छ ठीक ही रहा।

ललित शर्मा एवं ज्योतिष संगीता पुरी जी
 वर्मा जी ने लैपटॉप से ब्लागर बैठकी के प्रारंभ होने की सूचना एक पोस्ट से जारी कर दी। प्रारंभ में सभी ने अपना परिचय दिया, परिचय के उपरांत पवन चंदन जी ने संचालन का मोर्चा संभाल लिया तथा अविनाश जी ने बैठकी का एजेंडा प्रस्तुत किया। हमारी नजरें अजय झा जी को ढूंढ रही थी, तभी वे भी पहुंच गए।

अविनाश जी ने ब्लागर संगठन की बात कही, जिस पर लोगों के विचार आप अन्य पोस्टों में भी देख चुके हैं, पढ चुके हैं। अमित जी (अंतर सोहिल) हरिद्वार की यात्रा पर थे लेकिन समय पर पहुंच गए, नीरज जाट जी भी सीधा मेट्रो ही लेकर पहुंच गए। नीरज एक सहृदय युवक है, इन्होने पिछली एक घटना का खुलासा किया।

बालक नीरज जाट
फ़ोन पर समीर भाई, राज भाटिया जी, अदा जी, संजीव तिवारी, राजकुमार सोनी, अवधिया जी से बात हुई, बहन शोभना चौधरी, ताऊ जी से भी फ़ोन पर बात हुई, दी्पक मशाल जी का भी फ़ोन आया था लेकिन मुझसे बात नहीं हो पाई।

खुशदीप जी, इरफ़ान भाई, भी आ चुके थे। इनके आने की देर थी कि नास्ता भी आ गया, नास्ता भरपुर था, राजीव तनेजा जी ने भरपूर इंतजाम किया था। उनका मंद मंद मु्स्कुराते हुए मनुहार के साथ कलेवा कराना मन को भा गया, भाभी संजु तनेजा और बालक माणिक ने कोई कसर नहीं रखी।

जयराम विप्लव, खुशदीप सहगल, इरफ़ान कार्टुनिस्ट, अविनाश वाचस्पति
हां खुशदीप भाई ने मौके का फ़ायदा उठाया और खुब मीठा खाया, क्योंकि कोई मना करने वाला नही था। मैने भी मना नहीं किया क्योंकि मैं भी स्वयं मीठा खा रहा था। 

प्रख्‍यात कार्टूनिस्‍ट इरफान, संगीता पुरी, अविनाश वाचस्‍पति, डॉ. वेद व्‍यथित, बागी चाचा, सुलभ सतरंगी, प्रतिभा कुशवाहा, संजू तनेजा, आशुतोष मेहता, खुशदीप सहगल, नीरज जाट, शाहनवाज, मयंक सक्‍सेना, जय कुमार झा, चंडीदत्‍त शुक्‍ल, अजय कुमार झा, योगेश गुलाटी, डॉ. प्रवीण चोपड़ा, लाल टी शर्ट में उमाशंकर मिश्र, राजीव तनेजा, राजीव रंजन, पवन चंदन, प्रवीण पथिक, रतनसिंह शेखावत, अजय यादव,विनोद कुमार पान्डे, इत्यादि से प्रत्यक्ष मुलाकात हुई (जिनका नाम भूल गया हुँ कृपया क्षमा करें) हमारे 36 गढ से भाई राजीव रंजन जी के भी दर्शन हुए। यह मुलाकात ब्लागर मीट में ही संभव हुयी।

रतन सिंह शेखावत, राजीव तनेजा, विनोद पाण्डे, शैलेष भारतवासी
ब्लागर संगठन की आवश्यक्ता पर जम कर चर्चा हुई। मेरी दृष्टि में ब्लागर संगठन की नितांत आवश्यकता है, ब्लागिंग जब लोकतंत्र का पांचवा स्तंभ कहलाने लगी है तो संगठन की आवश्यकता बढ जाती हैं। सामुहिकता में बल होता है। समान विचार धारा के लोगों के ही संगठन बनते हैं।

अविनाश जी एवं उपस्थित अन्य चिट्ठाकारों विचारों से मै सहमत हूँ। विरोध दुनिया में हर चीज का होता है। सर्वमान्य कोई नहीं होता। अगर सर्वमान्य हो जाए तो विरोध ही क्यों हो, कुछ लोग विरोध इस लिए करते है कि उन्हे सिर्फ़ विरोध करना है

इसलिए विरोध तो चलते रहेंगे यदि अधिकांश ब्लागर चाहते हैं तो संगठन बन कर ही रहेगा ऐसा मेरा मानना है। इस विषय पर अन्य ब्लागर बंधुओं ने पहले ही बहुत कुछ लिख दिया है।

अंतर सोहिल, नीरज जाट, ललित शर्मा, संगीता पुरी, संजू तनेजा
ब्लागर मीट के समापन के साथ हम विदा लेने लगे, मेरा सौभाग्य था कि जो इतने सारे ब्लागर्स से एक साथ एक स्थान पर ही मिल लिए। विदाई पर फ़ोटो ली गयी और फ़िर मिलने का वादा करके हम चल पड़े।

पंकज शर्मा जी गुड़गांव से आ चु्के थे। मैने दिल्ली में ही रुकने की बात कही और होटल जाने की सोची। जय कुमार झा जी, राजीव तनेजा जी, खुशदीप भाई, अविनाश जी इत्यादि ने अपने निवास पर ही रुकने का आग्रह किया। मै धर्म संकट में फ़ंस गया कि किधर जाया जाए?

फ़िर फ़ैसला किया कि आज रात्रि वि्श्राम खुशदीप भाई के घर ही किया जाए। पंकज जी ने अपनी कार से मुझे खुशदीप भाई और इरफ़ान भाई को कीर्ति नगर मेट्रो स्टेशन पर छोड़ा और हम चल पड़े नोयडा की ओर्।

नोयडा मै कई वर्ष पहले भी गया था लेकिन अब तो वह पूरा ही बदल चुका है, मॉल, पब्लिक, रेलम पेल, भीड़ ही दि्खाई देती हैं, ट्रेन से उतर कर खुशदीप भाई की सवारी पर घर पहुंचे।

खुशदीप सहगल एवं पाल गोमरा का स्कूटर
भाभी जी ने बढिया खाना खिलाया, दोनो बेटे-बेटियों से मिले, यह पारिवारिक मिलन यादगार रहा हैं। खुशदीप भाई ने इस कहानी के विषय में लिख ही दिया है अपनी पोस्ट"शेर सिंह के मैने पसीने छुड़ाए" पर, आगे की कहानी है कि राजीव भाई ने फ़ोन करके सुबह अपने घर बु्ला लिया।

हमने सुबह का गरमा-गरमा नास्ता करके भाभी जी को धन्यवाद दिया और बच्चों को स्नेह देकर विदा ली। खुशदीप भाई ने अपने अपने स्कुटर से मुझे मैट्रो स्टेशन छोड़ा तथा आजाद पुर की टिकट कटा कर दी। बस इनके स्नेह प्यार से अभिभूत हो गया हुँ। यह स्नेह ब्लागिंग में ही मिल सकता है,

यह एक परिवार है जिसका अहसास मुझे हुआ, मैं खुशदीप भाई के परिवार में एक सदस्य बन कर जुड़ गया मुझे पता ही नही चला कि मैं नए लोगों से मिल रहा हूँ। यही ब्लागिंग की खुबियां है जो हमें जोड़ती है। जारी है.........

(खुशदीप भाई के चेतक का यह स्टिंग आपरेशन है, यह दुर्लभ चित्र मैने मुस्किल से लिया  है)

शनिवार, 29 मई 2010

पंकज शर्मा एवं संतनगर के संत से मिलन: दिल्ली यात्रा

दिल्ली यात्र पंकज शर्मा
दिल्ली की यात्रा इस वर्ष में कई बार हुई, लेकिन ब्लागर मित्रों से मिलने का समय नहीं निकाल पाया। अविनाश जी, खुशदीप जी, अजय झा जी, राजीव तनेजा जी इत्यादि की शिकायत रही कि मिलकर नहीं गए।

पंकज शर्मा जी ने तो कहा था कि बिना मिले मत जाना, पहुंच कर फ़ोन करना। तो हमने भी सोचा के अबकी बार रज्ज के मिलेंगें।

मुझे अलवर में कुछ मित्रों से मिलना था और वहीं खैरथल में एक विवाह समारोह में भी सम्मिलित होना था। जब रायपुर से चला तो दो दिनों का समय दिल्ली के ब्लागरों से मिलने के लिए रखा। टिकिट दिल्ली तक की थी, लेकिन मथुरा स्टेशन पर ही उतर गया, वहां मुझे पता चला कि मथुरा से अलवर सुबह 7 बजे एक ट्रेन जाती है जो 10 बजे अलवर पहुंचा देती है।

मैने मथुरा पहुंच कर अलवर के एडवोकेट महादेव प्रसाद जी को फ़ोन लगाया और ट्रेन से अलवर पहुंच गया। ट्रेन डेढ घंटे विलंब से पहुंची, गर्मी बहुत ही ज्यादा थी, लू चल रही थी, महादेव प्रसाद जी के यहां से सीधा किशनगढ होते हुए खैरथल पहुंच गया। वहां विवाह समारोह में शामिल हुआ, सभी इंतजार कर रहे थे।
दिल्ली यात्रा पंकज शर्मा

शनिवार को विवाह था और उस दिन पंकज जी कि छुट्टी थी, बच्चे जयपुर में थे इसलिए वो पुरे आजाद थे मेरे साथ घुमने के लिए। शाम को पंकज जी गुड़गांव से कार ड्राईव करके खैरथल पहुंच गए। यह मेरी उनसे पहली मुलाकात थी। बहुत ही सुलझे हुए विचारों के व्यक्ति हैं, उनसे मिल कर लगा कि जैसे परिवार के एक सदस्य से मिल रहा हुँ, छोटे भाई से मिल रहा हुँ।

रात उनसे परिवारिक चर्चाएं होती रही। पंकज जी संघर्षशील व्यक्ति हैं जिन्होने अपने हौसले से उंचाइयों को छुआ है। ऐसे व्यक्तित्व से मिल कर अच्छा लगा। फ़ेरे रात 2 बजे खत्म हुए और मैने सबसे विदाई ली, पंकज जी के साथ रात ढाई बजे चल पड़े गुड़गांव की ओर।

जागरण के कारण आंखों में नींद थी, पंकज जी कुशलता से ड्राईव कर रहे थे। लगभग साढे 4 बजे हम गुड़गांव उनके फ़्लेट पर पहुंचे और सो गए। सोचा कि एक दो घंटे की नींद ले ली जाए क्योंकि डॉ दराल साहब एवं अविनाश जी का फ़ोन आ चुका था और मुझे उनके पास पहुंचना था।
संगीता जी का मोबाईल नम्बर मै घर पर ही भूल चुका था। इसलिए उनसे सम्पर्क नहीं हो सका। 8 बजे उठकर, स्नानादि से निवृत्त होकर, पंकज जी ने एक रेस्टोरेंट में पेट भर नास्ता कराया। हम दिल्ली के लिए निकल पड़े।

इन दिनों मैं नेट के सम्पर्क में नहीं था, इस कारण ब्लॉग पर क्या चल रहा है, इसकी मुझे कोई खबर नहीं थी। राजस्थान बिजली कटौती के कारण जब भी नेट पर पहुंचा मुझे वो बंद ही मिला।

अविनाश जी ने फ़ोन पर कहा कि आप सीधे हमारे यहां ही चले आएं। अब बारी थी संत नगर के संत से मिलने की। अविनाश जी के बताए रास्ते पर हम संत नगर पहुंच गए।

अविनाश जी घर के नीचे हमारा इंतजार करते मिले। उनके दर्शन पाकर आनंद आ गया। भाभी जी से नमस्ते हुई और अविनाश जी ने कहा कि नेट देख लीजिए, बस फ़िर क्या था?

एक सरसरी नजर ब्लाग पर डाली तो देखा बहुत सारी पोस्टें दिल्ली ब्लागर मिलन लगी हुई थी। तब पता चला कि आज ब्लागर मिलन है।

बहुत अच्छा हुआ सभी के एक साथ दर्शन हो जाएंगे। तभी पंकज जी के पास फ़ोन आ गया कि उनके एक मित्र की तबियत खराब हो गई है और उसे अस्पताल ले जाना। पंकज जी फ़ि्र आने का वादा करके गुड़गांव चले गए,

इधर भाभी जी ने खाना तैयार कर दिया था, देशी ढंग़ (खाट पर बैठ कर) से बैड पर बैठ कर अविनाश जी के साथ भोजन किया और चल पड़े जाट धर्मशाला नांगलोई की ओर।

अविनाश जी का यह चित्र मैने जमीन पर खड़े होकर खींचा था ना कि स्टूल या ट्रेन के डिब्बे पर चढकर:)

(कार्ड रीडर काम नहीं कर रहा है, इसलिए चित्रावली अगली पोस्ट में)

गुरुवार, 27 मई 2010

दिल्ली से वापस आकर एक माईक्रो पोस्ट

अभी कुछ देर पहले दिल्ली से घर वापस सकुशल पहुंचा हूँ, यात्रा अविस्मर्णीय रही। जीवन भर याद रहेगी। सिर्फ़ मीठे ही अनुभव रहे, खट्टे का तो नाम-ओ-निशान नहीं रहा। कुछ मित्रों की कमी अवश्य महसूस हुई, जो वादा करने के बाद भी नहीं पहुँचे। यात्रा के विषय में तो अब कल से लिंखुंगा, लस्सी से लालपरी तक, टीचर से प्रोफ़ेसर तक, रिक्शे से रेलवई तक, आज सिर्फ़ एक चित्र से काम चला रहा हूँ और अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा हूँ ।  


                            ब्लागर बैठकी का हिसाब करते हुए.......पहचान कौन?

सोमवार, 24 मई 2010

उफ्फ!... बड़ी गर्मी है यहाँ तो

बुधवार, 19 मई 2010

अल्पना लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्डस में

पने लक्ष्य को पाने की लिए व्यक्ति पूरी जिन्दगी लगा देता है, जुनून की हद से भी आगे निकल जाता है, लोग कहने लगते हैं कि कहीं पागल तो नही हो गया है, किस फ़ालतु काम में लगा है?

यह सब सुनकर कभी कभी विश्वास भी डगमगाने लगता है, लेकिन फ़िर भी व्यक्ति किसी कथन से निराश नहीं होकर अनवरत अपने काम में लगा रहता है, तब कहीं जाकर कुछ सफ़लता मिलती है और वह क्षण उसके जीवन में मील का पत्थर साबित होता है।

जब वह मंजिल तक पहुंचता है तो उसे विश्वास ही नहीं हो पाता कि जिसका मैने सपना देखा था और वह प्राप्त  हो गया। कभी अपने आपको च्युंटी काट कर देखता है कि कहीं ख्वाब तो नहीं। लेकिन ख्वाब ही हकीकत में बदला करते हैं।

जी हाँ! खवाब ही हकीकत में बदला करते हैं, ऐसा ही कुछ ख्वाब आज से 20 वर्ष पूर्व देखा था अल्पना देशपान्डे जी ने, उन्होने हस्त निर्मित ग्रीटिंग कार्ड का निर्माण प्रारंभ किया, फ़िर धीरे-धीर उन्हे सहेज कर रखना प्रारंभ किया।

एक अंतराल के बाद उनके पास हस्त निर्मित ग्रीटिंग कार्ड का जखीरा खड़ा हो गया। फ़िर उनके सहयोगी मित्रों ने भी उन्हे ग्रीटिंग कार्ड बना कर दिए।

मेरी जब मुलाकात हुई तब तक उनके पास 10008 ग्रीटिंग कार्ड का संग्रह हो चुका था। उनकी इच्छा थी कि लिम्बा बुक ऑफ़ रिकार्डस में उनका नाम दर्ज हो और वह हो गया।

कल मुझे फ़ोन द्वारा उन्होने यह शुभ सूचना दी, सुनकर बड़ी खुशी हुई  कि उन्होने जिस जुनून के साथ यह कार्य प्रारंभ किया था उसका फ़ल आज उनको प्राप्त हो रहा है।

हस्त निर्मित ग्रीटिंग कार्ड के संग्रह का संरक्षण करना कोई आसान कार्य नही हैं, लिम्काबुक में उनके नाम 10,008 कार्ड दर्ज हुए हैं, आज उनके संग्रह में 12,345 कार्ड 31मार्च तक थे।

अब संग्रह में और भी बढोतरी हो गयी होगी। हम इनके जज्बे और जुनून को सैल्युट करते हैं।

मै जब उनसे मिलने गया तो वे संस्कृति विभाग के निवेदन पर आकार में बच्चों को ग्रीटिंग कार्ड बनाना सीखा रही थीं, बस उसी समय मेरा वहां पहुंचना हुआ, समय बहुत कम था मुश्किल से 5 मिनट, क्योंकि मै ताऊ शेखावाटी से 6 बजे मिलना तय कर आया था। लेकिन फ़िर भी मैने जल्दी जल्दी में कुछ चित्र लिए और उनसे नमस्ते कर निकल गया।

अल्पना जी अपने आप को बहुत ही व्यस्त रखती हैं, सुबह से रात तक एक बस चलती ही रहती हैं, एक क्षण का समय भी व्यर्थ नही जाने देती।

सुबह शाम बच्चों को ग्रीटिंग कार्ड बनाने का प्रशिक्षण देती हैं इसके बाद गृह विज्ञान के एक विषय पर शोध कार्य कर रहीं है, कालेज में पढाती हैं और बहुत कार्य हैं इनके।

इस उपलब्धि के पीछे इनके परिवार का भी बहुत बड़ा हाथ है, इनके पति श्री अरविंद देशपाण्डे जी एक जिंदादिल इंसान हैं और हमेशा इन्हे प्रोत्साहित करते रहते हैं,

इनके  बेटे अमितेश और बेटी अदिति भी छाया की तरह साथा लगे रहते हैं।

एक उपलब्धि भी बरसों की कुर्बानी के बाद मिलती है। इतना आसान नहीं है। अब आगे गिनिज बुक का नम्बर है,

हम इन्हे ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाइयाँ देते हैं और प्रार्थना करते हैं कि निरंतर आगे प्रगति करते रहें..............आमीन।

मंगलवार, 18 मई 2010

सुरेश चिपलुनकर जी मत शिरोधार्य कर लौटे --गिरीश बिल्लौरे

गिरीश दादा जी लौट आए हैं, हमारी मिन्नतें काम आई, सुबह ब्रेकिंग न्युज से पता चला था कि वे अमरकंटक में देखे गये थे, वहां भक्तों की भीड़ लगने के कारण अचानक अन्तर ध्यान हो गये। अब पता चला है कि वे ब्लाग पर लौट आए हैं यहां पर आकर उन्होने अपनी टिप्पणी छोड़ी है, जिसमें एक संदेश दिया है................
गिरीश बिल्लोरे १८ मई २०१० १२:४७ PM   मित्रो सादर अभिवादन,गहन विमर्श एवम आत्म मंथन से स्पष्ट हुआ कि हम किसी भी स्थिति में लेखन से दूर हो ही नहीं सकते ज़िन्दा होने का सबूत देना ही होगा आपका संदेश देख कर अभीभूत हूं . अवश्य ही लौटूंगा मित्रों से इस अपेक्षा के साथ कि कोई दूसरा ”...” अपनी कुंठा न परोसें इस हेतु आप सबको साथ देना होगा . सच बेनामी आदमीयों जिनकी रीढ़ ही नहीं है से जूझना कोई कठिन नहीं 

इसके बाद एक दुसरी टिप्पणी भी है......................
गिरीश बिल्लोरे १८ मई २०१० १२:५२ PM   मैं भी परशुराम की सौगंध लेकर गलत बात को समाप्त करने का संकल्प लेता हूं. सुरेश जी का मत शिरोधार्य,कोई बुराई नहीं मेहतर बनने में डस्टबीन इन धूर्त लोगों की प्रतीक्षा में हैं मुझे मेरा दायित्व समझना था किंतु मानवीय भाव वश घायल हो गया अब ठीक हूं. देखता हूं शब्द आडम्बर जीतेंगे या हम जो भाव जगत में सक्रिय है

गिरीश दादा जी सुरेश जी का मत शिरोधार्य कर चुके हैं, सुरेश जी ने ब्लागिंग का अमोध मंत्र दिया था, वह ब्लागरों के काम आ रहा है, अब इन्तजार है उनकी धुंवाधार पॉडकास्ट ब्लागिंग का, और हमारा निवेदन है कि जिनसे वो पॉडकास्ट का बयाना लेकर गए थे, उनका काम पहले  निपटा दें नहीं तो वे फ़िर हमारी छाती छोलने लग जाएंगे। नये पॉडकास्ट बाद में लें, हमारा यही निवेदन हैं।

सड़क दुर्घटना से कोई सबक नहीं लेता

सड़क दुर्घटनाओं से कोई सबक नहीं लेता, हुआ यूं कि हम गए थे ताऊ शेखावाटी जी से मिलने, शाम को लगभग 5 बजे थे। 

घर से कोई 4 किलोमीटर निकले  होगें कि सामने हाई वे पर अचानक एक टाटा का छोटा हाथी सड़क पर लहराते हुए हमारी गाड़ी की तरफ़ आया, हमने सोचा कि आज फ़िर काम हो गया। एक एक्सीडेंट और झेलना पड़ेगा। 
सड़क दुर्घटना

इतने में ही उसके दांए तरफ़ के दोनो चक्के हवा में उठ गये और वह लहराता हुआ हमारी विपरीत दिशा में चला गया। सड़क के किनारे पेड़ों के बीच उसने दो पलटी खाई।

हमने तुरंत गाड़ी रोकी और दौड़ कर उनकी तरफ़ गए तो एक लड़का तो गाड़ी से बाहर आ गया था तथा दुसरा निकलने की प्रयास कर रहा था। उसे सहारा देकर निकाला, दोनो को किसी प्रकार की उपरी चोट नहीं आई थी और डर के मारे थर-थर कांप रहे थे।

मैने मोबाईल से उनके मालिक को दुर्घटना की सूचना दी और दो फ़ोटो लेकर निकल पड़ा रायपुर की ओर...................
सड़क दुर्घटना

राजकुमार सोनी दिल के भी बहुत अच्छे आदमी हैं रात उन्होने एक अपनी नई विधा का परि्चय दिया और कुछ गाने गाए।

हमने भी दुर्घटना को भूल कर गानों का आनंद लिया। "न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाए" बस इसी अंदाज में गाने सुने, 
सड़क दुर्घटना

जब से उन्होने गाना गाया है तभी से उनके घर के बाहर भीड़ लगी है, वंस मोर वंस मोर के नारे लग रहे हैं, भीड़ को संभालने के लिए पुलिस की व्यवस्था करनी पड़ी,

हमको वहां से निकलने में ही रात के एक बज गए, स्काच का सूरुर अपने यौवन पर था, हम तो निकल लिए और सोनी जी फ़ंस गए।

अब उनकी क्या हालत है यह तो हमने पूछा नही? समय मिलते ही पूछेंगे तब तक आप उनके गाए गीतों का आनंद लि्जिए,

हमने मोबाइल से उनके दो गाने रिकार्ड किए हैं , रिकार्डिंग अच्छी नही है ....... फ़िर भी आनंद लि्या जा सकता हैं


आ री निंदिया आ जा तू (राजकुमार सोनी)




रंग और नूर की बारात किसे पेश करुं

सोमवार, 17 मई 2010

ब्लागोमैनिया, महुआ इलाज, दुसरी पारी की बल्लेबाजी

यह ललित डॉट कॉम की 202 वीं पोस्ट है, मतलब 2 सैकड़ा हमने पार कर लिया, वैसे तो  संजीव तिवारी जी के साथ एक एन्ड पर धुआधार बल्लेबाजी चल रही थी, लेकिन अम्पायार के गलत निर्णय का शिकार होना पड़ा,

पहली पारी में नाक खुजाते हुए अम्पायर की उंगली उठ गयी और  हम आऊट करार दे दिए गये।

अब दुसरी पारी प्रारंभ की है, थोड़ा बॉल का लाईन लेंथ देखकर बल्ले बाजी कर रहे हैं हमारा पूरा ध्यान बॉल पर नहीं अम्पायर की उंगली पर टिका है। पता नहीं फ़िर कब उठ जाए।

अवधिया जी कह रहे थे कि अब उंगली उठाकर आऊट देने वाला नियम बदल रहे हैं। खिलाड़ी को आऊट बताने के लिए अब अम्पायर को उंगली की जगह दोनो टांग उठाकर संकेत देना पड़ेगा, तभी खिलाड़ी आऊट माना जाएगा। 

अवधिया जी के नियम बदलने की सलाह से सारे अम्पायर नाखुश हैं उनका कहना है कि दोनो टांग उठाकर इशारा करेंगे तो हम धड़ाम से धरती पर गिर जाएंगे। चोटिल होने की संभावना है, इस स्थिति में हम अम्पायरिंग नहीं करेंगे।

तभी पाबला जी ने सलाह दी कि अम्पायरों के लिए विकेट के पास एक स्टुल रखना चाहिए जिससे वे उस पर बैठ सकें और मजे से दोनो टांग उठाकर आऊट होने का इशारा दे सकें।

अम्पायरों को भी पाबला जी बात जंच गयी क्योंकि खड़े-खड़े अम्पायरिंग करने से टांगों की मरम्मत हो जाती है कम से कम आऊट देते वक्त तो बैठकर आराम मिलेगा और इनके पास कोई हिन्दुस्तानी पत्नियां तो हैं नही जो पति को परमेश्वर जान कर, उनकी दूखती हुई टांगों का दर्द समझकर तेल मालिश ही कर दें।

पाबला जी की सलाह क्रिकेट बोर्ड ने मान ली है और इस आशय का प्रस्ताव ललित मोदी के विवाद हल होने के पश्चात आगामी बैठक में पास कर दिया जाएगा।

दूसरी पारी प्रारंभ करने के लिए पैडअप हो चुके थे, गॉड लगाकर दस्ताने ही पहन रहे थे तभी अचानक डॉक्टर साहब द्वारा एक चिकित्सकीय परीक्षण में हमें ब्लागोमैनिया का मरीज करार दे दिया गया,

सुन कर हमें गश आ गया कि इतनी गंभीर बीमारी के विषाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर चुके है और हमें पता ही नही। इसके लक्षण लोगों को दिखाई दे रहे हैं हमें नहीं, तब से हम इसी बीमारी की चिकित्सा में लगे हैं,

राजकुमार द्वय ने कहा कि  इन कीटाणुओं का जब कहेंगें, तब इलाज हो जाएगा, हमको तो इनके इलाज से डर लगता है, हमारे गांव के मुटरु बैगा सभी बीमारियों इलाज करते हैं, दवा दारु के साथ झाड़ फ़ूंक करते हैं।

प्रति मंगलवार और शनिवार उनके यहां सुर्यकांत गुप्ता जी के जाना पड़ता है, इसलिए इन दो दिनों ब्लागिंग की छुट्टी रहती है।

इन दो दिनों दारु से दूर रहने को कहा और बाकि दिनों दवा-दारु चलते रहेगी। ले्किन 3 पैग से ज्यादा लेने को मना किया है क्योंकि 3 पैग से मानसिक चंचलता खत्म हो जाती है चित्त स्थिर हो जाता है,

कहानी, व्यंग्य के प्लाट मानस में उमड़ते घुमड़ते हैं सुरुर में बढिया गीत और काव्य रचे जाते हैं, नफ़रत को भूल कर वातावरण प्रेम मय हो जाता है। ब्लागोमैनिया के जीवाणु भी दारु का आनंद लेते है और उनका असर कम हो जाता है।

दारु भी गजब की चमत्कारी दवाई है (तीन पैग तक दवाई कहते हैं डॉक्टर लोग) अगर ज्यादा होती है तो फ़िर मत पूछो फ़िर उसदिन सारा चलचित्र घुम जाता है किसने, कब, कैसे और क्यों कहा?

फ़िर मत पुछिए ब्लागोमैनिया के सारे जीवाणु ओवरडोज में रक्स करने लगते हैं और हमे भी हलाकान करते हैं। अंग्रेजी ब्लागोमैनिया के कीटाणु जब तीन पैग पीते हैं तो कहते हैं-बहुत हो गयी अब चलते हैं सोना है सुबह ब्लाग लिखना है,

पोस्ट शेड्युल नहीं करता रोज नया ही लिखता हूँ कुछ कमाना हैं। हिन्दी ब्लागोमैनिया के कीटाणु खाए पीए और अघाए हैं एक अद्धा चढाने बाद कहते हैं- अरे! ना रे बैठ मेरे भाई, अभी तो तेरे स्वागत में हमने तो कुछ पी ही नही है, ठीक से सेलिब्रेट भी नहीं कि्या है तुम उठकर चल दिए, बैठ मेरे भाई बैठ,-तेरे को किसी ने कुछ कहा क्या? बता मेरे को अभी उसकी..............एक करता हुं। उसका साले का बैंड फ़ाड़ता हूँ। 

ब्लागोमैनिया के कीटाणु अंग्रेजी मत बोलने लगें इसलिए चि्कित्सकीय सलाह से अभी गांव में महुआ स्पेशल से काम चला रहे हैं.

भकाड़ु कलार अपने भट्ठे से रोज शाम को एक बोतल उतार कर ले आता है, सौंधी-सौंधी महुआ की खुश्बु से आनंद आ जाता है और ब्लागोमेनिया के कीटाणु देशी दारु से इलाज के कारण पहले छत्तीसगढी में बात करते हैं और थोड़ी ज्यादा चढ गयी तो हिन्दी में बात करके हिन्दी सेवा करने लग जाते हैं।

अंग्रेजी की ऐसी तैसी करके ठिकाने लगा कर, हिन्दी सेवा का धर्म निभाते हैं। कुल मिला कर ब्लागोमैनिया के इलाज में महुआ बहुत कारगर साबित हो रहा है।

इसलिए सभी ब्लागरों से मेरा निवेदन है कि यदि आपको लगे कि ब्लागोमैनिया के कीटाणु आप पर हावी होने वाले हैं तो किसी डॉक्टर के मरीज घोषित करने से पहले ही महुआ से इलाज प्रारंभ करदें अन्यथा बहुत देर होने गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं।

इस दुसरी पारी में हम पहली पारी से मिले अनुभवों का प्रयोग कर रहे हैं। आप सभी मित्रों के स्नेह प्यार से अभिभूत हूँ। आपसे आशीष चाहता हूँ और दुआ किजिए की कि दुसरी पारी में अम्पायर के गलत निर्णय का शिकार ना बन पाऊं और ब्लागोमैनिया की बीमारी से स्वास्थ्य लाभ कर पुन: धुआधार ब्लागिंग प्रारंभ हो, 

रविवार, 16 मई 2010

संडे ब्लागिंग स्पेशल.....


संडे ब्लागिंग स्पेशल.....

बस यही कसर रह गयी है


(निर्मल हास्य)

शुक्रवार, 14 मई 2010

रात महफ़िल जमी सुरों के साथ

कल रायपुर में कवि सम्मेलन था जिसमें भारत के नामी गिरामी कविता पढने आए थे, मुझे पता चला की राजस्थान के माननीय कवि ताउ शेखावाटी भी रायपुर पधार रहे हैं।

उनसे मुलाकात हुए 12 वर्ष हो चुके थे। उनका मोबाईल नम्बर भी मुझसे गुम गया था।

इसलिए मैने सुबह सुबह हनुमानग़ढ के टाबर टोळी वाले कवि श्री दीनदयाल जी से  ताऊ शेखावाटी जी का नम्बर लिया और फ़िर ताऊजी से शाम का 6 बजे का मिलना तय हुआ।

जब मैं घर से निकला तो बहुत ही लू चल रही थी। लेकिन उनसे मिलने की इच्छा भी थी।

मुलाकात हुई इसकी चर्चा अगली पोस्ट में करुंगा। लेकिन कल कई घटनाएं हुई और एक दुर्घटना भी हुई बस बाल बाल बचे। नही तो आज किसी अस्पताल का बेड तोड़ रहे होते।

रात आठ बजे अवधिया जी का फ़ोन आया कि शहर में हो यार कुछ पार्टी सार्टी जमाते हैं मैने कहा ठीक है, आता हूँ, तभी राजकुमार सोनी जी का भी फ़ोन आ गया कि आज आप दोनो हमारे साथ चलिए मै एक मित्र से मिलवाता हूँ।

तो हम सब वहां चले गए। मिले जयमल सिंग जी होरा (कालू भाई)से और महफ़िल जम गयी। एक जिंदादिल शख्शियत से मिलकर अद्भुत आनंद आया। गाना भी हुआ, उन्होने अपनी बैठक में कराके सांउड की व्यवस्था भी कर रखी है।

बस गाते बजाते, सुनते स्कॉच के साथ आनंद आ गया। सूरों की महफ़िल को मैने अपने मोबाईल फ़ोन पर रिकार्ड किया। आप भी सुनिए। जारी है..............

कहना है आज तुमसे पहली बार..(कालु भाई)



हम तुमसे जुदा होके....(कालु भाई)


गुरुवार, 13 मई 2010

आज मुझे कुछ कहना है-"बिखरे मोती" से

कुछ दिनों पहले दुपहरी में डाकिया आया एक अरसे के बाद डाक लेकर। नहीं तो डाक आनी ही बंद हो गयी ईमेल, मोबाईल, फ़ोन के चलन के बाद।

बस किताबें या सरकारी चिट्ठियाँ ही आती हैं। उस दिन आया एक पार्सल खोला तो उसमें थी समीर भाई की कृति-"बिखरे मोती"

मैने उन्हे एक बार कहा था कि"मु्झे बिखरे मोती पढना हैं तो उन्हे उसे याद रख कर भेज दी। उनकी सहृदयता पर धन्यवाद देता हूँ , तथा एक कविता "बिखरे मोती" से आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ।

आज मुझे कुछ कहना है

मौन दमित मुखरित होने से,अब मुस्किल यह सहना है।
कल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।

पीर पराई सहता था मैं
कभी ना दिल की कहता था मैं
जिन राहों पर कोई ना चलता
उन राहों पर रहता था मैं

मुझको भी उन्मुक्त मुसाफ़िर,बनकर चलते रहना है।
कल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।

सबने ही मुझको भरमाया
तरह तरह से मुझे डराया
क्या क्या खेल रचे जाते हैं
सोच सोच कर मैं घबराया

मर मर के जिंदा रहने से,बेहतर जी कर  मरना है।
कल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।

दया धर्म का नाम नहीं,
जीवन में आराम नहीं है।
नफ़रत वाली इस महफ़िल में
प्यार पिलाता जाम नहीं है।

मुझको अब पावन नदिया सी,धारों सा बहना है।
कल तक मै बस सुनता आया था,आज मुझे कुछ कहना है।

13/05/2010

मंगलवार, 11 मई 2010

सैनिक हुए तैनात, भू्त पिशाचों के खराब हालात

पाबला जी से मैने कुछ दिनों पहले निवेदन किया था कि ब्लाग पर नामी-बेनामी-गिरामी की समस्या बढ रही है, कृपया कुछ सैनिक यहां पर भी तैनात कर दें।

तो आज उन्होने मेरी अर्जी पर ध्यान दिया और गुहार सुन ली। अपने सैनिक भेज दिए हैं और हमारा ब्लाग अब बुरी नजरों से सुरक्षित हो गया है।

अब सब तरफ़ फ़ांदा लगा है जो संदिग्ध हरकत करेगा पकड़ा जाएगा, राजतंत्र पर भी तहसीलदार का इलाज हो चुका है।

इसलिए बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला। अब हमारे कम्पयुटर में भी सैनिक अपने सभी सिस्टम के साथ तैनात हैं। पाबला जी का बहुत बहुत आभार

सोमवार, 10 मई 2010

मध्यम वर्ग के काबू से बाहर निकलती शिक्षा

ब मैं पहली कक्षा में पढने के लिए स्कूल में भर्ती हुआ तो मुझे याद है, दादाजी ने 60 पैसे में स्लेट और 75 पैसे में बाल भारती पुस्तक और 20 पैसे में पेंसिल का एक डिब्बा दिलाया था।

पेंसिल तो और भी लाई गई, एक दो स्लेट भी लगी होगीं क्योंकि फ़ूट जाती थी। इस तरह लगभग 10 रुपए सालाना में पहली कक्षा पास हो गए। इससे ज्यादा कुछ भी नहीं लगा।

हमारे स्कूल में अमीर-गरीब, ब्राह्मण-अनुसूचित जाति के बच्चे सब एक साथ पढ़ते थे। कोई भेद भाव नहीं था। सभी एक गणवेश में समान दिखते थे। बस थोड़ा साफ़ सफ़ाई का अंतर था।

गुरुजी के बच्चे भी वहीं पढते थे। वे थोड़े होशियार थे। माना जाता था कि मास्टर के बच्चे पढाई में होशियार होते हैं।

ट्युशन नामक किसी बीमारी का कोई प्रभाव नहीं था। इस तरह याद है कि हमने 5 वीं तक की पढाई 200 रुपए में गणवेश, जुते मोजे, पाठ्य सामग्री सहित कर ली थी।

अब हम एक पीढी बाद दे्खते हैं तो पता चलता है कि सरकारी स्कूल के शिक्षकों के बच्चे प्रायवेट स्कूल में पढ रहे हैं, जो फ़ीस नहीं दे सकते या अपने बच्चे की पढाई के प्रति उदासीन है वही अपने बच्चे को सरकारी स्कूलों में भर्ती कर रहे हैं।

जहां हमारे गांव में एक स्कूल हुआ करता था वहीं आज 10 प्रायवेट स्कूल हैं, हायर सेकेन्डरी तक। बी पी एड कालेज, नर्सिंग कालेज, आइ टी आई, 4 तकनीकि महाविद्यालय, एवं लॉ युनिवर्सिटी इत्यादि अन्य शैक्षणिक संस्थान भी खुल गए हैं।

जब बच्चे को भर्ती कराने गया तो पहले ही दिन पी पी वन के लिए 10,000/- का बिल बन गया। रिक्शा और मासिक फ़ीस के अलग से 700 रुपए प्रतिमाह देने पड़ेगें। इस तरह सालाना 20,000/-रुपए तो नर्सरी कक्षा के बच्चे के लग रहे हैं।

जब हम कालेज में भर्ती हुए वह शहर का सबसे नामी कॉलेज था वहां प्रथम वर्ष की सालान फ़ीस 700/- में निपट गयी थी, हमने एक मुश्त ही दे दी थी।

इस तरह 10,000 में हमारी ग्रेजुएशन हो गयी थी। विडम्बना दे्खिए कि 20,000/- में नर्सरी कक्षा और 10,000/- में ग्रेजुएशन। शिक्षा पाना भी कितना मंहगा हो गया है?

इंजीनियरिंग के 8 सेमेस्टर के लिए 5 लाख रुपए अंटी में होने चाहिए, मेडिकल के लिए 25 से 30 लाख होने चाहिए। अब कैसे शिक्षा दिलाई जा सकती है, चिंताजनक हालात हैं।

अब हमारे देश में लार्ड मैकाले के भी मानस पुत्र पैदा हो गए हैं, जो शिक्षा पर नित नए प्रयोग कर रहे हैं। शिक्षा जो दान कहलाता था आज इसे व्यावसायिक बना दिया गया।

उल्टी नाव वाले इन संस्थाओं के चेयरमेन बन बैठे। बस इनको तो पैसा ही पैसा चाहिए। गरीब कहां से अपने बच्चों को पढा पाएगा?

लोगों को जब बच्चों को उच्च शिक्षा दिलानी होगी तो खेत-जमीन इत्यादि बेच कर फ़ीस की व्यवस्था करनी पड़ेगी।

इस शिक्षा प्रणाली से अब दो वर्ग बन गए हैं जो स्पष्टत: दृष्टिगोचर होते हैं। 1- शासक तथा 2- शोषित ।

शासक ये नेता जिनके बच्चे अच्छे अंग्रेजी स्कूलों पढते हैं, शासन चलाने की भाषा सीखते हैं। अंग्रेजी में गिटपिट करते हैं।

पब-बार और डिस्को की संस्कृति को समझते हैं ब्यॉय और गर्ल फ़्रेंड के साथ जिन्दगी को एक अलग नजरिये से जी रहे हैं।

शोषित वर्ग हिन्दी स्कूलों में पढ रहा हैं, ले देकर अपनी फ़ीस जुटा रहा हैं। ज्यादा से ज्यादा कहीं क्लर्क या बाबु और अच्छी किस्मत रही तो मास्टर बन जाएगा।

अगर कुछ नहीं बना तो इन अंग्रेजी बोलने वाले नेताओं का बिना पैसा का चाकर बन जाएगा, जो गांव कस्बे में इनके भाषण और सभाओं के लिए भीड़ जुटाने का काम करेगा।

दारु पीकर पड़ा रहेगा और एक दिन उसका मर्डर हो जाएगा या आत्म हत्या कर लेगा।

देश के पहरुए हमारी शिक्षा व्यवस्था को कहां ले जा रहे हैं?

यह एक चिंतनीय विषय है। अभी एलान किया जा रहा है कि विदेशी विश्वविद्यालय और महावि्द्यालय जल्द ही अपने संस्थान देश में प्रारंभ कर रहें हैं।

क्या ऐसी परिस्थितियों में एक मध्यम वर्गीय आय का परिवार अपने बच्चे को उच्च शिक्षा दिला सकता है?

क्या शिक्षा को सभी वर्गों के लिए समान नहीं बनाना चाहिए?

जिससे एक साथ अमीर-गरीब, सुचित-अनुसुचित सभी अध्ययन कर सकें। फ़ीस इतनी हो सके कि व्यक्ति अपनी आय के हिसाब से दे सके।

सीधे-सीधे लार्ड मैकाले के मानस पुत्रों का षड़यंत्र है कि शिक्षा मंहगी होगी तो गरीब उच्च शिक्षा नहीं ले पाएगा और उसका हक ये मार लेंगे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिला कर ।

उच्च शिक्षा गरीबों एवं मध्यम वर्ग के लिए कब मुनासिब होगी?  सभी को समान शिक्षा के अवसर कब मिलेंगे?

रविवार, 9 मई 2010

मातृ दिवस पर नमन



माँ तुझे नमन
Comments for Orkut



हे माँ-यहाँ पर पढ़े

                                   

शुक्रवार, 7 मई 2010

इंटरनेट की लत बनी स्वाथ्य के लिए खतरा

जुम्मा जुम्मा कुछ दिन ही हुए हैं हमे डॉक्टर साहब ने ब्लागोमेनिया का मरीज करार दे दिया। :) हमारे लिए तो सभी डॉक्टर बराबर हैं, हां अगर हमारे समीप के शहर में होते तो उनसे इलाज अवश्य लेते और स्वास्थ्य लाभ करते।

हमारी तरह से ही घोषित और अघोषित मरीज बहुत सारे हैं इस दुनिया में और इस इंटरनेट बुखार  से डॉक्टर भी ग्रस्त हैं, और आम आदमी भी।

अब ये अपना इलाज करें कि हमारा। इंटरनेट की लत से बड़ी समस्या पैदा हो गयी है?

इस लत का निदान करने याने इंटरनेट की बीमारी से मुक्ति दिलाने के लिए दक्षिण कोरिया की सरकार एक अनुठा साफ़्टवेयर उपलब्ध कराने जा रही है.

इस साफ़्टवेयर की खासियत यह है कि निर्धारित समय सीमा के बाद यह इंटरनेट का उपयोग नहीं करने देगा। यह साफ़्टवेयर लैपटॉप और डेस्कटॉप दोनों के लिए अगले वर्ष से उपलब्ध होगा।

अगर आपको लगता है कि आप 3 घंटे ही इंटरनेट का उपयोग करना चाहते हैं तो यह साफ़्टवेयर 3 घंटे के बाद इंटरनेट कनेक्शन बंद कर देगा।

दक्षिण कोरिया की सरकार कम्प्युटर गेम डिजाईन करने वालों से भी आग्रह कर रही है कि वे गेम इस तरह से बनाएं कि लोगों को इसकी लत ना लगे धीरे-धीर गेम इतने कठिन हो जाएं कि हार कर उन्हे छोड़ना पड़े।

दक्षिण कोरिया कि सरकार को यह कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि इंटरनेट के जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल की ऐसी खबरें सुनने मिली जिन्होने लोगों को चिंताग्रस्त कर दि्या।

एक अनु्मान के अनुसार देश में लगभग 20लाख लोग इंटरनेट गेम की लत के शि्कार हैं। पिछले दिनों एक युवा दम्पत्ति ने नवजात शिशु को लम्बे समय तक भूखा रख कर मार डाला क्योंकि वे एक इंटरनेट गेम खेलने में व्यस्त थे। जिसमें वे एक काल्पनिक बच्चे की देखभाल कर रहे थे।

एक नौजवान ने अपनी माँ को इसलिए मार डाला क्योंकि उसकी हर समय इंटरनेट पर लगे रहने की आदत से परेशान था।

दक्षिण कोरि्या की सरकार ने लोगों की इंटरनेट की लत से छुटकारा दिलाने के लिए विशेष अभियान चलाया है जिसमें विशेषज्ञ के साथ काउंसलिंग सेवा भी शामिल है।

बुधवार, 5 मई 2010

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता

वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता मे--ललित शर्मा


अथ कर्ण पुराण कथा--प्रवाचक: - ललित शर्मण:

ऑनर किलिंग

विगत दो-तीन दिनों से मैने निरुपमा की ऑनर किलिंग पर कई पोस्ट पढी, जिसमें उसके पिता और परिवार की भर्तसना की गयी है और हत्या जैसे कृत्य की भर्तसना करनी भी चाहिए,

रही बात सजा देने की, तो यह काम कानून का है कि अपराधी का अपराध सिद्ध होने पर उसे दंड दे।

एक माता पिता बच्चे के जन्म से लेकर उसके योग्य होते तक परवरिश करते हैं, उसे संसार की अच्छी-अच्छी शिक्षा, वस्त्र, एवं अन्य आधुनिक संसाधन उपलब्ध कराते हैं।

हमेशा ध्यान रखते हैं कि बच्चे को कोई तकलीफ़ ना हो, उसका कैरियर अच्छे से बन जाए, वह अपने पैरों पर खड़ा हो जाए।

उनके प्यार में किसी तरह की कमी नहीं होती। अपना पेट काट कर, अपनी इच्छाओं का दमन कर बच्चे का भविष्य बनाते हैं।

किसी भी माता-पि्ता या परिवार के लिए अपने बच्चे की हत्या करने का निर्णय लेना आसान काम नहीं है।

बहुत ही कठिन है। उन्हे भी पता है कि इस कृत्य से पूरा परिवार तबाह होने वाला है। फ़िर भी वह जघन्य हत्या जैसा निर्णय ले लेता है।

अपने जिगर के टुकड़े के टुकड़े-टुकड़े कर डालता है।बस यही एक प्रश्न मुझे मथ रहा है।वे कौन सी परिस्थितियाँ होती हैं, जो इन्हे अपने ही बच्चे की हत्या जैसा जघन्य अपराध करने को बाध्य करती हैं? इसका उत्तर पाठकों से चाहता हुँ। 

सोमवार, 3 मई 2010

सावधान! मेरा मोबाईल हैक हो सकता है

क्या आपने सोचा है कि आपका मोबाईल नम्बर भी हैक हो सकता है?

क्या आपके नम्बर से कोई भी किसी दुसरे के नम्बर पर फ़ोन करके आपका बैंड बजवा सकता है?

या कोई अपराधी-आतंकवादी आपके मोबाईल का इस्तेमाल कर सकता है?

मेरा मोबाईल नम्बर मेरी आखों के सामने ही हैक हो गया और मैं देखता रहा। कुछ भी तो नहीं कर सकता था।

बस उस दिन से एक अनजाना भय व्याप्त है कि यदि किसी ने इस नम्बर से किसी और को फ़ोन करके उलजलूल हरकतें कर दी तो इसका जवाब तो मेरे पास नही है। फ़िर तो विशिष्ट तकनीकि विशेषज्ञ ही इसे पकड़ सकते हैं।

परसों रात को कनिष्क कश्यप जी ने मुझसे पुछा कि आपके नम्बर से पाबला जी को फ़ोन करके बताऊं।

मैने कहा- ये कैसे हो सकता है। उन्होने कहा-हो सकता है। मेरे मोबाईल नम्बर पे मेरे ही मोबाईल नम्बर से कॉल करके बताईए।

बस दो मिनट कहकर कनि्ष्क जी ने फ़ोन लगा दिया, मेरे नम्बर पर मेरे ही नम्बर से कॉल आती हुई दिख रही थी।

मै अचम्भित रह गया। ऐसा भी हो सकता है और हो भी गया।इस तरह किसी के भी मोबाईल नम्बर को हैक करके किसी को भी फ़ोन करना, मोबाईल धारकों के साथ एक बहुत बडा धोखा है।

इसके अनेक खतरे भी हैं, अपराधी आपका मोबाइल हैक करके कुछ भी कर सकते हैं। आतंक वादी इस तकनीकि का इस्तेमाल कर मोबाईल धारक और देश को खतरे में डाल सकते हैं।

कोई भी किसी के दाम्पत्य जीवन में आग लगा सकता है। नाना प्रकार के अपराध घटित हो सकते हैं।

गांव  में बैठा व्यक्ति एक अदद मोबाईल खरीद कर अपने को धन्य समझता है भले ही 10 रुपए का रिचार्ज कराए। लेकिन उसका मोबाईल खरीदना कब उसके लिए मुसीबत बन जाएगा इसका उसे पता नहीं है।

इसलिए सरकारी एजेंसियों को इस पर रोक लगानी चाहिए। इस खतरे से निपटना जरूरी है। इस तकनीकि का गलत इस्तेमाल हो सकता है।

मै कनिष्क जी को धन्यवाद देता हुँ जो उन्होने मुझे इसका परिक्षण करके बताया और मै सावधान हो गया।

इससे यह साबित हो गया कि मोबाईल कम्पनियों के सुरक्षा सिस्टम में कोई भी सेंध लगा सकता है। आप भी सावधान हो जाएं।

गाँव,गरमी का मौसम,आम-इमली और लाठी-डंडे

जैसे ही गर्मी के दिन आते हैं,आम और इमली के पेड़ों पर फ़ल लगते हैं। इमली की खटाई की मिठास ऐसी होती है जिसका नाम सुन कर ही मुंह में पानी आ जाता है।

यही हाल आम की कैरी के साथ भी है। उसकी भीनी खुश्बु मन को मोह लेती है। हमारे यहाँ पकी हुई इमली के बीज निकाल कर उसे कूटकर नमक मिर्च मिलाके "लाटा" बना के खाया जाता है।

बच्चों को बहुत प्रिय होता है। वही कैरी खाने के लिए घर से ही नमक मिर्च पुड़िया में बांध कर जेब में रख लेते थे कि पता नहीं कब किसके आम के पेड़ पर अपना दांव लग जाए।

बचपन की बातें तो कुछ और ही होती है। वह भी गांव का बचपन जीवन भर याद रहता है। हमारे दिल्ली के रिश्तेदारों के बच्चों को यह पता ही नहीं की मुंगफ़ली में फ़ल कहां लगता है?

उपर लगता है कि जड़ में लगता है। लेकिन गांव के बच्चों को दिल्ली-बांम्बे तक की जानकारी होती है। टीवी और फ़िल्मों में सब दिखा दिया जाता है।

जिससे वे समझ जाते हैं कि शहर कैसा होता है। लेकिन फ़िल्मों में यह नहीं दिखाया जाता कि मुंगफ़ली का पौधा कैसा होता है। आम और इमली पेड़ पर कैसे लगते है।

एक बार की बात है जब हम 7वीं में पढते थे। मेरे दो स्थायी मित्र थे एक कपिल और एक शंकर।हम सारी खुराफ़ातें साथ मिल कर ही करते थे।

क्लास में खिड़की के पास बैठते थे और उसके साथ ही अपनी सायकिल रखते थे। अगर किसी टीचर का पीरियड पसंद नही है तो टीचर के ब्लेक बोर्ड की तरफ़ मुंह करते ही सीधा खिड़की से कूद कर सायकिल उठाई और रफ़ूचक्कर हो लेते थे। 

हमारे स्कूल के पीछे आम के बड़े-बड़े कई पेड़ थे। एक दिन कपिल ने बताया कि इन आम के पेड़ों में बहुत सारे आम लगे हैं, कहां हम दो चार कैरियों के लिए चक्कर काटते हैं मरघट तक में, यहीं हाथ आजमाया जाए।

मैने भी देखा एक पेड़ तो आम से लदा हुआ था जहां भी हाथ डालते आम ही आम। बस योजना को मूर्त रुप देने की ठान ली। दोपहर के बाद खिड़की से जम्प मारा और चल दिए आम के पेड़ तक।

शंकर को सायकिल की चौकिदारी करने के लिए खड़ा किया। उसे चेताया कि अगर कोई चौकिदार या आम का मालिक आ गया तो सायकिल लेकर भाग जाना और चौरस्ते पर मिलना। वहां से हमारे आए बिना कहीं मत जाना तुझे तेरा हिस्सा बराबर मिल जाएगा।

उसे चेता कर हम दोनो चढ गए आम के पेड़ पे। आम भरपूर थे, पहले तो पेड़ के उपर बैठ कर खाए जी भर के, शंकर सायकिल की चौकिदारी करते रहा।

एक दो आम उसके पास भी फ़ेंक दिए जिससे वह खाली मत बैठा रहे, आम खाने का आनंद लेता रहे। हमने अपनी जेबें भर ली, लालच और बढ़ा हम आम तोड़ते ही जा रहे थे।

आम के पेड़ की लकड़ी बहुत कमजोर होती है अगर टूट जाए तो दुर्घटना होना लाजमी है। इसलिए संभल कर काम में लगे थे।

तभी अचानक जोर का शोर सुनाई दिया। उपर से देखा तो 10-15 लोग हाथों में लाठी लिए जोर जोर से गाली बकते हुए आ रहे थे-"पकड़ो पकड़ो साले मन आमा चोरावत हे,मारो-मारो झन भागे पाए (पकड़ो सालों को आम चोरी कर रहे हैं, मारो मारो भागने ना पाए)

मैने शंकर की तरफ़ देखा तो वह सायकिल को वहीं छोड़ कर भागा जा रहा था 100 की रफ़तार में, जैसे किसी ने पैट्रोल लगा दिया हो।

सायकिल वहीं खड़ी थी, अगर वो सायकिल ले गए तो चार आठ आने के आम के चक्कर में घर में धुनाई पक्की थी।

वे सब लाठियाँ लेकर पेड़ के तने को पीट रहे थे-"उतरो साले हो नीचे, आज तुम्हारा हाथ पैर तोड़े बिना नहीं छोड़ेगें"। अब क्या किया जाए ? पेड़ पर पत्तियों के बीच छिपे छिपे सोचने लगे।

कपिल बोला-" देख मै पेड़ की एक डाल को हिलाता हूँ और तू आम तोड़ कर आधा खा के नीचे फ़ेंकना शुरु कर दे। फ़िर जैसे ही ये हमें आम तोड़ने से मना करेंगे तो पहले सायकिल पेड़ के नीचे मंगाएगें और इन्हे पेड़ से दूर हटने बोलेंगे।

तू पहले उतर कर सायकिल ले कर भाग जाना, मेरी फ़िक्र मत करना मै तुम्हे चौरास्ते पर ही मिलुंगा।" मैने उसकी बात मान ली। 

कपिल ने पेड़ की डाली हिलाई, पड़ पड़ आम नीचे गिरने लगे। मै भी आधे आम तोड़ कर नीचे फ़ेंकने लगा।

कपिल जोर से चिल्लाया-" तुम लोग पेड़ के पास से हट जाओ और सायकिल को पेड़ के नीचे रखो नहीं तो पेड़ के पूरे आम गिरा दुंगा।"

उसका कहना था कि उन लोगों को सांप सुंघ गया। क्योंकि आम अभी छोटे ही थे अगर गिरा देता है तो मारने के बाद भी नुकसान पूरा नहीं होगा और वे हमें अभी तक नहीं देख पाए थे कि हम कौन हैं?

उन्होने आपस में बात की और एक बोला-"देखो भैया हो आम मत तोड़ो नुकसान हो जाएगा, तुम लोग नी्चे उतर आओ हम लोग कुछ नहीं कहेंगे"। कपिल ने अपनी मांग फ़िर दोहराई। तो उन्होने सायकिल पेड़ के नीचे लाकर रखी। 

मै पेड़ से उतर कर सायकिल के पास कूदा और सायकिल को दौड़ा कर एक ही छलांग में घोड़े की पीठ पर बैठने वाले अंदाज में सीट पर बैठा तो आवाज सुनाई दी- "ये दे तो फ़लांना महाराज के लईका हवे गा"॥(ये तो फ़लां महाराज का लड़का है)

बस फ़िर तो मैने चौरास्ते पर पहुंचकर दम लिया। थोड़ी देर सड़क पर बैठा और कपिल का इंतजार करने लगा। शंकर को मन ही मन बहुत गालिंयां दे रहा था कि-"साला हमें फ़ंसा कर भाग लि्या।"

आधे घंटे बाद शंकर और कपिल कैरियों की जेबें भरे हुए आ रहे थे। शंकर ने कहा कि-"इतने सारे लोगों को लाठी लेकर आते देखकर मै बहुत डर गया। सायकिल की तो मुझे याद ही नहीं आई-मै तो सीधा ही छुट लिया। मु्झे माफ़ करना।"

इस तरह आम खाए हम लोगों ने, आज भी बहुत याद आती है बचपन की खुराफ़ातों की और बाल सखाओं की।  

रविवार, 2 मई 2010

हो्शियार! शिकारी ही शिकार हो गए

गफ़लत में रहे तो कभी-कभी होशियार से होशियार शिकारी भी शिकार बन जाता हैं, नजरें चुकी या ध्यान कहीं विचलित हुआ और शिकार बन गए।

शिकार होने से बचने के लिए चौकन्ना होना जरुरी है। जो चौकन्ना होता है वह बच जाता है, कुशल शिकारी वह होता है जो शिकार को पता ही नहीं चलने देता और गर्दन दबोच लेता है।

यही हाल कैमरे से शिकार का भी है। आदमी अपनी शक्ल देखना चाहता था तो दर्पण का अविष्कार हुआ। लेकिन दर्पण के सामने खड़े हो तभी वह आपका प्रतिबिंब दिखाता है, आपके हटते  ही बिंब गायब हो जाता है। इसे स्थाई रुप से दिखाने के लिए कैमरे और फ़ोटो का अविष्कार हुआ।

आपकी तश्वीर उसमें कैद हो जाती है फ़िर छाप कर दीवार पर टांग लिजिए हमेशा देखते दिखाते रहिए। लेकिन एक अदद तश्वीर कितनी मेहनत से ली जाती है इसका क्या आपको पता है?

अगर पता है तो भी देखिए और नहीं पता है तो भी देखिए, आपके लिए लाए हैं कुछ तश्वीर खींच रहे लोगों की तश्वीरे मित्र पद्मसिंग जी के सौजन्य से, दे्खिए आनन्द लिजिए.  

थोड़ा झुक के भाई शायद पूरी फ़ोटो आ जाए

थोड़ा देख के, जरा पेंट का भी ध्यान रखना कहीं................!

अब सही पोजिशन है-जरा मुस्कुराओ-रेड़ी, वन-टु-थ्री

लांग शॉट स्टेट ड्राईव

अरे रुको जरा! एक स्नेप हो जाए-बस इसी अंदाज में