शनिवार, 31 अक्तूबर 2009

टोनही के संदेह में महिला की हत्या होना आदिम बर्बर युग की कहानी जैसा

कल  का हमारा गंभीर विषय था कि बेसहारा गरीब औरतों को ही "टोनही" क्यों ठहराया जाता है? "टोनही"यह एक गंभीर विषय है, इसके सभी पहलुओं पर ब्लॉग जगत में चर्चा होनी चाहिए, पहली टिप्पणी संगीता पूरी जी की आई उन्होंने कहा कि-बिल्‍कुल आसान सी बात है 

परिस्थितियों की मार से ही बचपन से संघर्ष करते करते जिन बेचारियों के चेहरे पर रौनक या शरीर में ताकत नहीं रह जाती, जिन लाचारों की मदद करने को समाज का कोई व्‍यक्ति आगे नहीं आ सकता, उन्‍हें ही तो निशाना बनाकर बैगा अशिक्षित जनता पर अपना विश्‍वास बनाए रख सकता है !!

गोदियाल जी ने कहा -अशिक्षित और मूर्ख लोग इसकी जड़ है ! मगर अफ़सोस कि जिन इलाको में ये घटनाएं होती है वझा कोई तो पढ़े लिखे होंगे, वे आगे क्यों नहीं आते ? 

जी.के.अवधिया जी ने कहा कि-यही तो विडम्बना है कि सताया निर्बल को ही जाता है। वो कहते हैं ना "गरीब की लुगाई सबकी भौजाई" बचपन में मैंने ऐसे समृद्ध औरतों को भी देखा है जिन पर टोनही होने का आरोप लगाया जाता था किन्तु उन्हें सताना तो दूर, उनके या उनके परिजनों के सामने लोग उन्हें टोनही कहने साहस भी नहीं कर सकते थे। हमेशा से गरीब निर्धन, परित्यक्ता, अकेली, स्त्री ही इसका शिकार क्यों होती है? यही तंत्र-मंत्र, झाड़-फूंक, जादू-टोना का काम तो वो बैगा-तांत्रिक भी करता है. उसके साथ कभी भी यह व्यवहार क्यों नही होता? 

इसी पर आगे चलते हुए मै आपको एक सत्य घटना की ओर ले चलता हूँ,!!!!!!

एक दिन मेरे पास घर पर मेरे मित्र आए, कुछ बदहवास से लग रहे थे, पेशे से हिन्दी के व्याख्याता  हैं, मुझे कहने लगे कि ' जल्दी चलो महाराज! मेरी बहन का मर्डर हो गया है. मैंने पूछा कहाँ ? उहोने कहा कि "गनौद" में, गनौद एक गांव है जहाँ की आबादी लगभग २००० के आस-पास होगी, 

वे बोले जल्दी चलो! आप जाओगे तो थानेदार लिखा पढ़ी सही करेगा, आपकी पहचान का है। मै उनके साथ उस गांव में पहुंचा तो दोपहर का समय था,सन्नाटा छाया हुआ था. बीच रास्ते में एक महिला की लाश पड़ी थी. उसकी उम्र शायद ५०-५५ साल के आस-पास रही होगी. उसका पति और कुछ परिवार वाले ही वहां पर थे. 

उसके पति ने बताया कि हम दोनों घर से ब्यारा (जहाँ फसल काट कर रखी जाती है खलिहान) जा रहे थे, (उनका घर खलिहान से कोई १०० मीटर दूर होगा) तभी हमारे घर के सामने रहने वाला एक लडका सामने से सामने से टंगिया (कुल्हाडी) लेकर आया और बोला- तू टोनही है और तुने मेरे को टोनहा दिया (जादू-मंतर कर दिया) मै तेरे को जिन्दा नहीं छोडूंगा कहकर-उसके सर पर टंगिया का चार पॉँच वार कर दिया. 

जिससे वो स्त्री वही पर गिर गई और उसके प्राण पखेरू उड़ गए.

अब उस लड़के ने इसके बाद क्या क्या वो भी सुन लीजिए. उस स्त्री की हत्या करने के बाद वह लड़का अपने घर के पीछे बने तालाब में इतमिनान से अपने टंगिया से सारा खून धोकर घर आता और खाना बनाकर खाकर अपने घर में ही सो जाता है. हत्या करके भागने की कोशिश नहीं करता. एक हत्या की उसने निर्भय होकर, 

इसके पीछे उसकी कौन सी मानसिंक स्थिति काम कर रही थी? यह लड़का पढ़ा लिखा था, एम्.काम. का स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त था. बस किसी के कहने-सुनने से उसके मनोमस्तिष्क में एक बात बैठ गई थी कि उसके घर के सामने रहने वाली औरत "टोनही" है, और उसने मेरे ऊपर कुछ जादू टोना कर दिया है. जिससे नौकरी नहीं लग रही है या नौकरी नहीं मिल रही है. 

इसकी परिणिति एक निर्दोष की हत्या के रूप में हुई. वह भी दिन दहाड़े और सरे-आम.जब पुलिस उस लडके को पकड़ने आई तो उसने कहीं भागने की कोशिश किये बिना हथियार सहित आत्म समर्पण कर दिया. 

मै जब उससे थाने में मिला तो बहुत ही शांत था जैसे उसने कोई बहुत बड़ा पुण्य का काम किया है और गांव वालों को बहुत बड़ी भारी विपदा से बचाया है.

अब हम इधर उस वृद्धा की पारिवारिक परिस्थितिओं पर गौर करते  हैं, तो पता चलता है कि उसके दो लड़के हैं, एक सरकारी नौकरी में है, गांव से बाहर रहता है, उसको माता पिता से कोई लेना देना नही है,गांव भी नही आता है, 

दूसरा लड़का है वो भी दुसरे शहर में आर.एम्.पी. डाक्टरी करता है, उसकी शादी के बाद वो भी गांव और माता पिता से कोई सम्बन्ध नहीं रखता. 

इस तरह दोनों पति-पत्नी अकेले रहते थे और जो ५-६ एकड़ खेती थी उसको बोते-खाते थे. एक तरह से वे खुद का सहारा खुद ही थे पुरे गांव वालों को पता था कि इसके लड़कों अब आना-जाना छोड़ दिया है. वे हमारे सामने वृद्धा की हत्या होने के बाद पहुंचे.

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

गरीब बेसहारा औरते हीं टोनही क्यों करारा दी जाती हैं?

गांव और शहरों में एक अन्धविश्वास बहुत गहरे पैठा हुआ है कि बुरी नज़र, जादू मंत्र आदि होता है, एक किरदार जो हमारे देश में पाया जाता है, 

उसे क्षेत्रवार- टोनही, टूणी, डाकण, जादू टोना करने वाली औरत के नाम से जाना जाता है. इस अज्ञात भय से लोग डरे रहते हैं कि हमारा और हमारे बच्चे का अनिष्ट हो जायेगा, इसको टोनही खा जायेगी. हमारे काम-धंधे-नौकरी में कुछ व्यवधान आ जायेगा. 

इस रोग से ग्रसित अनपढ़ ही नहीं पढ़े लिखे लोग भी होते हैं. खासकर हमारे छत्तीसगढ़ में  इस तरह के मामले सामने आते ही रहते है. काफी लोग इस मानसिकता से प्रभावित हैं. 

इस कारण सरकार को "टोनही प्रताड़ना निरोधक अधिनियम २००३" बनाना पडा. इस अधिनियम में सत्य पाए जाने पर कठोर सजा का भी प्रावधान किया गया है. लेकिन फिर भी यह कृत्य रुक नहीं रहा है. 

अभी परसों ही रायपुर राजधानी में ही एक घटना हो गयी. घरों में काम करके अपना भरण पोषण करने वाली एक महिला के साथ एक परिवार ने मारपीट की और टोनही कहके प्रताडित किया. क्योंकि आरोपी के घर में एक १५ साल की लड़की कि मृत्यु पेट दर्द से हो गयी थी, 

जिसका आरोप बिस्वासा बाई पर लगाया गया कि उसने जादू टोना करके इस लड़की को खाया है, और इसके घर में घुस कर आठ-दस लोगों ने मारपीट की. इस महिला ने इसकी रिपोर्ट थाने में दर्ज कराई, और आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया, 

उनके खिलाफ टोनही निरोधक कानून के अन्तरगत  अपराध  दर्ज किया. 

इस तरह की घटनाएँ मै बचपन से देख रहा हूँ कि गांव का बैगा(जादू मंतर भूत उतारण, कष्ट निवारण करने वाला व्यक्ति-ऐसी मान्यता है) किसी को भी टोनही करार देकर उसे नंगा करके, केश मूड के गांव निकाले का आदेश देते आये हैं और पूरा गांव बैगा के आदेश पर इस दुष्कृत्य को परिणाम की परवाह किये बिना ही करने को तैयार हो जाता है, सारे मिलकर इस अपराध को अंजाम दे डालते हैं. 

कैसी विडम्बना है कि ये जान बुझकर इस अपराध को सामूहिक रूप से अंजाम दे डालते हैं.

इससे कई प्रश्न खडे हो जाते हैं. जिस औरत को ये बैगा आदि मिल कर टोनही करार देते हैं, वो हमेशा ही निर्धन, मजदूरी करने वाली, विधवा या परित्यक्ता, बेसहारा ही होती हैं, 

जिनका कोई नहीं होता, वो ही इसका शिकार बनती हैं. आज तक मैंने कभी देखा या सुना नही कि किसी पैसे वाले,रसूख वाले व्यक्ति के परिवार की किसी औरत तो टोनही करार देकर उसके साथ उपरोक्त व्यवहार करके गांव निकला दिया हो?

 गरीब बेसहारा औरतें ही इसका शिकार क्यों होती हैं?

जो अनुभव मुझे हुए हैं, उन्हें आपके साथ बांटा जायेगा. यह एक सामाजिक विकृति है जिससे आज भी नारी जूझ रही है. यह एक ज्वलंत समस्या है जिसका निदान आवश्यक है।

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

ललित डॉट कॉम ब्लॉग की 50 वीं पोस्ट

आज "ललित डॉट कॉम" की 50 वीं पोस्ट लिख रहा हूँ, इस ब्लॉग पर मैंने पहली पोस्ट 15 सितम्बर को लिखी थी " 

हमें प्रत्येक साँस को ही हिंदी दिवस समझाना चाहिए" इस पोस्ट से ललित डॉट कॉम का सफ़र तय हुआ. इस ब्लॉग पे मैं विभिन्न घटनाक्रमों पर अपने विचार लिखता हूँ. किसी समाचार को पढ़ कर, देख कर, सुन कर, (मेरे व्यक्तिगत अनुभव) यदि कोई विचार मन में आता है उसे अपने सभी मित्रों के साथ बाँटता हूँ, 

मैंने अपने देश में सिर्फ लद्दाख को छोड़ कर सभी जगहों को बड़ी करीब से देखा है. एक वर्ष में लगभग एक-सवा लाख किलो मीटर का सफ़र अपने शिल्पकार साथियों से मिलने के लिए तय कर ही लेता हूँ. इस दौरान मैंने बहुत कुछ सीखा है. 

कभी अपने यात्रा वृतांत भी मैं इस ब्लॉग पर लिखूंगा. मैंने पल-पल अपनी डायरी में संजो रखे है. इस कम अवधी में मैंने ब्लोगर मित्रों एवं पाठकों का अथाह स्नेह पाया, मुझे एक नया अनुभव भी हुआ जिनसे मैं ब्लॉग पर मिलता था उनसे पहली बार सामना हुआ तो ऐसा नही लगा कि किसी नए आदमी से मिल रहा हूँ, कोई पुराना मिलने वाला है ऐसा अहसास हुआ. और बडी आत्मीयता से मिले.

वैसे तो मैं ब्लॉग जगत पर जनवरी माह से हूँ, लेकिन सक्रिय अगस्त से ही हुआ, क्योंकि बरसात लगने से मुझे कुछ समय इस पर देने के लिए. 

इन महीनों में मैंने ब्लॉग जगत बहुत सी चीजे सीखी एवं अनुभव प्राप्त किया, मैं कभी-कभी कुछ लिखने और पढने आया था ब्लॉग जगत पर, लेकिन ऐसा हो गया की मैं धीरे-धीरे एक अंग ही बन गया, 

एक नाम कई दिनों से सुनता रहा हूँ "आभासी दुनिया" बहुत ही उपयुक्त नाम है, क्योंकि आज ऐसा हो गया की मैं भी इस आभासी दुनिया का एक हिस्सा बन गया हूँ, आज मेरा इंटरनेट सुबह सात बजे शुरू होता है और रात १२-१ बजे बंद  होता है, 

मैं अपने आप में सरल-सहज एवं विवादों से दूर रहने वाला व्यक्ति हूँ, कभी -कभी एक दो चर्चाएँ ऐसी आई जिनमे मुझे भी कूद पड़ने की इच्छा हुई. फिर मैंने अपने हाथ पीछे खींच लिए, क्योंकि हमने जो अध्ययन किया है,जो संस्कार गुरुजनों से मिले उन्होंने मुझे रोका. 

क्योंकि अगर हम कदम -कदम पर ताल ठोंक कर खड़े हो जायेंगे तो अपनी मंजिल की ओर देर से पहुंचेंगे, समय कम है, काम ज्यादा है इसलिए उत्तिष्ठ -चैरेवेती-चैरेवेती. आप लोगों ने इतना स्नेह मुझे दिया कि मैं अभिभूत हूँ 

एक परिवार के सदस्य के रूप में ही मै मानता हूँ. आशा है कि आपका स्नेह, प्यार और मार्गदर्शन मुझे मिलता रहेगा, यही मेरे जीवन की अक्षय पूंजी बनेगा यही मेरा बैंक बैलेंस है जो मेरे साथ जायेगा. ये कुछ  पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगती हैं, वह आपके साथ बाँट रहा हूँ., आप सभी को मेरा वंदन -अभिनन्दन - नमस्ते
मुरख  को  समझाये के,  गियान गांठ को जाये
कोयलों होय ना उजरो, तू नौ मन साबुन लगाये

ये भी देखो,वो भी देखो, 
देखत देखत इतना देखो,
मिट जाये धोखा
रह जाये एको 

बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

क्रायोजेनिक इंजिन का विकास एवं परीक्षण

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसधान संगठन ने आखिर क्रायोजेनिक इंजिन बना ही लिया. इसके लिए वे वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं जिन्होंने इसका निर्माण किया. 

मुहे याद है कि पिछले दशक में भारत सरकार ने रूस से क्रायोजेनिक इंजिन खरीदने के लिए एक समझौता किया था लेकिन वक्त पर रूस ने समझौते को तोड़ते हुए इंजिन देने से मना कर दिया था. उस वक्त प्रो.यशपाल ने कहा था कि इंजिन हम भी बना सकते हैं, 

लेकिन इतना है कि हमारी योजनाओं में कुछ सालों का विलंब हो जायेगा. आखिर हमारे वैज्ञानिकों ने क्रायोजेनिक इंजिन की तकनीकी विकसित करते हुए इसका निर्माण कर लिया और यह अब उपयोग के लिए तैयार है. 

अब हमारा देश भी दिसम्बर माह में उन देशों की कतार में शामिल हो जायेगा जिन्होंने क्रायोजेनिक इंजिन विकसित किये हैं, ये एक मील का पत्थर है, 

हमने दुनिया को ये काम भी करके दिखा दिया. इसरो को उम्मीद है कि स्वदेशी तकनीक से विकसित "भू-स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जी.एस.एल.वी.) के जरिये प्रयोग के तौर पर जी.एस.ऍ.टी.-४ नाम के उपग्रह को दिसम्बर के मध्य में रवाना किया जायेगा. 

जी.एस.एल.वी में पूरी तरह भारत में विकसित क्रायोजेनिक इंजिन लगाया जायेगा.इसे पहली बार रॉकेट के उपरी हिस्से में लगाया जायेगा. 

इससे पहले पांचों जी.एस.एल.वी अभियानों में रूस में निर्मित क्रायोजेनिक इंजिन का उपयोग किया गया था. 

हमारे देश के वैज्ञानिक बधाई के पात्र हैं. हमारे देश के लिए एक यह बहुत ही बड़ी उपलब्धि है, हमने बता ही दिया "हम किसी से कम नहीं हैं"

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

रंग भेद करने वाले आस्ट्रेलियाई जंगली

आस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर लगातार हमलों के समाचार विगत एक वर्ष से आ रहे हैं. एक तरफ आस्ट्रेलिया सरकार इन छात्रों की सुरक्षा की गारंटी देती है, दूसरी तरफ इन पर फिर हमला हो जाता है. ये कृत्य लगातार चल रहा है. 

आज फिर रंग भेद के कारण एक और भारतीय छात्र को हमले का शिकार होना पड़ा.जिल्लत सहनी पड़ी. 

आस्ट्रेलियाई अखबार "द एज" में छपी खबर के अनुसार यह घटना वहां के समयानुसार १२.४५ बजे घटी. एक सिख छात्र बस स्टाप पर सो रहा था, तभी पांच आस्ट्रेलियाई गुंडों के झुंड ने इस पर हमला कर दिया.छात्र को मुंह पर चोट आई है. इसके सर पर पीछे से वार करते हुए, उसकी पगडी निकाल कर फेंक दी. 

इस तरह की भारतीय छात्रों पर हमले की खबरें लगातार आ रही है. मेरा कहना है कि क्यों जा रहे हो वहां मार खाने के लिए? 

क्या अपने देश में तुम्हारे पढने लायक कोई कोर्स ही नहीं है ? क्या आस्ट्रेलिया सरकार तुम्हे मुफ्त में पढ़ा रही है? या तुम्हे वहां जा कर पीटने में ही स्वाद आ रहा है? 

रोज एक खबर बन जाते हो. यहाँ पर तो हमारा कलेजा जल जाता है कि हमारे देश के विद्यार्थियों पर हमला हो रहा है. 

आस्ट्रेलियाई लोगो की दुष्टता का परिचय तो हमें २०-२० के वर्ड कप में ही देख लिया था जब उन्होंने जीत के जोश में शरद पवार के तों ट्राफी छीनते हुए मंच से उतार दिया था. 

इससे ही पता चल गया था कि ये कितने सभ्य हैं? ये रंग भेद करने वाले जंगली हैं, इन्हें सभ्य समझने की भूल नहीं करना चाहिए. 

हमारे भारत में भी उच्च श्रेणी के शिक्षा संस्थान है. विदेशों से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने यहाँ पर आ रहे हैं.

अगर यहाँ के उच्च शिक्षा संस्थानों की फीस ज्यादा है. तो उसे कम करावो, नहीं तो फिर क्यों नारा लगाते हो,"छात्र शक्ति-राष्ट्र शक्ति" अपनी शक्ति दिखाओ, मांगे मनवावो, प्रजातंत्र है. अगर आपकी बात सत्तारूढ़ सरकार नही सुनती तो पॉँच साल में बाहर का रास्ता दिखाओ और जो छात्र हित में काम करे उसे गद्दी पर बिठाओ. 

यहाँ भले ही रुखी-सूखी खाओ, पिटो-जेल जाओ, कोई बात नहीं-लेकिन दुसरे देशों में जाकर तो मत मार खाओ. 

हमारे देश में आज भी किसी चीज की कमी नहीं है. कमी है सिर्फ इच्छा शक्ति की, विदेशों में जाकर जलील होने से अच्छा है, जो संसाधन अपने देश में हैं, उनका ही उपयोग और उपभोग करो, कमी है तो नए संसाधन जुटाओ. पर मार खाने के लिए बाहर मत जाओ.
"रुखी सूखी खाय के,ठंडा पानी पी.
देख पराई चुपड़ी, मत ललचावे जी"



सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

ये बेलगाम महंगाई कहाँ तक जायेगी?

महंगाई और बढ़ने वाली है, खासकर कृषि से सम्बंधित उत्पादों के मूल्य में आने वाले महीनों में बढोतरी होगी, इस मूल्य वृद्धि की वकालत एवं भूमिका बांधने की शुरुआत अभी से ही दिल्ली से प्रारंभ हो चुकी है. 

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के प्रमुख रंगराजन ने २००९-१० की आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट जारी की है, जिसमे कृषि उत्पाद में एक करोड़ दस लाख टन की कमी पिछले साल के मुकाबले बताई है. 

इसका कारण दक्षिणी पश्चिमी मानसून का रूठ जाना बताया है. 

वर्षा की कमी के कारण धान के बुवाई क्षेत्र फल में काफी कमी आई है, बुवाई का क्षेत्र फल १५% कम हो गया. अन्य कृषि उत्पादों बाजरा,मक्का,और ज्वार की बुवाई पिछले साल के मुकाबले १०% कम क्षेत्र पर हुई है. 

दलहन की बुवाई गत वर्ष से अधिक क्षेत्रफल में हुई है, तिलहन की बुवाई पिछले साल की अपेक्षा साढ़े १५% कम भूमि पर हुई है. 

सोया बीन का बुवाई रकबा भी ०.२०% घटा है. गन्ने का बुवाई क्षेत्र फल भी २.९०% घटा है. 

इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में खाद्य पदार्थों के मूल्यों में  निश्चित ही वृद्धि हो सकती है. पता नहीं ये बेलगाम महंगाई कहाँ तक जायेगी?

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

मोबाईल कम्पनियों की खुली लूट एवं धोखाधड़ी

मोबाईल कम्पनियाँ उपभोक्ता की जेब पर डाका डालने से नहीं चूक रही, नित नए-नए तरीकों का अविष्कार कर रही हैं कि उपभोक्ता की जेब से ज्यादा से ज्यादा पैसा कैसे निकला जाये. 

मैं अपनी ही बात कहता हूँ, अभी कुछ दिनों पहले मैंने "वाटस ऍ ग्रेट आइडिया........" का नया नंबर लिया. उसमे ३२५ का रिचार्ज करवाया. 

मेरे  डेस्क टॉप में कुछ समस्या थी इसलिए इंटरनेट कैफे में पोस्ट करने गया था. वहां पर मुझे किसी का फोन आया और मैंने बात की. 

उसके एक घंटे बाद घर आया और किसी से बात करनी थी, उसका नंबर लगाया तो आइडिया द्वारा बताया गया कि आपके मोबाइल में बैलेंस नही है. 

मैं चक्कर में पड़ गया, कैसे हो गया ? अभी तो दो घंटे पहले रिचार्ज करवाया है.वो भी एक इनकमिंग काल में पूरा पैसा........., 

मैंने कस्टमर केयर में फोन लगाया तो उसने कहा कि आपने हेलो टोन सलेक्ट करने के लिए गाने सुने हैं, इसलिए आपका बैलेंस काट लिया गया, इसमें ५ रूपये मिनट लगता है. 

मैंने कहा भाई क्या तुमको मैं इतना बेवकूफ लगता हूँ कि पॉँच रुपया मिनट का गाना सुनूंगा, इतना ही गाना सुनना है तो सी.डी.-डी.वी.डी. पर सुन लूँगा, 

वो बोले हम कुछ नहीं कर सकते, इस तरह मेरा ३०० रुपया हजम कर दिया गया.

एक दिन फिर वैसे है ७५ रूपये कम हो गए, कस्टमर केयर में पूछने पर उन्होंने कहा कि आपकी तरफ से हेलो टोन की रिक्वेस्ट आई है. इसलिए आपके बैलेंस से तीन महीने का किराया काट लिया गया है. 

मैंने घर में बच्चों से पूछा कि किसने हेलो टोन लगाईं है. तो सबने ना में जवाब दिया. वैसे भी मेरा मोबाईल कोई इस्तेमाल नहीं करता है. 

बाद में पता चला कि इस नंबर पर एक काल आई थी जिसे मेरे बेटे ने सुना था उसमे गाना बज रहा था. बस गाने के चक्कर में उससे स्टार बटन दब गया और उन्होंने मेरा बैलेंस खाली कर दिया. 

एक बार ऐसे ही एयर टेल का नंबर लिया उसमे भी यही हुआ एक दिन मेरे बैलेंस से ४५ रुपया कम हो गया, कटमर केयर पर पूछने से पता चला कि मैंने ऍफ़.एम् रेडियों एक्टिवेट कराया है. जबकि उस समय मैं घर पर अकेला है था, बच्चे गर्मी की छुट्टी में ननिहाल गए थे. 

मैंने कस्टमर केयर से लगातार बात की लेकिन उन्होंने मेरे पैसे वापस नही किये. काल चार्ज के साथ इन्होने ग्राहकों से छिपा कर बहुत सारे हिडन चार्ज लगा रखे हैं, जिसका उपभोक्ता को पता ही नहीं चलता. 

मैं ७ सालों से b.s.n.l. चला रहा हूँ उसमे कोई परेशानी नहीं थी, कोई हिडन चार्जेस नहीं थे. लेकिन इसने अभी एक नया फार्मूला चालू कर दिया. कल मेरे मोबाईल पे कंपनी का मेसेज आया कि आपको काल चार्जेस कम करना है तो ५३७३३ पर ACT.1S लिख कर मेसेज करो, 

मैंने मेसेज किया तो जवाब आया कि आपका रोज बिना काल किये भी डेढ़ रुपया काटा जायेगा. अब इस ठगी में b.s.n.l भी  शामिल हो गया है, 

दीवाली पर सभी कम्पनिओं ने SMS. के रेट बढा दिये मैंने अपने मोबाईल में मेसेज में छुट के लिए अलग से कार्ड डलवाया था कि दीवाली पर सबको मेसेज करने हैं. जब मेसेज करने लगा तो देखा उसका चार्ज मेन बैलेंस से काटा जा रहा है. 

कम्पनी से पूछा तो उसने कहा कि दीवाली पर मेसेज वाली सुविधा हटा ली गई है .आपके मेन बैलेंस में  से ही चार्ज काटा जायेगा. 

इस तरह उपभोक्ताओं के साथ सीधी-सीधी धोखा-धडी हो रही है. आज १०० रूपये दिहाडी वाले मजदूर के पास भी मोबाईल है, इनके लिए कम्पनियों ने छोटा पैक १० रुपया २० रुपुया वाला शुरू किया है. क्योंकि इनको गिरफ्त में सबको लेना है. 

एक बार लाइन डाल दी, टावर खड़े करने में खर्च कर दिया, बस उसके बाद तो जीवन भर वसूल ही करना है. अभी एक पैसा सेकंड वाला नया तमाशा शुरू किया है. इसमें भी काल चार्ज उतना ही है जितना पहले थे.

सरकार ने इन पर नियंत्रण करने के लिए टेलीफोन नियामक आयोग बनाया हुआ है.वो कहाँ सो रहा है? इनकी धोखाधडी की शिकायत कहाँ पर की जाये उसका पता नहीं है? 

जबकि मोबाईल का प्रसार बहुत ही तेजी से हो रहा है. मोबाईल कम्पनियों को उपभोक्ता के प्रति जवाबदेह बनाना आवश्यक है. 

शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

चर्चा पान की दूकान पर" हमारा नया ब्लॉग

चर्चा पान की दूकान पर
मित्रों "चर्चा पान की दूकान पर" हमारा नया ब्लॉगहै. इसके नामकरण के सम्बन्ध में साथियों से बहुत चर्चाएँ हुई,  

कईयों ने अलग-अलग नाम सुझाए, आखिर चर्चा पान की दूकान पर नाम पर सहमती बन ही गई, क्योंकि हमारे देश में पान की दुकाने एक आम आदमी से सीधा-सीधा संपर्क, सम्बन्ध एवं सरोकार रखती है,

गांव के गली कुचों से लेकर शहर के नुक्कड़ तक, बीच चौराहों से लेकर शहरों में कोने-कोने तक मिल जाती हैं.

अगर हमें अनजान शहर में भी किसी का पता पूछना हो तो यहाँ पर आसानी से मिल जाता है.पान की दुकान पर खड़े-खड़े ही मित्रों में अनजान व्यक्तियों में अनायास ही विभिन्न मुद्दों पर चर्चाएँ छिड़ जाती है.चाहे वो अंतर्राष्ट्रीय, रास्ट्रीय एवं स्थानीय हो,

कभी-कभी गंभीर चर्चाओं के साथ-साथ हास्य भी यहाँ पर निकल आता है, मुद्दे भी वो होते हैं जो एक आम आदमी से सीधे-सीधे जुड़ जाते हैं,

एक मित्र ने कहा कि क्या ये नाम आधी आबादी (महिलाओं) का प्रतिनिधित्व करेगा?

आज कई जगहों पर मैंने देखा है कि महिलाएं ही पान की दुकाने चलाती हैं. अब इस युग में ये बातें मायने नहीं रखती.

इस ब्लॉग में हमारे लेखक साथी भी लिख सकते हैं. हम एक स्वच्छ- विवाद रहित,आम आदमी के सरोकारों से जुड़े हुए विचार इस पर रखेंगे.

अभी इस ब्लॉग पर हमारे साथी लेखक अनिल पुसदकर, प्रसिद्द व्यंगकार गिरीश पंकज, साहित्यकार शरद कोकास , संजीव तिवारी, राजकुमार ग्वालानी, एवं अन्य रचनाकारों का गंभीर लेखन पढने मिलेगा.

ये हमारा एक सामूहिक प्रयास है, जो आपको पसंद आएगा. इसी आशा के साथ हिंदी ब्लॉग जगत को समर्पित है,"चर्चा पान की दुकान पर".

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

रेल्वे की लापरवाहियों से यात्री रेल दुर्घटना के शिकार

रेल दुर्घटना अपने आप में एक बहुत बड़ी त्रासदी होती है और जो इसको भोग ले उसके मन मस्तिष्क से इसे निकलना बहुत ही मुश्किल होता है. इसे भुला पाना बहुत ही कठिन होता है. 

मैं विगत ११ सालों में भी इसे नहीं भुला पाया हूँ. इन दुर्घटनाओं में सालाना हजारों लोगों की जाने जा रही हैं,उनके परिवार बर्बाद हो रहे हैं, सिर्फ चालकों एवं सिगनल की लापरवाही से. इसका जिम्मेदार कौन है?

बात २ या ३ सितम्बर १९९८ की है (मुझे तारीख़ ठीक से याद नहीं है.) मैं दिल्ली से रायपुर आने के लिए चला, मुझे नरेन्द्र ताम्रकार दुर्ग वाले  निजामुद्दीन स्टेशन तक छोड़ने आये. गोंडवाना एक्सप्रेस से मेरी टिकट थी रायपुर आने के लिए. 

उस समय गोंडवाना एक्सप्रेस दिल्ली से २.३५ पर छुटती थी. मैंने सोचा कि ट्रेन में बैठने से पहले घर एक फोन लगा लेता हूँ ,लेकिन लाइन नहीं मिली, मैं ट्रेन में चढ़ गया. ट्रेन में बैठने के बाद अपना सफारी उतार कर हाफ पेंट और टी शर्ट पहन ली। 

मेरे कम्पार्टमेंट में कोई नहीं था, खाली था। तभी मेरे सामने सीट पर दो लोग और आ गए. ट्रेन चल पडी. ट्रेन ने फुल स्पीड पकड़ रखी थी. 

मैंने अपनी किताब निकाली और खिड़की के पास बैठ कर पढने लगा. उसी समय रेल की पटरी से रोड़ियां उछल कर खिड़की से अन्दर आकर मुझे लगी. 

मैं खिड़की से थोडा दूर हो गया और सामने बैठे व्यक्तियों से बोला" यार लगता है आज ड्राईवर ने दो पैग ज्यादा ही चढा लिए, ट्रेन फुल स्पीड में चला रहा है". 

मैं इतना कहा ही था कि जोर से आवाज आई और सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया. 

कुछ क्षण के लिए तो होश गायब कि ये क्या हो गया, मुझे लगा कि कोई भारी चीज मेरे ऊपर गिरी है, होश आने पर अपने आप को संभाला, तो देखा की एक आदमी जो साइड ऊपर सीट पर सो रहा था वो मेरे उपर गिरा हुआ है, मैं उसके नीचे दबा हुआ हूँ. मैंने उसे हटाया, देखा तो बोगी पलट गई थी. 

गनीमत थी के हमारी बर्थ दरवाजे के नजदीक थी. मैंने अपना सामान बैग उठाया और दरवाजे से लटक के बोगी के ऊपर पंहुचा तो,और जो पॉँच लोग थे उनको भी बोगी के उपर खींचा. 

देखा की ट्रेन के तीन टुकड़े हो गए हैं. १४ बोगीयां गिर गई थी.एसी बोगी बच गई थी उसके पीछे के पहिए ही उतरे थे. गाड़ी ड़ीरेल हो गयी थी, यानी पटरी से नीचे उतर गयी थी. 

पटरियां उखड़ गयी थी और उन पर तार पड़े थे. मैं नीचे जमीन पर डर के मारे नहीं उतर रहा था मेरी बेक बोन में दर्द हो रहा था. 

सांझ का समय था. अँधेरा होने वाला था. सुनसान बियाबान में खेतों के बीच में बल्लभगढ़ के पास गैस की बड़ी-बड़ी टंकियां लगी हैं, वहीँ पर गाड़ी गिरी थी. तभी एक ने कहा कि सर बिजली के तार टूटने से से इनमे करेंट का प्रवाह बंद हो जाता है. 

तब हिम्मत करके बोगी से नीचे उतरा, आगे गया और गिरी हुई बोगियों के पास, बोगियाँ बड़ी बुरी हालत में थी. काफी लोग मारे गए थे, कुछ ने तो मेरी आँखों के सामने ही दम तोडा था. मैं वहां कुछ भी नहीं कर सकता था. असहाय खडा था. 

२ घंटे तक दिल्ली या आस पास के स्टेशनों से कोई सहायता नहीं आई. जबलपुर जाने वाली बोगी में बहुत सारे फौजी थे. उसमे ही ज्यादा मौत हुई थी. क्योंकि स्पीड होने के कारण पीछे की बोगियों में नुकसान ज्यादा हुआ था. 

मैं अपना बैग उठा कर पैदल ही चल पड़ा, अँधेरा होने वाला था. बल्लभगढ़ और दिल्ली वाले रोड पर पहुंचकर बस पकड़ी, 

उसने मुझे आश्रम वाले पुल पे उतारा, फिर वहां से बस पकड कर नार्थ एवेन्यू पंहुचा. वहां पर नरेन्द्र ताम्रकार ने मुझे वापस आए देखा तो उसे आश्चर्य हुआ कि अभी तो ट्रेन में बैठा कर आया था, वापस कैसे आ गए? 

मैंने उसे सारी घटना बताई, तब उसने टी वी चालू करके देखा तो न्यूज में दुर्घटना के बारे में बता रहा था. जब रेलवे स्टेशन पंहुचा तो वहां अपने-अपने परिजनों के विषय में लोग पूछताछ कर रहे थे लेकिन उन्हें कोई माकूल जवाब नहीं मिल रहा था. 

रेलवे वाले सीधे मुह बात नहीं कर रहे थे. मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी टिकिट वापस करी, फिर मेरे एक मित्र ने सुबह हवाई जहाज की टिकिट बनवा दी, जिससे मैं अपने घर सही सलामत वापस आ गया. 

घर पर फोन नहीं लगने का एक फायदा ये हुआ कि उन्हें ये पता नहीं था कि मै इसी ट्रेन से आ रहा हूँ. नहीं तो घर में कोहराम मच जाता. इस दुर्घटना की उस दिन की टिकिट की फोटो स्टेट कापी एवं सभी अख़बारों की कापी आज भी मेरे संग्रह में है.

स्मृतियों में संजोने के लिए, इस दुर्घटना के कारण मेरी पीठ में बेक बोन का दर्द आज भी सालता है.इसीलिए कहते हैं ना -

"जाको राखे सांईंया,मार सके ना कोय,
बाल ना बांको कर सके,जो जग बैरी होय"

हाँ एक घटना भूल रहा था" जब ट्रेन डिरेल हुई तो एसी बोगी नहीं गिरी थी, तभी उसका दरवाजा खोल कर एक आदमी बाहर निकला और बोला - क्या तमाशा लगा रखा है, इतनी देर से बोगी का एसी बंद है, कितनी गर्मी लग रही है? ये उसकी बात वहां पीड़ित लोगों को नागवार गुजरी और उसके बाद उन्होंने उसको पकड़ लिया पीटने के लिए वो बड़ी मुश्किल से वह फिर एसी बोगी में घुस पाया तो बच गया नहीं तो उसका.....................

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

बिग बॉस के घर में गंदी गालियों में डूबा कमाल

ये क्या हो रहा है बिग बोस के घर में ? कल रात को जब मैं यह सीरियल देख रहा था, तो लगा कि किन्ही संस्कारहीन लुक्खे-लुच्चों के करतब देख रहा हूँ,

कमाल खान ये पता नहीं किस चिडिया का नाम है? मैंने तो पहले सुना नहीं. इसने सबसे पहले गाली गलौच करते हुए रोहित को पानी की भारी बोतल फेंक कर मारी,और माँ बहन की गलियां दी. 

वाह पानी की बोतल रोहित की बजाय शमिता शेट्टी को लगी, इसके बाद भी वो गाली बकता रहा. इसी बीच बिंदु दारासिंग ने उठ कर कहा कि अब बहुत ज्यादा हो गया है. अगर रोहित को कोई फिर कुछ कहेगा तो मैं उसे बहुत मारूंगा. मैं बाहर जा रहा हूँ. जरूरत पडे तो मुझे बुला लेना. 

इसके बाद कमाल खान ने राजीव श्रीवास्तव के साथ झगडा किया मारपीट हुई. कमाल गन्दी-गन्दी  गालियाँ बकता रहा राजू को, 

दोनों के बीच में इस्माईल दरबार थे जो अलग कर  रहे थे. कमाल की गालियों के जवाब में राजू सेम टू यु  कहता रहा. इसके बाद बिग बोस ने कमाल कन्फेशन रूम में बुला लिया.

 कल इस तरह की हरकतें हुई. इसमें अफसोसजनक बात ये थी कि इस शो में पूनम ढिल्लों, जैसी सीनियर अभिनेत्री भी हैं और बाकी लड़कियों के बीच कमाल बेलाग गालियाँ बके जा रहा था. 

जो बोलता था, उसे खुजली वाले कटखने कुत्ते की तरह काटने दौड़ता था. इस तरह के गंदे लोगों को बिग बोस में बुलाने की क्या जरुरत थी? 

क्या अब बिग बोस को खिलाडी मिलने बंद हो गए? 

अगर ऐसा ही है तो बंद कर दे बिग बोस. कोई जरुरत नहीं है. जो हरकतें ये टी वी पर कर रहे हैं. वो शर्मनाक है. निंदा जनक है. 

पिछला बिग बोस का शो कितना अच्छा हिट गया था  अरे उसी राहुल-पायल-और मोनिका को बुला लो, फिर इनके जैसे शोहदों के मुह नहीं देखने पडेंगें. 

कमाल तुम्हे शरम आनी चाहिए अपनी जाहिलाना हरकतों पर. 

(अभी समाचार है की बिग बोस से कमाल को निकल दिया गया है)

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

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बलात्कारी को सरे आम चौराहे पर मौत की सजा होनी चाहिए?

मासूमों के साथ लगातार हो रहे अनाचार लगातार सोचने के लिए मजबूर करते हैं. बलात्कारी दरिंदों का शिकार हो रही मासूम लड़कियों को क्या न्याय मिल पाता है? 

एक बलात्कार की शिकार लड़की के साथ दूसरा बलात्कार जैसा ही कृत्य थाने की पूछताछ होती है. जिसमे उससे ऐसे ऐसे सवालों का जवाब देना पड़ता है. जिस सवाल को पूछने वाला स्वयं अपनी लड़की या माँ बहन से नहीं पूछ सकता. 

अपनी सामाजिक इज्जत को बचाने के चक्कर में बहुत सारी घटनाएँ तो थाने की चौखट तक पहुँचती ही नहीं हैं. अगर पहुँचती हैं तो भी पूछताछ के तौर तरीकों के कारण न्यायालय के दरवाजे तक पहुँचते-पहुँचते दम तोड़ देती हैं. 

क्या कभी इन मासूमों को न्याय मिल पायेगा? 

सरकार ने बलात्कारियों को सजा देने के लिए कड़े कानून बनाये हैं, लेकिन इन कानूनों का भय क्या इस समाज में भेड़ की खाल में छिपे दरिंदों को हुआ है? 

लगातार बलात्कार की घटनाएँ बढती जा रही हैं. इससे हम क्या समझे? कहाँ पर चुक हो रही है? 

शाईनी जैसे लोग अब जमानत पर हैं. मीडिया उसे ऐसे पेश कर रहा है जैसे उसने कुरुक्षेत्र की लडाई जीती हो? 

पता नहीं उसे सजा मिल पायेगी या नहीं, गवाह खरीदे जायेंगे, बड़े बड़े वकील खड़े किये जायेंगे, जिरह  करके उस मासूम लड़की की इज्जत एक बार फिर उतारी जायेगी. क्या उसे न्याय मिल पायेगा? 

हमारे कानून में चूक कहाँ पर है? ये सोचने का विषय है? क्या ऐसे भेड़ियों को हमें समाज में फिर वही स्थान देना चाहिए. क्या वही प्रतिष्ठा देनी चाहिए. जरा गंभीरता से सोचें? 

आज मैंने अख़बार में यह घटना एक बार फिर पढ़ी. अम्बिकापुर ३६ गढ़ के बलसेढी गावं की 16  वर्षीय बालिका १४ अक्तूबर को जंगल में मवेशी चराने के लिए गई थी जिसके साथ ४० वर्षीय देवी प्रसाद नामक व्यक्ति ने अकेले पाकर बलात्कार किया. 

जिसकी रिपोर्ट थाने में उसके परिजनों ने की थी. आरोपी की पता साजी में पुलिस द्वारा देर हो रही थी और आरोपी भाग गया था. 

लड़की के परिजनों का क्रोध उफान पर था. उन्होंने आरोपी का स्वयं पता लगा लिया और उसे ढूंढ़ कर मार डाला. जब लड़की के परिजनों को हत्या के आरोप में पकडा गया तो उन्हें हत्या करने का तनिक भी मलाल नही है. 

उन्होंने कहा कि दुष्कर्म की यही सजा होनी चाहिए. हमें उसे मारने का कोई अफ़सोस नहीं है. हमने उसे सजा दे दी. 

ये जंगल का कानून है. जिसने जो अपराध किया है उसे वही सजा मिलनी चाहिए. अन्य अपराधों के विषय में तो नहीं कहता पर मैं भी सोचता हूँ की बलात्कार का आरोप साबित करने के लिए पीड़ित का बयान एवं मेडिकल जाँच ही काफी होनी चाहिए और बलात्कारी को आम चौराहे पर मौत की सजा होनी चाहिए. 

इसके लिए ये जंगल का कानून ही ठीक है. जिससे लोग ऐसे कृत्य करने से पहले कठोर सजा के विषय में एक बार सोचेंगे. इस कानून में बदलाव की निहायत ही आवश्यकता है.

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

केडी आमा ग्राम फ़िर बसा, दीवाली के दीयों रौशन हुआ

छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में स्थित छुरा ब्लोक के केडीआमा ग्राम (अब रमनपुर) में 150 वर्षों के बाद दीये जले और ग्रामीणों द्वारा दीवाली मनाई गई.

दीयों के प्रकाश से केडीआमा ग्राम एक बार फिर से रौशन हुआ. परम्परागत रूप से ग्रामीणों ने गौरी-गौरा पूजन कर रतजगा किया, राउत नाचा कर के मवेशियों को खिचडी भी खिलाई एवं विभिन्न परम्परागत सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर अपना उल्लास प्रकट किया. 

इस अवसर पर मेरे मित्र नीलकंठ ठाकुर ग्रामीणों के बीच इस पर्व को मना कर इस एतिहासिक घटना क्रम के साक्षी बने.मैं उन्हें बधाई देता हूँ क्योंकि ये अवसर डेढ़ शताब्दी के बाद आया. 

इस गावं में 150 साल पहले चहल -पहल थी. लोग प्रेम एवं शांति के साथ मिल जुल कर रहते थे. फिर अचानक यह गावं उजड़ गया. 

बुजुर्गों के अनुसार यह गावं प्राकृतिक आपदा एवं दैवीय प्रकोप के कारण उजड़ गया, पूर्व में इस गांव के निवासियों की संख्या 65 थी.

घरों में अपने आप आग लगने एवं महामारी या अन्य आपदा के कारण लोग मरने लगे इस कारण यहाँ के निवासियों ने इस गावं को छोड़ने का निर्णय लिया. गावं तो छोड़ दिया लेकिन इस गावं में उनकी खेती बनी रही 

जिसे वो आस पास के "गाय डबरी, जुनवानी, पंक्तियाँ" आदि गावों में निवास कर करते रहे. यहाँ के निवासियों में "भुंजिया, कमार, गोंड" आदिवासी एवं अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग निवास करते थे. उनका राजस्व रिकार्ड अभी तक मौजूद है. 

अंधविश्वास के कारण उजडे इस गावं को बसाने की घोषणा मुख्यमंत्री रमन सिंग ने स्वयं 16 मई 2006 को ग्राम स्वराज अभियान में उपस्थित हो कर की. 

इस वीरान उजडे गावं को बसाने का शिलान्यास कर लाखों के कार्य के घोषणा भी की. इसके बाद यहाँ विकास का काम हो रहा है. 

मुख्य मंत्री ने इस गावं में स्वयं आकर बसने की इच्छा जताई एवं यहाँ बन रहे आवासों में एक आवास उन्होंने अपने नाम से बनाने का आदेश भी अधिकारियों को दिया और उन्होंने इस गांव का नाम रमनपुर रखा. 

एक प्रयास से सदियों से उजड़ा गावं एक बार फिर बस गया. अब यहाँ पुन: उल्लास एवं उमंग छा गया. लोग अपने पुरखों के गावं के पुन: बस जाने के से खुश हैं. 

ये अवश्य किसी फिल्म की कहानी सा लगता है. लेकिन ये गांव आज हकीकत में अपना रूप फिर पा रहा है. एक उजड़ा गांव फिर बस गया.इससे बड़ी बात क्या होगी? 

जहाँ आज डेढ़ सौ बरसों बाद एक बार फिर से दीये जल रहे है.

सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

चित्रकूट में सवा लाख का गधा

चित्रकूट विद्वानों की नगरी रही है और है भी, तुलसी दास, अब्दुल रहीम खानखाना (रहीम कवि) जैसे विद्वान् कवियों ने यहाँ अपने साहित्य की रचना की है, 

यह धार्मिक नगरी है यहाँ नित धार्मिक आयोजन होते रहते हैं.दूर -दूर से श्रद्धालु यहाँ आध्यात्मिक क्षुधा को शांत करने आते है, 

आज यह चर्चा में है कि यहाँ अन्तरराज्यीय गदहों का भी मेला लगा हुआ है. यह मेला नरक चौदस से प्रारंभ होकर पॉँच दिन तक चलता है. 

यहाँ पर ये आयोजन वर्षों से होता आ रहा है. इस मेले में ३६ गढ़, बिहार,झारखण्ड, मध्य-प्रदेश,उत्तर प्रदेश, और नेपाल तक के व्यापारी गदहों को बेचने एवं खरीदने आते हैं.

यहाँ मेले में आने वाले गधों का पहले पंजीयन किया जाता है.इसकी खरीदी-बिक्री पर यहाँ की नगर पंचायत को भी काफी आय होती है.

बताते हैं पिछले साल एक गधा "हीरा" सवा लाख में बिका था. 

वाह क्या बात है.अब तो गदहों के दाम लग गए लाखों में. विद्वानों की नगरी में गदहों को स्थान मिलता है.

मास्टर जी अब तो गधा बोलना छोड़ दो.

शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

चिटठा जगत परिवार एवं समस्त ब्लोगर परिवार को दीपावली की बधाई -ललित शर्मा



चिटठा जगत परिवार एवं समस्त ब्लोगर परिवार को दीपावली की बधाई-ललित शर्मा

छद्म मानवतावादी नक्सलियों का रुदन

क्या समय आ गया है? आज ये दिन भी देखना पड़ रहा है. नक्सलियों के समर्थन में बुद्धिजीवी कलमकार मानवाधिकार को लेकर अब गोष्ठियों की फुलझडियों छोड़ने वाले है. जबकि केंद्र सरकार का नक्सलियों के खिलाफ युद्ध जैसा आक्रामक अभियान शुरू ही नहीं हुआ है. 

समाचार है कि २० से २४ अक्तूबर तक दो बड़े सेमीनार आयोजित किये जाने वाले हैं. भाई मै तो विशुद्ध किस्से कहानियों, कविताएं लिखने वाला जीव हूँ. 

परन्तु जो समाचार कई वर्षों से सुनते पढ़ते आया हूँ. उसने आज मुझे इस विषय पर लिखने को मजबूर ही कर दिया. 

मैंने प्रभावित क्षेत्र देखा है. वहां पर बहुत ही भौगौलिक विषम परिस्थितियां हैं. घने जंगल, पहाडियां, सड़कों का अभाव, लगता है विकास के दायरे से ये क्षेत्र छूट गया है. मुझे लगता है, इसका एक मात्र कारण सिर्फ नक्सली आन्दोलन ही है. इनके कारण उस क्षेत्र में विकास अवरोधित है. 

एजेंसियों को वहां पर काम नहीं करने देते. अगर कोई करता है तो उसकी जान लेने में भी नहीं चूकते. इसलिए कौन मरने जायेगा? 

कहते है ना दो सांडों के झगडे में खेत का ही नाश होता है, सिर्फ मासूम लोग ही मारे जा रहे हैं. जिनकी अर्थी पर कोई रोने वाला नहीं है. 

हजारों पुलिस के जवान शहीद हो गए, हजारों मासूम लोग मारे गए और निरंतर मारे जा रहे हैं. तब ये मानवता की दुहाई देने वाले मानवतावादी कहाँ किस जगह रहते हैं? क्या उन्हें दिखाई नहीं देता? 

आज जब सरकार ने बन्दूख का जवाब बन्दूख से देने के लिए कमर कस ली है, तो कार्यवाही से पहले ही हाय तौबा मचा रहे है. क्या पुलिस मानव की श्रेणी में नहीं है? क्या उनका परिवार नहीं है? क्या उनके बाल बच्चे नहीं हैं? 

ये भी किसी के भाई-बहन, माँ-बाप,पति-पत्नी हैं.जब ये शहीद होते हैं तो मैंने आज तक नहीं देखा की किसी मानवतावादी संगठन ने एक आंसू भी इनकी शहादत पर बहाया हो?

हमारा भारत अहिंसा वादी लोकतान्त्रिक राष्ट्र है. यहाँ हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है. जनता का,जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन है, 

निज का शासन है. अगर कोई समस्या है, तो उसके हल करने के प्रजातान्त्रिक तरीके है. मुख्य धारा में शामिल होकर वोट के माध्यम से सत्ता पर काबिज हो और लोकतंत्र का एक हिस्सा बनो. ऐसा करने से किसने रोका है? 

सभ्य समाज में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं होता.ये जानना चाहिए.

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

छत्तीसगढ़ पर्यटन निगम को "बेस्ट हैरिटेज टूरिज्म स्टेट" का पुरस्कार

छत्तीसगढ़ पर्यटन निगम को "बेस्ट हैरिटेज टूरिज्म स्टेट" का पुरस्कार दिया गया है. गुरुवार को केंद्रीय  सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने ये पुरस्कार निगम के प्रबंधक को दिया. यह आयोजन "टूडेज ट्रेवलर की १२ वीं वर्षगांठ के मौके पर दिया गया. इस अवसर पर अम्बिका सोनी ने "द कारपोरेट कनेक्ट" पत्रिका का भी विमोचन किया. छत्तीसगढ़ राज्य को ये पुरस्कार मिलने पर सबको पर्यटन निगम के सभी कर्मचारियों एवं अधिकारियों को गाडा-गाडा बधाई.

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

धन तेरस की बधाई



धन  तेरस  की  हार्दिक  बधाई 
आज तो हमने नुक्कड़ पे मनाई 

बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

चीन की दुष्टता का करारा जवाब देना होगा

कई दिनों से खबरे आ रही हैं.समाचार पत्रों में न्यूज चैनलों पर, इस चीन की दुष्टता बढती ही जा रही है, लगातार हमारी सीमा के भीतर घुस कर हरकतें कर रहा है. और "अपनी सीमा से बाहर हो रहा है"

कल की खबर है कि हमारे प्रधानमन्त्री के अरुणाचल दौरे पर चीन  को आपत्ति है. अरे हम अपने घर में घूम रहे हैं, तुम्हे आपति क्यों है? 
तू क्या हमारा मास्टर लगता है जो बताएगा की हमें कहाँ जाना है और कहाँ नहीं जाना?  

क्या इतना कमजोर समझ लिया कि जब चाहे तब छडी लेकर तैयार हो जाता है. 

हमारी ४३,१८० वर्ग किलो मीटर जमीन पर पहले ही कब्जा कर रखा है और हमने पूरी दुनिया में "शांति का चौधरी" बनाने के चक्कर में ये जमीन छोड़ रखी है, 

अब और ९० हजार वर्ग किलो मीटर अपना दावा कर रहा है. अरुणाचल हमारे देश का अभिन्न अंग है और हमे अपने क्षेत्र की रक्षा करने का पूरा अधिकार है. 

हम "शांति - शांति" का पाठ कर पीछे हटते हैं और ये छाती पर चढ़े आ रहा है. इसने हमें निवीर्य समझ रखा है. अब तो इसे सुधारना ही पडेगा? 

हम तो चीन से पहले कहते हैं कि हमारे देश के लोगों की भावना को समझो नहीं तो ये वही देश है जिसमे रणबांकुरों की कमी नहीं है. 

हमारी सेनाएं भी सबक सीखाना जानती हैं. इसलिए मैं निवेदन करता हूँ कि कोई तो समझाओ इस मुरख को, तू अब नादानी छोड़ दे.नहीं तो फिर माकूल जवाब देना ही पडेगा.

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

दीवाली पर नकली मावा की भरमार, स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़

दीवाली आ रही है और नकली दूध एवं मावा (खोवा) बनाकर बेचने वालों की चाँदी कट रही है. अब एक बार फिर बड़े तौर पर आप एवं आपकी  सेहत पर खतरा मंडरा रहा है. 

आपकी जिन्दगी के साथ फिर खिलवाड़ होने वाला है. आप पर होने वाला है नकली दूध, मावे एवं मिठाईयों का हमला. 

यूरिया, सिंघाडे का आटा तेल या डालडा घी और सस्ता पाउडर दूध इसको बनाने का कच्चा माल है. अभी कुछ दिनों की बात है. 

मै खैरथल से श्री गंगानगर जाने के लिए दिल्ली वाले हाइवे पर बस पकड़ने के लिए रात को बैठा था. बस आने में देरी थी तो एक होटल के सामने पड़ी हुयी बेंच पर बैठ गया. होटल वाले ने मुझे बताया की बाबूजी बस की चिंता ना करो वो बस मेरी इजाजत के बिना यहाँ से जा नही सकती. 

मैंने पूछा क्यूँ भाई तू रोडवेज में मैनेजर लगा हुआ है? जो बस तेरे कहने से ही जाएगी. 

वो बोला बाबूजी- हम इस बस के रोज के ग्राहक हैं, हमारा माल इसी से जाता है. 

मैंने पूछा-  क्या ? 

उसने कहा मावा जाता है जी रोज एक से डेढ़ क्विंटल. 

मैंने कहा- भाई अभी मैं परसों वापस आऊंगा तो मुझे भी दे देना दो किलो पेडे बनवा लेंगे बच्चे खुश हो जायेंगे. 

वो बोला-बाबूजी ये चालू मावा है. आपके लिए तो स्पेशल मंगवाना पड़ेगा. 

तब मैंने उससे नकली मावा बनाने की पूरी तरकीब पूछी तो उसने सब बता दी ये सोच के कि यहाँ का आदमी तो है नहीं. 

अभी रक्षा बंधन की ही बात है, उससे एक दिन पहले मैं उडीसा में खरियार रोड गया था. वापस आते समय बागबाहरा में रुका. एक नया अच्छा होटल देख के नाश्ता  करने. 

मैं वहां पर बहुत अच्छी बर्फी देखी, जिसका रंग भी एकदम साफ़ था. मैंने सोचा कल त्यौहार है. मिठाई तो घर भी जाकर कल मुझे ही लानी पड़ेगी.यहाँ बढ़िया दिख रही है.यहीं से ले लेते हैं. ये सोच कर मैंने दो किलो बर्फी ले ली. दुसरे दिन रक्षा बंधन था. 

उस मिठाई का एक टुकडा मुह में डाला तो मुह के अन्दर ही वो पूरा चिपक गया नीचे ही नहीं उतर रहा था. मैंने वो मिठाई फिंकवाई. अब उसकी ख़राब मिठाई की शिकायत करने १०० किलो मीटर तो नहीं जा सकता था. 

खाने पीने के सामानों में मिलावट तो धड़ल्ले से जारी है. पर दूध, दही, देशी घी,और मावे में तो कुछ ज्यादा ही है.पहले दूध में पानी की मिलावट होती थी,चलो मोल का दूध है करके आदमी एक बार चला लेता था,लेकिन अब तो पूरा-पूरा दूध ही नकली आ रहा है. सीधा-सीधा उपभोक्ता के स्वास्थ्य पर हमला हो रहा है और डायबिटीज़ एवं बी.पी की बीमारी से इसका सीधा-सीधा सम्बन्ध है. 

दूध के बने उत्पाद यमदूत का कार्य कर रहे हैं. नकली एवं गुणवत्ता विहीन दूध से बनी मिठाईयों के नाम पर ना केवल जनता के विश्वास को छला जा रहा है बल्कि उसके जीवन से भी खिलवाड़ किया जा रहा है, 

दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद की जाँच पर सरकारी अमला उदासीन नज़र आता है. आवश्यकता इस बात की है कि डेरियों एवं होटलों में मिलने वाले दूध एवं दुग्ध उत्पाद की निरंतर जाँच हो. तथा गुणवत्ता विहीन खाद्य सामग्री बेचने वालों पर कठोर कार्यवाही हो.

साथ ही एक सलाह ये भी है कि जहाँ तक हो सके.इन उत्पादों से बचने की कोशिश करें एवं आटे, दाल,चावल मैदे से बनी घर की मिठाईयों का सेवन ही लाभ दायक है.  

सोमवार, 12 अक्तूबर 2009

तिरंगा उल्टा फहराने का मामला न्यायालय में

छत्तीसगढ़ के दंतेवाडा में स्वतंत्रता दिवस पर जिला मुख्यालय में तिरंगा उल्टा फहराने का मामला अब न्यायालय में पहुँच गया है. 
जिला पंचायत अध्यक्ष छविन्द्र कर्मा ने जिला एवं सत्र न्यायालय दंतेवाडा में प्रभारी मंत्री, कलेक्टर, और पुलिस अधीक्षक सहित ५५ अधिकारियों एवं जनप्रतिनिधियों के खिलाफ इस मामले में याचिका दायर की है. 

न्यायालय ने वादी का पक्ष सुनने के लिए १४ अक्तूबर की तारीख निर्धारित की है. 

इसके बाद ही याचिका स्वीकार होने या ना होने का फैसला होगा. 

ज्ञात हो की स्वतंत्रता दिवस पर जिले के मुख्यालय में तिरंगा झंडा उल्टा फहराया गया था.

समलैंगिकों के सेना में भरती के खुले द्वार

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने चुनाव के समय एक वादा किया था कि वे राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर समलैंगिकों को सेना में भरती की इजाजत दे देंगे. 

बराक ओबामा अपने इस वादे को पूरा करने को अब तत्पर हैं. 

उन्होंने शनिवार को समलैंगिकों के एक समूह को सम्बोधित करते हुए कहा कि १९९३ से सेना में समलैंगिकों की भरती पर लगी रोक को ख़त्म करूँगा. 

उन्होंने अपने २५ मिनट के भाषण में समलैंगिक अधिकारों पर जोर दिया. 

उन्होंने समलैंगिकों का उत्साह वर्धन करते हुए कहा कि आप किसी तरह का संदेह मत करें हम जिस दिशा में बढे हैं, उसके जरिये अपनी मंजिल तक अवश्य पहुचेंगे. 

ये पुरस्कार अब वे समलैंगिकों को देने जा रहे हैं. 

अब अमेरिकी सेना की इस विषय पर क्या प्रतिक्रिया होगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा? 

हाँ लेकिन एक बात है "नोबेल पुरस्कार" की घोषणा होने के बाद ये घोषणा क्यों? 

कहीं इसी बाबत तो इन्हें इस पुरस्कार से नवाजा तो नहीं गया है? 

अब अमेरिकन सेना का भगवान ही मालिक। 

रविवार, 11 अक्तूबर 2009

वैज्ञानिकों पर बलि देने की कोशिश करने का आरोप

एक समाचार थोडा चौंका गया कि ग्वालियर स्थित रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संस्थान के दो वरिष्ठ वैज्ञानिकों पर अपने कनिष्ठ साथी की  बलि देने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया है.

डी.आर.डी.ई. के कनिष्ठ वैज्ञानिक सुशील कुमार की पत्नी श्रीमती श्रद्धा शर्मा ने विश्वविद्यालय थाने में एक शिकायती पत्र दो वरिष्ठ वैज्ञानिकों कामेश्वर राव एवं एस.बी.एस.भास्कर पर तंत्र-मंत्र के जरिये सुशील को शारीरिक नुकसान पहुचाने एवं बलि देने की कोशिश करने का आरोप लगाया है, 

पुलिस ने शिकायत दर्ज कर जाँच शुरू कर दी है. 

ये कुछ हजम होने वाली बात नहीं लगी, D.R.D.E. जैसे प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक तंत्र -मंत्र के साथ बलि देने की कोशिश करेंगे, 

एक बार जंगली इलाके के किसी अनपढ़ अंध विश्वासी की बात होती तो समझ में आता  है, वहां अज्ञानता वश बलि जैसे क्रूर कार्य को अंजाम दे दिया जाता है, D.R.D.E. जैसे संस्थान में ........................ ये समझ से परे है.

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009

बालको दुर्घटना के आरोपी के अस्पताल दाखिले पर कैदियों का हंगामा

बालको में कुछ दिनों पहले २३ सितम्बर चिमनी गिरने का हादसा हुआ था, जिसमे लगभग 41 मजदूरों के मरने की पुष्टि हुई थी,  

एक खबर के अनुसार-दुर्घटना के कारणों की जाँच चल रही है, दोषियों की तलाश जारी है, जारी विवेचना के अंतर्गत कोरबा पुलिस ने गत ७ अक्तूबर को जी.डी.सी.एल. के प्रोजेक्ट मैनेजर मनोज शर्मा को धारा ३०४ (२) के तहत गिरफ्तार किया था, 

जमानत के अभाव में न्यायालय ने उसे जेल भेजने का आदेश दिया, जेल में दाखिल होने के ४८ घंटे बाद ही जेल प्रबंधन द्वारा मनोज को शुगर और ब्लड प्रेशर की शिकायत होने पर अस्पताल में दाखिल करा दिया गया, 

जेल प्रबंधन के इस निर्णय से जेल में बंद कैदियों द्वारा जम कर विरोध किया गया, जेल के दरवाजे के पास जमकर नारे बाजी की गई, 

कैदियों के प्रदर्शन के दौरान जेल के सहायक प्रभारी मौके से गायब हो गए, जेल के कैदियों में १७ ऐसे कैदी हैं जिन्हें अस्पताल में दाखिल करना अति आवश्यक है, इनको अस्पताल में दाखिल नही कराया गया।  

इसके बावजूद जेलर द्वारा रसूखदार कैदियों को पैसे के लालच में अस्पताल में रिफर कर उन्हें लाभ पहुचाया जा रहा है, 

कैदियों ने कहा कि जेल में चिकित्सक की पदस्थापना होने के बाद भी जेल का चिकित्सक सप्ताह में एक बार ही जेल आता है, 

आक्रोशित कैदियों ने भूख हड़ताल पर बैठने की घोषणा करते हुए जेल एवं जिला प्रशासन को चेतावनी दी है कि यदि सभी कैदियों को एक नजर से नहीं देखा जाता तो भूख हड़ताल जारी रहेगी. 

कैदियों के विरोध के कारण प्रोजेक्ट मेनेजर को वापस देर रात को जेल में पुन: दाखिल कर दिया गया है, अभी कुछ दिन पहले जेलों में हो रही अनियमितताओं की खबरें सामने आई थी, 

रसूखदार कैदियों को जेल में उनके ऐश आराम की सारी वस्तुएं उपलब्ध हो जाती हैं,वही सामान्य कैदियों को भगवान भरोसे मरने के लिए छोड़ दिया जाता है.

इससे ये पता चलता है कि जेलों में क्या गोरख धंधा चल रह है,सब सुविधा शुल्क की माया है.

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

चरम सीमा पर मंहगाई, मध्यम वर्ग की दुहाई

एक विज्ञापन है, जिसमे फ्रिज, वाशिंग मशीन, माइक्रोवेब, आदि खरीदने पर दीवाली धमाका आफर में कुछ गिफ्ट दिए जा रहे हैं.

जिसमे फ्रिज डबल डोर खरीदने पर खाने का तेल, सिंगल डोर फ्रिज खरीदने पर शक्कर, एवं अन्य उत्पादों पर विभिन्न तरह के आकर्षक गिफ्ट है. 

प्रश्न यहाँ पर विज्ञापन का नही है, प्रश्न यहाँ पर दिनों दिन बढती हुई महंगाई का है.  

आज इलेक्ट्रानिक वस्तुओं कि खरीदी पर खाने पीने का सामान दिया जा रह है गिफ्ट में, यही दो साल पहले खाने पीने के सामान में इलेक्ट्रानिक वस्तुओं का गिफ्ट दिया जाता था. 

आज शक्कर में फूटकर खरीदी पर ५ रूपये किलो की फिर तेजी आई है, आलू, प्याज २०-२० रूपये किलो हो गए है, जबकि इसी प्याज ने भाजपा को एक विधानसभा का चुनाव हरवा दिया था.

उस समय प्याज की महंगाई पर पानी-पानी पी कर कोसने वाले नेता कहाँ है? 

क्या बढे  हुए खाद्य पदार्थों की कीमत उन्हें नहीं दिख रही है? 

जिस हिसाब से महंगाई बढ़ रही है, पता नहीं ये कहीं पर जाकर रुकेगी,१०० दिन में महंगाई घटाने का दावा करने वाली सरकार का ध्यान किधर है?

आज मजदूर-किसान से लेकर एक मध्यम वर्गीय परिवार को अपना घर चलाना ही मुश्किल हो रहा है. 

महंगाई के कारण आज गिफ्ट में खाद्य सामग्री ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए दी जा रही है, ये एक बहुत बड़ी सोचने की बात है. 

जो पेट भर खाना १५ रूपये थाली में मिल जाता था आज वही थाली ५५ रुपये की हो गई है. 

दिल्ली में बैठे नेताओं गरीबों की सुनो,नहीं तो अब गरीब-मध्यम वर्गीय परिवार भी तुम्हारी सुननी बंद कर देगा.

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

कानों से जानी जा सकती है उम्र

अब उम्र छुपाना होगा मुश्किल, महिलाएं अधिकतर अपनी उम्र के प्रति अधिक सचेत रहती हैं। भले थोड़ा बहुत झूठ भी बोलना पड़ जाए तो उससे भी कोई गुरेज नहीं, 

लेकिन अमेरिका के प्लास्टिक सर्जन प्रोफेसर मैथ्यू ने बताया कि आम तौर पर महिलाओं के हाथ और गर्दन उनकी असली उम्र के हमराज होते हैं, वे इनका पूरा ख्याल रखती हैं, इस देखभाल में कान छूट जाते हैं। 

अगर आप कास्मेटिक का इस्तेमाल करके खुश हैं कि आपकी उम्र का पता नहीं चलेगा तो यह आपकी भूल है।

एक शोध में यह पाया गया है कि महिलाएं सनस्क्रीन का इस्तेमाल चेहरे, हाथ और गर्दन की त्वचा की सुरक्षा में करती हैं, अक्सर कान अछूते रह जाते हैं।  

इसलिए उम्र का असर कानों पर बरकरार रहता है। 

माउन्ट सिने स्कूल आफ मेडीसिन के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रोफेसर मैथ्यू ने बताया कि उम्र बढ़ने का असर शरीर के सभी अंगों पर सामान पड़ता है, 

उचित देखभाल के अभाव में कान की त्वचा की आभा खोने, नरमी एवं कोमलता कम हो जाने से कान की उम्र चेहरे की त्वचा से ज्यादा दिखने लगती है, इस तरह छिपाने के बाद उम्र का राज खुल ही जाता है, 

लगता है अब कानों के लिए भी अलग से ब्यूटी पार्लर होंगे, जहाँ सिर्फ़ कानों की देखभाल होगी। 

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

चावल पकाना नही होगा, नई किस्म विकसित

गृहणियों के लिए आज एक खुशखबरी का दिन है, हमारे कृषि वैज्ञानिकों ने चावल की एक ऐसी किस्म विकसित की है जिसे खाने के लिए पकाने की आवश्यकता नहीं है.  

यह किस्म कटक के केंद्रीय चावल अनुसन्धान संसथान ने विकसित की है.
संसथान के निदेशक ने आई.एन.एस. को बताया है कि इस चावल के नई किस्म से उपभोक्ता चावल तुंरत बिना किसी झंझट के पका लेंगे, 

इस किस्म (अग्नि बोरा) का १४५ दिन परिक्षण किया गया, इसकी पैदावार भी ४ से ४.५० हेक्टेयर प्रति एकड़ है,जो अन्य किस्मों के बराबर ही है. 

केंद्र निदेशक तपन कुमार का कहना है कि यह चावल सादा पानी में ४५ मिनट तक भिगोने एवं गरम पानी में १५ मिनट भिगोने से खाने के योग्य हो जाता है. 

जबकि चावल की अन्य किस्मों को पकाने की आवश्यकता होती है,यह चावल असम के स्थानीय चावल (कोमल चावल) की उन्नत किस्म है, इसमें कोई अनुवंसिक परिवर्तन नहीं किया गया है.

सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

एयर होस्टेस से प्लेन में छेड़छाड़, पायलट पर आरोपी

आज सुबह के समाचार पत्रों में व्योम बाला (एयर होस्टेस) से छेड़खानी की खबर प्रमुखता से छापी गई है, साथ ही ये भी लिखा है कि पायलेटों एवं क्रू सदस्यों के बीच हाथा पाई भी हुई  है. 

ये पायलेट ही हमेशा सुर्खियों में रहते है, कभी शराब पी कर जहाज उडाने का मामला हो, हड़ताल का मामला हो, या फिर छेड़छाड़ का. 

लगभग एक जहाज में २०० के करीब तो सवारियाँ रहती ही है, इतनी सवारियों के बीच काकपिट में छेड़छाड़ करना बहुत ही हिम्मत का काम है।

अब महिलाओं की इज्ज़त आकाश में भी सुरक्षित नहीं है। 

मैंने कई बार देखा है कि हवाई जहाज को ऑटो पायलेट में लगा कर ये काकपिट से बाहर घूमते हैं। 

अभी कुछ दिन पहले ही दिल्ली वाली फ्लाईट में एक पायलेट जब काकपिट से बाहर आया पूरे प्लेन में चहल कदमी की जैसे चांदनी चौक में तफरी कर रहा है। 

मैं थोडा घबराया कि ये देखने आया है कि कितनी सवारी है जो मरने वाली है. 

मैंने सोचा कि अब काकपिट में जा के बोलेगा कि अपनी सीट बेल्ट बांध लो प्लेन क्रेश लेंडिंग करने वाला है।  

रविवार, 4 अक्तूबर 2009

नकली दवाईयाँ खेल, मरीज की सेहत फ़ेल

देश में नकली दवाओं का धंधा बेधड़क एवं सुनियोजित ढंग से चल रहा है, शहरों से लेकर गावं तक इनका नेटवर्क बना हुआ है। 

ये पता करना कठिन है कि कौन सी दवाई असली है और कौन सी दवाई नकली है? 

सीधे-सीधे मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ हो रहा है। जीवनरक्षक दवाएं मौत साबित हो रही है। 

ये तो एक पहलू है, दूसरा पहलु है कि सामान रसायन एवं सामान मिश्रण से बनी हुई दो अलग-अलग कम्पनी की दवाओं के मूल्य में काफी असमानता है। 

डाक्टर भी महंगी से महंगी दवाइयां लिखते है। आज दवा बाजार में देशी-विदेशी एक-से-एक बड़ी कम्पनियां अपना उत्पाद बेच रही हैं। शायद ही किसी ने किसी कम्पनी का विज्ञापन अख़बारों या अन्य प्रचार साधनों में देखा होगा। 

कम्पनियां सीधे ही डाक्टर एवं केमिस्टों से संपर्क कर उन्हें तरह-तरह के उपहारों से नवाज कर अपनी दवाइयाँ बेचती है और मरीजों को महंगी से महंगी दवाई खरीदनी पड़ती है। 

सारा ही गोरखधंधा चल रहा है, ऐसा लगता है कोई माई-बाप  ही नही है।

मेरे साथ ही एक घटना घटी। मुझे विगत ३ वर्षों से मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप की शिकायत है तथा मुझे २ मधुमेह एवं एक उच्च रक्तचाप नियंत्रण की गोली खानी पड़ती है। अपोलो के डाक्टर ने मुझे मधुमेह के लिए ग्लासिफेज जी वन नामक दवाई सुझाई। 

यह दवा एक बड़ी कम्पनी फ्रेंको इंडियन का उत्पाद है। जिसका मै लगातार सेवन कर रहा था। एक दिन मै सफ़र में था और रास्ते में एक केमिस्ट के यहाँ से दवाई खरीदी और खाई, तीन-चार दिन बाद मैंने शुगर चेक किया तो ३७४ बता रहा था। 

डाक्टर ने कहा कि बहुत बढ़ी हुई है अभी एक दूसरी गोली और बढा देते हैं, सामान्य होने पर कम कर देंगे। 

एक दिन मेरी नज़र सुबह कमोड पर पड़ गयी तो देखा साबुत गोली पानी में तैर रही थी। 

मै हैरान हो गया, जो गोली २२ घंटे पहले मैंने खाई है वो अभी तक भी नहीं घुली, शुगर कैसे कम होगी? 

मैंने ये बात अपने डाक्टर को बताई तो उसने कहा कि दूसरी कम्पनी की गोली ले लो और मैंने वो ली, वह पेट में जाकर घुल गई। 

मैंने कम्पनी को एक पत्र लिख कर नोटिस दिया तथा पूरी घटना के विषय में तफसील से बताया, पत्र रजिस्टर्ड डाक से भेजा लेकिन आज तक उसका कोई जवाब नही आया। 

मैंने उस दवाई कम्पनी के डीलर का पता किया और उसे फोन पर शिकायत की। उसने कहा कि आपको मेरा नंबर किस मेडिकल स्टोर वाले ने दिया है बताओ?  

फिर उसने ही कई मेडिकल स्टोर के नाम सुझाये, एक का नाम लेते हुए कहने लगा, मुझे मालूम है उसी ने दिया होगा। मैं कल से उसको माल देना ही बंद कर दूंगा, 

अनायास ही मेरी जान बच गई, शायद उपर वाले को मेरी जान बचाना ही था नही तो नकली दवाई के चक्कर में ..................राम नाम........

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

सार्वजनिक स्थल पर धुम्रपान, लोगों पर लगा जुर्माना

राजधानी में सार्वजनिक स्थल पर धुम्रपान निषेध का उल्लंघन करने पर पिछले एक साल में ४६ हजार लोगों पर जुर्माना लगा कर ४० लाख रूपये वसूले गए. 

पिछले साल केंद्रीय सवास्थ्य मंत्रालय ने २ अक्तूबर को देश भर में सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान पर रोक लगाई थी. 

वलियेंट्री हेल्थ ओर्गेनैजेशन ऑफ़ इंडिया की तरफ से ये जानकारी दी गई, सार्वजनिक स्थलों पर धुम्रपान करने पर २०० रूपये जुर्माने का प्रावधान है.

इसका सीधा-सीधा मतलब है कि गत वर्ष ४६ हजार लोगों ने राजधानी में ये जानते हुए कानून तोडा की पकडे गए तो जुरमाना भर देगें। 

ये आंकड़े इनके रिकार्ड में है, जो रिकार्ड में नही है उनकी संख्या का अंदाजा आप लगा सकते है, कितने ही रूपये इन कानून के रखवालों की जेब में गये होंगे? 

२०० का जुरमाना देने की बजाय ५० देके ही पीछा छुडायेगा ना. फिर भी १५० की बचत. 

जब पता है कि यहाँ पर धुम्रपान निषेध  है तो वहां पर नही करना चाहिए. लेकिन लोग कानून हाथ में इसलिए लेते है जो होगा देखा जायेगा, जुर्माना ही तो लेगा, कोई फांसी पे थोडी चढ़ाएगा। 

एक बार मै ट्रेन में आ रहा था,तो गोंदिया के पास टीटीयों का उड़न दस्ता चढा, एक आदमी सिगरेट पी रहा था. 

टीटी ने उसका जुरमाना काट दिया तो वो टी टी से बोला-अब आपने जुरमाना तो काट दिया मै अब तो सिगरेट पी सकता हूँ, 

टी टी बोला आप जितनी बार पियेंगे मै उतनी बार जुर्माना काटूँगा. 

तो वो बोला- हमारे दिल्ली में आप एक दिन सुबह हेलमेट नही पहनने पर चालान कटवा लो फेर वो ही चालान पर्ची दिन भर हेलमेट का काम करती है. 

बाद में उसने बताया की वो दिल्ली पुलिस में इंसपेक्टर है.  

दूसरी घटना बताता हूँ रायपुर के रेलवे  स्टेशन पर मै ट्रेन में खिड़की के पास बैठा था, एक आदमी ट्रेन के बाहर मेरी खिड़की पे ही सिगरेट पी रहा था. 

तभी टी टी देख लिया और बड़े आदर से उसे पूछा- क्यों भाई साब आप पुलिस में हो क्या? 

उसने जवाब दिया- नहीं.

तो टी टी ने कहा - तो फिर कानून हाथ में क्यों ले रहे हो? 

आज अधिकतर लोगों की ये मानसिकता बनी हुयी है,कानून की रक्षा की जिसकी जिम्मेदारी है वही लोग कानून की धज्जियाँ उड़ा रहे है.

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

गाँधी जी का आखरी वसीयत नामा

गाँधी जी ने महाप्रयाण के एक दिन पूर्व  दिनांक २९ जनवरी १९४८ को एक वक्तव्य लिखा था, जो उनका आखरी वसीयत नामा माना जाता है, अक्षरश: यहाँ दिया जा रहा पढ़े और चिंतन करे. 

देश का बंटवारा होते हुए भी, भारतीय  राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा मुहैया  किए  गए साधनों के जरिए हिंदुस्तान को आज़ादी मिल जाने  के कारण मौजूदा स्वरूप वाली कांग्रेस का काम अब ख़तम हुआ.

यानी प्रचार के वहां और धारा सभा की प्रवृत्ति चलाने वाले तंत्र के नाते उसकी उपयोगिता अब समाप्त हो गयी है.

शहरों और कस्बों से भिन्न उसके सात लाख गांवों  की दृष्टि से हिंदुस्तान की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक आज़ादी हासिल करना अभी बाकी है.

लोकशाही के मकसद की तरफ हिंदुस्तान की प्रगति के दरमियान सैनिक सत्ता पर नागरिक सत्ता को प्रधानता देने की लडाई अनिवार्य  है. 

कांग्रेस को हमें राजनितिक पार्टियों और सांप्रदायिक संस्थाओं के साथ की गन्दी होड़ से बचाना चाहिए। 

ऐसे ही दुसरे कारणों से अखिल भारत कांग्रेस कमेटी नीचे दिए हुए नियमो के मुताबिक अपनी मौजूदा संस्था को तोड़ने और लोक-सेवक-संघ के रूप में प्रकट होने का निश्चय करे. 

जरुरत के मुताबिक इन नियमो में फेरफार करने का अधिकार इस संघ को रहेगा, गांव वाले या गांव वालों के जैसी मनोवृत्ति वाले पॉँच वयस्क पुरुषों या स्त्रियों की बनी हुई हर एक पंचायत एक इकाई बनेगी।

पास-पास की एसी हर दो पंचायतों की उन्ही में से चुने हुए एक नेता की रहनुमाई में एक काम करने वाला दल बनेगा, जब ऐसी १०० पंचायते बन जाये तब पहले दर्जे के पचास नेता अपने दुसरे दर्जे का एक नेता चुने इस तरह पहले दर्जे का नेता दुसरे दर्जे के नेता के मातहत काम करे.

२०० पंचायतों का के ऐसे जोड़ कायम करना तब तक जारी रखा जाये जब तक वो पूरे हिंदुस्तान को ना ढक ले और बाद में कायम की गयी पंचायतों का हर एक समूह पहले की तरह दुसरे दर्जे का नेता चुनता जाये।

दुसरे दर्जे के नेता सारे हिंदुस्तान के लिए सम्मलित रीति से काम करें और अपने-अपने प्रदेशों में अलग-अलग काम करें. 

जब जरुरत महसूस हो,तब दुसरे दर्जे के नेता अपने में से एक मुखिया चुने, और वह मुखिया चुनने वाले चाहें तब तक सब समूहों को व्यवस्थित करके उनकी रहनुमाई करे.

२९-१-४८ 
मो.क.गाँधी, 



(मेरे सपनों का भारत से साभार)

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

कहाँ है हमारी सांस्कृतिक विरासत ?

आज एक अक्तूबर है, अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस मनाया जा रहा है सरकारी तौर पर, अख़बार विज्ञापनों से अटे पडे है, 

क्या अब ऐसा समय आ गया है कि हमें अपने बुजुर्गों को याद करने के लिए साल में एक दिन निश्चित करना पडे? 

एक आदमी जो अपनी पूरी जवानी हवन कर अपने परिवार कि बगिया को विभिन्न झंझावातों एवं सामाजिक कठिनाईयों का सामना करते हुए सींचता है और बुढापा आने के बाद उसे किनारे कर दिया जाता है, जैसे इस घर को बसाने में उसका कोई योगदान ही नही है, ये कैसी विडम्बना है? 

जो घर का मालिक था वो ही चौकीदार हो जाता है. बड़ी शरम कि बात है. आज का युवा अपने इस कर्त्तव्य से क्यों विमुख होते जा रहा है? 

जिसे अपने कर्त्तव्य कि याद दिलाने के लिए सरकारी तौर पर कानून बनाना पडे या वृद्धजन दिवस मनाना पडे.

ये वही देश है जहाँ राम ने अपने वृद्ध पिता का आदेश मान कर १४ बरस वन का वास किया था, ये वही देश है जहाँ श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को कांवर में बैठा कर तीर्थ यात्रा के लिए ले जाता है, कहाँ गई ये हमारी संस्कृति? 

कहाँ गयी वो हमारी सांस्कृतिक विरासत जो हमें निरंतर अपने कर्तव्यो कि याद पित्र ऋण -ऋषि ऋण एवं राष्ट्र ऋण के रूप में निरंतर दिलाती थी.?

शायद हम पश्चिम की आधुनिकीकरण की आंधी में कुछ ज्यादा ही बह गए अपने संस्कारों  को भी भूल बैठे.इसका इलाज क्या है? 

यह विषय मै आप लोगों पर छोड़ता हूँ. हाँ मुझे "लगे रहो मुन्ना भाई"फिल्म का सेकंड इनिग होम जरुर याद आ रहा है.